चेलियाबिंस्क(रूस). रूस और कजाकिस्तान के उराल पर्वत के पास बड़े इलाके में शुक्रवार को आकाश से उल्कापिंड के जलते हुए टुकड़ों की बौछार हुई। कुदरत के इस अजीबोगरीब कहर की चपेट में आकर एक लाख घर तबाह हुए और पौने दो अरब रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। स्थानीय गवर्नर के मुताबिक इससे एक बिलियन रूबल (1,803,342,086 रुपये) की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। उल्कापिंड के ये टुकड़े पृथ्वी के करीब से शुक्रवार रात गुजरने वाले क्षुद्रग्रह 2012डीए14 से पहले गिरे।
रूस के आपात मामलों के मंत्रालय ने ताजा बयान जारी कर कहा है कि इस हादसे में जख्मी होने वाले लोगों की तादाद 1145 पहुंच गई है। इनमें 200 से अधिक बच्चे हैं। घायलों का अस्पताल में इलाज कराया गया है। करीब 50 लोग ही अभी अस्पताल में हैं। किसी की भी शख्स के मौत की खबर नहीं है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस विस्फोट से चेलियाबिंस्क इलाके में 3,724 अपार्टमेंट्स, 671 शैक्षिक संस्थान, 69 सांस्कृतिक संस्थान, 34 अस्पताल, 11 सामाजिक संस्थान और 5 स्पोर्ट्स वेन्यूज तबाह हुए हैं। इस घटना के बाद साउथ उराल यूनिवर्सिटी दो दिन के लिए बंद कर दी गई। जिस इलाके में यह घटना हुई वह राजधानी मॉस्को से करीब 1500 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है।
(फोटो: चेलियाबिंस्क शहर से 80 किलोमीटर पश्चिम स्थित चेबरकुल झील में इस जगह भी उल्कापिंड का एक टुकड़ा गिरा जहां गड्ढा दिखाई दे रहा है। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी)
रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव घटना के समय साइबेरियाई शहर क्रास्नोयास्र्क में आर्थिक फोरम में भाषण दे रहे थे। उन्होंने कहा, 'उल्कापिंडों का गिरना इस बात का प्रतीक है कि आघात सिर्फ अर्थव्यवस्था को ही नहीं बल्कि पूरे ग्रह को लग सकता है।'
(फोटो: रूस के यूराल में चेलियाबिंस्क शहर में उल्कापिंड के टुकड़ों की बरसात हुई तो शहर के रिहायशी इलाके के ऊपर कुछ इस तरह का नजारा था)
शुक्रवार की सुबह रूस की उराल पर्वतमाला के क्षेत्र में और कज़ाख़स्तान के क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने एक खगोलीय-पिंड को आकाश से गिरते हुए देखा। पता लगा की यह खगोलीय-पिंड अंतरिक्ष में फटी और अनेकों छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो गई उल्का का एक टुकड़ा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खगोलीय पिंड का वज़न क़रीब दस टन था। कुछ मीटर व्यास का यह खगोलीय-पिंड 30 किलोमीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से आकाश से धरती पर आकर गिरा। धरती के वातावरण की घनी परतों में प्रवेश करने के बाद खगोलीय-पिंड अनेक छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया।
(फोटो: रूस के यूराल में चेलियाबिंस्क शहर में उल्का पिंड गिरे तो शहर के रिहायशी इलाके के ऊपर कुछ इस तरह का नजारा था)
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पहले आकाश में बड़ी भारी चमक दिखाई पड़ी, उसके बाद एक विस्फोट हुआ और एक चमकता हुआ गोला आकाश में अपने पीछे एक बड़ी सफ़ेद रंग की पूंछ-सी छोड़ता हुआ दिखाई देने लगा। खगोलीय-पिंड के विस्फोट से उस इलाके की कई बस्तियों की बहुत-सी इमारतों के शीशे टूट गए। चेल्याबिंस्क में बने सीमेंट कारख़ाने की बिल्डिंग पर भी इस खगोलीय-पिंड के कई टुकड़े गिरे, जिससे कारख़ाने की बिल्डिंग की एक दीवार आंशिक रूप से नष्ट हो गई और उसकी छत का एक हिस्सा टूट गया। अनेक बिजली लाइनें भी क्षतिग्रस्त हो गईं।
(फोटो: शहर के एक स्पोर्ट्स हॉल के भीतर की तस्वीर जिसमें उल्का पिंड के टुकड़ों से तहस-नहस हुई खिड़कियां और कमरे में बिखरा मलबा दिखाई दे रहा है)
बताया जा रहा है कि आसमान से गिरते उल्का पिंडों को चेलियाबिंस्क के समीप उरजुमका एयर बेस के अधिकारियों ने इंटरसेप्ट किया। आसमान से गिरते हुए उल्का पिंड में 20 किलोमीटर की उंचाई पर ब्लास्ट हुआ और कई टुकड़ों में बंट गया। स्थानीय मीडिया ने सेना के सूत्रों से यह खबर दी है। हालांकि इस बारे में आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
(फोटो: उल्का पिंड की चपेट में शहर का यह दुकान भी आ गया)
शहर के लोग उल्का पिंड के विस्फोट से टूटी खिड़कियों पर प्लास्टिक चिपकाने में जुटे हैं क्योंकि इस वक्त यहां का तापमान काफी कम है। उम्मीद है कि रात में शहर का तापमान -14 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाएगा।
(फोटो: उल्का पिंड की चपेट में आए इस मकान की टूटी खिड़कियों को ठीक करता एक शख्स)
रूस की सेना भी राहत एवं बचाव कार्य में जुट गई है। आर्मी के जवान चेल्याबिंस्क शहर के पश्चिम में स्थित चेबरकुल झील के समीप स्थित एक मिलिट्री बेस सहित आसपास के इलाकों में उल्का पिंड के मलबे की खोज में लगे हैं। सेना की एक यूनिट कुसा शहर के समीप 80 किलोमीटर के दायरे में आने वाले इलाके में तलाशी अभियान चला रहे हैं।
(फोटो: उल्का विस्फोट हादसे में जख्मी इस शख्स की पहचान विक्टर के तौर पर हुई है)
उल्का पिंड की चमक चेल्याबिंस्क के अलावा ट्यूमेन और स्वेर्दोस्क शहरों में भी देखी गई। बशकीरिया और उत्तरी कजाकिस्तान तक इसकी चमक दिखी।
(फोटो: शहर में गिरे उल्का पिंड के पीछे इस तरह का धुंआ दिखाई दिया)
(फोटो: चेल्याबिंस्क शहर में उल्का पिंडों की चपेट में आई एक फैक्ट्री। इसमें राहतकर्मी बिजली के तारों को ठीक करते दिख रहे हैं)
कुदरत के इस कहर के बाद रेडिएशन, केमिकल और बायोलॉजिकल खतरे की आशंका के मद्देनजर संबंधिक विभागों को सतर्क कर दिया गया है। चूंकि यह विस्फोट धरती से कई किलोमीटर की उंचाई पर हुआ है, ऐसे में उल्का पिंड गिरने के स्थान समेत आसपास के कई किलोमीटर के इलाकों में रेडिएशन और अन्य खतरों की जांच की जा रही है।
(फोटो: चेल्याबिंस्क मेडिकल एकेडमी भी कुदरत के कहर से नहीं बच सकी। एकेडमी के भीतर की तस्वीर)
चेबारकुल शहर के इलाके में उल्का पिंड के जो टुकड़े गिरे हैं, उनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा चेबरकुल शहर से एक किलोमीटर दूर स्थित एक झील में गिरा। इस समय उस इलाके में जहां खगोलीय-पिंड के ये टुकड़े गिरे हैं, क़रीब 20 हज़ार बचावकर्मी काम कर रहे हैं। वे खगोलीय-पिंड के गिरने से होने वाले नुक़सान का पता लगा रहे हैं और इस उल्का के टुकड़ों की तलाश कर रहे हैं क्योंकि ये उल्का पिंड अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए अहम 'स्टडी मैटीरियल' साबित होंगे।
रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रगोज़िन ने कहा कि धरती के निकट आने वाले अंतरिक्षीय खगोल-पिंडों और अन्य पदार्थों के बारे में एक चेतावनी प्रणाली बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि दुनिया के प्रमुख देश मिलकर काम करें। उराल क्षेत्र में घटी घटना ने दिखाया कि इस बारे में रूस द्वारा पेश किए जाने वाले प्रस्ताव और पहलें बेहद सामयिक हैं।
घरती पर गिरने वाले इन खगोलीय-पिंडों से कैसे बचा जाए, मानव जाति ने अभी तक यह नहीं सीखा है। रूस सहित विभिन्न देशों के वैज्ञानिक अंतरिक्ष में घूमने वाले खगोलीय पिंडों की लगातार निगरानी करते रहते हैं, लेकिन निगरानी की यह व्यवस्था बेहद कारगर तरीके से विकसित नहीं हुई है। रूसी विज्ञान अकादमी के खगोल अध्ययन संस्थान के प्रमुख अलेग मलकोव का कहना है, 'यह एक बेहद गम्भीर मुद्दा है, जिसे उच्च स्तर पर उठाया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में भी इस सवाल पर विशेषज्ञों का एक समूह काम कर रहा है। यह काम पिछले पांच साल से जारी है। अमेरिका में अंतरिक्ष में घूम रहे खगोलीय-पिंडों की निगरानी के लिए अनेक खास दूरबीनें तैनात की गई हैं। लेकिन हमारे अमेरिकी सहयोगियों ने हमें इस बारे में कोई चेतावनी नहीं दी, इसलिए मुझे लगता है कि उन्हें इस खगोलीय-पिंड के गिरने की जानकारी नहीं हुई थी। मेरा ख़याल है, यह खगोलीय-पिंड सूर्य की दिशा से पृथ्वी पर गिरा था, जिसकी निगरानी करने में हम आज भी अक्षम हैं। सूर्य की दिशा में अंतरिक्ष पर नज़र रखने के लिए काफ़ी महंगे उपकरणों की ज़रूरत है, जिन्हें अंतरिक्ष में ही तैनात किया जाना चाहिए और फिर वहां से सूर्य के आस-पास के क्षेत्र पर नज़र रखी जानी चाहिए।'
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=90Omh7_I8vI