Sunday, May 19, 2013

मेरी मेडिकल चॉइस: ऐंजलीना जोली



करीब दस साल पहले मेरी मां की मौत ब्रेस्ट कैंसर से हुई थी। उस समय वह 59 साल की थीं। मां बच्चों को बहुत प्यार करती थीं। हमारे परिवार के कई बच्चों को उनसे मिलने का सौभाग्य मिल चुका है लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी नानी को नहीं देखा। मैं बच्चों को उनकी नानी के बारे में बताती हूं। उन्हें उस बीमारी के बारे में भी बताती हूं जिसने नानी को हमसे छीन लिया। बच्चे उदास होकर मुझसे पूछते हैं, क्या मैं भी उन्हें उसी तरह छोड़कर चली जाऊंगी जैसे नानी चली गई।
उनका मन रखने के लिए मैं कहती हूं कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन मुझे पता है कि मेरे अंदर वह खराब जीन बीआरसीए 1 मौजूद है जिसकी वजह से मुझे कभी भी ब्रेस्ट कैंसर और ओवरियन कैंसर हो सकता है। डॉक्टरों का कहना था कि इनके होने का खतरा मेरे लिए क्रमश: 87 और 50 परसेंट है। हर औरत के मामले में यह रिस्क अलग-अलग होता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में ब्रेस्ट कैंसर की वजह वंशानुगत नहीं होती।
जरूरी नहीं कि परिवार में किसी को यह बीमारी हो तभी दूसरों को इसका रिस्क हो। यह भी संभव है है कि जीन में गड़बड़ी होने के बावजूद किसी महिला को यह बीमारी न हो। जीन में गड़बड़ी वाली सौ में 65 महिलाओं को ही कैंसर होने का खतरा होता है। जब मुझे इस सच्चाई का पता चला तो मेरे पास एक ही रास्ता था। बचाव के कदम के रूप में मैंने अपने दोनों स्तन निकलवा देने का फैसला किया, क्योंकि मुझे ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा है। 27 अप्रैल को मेरी करीब तीन महीने लंबी मास्टेक्टॉमी पूरी हुई।
अब तक मैंने कहीं इसका जिक्र नहीं किया, लेकिन अब मैं इस विषय में सबको बताना चाहती हूं ताकि अन्य स्त्रियों को भी इस बीमारी के बारे में पता चले। आज के दौर में भी कैंसर का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं। हताश हो जाते हैं और उम्मीद छोड़ देते हैं। लेकिन आज कैंसर से लडऩा उतना मुश्किल नहीं है। एक ब्लड टेस्ट से पता चल जाता है कि किसी महिला को ब्रेस्ट और ओवरियन कैंसर का खतरा है या नहीं। सही समय पर बीमारी के बारे में पता चल जाए तो इलाज संभव है।
मेरा मेडिकल प्रसीजर 2 फरवरी को शुरू हुआ। पहला कदम था निपल डिले। इसमें निपल के पीछे छाती में रक्त प्रवाह बढ़ाकर बीमारी को रोकने की कोशिश की जाती है। इसमें दर्द होता है लेकिन इससे निपल बचने की संभावना बढ़ जाती है। दो हफ्ते बाद मेरी आठ घंटे लंबी एक बड़ी सर्जरी हुई जिसमें ब्रेस्ट के टिशूज को निकालकर उसकी जगह टेंपररी फिलर्स लगाए गए। होश आया तो मेरे शरीर में ट्यूब्स लगे थे। लगा कि किसी साइंस फिक्शन फिल्म की शूटिंग कर रही हूं। लेकिन सर्जरी के कुछ ही दिनों बाद मैं नॉर्मल हो गई। नौ हफ्ते बाद ब्रेस्ट इम्प्लांट के लिए फाइनल सर्जरी हुई। पिछले कुछ सालों में इस सर्जरी की तकनीक बहुत उन्नत हो चुकी है। इसके नतीजे भी बहुत खूबसूरत हैं।
मेरे लिए यह फैसला लेना बहुत मुश्किल था। लेकिन अब मैं खुश हूं कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर होने का चांस अब सिर्फ पांच परसेंट है। मैं अपने बच्चों को कह सकती हूं कि उन्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं। नानी की तरह उनकी मां उन्हें छोड़कर नहीं जाएगी। मैं पूरी कोशिश करती हूं कि मेरे बच्चे खुश रहें। उन्हें मेरी तकलीफ के बारे में पता न चले। उन्हें मेरे शरीर पर कुछ छोटे निशान दिखते हैं, उससे ज्यादा कुछ नहीं। बाकी सब पहले जैसा है।
उनकी मां पहले की तरह उनसे प्यार करती है, उनके नखरे उठाती है। वे जानते हैं कि उनकी मां उन पर जान छिड़कती है और उनके लिए किसी भी हद तक जा सकती है। व्यक्तिगत तौर पर मैं खुद को पहले से ज्यादा ताकतवर महसूस कर रही हूं। बेशक, इस फैसले ने मेरे स्त्रीत्व को खंडित नहीं किया, बल्कि उसे मजबूत बनाया क्योंकि स्त्रीत्व देह का नहीं, व्यक्तित्व का गुण है।
मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे ब्रैड पिट जैसा जीवनसंगी मिला। किसी पति या पार्टनर के लिए भी यह एक अभूतपूर्व अनुभव है क्योंकि वह इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा होता है। सर्जरी के दौरान ब्रैड पिंक लोटस ब्रेस्ट सेंटर में मौजूद थे। जब मैं अस्पताल में थी तो वह हर पल यह कोशिश करते थे कि मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट हो। इस बीच हम एक दूसरे के करीब आए और हमारा प्यार और बढ़ा। मैं हर औरत को बताना चाहती हूं कि उसे निराश होने की जरूरत नहीं क्योंकि उसके पास विकल्प मौजूद है। जिन महिलाओं के परिवार में किसी को ब्रेस्ट या ओवरियन कैंसर हो चुका है, उन्हें भी परेशान होने के बजाय डॉक्टरों से संपर्क करना चाहिए। इस तरह वे तय कर सकेंगी कि उन्हें किस तरह के इलाज की जरूरत है। कई डॉक्टर हैं सर्जरी की बजाय दूसरी तकनीकों का भी इस्तेमाल करते हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के आंकड़े बताते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर से हर साल साढ़े चार लाख मरीजों की मौत होती है। खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में न तो उन्हें जांच की सुविधा मिलती है, न ही सही समय पर उनका इलाज किया जाता है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर पृष्ठभूमि और आर्थिक स्थिति वाली महिला को जीन टेस्टिंग का मौका मिले और समय पर उसका उपचार हो। अमेरिका में बीआरसीए 1 और बीआरसीए 2 की जांच बहुत महंगी -तीन हजार डॉलर से ज्यादा है, इसलिए यहां भी बहुत सी महिलाएं अपनी जांच नहीं करा पातीं।
मैंने अपने अनुभव को सार्वजनिक करने का फैसला किया, क्योंकि मैं चाहती हूं कि अन्य औरतों को भी इस बारे में पता चले। वे कैंसर के खतरों के बारे में जानें, साथ ही यह भी जानें कि इसका इलाज संभव है। उम्मीद है, वे अपनी जांच कराएंगी और कैंसर का खतरा होने पर विकल्पों की तलाश करेंगी। जीवन चुनौतियों से भरा है, लेकिन जिन चुनौतियों का मुकाबला करने की ताकत हममें है, उनसे हमें बिल्कुल घबराना नहीं चाहिए।

17 दिन मलबे में दबे रहने के बाद जिंदा निकली


सकारात्मक नजरिए के साथ जाएं परीक्षा देने



परीक्षा की तिथि - 26 मई, 2013
चन्द दिनों बाद सिविल सेवा की प्रारम्भिक परीक्षा है। प्रारम्भिक परीक्षा के अंतर्गत जीएस और सीसैट के रूप में दो पेपर आयोजित किए जाते हैं। दोनों पेपर एक ही दिन होते हैं। इस परीक्षा में महज विषयगत तैयारी के बल पर सफलता हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि सकारात्मक सोच, सही रणनीति और बुलंद हौसला उम्मीदवार को आसानी से लक्ष्य तक पहुंचा सकता है। सिविल सेवा के प्री व मेन्स में सफल होने के बाद उम्मीदवार आईएएस, आईपीएस, आईएफएस व आईआरएस पद के लिए योग्य होते हैं।
बहुविकल्पीय होंगे सीसैट के प्रश्न
दूसरा पेपर सामान्य अभिरुचि (एप्टीट्य़ूड) का होता है। इसे सीसैट के नाम से जाना जाता है। इसमें कुल 80 प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके लिए कुल 200 अंक निर्धारित हैं और उनके लिए दो घंटे का समय दिया जाता है।
प्रश्न डाटा इंटरप्रिटेशन, कम्युनिकेशन स्किल्स, प्रॉब्लम सॉल्विंग, डिसीजन मेकिंग, लॉजिकल रीजनिंग, मानसिक योग्यता, एनालिटिकल एबिलिटी आदि पर आधारित होते हैं। इसमें पूछे जाने वाले प्रश्न भी बहुविकल्पीय होते हैं। प्रत्येक प्रश्न के लिए ढाई अंक निर्धारित हैं।
40 प्रतिशत प्रश्न कॉम्प्रिहेंशन से
पूर्व के आंकड़ों के अनुसार सीसैट में कुल प्रश्नों का लगभग 40 प्रतिशत कॉम्प्रिहेंशन से संबंधित होता है। इसमें पांच श्रेणियों में परिच्छेद दिए होते हैं। इस परिच्छेद को पढ़ते हुए प्रश्नों का उत्तर लिखना होता है। इसे हल करते समय परिच्छेद के मूल विचार को ध्यान में रखें। बिना समझे इसे पढऩा पूरी तरह से समय की बर्बादी है। परिच्छेद पढऩा शुरू करने से पहले सवालों पर गम्भीरता से नजर डालें और क्या पूछा जा रहा है, इसकी पहचान करें।
सही तर्क करने की हो क्षमता
एक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर उम्मीदवार को आगे चल कर कई प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में तत्काल निर्णय लेने की क्षमता एवं तार्किक गुण उसके लिए बहुत जरूरी है। ऐसे प्रश्नों को तभी हल किया जा सकता है, जब आप स्वयं को प्रभावी अधिकारी के तौर पर देखें और निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने की क्षमता रखें। इसमें अधिकांश प्रश्न भारतीय संदर्भ पर आधारित होते हैं। साथ ही इसमें कारक का प्रयोग, दिए गए तथ्यों से निष्कर्ष या न्याय संगत कथन बनाना तथा साक्ष्यों आदि का प्रयोग शामिल है। तार्किक शक्त का मुख्य उद्देश्य दी गई स्थिति के अनुसार उम्मीदवार की समझ एवं विश्लेषण क्षमता को जांचना है।
मानसिक योग्यता से जुड़े प्रश्न महत्वपूर्ण
सामान्य मानसिक योग्यता के खंड में मौखिक तार्किकता संबंधी प्रश्न शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य व्यक्ति की संरचनात्मक चिंतन क्षमता तथा उसकी तार्किक विश्लेषण क्षमता को मापना होता है। इन प्रश्नों को हल करने के लिए उम्मीदवार को किसी औपचारिक या विशिष्ट नियम को सीखने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि इसके लिए मात्र सहज ज्ञान (कॉमन सेंस) एवं विश्लेषणात्मक बौद्धिकता की आवश्यकता होती है। निरंतर अभ्यास से भी इन प्रश्नों को हल करने की गति बढ़ाई जा सकती है।
इस सेक्शन से पूछे जाने वाले प्रश्नों में सादृश्यता, रक्त संबंध, दिशा-निर्देश, कोडिंग-डीकोडिंग पहेली आदि शामिल होते हैं।
अंग्रेजी व्याकरण पर दें ध्यान
अंग्रेजी के सेक्शन में उम्मीदवार को अंग्रेजी व्याकरण की पुस्तकों का उपयोग तथा खूब सारे शब्दों को रटने की जरूरत नहीं होती। पढ़ी जाने वाली अवधारणा को कुछ इस तरह से तैयार किया जाता है कि इससे उम्मीदवार की पैसेज पढऩे की क्षमता का पता चल सके। साथ ही उसमें दिए गए तथ्यों को समझने तथा पढ़े गए तथ्यों के आधार पर अनुमान निकालने की योग्यता का परीक्षण हो सके।
आधारभूत गणना की करें तैयारी
आधारभूत गणना में संख्याओं, उनकी विशेषता और आंकड़ों के विश्लेषण से जुड़े प्रश्न आते हैं। इसके जरिए उम्मीदवार की संख्यात्मक क्षमता और गणितीय गणना की सटीकता का परीक्षण किया जाता है। विभिन्न आंकड़ों तालिका, ग्राफ, चार्ट इत्यादि के माध्यम से दिए जाते हैं। आधारभूत गणना की तैयारी के लिए सबसे पहले छठी से 10वीं तक के एनसीईआरटी के गणित के सवालों को हल करना चाहिए। उन्हें सूत्रों के सहारे आसानी से हल किया जा सकता है।
निगेटिव मार्किंग का प्रावधान
इस परीक्षा में निगेटिव मार्किंग का भी प्रावधान है। गलत उत्तर दिए जाने पर एक तिहाई अंक काट लिया जाएगा। हालांकि इसमें समस्या समाधान के प्रश्नों के लिए कोई निगेटिव मार्किंग नहीं है। उम्मीदवार प्रश्नों का उत्तर देते समय सावधानी बरतें। कोई जरूरी नहीं कि सारे प्रश्नों को हल ही किया जाए। जो समझ में नहीं आ रहा हो, उस पर अनावश्यक समय खर्च करने की बजाए छोड़ कर आगे बढ़ जाएं। बाद में समय मिलने पर एक बार देख लें। इससे समय की बचत होगी। जिन पर कोई अंक नहीं काटे जाएंगे, ऐसे प्रश्नों को ज्यादा से ज्यादा हल करें।
परीक्षा के एक दिन पूर्व तनावरहित रहें
परीक्षा के एक दिन पूर्व पढ़ाई का अनावश्यक दबाव न लें, क्योंकि तनावग्रस्त मस्तिष्क की कार्य क्षमता कम हो जाती है और परीक्षा के प्रदर्शन स्तर में भी कमी आ जाती है। अत: स्वयं को शांत एवं तनावमुक्त रखने का प्रयास करें। एक दिन पूर्व रात में हल्का सुपाच्य भोजन लें, जिससे वह ठीक से पच सके और परीक्षा के दिन आप खुद को बेहतर महसूस कर सकें। इसके अलावा परीक्षा की पूर्व रात्रि में दिमाग को शांत रख कर पर्याप्त नींद लें। इससे अगले दिन मस्तिष्क तरोताजा रहता है तथा अधिक सक्रिय रह कर स्मृति प्रभावी रूप से साथ देती है।
आसान सवालों को पहले हल करें
परीक्षा भवन में प्रश्नपत्र मिलने पर ऊपर दिए निर्देशों को पहले ध्यानपूर्वक पढम् लें। प्रत्येक प्रश्न के जितने भी विकल्प दिए गए हैं, सबको सावधानीपूर्वक पढ़ें, ताकि गलतियां कम हों। प्रश्नपत्र हल करते समय सरल व आसान प्रश्नों का जवाब पहले दें। उसके बाद ही कठिन प्रश्नों की ओर बढ़ें। गलत पता लगा चुके विकल्पों को पहले ही काट दें, ताकि बचे हुए विकल्पों पर ध्यान देकर सही विकल्प का पता आसानी से लगा सकें। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के लिए एक निश्चित समय होता है, जिसमें उम्मीदवार प्रश्न पढ़ कर उत्तर दे सके। सभी प्रश्न हल करने की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जो भी प्रश्न हल करें, उनके उत्तर ठीक हों।
ओएमआर शीट ध्यानपूर्वक भरें
इस परीक्षा में दिए गए उत्तरों का मूल्यांकन ओएमआर शीट के जरिए ही किया जाता है। इसलिए उम्मीदवार ओएमआर शीट भरते समय पूरी सावधानी बरतें। उन्हें सलाह दी जाती है कि वे ओएमआर शीट गंदी न करें, गोलों को आकृति के अंदर रंगने, ओएमआर शीट न मोडऩे और ज्यादा काटपीट से बचने की सलाह दी जाती है। एक बार गोला काला हो जाने के बाद वही मान्य होता है। शीट भरते समय इस बात का ध्यान रहे कि गलत प्रश्न संख्या के सामने दूसरे प्रश्न का उत्तर न भर दिया जाए, क्योंकि कुछ प्रश्नों को छोड़ देने पर क्रम संख्या गलत होने की संभावना ज्यादा होती है।
स्कोर कार्ड से करें आकलन
प्रैक्टिस सेट हल करने के दौरान उम्मीदवार को पूरी तरह से गम्भीर बनना होगा, क्योंकि परीक्षा के प्रति आपकी तैयारी का स्तर यहीं से पता चलता है। इस परीक्षा में उम्मीदवारों को कुछ ही अवसर मिलते हैं, इसलिए वे पहले स्कोर कार्ड के परिणाम से यह तय कर लें कि उसके मुताबिक आप किस स्तर तक पहुंचे हैं। यदि आपको लगता है कि आपकी तैयारी परीक्षा में सफल होने लायक नहीं है तो आप उसे छोड़ भी सकते हैं। इससे आपका अटेम्प्ट बचा रहेगा। स्कोर कार्ड का आकलन इस रूप में किया जा सकता है-
टिप्स, जो आएंगे काम

  1. हर पहलू की जानकारी आवश्यक
  2. ज्यादा से ज्यादा तार्किक क्षमता विकसित करें
  3. ग्रुप बना कर अध्ययन करना विशेष लाभप्रद
  4. अपने अंदर सकारात्मक भाव विकसित करें
  5. समय प्रबंधन पर विशेष ध्यान दें

Sunday, May 12, 2013

गुणों की खान है खीरा


खीरे में प्रचुर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेट होते है जो हमारे शरीर के इम्यून फंक्शन को बरकरार रखने मदद करते है। इसे रोजाना खाने से गर्मी से लू नहीं लगती। इसमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है, जो शरीर में पानी की कमी नहीं होने देती। इसके सेवन से थकावट नहीं होती है। यहां आपको डाइटीशियन इति भल्ला बता रही है इसके अन्य गुणों के बारे में।
 1. इसका प्रयोग गर्मी से राहत देने और जलन को दूर करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में किया जाता रहा है। यह सिर्फ डाइट में ही नहीं प्रयोग किया जाता है, स्त्रियां इसका खास उपयोग आंखों की थकावट को दूर करने के लिए भी करती है।
 2. इसे अच्छी तरह से साफकरके छिलके समेत खाएं तो अच्छा रहता है। खीरे में फाइबर बहुत होता है।
 3. अगर आपको इसे साबुत खाने में समस्या है तो जूस पिएं।
 4. डायबिटीज, एसिडिटी, ब्लड प्रेशर से पीडि़त व्यक्ति या जो वजन को नियंत्रित करना चाहते है, उन्हे सुबह खाली पेट खीरे का जूस लेना चाहिए। स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा नीबू का रस डाल सकती है। चाहे तो जूस का बर्फ जमा लें। ब्लड प्रेशर की समस्या हो तो जूस में नमक न डालें।
 5. यह आंखों की सूजन कम करता है और उन्हे राहत के साथ ठंडक भरा एहसास देता है।
 6. खीरा एक बेहतरीन क्लींजर और टोनर होता है।
 7. खीरे में मिनरल की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, सल्फर, सिलिकॉन, क्लोरीन









संतरे की रसीली बातें


विटामिन सी से भरपूर संतरा पोषकीय तत्वों और रोग निवारक क्षमताओं से युक्त एक अत्यंत उपयोगी फल है नींबू परिवार का..
 - एक सामान्य आकार के संतरे में पाए जाने वाले तत्वों का विवरण इस प्रकार है। प्रोटीन-0.25 ग्राम, कार्बोज 2.69 ग्राम, वसा 0.03 ग्राम, कैल्शियम 0.045 प्रतिशत, फास्फोरस 0.021 प्रतिशत, लोहा 5.2 प्रतिशत, तांबा 0.8 प्रतिशत।
 - संतरे की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसका रस शरीर के अंदर पहुंचते ही रक्त में रोग निवारणीय कार्य प्रारंभ हो जाता है। इसमें पाए जाने वाले ग्लूकोज एवं डेक्सट्रोज जैसे जीवनशक्ति प्रदान करने वाले तत्व पचकर शक्तिवर्धन का कार्य करने लगते हैं। इसका रस अत्यंत दुर्बल व्यक्ति को भी दिया जा सकता है।
 - संतरे में पाये जाने वाले उपयोगी तत्वों के कारण यह अनेक शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाता है।
 - मितली और उल्टी में संतरे के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और काला नमक मिलाकर लिया जाना लाभकारी रहता है।
 - रक्तस्राव, मानसिक तनाव, दिल और दिमाग की गर्मी में इसकी विशेष उपयोगिता है।
 - कब्जियत होने पर संतरे के रस का शर्बत और शिकंजी के साथ काला नमक, काली मिर्च और भुना जीरा मिलाकर लेना लाभकारी रहता है।
 - संतरे में लहसुन, धनिया, अदरख मिलाकर चटनी खाने से पेट के रोगों में लाभ मिलता है।
 - बुखार के रोगी को और पाचन विकार में संतरे के रस को हल्का गर्म करके उसमें काला नमक और सोंठ का चूर्ण मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी रहता है।
 - संतरे और मुनक्के का मिश्रण लेने से आंव और पेट के मरोड़ से मुक्ति मिल जाती है।
 - सर्दी-जुकाम या इनफ्लुएंजा में एक सप्ताह एक गुनगुना संतरे का रस काली मिर्च और पीपली का चूर्ण मिलाकर लेना लाभकारी रहता है।
 - मुंहासे होने पर संतरे के रस का सेवन तथा उसके छिलके में हल्दी मिलाकर लेप लगाना लाभकारी रहता है।
 - चेहरे के सौंदर्य को निखारने के लिए हल्दी, चंदन, बेसन और संतरे के छिलके का चूर्ण दूध या मलाई में मिलाकर लगाएं।






नहीं चलेगी एलर्जी की मर्जी


एलर्जी तब होती है, जब शरीर किसी पदार्थ के प्रति प्रतिक्रिया करता है। वह पदार्थ जिसके कारण प्रतिक्रिया होती है, उसे एलर्जन कहा जाता है। एलर्जी के विभिन्न प्रकार होते हैं। सामान्य रूप से एलर्जी इन कारणों से उत्पन्न होती है-
 - हवा में मौजूद धुआ, गर्दा और फूलों के पराग कण आदि।
 - कुछ लोगों में दूध, रसायनों या फिर कुछ दवाओं के सेवन से।
 - कीड़ों के डंक जैसे बर्र, मधुमक्खी या चीटे के काटने आदि से।
 लक्षण 
 - नाक में खुजली, नाक का बहना या बद होना।
 - गले में खुजली होना या खासी आना।
 - छींकना, खासना और कभी-कभी अस्थमा या दमा का दौरा पडऩा।
 - आखों में खुजली, लाली, सूजन, जलन या पानी सरीखा द्रव बहना।
 - त्वचा पर लाली पडऩा और खुजली होना।
 - कान में तकलीफ होने पर सुनने की क्षमता में कमी आना।
 - सिरदर्द, मितली या उल्टी, पेट में दर्द या मरोड़ होना। दस्त होना।
 - मुंह के आसपास सूजन या निगलने में कठिनाई।
 एलर्जी के प्रकार 
 एलर्जिक कन्जंक्टिवाइटिस: यह आमतौर पर पाया जाने वाला एलर्जी का एक प्रकार है। यह समस्या धूल, धुएं, कॉन्टैक्ट लेंस व सौंदर्य प्रसाधन से सबधित वस्तुओं के इस्तेमाल से उत्पन्न हो सकती है। इसमें आमतौर पर आखों में लाली, जलन व खुजली महसूस होती है।
 त्वचा की एलजीर्: त्वचा की एलर्जी सबसे आम समस्याओं में से एक है। इसमें एग्जिमा व अरटीकेरिया नामक रोग प्रमुख हैं। एग्जिमा आमतौर पर बचपन में होता है किन्तु वयस्क अवस्था तक जारी रह सकता है। त्वचा पर लाल चकत्ते उभर आते हैं। एलर्जी का यह प्रकार अक्सर अज्ञात कारणों से उत्पन्न होता है।
 फूड एलजीर्: किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी की शिकायत होना फूड एलर्जी का सूचक है। एलर्जी से सबधित शिकायतों का निदान व उसका उपचार आवश्यक है।
 डायग्नोसिस 
 त्वचा परीक्षण: एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों की पहचान के लिए यह परीक्षण किया जाता है।
 रक्त परीक्षण: यह रक्त में विशिष्ट एंटीबॉडीज- की पहचान के लिए किया जाता है।
 उपचार 
 - डॉक्टर की सलाह से कई एलर्जी रोधक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे मोन्टेल्यूकास्ट तत्व से युक्त दवा आदि।
 - इम्यूनोथेरेपी के माध्यम से व्यक्ति में धीरे-धीरे किंतु अधिक मात्रा में एलर्जन पहुंचाया जाता है।




गर्भाशय की सुरक्षित सर्जरी


ऑपरेशन के रूप में हिस्टेरेक्टॅमी का इलाज दो सर्जिकल विधियों (लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और ओपन सर्जरी) द्वारा किया जा रहा है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि उलर भारत में हिस्टेरेक्टॅमी से सबधित लगभग 80 फीसदी से अधिक मामले ओपन सर्जरी के जरिये ही किए जा रहे हैं। जबकि ओपन सर्जरी की तुलना में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिये हिस्टेरेक्टॅमी का ऑपरेशन काफी सुरक्षित, कारगर व सुविधाजनक है।
 क्या हैं कारण 
 हिस्टेरेक्टॅमी का ऑपरेशन इन स्थितियों में किया जाता है..
 -माहवारी के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, जो दवाओं से ठीक नहीं हो रहा हो।
 -40 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में फाइब्रॉयड का होना।
 -एंडोमैट्रियोसिस और एडेनोमायोसिस नामक रोग होना।
 -गर्भाशय व अंडाशय के सर्विक्स या ट्यूब का कैंसर।
 -गर्भाशय के किसी भाग में कैंसर पूर्व अवस्था।
 अतीत में हिस्टेरेक्टॅमी पेट पर एक बड़ा चीरा लगाने के बाद ही की जाती थी, लेकिन अब गर्भाशय को निकालने की इस विधि को अधिकतर स्त्री रोग विशेषज्ञ पुराना मानते हैं। दुनिया के अधिकतर देशों में 30 प्रतिशत सर्जरी ओपन तकनीक से की जाती है, जिसके कारण सर्जरी के बाद पीडि़त महिला को स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है।
 तुलना दोनों सर्जरी की 
 लैप्रोस्कोपिक सर्जरी, ओपन सर्जरी की तुलना में कई गुना बेहतर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सर्जन या स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी दृश्य को 20 गुना बड़ा और अच्छी तरह से देख सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में विशेष उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि सर्जन ओपन सर्जरी की तुलना में कहींअधिक अच्छे ढंग से बेहतर गुणवत्त के साथ सर्जरी कर सके।
 भ्रातिया और तथ्य 
 लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी से कुछ मिथक जुड़े हैं, जिनका तथ्यों की रोशनी में निवारण करना जरूरी है
 भ्राति: लेप्रोस्कोपी से बड़े आकार के गर्भाशय की सर्जरी नहीं की जा सकती।
 तथ्य: इस तरह की धारणा गलत है। सच तो यह है कि लैप्रोस्कोपी से किसी भी आकार के गर्भाशय की सर्जरी की जा सकती है।
 भ्राति: जो महिलाएं पहले ही सर्जरी करा चुकी हैं या जिनके बच्चे ऑपरेशन से हुए हैं, उनकी लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी सभव नहीं है।
 तथ्य: जो महिलाएं पहले भी सीजेरियन या अन्य किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण ओपन सर्जरी करा चुकी हैं, वे भी लैप्रोस्कोपी के द्वारा सर्जरी करा सकती हैं। इन दिनों स्तरीय लैप्रोस्कोपिक केन्द्रों पर कैसर सर्जरी (जैसे -सर्विक्स, गर्भाशय, आदि) भी लेप्रोस्कोपी के जरिये आसानी से की जा सकती है।
 भ्राति: लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी अधिक महंगी है।
 तथ्य: यह मिथक पूरी तरह से गलत है क्योंकि लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी, ओपन सर्जरी की तुलना में न सिर्फ तुलनात्मक रूप से सस्ती है बल्कि पीडि़त महिला जल्द ही अपने काम पर जा सकती है और इस तरह उसे अपनी कमाई करने में मदद मिल सकती है।
 भ्राति: लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी के बाद आखें और हड्डिया कमजोर हो जाती हैं और हार्मोन्स में असतुलन पैदा हो जाता है।
 तथ्य: इन दिनों हिस्टेरेक्टॅमी के द्वारा अंडाशय (ओवरी)को आम तौर पर नहीं निकाला जाता (जब तक कि पीडि़त महिला कैंसर से ग्रस्त न हो)। अंडाशय से उत्सर्जित होने वाले हार्मोन्स में सामान्य तौर पर कोई गड़बड़ी नहीं होती है और न ही हिस्टेरेक्टॅमी के बाद आखें और हड्डिया कमजोर होती हैं।
 लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और ओपन सर्जरी में अंतर 
 1. अस्पताल में सिर्फ एक दिन रहना पड़ता है।
 2. रक्त का बहुत कम नुकसान होता है (100 मिली से भी कम)। अधिकतर मामलों में रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।
 3. आई. वी. ड्रिप की जरूरत नहीं होती है।
 4. बहुत कम दर्द होता है (अधिकतर पीडि़त महिलाओं को दर्दनिवारक गोलिया लेने की भी जरूरत नहीं पड़ती)।
 5. ऑपरेशन कराने के बाद महिला दो-तीन दिनों में ही काम पर वापस लौट सकती है।
 6. कम महंगी है।
 1. अस्पताल में पाच से छह दिनों तक रहना पड़ता है।
 2. रोगी में करीब 500 मिली रक्त का नुकसान होता है। ओपन सर्जरी में कई बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
 3. आई. वी. ड्रिप की जरूरत 24 घटे तक होती है।
 4. अधिक दर्द होता है (सर्जरी के बाद 3-4 दिनों तक दर्द रहता है)।
 5. आम तौर पर एक महीने के बाद काम पर लौट सकती हैं। कुछ महिलाओं को इससे ज्यादा वक्त लग सकता है।
 6. अधिक महंगी है।

फूड, फैट और फिटनेस



बच्चों को कोई खा- पदार्थ खाने से मना नहीं करना चाहिए। इसके बजाय उन्हें यह समझा सकती है कि अमुक वस्तु तुम्हारी सेहत के लिए अच्छी रहेगी और अमुक नहीं..
 बाल्यावस्था के दिन बेफिक्री के होते है। मौजमस्ती और नटखटपन इस अवस्था के प्रमुख गुण होते है। इस अवस्था में शरीर का विकास भी होता है। इसलिए बाल्यावस्था में खानपान पर समुचित ध्यान देना जरूरी है। इससे बच्चों का सही तरह से शारीरिक व मानसिक विकास हो सकता है। खानपान के अलावा उन्हे व्यायाम की भी जरूरत होती है। यह अभिभावकों का फर्ज है कि वे अपने बच्चों में अच्छी सेहत के प्रति सजगता की आदत बचपन से ही डालें।
 परीक्षण करे 
 आपका बच्चा (6-12 साल) शारारिक-मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ है या नहीं, इस बात का परीक्षण करने के लिए इस चेकलिस्ट पर गौर फरमाएं
 - क्या आपका बच्चा सुस्त रहता है
 - क्या वह तुनुक-मिजाज है
 - रोजमर्रा में उसे भूलने की आदत है
 - पढऩे-लिखने में मन कम लगता है
 - वह बेचैन रहता है
 - उसका शैक्षिक प्रदर्शन अच्छा नहीं है
 यदि आपके बच्चे में उपर्युक्त लक्षणों में से दो से अधिक लक्षण है तो यह समझें कि उसे पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो रहे है।
 सामान्य समस्याएं 
 बाल्यावस्था में मोटापा, वजन कम होना, एनीमिया और दांतों संबंधी समस्याएं पैदा होती है। कुछ बच्चों में अपनी उम्र के बच्चों या अन्य लोगों के साथ घुलने-मिलने में दिक्कत होती है।
 मोटापा 
 देश में बाल्यावस्था में होने वाले मोटापे की समस्याएं बढ़त पर हैं। आप बच्चे में खानपान से संबंधित अच्छी आदतें डालकर उन्हे मोटापे से ग्रस्त होने से बचा सकती है। जैसे उन्हे शुगर युक्त खाद्य पदार्थो से दूर रखना और आहार में पर्याप्त मात्रा में फाइबर बढ़ाना। एक अभिभावक होने के नाते आपको बच्चे को यह बताना चाहिए कि उसे मिठाइयों व उन पेयों से दूर रहना चाहिए, जिनमें शुगर ज्यादा रहती है। बच्चे को फल व कच्ची सब्जियां खाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यदि पहले से ही आपका बच्चा मोटा है तो उसे खेलों व अन्य शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
 वजन कम होना 
 कुछ बच्चों का वजन लंबाई के अनुपात में काफी कम होता है। कुछ बच्चों की आदत कम खाने की होती है। उनकी यह प्रवृलि अभिभावकों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है। ऐसे बच्चों के बारे में अभिभावकों को यह बात मालूम करनी चाहिए कि उन्हे कौन से खाद्य पदार्थ पसंद है। संभव है कि पसंदीदा वस्तु न होने के कारण वे कम खाते हों। उन्हे प्यार से फुसलाकर विविधतापूर्ण हेल्दी भोजन दें। अगर बच्चे का वजन कम है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उसे शुगरयुक्त खाद्य पदार्थो व पेयों को पीने की अनुमति प्रदान करे। कारण, हेल्दी आहार ग्रहण करने की बात मोटे और पतले दोनों पर ही लागू होती है।
 दांतों की समस्या 
 दांतों में कीड़ा लगना एक आम समस्या है। इस समस्या से बचने के लिए बच्चों में यह आदत डालें कि वे रात में भी सोने से पहले टूथब्रश करें। साथ ही उन्हे शुगरयुक्त खाद्य पदार्थो को कम से कम खाने की सलाह दें।
 एनीमिया 
 शरीर में आयरन की कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर काफी कम हो जाता है। एनीमिया से ग्रस्त बच्चे थोड़ा सा काम करने पर थकान महसूस करने लगते है। उनके शरीर में चुस्ती-फुर्ती नहीं रहती। इसके चलते बच्चों की मानसिक क्षमता भी कम होने लगती है। एनीमिया की कमी दूर करने के लिए बच्चों को हरी पलेदार सब्जियां दें। इसके अलावा ड्राई फ्रूट्स भी दें। इनमें आयरन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
 नाश्ता बहुत जरूरी है 
 सुबह का नाश्ता करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करे। ज्यादातर बच्चे स्कूल जाने से पहले अच्छी तरह नाश्ता नहीं करते। बच्चों को संतुलित-पौष्टिक नाश्ता करवाकर ही स्कूल भेजें। बच्चे को दिन में तीन मुख्य आहार और दो से तीन बार स्नैक्स जरूर देने चाहिए।
 स्नैक्स 
 इसका सबसे अच्छा विकल्प फल है। साथ ही उन्हें ड्राई फ्रूट्स और दही भी दे सकती है।
 स्कूल में 
 ज्यादातर स्कूल की कैंटीन में खानपान की हेल्दी वस्तुएं उपलब्ध नहीं होतीं। समोसा, बर्गर आदि वस्तुएं ही उपलब्ध होती है। ये वस्तुएं कभी-कभी खाई जाएं तो अच्छा है। बेहतर रहेगा कि बच्चे को टिफिन देकर ही स्कूल भेजें।
 हेल्दी हैबिट्स 
 - खाना खाते समय बच्चे को टीवी न देखने दें। इससे खाने की ओर से उनका ध्यान बंटता है। उन्हे समझाएं कि खाना खाते समय पूरा ध्यान खाने पर ही लगाएं।
 - हेल्दी फूड ग्रहण करने की आदत बच्चा घर से ही सीखता है। इस संदर्भ में अभिभावकों को हेल्दी फूड ग्रहण कर बच्चों के समक्ष खुद को रोल मॉडल के तौर पर पेश करना चाहिए।
 - खानपान के संदर्भ में बच्चे के समक्ष कई विकल्प पेश करने चाहिए। मसलन यदि बच्चा केला नहीं खाना चाहता तो उसे सेब दें। पपीता नहीं खाना चाहता तो गाजर दें।

ओट्स से पाएं सेहत और सौंदर्य


गर्मियों के लिए ओट्स (जई) एक बेहतरीन सीरियल है। इसकी तासीर ठंडी होती है। यह त्वचा की जलन को दूर करता है और असमय झुर्रियों से बचाता है। तो क्यों न इसे अपने जीवन में शामिल करें। डाइटीशियन ईशी खोसला व सौंदर्य विशेषज्ञा डॉली कपूर बता रही हैं इसके अन्य गुणों के बारे में..
 ओट्स में इनोजिटॉल पाया जाता है, जो ब्लड कोलेस्ट्रॉल लेवल को बरकरार रखने का एक बेहतरीन स्रोत है। ओटमील और ओट के चोकर में पर्याप्त डाइटरी फाइबर होता है। इसमें पाया जाने वाला सॉल्युबल फाइबर डाइजेस्टिव ट्रैक्ट को दुरुस्त रखने में मदद करता है। दरअसल, गर्मियों में अक्सर लोगों को तमाम तरह पेट की समस्याएं मसलन एसिडिटी, जलन और डाइजेशन की प्रॉब्लम होती है। बावल मूवमेंट्स को नियमित करने के लिए फाइबर की जरूरत होती है।
 सेहत के लिए जरूरी 
 - आपने सुना होगा कि दिन अच्छी शुरुआत करने के लिए ब्रेकफास्ट बहुत जरूरी होता है। यह जान लें कि दिन की शुरुआत के लिए एक बाउल ओटमील से अच्छा कोई मील नहीं है।
 - ओट्स में पर्याप्त फाइबर होने के कारण इसे अपने आहार में शामिल करना अच्छा होता है। इसमें सॉल्युबल और अनसॉल्युबल दोनों प्रकार के फाइबर होते हैं। अनसॉल्युबल पानी में नहीं घुल पाता। यह स्पॉन्जी होता है, जो कब्ज को दूर करने में मदद करता है। साथ ही पेट खराब होने से भी बचा पाता है।
 - इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, विटामिन बी-काम्प्लेक्स और मैग्नीशियम होता है, जो नर्वस सिस्टम के लिए बहुत जरूरी होता है। गर्मी के कारण चक्कर, दिल घबराने जैसी आम समस्याओं में यह बहुत लाभदायक होता है।
 - पके हुए ओट्स शरीर से अतिरिक्त फैट कम करते हैं, वहीं अनरिफाइन्ड ओटमील स्ट्रेस को कम करता है।
 - हाई फाइबर होने के कारण यह बावल कैंसर से बचाता है। साथ ही हृदय रोग के खतरों से दूर रखता है।
 - अगर आप डाइबिटीज और ब्लड शुगर की समस्या से ग्रस्त हैं तो ओट्स का सेवन करें, क्योंकि यह शरीर में ब्लड शुगर और इंसुलिन को नियंत्रित रखता है।
 - एक शोध से यह पता चला है कि 2-18 साल के बीच के बच्चे, जो नियमित रूप से ओटमील लेते हैं, उनमें ओबेसिटी होने का खतरा बहुत कम होता है। शोध से यह भी पता चला है कि जिन बच्चों की डाइट में ओटमील शामिल होता है उनमें 50 प्रतिशत कम वजन बढऩे की संभावना होती है।
 सौंदर्य बढ़ाए 
 - ओटमील फेसपैक त्वचा को कोमल और कांतिमय बनाता है। यह एक बेहतरीन ब्यूटी एन्हेंसर है। यह त्वचा को चमकदार बनाता है।
 - अत्यधिक रूखी त्वचा और एग्जीमा को दूर करने के लिए ओटमील बाथ लेना अच्छा उपाय है। यह त्वचा की जलन को दूर करता है। इसके लिए 500 ग्राम ओट्स की भूसी को एक लीटर पानी में 20 मिनट तक उबालें। फिर छानकर ठंडा करें और उस पानी से नहाएं।
 - खोई हुई रंगत और कोमलता पाने के लिए ओट्स स्क्रब लगाएं। इसके लिए दो टेबलस्पून ओटमील, दो टीस्पून ब्राउन शुगर, दो टेबलस्पून एवोकैडो और पांच-छह बूंद रोज एसेंशियल ऑयल मिलाकर पेस्ट बनाएं और गीली त्वचा पर इससे हल्का मसाज करें। गुनगुने पानी से चेहरा साफ कर लें। पूरे शरीर पर लगाने के लिए इसकी मात्रा बढ़ा सकते हैं।
 ओट्स ऐंड हनी मिल्क बाथ 
 आधा टी-कप ओटमील, एक चौथाई टी-कप आमंड मिल्क , पांच-छह बूंद लैवेंडर ऑयल को एक छोटे फैब्रिक बैग में भरकर बाथटब में डालें, फिर नहाएं।





Wednesday, May 8, 2013

हल्के में न लें सिरदर्द को


आए दिन लोग सिरदर्द की समस्या से ग्रस्त होते हैं। सिरदर्द की ये शिकायतें कुछ साधारण होती हैं तो कुछ असाधारण बीमारी का सकेत देती हैं। इसलिए महत्वपूर्ण बात यह है कि साधारण सिरदर्द को बीमारी में तब्दील होने से पहले ही उसका इलाज करा लिया जाए ताकि हम सेहत पर होने वाले किसी भी हमले से बचे रहें। खास बात तो यह है कि यह साधारण सिरदर्द ब्रेन ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो सकती है। गौरतलब है कि ब्रेन ट्यूमर का उपचार आज रेडियो सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी के अलावा कंप्यूटर आधारित स्टीरियोटैक्सी व रोबोटिक सर्जरी जैसी नवीनतम तकनीकों की बदौलत अत्यत कारगर, सुरक्षित और काफी हद तक कष्टरहित हो गया है। ब्रेन ट्यूमर की पहचान जितनी पहले हो जाए, इसका इलाज उतना ही आसान हो जाता है।
 ब्रेन सर्जरी में आजकल सबसे ज्यादा इंडोस्कोपिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है।
 लक्षण 
 ब्रेन ट्यूमर के लक्षण सीधे उस भाग से सबधित होते हैं, जहा दिमाग के अंदर ट्यूमर होता है। उदाहरण के तौर पर मस्तिष्क के पीछे ट्यूमर के स्थित होने के कारण दृष्टि सबधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। मस्तिष्क के बाहरी भाग में होने वाले ट्यूमर के कारण बोलते समय रुकावट आने जैसी समस्या पैदा हो सकती है। ट्यूमर का आकार बढऩे के परिणास्वरूप मस्तिष्क पर बहुत दबाव पड़ता है। इस कारण सिरदर्द, उल्टी आना, जी मिचलाना, दृष्टि सबधी समस्याएं या चलने में समस्या आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
 ट्यूमर के प्रकार 
 सामान्यत: मस्तिष्क के किसी भी भाग में वृद्घि होना बहुत खतरनाक माना जाता है। यह बात ब्रेन ट्यूमर के मामले में भी लागू होती है। ब्रेन ट्यूमर कई प्रकार के होते हैं। हालाकि इसे कैंसर के आधार पर मुख्य रूप से दो वर्र्गो कैंसरजन्य और कैंसररहित ट्यूमर में विभाजित किया जा सकता है। आम तौर पर बीस से चालीस साल के लोगों को ज्यादातर कैंसर रहित और 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को ज्यादातर कैंसर वाले ट्यूमर होने की सभावना कहीं ज्यादा रहती है। कैंसर रहित ट्यूमर, कैंसर वाले ट्यूमर की तुलना में धीमी गति से बढ़ता है.
 कोलॉयड सिस्ट मस्तिष्क के सवेदनशील क्षेत्र में स्थित होते हैं और जैसे-जैसे उनके आकार में वृद्धि होती जाती है, वे जीवन के लिए खतरा बनते चले जाते हैं। परंपरागत सर्जरी के लिए क्रैनियोटॅमी यानी खोपड़ी के एक हिस्से को हटाए जाने और कोलॉयड सिस्ट को हटाने के लिए मस्तिष्क के प्रत्याकर्षण की प्रक्रिया अपनायी जाती है। इसके अंतर्गत खोपड़ी में एक महीन सा छिद्र (6 एमएम) किया जाता है ताकि इंडोस्कोप और उसके साथ काम करने वाले अधिकतम 6 एमएम की परिधि के आवरण को अंदर डाला जा सके। कोलॉयड सिस्ट को सपूर्ण रूप से हटाने के लिए बहुत छोटे (3-6 एमएम) के इंडोस्कोपिक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है।
 सर्जरी की प्रक्रिया 
 इंडोस्कोपिक सर्जरी के माध्यम से मस्तिष्क के रिट्रैक्शन से बचा जा सकता है। इंडोस्कोप को प्रविष्ट कराए जाने के लिए परंपरागत सर्जरी की तुलना में छोटा छेद करना होता है और इससे अपेक्षाकृत मस्तिष्क में कम रिट्रैक्शन होता है। इस प्रक्रिया में ऊतकों(टिश्यूज) को देखना आसान होता है। इस कारण सर्जरी अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित रूप से की जा सकती है। सर्जरी के प्रभाव से मुक्त होने में कम समय लगता है और अस्पताल में भी कम समय तक ठहरना होता है। इंडोस्कोपी सर्जरी में सफलता की दर बहुत ऊंची है। यही कारण है कि दुनिया भर में मस्तिष्क की सर्जरी के लिए इस सुरक्षित तकनीक को अपनाया जा रहा है।





मौसमी मर्जो को दें मात


गर्मिया दस्तक दे चुकी है। आखें शरीर का बेहद सवेदनशील अंग है। इसलिए गर्मियों के मौसम का दुष्प्रभाव आखों पर भी पड़ता है। आखों की कई बीमारिया जैसे फ्लू, सूजी हुई और थकी-थकी लाल आखें व ड्राई आई आदि के मामले मौजूदा मौसम में कहींज्यादा सामने आते हैं। इसके अलावा इस मौसम में पाचन तत्र से सबधित सक्रमण व गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन आदि के मामले कहीं ज्यादा सामने आते हैं, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इन रोगों से राहत पायी जा सकती है..
 नयनों की सेहत को न करें नजरअंदाज
 आई फ्लू: आखों पर वाइरस के सक्रमण को आई फ्लू कहते हैं, जो आखों में सफेद दिखने वाले भाग पर चढ़ी झिल्ली को नुकसान पहुचाता है। इस फ्लू का वाइरस गदी उगलियों, गदे पानी, मक्खियों, धूल-धुआ और गदगी के माध्यम से तेजी से फैलता है। इस समस्या के दौरान आखों से निरतर पानी सरीखा द्रव निकलता है। आखों में दर्द और जलन भी बनी रहती है और पलकें सूजकर लाल हो जाती है।
 फोटो-फोबिया: यह भी आई फ्लू का ही एक रूप है। पीडि़त को धूप में जाते समय दिक्कत होती है। आखों को धूप और तेज रोशनी चुभती है। इससे पीडि़त आखों को पूरी तरह से नहीं खोल पाता । आखों में दर्द व थकान भी महसूस होती है.
 ड्राई आई: गर्मियों में बढ़ते हुए प्रदूषण और कंप्यूटर पर लबे समय तक काम करने की वजह से शुष्क आखों की परेशानी बढ़ सकती है। इस समस्या के दौरान आखों में खुजली या जलन होने लगती है। आखों से कभी-कभी कीचड़ निकलता है। इसी तरह अपने काम के सिलसिले में प्रदूषित क्षेत्रों से प्रतिदिन गुजरने वालों को भी एलर्जी की समस्या और ड्राई आई के लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
 इन बातों पर दें ध्यान 
 -आखों के किसी भी सक्रमण से ग्रस्त होने के बाद साफ-सफाई का खास ख्याल रखें।
 -आखों को बार-बार हाथ से न छुएं और न ही रगड़ें। इन्हें छूने से पहले साबुन से हाथ धो लें।
 -पीडि़त द्वारा इस्तेमाल की हुई किसी भी वस्तु को अपने सपर्क में न लाएं।
 -कड़कड़ाती धूप में अल्ट्रावायलेट किरणें आप की आखों पर सीधे तौर से प्रहार करती है। इसीलिए धूप में जाते समय छतरी का उपयोग करे और आखों पर धूप का चश्मा लगाएं जिससे आप की आखों का बचाव हो सके। अपना चश्मा किसी अन्य व्यक्ति को पहनने के लिए न दें।
 -अगर आप पॉवर लेंस लगाते है तो भी आप को धूप का चश्मा पहनना चाहिए ताकि अल्ट्रावायलेट किरणें आखों को नुकसान न पहुचा सकें।...
 -आखों पर दिन में कई बार ठडे पानी के छींटे मारे। आखों पर खीरे के टुकड़े या रुई के फाहे में गुलाबजल डालकर आखों पर रखें। आखों को ताजगी मिलेगी।
 -आखों के लिए स्वस्थ भोजन और अच्छी नींद से कभी भी समझौता न करे। खाने में हरी सब्जिया, अंकुरित अनाज आदि का अधिकाधिक प्रयोग करें।
 -दिन में पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, ताकि आप के शरीर की गदगी बाहर निकले और शरीर के अंगों में नमी बनी रहे। यह नमी आंखों के लिए भी जरूरी है।
 -डॉक्टर के परामर्श से आखों में ऐसी दवाएं डालें, जो आखों को शुष्क होने से रोकें और सक्रमण न पैदा होने दें। आखों के आसपास सनस्क्रीन न लगाएं। इनसे आखों को नुकसान हो सकता है।
 -कंप्यूटर पर काम करते समय बीच-बीच में ब्रेक लें और पलकें झपकाते रहे।
 इन रोगों की न करें अनदेखी 
 जब कभी मौसम बदलता है, तब कुछ खास बीमारिया सिर उठाती हैं। इसका कारण यह है कि मौसम के बदलने के कारण पर्यावरण और उसके तापक्रम में भी बदलाव आ जाता है। हवा में विभिन्न प्रकार के तत्व या कण (एलर्जेन) फैल जाते हैं। जैसे सर्दियों में तापमान के अत्यधिक कम होने के कारण हाईब्लड प्रेशर और मस्तिष्क आघात(स्ट्रोक) होने के मामले बढ़ जाते हैं। मौजूदा मौसम (बसत या स्प्रिंग) में दमा, स्किन एलर्जी, त्वचा सबधी सक्रमण और हाजमे से सबधित सक्रमण व बीमारिया (गैस्ट्रोइंटेस्टाइल इंफेक्शन) जैसे डायरिया व डीसेन्ट्री आदि की शिकायतें बढ़ जाती हैं।
 कुछ सुझाव 
 -इस मौसम में धूल भरी तेज हवा चलने से और पराग कणों(पॉलेन) के हवा के जरिये प्रसारित होने पर दमा सबधी शिकायत होने का जोखिम बढ़ जाता है। दमा की शिकायत होने पर डॉक्टर के परामर्श से इनहेलर व अन्य दवाएं ले। खुले स्थानों पर न जाएं, धूल आदि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगा सकते हैं।
 -तेज हवा के कारण धूल व पराग कणों के कारण त्वचा में एलर्जी से सबधित शिकायतें बढ़ जाती हैं। इनसे राहत पाने के लिए डॉक्टर के परामर्श से एंटी एलर्जिक दवा ले सकते हैं।
 -मौजूदा मौसम में जीवाणुओं और फंगस के दुष्प्रभाव से त्वचा सबधी सक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं। जीवाणु और फंगस गदगी के कारण बहुत तेजी से फैलते हैं। इसलिए शरीर को स्वच्छ रखें। कीटाणुनाशक साबुन से नहाएं।
 -इस मौसम में पेट और आतों में सक्रमण (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन) से सबधित शिकायतें होने की आशका बढ़ जाती है। डायरिया व डीसेन्ट्री और पेट सबधी शिकायतों से बचने के लिए घर में स्वच्छता से तैयार किया भोजन ही ग्रहण करें। सड़क किनारे लगे ठेलों पर बिकने वाले खाद्य पदार्र्थो से परहेज करें। कच्चे खाद्य पदार्थ व कच्ची सब्जिया न खाएं। जिन कटे-खुले फलों व सब्जियों पर मक्खिया व अन्य कीट बैठे हुए हों, उनके खाने से वाइरल हेपेटाइटिस होने की आशका काफी बढ़ जाती है। जिन फलों या सब्जियों की सिचाई गदे प्रदूषित पानी से की जाती है, वे शरीर व खासकर पेट के लिए अत्यत नुकसानदेह होती हैं।


अब अभिशाप नहीं है बांझपन


बांझपन के ज्यादातार मामलों में फैलोपियन ट्यूब के बद हो जाने के कारण गर्भधारण करने में मुश्किल होती है, लेकिन आसान इलाज से इसे दूर भी किया जा सकता है। हालाकि ऐसी दशा में कई बार डॉक्टर टेस्ट ट्यूब बेबी का विकल्प अपनाते हैं, लेकिन इस विकल्प की कुछ सीमाएं हैं। यह तकनीक अपेक्षाकृत महंगी भी है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी तकनीक को क्यों न अपनाएं जो न सिर्फ किफायती हो बल्कि भविष्य में सामान्य तरीके से गर्भधारण करने में मददगार भी हो। तो चलिए जानते हैं, उन तकनीकों के बारे में जो बाझपन से छुटकारा दिलाएंगी
 हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी 
 बच्चेदानी के भीतर फैलोपियन ट्यूब दो तरह से खुलती है। इसका एक सिरा सीधे बच्चेदानी के भीतर खुलता है जबकि दूसरा अंडेदानी (ओवरी) के पास खुलता है। कई बार बच्चेदानी के भीतर खुलने वाला भाग बद होता है, इसलिए गर्भधारण नहीं हो पाता है। इस तकनीक में इंडोस्कोपी और गाइड वायर के जरिए बद सिरे को खोल दिया जाता है और समस्या खत्म हो जाती है। फिर बाझपन की समस्या से पीडि़त महिलाएं आसानी से गर्भधारण कर सकती हैं।
 फिमब्रियोप्लास्टी 
 दूसरी तकनीक को हम फिमब्रियोप्लास्टी के नाम से जानते हैं। अंडेदानी(ओवरी) के पास खुलने वाला फैलोपियन ट्यूब का सिरा अपेक्षाकृत चौड़ा होता है। इसे फिम्ब्रियो बोलते हैं। कई बार जाच में पाया जाता है कि फैलोपियन ट्यूब का यह चौड़ा सिरा बद है। आमतौर पर सक्रमण की वजह से यह सिरा बद हो जाता है। लैप्रोस्कोपी की मदद से ही इस बद सिरे को खोल दिया जाता है जिसे फिमब्रियोप्लास्टी कहते हैं। इस मामूली सर्जरी के बाद बाझपन से छुटकारा मिल जाता है।
 ट्यूबोप्लास्टी 
 अक्सर ऐसा होता है कि एक-दो या फिर तीन बच्चों के बाद तमाम दंपति फैमिली प्लानिग के बारे में सोचने लगते हैं। वे तमाम सोच-विचार के बाद डॉक्टर के पास जाते हैं और झट से फैमिली प्लानिग प्रोसीजर अपना लेते हैं। इस प्रक्रिया में फैलोपियन ट्यूब का वह हिस्सा निकाल दिया जाता है जिसकी मदद से गर्भधारण होता है। दूसरी प्रक्रिया में फैलोपियन ट्यूब को बद कर दिया जाता है और गर्भधारण नहीं होता। यह परिवार नियोजन का एक तरीका है, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बच्चे पैदा होने के बाद वे जिंदा नहीं रह पाते और ऐसी स्थिति में दंपति पहले ही फैमिली प्लानिग प्रोसीजर करवा लेते हैं। ऐसे में जब दोबारा बच्चे की चाहत होती है तो फैलोपियन ट्यूब के बद हिस्से को दोबारा खोल दिया जाता है या फिर खुले हिस्से को जोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया को ट्यूबोप्लास्टी कहते हैं।





..कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो


हालांकि पीने वालों को पीने का बहाना मात्र चाहिए होता है, लेकिन पीने के वक्त मात्रा का ध्यान न रखना घातक हो सकता है। शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि कम मात्रा में शराब का सेवन दिल की बीमारियों से बचा सकता है। दिन में एक या दो पेग तक शराब पीने वालों में दिल की बीमारियों को जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है। इस शोध में शराब के सेवन को लेकर हुए 150 अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। इसमें बताया गया है कि कम मात्रा में शराब का सेवन- चाहे वह बियर हो या वाइन, हृदय की बीमारियों को काफी हद तक दूर रखता है।
 अध्ययन में पाया गया कि कम मात्रा में शराब का सेवन करने वाले लोग ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों में हृदय रोगों की संभावना उन लोगों की तुलना में कम होती है जो एल्कोहॉल का सेवन बिलकुल नहीं करते। शोध के अनुसार शराब का ज्यादा सेवन निश्चित तौर पर स्वास्थ्य के लिए घातक है, लेकिन कम सेवन स्वास्थ्य को सुधारता है। शोध में बताया गया है कि कम मात्रा में एल्कोहॉल का सेवन रक्त में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर सहित अन्य तत्वों के स्तर में भी सुधार ला सकता है। इससे हृदय की सुरक्षा में मदद मिल सकती है और रक्त वाहिनियों के अवरुद्ध होने का खतरा भी कम हो सकता है।
 शराब का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह, इस पर लंबी बहस होती रही है। ज्यादातर अध्ययन बताते हैं कि कम मात्रा में शराब का सेवन दिल की सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह संदेश ज्यादा शराब के सेवन से होने वाले नुकसान को छिपा देता है। ज्यादा शराब पीने से न सिर्फ लिवर खराब होता है, बल्कि मृत्यु भी जल्दी होती है। विशेषज्ञ अभी भी इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि शराब किस तरह दिल की बीमारियों को दूर रखती है। इस बारे में एक सिद्धांत यह है कि शराब चयापचय को दुरुस्त रखकर ब्लड क्लॉटिंग को रोकती है। वाइन में उच्च स्तर के एंटीऑक्सिडेंट्स यौगिक पाए जाते हैं जिन्हें फ्लेवोनोल्स कहा जाता है। ये एंटीऑक्सिडेंट्स रक्त संचरण को ठीक रखते हैं। कालगेरी यूनिवर्सिटी, कनाडा के प्रोफेसर विलियम घाली ने इस शोध का नेतृत्व किया।





कम खाने से दिमाग करता है तेज काम


एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि कम खाने से दिमाग तेज होता है। इस शोध में स्मरण शक्ति और सीखने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण सीआरईबी-1 नाम के प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया गया था। वैज्ञानिको ने चूहे पर प्रयोग करते वक्त यह पाया कि कैलोरी की मात्रा कम करने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है।
 अगर तेज दिमाग के साथ याद्दाश्त भी अच्छी हो तो फिर क्या कहना! आप अपनी स्मरण शक्ति को मजबूत बनाना चाहते हैं तो रोजाना विटमिन बी लें। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि रोजाना विटमिन बी की खुराक इंसान को बुढ़ापे मे डिमेंशिया और अल्जाइमर से बचाती है। इस अध्ययन में 250 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें 70 और उससे भी ज्यादा उम्र के वे लोग थे, जो कमजोर स्मरण शक्ति की समस्या से जूझ रहे थे। इन लोगों के भोजन में लगातार दो वर्षो तक अंकुरित अनाज, केला, बीन्स और रेड मीट आदि को प्रमुखता से शामिल किया गया।
 विटमिन बी से भरपूर इन चीजों का सेवन करने वाले लोगों की याद्दाश्त में बहुत तेजी से सुधार हुआ। शोधकर्ताओं के अनुसार सप्लीमेंट की तुलना में विटमिन बी युक्त चीजों का सेवन ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। इसलिए इन्हें भोजन में जरूर शामिल करना चाहिए।





बादाम-अखरोट खाएं मोटापा दूर भगाएं


आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि ड्राई फ्रूट्स के सेवन से मोटापा नहीं बढ़ता, बल्कि इससे वजन कम करने में मदद मिलती है। स्पेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार रोजाना तकरीबन 30 ग्राम कच्चा और बिना छिलका उतारे बादाम या अखरोट खाने से चर्बी नहीं बढ़ती
 वैज्ञानिकों के मुताबिक बादाम और अखरोट में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो दिमाग में मौजूद रसायन सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाते हैं। यह रसायन भूख के एहसास को कम कर देता है। लकवा, दिल के दौरे और मधुमेह केलक्षणों सहित मेटाबॉलिज्म की समस्याओं से ग्रस्त 22 मरीजों का 12 हफ्तों तक अध्ययन कर इस प्रभाव की खोज की गई। यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना के वैज्ञानिकों ने मरीजों के खानपान में बादाम और अखरोट को शामिल किया, जिससे उन्हें वजन कम करने और स्वस्थ होने में मदद मिली।















प्यार की परिभाषा (कहानी)


नील मुझे बहुत पसन्द आया था। वह एक सुन्दर युवक था, पढा-लिखा, सांवला-सलोना, उसका अण्डाकार चेहरा मासूमियत से भरा था। परंतु मुझे उस की जो अदा सब से प्यारी लगी वह थी उस की सादगी। उसका बगैर किसी मांग के इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना वह भी मेरे यह बताने के बाद कि मैं सिर्फ एक सूट के साथ आप के द्वार पर आऊंगी, वगैर किसी दहेज के। मासूमियत के साथ की गई इस सहमति को मैं आज तक नहीं भूल सकी हूं। उसका यह कहना कि, मुझे अच्छे संस्कारों वाली लडकी चाहिए अच्छे पैसों वाली नहीं। मुझे भावविभोर कर दिया था। बाद में नील की आंखों में मचल रहे सपने मुझे अपने लगने लगे।
नील के साथ मेरी यह छोटी सी मुलाकात तब हुई थी जब एक समाचार पत्र के माध्यम से हमारे रिश्ते की बात आगे बढी। हालांकि उसके आगे बढने का रास्ता भी आसान न था। मेरी सबसे बडी दीदी को ये रिश्ता पसन्द नहींथा क्योंकि प्रथम दृष्टि से हम दोनों के परिवारों में कोई समानता न थी। हमारा छोटा सा पढा लिखा संपन्न परिवार था तो उनका बहुत बडा, अनपढ और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा परिवार । न तो घरों का कोई मेल था, न परिवार का, न संस्कृति, संस्कारों का और न ही विचारों का।
शुक्र था कि मेरे पापा को यह रिश्ता पसन्द आया तो सिर्फ इसलिए कि इन असमानताओं के बीच एक समानता सब से बडी थी कि मेरी तरह नील भी सरकारी अध्यापक था। आस-पास से पता करने पर सभी ने यही कहा था कि लडका अच्छे स्वभाव वाला, सरल. सहज. संवेदनशील और परिष्कृत रुचियों से भरपूर व्यक्तित्व का मालिक । पापा ने भी अपनी दूरदृष्टि से यह भांप लिया था। जबकि मैं दिखने में भी अधिक आकर्षक न थी।
मेरे मन के एक कोने में अपने हमसफर की छवि अंकित थी। घर से यह सोचकर निकले थे कि एक बार देखने के बाद मेरे द्वारा ही जवाब भेज दिया जाएगा क्योंकि एक ही छत के नीचे पली बढी मेरी बहन को यह रिश्ता नागवार ही गुजरा था। परंतु नील से हुई इस मुलाकात ने मेरे विचार बदल डाले। गहन आत्मीयता और निष्कलंक स्नेह पाकर मुझे उनकी चन्द बातें ही झकझोर गई। मेरा मन कह उठा कि,तुम वही हो, जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी।
पापा हमेशा कहा करते थे कि जब भी मन और मस्तिष्क के बीच एक का चयन करना हो तो सदैव अपने मन की सुनो, क्योंकि मन में आत्मा का वास होता है और आत्मा में ईश्वर वास करते हैं। पापा कहते थे कि दुनिया की चकाचौंध हमें कुछ देर के लिए भ्रमित कर सकती है किंतु हमारे संस्कार और सामाजिक मूल्य हमें कभी भटकने नहींदेते इसलिए मनुष्य में अच्छे संस्कार होना आवश्यक है। अच्छी धन दौलत नहीं।
मैने आंखें बंद करके ईश्वर से प्रार्थना की- हे ईश्वर, मुझे सही राह दिखाइये और सही निर्णय लेने की क्षमता दीजिए। ईश्वर से स्वीकृति लेकर मैने तमाम बातें जानते हुए भी अपने मन की मानी और पापा के लिए फैसले पर अपनी मोहर लगा दी। हमारा विवाह धूम-धाम से सम्पन्न हुआ।
कुछ
महीनों में उस घर की परिस्थितियां, अलग परिवेश, अशिक्षित सदस्यों के व्यवहार मुझे भीतर ही भीतर से तोडने लगा। जिन रिश्तों पर नील को बहुत मान था वह उसकी शादी के बाद रंग दिखाने लगे। सभी पर दिल खोल कर खर्च करने वाला नील जब अपनी घर-गृहस्थी में रुचि लेने लगा तो कुछ सदस्यों को ये कचोटने लगा। मां को बेटे की कमाई लेने की शौक तो था पर उसे खर्च करने में संयम वो जिंदगी भर न सीख पाईं। भाई जिनको कपडे तक नील लाकर देता था वो भी अपना नाशुक्रापन दिखाने लगे।
मैं कभी-कभी सोचती कि मैंने मन की बात मान कर कहीं गलती तो नहींकी। फिर भी मैं धैर्य के साथ सब कुछ देखती सुनती रही। शादी से पहले जिन्दगी की जो ऊंची उडानें भरने की सोची थी अब वह धीरे-धीरे धरातल पर आ रही थी।
लेकिन इन कडवी सच्चाइयों के बीच एक सच्चाई यह भी थी कि इतने सब के बाद भी नील का मासूम, कोमल मन प्यार से वंचित था। सभी रिश्तों का प्यार पैसे से जुडा था यह समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी। नील के सुन्दर मन को किसी ने नहीं पढा था जिसे प्यार की जरूरत थी।
रिश्तों की इसी उधेडबुन में मुझे एक दिन नील का वो चेहरा देखने को मिला जिसने मेरे प्यार की परिभाषा को भी बदल डाला। मैने यूं ही नील से पूछा कि मैं तो सुन्दरता में भी आपसे पीछे हूं और आपके परिवार के विचारों से भी भिन्न हूं तो आपने मुझसे शादी क्यों की?
नील ने बडे सलीके से जवाब दिया, मैं मानता हूं कि प्यार केवल एक एहसास भर नहींरह जाता बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में जिन बातों को हम अपनाते हैं, जो करते हैं, हम अपने से ज्यादा औरों का ख्याल रखते हैं. बडों को मान-सम्मान देते हैं वो प्यार है। एक पति का एक पत्नी से प्यार और बढता है लेकिन तब नहीं जब हम सिर्फ अपनी सोचें।
वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे साथ तुम्हारा व्यवहार हमेशा प्यार भरा रहे। तुम दिखने में साधारण सी हो लेकिन तुम्हें देखने से पहले मैने जो तुम्हारे बारे में सुना था, जाना था, उसने मुझे तुम्हारे खूबसूरत होने का एहसास पहले से ही करा दिया था। तुम्हारा टूटकर मुझे चाहना, मेरी हर इच्छा को अहमियत देना, मेरी नाराजगी पर भी मुस्कराना मुझे अनुभव कराता है कि तुम्हारा प्यार कितना सच्चा है, कितना सात्विक है। कमी और खामियों के साथ किसी को अपनाना ही सच्चा प्यार है। यही सच्चा समर्पण है। प्यार सुन्दरता में नहीं रिश्तों की मिठास में होता है, परस्पर विश्वास में होता है। प्यार चांद सितारे तोड लाने से नहीं बढता प्यार तो वो है जब हम एक दूसरे से ताउम्र यही कहते गुजरें-
कि तेरे सारे गम मेरे होंगे
और मेरे सारे सुख तेरे होंगे।
अब मेरा प्यार नील के प्यार की परिभाषा के आगे नतमस्तक खडा था।



एक था चिड़ा (कहानी)


चिडा एक डाल पर बैठा हुआ अपने खाली पडे घोंसले को देख रहा था। उसके चेहरे पर चिडचिडाहट थी और रह-रह कर उसकी यह चिडचिडाहट उसके स्वरों में ढल कर आ रही थी.. चिड... चिड.. चिड... चिड..। घोंसले में चिडिया और उसके बच्चे नहीं थे। मुन्ने ने भी दो बार झांककर देखा, सच में घोंसला खाली पडा था। पेड- पौधों से पत्ते झर रहे थे जो बार-बार उसके चेहरे को स्पर्श करते जा रहे थे। मुन्ना अपने चेहरे को इधर-उधर कर उनसे बचने का प्रयास कर रहा था और- उसकी नींद टूट गई।
मुन्ने को याद आया कि कल रात वह दादी से कहानी सुनते-सुनते सो गया था। कहानी में आगे क्या हुआ, यह तो उसे पता ही नहीं चला। संभवत: दादी ने उसे सोया देखकर कहानी आगे नहीं सुनाई होगी या फिर दादी स्वयं भी सो गई होगी क्योंकि मम्मी कह रही थी कि बूढे लोग जल्दी थक जाते हैं। दिनभर कुछ न कुछ करती भी रहती है। आजकल उसकी दादी कुछ दिनों के लिए उसके पास आई हुई थी। कोई बात नहीं, आज कहानी सुनकर ही सोऊंगा- मुन्ने ने स्वयं से कहा।
सुबह के नाश्ते के बाद ही वह दादी के पास जा पहुंचा और लगा जिद करने कि कल वाली कहानी सुनाओ। दादी ने उसे समझाया कि कहानी रात में सुनी जाती है। दिन में कहानी सुनने से आदमी रास्ता भूल जाता है। उसने फिर जिद कीनहीं, मुझे सुननी है.. वही कल वाली कहानी। वह तो सुना दी थी। वह सब मैं कुछ नहीं जानता। मैं सो गया था, बस मुझे कहानी सुननी है।.. आप कहती हैं, रात में सपने में कहानी पूरी हो जाती है परन्तु मैंने तो सपने में भी पूरी कहानी नहीं सुनी और न देखी। अच्छा ठीक है, आज रात में सुन लेना, मैं फिर से सुना दूंगी।
बात तय हो गयी और मुन्ना दिनभर प्रतीक्षा करता रहा कि कब रात हो और वह दादी से कहानी सुने। रात भी हो गई और जब सबने भोजन कर लिया तो मुन्ना फिर दादी के बिस्तर में जा घुसा। उसके विचार से अब सोने का समय हो गया था और उसे दादी से कल वाली कहानी सुननी थी। उसने फिर से दादी को कहानी सुनाने को कहा। दादी ने उससे पूछा-
अच्छा यह बता; तूने कहानी कहां तक सुनी थी? आप शुरू से सुनाइए न..।
अच्छा ठीक है। -दादी ने कहानी शुरू करने के पहले उसे सावधान किया- परन्तु कल की तरह सो मत जाना। मैं बिल्कुल नहीं सोऊंगा, बस आप कहते जाइए।
अच्छा तो सुन एक था चिडा और एक थी चिडिया। दोनों ने पेड की एक डाल पर अपना घोंसला बना रखा था। उनके दो बच्चे भी थे। छोटे-छोटे और प्यारे- प्यारे। उन लोगों ने उनका नाम चीं-चीं और चूं-चूं रखा था। एक दिन चिडिया को कहीं से चावल के ढेर सारे दाने और चिडा को दाल के दाने मिले। दोनों ने सोचा कि आज कुछ बनाया जाए। सप्ताह का अन्तिम दिन था यानि शनिवार। चिडा और चिडिया चाहते थे कि खिचडी बने परन्तु बच्चे का मन था कि पुलाव बने। चिडिया ने पुलाव बनाना ही तय किया।
सो तो नहीं गए? दादी ने बीच में ही पूछा। नहीं दादी।
तो आगे सुनो मुन्ना को सोया नहीं जानकर, दादी ने कहानी आगे बढाई। एक बडा सा पतीला चढाया गया।
मुन्ने ने बीच में ही रोककर उत्सुकतावश जानना चाहा कि चिडा-चिडिया का पेट तो छोटा होता है तो फिर बडा सा पतीला क्यों? और दादी ने समझाया कि गुडियों के बर्तन में से सबसे बडा वाला। चिडा भी साथ देता रहा और दोनों ने मिलकर पुलाव बनाया। पुलाव बडा ही स्वादिष्ट बना।
चिडा ने पेड से पत्ते तोडे और झटपट पत्तों की प्लेट बना डाली। दो डालों पर टहनियों और बडे पत्तों को बिछाकर बैठने की व्यवस्था कर ली गई। सबने जी भरकर पुलाव का आनन्द लिया और अपने-अपने बिस्तरों में आराम करने घुस गए। सबको नींद आ गई। अभी शाम हो ही रही थी कि सहसा चीं-चीं की नींद टूटी- उसके पेट में दर्द था। इतने में चूं-चूं भी उठ बैठा और मतली करने लगा। चिडिया उन्हें संभालने लगी। बच्चों के रोने से घर में शोर मचने लगा। क्या किया जाए, किसे बुलाया जाए? कौन से डाक्टर, कौन से वैद्य की खोज की जाए, चिडा समझ नहीं पा रहा था। वह घबराकर बाहर निकला तभी मुन्ने ने प्रश्न किया-दादी आपने बताया नहीं कि चिडा उदास क्यों था? उसे अपने सपने की बात याद आ गई थी जिसे उसने आज सुबह देखा था जिसमें चिडा चिडचिड करता, उदास बैठा, अपने घोंसले को देख रहा था। अब पूरी कहानी सुनोगे, तब तो समझ में आएगा?
और कितनी लम्बी कहानी है? ज्यादा नहीं, ..पहले तुम चुप रह कर सुनो तो-! अच्छा अब मैं चुप रहूंगा। आप आगे सुनाइए।
चिडा बाहर निकला तो उसकी भेंट उसी पेड पर रहने वाले कौए से हुई। उन दिनों कौए अच्छे वैद्य होते थे और उन्हें दवाओं का अच्छा ज्ञान होता था परन्तु कौए बडे धूर्त होते हैं दुष्ट भी। वह कौआ भी कुछ ऐसा ही था। अपनी धूर्तता और चालाकी से वह दूसरे पक्षियों को बेवकूफ बनाकर कभी उनके अंडों को खा जाता तो कभी उनके बच्चों पर हाथ साफ कर देता। चिडा उससे सावधान रहता था परन्तु अभी तो उसे अपने बच्चों के लिए दवा चाहिए थी। वह कहावत सुनी है न तुमने?
मरता क्या न करता। मुन्ने ने बिना कुछ समझे हां में सिर हिलाया और कहानी आगे बढी। चिडे ने कौए से सब कुछ कह सुनाया और कौए ने झटपट पुडिया बनाकर दी और यह भी सलाह दी कि सावधानी के तौर पर चिडा और चिडिया को भी दवा खा लेनी चाहिए ताकि उनकी तबियत बिगडने न पाए। चिडा ने दोनों बच्चों को दवा खिलाई और दोनों ने स्वयं भी खा लिया। बच्चों की तबीयत में कुछ सुधार हुआ और वे सो गए। शाम हो आई थी।
चुन-चुन, चुन-चुन करते चिडा और चिडिया भी सो गए। जानते हो; दुष्ट कौए ने दवा की पुडिया में बेहोशी की दवा भी मिला दी थी। उसने दोनों बच्चों को चुरा लिया। सुबह चिडे ने चारों तरफ बच्चों को खोजा परन्तु वे न मिले। वह निराश होकर लौट आया और घोंसले के पास एक डाल पर बैठकर चिड-चिडाने लगा। निराश होकर चिडिया भी यह कहती हुई निकल पडी कि एक बार मैं भी देख लूं, शायद मिल जाएं। यहीं तो मैंने कल सुलाया था।
और इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है। बताया तो था कि दुष्ट और दुश्मन का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। कहीं ऐसी भी कहानी होती है?
तो फिर तू ही बता।
दादी बोली। मुन्ने ने कहा- वह सब बात नहीं है- कौआ भी कहीं वैद्य होता है। कौए और चिडिए में दोस्ती भी नहीं होती। बात यह थी कि दोनों बच्चे बडे हो गए थे और दूर- ऽऽ - बहुत दूर चले गए थे इसलिए वे उदास थे।
तेरी ही कहानी सही है। दादी ने गहरी सांस ली।



Tuesday, May 7, 2013

बरसता पानी हैं शनि के छल्ले


अंतरिक्ष में बरसात की परिकल्पना अब तक किसी ने नहीं की थी। लेकिन शनि ग्रह के लिए ये बहुत ही स्वाभाविक प्रक्त्रिया है। दरअसल अब ये साबित हो चुका है कि शनि ग्रह अपने लिए बरसात भी खुद ही बनाता है। और उसके छल्लों से ये बारिश ग्रह के ऊपर होती है। शनि के वलय से होने वाली ये बारिश खुद शनि ग्रह के वातावरण को भी खासा प्रभावित करती है।
 एक ताजा शोध के अनुसार आवेशित जल कणों की बरसात शनि ग्रह के वातावरण पर उसके छल्ले से होती है। इतना ही नहीं ये बरसात शनि ग्रह के अधिकाश हिस्से में होती है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तस्वीरों के आधार पर इंग्लैंड की लेस्सेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस विषय पर किए अध्ययन में पाया कि शनि ग्रह के ऊपरी हिस्से के वातावरण को ये बारिश खासा प्रभावित करती है। इससे वातावरण की सामग्री से लेकर ग्रह के तापमान तक पर असर पड़ता है।
 प्रमुख शोधकर्ता जेम्स ओ डोनाघ के अनुसार शनि अब तक का पहला ऐसा ग्रह है जहा वातावरण और वलय प्रणाली में सीधे कोई संबंध है। और उनके बीच किसी अहम प्रक्त्रिया का सक्त्रिय रूप से आदान-प्रदान होता है। इस बारिश का सबसे बड़ा प्रभाव यही है कि आयन से भरे शनि ग्रह को शात किया जाता है। दूसरे शब्दों में ये बारिश जिधर भी होती है शनि ग्रह के आवेशित इलेक्ट्रानों के घनत्व में खासी कमी आ जाती है।




भूकंप को एक दिन पहले भाप लेती हैं चीटिया


अभी तक भूकंप की भविष्यवाणी करना असंभव है लेकिन नन्हीं सी चींटी को इसका आभास हो जाता है और वह भी भूकंप आने के एक दिन पहले।
 शोधकर्ताओं की मानें तो चीटियों को एक दिन पहले ही भूकंप आने का अहसास हो जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि रेडवुड चीटिया भूकंप के दौरान पड़ी दरारों में अपनी बस्तिया बसाती हैं। अध्ययन में उन्होंने देखा कि भूकंप आने से एक दिन पहले चीटियों के व्यवहार में काफी बदलाव आ जाता है और भूकंप के एक दिन बाद वे पहले की तरह सामान्य हो जाती हैं।
 लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक चीटियों की इस विशेषता को जानने के लिए जर्मनी स्थित यूनिवर्सिटी डिसबर्ग एसेन के गैब्रियल बरबेरिक ने चीटियों के 15 हजार से भी ज्यादा टीलों का अध्ययन किया। बरबेरिक और उनके सहयोगियों ने करीब तीन साल तक वीडियो कैमरे की मदद से चीटियों पर नजर बनाए रखी और एक विशेष सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से उनकी गतिविधियों का अध्ययन किया गया।
 शोधकर्ताओं का कहना है भूकंप की तीव्रता दो से अधिक होने पर ही चीटिया अपना व्यवहार बदलती हैं। बरबेरिक कहते हैं कि भूकंप आने से एक दिन पहले चीटिया रातभर अपने टीले के बाहर जागती रहती हैं जबकि आम दिनों में वह दिनभर काम करने के बाद रात को सो जाती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि चीटियों को उस दौरान जमीन से उठने वाली गैसों और हलचलों से भूकंप का अंदाजा हो जाता है। इस अध्ययन को विएना में वार्षिक कार्यक्त्रम यूरोपियन जियोसाइंसेज यूनियन में भी पेश किया जा चुका है।






अंटार्कटिक में दस गुना तेजी से पिघल रही बर्फ


अंटार्कटिक में अब से 600 साल पहले के मुकाबले अब गर्मियों के मौसम में दस गुना अधिक रफ्तार से बर्फ पिघल रही है। बीसवीं सदी की मध्य से अंटार्कटिक ने अपने बर्फ का बड़ा हिस्सा खोना शुरू कर दिया है। एक ताजा अध्ययन में चेताया गया है कि अब गर्मियों के मौसम में बर्फ पिघलने की प्रक्त्रिया इतनी अधिक और घातक हो गई है कि वह अंटार्कटिक की बर्फ की परत और ग्लेशियरों के अस्तित्व को ही प्रभावित करने लगी है। हर एक हजार साल में अंटार्कटिक प्रायद्वीप के मौसम के पुनर्निर्माण पर पत्रिका नेचर जीयोसाइंस के अनुसार गर्मियों में दस परतों तक की बर्फ पिघलने लगी है।
 वर्ष 2008 में ब्रिटेन-फ्रेंच साइंस टीम ने जेम्स रास द्वीप के मुख्य स्थान पर 364 मीटर की गहराई तक बर्फ काट करके ये जानने की कोशिश की थी कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप के उलरी क्षेत्र में बर्फ की हालत और तापमान कैसा है। उन्होंने पाया कि आइस कोर में की गई खुदाई से बर्फ के भविष्य का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। आइस कोर पर दिखने वाली परतें बताती हैं कि कितनी गर्मियों में बर्फ पिघलने के बाद सर्दियों में वापस जम गई। इन पिघली हुई परतों की मोटाई नापकर बर्फ के पिघलने की रफ्तार का खाका तैयार हो जाता है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने पिछले एक हजार साल की परतों की नाप और तबके तापमान का तुलनात्मक अध्ययन किया है। इसी हिसाब से भविष्य के हालात का भी अनुमान निकाला गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो खामियाजा पूरी धरती को भुगतना होगा।






किचन वेस्ट से बनेगी बिजली


रसोई में बचे खाने एवं सब्जियों-फलों के छिलकों से अब बायोगैस एवं बिजली बन सकेगी। पंजाब सरकार और नई दिल्ली की द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) के बीच तीन माह पूर्व मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन होने के बाद पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी (पीएयू) अपने कैंपस में बने हॉस्टल में पहली यूनिट लगाने की तैयारी कर रही हैं।
 इसकी पूरी योजना तैयार हो चुकी है तथा यूनीवर्सिटी प्रबंधक इसको लगाने पर खर्च होने वाले 36 लाख के फंड का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने पंजाब सरकार के साथ लुधियाना के सासद मनीष तिवारी को पत्र भेजकर एमपीलैड्स फंड से यह रुपया मागा है।
 सेमी गवर्नमेंट एजेंसी टेरी की टीम ने कुछ दिन पहले यूनीवर्सिटी का दौरा किया था। यहा पर वेस्ट टू एनर्जी गैसीफायर प्रोजेक्ट के संदर्भ में उन्होंने यूनीवर्सिटी के अधिकारियों से बातचीत की। इसमें पता चला कि पीएयू के हॉस्टल से रोजाना एक टन किचन की वेस्टेज निकलती है। अगर उपरोक्त प्लाट लगता है तो इसके जरिए यूनीवर्सिटी खाना पकाने के लिए बायोगैस का उत्पादन कर सकती है। अगर किचन वेस्ट ज्यादा हुई तो फिर बिजली भी पैदा की जा सकती है। पीएयू की योजना है कि अगर प्रोजेक्ट का यह ट्रायल सफल रहा तो फिर वह घरों से निकलने वाले किचन वेस्ट को जमाकर प्लाट के जरिए गैस और बिजली पैदा करने पर विचार करेंगे। लगभग 35 लाख रुपये के इस प्रोजेक्ट में पीएयू प्लाट के लिए जगह व दूसरे सपोर्ट देगी, जबकि बाकी का काम टेरी करेगी। प्लाट लगने के बाद इसका स्वामित्व पीएयू के पास हो जाएगा।
 ट्रायल सफल होने के बाद पीएयू शहरों, गावों व कस्बों में लोगों को इसी तरह के छोटे-छोटे यूनिट लगाने के लिए प्रेरित करेगी। सूत्रों के मुताबिक, बाजार में कई कंपनिया इस तरह का प्लाट बनाती हैं, जिसकी कीमत महज 35 हजार तक है। टेरी के सहयोग से लगने वाले प्लाट के ट्रायल सफल होने के बाद पीएयू छोटे यूनिटों का भी ट्रायल करेगी तथा फिर उनके संदर्भ में आगे सिफारिश करेगी।
 पीएयू के स्कूल आफ एनर्जी स्टडीज के डायरेक्टर डॉ. सर्बजीत सूद ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि पूरी योजना तैयार हो चुकी है तथा फंड मिलते ही इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा। इस प्लाट के साथ पीएयू कई दूसरी छोटी यूनिटों का भी परीक्षण कर रही है, जो आसानी से घरों में किचन वेस्ट के जरिए बायोगैस बनाने के इस्तेमाल में आ सकेंगी।





भूखा तो नहीं है आपका छोटू


बच्चों की यह मूल प्रवृलि होती है कि जब उन्हें भूख लगती है, तब वे प्राय: रोने लगते हैं। यही नहीं मांएं भी उन्हें तभी दूध पिलाती या कुछ खिलाती हैं, जब बच्चे रोना शुरू कर देते हैं। आपके लिए कुछ टिप्स जिनके जरिए आप अपने नन्हें-मुन्ने की भूख के बारे में जान सकती हैं।
 -आमतौर पर यही धारणा है कि शिशु अगर भूखा नहीं है तो वह आराम से खेलता रहेगा। अगर शिशु आराम से खेल रहा है तो समझ लें कि उसे भूख नहीं लगी है। यह धारणा पुरानी है, कई शोधों और अध्ययनों से यह बात साबित हुई है कि खेलते समय ही बच्चे को खाने की सामग्री दे देना बेहतर रहता है। इससे वह आराम से खा लेगा।
 - बच्चे के लिए खाने या पीने को कुछ देते समय थोड़ी मात्रा में ही सामग्री लें। अगर वह इसे खा-पी लेता है तो तुरंत ही उसे और सामग्री न देकर थोड़ी देर बाद ही दें।
 - यदि घर-परिवार में कई बच्चे हैं तो कोशिश करें कि उन्हें आपस में नजदीक लाकर ही खिलाएं-पिलाएं। आपका शिशु अन्य बच्चों को देखकर खाने-पीने के लिए अपने आप प्रेरित होगा।
 - मौसम बदल रहा है, बदलते मौसम में बच्चे को लिक्विड की अधिक मात्रा की जरूरत पड़ती है। उसे दूध के साथ ही घर में निकाला हुआ जूस, सूप आदि दें। अगर बच्चा छह माह से अधिक का है तो उसे दाल का पानी, पतला दलिया आदि दे सकती हैं।
 - अगर बच्चा खाने-पीने में आनाकानी कर रहा है तो उसके सामने ऐसा प्रदर्शित करें जैसे कि उसके खाने की चीजें आप भी खा रही हैं। इससे बच्चा खाने-पीने के लिए अधिक प्रेरित होगा।
 - याद रखें कभी भी खाना बच्चे के मुंह में जबरदस्ती न ठूंसें।
 - बच्चे को हमेशा पौष्टिक चीजें ही खाने के लिए दें। उसे बाजार की वस्तुओं से दूर रखें।
 - तमाम प्रयासों के बावजूद यदि आपका नन्हा-मुन्ना कुछ खाता-पीता नहीं है तो उसे किसी अच्छे चिकित्सक को ही दिखाएं। हो सकता है बच्चे को अंदरूनी कोई समस्या हो।





बच्चे भी हो रहे हैं साइबर बुलिंग के शिकार


इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते इस्तेमाल से संचार की दूरिया खत्म हो गई हैं। नई तकनीक जहा अपने साथ सीखने और लोगों को मसरूफ रखने की असीमित संभावनाएं लेकर आई है, वहीं इसके साथ नई चुनौतिया और दबाव भी आए हैं। उनमें से एक है साइबर बुलिंग। यानी इंटरनेट पर दूसरों को डराना-धमकाना या फिर उनका शोषण करना। इसके शिकार इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले बच्चे और टीनएजर भी हो रहे हैं। ज्यादातर मा-बाप इस खतरे से अनजान हैं। जो इससे वाकिफ भी हैं तो उन्हें इससे निपटने का तरीका नहीं मालूम होता है।
 एंटी वायरस बनाने वाली कंपनी नॉर्टन बाय सिमेंटिक के कंट्री सेल्स मैनेजर रितेश चोपड़ा के मुताबिक सोशल नेटवर्किग साइटों को साइबर बुलिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है मगर ये साइटें समस्या नहीं हैं। बल्कि असली समस्या इन्हें इस्तेमाल करने का तरीका है। साइबर बुलिंग का मसला विभिन्न आयु वर्ग के लिए अलग-अलग हो सकता है। कम उम्र के बच्चे गलत वेबसाइट देख सकते हैं। वहीं बड़े बच्चों के लिए यह सेक्सटिंग, निजता और प्रतिष्ठा से जुड़ा मसला या ऑनलाइन स्कैम जैसा कुछ भी हो सकता है।
 नॉर्टन ऑनलाइन फैमिली रिपोर्ट 2011 के अनुसार भारत में 79 फीसद बच्चों का ऑनलाइन अनुभव बेहद खराब रहता है। सोशल नेटवर्क पर मौजूद करीब 84 फीसद बच्चों को असामान्य परिस्थितियों से गुजरना पड़ा। करीब 32 फीसद माता-पिता ने पुष्टि की कि उनके बच्चे को साइबर बुलिंग का अनुभव है।
 संकेतों को पहचानें 
 द बर्कमैन सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी एट हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन बच्चों को ज्यादा डराया धमकाया जाता है उनमें स्कूल बदलने वाले बच्चे, कम आय या ज्यादा आय वर्ग से आने वाले बच्चे शामिल हैं। इसके अलावा सामान्य से अलग दिखने वाले जैसे ज्यादा वजन, कम वजन, चश्मा पहनने वाले या फिर विकलाग बच्चे भी इसके ज्यादा शिकार होते हैं। वहीं, जो बच्चे दूसरों को परेशान करते हैं उनमें भी इसी तरह के लक्षण होते हैं। मगर उनमें ऊर्जा का स्तर काफी अच्छा होता है। वे धूर्त होते हैं और अपनी बात मनवाने में उन्हें बड़ी खुशी होती है। अगर बच्चा स्कूल या अपनी ऑनलाइन सोशल लाइफ से दूर भाग रहा हो, मूडी हो गया हो या जल्दी परेशान हो जाता हो, अपनी निजी वस्तुओं को नुकसान पहुंचाता हो, उसे सोने में मुश्किल हो रही है, त्वचा पर निशान या चोट लगने की वजह नहीं बता पा रहा है, तो मुमकिन है कि उसे स्कूल में या ऑनलाइन डराया-धमकाया या परेशान किया जा रहा है।
 जोखिम करें कम 
 अगर आपको संदेह है कि आपके बच्चे को परेशान किया जा रहा है, तो सबसे पहले इस बारे में बच्चे से बातचीत करें। कोशिश करें कि वह इस बारे में खुलकर बात करे। आपकी कोशिश होनी चाहिए कि वह बिना डरे आपको पूरी जानकारी दे। उसे यह डर नहीं हो कि आप आगे उन्हें उपकरणों या इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करने देंगे। अगर बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार हुआ है तो उसे इंटरनेट के इस्तेमाल से रोके नहीं बल्कि इसके लिए नियम बना दें। साथ ही बच्चे के इंटरनेट इस्तेमाल पर नजर भी रखें।
 आपको यह भी पता होना चाहिए कि आपका बच्चा कौन कौन सी साइट देख रहा है और किस लिए। बाजार में कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर भी हैं, जिनके जरिये मा-बाप बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर निगरानी रख सकते हैं। अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताएं और उससे नियमित तौर पर खुल कर बात करें। उन्हें अपने रोजाना अनुभव साझा करने के लिए भी प्रोत्साहित करें।






खुश हों कि बच्चा शरारती है!


अगर आपका बच्चा शरारती है, तो उसके भविष्य के बारे में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। एक शोध के अनुसार बड़े होने पर ऐसे बच्चे खुशहाल जिंदगी जीते हैं। शोध के अनुसार बड़े होने पर ऐसे बच्चों के अवसाद या बेचैनी का शिकार होने की आशंका कम होती है। डेयकिन विश्वविद्यालय की अगुवाई में एक अंतरराष्ट्रीय दल ने पाया कि बचपन में शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के बाद की जिंदगी में निराशा से बचने में मदद मिलती है। यह जानकारी 2,152 ऑस्ट्रेलियाई बच्चों पर अध्ययन करने के बाद दी गई है।
 शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक चुस्त और शरारती बच्चों की तुलना में निष्क्रिय रहने वाले बच्चों के बड़े होकर अवसाद की चपेट में आने की आशंका 35 फीसदी अधिक रही। प्रमुख शोधकर्ता डॉ. फेलिस जेका ने बताया कि बचपन वह अवस्था होती है जब दिमाग का विकास बहुत तेजी से होता है और बचपन में अधिक शारीरिक गतिविधियों का मस्तिष्क के विकास पर लाभकारी असर पड़ता है।
 डॉ. जेका के अनुसार खेलकूद में व्यस्त रहने से बच्चों में तनाव प्रबंधन कौशल के विकसित होने में मदद मिलती है और ऐसे बच्चे किशोरावस्था में भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित रहते हैं।
 बच्चे को जरूर दें बेबी फूड 
 शिशुओं को शुरुआती दौर में दिए गए बेबी फूड का उनके स्वास्थ पर दीर्घकालिक असर होता है।
 एक नए शोध में यह बात सामने आई है। क्लाउडे बर्नार्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन बच्चों ने मां का दूध पिया था, तीन साल की उम्र में उनका रक्तचाप उन शिशुओं की तुलना में कम था, जिन्हें उच्च प्रोटीन फॉ?र्म्यूला दिया गया था। इसके अलावा दुग्धपान करने वाले बच्चों का सिर भी उन बच्चों से कुछ बड़ा था, जिन्हें निम्न प्रोटीन फॉ?र्म्यूला दिया गया था।
 लाइफ साइंस की रिपोर्ट के अनुसार बेबी फूड लेने के बावजूद बच्चों का रक्तचाप और सिर का आकार सामान्य था। मां का दूध शिशुओं के लिए पोषण का सबसे अच्छा स्रोत है, लेकिन इसमें विटामिन डी की मात्रा कम होती है। अध्ययन के लिए डेन्वर में पीडियाट्रिक एकेडमी सोसाइटी ने 234 शिशुओं के तीन समूहों का अध्ययन किया।
 पहले समूह को विशेषरूप से शुरुआती चार महीनों में दुग्धपान कराया गया था, जबकि अन्य दो समूहों को या तो निम्न प्रोटीन फॉ?र्म्यूला या उच्च प्रोटीन फॉ?र्म्यूला दिया गया। इनमें प्रोटीन की मात्रा इस उम्र में बच्चों के लिए बताए गए स्तर के समान थी।




आपके बाद कौन संभालेगा आपकी जीमेल रियासत


कभी आपके मन में यह सवाल तो नहीं उठता कि आपके इस दुनिया से जाने के बाद आपके जीमेल की रियासत कौन संभालेगा.. आपके इमेल्स, डिजिटल फोटोज, डाक्यूमेंट्स की जागीर का उत्तराधिकारी कौन बनेगा.. गूगल ने इन सवालों को ध्यान में रखते हुए इसका हल ढूंढ़ निकाला है। इस योजना के तहत गूगल ने एक अकाउंट मैनेजर पेज पेश किया है जो आपके आदेशानुसार आपके बाद आपकी डिजीटल रियासत का उत्तराधिकारी उसे ही बनाएगा जिसे आप चुन कर जाएंगे।
 गूगल अपने सदस्यों से यह जानकारी ले लेगा की उनकी मृत्यु के बाद डिजीटल तस्वीरों, दस्तावेजों और अन्य आभासी सामग्रियों का क्या करना चाहेंगे? एक इनेक्टिव अकाउंट मैनेजर का इस्तेमाल कर गूगल को यह निर्देश दिया जा सकता है कि वह गूगल ड्राइव, जीमेल, यूट्यूब, या सोशल नेटवर्क गूगल प्लस से डाटा अमुक व्यक्ति को भेज दे या लंबे समय के बाद इन्हें खत्म कर दे।
 अकाउंट सेटिंग पेज पर एक संदेश में गूगल अपने सदस्यों को अपने डाटा को विश्वस्त मित्र या परिवार के सदस्य से साझा करने या अपना अकाउंट खत्म करने का विकल्प देगा। साथ ही गूगल सदस्यों से कार्रवाई करने से पहले समय की अवधि की जानकारी भी लेगा। कैलिफोर्निया आधारित यह कंपनी अकांउट धारक को समय समाप्त होने से पहले इस बारे में इमेल या मोबाइल पर संदेश भेजेगी। आप अकाउंट के निष्क्रिय होने की अवधि का चयन करने में भी सक्षम होंगे। इसके बाद 10 विश्वस्त लोगों को इस बारे में विशेष सूचना मिलेगी कि अकाउंट के साथ क्या करना है।
 अंत में गूगल अपने उपयोगकर्ता को यूट्यूब वीडियो, गूगल प्लस प्रोफाइल्स सहित गूगल की सभी सेवाओं से अपना अकाउंट प्रभावी तरीके से साफ करने का विकल्प देगा। उपयोगकर्ता 3, 6, 9, 12 महीने की अवधि का चयन कर सकते हैं और इस अवधि की समय सीमा खत्म होने से एक महीने पहले गूगल दूसरे ईमेल पते पर एक अधिसूचना भेजेगा।
 आप इन्हें अपने किसी विश्वस्त मित्र या परिवार के साथ साझा करना चाहते हैं, या फिर इन्हें पूरी तरह से मिटाने का विकल्प चुन सकते हैं। इनेक्टिव अकाउंट मैनजर के इस्तेमाल से आप यह फैसला कर सकते हैं कि आपके डाटा के साथ क्या किया जाए और इस बारे में किसके पास संदेश भेजा जाए। तो अब आप बाकी चिंता छोड़ अपने गूगल जागीर के लिए सोच लिजिए अपने उत्तराधिकारी का नाम।








जीमेल, फेसबुक को करें रिमोट लॉग आउट


आप ऑफिस के काम काज में व्यस्त हो घर के लिए निकलते समय अपना फेसबुक या जीमेल अकाउंट लॉग आउट करना भूल गए तो कहीं से भी रिमोट लॉग आउट फीचर का उपयोग कर आप अपने फेसबुक अकाउंट को बंद कर सकते हैं। चलिए जानते हैं कैसे करें रिमोट लॉग आउट- 
 फेसबुक अकाउंट की दायीं ओर अकाउंट सेटिंग में जाइए और बायीं ओर सिक्योरिटी को क्लिक कीजिए। सिक्योरिटी सेटिंग में आपको एक्टिव सेशन मिलेगा।
 हो सकता हे आपका फेसबुक अकाउंट कोई न खोले लेकिन फिर भी आपको सावधान रहना चाहिए और एक्टिव सेशन मोड को लॉग आउट जरूर करना चाहिए। अब रिमोट लॉग आउट के लिए वहां दिख रहे इंड एक्टिविटी को क्लिक करिए और उसके बाद सामान्यत: जैसे फेसबुक लॉग आउट करते हैं बस, अब आप निश्चिंत हो जाइए आपका फेसबुक कोई नहीं देखेगा।
 इसी तरह जीमेल अकाउंट में नीचे की ओर दायीं तरफ डिटेल्स पर क्लिक करें और साइन आउट ऑल अदर सेशन पर क्लिक करें। डिटेल्स में आपको यह भी दिख जाएगा की किस आइपी से आपके जीमेल अकाउंट को खोला गया है।
 तो बस रहिए थोड़ा अलर्ट क्योंकि आपके अकाउंट के खुला रहने पर कोई चुरा सकता है आपकी प्राइवेसी।









बड़ी फाइल्स की फटाफट शेयरिंग


कई बड़ी फाइल्स भेजने में काफी दिक्कत होती है। ईमेल से भी लार्ज अटैचमेंट्स फाइल्स नहीं भेज सकते, क्योंकि उमसें भी 25 एमबी तक की फाइल्स भेजने की लिमिट होती है। ऐसे में यूजर के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। अगर आपको फटाफट फाइल भेजनी हो, तो क्या करें? हम बता रहे हैं ऐसी कुछ सर्विसेज जिससे आप और बड़ी फाइलें आसानी से शेयर कर सकते हैं..
 ईमेल से भेजें बड़ी फाइल्स 
 कई ईमेल प्रोवाइडर्स एक मेल में केवल 25 एमबी तक का ही डाटा अटैच करने की सुविधा देते हैं। इस फीचर का इस्तेमाल तब तो ठीक है, जब कई सारी छोटी-छोटी फाइल्स भेजनी हों। आप उन्हें एक-एक करके भेज सकते हैं।
 जिप कंप्रेशन 
 अगर आपको यूट्यूब पर अपलोड किए बिना 30 एमबी की कोई फाइल या वीडियो भेजना हो, तो ऐसे में क्या करेंगे? वहीं, अगर इंटरनेट स्पीड भी स्लो हो, तो इसके लिए आप जिप या रार सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह बड़ी फाइल्स भेजने का आसान तरीका है। इसकी एक और खूबी है कि इसमें अतिरिक्त सुरक्षा के लिए पासवर्ड भी लगा सकते हैं। जिप और रार दोनों सॉफ्टवेयर्स ही फाइल्स को 60 फीसदी तक कंप्रेस कर देते हैं, जिससे उनका वॉल्यूम कम हो जाता है और उन्हें भेजना आसान हो जाता है।
 यूआरएल: डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.रारलैब.कॉम
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.7-जिप.ओआरजी
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.विनजिप.कॉम
 फाइल स्प्लिटर 
 जिप सॉफ्टवेयर्स की भी अपनी एक लिमिट है। ये भी किसी फाइल को एक लिमिट तक ही कंप्रेस कर सकते हैं। लेकिन कभी अगर 1 जीबी का कोई सॉफ्टवेयर या वीडियो अपलोड करना हो, तो शायद जिप भी आपकी मदद नहीं कर पाएगा। ऐसे में फाइल स्प्लिटर की मदद ले सकते हैं। फाइल स्प्लिटर की खासियत है कि यह किसी भी तरह की फाइल को टुकड़ों में बांट देता है, जिसके बाद आप सभी फाइल्स को अलग-अलग ईमेल से भेज सकते हैं। इनकी दूसरी खूबी यह है कि टुकड़ों में बंटी फाइल्स को यह एक फाइल में भी कनवर्ट कर देते हैं।
 यूआरएल: डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.एचजेस्पलीट.कॉम
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.फाइलस्पिलीटर.ओआरजी
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.डेकाबाइट.कॉम
 बेस्ट शेयरिंग सर्विसेज 
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.बेफाइल्स.कॉम 
 बेफाइल्स से यूजर 5 जीबी तक की फाइल्स ही शेयर कर सकते हैं। यहां पर फाइल्स डाउनलोड या अपलोड करने की कोई लिमिट नहीं हैं। इसके इंटरफेस पर यूजर अपलोड स्पीड और टाइमर भी देख सकता है। लेकिन यह मल्टीपल अपलोड फाइल्स सिस्टम को सपोर्ट नहीं करता। इसके अलावा इस पर अपलोड की गई फाइल 30 दिन में ऑटोमेटिकली इनएक्टिव हो जाती है। इंटरफेस के जरिए फाइल अपलोड करने के बाद यूजर चाहे तो किसी के साथ भी शेयरिंग कर सकता है और चाहे तो लिंक्स को डिलीट भी कर सकता है।
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.फाइलड्रॉपर.कॉम 
 बेफाइल्स की तरह फाइलड्रॉपर का इंटरफेस भी बेहद आसान है। यहां भी यूजर 5 जीबी तक की फाइल्स अपलोड कर सकता है। यूजर को इसमें कोई साइन-अप नहीं करना पड़ता। इसके अलावा इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि दूसरी साइट्स की तरह यहां से डाटा डिलीट नहीं होता है। यह तभी संभव है अगर कोई भी यूजर उस फाइल को 30 दिनों तक डाउनलोड नहीं करता है अन्यथा वह फाइल ऑटोमेटिकली डिलीट हो जाएगी।
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.स्लिंगफाइल.कॉम 
 इसकी खासियत है कि इसमें यूजर 50 जीबी तक की फाइल्स अपलोड कर सकता है। यह मल्टीपल अपलोडिंग को सपोर्ट करता है। साथ ही दूसरी साइट्स के मुकाबले इसकी इनएक्टिव लिमिट भी ज्यादा है। अगर फाइल 180 दिन तक इनएक्टिव रहती है, तभी फाइल डिलीट होगी। एक बार फाइल अपलोड करने के बाद यूजर अपने ईमेल पर डाउनलोड और डिलीट लिंक भी भेज सकता है, और 3 लोगों के साथ उस लिंक को शेयर भी कर सकता है। साथ ही स्लिंगफाइल में अनलिमिटेड डाउनलोडिंग का ऑप्शन है।
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.योरफाइललिंक.कॉम 
 इसमें यूजर 5 जीबी तक की फाइल्स अपलोड कर सकते हैं। इसमें साइन-अप करने की जरूरत नहीं है, साथ ही यूजर अनलिमिटेड डाउनलोड कर सकते हैं। दूसरी साइट्स की तरह यहां इनएक्टिव फाइल्स 15 दिनों में डिलीट हो जाती हैं।
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.पाइपबाइट्स.कॉम 
 यह वेब बेस्ड इंटरफेस एप्लीकेशन है, जहां यूजर अपने ब्राउजर से ही फाइल्स अपलोड या डाउनलोड कर सकता है। इसमें साइज की कोई पाबंदी नहीं है, साथ ही न तो आपको रजिस्ट्रेशन करने की जरूरत है और न ही अपना ईमेल आईडी देने की। आपको बस कोड अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर करना होता है और वे डाउनलोडिंग शुरू कर सकते हैं। इसकी ट्रांसफर स्पीड 30 एमबिट प्रति सेकेंड है और यूजर फटाफट फाइल शेयर कर सकता है।
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.सेनडुइट.कॉम 
 इसमें यूजर कोई सॉफ्टवेयर डाउनलोड किए बिना वेब इंटरफेस से ही फाइल्स अपलोड कर सकता है। इसमें फाइल्स के साइज को लेकर कोई पाबंदी नहीं है और अनलिमिटेड साइज की फाइल्स शेयर कर सकते हैं। इसकी एक और खासियत है कि इसमें फाइल को डिलीट करने का टाइम यूजर के पास होता है। यूजर चाहे तो 30 मिनट से लेकर 1 हफ्ते का टाइम सेट कर सकता है, जिसके बाद फाइल ऑटोमेटिकली डिलीट हो जाएगी।
 शेयरिंग फटाफट 
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.ड्रॉपबॉक्स.कॉम 
 ऑनलाइन शेयरिंग के मामले में ड्रॉपबॉक्स सबसे बेस्ट है। ड्रॉपबॉक्स में यूजर केवल 2 जीबी का डाटा ही अपलोड कर सकते हैं। ड्रॉपबॉक्स की सबसे बड़ी खूबी है कि यूजर डाटा को आईफोन-आईपैड, एंड्रॉयड, ब्लैकबेरी और सिंबियन एप्स से डिवाइसेज पर भी एक्सेस और अपलोड कर सकते हैं। हालांकि ड्रॉपबॉक्स पर 2 जीबी ही फ्री स्पेस मिलता है लेकिन फ्रेंड्स को इनवाइट करके 500 एमबी प्रति इनविटेशन से मुफ्त में ही स्पेस बढ़ा सकते हैं। ड्रॉपबॉक्स को एक्सेस करने के लिए किसी ब्राउजर की जरूरत नहीं पड़ती। यूजर अगर ऑफलाइन है, तो भी डेस्कटॉप पर सेव एप्लीकेशन ऑटोमेटिक सिंक करती रहेगी और ऑनलाइन होते ही ड्रॉपबॉक्स पर ऑटोमेटिक अपडेट हो जाएगा।
 स्काइड्राइव.लाइव.कॉम 
 स्काईड्राइव पर यूजर 25 जीबी की फ्री स्टोरेज देता है। स्काइड्राइव में भी हार्डड्राइव से फाइल्स को ड्रेग और ड्रॉपिंग करने का ऑप्शन है। स्काइड्राइव को यूजर आउटलुक.कॉम, हॉटमेल.कॉम या लाइव.कॉम पर आईडी बना कर भी एक्सेस कर सकते हैं। यहां पर मल्टीपल फाइल शेयरिंग का ऑप्शन है। केवल फोल्डर क्रिएट करके उसे फ्रेंड्स के ईमेल एड्रेस शेयर करने हैं। इसकी डेस्कटॉप एप्लीकेशन भी इंस्टॉल कर सकते हैं।
 ड्राइव.गूगल.कॉम 
 गूगल की यह सुविधा जीमेल यूजर्स के लिए है। जीमेल में गूगल ड्राइव को इंटीग्रेट किया गया है। साइन-इन करने के बाद ड्राइव पर क्लिक करके यूजर सीधे फाइल को अपलोड करके फ्रेंड्स के साथ शेयर कर सकते हैं। इसमें मल्टीपल ईमेल एड्रेस शेयरिंग की सुविधा है। इसमें यूजर को 5 जीबी का फ्री स्पेस मिलता है। इसकी डेस्कटॉप एप्लीकेशन भी इंस्टॉल कर सकते हैं।
 ड्राइव.गूगल.कॉम 
 बॉक्स पर यूजर 5 जीबी का फ्री स्पेस मिलता है। इसके वेब एप्स के साथ डेस्कटॉप और मोबाइल एप भी उपलब्ध हैं। इसमें मल्टीपल शेयरिंग की सुविधा है। साथ ही वर्ड या एक्सेल डॉक्यूमेंट्स की ऑनलाइन एडिटिंग भी कर सकते हैं।
 डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.एड्राइव.कॉम 
 एड्राइव बेसिक प्लान में मेंबर को पर्सनल यूज के लिए 50 जीबी का स्पेस फ्री देती है। एड्राइव में यूजर अपलोडिंग के दौरान डाउनलोडिंग भी कर सकते हैं। एड्राइव पर यूजर एमएस ऑफिस, फोल्डर्स, एप्लीकेशंस, फोटोग्राफ्स, म्यूजिक और वीडियो फाइल्स शेयर कर सकते हैं।



कीबोर्ड शार्टकट्स के साथ रफ्तार से करें काम


की बोर्ड को केवल टाइपिंग के लिए इस्तेमाल करने के अलावा उसे अपनी वर्क स्पीड बढ़ाने में भी कारगर रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं। जानें कुछ की बोर्ड शार्टकट्स के बारे में, जो आपके काम की रफ्तार बढ़ा सकते हैं..
 - कंट्रोल प्लस इएससी का इस्तेमाल करके आप सीधे स्टार्ट मेन्यू खोल सकते हैं।
 - किसी फाइल या फोल्डर को रिनेम करने के लिए एफ 2 दबाएं।
 - किसी फाइल को ढूंढना चाहते हैं तो सिर्फ एफ 3 या विन प्लस एफ दबाकर सर्च विंडो खोलें।
 - किसी फाइल, फोल्डर या ड्राइव आदि की प्रोपर्टीज देखने के लिए माउस का कर्सर उस पर रखें और अल्ट प्लस इंटर यूज करें।
 - डेस्कटॉप पर खुले हुए सभी प्रोग्राम्स को एक साथ मिनिमाइज करने के लिए विंडोज की प्लस एम यूज करें।
 - मिनिमाइज किए हुए सभी प्रोग्राम्स और फाइलों को मैक्सिमाइज करने के लिए विंडोज की प्लस शिफ्ट प्लस एम का यूज करें।
 - डेस्कटॉप पर खुले सभी डॉक्यूमेंट्स या प्रोग्राम्स में से किसी एक को सेलेक्ट करने के लिए अल्ट प्लस टैब का यूज करें।
 - किसी भी एक्टिव प्रोग्राम को बंद करने के लिए अल्ट प्लस एफ 4 का यूज करें।
 -अगर माउस को राइट क्लिक किए बिना काम करना चाहते हैं तो शिफ्ट प्लस एफ 10 यूज करें।
 - जब किसी फाइल को डिलीट करते हैं, तो वह सीधे रिसाइकिल बिन में चली जाती है, जहां से दोबारा रिस्टोर किया जा सकता है। अगर किसी फाइल को हमेशा के लिए डिलीट करना चाहते हैं तो शिफ्ट के साथ डिलीट का यूज करें।
 -अगर टास्कबार में खुले प्रोग्राम्स को एक-एक कर खोलना चाहते हैं तो अल्ट के साथ इएससी यूज करें।
 - किसी भी एक्टिव विंडो को बंद करने के लिए कंट्रोल के साथ डब्ल्यू का यूज करें।
 - अगर ब्राउजर में कई टैब्स खुले हों तो कंट्रोल के साथ टैब से एक-एक ब्राउजर को चेक कर सकते हैं।
 - किसी भी पेज या डाक्यूमेंट की प्रोपर्टीज जाननी हो, तो राइट क्लिक करने की बजाय शिफ्ट के साथ एफ 10 का यूज भी कर सकते हैं।
 - किसी भी पीसी की सिस्टम कंफिगरेशन के बारे में जैसे सीपीयू, रैम या ओएस के बारे में तुरंत पता लगाना है तो विन के साथ पाउज या ब्रेक का यूज कर सकते हैं।


सज्जा दीवारों की


रंगों के त्योहार होली के दौरान अक्सर फ्लोर और दीवारों पर रंग गिर ही जाता है। कैसे करें इसकी सफाई कि घर की सज्जा की खूबसूरती रहे बरकरार..
 रंगों के त्योहार होली बीत गया और इसी के साथ गर्मी के मौसम ने भी दस्तक दे दी है। होली के दौरान खेले जाने वाले रंगों से संभव है कि आपके घर की दीवारों के रंगों को कुछ नुकसान पहुंचा हो, जाहिर है घर के इंटीरियर पर किसी तरह का प्रभाव न पड़े इसलिए आप भी उसकी सफाई के बारे में जरूर सोच रहे होंगे या फिर यह विचार भी हो रहा हो कि क्यों न घर की दीवारों पर नया रंग-रोगन करा लिया जाए। वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि दीवारों पर रंग कराने के लिए यह सही मौसम है। बहरहाल यदि आप नया रंग नहीं कराना चाहते और यदि डिस्टेंपर की जगह दीवारों पर अगर आपने पेंट का इस्तेमाल किया है तो उसकी साफ-सफाई और मेंटीनेंस के लिए इन बातों पर गौर कर सकते हैं-
 -दीवारों की सफाई के लिए यह बेहद जरूरी है कि उन पर वॉशेबल पेंट किया गया हो। ऑयल बाउंड डिस्टेंपर की सफाई की जाए तो उसके पूरी तरह से खराब होने का डर रहता है।
 -वॉशेबल पेंट से रंगी गई दीवारों की साफ-सफाई के दौरान भी कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है। ऐसी दीवारों से रंग या फिर धब्बे को छुड़ाने के लिए पानी के साथ स्पंज या फिर सूती तौलिये का इस्तेमाल किया जा सकता है।
 -दीवारों की सफाई के लिए आप चाहें तो पानी में साबुन भी मिला सकते हैं। पानी और साबुन के घोल से दीवारों पर लगे दाग आसानी से छुड़ाए जा सकते हैं।
 -वॉशेबल पेंट की सफाई के बारे में पेंट बनाने वाली कंपनियों की वेबसाइट्स पर भी जानकारी दी गई होती है। इसकी सहायता भी आप ले सकते हैं।
 -पानी प्रतिरोधी रंगों से रंगी गई दीवारों के लिए आप स्टेन ब्लॉकर की मदद भी ले सकते हैं। इसके इस्तेमाल से सामान्य तौर पर आसानी से दीवारों पर दाग-धब्बे नहीं लगते।
 -यदि साफ-सफाई के बावजूद दीवारों दाग नहीं हटते तो ऐसे में टच-अप का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में दाग लगे हिस्से की सफाई के बाद दुबारा उसी रंग का पेंट कर दिया जाता है।
 -खास बात यह है कि टच-अप करने के बाद जब पेंट पूरी तरह से सूख जाता है तो उसमें किसी तरह का दाग नहीं दिखाई देता। हां, यह संभव है कि नया पेंट कुछ अलग से दिखे, इसके लिए आप प्रोफेशनल पेंटर की सेवाएं ले सकते हैं।
 -यह भी संभव है कि दीवारों के साथ कुछ रंग फ्लोर पर भी गिरा हो और उसकी वजह से फ्लोर कुछ भद्दा दिखाई दे। इसकी सफाई के लिए आप बेकिंग सोडा और पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
 -बेकिंग सोडा और पानी को कुछ समय के लिए दाग के ऊपर रखकर छोड़ दें और बाद में उसे सूखे कपड़े से पोंछकर दाग हटा सकते हैं।
 -बेहतर होगा कि बेकिंग सोडा का इस्तेमाल सिर्फ फ्लोर की सफाई के लिए करें, दीवारों के रंगों पर इसके इस्तेमाल से पेंट का नुकसान पहुंच सकता है।
 -इन चीजों का अपनाकर आप एक बार फिर अपने घर की सज्जा और सजावट को उसी रंग में वापिस ला सकते हैं।






स्मार्ट महिला.. स्मार्ट खाता


डिजिटल दुनिया की जरूरत है कि स्मार्टली मैनेज हो आपकी बैंक डिपॉजिट। जानें कि कैसे एटीएम के इस्तेमाल से लेकर मोबाइल एलर्ट तक अब आपके साथ चौबीसों घंटे है ताकत अपने पैसे तक पहुंच और इस पर नियंत्रण की..
 दिनभर की भागमभाग वाली जिंदगी में लगी स्मार्ट महिलाओं को चाहिए एक स्मार्ट बैंक खाता, जो उनकी बैंकिंग जरूरतों को पूरा करने के साथ रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बना सके। इसके लिए बैंकों ने सदियों से चले आ रहे बचत खाता के स्वरूप को बदलकर रख दिया है। अब यह सिर्फ कम ब्याज देकर छोटी बचतों को सहेजने या बचत की आदत डालने वाला साधारण खाता नहीं रहा। बैंकों ने इसमें कई फीचर जोड़कर इसे काफी आकर्षक बना दिया है। इसी के जरिये वह आपसे संबंधों की शुरुआत करते है।
 एटीएम कार्ड मुफ्त में 
 खाते से पैसा निकालने के लिए आपको बैंक आना न पड़े इसके लिए अधिकांश बैंक एटीएम कार्ड खाता खुलने के साथ वेलकम किट में ही दे देते है। कई बैंकों के एटीएम में डेबिट कार्ड का फीचर रहता है इससे आप खरीददारी या उपयोग वाली सेवाओं के बिलों का भुगतान और रेलवे का आरक्षण भी करा सकती है या फिर किसी धार्मिक संस्था या मंदिर को दान देने के लिये भी उपयोग कर सकती है। इसके जरिये खरीददारी को प्रोत्साहित करने के लिए बैंक समय-समय पर कैशबैक ऑफर भी देते है। अब एटीएम कार्ड के जरिये दूसरे खाते में पैसा भी भेजा जा सकता है। कई बैंकों के एटीएम में आपस में तालमेल होता है। इससे आप दूसरे बैंक के एटीएम का उपयोग कर सकती है। अपने बैंक के एटीएम के उपयोग के लिए कोई शुल्क नहीं लगता। कई बैंकों ने कुछ शुल्क भी निर्धारित किया है। स्टेट बैंक ने एटीएम का सबसे बड़ा नेटवर्क स्थापित किया है। कई शहरों में उनके मोबाइल एटीएम भी कार्य कर रहे है। वैसे तो बैंक एटीएम कार्ड मुफ्त देते है, पर कई बैंक वार्षिक या रखरखाव शुल्क के नाम पर कुछ शुल्क पहले या दूसरे साल से लेने लगते है। यदि संयुक्त खाता है तो सभी खातेदारों को एटीएम कार्ड दिया जा सकता है।
 आया मल्टीसिटी चेक का जमाना 
 चूंकि अधिकांश बैंकों की शाखाएं अब आपस में नेटवर्क से जुड़ी रहती है इससे ग्राहक शाखा का न होकर बैंक का हो जाता है और वह दूसरे शहर की शाखाओं भी लेन-देन कर सकता है। इसके लिए बैंक सममूल्य भुगतान सुविधा वाली मल्टीसिटी चेक जारी करता है। कई बैंक तो इन चेकों के ऊपर ग्राहकों का नाम तथा खाता नंबर भी मुद्रित करा देते है। अधिकांश बैंक साधारण शुल्क पर कुछ बैंक उससे कुछ अधिक शुल्क पर इसे जारी करते है।
 सैलरी खाता है तो कई सुविधाएं 
 संस्था के कर्मचारियों का वेतन खाता खोलने वाले संस्थानों के कर्मचारियों को बैंक कई आकर्षक रियायतें और सहूलियतें प्रदान करते है। उनके खातों का वर्गीकरण उनके पद और वेतन के अनुरूप करके सुविधायें प्रदान करते है। इसमें प्रमुख है रिटेल लोन की प्रक्रिया शुल्क की कमी, मुफ्त चेक पर्ची, खाते से असीमित निकासी, एटीएम से अधिक निकासी की सुविधा एवं अधिक सुविधा वाले कार्ड जारी करना, चेक वापसी सुरक्षा या अल्पकालिक ओवरड्राफ्ट या ऋण की सुविधा प्रमुख है।
 आटो स्वीप के जरिए ज्यादा ब्याज 
 यदि आपके बचत खाते में ठीक-ठाक बैलेंस रहता है तो बेहतर है कि उस शाखा में खाता खोलें जहां आटो स्वीप की सुविधा उपलब्ध हो। इसमें महीने में आप द्वारा चुनी गई तिथि पर आप द्वारा निर्धारित राशि से अधिक राशि स्वत: आटो स्वीप के जरिये टर्म डिपाजिट में ट्रांसफर हो जाती है और आपको सावधि जमा का ऊंची दर पर ब्याज मिलने लगता है। यह अधिक ब्याज कमाने का अच्छा जरिया है। भुगतान लेते समय स्वत: टर्म डिपाजिट से राशि बचत खाते में अंतरित हो जाती है और आपका भुगतान हो जाता है।
 इंटरनेट बैंकिंग का मुकाबला नहीं 
 यदि आप टेक्नोसेवी है, आपकी पहुंच में इंटरनेट है तो आप इंटरनेट बैंकिंग के जरिये अपना लेन-देन कर सकती है। बैंक नेट के जरिये बैंकिंग को काफी प्रोत्साहन देते है। स्टेटमेंट छापना, खाते में धन ट्रांसफर करना, चेकबुक की मांग या ड्राफ्ट इत्यादि बनवाना इसकी कुछ मुख्य विशेषतायें है। इंटरनेट के जरिए टैक्स भुगतान को अब सरकार अनिवार्य करने जा रही है। बैंकें यह सेवा भी मुफ्त में प्रदान करती है।
 विशेष लोगों को विशेष रियायतें 
 संपन्न खाताधारकों को बैंक कई तरह की रियायतें जैसे लॉकर किराये में कमी, कुछ सीमा तक ड्राफ्ट, बैंकर्स चेक या धन का प्रेषण या चेकों का संग्रह, डिमेट खाते में छूट, बीमा जैसी सुविधायें प्रदान करते है। ऐसे लोगों के लिए और भी आकर्षक आफरों के साथ व्यक्तिगत सेवा प्रदान करने के लिए रिलेशनशिप मैनेजर भी नियुक्त कर रखे है।
 एसएमएस अलर्ट से अपडेट 
 यदि आपने अपने खाते को एसएमएस अलर्ट से जोडऩे के लिए बैंक में आवेदन कर रखा है तो आपके खाते में होने वाले किसी भी लेनदेन का मैसेज आपके मोबाइल पर आ जाता है। कुछ बैंक खाता खुलने के समय ही यह सुविधा स्वत: ग्राहकों को प्रदान कर देते है और कई बैंकों में आवेदन पत्र देकर या इंटरनेट बैंकिंग के जरिये यह सुविधा लेनी पड़ती है।
 मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा 
 कुछ बैंकों ने इसकी शुरुआत कर दी है। शुरुआत में बिलों का भुगतान या खाते में राशि अंतरित करने जैसे कार्य किये जा सकते है।
 दूसरे बैंकों में पैसा भेजना आसान आरटीजीएस यानी रियल टाइम ग्रास सेटलमेंट एवं एनईएफटी यानी नेशनल इलेक्ट्रानिक फंड ट्रांसफर किया जा सकता है। रिजर्व बैंक द्वारा प्रायोजित यह सुविधा अधिकांश बैंकों की नेटवर्क से जुड़ी शाखाओं में उपलब्ध है। इसके लिए आपके पास उस बैंक का आईएफएससी कोड हेना चाहिए जहां आप पैसा भेज रही है। आरटीजीएस में ऑनलाइन दो लाख रुपये से अधिक का फंड ट्रांसफर होता है, जबकि एनईएफटी में कोई सीमा निर्धारित नहीं है। ड्राफ्ट की तुलना में इसके जरिये पैसा भेजना काफी किफायती है और तत्काल पैसा ट्रांसफर होने से इसका उपयोग दूसरी ओर किया जा सकता है।