Tuesday, April 16, 2013
बड़े काम की है इंफ्लूएंजा वैक्सीन
बदलते मौसम में आंखों में तकलीफ शुरू हो जाती है। यह आमतौर पर आई फ्लू की वजह से होता है। लेकिन थोड़ी जानकारी की सहायता से आप इससे बच सकते हैं।
आप फ्लू शॉट या इंफ्लूएंजा वैक्सीन लेने की सोच रहे हैं? तो समय आ गया कि आप फ्लू वैक्सीन का टीका लगवा लें। फ्लू होने की शुरुआत अक्सर मौसम परिवर्तन से शुरू होती है। इंफ्लूएंजा वैक्सीन को फ्लू की रोकथाम में कारगर उपाय माना गया है। एक अमेरिकी संस्था सीडीसी (सेंटर्स फॉर डिसिजेज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) सलाह देता है कि 6 महीने को बच्चा हो या 60 साल का बुजुर्ग, सभी के लिए यह वैक्सीन बहुत आवश्यक है।
फ्लू शॉट क्या है?
फ्लू शॉट एक प्रकार का निष्क्रिय टीका है। इसमें विषाणुओं को खत्म करने के गुण होते हैं। अक्सर इस दवा को सुई की सहायता से बांहों में दिया जाता है। फ्लू शॉट तीन प्रकार के इंफ्लूएंजा वायरस से हमारा बचाव करता है।
वैक्सीन का काम
फ्लू वैक्सीन हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। जब विषाणु किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं, जिसने पहले से ही फ्लू शॉट दवा ली हुई है तो रोग प्रतिकारक इन विषाणुओं पर हमला करते हैं और उन्हें मारते हैं। इससे हमारा बचाव होता है।
फ्लू शॉट के प्रकार
फ्लू शॉट तीन प्रकार के होते हैं:
रेगुलर फ्लू शॉट: इसे 6 महीने या उससे अधिक उम्र के बच्चों, स्वस्थ लोगों, गर्भवती महिलाओं के लिए उपयोगी माना गया है।
हाई डोज वैक्सीन: यह 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद है।
इंट्राडरमल वैक्सीन: यह 18 से 64 वर्ष की आयु वालों के लिए उपयोगी है।
किसके लिए है जरुरी
चाहे उम्र 6 महीने की हो या 60 साल की, फ्लू शॉट सभी के लिए आवश्यक है।
जिन्हें निमोनिया होने की आशंका अधिक होती है
जो लोग अस्थमा से पीडित हैं
मधुमेह से पीडित व्यक्ति
फेफड़ों में परेशानी से पीडित रोगी
गर्भवती महिलाएं
65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग
यह वैक्सीन न लें अगर
अंडों से एलर्जी है
फ्लू शॉट से एलर्जी है
6 माह से कम उम्र के बच्चे
बुखार से पीडित व्यक्ति को यह वैक्सीन नहीं लेना चाहिए।
फ्लू से बचने के उपाय
फ्लू से बचने के लिए वैसे तो इंफ्लूएंजा वैक्सीन लेना ही बेहतरीन उपाय है, लेकिन कुछ आवश्यक बातों को ध्यान में रखने पर भी आप फ्लू से बचे रह सकते हैं।जब भी आप खांसते या छीकते हैं तो अपनी नाक और मुंह को किसी कपड़े की सहायता से ढक लें
अपने हाथों को साबुन और पानी की सहायता से अच्छी तरह साफ करें
अपने आंख, नाक, मुंह को बार-बार छूने से बचें। इस तरह से कीटाणु फैलते हैं
बीमार लोगों के कपड़ों के संपर्क में आने से बचें
यदि आप फ्लू के कारण बीमार हैं तो करीब 24 घंटे तक घर से बाहर न निकलें
संतुलित भोजन, व्यायाम और सही नींद भी फ्लू की रोकथाम में महत्वपूर्ण भमिका अदा करते हैं
तो कंप्यूटर से आंखें रहेंगी सुरक्षित
लगातार कंप्यूटर पर काम करने से कई बार सिरदर्द की समस्या सामने आती है। इसके साथ और भी मुश्किलें हो सकती हैं।
आप लंबे समय तक कम्प्यूटर पर काम करते हैं और अक्सर सिरदर्द, कमर या फिर गरदन दर्द से परेशान हो जाते हैं? कहीं फेसबुक की 'लतÓ के चलते आपकी आंखों में आंसू और लाली की समस्या तो नहीं रहती? यदि हां, तो सावधान हो जाएं! यह सब एक बड़ी समस्या का एक छोटा हिस्सा भर है! गलत पोस्चर और अत्यधिक कम्प्यूटर इस्तेमाल करने की वजह से होने वाली ये समस्याएं आपके शरीर को इतना नुकसान पहुंचा सकती हैं कि आप इसकी भरपाई भी नहीं कर पाएंगे।
गलत पोस्चर है घातक
देर तक, गलत पोस्चर में काम करने और लगातार की-बोर्ड पर अंगुलियां चलाने से आपकी आंखों पर बहुत तनाव पड़ता है। इससे नर्व और हड्डी से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं। शारीरिक गतिविधियों से तरल पदार्थों का प्रवाह बना रहता है और कार्टिलेज स्वस्थ रहते हैं और हड्डियां तंदुरुस्त। गलत पोस्चर में हर दिन 4 घंटे से अधिक बैठने से जोड़े उत्तरोत्तर क्षतिग्रस्त होते हैं - परिणामत: घुटनों, कूल्हों और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचता है।
देर तक कम्प्यूटर पर काम करने से लिगामेंट में सूजन की समस्या हो सकती है और शरीर के नर्म ऊतक भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। लोगों में बार-बार एक ही काम करने की संवेदना अलग-अलग हो सकती है, पर इससे हर किसी में अक्षमता पैदा हो सकती है।
कम्प्यूटर के देर तक इस्तेमाल करने की वजह से एक बड़ी समस्या 'रिपीटिटिव स्ट्रेन इंजरीÓ है। गलत तरीके से बार-बार एक ही काम करने से संबंधित अंग में तनाव पैदा होता है, जैसे अत्यधिक की-बोर्ड के इस्तेमाल से कलाई का दर्द।
सतर्कता है जरूरी
कम्प्यूटर संबंधी बीमारियों की रोकथाम या उससे मुक्ति पाने के लिए सबसे अच्छा उपाय लोगों को कम्प्यूटर के इस्तेमाल के बारे में जागरूक बनाना है। मॉनिटर और की-बोर्ड को सही स्थिति में रखना और अपना पोस्चर सही रखना। यह स्थिति काफी लाभदायक है। इससे मांसपेशी के सूजन की समस्या कम हो सकती है।
डेस्कटॉप है बेहतर
डेस्कटॉप का उपयोग लैपटॉप के मुकाबले कम खतरनाक है। लैपटॉप में स्क्रीन और की-बोर्ड जुड़े होने से शरीर का पोस्चर अपने-आप बिगड़ जाता है, जिससे कमर दर्द रहता है। डेस्कटॉप पर काम करते वक्त कलाई को सीधे रखें और कोहनी को करीब 90 डिग्री पर रखना चाहिए।
गर्दन और कंधे के दर्द से बचे रहेंगे
मॉनिटर, माउस और वह पेपर डाक्युमेंट, जिससे आप कॉपी कर रहे हैं, यदि सही स्थिति में रहें तो गरदन और कंधे के दर्द या अकडऩ में कमी आ सकती है। टाइप करते वक्त कंधे और कान के बीच फोन दबा कर बात करने से भी गरदन और कंधे का दर्द बढ़ता है।
फर्नीचर का डिजाइन अनुरूप होना जरूरी है। कुर्सी का पिछला हिस्सा कंधे की ऊंचाई तक हो। साथ ही, कुर्सी की ऊंचाई बढ़ाने की सुविधा हो। गलत कुर्सी की वजह से भी पोस्चर गलत होता है और आप कुर्सी में धंस कर बैठते हैं, जिससे रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है।
कैसी हो आपकी कुर्सी
आपकी कुर्सी इतनी ऊंची हो कि आप पैर को फर्श पर रखें तो आपके घुटने 90 डिग्री के एंगल पर हों। ध्यान रहे, टाइपिंग के वक्त आपकी बांहें भी 90 डिग्री की एंगल बनाएं। कमर को टिकाते वक्त यह एंगल 20 डिग्री अधिक हो, यानी आपकी कमर कुछ पीछे की ओर 110 डिग्री के एंगल पर हो।
लगातार ज्यादा देर काम न करें
देर तक कम्प्यूटर पर काम करने की आदत हो तो आंखों पर जोर पड़ता है। आंखों में थकान होती है और इससे कई बार धुंधला दिखाई देने की समस्या सामने आती है। इन लक्षणों को इक_े कम्प्यूटर विजन सिण्ड्रोम कहते हैं। इससे बचने के कुछ आसान उपाय हैं।
मॉनिटर पर लगातार न देखें
एकटक स्क्रीन को देखने से आंखों की नमी पर बुरा प्रभाव पडम्ता है। आंखों की नमी बनाए रखने हेतु बार-बार पलक झपकाना जरूरी है। आप हर एक घंटे पर अपनी आंखों को 5-10 मिनट तक मूंद कर रखें, ताकि आंसू की परत फिर से तैयार हो जाए।
मॉनिटर की चमक कम करने से भी विजन सिण्ड्रोम से परेशान लोगों को राहत मिल सकती है। कम्प्यूटर से बिल्कुल सट कर नहीं बैठें। काम करते वक्त तन कर बैठें। कम्प्यूटर के स्क्रीन का बैकग्राउण्ड हल्के रंग का रखें। हर आधे घंटे पर दस सेकेंड हेतु स्क्रीन से नजर हटा लेना भी बहुत लाभदायक है।
रसोई यानी पूरा दवाखाना, दर्द भगाए चुटकी में
पेट दर्द
सबसे आम बीमारियों में से एक है- पेट दर्द। पेट दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार हैं-
एक चम्मच पुदीने के रस और नींबू रस के मिश्रण में कुछ बूंद अदरक का रस और चुटकी भर काला नमक मिला कर पीने से आराम मिलेगा।
एक चम्मच शुद्ध घी में हींग मिला कर पीने से आराम मिलता है।
थोड़े-से पानी के साथ दो ग्राम हींग पीस कर पेस्ट बनाए। नाभि और उसके आसपास पेट पर यह पेस्ट लगाने से दर्द में राहत मिलती है। अदरक रस की मालिश से भी फायदा होता है।
अजवायन तवे पर सेंक कर पिसे हुए काले नमक के साथ मिलाएं। गर्म पानी के साथ पीने से पेट का दर्द दूर होता है।
दो-तीन ग्राम जीरे को तवे पर सेंक लें और चबा कर खाएं या गर्म पानी के साथ पिएं।
एक-एक चम्मच पुदीने और नींबू के रस में आधा चम्मच अदरक का रस और थोड़ा-सा काला नमक मिला कर पीने से आराम मिलेगा।
सूखी अदरक मुंह में रख कर चूसने से भी पेट दर्द में राहत मिलती है।
एसिडिटी से होने वाले पेट दर्द में पानी में थोड़ा-सा मीठा सोडा मिला कर पीने से फायदा होता है।
जीरा, काली मिर्च, सोंठ, लहसुन, धनिया, हींग, सूखा पुदीना बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाएं। इसमें काला नमक मिलाकर एक चम्मच गर्म पानी के साथ पिएं, आराम मिलेगा।
एक चम्मच देसी घी में हरी धनिया का रस मिला कर पीने से पेट की व्याधि दूर होती है।
2 चम्मच मेथी दाना में नमक मिला कर गर्म पानी के साथ पीना फायदेमंद है।
सेंधा नमक में एक-दो ग्राम अजवाइन की सूखी और पिसी पत्तियां खाने से पेट दर्द में राहत मिलती है।
माइग्रेन या सिर दर्द
चार से 72 घंटे तक स्थायी रूप से होने वाले सिर दर्द को माइग्रेन नाम दिया गया है। चिंता, तनाव, भोजन या नींद की कमी, थकान, मासिक धर्म, हार्मोनल परिवर्तन इसकी मुख्य वजहें हैं। इससे राहत पाने के लिए ये उपाय अपनाएं-
सिर दर्द होने पर बिस्तर पर लेट कर दर्द वाले हिस्से को बेड के नीचे लटकाएं। सिर के जिस हिस्से में दर्द हो, उस तरफ वाली नाक में सरसों के तेल की कुछ बूंदें डालें, फिर जोर से सांस ऊपर की ओर खीचें। इससे सिर दर्द में राहत मिलेगी।
दालचीनी को पानी के साथ बारीक पीस कर माथे पर लेप लगाएं। सूखने पर हटा लें।
कपूर को घी में मिला कर सिर पर हल्के हाथों से मालिश करने से आराम मिलता है।
नींबू के छिलके पीस कर उसके लेप को माथे पर लगाने से आराम मिलता है।
10-10 ग्राम पीपल, सोंठ, गुलहठी और सौंफ मिला कर बारीक पीसें। इस चूर्ण में एक चम्मच पानी मिला कर गाढ़ा लेप बनाएं और माथे पर लगाएं। दर्द से राहत मिलेगी।
10-20 ग्राम तुलसी के पत्ते चबाने से या एक कप पानी में काढ़ा बना कर पीने से फायदा होगा।
अंगूर के रस का सेवन माइग्रेन के इलाज में सहायक होता है।
गाजर, चुकंदर, पालक, खीरे के रस का सेवन प्रभावी होता है।
बादाम तेल से मालिश करने से आराम मिलेगा।
दांत दर्द
वर्तमान जीवनशैली तनाव और गलत खाने की आदतों से भरी है, जिसमें दांत दर्द एक आम समस्या है। दांत दर्द की अक्सर महिलाएं शिकार होती हैं। इसके पीछे दांत क्षय, दांत संक्रमण, चीनी की अत्यधिक खपत प्रमुख कारण हैं। दांत दर्द के इलाज के लिए कुछ प्रभावी घरेलू उपचार हैं-
नींबू के रस में दो-तीन लौंग पीस लें। तैयार मिश्रण को दांत पर लगाएं। लौंग का तेल दर्द वाले दांत और मसूढ़े पर लगाने से आराम मिलता है।
चुटकी भर हींग में मौसमी या नींबू का रस मिलाएं। रुई के छोटे-से फाहे को भिगो कर दर्द वाले दांत के पास रखने से आराम मिलता है।
कच्चे प्याज के टुकड़े को कम से कम 3 मिनट चबाने से आराम मिलता है।
लहसुन की 2-3 कलियां कच्ची चबाएं।
नमक और काली मिर्च के एक-चौथाई चम्मच मिश्रण में कुछ बूंद पानी मिला कर लगाना फायदेमंद होता है।
पालक या अमरूद की पत्तियां 15-20 मिनट चबाने से आराम मिलता है।
नमक वाले पानी में कुछ बूंदे सिरका या 2-3 ग्राम बेकिंग सोडा मिला कर कुल्ला करना प्रभावकारी है।
दांत दर्द में वनिला की 3-4 बूंदे दांत पर डालने से राहत मिलती है।
आलू के टूकड़े काट कर दर्द वाले दांत के पास 15 मिनट रखने से फायदा होता है।
इस्तेमाल किया हुआ टी-बैग दांत पर रखने से राहत मिलती है।
अजवायन की पत्ती का तेल लगाने से दर्द में राहत मिलती है।
सरसों के 2-3 बूंद तेल में चुटकी भर नमक मिला कर दांत और जबड़ों की मालिश करने से लाभ होता है।
फ्रोजेन शोल्डर: सही खान-पान और व्यायाम है जरूरी
फ्रोजेन शोल्डर या कंघे में अकडऩ आज एक आम समस्या बनती जा रही है। आपाधापी वाली वर्तमान जीवनशैली भी इस तकलीफ का एक प्रमुख कारण है। हालांकि जीवनशैली में बदलाव लाकर और कुछ एहतियाती उपाय अपना कर इस पीड़ादायी समस्या से बचा जा सकता है।
फ्रोजेन शोल्डर या कंधे में अकडऩ की तकलीफ आज आम हो गई है। अगर किसी व्यक्ति के कंधे अकड़ जाते हैं, सही तरह से काम नहीं करते, किसी भी काम को करने में या सामान को उठाने में रोगी को कंधे में बहुत तेज दर्द होता है तो वह फ्रोजेन शोल्डर नामक बीमारी हो सकती है।
इसके कई कारण हो सकते हैं
फ्रोजेन शोल्डर कई कारणों से हो सकता है। तमाम सर्वे के मुताबिक फ्रोजेन शोल्डर वर्किंग क्लास और कंप्यूटर का इस्तेमाल करने वाले लोगों में अधिक पाया जाता है। इसकी वजह काफी समय तक कंधे एक ही स्थिति में रखना, बहुत देर तक एक ही कंधे पर अधिक भार उठाए रखना, कंधे से बहुत ज्यादा काम न लेना, हड्डियों का कमजोर होना आदि हैं। कई बार फ्रोजेन शोल्डर की समस्या कंधे को किसी तरह का आघात और चोट लगने पर भी होने लगती है।
फ्रोजेन शोल्डर के लक्षण
फ्रोजेन शोल्डर के दौरान कंधा बिल्कुल सूज जाता है और अकडऩ के कारण कठोर हो जाता है जिससे हाथ हिलाना बहुत मुश्किल होता है और हिलाने पर तीव्र दर्द होने लगता है।
कंधे को किसी भी दिशा में मोडऩे में रोगी को बहुत दिक्कत होती है।
कंधे का दर्द रोगी की गर्दन और उसके ऊपर के भाग में फैल जाता है।
हाथ की काम करने की गति बहुत धीमी हो जाती है और रात के समय दर्द अधिक परेशान करने लगता है। छोटे-छोटे काम जैसा कंघी करना, बटन बंद करना आदि भी मुश्किल हो जाता है।
हाथ को पीछे की ओर करना होता है तो कंधे में बहुत तेज दर्द होता है।
कई बार फ्रोजन शोल्डर के तहत बहुत ज्यादा सूजन और अचानक तेज दर्द शुरू हो जाता है और कंधे में ऐंठन होने लगती है, जो कई मिनटों या फिर घंटों तक भी रह सकती है। यह समय कई महीनों या सालों तक भी हो सकता है।
फ्रोजेन शोल्डर की आशंकाएं
फ्रोजेन शोल्डर के कारण कई और समस्याएं, जैसे- अवसाद, गर्दन और पीठ दर्द, थकान, काम करने में असमर्थता इत्यादि समस्याएं भी हो सकती हैं। फ्रोजेन शोल्डर से रोगी को मधुमेह, दौरा पडऩा, फेफड़ों का रोग, संयोजी ऊतक विकार और हृदय रोग अधिक होने का डर रहता है। यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक पाई जाती है और 40 साल से कम उम्र के लोगों में अधिक देखने को मिलती है।
क्या है इलाज
फ्रोजेन शोल्डर का इलाज संभव है। इसमें शारीरिक चिकित्सा, औषधि, मालिश चिकित्सा, शल्य-चिकित्सा इत्यादि की जाती है। जो लोग इससे पीडित हैं, उन्हें कई महीनों या अधिक लंबे समय तक काम करने एवं जीवन की सामान्य गतिविधियां करने में अत्यधिक कठिनाई होने की आशंका रहती है।
सावधानी और रोकथाम
इस दौरान कंधों का हल्का-फुल्काव्यायाम बेहद जरूरी है।
खान-पान का खास ध्यान रखें और ताजा फल-सब्जियां, जूस और पौष्टिक आहार का सेवन जरूरी है।
गर्म पानी से सिंकाई करनी चाहिए।
प्रतिदिन मालिश करना भी बेहतर उपाय है।
रात के समय में कम से कम एक घंटे तक ठंडा लेप कंधे पर करना चाहिए।
फ्रोजेन शोल्डर में यह जरूरी है कि कंधे के दर्द को कम किया जाए और कंधे में मूवमेंट लाई जाए।
थैलीसीमिया: जागरूकता ही बचाव है
थैलीसीमिया एक अनुवांशिक रोग है। जागरूकता के अभाव के कारण पूरी दुनिया में इस रोग से पीडित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कम गंभीर मामलों में सही उपचार अपना कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है। इसके लिए इसके प्रति जागरूक बहुत जरूरी है। यह रोग क्या है, इसका इलाज क्या है और कैसे इससे अपने बच्चों को बचाया जा सकता है, बता रही हैं शमीम खान
थैलीसीमिया एक रक्त संबंधी विकार है। इसमें हीमोग्लोबिन, जो शरीर में ऑक्सीजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है, में खराबी आ जाती है। इसके कारण लाल रक्त कणिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे गंभीर एनीमिया हो जाता है। हमारे देश में थैलीसीमिया के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भारत में करीब 6 करोड़ लोग थैलेसीमिया माइनर से पीडित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर वर्ष 7-10 हजार थैलीसीमिया से ग्रस्त बच्चों का जन्म होता है।
क्या होता है थैलीसीमिया
यह अनुवांशिक रोग है, जो बच्चों को माता-पिता से विरासत में मिलता है। थैलीसीमिया के दो प्रकार होते हैं:
थैलीसीमिया मेजर
थैलीसीमिया माइनर
थैलीसीमिया माइनर तब होता है, जब बच्चे को क्षतिग्रस्त जीन एक ही पैरेंट यानी माता या पिता में से किसी एक से मिलता है। लेकिन जब माता और पिता दोनों से ही उसे क्षतिग्रस्त जीन मिलेंगे तो मेजर थैलीसीमिया की पूरी आशंका होती है। यदि माता-पिता दोनों सामान्य हैं तो उनके बच्चे थैलीसीमिया से पीडित नहीं होंगे। माता-पिता में से किसी एक को यदि माइनर थैलीसीमिया है तो बच्चों को यह हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। यदि माता-पिता दोनों को माइनर थैलीसीमिया हो तो बच्चे को थैलीसीमिया होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसमें 25 प्रतिशत बच्चे सामान्य हो सकते हैं, 50 प्रतिशत को माइनर थैलीसिमिया व 25 प्रतिशत को मेजर थैलीसीमिया होने की आशंका अधिक होती है।,
लक्षण
थैलीसीमिया मेजर के सबसे गंभीर रूप में मृत बच्चे का जन्म हो सकता है या गर्भावस्था के आखिरी समय में बच्चे की मृत्यु हो जाती है।
बच्चे जो थैलीसीमिया मेजर (कूले एनीमिया) के साथ जन्म लेते हैं, वे जन्म के समय सामान्य होते हैं, लेकिन जन्म के पहले वर्ष में उन्हें गंभीर एनीमिया हो जाता है।
अन्य लक्षण
चेहरे की हड्डियां का विकृत होना।
थकान।
असामान्य विकास।
त्वचा का पीला हो जाना (पीलिया)।
चेहरा सूख जाना और मुरझाया हुआ लगना।
लगातार कमजोरी और बीमारी की स्थिति बनी रहना, वजन नहीं बढम्ना।
उपचार
थैलीसीमिया मेजर के उपचार में नियमित अंतराल पर रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। जो लोग रक्ताधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) ले रहे हैं, वे आयरन के सप्लीमेंट न लें, क्योंकि ऐसा करने से रक्त में आयरन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। इससे हृदय, लीवर और एंडोक्राइन सिस्टम क्षतिग्रस्त हो जाता है।
शरीर में आयरन का स्तर बढ़ जाने पर चिलेशन थेरेपी की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें अतिरिक्त आयरन को शरीर से बाहर निकाला जाता है। बच्चों में इस रोग के उपचार के लिए अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन) सबसे कारगर होता है, जो सगे भाई या बहन द्वारा दिया जा सकता है।
बचाव
गंभीर थैलीसीमिया में 20 से 30 साल की उम्र में ही हार्ट फेल होने से मृत्यु हो जाती है। थैलीसीमिया के कम गंभीर रूप में आयु कम नहीं होती है। नियमित रूप से रक्त चढ़ाने और चिलेशन थेरेपी से सामान्य जीवन जीने में मदद मिलती है। सबसे कारगर उपाय है कि शादी से पहले लड़का-लड़की अपना चेकअप करा लें। थैलीसीमिया से पीडित दो लोगों को कभी आपस में शादी नहीं करनी चाहिए।
संभव है थैलीसीमिया की रोकथाम
गर्भवती महिला को गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में ही थैलीसीमिया की जांच करा लेनी चाहिए और अगर वह थैलीसीमिया की कैरियर है, तब पति की भी जांच करानी चाहिए। अगर दोनों पॉजीटिव हैं, तब एंटी-नेटल डायग्नोसिस कराना चाहिए कि कहीं बच्चे को थैलीसीमिया होने का खतरा तो नहीं है। अगर बच्चा इससे पीडित है तो गर्भपात करा लेना चाहिए। अगर थैलीसीमिया से पीडित दो लोग शादी कर लेते हैं तो जन्म लेने वाले बच्चे के थैलीसीमिया मेजर से पीडित होने का खतरा 25 प्रतिशत बढ़ जाता है। इसका इलाज बहुत मंहगा है, क्योंकि पूरे जीवन भर उसे रक्ताधान कराना होता है। लगातार रक्ताधान और आयरन की मात्रा बढऩे से जीवन पर खतरा और बढ़ जाता है।
प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस क्या है?
प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस एक प्रभावकारी तकनीक है, जिससे जैविक विकारों को माता-पिता से बच्चों में स्थानांतरित होने से रोका जा सकता है। इस डायग्नोसिस में मां को स्टीम्युलेशन देकर अंडे प्रोडय़ूस कराए जाते हैं, जिन्हें इक_ा कर निषेचित कराया जाता है। फिर इन भ्रूणों को विभिन्न बीमारियों के लिए टेस्ट किया जाता है (जैसे- थैलीसीमिया, डाउन सिंड्रोम इत्यादि) और केवल सामान्य भ्रूणों को गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।
इस तरह से जन्म लेने वाला बच्चा सामान्य होता है। यह बच्चा थैलीसीमिया से पीडित भाई-बहन के लिए स्टेम सेल डोनर का काम कर सकता है। अगर पुरुष साथी को थैलीसीमिया है तो प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस कराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इस मामले में बच्चा थैलीसीमिया माइनर होगा।
यह महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे गर्भावस्था के दौरान थैलीसीमिया टेस्ट कराएं, ताकि बच्चे में इस रोग के स्थानांतरित होने से रोका जा सके। इससे ऐसे बच्चे को मुश्किलों से भरी जिंदगी जीने से मुक्ति मिलेगी।
सरल नाड़ीशोधन प्राणायाम बनाए नाड़ी को मजबूत
नाडियां कमजोर हों तो अनेक बीमारियां परेशान कर सकती हैं। थकावट, कमजोरी, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओं के लिए नाड़ी दुर्बलता काफी हद तक जिम्मेदार होती है। कुछ आसन और प्रायाणम आपकी नाडियों को मजबूती दे सकते हैं।
आज की इस भागदौड़, तनावग्रस्त तथा आरामतलब जिन्दगी में नाड़ी दुर्बलता जैसी बीमारियां बहुत लोगों को अपनी चपेट में ले रही हैं। थकावट, कमजोरी, चिड़चिड़ापन, हताशा, निराशा, भय, असुरक्षा तथा किसी काम में मन न लगने आदि जैसी समस्याएं इसका प्रमुख लक्षण हैं। आज अधिकांश लोग इस समस्या से पीडित हैं। वस्तुत: यह समस्या मनोकायिक है, जिसका योग के अतिरिक्त कहीं अन्यत्र स्थायी समाधान नहीं है। इस समस्या के निदान हेतु यहां बताई गई यौगिक क्रियाएं बहुत लाभदायक हैं-
आसन
नाड़ी दुर्बलता की समस्या को दूर करने के लिए सर्वागासन तथा शीर्षासन बहुत प्रभावकारी हैं। किन्तु प्रारम्भ में अन्य सरल आसनों जैसे-सूर्य नमस्कार, जानु शिरासन, पश्चिमोत्तानासन, मेरुवक्रासन, राजकपोतासन, उष्ट्रासन तथा उत्तानासन आदि में दक्षता प्राप्त कर ही सिर के बल खड़े होने वाले आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
उष्ट्रासन की अभ्यास विधि
घुटने के बल जमीन पर खड़े हो जाएं। दोनों घुटनों के मध्य आपस में एक फुट तथा दोनों पंजों के बीच भी एक से डेढ़ फुट का अंतर रखें। अब दाएं हाथ को पीछे ले जाकर दाएं पैर की एड़ी पर रखं। इसी प्रकार बाएं हाथ को बाएं पैर की एड़ी पर रखें। नितम्ब तथा कमर को आगे की ओर इस प्रकार धकेलें कि रीढ़ की आकृति ऊंट की रीढ़ जैसी बन जाए। इस स्थिति में श्वास-सामान्य रखते हुए आरामदायक स्थिति तक रुकें। इसके पश्चात वापस पूर्व स्थिति में आएं।
प्राणायाम
नसों-नाडियों को सशक्त करने हेतु सरल कपालभाति, नाड़ी शोधन तथा उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। यदि नियमित रूप से नाड़ीशोधन का अभ्यास किया जाए तो उस समस्या को बहुत कम समय में जड़ से हटाया जा सकता है।
सरल नाड़ी शोधन की अभ्यास विधि
ध्यान के किसी आसन जैसे-पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। दाएं हाथ के अंगूठे से दांयी नासिका को बन्द कर बायीं नासिका से एक गहरी तथा धीमी श्वास अन्दर लें। अब बायीं नासिका को बंद कर दायीं नसिका से एक गहरी तथा धीमी श्वास बाहर निकालें। पुन: दायीं नासिका से श्वास अन्दर कर बायीं नासिका से श्वास बाहर निकालें। यह नाड़ी शोधन प्राणायाम की एक आवृत्ति है। प्रारंभ में इसकी 12 आवृतियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे इसकी आवृति अपनी क्षमतानुसार बढ़ाते जाना चाहिए।
आहार
सुपाच्य तथा संतुलित भोजन खूब चबा-चबाकर खायें। दूध, दही, म_ा, लस्सी, अंगूर, संतरे तथा मौसमी का रस पियें। हरी सब्जियों तथा सलाद पर्याप्त मात्रा में लें।
हमेशा सलामत रहेंगे आपके बाल
पूरे व्यक्तित्व की खूबसूरती में बालों की काफी भागीदारी होती है। बाल खूबसूरत हैं, चेहरे के अनुकूल कटे हैं तो व्यक्तित्व निखर जाता है।
उम्र के साथ बाल में कई परिवर्तन आते हैं। खासकर 45 की उम्र के बाद बाल सफेद होना, घनापन कम होना, बाल पतला होना, बाल गिरना आदि सामान्य बात है। जब ये सारी समस्याएं 20 से 30 वर्ष की उम्र में ही सामने आने लगें तो किसी भी व्यक्ति के लिए चिंतित हो उठना स्वाभाविक है।
गंजेपन की समस्या
सिर से जब सामान्य से ज्यादा बाल गिरने लगें और एक समय बाद बाल साफ ही हो जाएं तो इसे 'गंजापनÓ कहते हैं। लक्षण के आधार पर गंजेपन को कई नामों से जानते हैं। पुरुषों में आमतौर पर होने वाले सामान्य गंजेपन को 'एंड्रोजेनेटिक एलोपीसियाÓ कहते हैं। महिलाओं में आगे के बालों का उडऩा 'फीमेल पैटर्न बाल्डनेसÓ कहलाता है। जब बाल गोलाकार में झड़ते हैं तो उसे 'एलोपीसिया एरेटाÓ कहते हैं। कई बार बाल कसकर बांधने से भी निकल आते हैं, इसे ट्रैक्शन एलोपीसिया कहते हैं। शरीर में आयरन और पोषक तत्वों की कमी की वजह से या अत्यधिक दवाओं का सेवन करने की वजह से भी बाल गिरने लगते हैं।
क्या हो सकते हैं कारण
बाल गिरने या गंजेपन के कई कारण हो सकते हैं। कुछ लोगों में गंजापन अनुवांशिक आ जाता है तो कुछ लोग संक्रमण के शिकार हो जाते हैं। बालों पर अत्यधिक रसायन का इस्तेमाल भी कभी-कभी गंजेपन का कारण बनता है। इसके अलावा हार्मोनल बदलाव व शरीर में पोषक तत्वों की कमी भी इसकी वजह हो सकती है।
अनुवांशिक: घर में पहले भी किसी को गंजेपन की शिकायत रही है या एक उम्र के बाद दादा, पिता या घर के दूसरे पुरुषों में गंजापन आ जाता है तो आपमें भी गंजापन आ सकता है।
संक्रमण: सिर में फंगल संक्रमण की वजह से भी बाल उडऩे लगते हैं। लेकिन यह अनुवांशिक गंजेपन से अलग होता है। संक्रमण की वजह से जगह-जगह से काफी संख्या में बाल निकलने लगते हैं। इलाज के बाद इसे ठीक किया जा सकता है।
रसायनों का इस्तेमाल: फैशन के साथ कदमताल करने की फिराक में कई लोग अपने बालों के साथ बार-बार प्रयोग करते हैं। बाल सीधे करने या घुंघराले करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन बाल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। बाल पर अत्यधिक रसायन का इस्तेमाल उनके गिरने का कारण बन जाता है।
हार्मोन में बदलाव: शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव भी गंजेपन का कारण बन सकते हैं। महिलाओं में एंड्रोजेन की मात्रा बढ़ जाए तो उनमें भी गंजापन देखने को मिल सकता है। हाइपरथायरॉयड व हाइपोथॉयरॉयड की स्थिति में भी गंजापन हो सकता है।
पोषक तत्वों की कमी या अधिकता:
शरीर में महत्वपूर्ण पोषक तत्व जैसे आयरन और प्रोटीन की कमी के कारण भी गंजापन हो सकता है। अत्यधिक कमजोरी की वजह से भी गंजापन आता है। डॉक्टरों के मुताबिक शरीर में विटामिन ए की अत्यधिक मात्रा की वजह से भी बाल गिरने लगते हैं और गंजापन आ जाता है।
दवाएं: कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव से भी गंजापन आता है। कीमोथेरेपी, एनाबोलिक स्टेरॉयड, गर्भ निरोधक दवाओं की वजह से भी गंजापन होता है।
बाल ऐसे रहेंगे स्वस्थ और घने
खानपान पर ध्यान दें
बालों की सेहत सुधारने में शाकाहारी भोजन ज्यादा मदद करते हैं। खासकर हरी सब्जियां बालों को जड़ से मजबूत करती हैं और उनकी मोटाई भी बढ़ाती हैं। किसी को भी यदि बाल गिरने की समस्या है तो उसे अपनी डायट में सबसे पहले बदलाव करना चाहिए। बाहरी चीजों जैसे कि फास्टफूड और तली-भूनी चीजों की जगह अपनी डायट में हरी सब्जियों को शामिल करना चाहिए। हरी सब्जियां, सोया, मशरूम, पनीर आदि में विटामिन एच की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो कि हमारे बालों के लिए वरदान है।
शैम्पू का इस्तेमाल
बाजार में आने वाला हर नया ब्रांड अच्छा ही होगा, यह कहना मुश्किल है। इसलिए किसी भी शैम्पू पर आंख मूंद कर भरोसा न करें। बेहतर होगा कि माइल्ड शैम्पू का चुनाव किया जाए। आमतौर पर लोगों के दिमाग में यह धारणा बनी हुई है कि शैम्पू में बार-बार बदलाव नहीं किया जाना चाहिए, जबकि डॉक्टर किसी भी शैम्पू को लगातार तीन महीने से ज्यादा इस्तेमाल करने की सलाह नहीं देते। यदि आप सप्ताह में तीन बार शैम्पू करते हैं तो दो बार एक शैम्पू से बाल धोएं, जबकि तीसरी बार के लिए शैम्पू बदल दें। इसके अलावा हर तीन महीने पर अपना शैम्पू बदल देना चाहिए, क्योंकि एक समय के बाद त्वचा उसकी आदी हो जाती है और नई तरह की समस्या आने लगती है।
स्वास्थ्य जांच कराएं
मधुमेह के रोगियों को फंगल संक्रमण का डर बना रहता है। संक्रमण की शुरुआत में ही डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि संक्रमण का जितनी जल्दी इलाज होगा, उतना ही कम नुकसान होगा। बाल ज्यादा गिरने या फंगल संक्रमण की स्थिति में लोग डॉक्टर के पास जाने की बजाय पार्लर जाते हैं। ये गलत है। इससे आपकी समस्या और गंभीर हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति को अचानक फंगल इंफेक्शन हो जाए तो उसे सबसे पहले अपने मधुमेह के स्तर की जांच करानी चाहिए।
बालों के साथ ज्यादा छेड़छाड़ ठीक नहीं
युवाओं में यह ज्यादा देखा जाता है। बालों को रंगना, रसायन का इस्तेमाल करना, बालों की बार-बार स्ट्रेटनिंग कराना, घर में ड्रायर का हर दिन इस्तेमाल आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो बालों को नुकसान पहुंचाते हैं। बालों पर अत्यधिक स्टाइलिंग और रसायन का इस्तेमाल इन्हें कमजोर बना देता है और नतीजा कमजोर और पतले बालों के रूप में सामने आता है।
चर्म रोग, मधुमेह में फायदेमंद मिट्टी चिकित्सा
मिट्टी कीटाणुनाशक है। यह हमारे शरीर के विषों, विकारों को निकाल बाहर करती है। इस कारण इसे बेहतरीन औषधि कहा गया है।
मिट्टी चिकित्सा का प्रयोग करते समय सबसे पहले मिट्टी को आठ घंटे के लिये भिगोना होता है। इसके लिए उसे रात में ही भिगो दें। सुबह-सुबह मिट्टी को एक घंटे के लिए धूप में रख दें उसके बाद भीगी हुई मिट्टी का बहुत बारीक लेप बनाएं और रोगी के सारे कपड़े उतार कर, पूरे शरीर पर इस लेप को लगा दें। शरीर को धूप में खुला रखें और 30 से 40 मिनट तक लेप को सूखने दें। इसके बाद मिट्टी को छुड़ा कर ठंडे पानी से
नहा लें।
लाभ: इससे चर्म रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा आदि समस्या में काफी लाभ होता है।
सावधानियां: ध्यान रखें कि मिट्टी में कंकड़-पत्थर न हो। इसका इस्तेमाल करते समय आंखों को बंद कर लें। एक बार प्रयोग के बाद मिट्टी का दुबारा प्रयोग न करें। मिट्टी को साफ करते समय स्वच्छ पानी का प्रयोग करें।
एड़ी के दर्द में फायदेमंद
रोगी दो बाल्टी में पानी भर कर रखें। एक बाल्टी में गर्म तथा दूसरी बाल्टी में ठंडा पानी रखें। पहले ठंडे पानी की बाल्टी में 1 मिनट तक रोगी के पैर रखें और उसके बाद 3 मिनट तक गर्म पानी में पैर रखें। इस प्रक्रिया को चार बार दुहराएं। इससे एड़ी में होने वाली असहनीय पीड़ा भी समाप्त हो जाती है।
लाभ: एड़ी के दर्द में लाभ होता है। पैर की त्वचा कोमल रहती है और रक्तसंचार ठीक चलता है।
सावधानियां: पैर ठंडे पानी में रखने से प्रक्रिया को शुरू करें और अंत भी ठंडे पानी की बाल्टी में पैर रखकर ही करें। इस बात का भी ध्यान रखें कि पानी की गर्मी सहने योग्य हो।
राजधानी में प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ योगा एंड नेचुरोपैथी, ईस्ट ऑफ कैलाश
बालाजी निरोगधाम, महाराजा अग्रसेन नेचुरोपैथी एंड योग साधना रिसर्च ट्रस्ट, बख्तावरपुर
वेलनेस केयर योग प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र, बी-4/55, फेज-2, अशोक विहार
देव योग एवं नेचर क्योर सेंटर, नारायणा गांव, नजदीक नारायणा गांव क्लब
डॉ. जैन योगा एंड नेचुरोपैथी सेंटर, सेक्टर 14, गुडग़ांव
जलने-झुलसने पर
जल जाए या झुलस जाए तो तुरंत उसके जले झुलसे अंग को ठंडे पानी में एक घंटा डुबोकर रखें। इससे जलन दूर होगी, फफोला नहीं पड़ेगा। पूरा शरीर जल जाय तो व्यक्ति को तुरंत बड़े पानी के हौज में रख दें। सांस लेने के लिए नाक को पानी से बाहर रखें। याद रखें कि जला झुलसा-अंग पानी में एक से दो घंटे डूबा रहे। इससे ठंडे पानी का चमत्कार दिखायी देगा।
मोच आए चा चोट लगे
मोच आ जाए या चोट लग जाए तो तुरंत उस स्थान पर खूब ठंडे पानी की पट्टी लगा दें। पट्टी में बर्फ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे न तो सूजन होगी, न दर्द बढ़ेगा। गर्म पानी की पट्टी न लगाएं या ऐसे पानी से सेंक न करें, क्योंकि इससे सूजन आ जाएगी और दर्द भी बढ़ जाएगा। यदि चोट लगने या कटने से खून आ जाय तो बर्फ या काफी ठंडे पानी की पट्टी चढ़ाने से तुरंत आराम होगा।
घुटने का दर्द
घुटनों के दर्द की शिकायत हो तो रोगी ठंडे पानी में भिगोई पट्टी लेकर अपने घुटने पर बांधें। इस बात का ध्यान रखें कि पट्टी में इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा सूती हो। ठंडे पानी की पट्टी के ऊपर ऊनी या मलमल का कपड़ा लपेटना चाहिए।
बीमारियों में रामबाण जल चिकित्सा
पंचतत्वों से बने शरीर को जल की अत्यधिक आवश्यकता होती है। जल एक अमृत औषधि भी है। जल की औषधीय महत्ता इतनी अधिक है कि जल चिकित्सा से अनेक बीमारियां प्राकृतिक तरीके से ठीक हो जाती हैं।
शरीर का तीन चौथाई भाग पानी है। हम तरह-तरह से पानी को ग्रहण भी करते हैं। खाने-पीने के साथ-साथ स्नान तक में पानी का इस्तेमाल होता है, जिससे हमारी सेहत बनी रहती है। शरीर में पानी का संतुलन बिगड़े या खाने-पीने में स्वच्छ पानी की तनिक भी कमी आ जाए तो बीमारी हमें घेर लेती है। कई बार ऐसी बीमारियां हमें सताने लगती हैं, जिनका बेहतर उपचार पानी से ही होता है। इस प्रक्रिया को जल चिकित्सा कहते हैं।
किन-किन बीमारियों में है अचूक
पेट से संबंधित रोगों में जल की भूमिका अति आवश्यक होती है। त्वचा रोगों, कब्ज, अनिद्रा, थकान, जोड़ों में के दर्द, मिर्गी, डायबिटीज, शुगर व कई अन्य रोगों में जल चिकित्सा बेहद असरदार होती है। एक और खास बात यह कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
मिर्गी के दौरे
कारण: मिर्गी के दौरे मस्तिष्क के किसी एक भाग में अचानक विद्युत प्रवाह के कारण होते हैं। आमतौर पर मिर्गी का दौरा लगभग 4-5 मिनट में खत्म हो जाता है। यह दौरा काफी खतरनाक होते हैं और कभी-कभी रोगी का मल-मूत्र भी निकल जाता है।
लक्षण: रोगी के शरीर में किसी भी अंग में दर्द या शरीर का टेढ़ा होना, मुंह से झाग आना, कुछ देर बाद अचानक ठीक होना इसका लक्षण हो सकता है।
उपचार: रोगी को पूर्ण रूप से विश्वास में लेने का प्रयास करें। 4-5 मिनट तक सिर पर गीला तौलिया बांधें। पीठ पर धीरे-धीरे पानी की धार छोड़ें। टब या बाल्टी में 5-7 मिनट तक दोनों पैरों को पानी में डुबाकर रखें। शरीर में पानी की कमी न होने दें।
अनिद्रा
कारण: अनिद्रा या नींद न आने की स्थिति अधिकतर मानसिक कारणों से होती है। गलत खान-पान, चिंता, देर रात तक जागना, पेट में गैस हो, छाती में भारीपन, शरीर में दर्द हो, रात को अधिक चाय पीना, कॉफी का सेवन करना आदि।
लक्षण: रात को नींद नहीं आती और पूरी रात करवटें बदलते बीतती है। नींद खुल जाती है, दुबारा नींद नहीं आती। सुबह को उठने पर शरीर में सुस्ती, थकावट आदि होती है।
उपचार: रात में हल्का भोजन लें। रात को सोने के लिए हवादार कमरे तथा आरामदायक बिस्तर का प्रयोग करें। सोने से पहले स्नान करें। नहाते समय सिरे पर पानी की धार डालें।
सूजन
कारण: शरीर में छोटी-मोटी बीमारी से सूजन नहीं होती। यह शरीर से खून निकल जाने या अन्य किसी प्रकार की कमजोरी के कारण उत्पन्न हो जाती है। भोजन में अधिक नमकीन, खट्टे, तीखे पदार्थों का सेवन करने भी से भी यह रोग पैदा हो जाता है। कई बार अशुद्ध भोजन लेने के कारण भी शरीर में विष उत्पन्न हो जाता है, जिससे सूजन की समस्या आती है।
लक्षण: कभी सूजन हो जाती है तो कभी खुद ही ठीक हो जाती है। सूजन आने से नसें पतली पड़ जाती हैं, जिससे त्वचा पर नीचे रंग की शिराएं दिखाई देने लगती हैं। शरीर में रोएं खड़े हो जाते हैं। यह सूजन वात, पित्त तथा कफ का संतुलन बिगडऩे के कारण होती है।
उपचार: 10 से 20 मिनट तक कटि स्नान करें। उसके बाद तौलिये को गीला करके कमर पर रगड़ें। सूजन वाले स्थान पर पानी की धार धीरे-धीरे छोड़ें।
पेट में गैस बनती है
उपचार: जब पित्त की मात्रा शरीर में अधिक हो जाए और अपचय हो तो रोगी को चाहिए की वह अपने पेट को वमन (उल्टी) द्वारा ठीक करे। सबसे पहले पीने के लिए 5-6 गिलास पानी गर्म करें। उसमें एक चम्मच नमक मिलाएं। अब कागासन में बैठ कर पानी पिएं। अब 5 से 10 मिनट तक टहलें। उसके उपरांत आगे की तरफ झुककर वमन कर दें। इसे कुंजन क्रिया कहते हैं।
लाभ: इससे गैस संबंधित रोग खत्म होता है। शरीर के अन्दर की सफाई होती है। आप काफी हल्का महसूस करेंगे।
सावधानियां: उच्च रक्तचाप की समस्या वाले व्यक्ति डॉक्टर की सलाह से ही यह क्रिया करें।
मन हल्का करने को वाष्प स्नान
उपचार: घर पर वाष्प स्नान लेने के लिए एक कुर्सी पर रोगी को बैठा दें। उसको कम्बल से चारों तरफ से ढक दें। दूर गैस चूल्हे पर एक कुकर पानी भर कर रखें। सिटी को हटा कर एक लम्बी पाइप लगा दें। पाइप के एक सिरे को सावधानीपूर्वक रोगी की कुर्सी के नीचे रख दें। इससे पहले रोगी को एक गिलास पानी पिलाएं और सिर पर ठंडे पानी से भीगा तौलिया रखें।
लाभ: भाप स्नान से त्वचा का मैल फूलकर निकल जाता है। शरीर के रोम छिद्र खुल जाते हैं। शरीर में हल्कापन आता है। त्वचा निखरती है। कमर की सिकाई से दर्द दूर हो जाता है।
सावधानियां: उच्च रक्तचाप की तकलीफ है तो वाष्प स्नान न करें। अगर गरमी सहन न हो तो उपचार तुरंत रोक दें।
सर्दी-जुकाम से निजात दिलाए
उपचार: सर्दी-जुकाम से निजात पाने के लिए जल नेति क्रिया फायदेमंद होती है। एक लोटा लेकर उसमें हल्का गर्म पानी और 1/2 चम्मच नमक मिलाकर नाक में लगाएं और मुंह को खोलकर सांस लें तथा दूसरी नाक से पानी को निकाल दें।
लाभ: जल नेति से सर्दी-जुकाम की समस्या से मुक्ति मिलती है। नेत्र ज्योति बढ़ाती है। समय से पहले बाल सफेद नहीं होते। सिरदर्द ठीक होता है।
पाचन क्रिया बेहतर करने के लिए
विधि: कमर स्नान काफी फायदेमंद होता है। बड़े टब में पानी भरें। रोगी को टब में कपड़े उतारकर इस तरह बैठा दें कि उसकी नाभि तक पानी आ जाए। रोगी के पैर बाहर एक मेज पर रख दें। रोगी के सिर पर एक गिला तौलिया रख दें तथा रोगी को एक सूती कपडा़ देकर नाभि के चारों तरफ रगडऩे को कहें। यह चिकित्सा 20 से 30 मिनट तक दें।
लाभ: यह पाचन क्रिया को ठीक करता है। कब्ज, मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, स्त्रियों में मासिक धर्म की अनियमितता को ठीक करता है।
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