उम्र बढऩे के साथ ही हर व्यक्ति में हार्मोनल चेंजेस होते है। ऐसे में जिन लोगों की दिनचर्या नियमित नहीं होती है उनमें त्वचा की रंगत और चमक जल्द खोने लगती है, साथ ही चेहरे पर झुर्रियां भी दिखाई देने लगती है। अगर आप चाहते हैं कि आपकी स्किन पर बढ़ती उम्र का प्रभाव न दिखाई दे तो बताए गए प्राकृतिक उपायों पर जरूर ध्यान दें।
- ऑलिव ऑयल को नींबू रस में मिलाकर हफ्ते में तीन बार चेहरे की मालिश करें, इससे न सिर्फ झुर्रियां भागेगीं बल्कि चेहरे की रंगत में भी निखार आएगा। एक पका केला लें और उसमें एक चम्मच शहद मिला लें। इसे मसलकर चेहरे और गर्दन पर तकरीबन 15 मिनट के लिए लगा लें। केले के गूदे में कुछ बूंदें जैतून के तेल की मिलाकर लगाने से भी झुर्रियां कम होती हैं।
- विटामिन सी का अधिक मात्रा में सेवन आपको झुर्रियों से दूर रखेगा। इसे एस्कॉर्बिक एसिड भी कहते हैं। यह अनेक किस्म के फलों व सब्जियों में पाया जाता है। इसके अच्छे स्रोत हैं मिर्च, फूल गोभी, ब्रसल्स स्प्राउट्स, सन्तरा, कीवी, स्ट्रॉबेरी, टमाटर, पत्तेदार हरी सब्जियां, पपीता, आम, तरबूज, रास्पबेरी और पाइनएप्पल, इनका भरपूर सेवन करने से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।
- भरपूर नींद लें तो कम उम्र में झुर्रियों से बचे रहेंगे। झुर्रियों से बचे रहना चाहते हैं तो सिगरेट से दूरी बना लें। सिगरेट एन्जाइम्स को एक्टिवेट कर देती है, जिससे हमारे चेहरे और शरीर के ऊपर झुर्रियां दिखाई पडऩे लगती हैं।
- अगर झुर्रियों से परेशान हैं तो अधिक से अधिक पानी पीना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। हाल ही में एक अध्ययन में कहा गया है कि आपकी त्वचा के लिए सिर्फ पानी पीना ही फायदेमंद नहीं होता बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितनी मात्रा में पानी पीते हैं। झुर्रियां मिटाने के लिए कम से कम आठ ग्लास पानी पीएं।
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एक्सरसाइज का सबसे आसान और कुदरती तरीका है वॉकिंग। सुविधाजनक होने के साथ-साथ यह काफी असरदार भी है, इसलिए हर उम्र और तबके के लोगों में यह बेहद लोकप्रिय है। दरअसल वॉकिंग परफेक्ट एक्सरसाइज के काफी करीब है क्योंकि यह हल्की कार्डियोवस्कुलर एक्सरसाइज है, जो पूरे शरीर के लिए काम करती है। यह दिल, फेफड़े और हड्डियों की सेहत को बेहतर बनाती है और कम-से-कम दबाव डालने की वजह से जोड़ों की हिफाजत भी करती है।
क्या आप जानते हैं?
वॉकिंग में करीब-करीब सारी मसल्स शामिल होती हैं, फिर स्पाइन को सीधा रखनेवाली पेट और कमर की मसल्स हों या फिर बाजू की मसल्स हों, जो पैरों की विपरीत दिशा में काम करती हैं। वॉकिंग से पॉश्चर सुधरता है और बाजू, कंधे, पैर और हिप्स की टोनिंग होती है।
वॉकिंग के फायदे तमाम
- कैलरी बर्न होने के साथ-साथ मसल्स मजबूत होती हैं।
- शरीर को चोट लगने या टूट-फूट की सबसे कम आशंका होती है।
- शरीर का पॉश्चर, तालमेल और संतुलन सुधरता है।
- दिल की बीमारी की आशंका को कम करती है।
- हड्डियों को मजबूत बनाती है।
बीमारी की आशंका कम
- अगर आप हफ्ते में 5 दिन 30 मिनट वॉक (करीब 2 मील) करते हैं तो हार्ट अटैक की आशंका 25 फीसदी तक कम हो सकती है।
- हर मील की वॉकिंग करीब 100 कैलरी बर्न करती है। अगर आप रोजाना 5 मील चलते हैं तो आपकी एक हफ्ते में करीब 3500 कैलरी बर्न होंगी, जिससे करीब आधा पाउंड (230 ग्राम) वजन कम हो सकता है।
वजनघटानेमेंमददगार
वजन कम करने के लिए जरूरी है कि आप ज्यादा कैलरी बर्न करें और कम फैट खाएं इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या खा रहे हैं। फैट्स और शुगर कम करें। आपको खुद को भूखा रखने की जरूरत नहीं है। बस बैलेंस्ड डाइट खाएं, जिसमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज और स्प्राउट्स शामिल हों।
आत्मविश्वास के साथ चलें
वॉकिंग के दौरान जितना बेहतर आपका पॉश्चर होगा, उतनी ही ज्यादा मसल्स वॉकिंग में इस्तेमाल होंगी और आप उतनी ही ज्यादा कैलरी बर्न करेंगे। वॉकिंग के दौरान शरीर को बिल्कुल सीधा रखें, चेहरे को कंधों के बीचोंबीच रखें और सीने को तानकर रखें। कुहनियों को हल्का-सा मोड़ें और पैरों के मुताबिक बाजुओं को आगे और पीछे की ओर ले जाएं। पेट की मांसपेशियों को अंदर की तरफ रखें और पैरों को जमीन पर जमा कर रखें। ध्यान रखें कि पहले एड़ी जमीन को छुए। उसके बाद पूरा पैर रखें।
तरह-तरह की वॉकिंग
अपने वॉकिंग रूटीन में एक्साइटमेंट बनाए रखें। वॉकिंग के अलग-अलग अंदाज को भी अपनाकर भी वॉकिंग को बोरिंग होने से रोक सकते हैं। मसलन हफ्ते में ब्रिस्क या फास्ट वॉक को अपनाएं और वीकएंड पर (जब आपके पास टाइम हो) लंबी दूर तक आराम से टहलने का प्रोग्राम बनाएं।
टहलना
इसमें आपके अपने घर के अंदर या बाहर, गार्डन, फुटपाथ आदि पर धीरे-धीरे टहलना शामिल है। यह आपके शरीर और दिमाग को रिलैक्स करने का टाइम है। यह तनाव कम करने का बेहतरीन तरीका है।
नंगे पैर टहलना
जब आप पार्क आदि में नंगे पैर टहलते हैं तो कुदरत के साथ एक जुड़ाव महसूस करते हैं। जानवरों और पेड़ों की तरह आप अपने अंदर मिट्टी की उष्मा, ताजगी या ठंडापन महसूस करते हैं। इससे दिमाग ही नहीं, पूरा तन-मन रिलैक्स होता है।
हमारे पैरों का टचिंग सेंस यानी छूने का अहसास करीब-करीब हाथों जितना ही विकसित होता है। इससे शरीर की सजगता बढ़ती है, जोकि हर रिलैक्सेशन तकनीक का अहम पहलू है।
ढलान पर वॉक
ढलान पर चढ़ने से वर्कलोड बढ़ता है और ज्यादा कैलरी बर्न होती हैं। इसे ज्यादा असरदार बनाने के लिए ऐसी ढलान चुनें, जो खड़ी हों। लेकिन ध्यान रखें कि ऐसा धीरे-धीरे करें यानी धीरे-धीरे अपनी कैपेसिटी बढ़ाएं और अपना रूट ऐसे प्लान करें कि यह चैलेंजिंग तो हो ही, इसे पूरा करना मुमकिन भी हो।
पावर वॉकिंग
पावर वॉकिंग का मकसद इतनी तेज रफ्तार से वॉक करना होना चाहिए कि चाहें तो फौरन वॉक को दौड़ में तब्दील कर सकें। इससे न सिर्फ आप कैलरी बर्न करते हैं बल्कि मसल्स की ताकत और क्षमता भी बढ़ाते हैं। अगर आप गंभीरता के साथ वॉक करते हैं तो पावर वॉक से उतनी ही कैलरी बर्न हो सकती हैं, जितनी दौड़ से। जब आप फास्ट वॉक करते हैं तो उसे उसी रफ्तार से बनाए रखने के लिए मसल्स को ज्यादा काम करना पड़ता है और ज्यादा कैलरी बर्न होती हैं।
स्ट्रेच करें
वॉकिंग सेशन के दौरान आपने जिन मसल्स का ज्यादा इस्तेमाल किया है, उन्हें अपने सेशन के आखिर में स्ट्रेच करना न भूलें।
पिंडलियों को स्ट्रेच करें
राइट लेग को आगे रखते हुए एक लंबा कदम रखें। लेफ्ट लेग सीधा हो और राइट लेग थोड़ा-सा झुका हुआ। पंजे आगे की ओर हों और लेफ्ट एड़ी जमीन पर। 10 सेकंड तक इसी पोजिशन में रहें। फिर दूसरी ओर से करें।
थाई को आगे से स्ट्रेच करें
सीधा खड़े हों। राइट पंजे को राइट हथेली से पकड़ें। पैर को बट्स के पास ले जाएं। इस दौरान दोनों घुटनों को एक साथ रखें। 10 सेकंड के लिए इसी पोजिशन में रहें। फिर दूसरे पैर से करें।
थाई को पीछे से स्ट्रेच करें
एक पैर को धीरे से उठाएं और थोड़ी ऊंचाई पर रखें। इसके लिए किसी चौकी या छोटे स्टूल का इस्तेमाल कर सकते हैं। कमर से हल्का-सा झुकते हुए कमर तक के हिस्से को आगे की ओर ले जाएं। 10 सेकंड तक इसी पोजिशन में रहें। फिर दूसरी ओर से करें।
(साभार)
मां बनने की उम्र में अगर किसी महिला को यह पता चले कि वह कभी मां नहीं बन सकती तो, भला इससे बड़ा दुख और क्या होगा। मां न बन पाने की कई वजह होती हैं, लेकिन इसमें में एक सबसे बड़ी वजह है ओवरीज का फेल हो जाना :
जब हो ओवरीज फेल
ओवरीज फेल होने की दो वजह होती है। पहली है प्रीमैच्योर ओवरीज फेल (पीओएफ) और दूसरा हेरिडिटिक।
पीओएफ
पीओएफ का मतलब ओवरीज का नॉर्मल काम न करना है। यानी कि ओवरीज का नॉर्मल तरीके से एस्ट्रोजन हार्मोन का निर्माण न करना। इस सिचुएशन में हारमोंस में लगातार चेंज आता रहता है, जिससे बॉडी की कई चीजें इरेग्युलर हो जाती हैं। ज्ञानी एक्सपर्ट सरिता गुप्ता कहती हैं, 'कई बार उम्र से पहले ओवरीज के फेल होने को मीनोपॉज से जोड़ दिया जाता है, लेकिन ये सिचुएशन डिफरेंट होती है। पीओएफ की प्रॉब्लम आमतौर पर 40 साल से पहले देखने को मिलती है।'
सिम्पटम्स
- अगर ब्लड टेस्ट में आपका फालिक्यूल स्टिम्यूलेटिंग हार्मोन 25 प्रतिशत से ज्यादा है, तो आपको पीओएफ का खतरा है।
- अगर आपके पीरियड्स रेग्युलर न हों, बहुत ज्यादा गर्मी व पसीना आने की शिकायत हो, तो जल्द से जल्द किसी फर्टिलिटी सेंटर में जाकर अपनी जांच करवाएं।
- स्मोकिंग, ड्रिकिंग, लंबी बीमारी जैसे थायरॉइड व ऑटो इम्यून बीमारियां, रेडियोथेरपी या कीमोथेरपी होना भी इसके मुख्य कारण हैं। - जेनिटक टीबी भी उम्र से पहले ओवरीज फेल होने का कारण हो सकती है।
इंडिया में 30 से 40 साल की उम्र वर्ग में पीएफओ के मामले 0.1 प्रतिशत हैं। वैसे तो ये आंकड़े देखने में नाममात्र हैं, लेकिन 25 प्रतिशत महिलाएं इरेग्युलर पीरियड्स और पीरियड्स कई महीने तक न होने के बाद फिर से शुरू होने (अमनोरिया) जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं।
युवतियां भी हो सकती हैं शिकार
वैसे तो एक्सपर्ट इसे प्रॉब्लम को जेनेटिक मानते हैं। लेकिन कम उम्र की लड़कियां भी इस बीमारी की चपेट में आ सकती हैं। गाइनाकॉलेजिस्ट व आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर अनुभा सिंह का कहना है कि चेंज होती लाइफस्टाइल इसमें खास भूमिका निभाती है। इसलिये उम्र से पहले ओवरीज फेल होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस तरह की बीमारियों से बचने के लिये बेहतर है कि समय पर फैमिली प्लानिंग करें। साथ ही, अगर किसी भी तरह की प्रॉब्लम आ रही हो, तो मेडिकल जांच जरूर करवाएं। लेकिन इस तरह की प्रॉब्लम होने पर घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस प्रॉब्लम का सॉल्युशन भी अब आ गया है। बस, जरूरत है समय पर जांच करवाने की।
आईवीएफ टेक्नालॉजी
एग डोनेशन तकनीक अपनाकर बच्चे की चाहत को पूरा किया जा सकता है। एग डोनेशन का मतलब है ओवम को फ्रीज करके रखना। इससे महिलाएं 35 के बाद भी आईवीएफ तकनीक के जरिये प्रेग्नेंसी धारण कर सकती हैं। इस तकनीक में महिला को 14 दिन तक हार्मोन के इंजेक्शन लगाये जाते हैं। उसके बाद उसके परिपक्व ओवम को फ्रीज किया जाता है। यह टेक्नालॉजी उन कपल के लिए बेस्ट है, जो उम्र से पहले ही ओवरीज का फेल होने जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं। डॉक्टर अनुभा सिंह का कहना है, ' किसी कपल को लेट कंसीव करना है, तो एग डोनेशन अच्छा सॉल्यूशन है।
लाइफ स्टाइल और हेरिडिटी
हालांकि जिंदगी में जितनी हम प्रगति कर रहे हैं, उतनी ही दिक्कतें भी पेश आ रही हैं लेकिन नई तकनीकों के जरिये इसका समाधान भी मौजूद है। पीओएफ जैसी समस्या वैसे तो हेरिडेटिक है, पर महिलाओं को अपनी लाइफ स्टाइल कंट्रोल करने की खास जरूरत है, जिससे ऐसी समस्या से निपटा जा सके। वैसे, आपको बता दें कि मीनोपॉज से गुजर रही महिलाओं के सिम्पटम्स उम्र से पहले ओवरीज फेल होने वाली महिलाओं के समान होते हैं।
ध्यान दें-
- युवतियां भी आ सकती हैं पीओएफ की चपेट में
- भारत में 25 प्रतिशत महिलाएं इरेग्युलर पीरियड्स की शिकार।
- 90 प्रतिशत मामलों में बीमारी के कारणों का नहीं चलता है पता
- ओवरीज फेल होते ही तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
सामग्री
50 ग्राम मैकरोनी (सूखी हुई), एक चौथाई पत्ता गोभी, आधा गाजर, एक शिमला मिर्च, 2 बड़े चम्मच तेल, एक पैकेट चाइनीज हक्का नूडल्स सॉस, 50 ग्राम कटा हरा प्याज।
विधि
आधा लीटर पानी में एक छोटा चम्मच तेल डालकर मैकरोनी उबालें और अलग रख लें। सभी सब्जियां काटकर अलग रख दें। एक पैन में तेल गर्म करके उसमें कटी हुई सब्जियां डालकर एक से दो मिनट हल्का भून लें। एक दूसरे बर्तन में चौथाई कप पानी में हक्का नूडल्स पैक की सारी सामग्री डालकर एक मिनट तक पकाएं। अब इसमें उबली हुई मैकरोनी डालें और अच्छी तरह मिलाएं। कटे हरे प्याज से गार्निश कर गर्मा-गर्म सर्व करें।
सामग्री
एक कप चावल, 2 चम्मच घी, चौथाई चम्मच नमक, जीरा (जरूरत के मुताबिक), 250 ग्राम सब्जियां (शिमला मिर्च, गाजर, गोभी, बींस व आलू उबला हुआ), 100 ग्राम पुदीना की पत्तियां।
गर्निशिंग के लिए
हरा धनिया, पुदीना पत्ती और नीबू।
विधि
चावल एक घंटे के लिए भिगोकर रख दें। उसमें दो कप पानी, एक चम्मच घी और एक चम्मच नमक डालकर ग्लास बाउल में डालें और बिना ढक्कन लगाए माइक्रोवेव में तकरीबन 10 मिनट पकने दें। अब इसके ढककर तकरीबन दो से चार मिनट फिर से पकने दें। अब कढ़ाई में बचा हुआ घी गर्म करके जीरा डालकर चावल मिलाएं। इसमें बारीक कटी सभी सब्जियां मिला दें। अब इसे फिर से ढककर दो मिनट माइक्रो करें। ग्रीन माइक्रो बिरयानी तैयार है। इसे नीबू, धनिया और पुदीना से सजाकर रायते के साथ सर्व करें।
दाल कबाब
250 ग्राम छिलके वाली कोई भी दाल, 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, 2 बडे़ चम्मच अदरक पिसी हुई, 1 किलो दही, 5 लौंग, एक बड़ा टुकड़ा दालचीनी पाउडर, 2 बड़ी इलायची पाउडर, 20 काली मिर्च का पाउडर, एक छोटा चम्मच जीरा पाउडर, 250 ग्राम घी और स्वादानुसार नमक।
8 घंटे के लिए दाल भिगो लें। हल्के हाथ से रगड़ते हुए छिलका निकालकर पानी से निथार लें। इसे पीसकर पेस्ट बना लें। इसे अलग रख दें। इसमें नमक, हल्दी और अदरक मिला लें। इसमें चार कप पानी डालकर उबलने के लिए आंच पर रख लें। गाढ़ा हो जाने पर एक थाली में चिकनाई लगाकर इस मिक्सचर को डालें और ठंडा होने पर बर्फी के आकार में काट लें। घी गर्म कर मूंग के बर्फीनुमा टुकड़ों को गोल्डन होने तक फ्राई कर लें।
कबाब तैयार है। बची दाल के पेस्ट को दही में मिला लें। पेन में घी गर्म करें। लौंग डालकर दही डाल दें और चलाएं। उबलने लगे, तो कबाब मिलाएं और आंच से उतार लें। इसे ठंडा होने के लिए रख दें।
वर्कआउट ना करना, प्रॉपर डाइट ना लेना वगैरह ऐसी कई वजहें हैं, जिनके चलते बॉडी में टॉक्सिंस जमा हो जाते हैं। हेल्दी रहने के लिए इनको फ्लश आउट करना जरूरी है। कैसे, जाने यहां :
इन दिनों का लाइफस्टाइल ऐसा है, जिसमें बॉडी कई तरह के विषैले पदार्थों यानी टॉक्सिंस के प्रभाव में आती है। इससे शरीर में सुस्ती रहती है और सिस्टम ढीले पड़ जाते हैं। ऐसे में काम पर भी इफेक्ट पड़ता है। यही वजह है कि बॉडी को रेग्युलर तौर पर डिटॉक्सिफाई करना चाहिए। यानी ऐसी डाइट लेनी चाहिए, जिससे शरीर से ये पदार्थ बाहर निकल जाएं।
क्यों करें डीटॉक्स
जब भी बॉडी में हानिकारक पदार्थ इकट्ठे होते हैं, तब इसके काम करने की क्षमता कम हो जाती है। इससे दिमाग भी थका-थका रहता और पूरी तरह रीलैक्स नहीं हो पाता। बॉडी में टाक्सिंस के जमा होने से और भी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। मसलन सेल्स में इनके जमा होने से इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो सकता है, जिससे जुकाम, खांसी, छींकों के लगातार बने रहने की समस्या हो सकती है। इनसे बचने के लिए डिटॉक्सिफिकेशन तो जरूरी है ही, इसी के साथ डाइट कंट्रोल, एक्सरसाइज, मसाज, रिफलेक्सॉलजी, ब्रीदिंग तकनीक, मेडिटेशन, रिलैक्सेशन वगैरह भी जरूरी है।
क्या होंगे फायदे
डिटॉक्सिफिकेशन स्टैमिना को बढ़ाने का बेहतरीन तरीका है। इससे आप लाइट, फ्री और फ्रेश महसूस करेंगे। इससे होने वाले तमाम फायदों में स्किन व कॉम्प्लेक्शन का अच्छा होना, इम्युनिटी सिस्टम का स्ट्रॉन्ग होना, पाचन क्षमता का बढ़ना, स्टैमिना और एनर्जी लेवल बढ़ना, मेटाबॉलिज्म का इंप्रूव होना वगैरह शुमार हैं। डिटॉक्सिफिकेशन के दौरान दी जाने वाली डाइट से ये हानिकारक पदार्थ व वेस्ट मैटर बाहर निकल जाते हैं और पूरी बॉडी का सिस्टम क्लीन होता है।
इस दौरान सबसे ज्यादा प्रभाव पाचन तंत्र पर पड़ता है, क्योंकि इसे आराम करने का पूरा समय मिलता है। इस प्रोसेस के दौरान फाइबर रिच डाइट मसलन फ्रूट्स, वेजिटेबल और साबुत अनाज ज्यादा खाना चाहिए। लिक्विड में फ्रूट जूस, वेजिटेबिल जूस और सूप ही लें। इस दौरान स्मोकिंग, अल्कोहल, कॉफी और दूसरे स्टिमुलेंट्स से बचकर ही रहें। साथ ही, रेड मीट, फैट्स और शुगर वगैरह से भी परहेज करें।
दो से तीन दिन तक शॉर्ट व हल्की डाइट लें। डिटॉक्सिफिकेशन की साइकल हफ्ते में एक दिन और महीने में तीन दिनों की रखें। अगर इससे लंबे समय की डिटॉक्सिफिकेशन डाइट लेनी हो, तो किसी डाइटीशन की सलाह के अनुसार ही लें।
एक अध्ययन में पता चला है कि सुबह जल्दी उठकर नियमित रूप से नाश्ते से पहले व्यायाम करने वालों में नाश्ते के बाद व्यायाम करने वालों की तुलना में शरीर का मोटापा 20 प्रतिशत अधिक कम किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के जरिए यह पता लगाने की कोशिश की थी कि क्या रातभर भूखे रहने के बाद सुबह उठकर व्यायाम करने से भूख बढ़ जाती है और लोग ज्यादा खाना खाते हैं।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के तहत 12 सक्रिय लोगों को प्रात: 10 बजे के लगभग ट्रेड़िल पर कुछ देर व्यायाम करने को कहा। इनमें सुबह के नाश्ते से पहले व बाद में व्यायाम करने वाले दोनों तरह के लोग शामिल थे। बाद में सभी प्रतिभागियों को चॉकलेट मिक्लशेक दिया गया और दोपहर के खाने में पास्ता खाने को दिया गया। प्रतिभागियों से कहा गया कि वह पेट भर कर खाना खा सकते हैं।
शोधकर्ता एम्मा स्टीवनसन और जेवियर गोन्जालेज के समूह ने अध्ययन में यह पाया कि बिना नाश्ता किए व्यायाम करने वाले प्रतिभागियों को दिन में ज्यादा भोजन की आवश्यक्ता महसूस नहीं हुई। अध्ययन में यह भी पता चला कि बिना कुछ खाए व्यायाम करने वाले प्रतिभागी अपेक्षाकृत 20 प्रतिशत अधिक वसा कम करने में कामयाब रहे।