Thursday, January 24, 2013

5 मिनट का पद्मासन, बढ़ाए आत्मविश्वास









जीवन में सफलता के लिए आत्मविश्वास का होना अति आवश्यक है। ध्यान और आसन जैसी कुछ यौगिक क्रियाओं को अपनाकर आप अपने आत्मविश्वास में वृद्धि कर सकते हैं। 
हमारा जीवन भौतिक एवं आत्मिक शक्तियों का संयोग है। जीवन के बेहतर संचालन के लिए दोनों शक्तियों का संतुलन आवश्यक भी है। आज के माहौल में हमने आत्मिक उन्नति को नजरअंदाज-सा कर दिया है। और इसके अभाव में आत्मविश्वास एवं इच्छाशक्ति में कमी आ जाती है। परिणामस्वरूप जीवन नारकीय, दुखपूर्ण, वेदना तथा निराशा से भर जाता है। योग के अभ्यास से खोई हुई आत्मशक्ति को पुन: जागृत किया जा सकता है। आइए, जानें इस क्रियाओं को:

आसन
शरीर, मन तथा बुद्धि ही हमारे जीवन की धुरी हैं। यदि ये स्वस्थ तथा मजबूत नहीं हैं तो भौतिक और आत्मिक दोनों उन्नतियां बेमानी हो जाती हैं। आसन शरीर, मन, तथा बुद्धि को नियोजित करते हैं। इस हेतु सब से श्रेष्ठ आसन है- सूर्य नमस्कार, पद्मासन, सिद्धासन, पश्चिमोत्तासन, अर्धमत्स्येन्द्र आसन, त्रिकोणासन, मयूरासन, सर्वागासन आदि।


पद्मासन की अभ्यास विधि
दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएं। बांये पैर को घुटने से मोड़कर इसके पंजे को दांयी जांघ पर तथा दांये पैर के पंजे को बायीं जांघ पर रखें। यह पद्मासन है। दोनों हाथों को जांघों के बगल में जमीन पर रखें। अब हाथों के सहारे धड़ को यथासंभव जमीन से ऊपर उठाएं। आरामदायक समय तक इस स्थिति में रुककर वापस पूर्व स्थिति में आएं।

सीमाएं
शरीर के साथ अनावश्यक जबरदस्ती न करें। जितना संभव हो, उतना ही आसन करें।



ध्यान
नकारात्मक सोच, मन का असंतुलन, अविवेक, निराशा, अवसाद तथा अज्ञानता आत्मविश्वास में कमी का कारण है। यदि गंभीरतापूर्वक विचार किया जाये तो मन की चंचलता या एकाग्रता की कमी ही हमारे दु:खों का मूल कारण है। ध्यान के अभ्यास से इस समस्या का समाधान सहजता से हो जाता है। सुख, दुख, लाभ-हानि हमारे मन के निर्माण हैं। यदि मन पर ही काबू कर लिया गया तो समस्याओं पर काबू हो जाता है।

अभ्यास की विधि
ध्यान के किसी भी आसन पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। आंखों को ढीली बन्द कर अपनी सहज श्वास-प्रश्वास का निरीक्षण करें। कुछ महीनों तक इसका अभ्यास कर जब इस पर दक्षता मिल जाए तो विचारों का दृष्टा बनना चाहिए। प्रतिदिन 15 से 20 मिनट तक इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए।

आहार
व्यक्तित्व के विकास में संतुलित आहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनाज, सब्जी, फल, सलाद का भोजन में संतुलन रखना जरूरी है। भोजन भूख से थोड़ा कम तथा निश्चित समय पर होना चाहिए। दिन में तीन या चार बार से अधिक नहीं खाना चाहिए। गरिष्ठ और तले तथा मिर्च मसाले वाले भोजन हमारी इच्छा शक्ति को कमजोर करते हैं। अतएव संतुलित भोजन का खयाल रखें।

इन बातों का भी रखें ध्यान
प्रतिदिन सामथ्र्य अनुसार आसन, व्यायाम या टहलना अवश्य करें।
प्रतिदिन धर्मग्रन्थों, उपदेशों आदि का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।
जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। निरुद्देश्य जीवन अस्त व्यस्त होता है।
प्रतिदिन थोड़ा समय (10-15 मिनट) सेवा, कर्मयोग आदि पर दें। 
जब भी नकारात्मक विचार सतायें, अपनी श्वसन क्रिया को गहरी बनायें।

ब्रेन स्ट्रोक, बरतें थोड़ी सावधानी




ब्रेन स्ट्रोक को आमतौर पर नजरअंदाज किया जाता है, जबकि हर छह में से एक व्यक्ति जिंदगी में कभी न कभी इसकी चपेट में आता ही है। अब तो यह युवाओं को भी अपनी चपेट में लेने लगा है और सर्दियों के मौसम में इसकी आशंका और अधिक बढ़ जाती है,
ब्रेन स्ट्रोक यानी आज के समय की एक जानलेवा बीमारी। हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों को जितनी गंभीरता से लिया जाता है, इसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि उम्रदराज लोग ही नहीं युवा भी इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं। आकलनों के अनुसार हर छह में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी ब्रेन अटैक होता ही है और इसका इलाज भी काफी मंहगा होता है। इसलिए जरूरी है कि इसके लक्षणों को पहचानकर तुरंत ही इसका उपचार शुरू कर दिया जाए।

ब्रेन स्ट्रोक क्या है
मस्तिष्क की लाखों कोशिकाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए कई रक्त कोशिकाएं हृदय से मस्तिष्क तक लगातार रक्त पहुंचाती रहती हैं। जब रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है, तब मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। इसका परिणाम होता है दिमागी दौरा या ब्रेन स्ट्रोक। यह मस्तिष्क में ब्लड क्लॉट बनने या ब्लीडिंग होने से भी हो सकता है। रक्त संचरण में रुकावट आने से कुछ ही समय में मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं, क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है। जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाएं फट जाती हैं, तो इसे ब्रेन हैमरेज कहते हैं। इस कारण पक्षाघात होना, याददाश्त जाने की समस्या, बोलने में असमर्थता जैसी र्स्थिति आ सकती है। कई बार ‘ब्रेन स्ट्रोक’ जानलेवा भी हो सकता है। इसे ब्रेन अटैक भी कहते हैं।

इस मौसम में बढ़ जाता है खतरा
हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल बताते हैं कि जिन्हें ब्लड प्रेशर की शिकायत है, सर्दियों में सुबह उनका ब्लड प्रेशर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे लोगों को इस मौसम में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। सर्दियों में प्लेटलेट्स आपस में चिपकने वाले हो जाते हैं, इससे भी ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जती है।

इसके लक्षण
इसके लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होते हैं। कई मामलों में तो मरीज को पता ही नहीं चलता कि वह ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुआ है। इन्हीं लक्षणों के आधार पर डॉक्टर पता लगाते हैं कि स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क का कौन-सा भाग क्षतिग्रस्त हुआ है। अक्सर इसके लक्षण अचानक दिखाई देते हैं।

इन बातों पर दें ध्यान
अचानक संवेदनशून्य हो जाना या चेहरे, हाथ या पैर में, विशेष रूप से शरीर के एक भाग में कमजोरी आ जाना।
समझने या बोलने में मुश्किल होना।
एक या दोनों आंखों की क्षमता प्रभावित होना।
चलने में मुश्किल, चक्कर आना, संतुलन की कमी हो जाना।
अचानक गंभीर सिरदर्द होना।

किन्हें है अधिक खतरा
टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में इसका खतरा काफी बढ़ जाता है।
हाई ब्लड प्रेशर और हाइपर टेंशन के मरीज इसकी चपेट में जल्दी आ जाते हैं।
मोटापा ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण बन सकता है।
धूम्रपान, शराब और गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन ब्रेन अटैक को निमंत्रण देने वाले कारण माने जाते हैं।
कोलेस्ट्रॉल का बढ़ता स्तर और घटती शारीरिक सक्रियता भी इसका कारण बन सकती है।

क्यों होती है यह समस्या
पारस हॉस्पिटल के सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रजनीश कुमार बताते हैं कि मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण या उसके फट जाने के कारण ब्रेन अटैक होता है। इन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का मुख्य कारण ‘आर्टियोस्क्लेरोसिस’ है। इसके कारण नलिकाओं की दीवारों में वसा, संयोजी ऊतकों, क्लॉट, कैल्शियम या अन्य पदार्थो का जमाव हो जाता है। इस कारण नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जिससे उनके द्वारा होने वाले रक्त संचरण में रुकावट आती है या रक्त कोशिकाओं की दीवार कमजोर हो जाती है।

पौष्टिक भोजन भी है कारगर
यूं तो पोषक पदार्थों का सेवन सबके लिए जरूरी है, लेकिन विशेष रूप से उनके लिए बहुत जरूरी है, जो ब्रेन स्ट्रोक से पीडित हैं। पोषक भोजन खाने से न सिर्फ मस्तिष्क की क्षतिग्रस्त हुई कोशिकाओं की मरम्मत होती है, बल्कि भविष्य में स्ट्रोक होने की आशंका भी कम हो जाती है। ऐसा भोजन लें, जिसमें नमक, कोलेस्ट्रॉल, ट्रांस फैट और सेचुरेटेड फैट की मात्रा कम हो और एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ई, सी और ए की मात्रा अधिक हो।
साबुत अनाज खाएं, क्योंकि यह फाइबर के अच्छे स्त्रोत हैं और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में काफी फायदेमंद साबित होते हैं।
अदरक का सेवन करें, क्योंकि इससे रक्त पतला रहता है और थक्का बनने की आशंका कम हो जती है।
ओमेगा फैटी एसिड वाले खाद्य पदार्थ जैसे तैलीय मछलियां, अखरोट, सोयाबीन आदि अपने खाने में शामिल करे। यह कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं और खून जमने का खतरा कम हो जाता है।
जामुन, गाजर, टमाटर और गहरी हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर खाएं क्योंकि इनमें एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा बहुत अधिक होती है।

समय पर चाहिए उपचार
लक्षण नजर आते ही मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर इसके उपचार में रक्त संचरण को सुचारु और सामान्य करने की कोशिश की जाती है ताकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके। डॉ. कुमार बताते हैं कि कई अत्याधुनिक अस्पतालों में थ्रोम्बोलिसिस के अलावा एक और उपचार उपलब्ध है, जिसे सोनो थ्रोम्बोलिसिस कहते हैं। यह मस्तिष्क में मौजूद ब्लड क्लॉट को नष्ट करने का एक अल्ट्रा साउंड तरीका है। इस उपचार में केवल दो घंटे लगते हैं। इसलिए स्ट्रोक अटैक के तीन घंटे के भीतर जो उपचार उपलब्ध कराया जाता है उसे ‘गोल्डन पीरियड’ कहते हैं।

लाएं सकारत्मक बदलाव
तनाव न लें, मानसिक शांति के लिए ध्यान लगएं।
धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें।
नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
अपना उचित भार बनाए रखें।
हृदय रोगी और मधुमेह के रोगी विशेष सावधानी बरतें।
सोडियम का अधिक मात्रा में सेवन न करें।
गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन कम करें।
(साभार)

ये सोडा है जनाब, सावधानी से करें इस्तेमाल


शहरी जीवनशैली में खाने-पीने की चीजों में सोडा का सेवन आम हो गया है। लेकिन हम यह भूल ही जाते हैं कि इसके सेवन के लाभ कम हैं और नुकसान अधिक। ऐसे में हमें इन बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए
कार्बोनेटेड वाटर को सोडा वाटर कहते हैं। इसमें मिनरल वाटर में सोडियम बाई कार्बोनेटेड घुला होता है। इसे क्लब सोडा, सेल्टजर, स्पाकर्लिंग वाटर या फिज्जी वाटर भी कहते हैं। सॉफ्ट ड्रिंक, फिज्जी ड्रिंक में सोडा होता है। आजकल सोडा वाटर बोतलों में विशेष दाब की स्थितियों में कार्बन डाई ऑक्साइड इंजेक्ट करके बनाया जाता है। अत्यंत कम मात्रा में सोडियम कार्बोनेटेड को सामान्यतया एक सुरक्षित पदार्थ माना जाता है। लेकिन इसका नियमित या अधिक मात्रा में सेवन मौत का कारण भी बन सकता है।
सोडा वाटर से नुकसान
नमक का रासायनिक नाम सोडियम क्लोराइड है। इसका भी एक प्रमुख घटक सोडियम है। जिन लोगों को नमक से समस्या होती है, उन्हें सोडे से भी समस्या होती है, क्योंकि इसका रासायनिक नाम सोडियम कार्बोनेटेड है। इसका भी एक प्रमुख घटक सोडियम है। अधिक सोडियम खाने से हाइपर टेंशन और हाई ब्लड प्रेशर हो जाता है। लगातार हाइपर टेंशन के बने रहने से हृदय रोग, स्ट्रोक और गुर्दे की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जो लोग अधिक मात्रा में सोडे का सेवन करते हैं, वे दूध कम पी पाते हैं। इससे उनके शरीर में कैल्शियम की मात्रा कम होने लगती है। बोन मास भी कम होने लगता है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। दांतों का इनेमल नष्ट हो जाता है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि एक गिलास सोडा वाटर प्रतिदिन पीने से कोरोनरी हार्ट डिसीज और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग सोडे का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, उनमें हार्ट अटैक की आशंका 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। सोडे के कई रूप हैं जिनमें बेकिंग सोडा, बेकिंग पाउडर, क्लब सोडा आदि प्रमुख हैं।
किडनी और हार्ट की सेहत के लिए कहें, ना
नमक में सोडियम होता है और सोडे में भी सोडियम होता है। जिनको नमक से समस्या हो उन्हें सोडे से जरूर समस्या होगी। यह शरीर के अंदर जाकर वाटर रिटेंशन कर सकता है। जिन्हें ब्लड प्रेशर, किडनी और हार्ट  की समस्या हो, वे इसका सेवन बिल्कुल न करें। सामान्य लोग अगर इसे थोड़ी मात्रा में खाएं तो इसके कोई दुप्रभाव नहीं होंगे, लेकिन ज्यादा मात्रा में इसके सेवन से शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ जाएगी। किडनी में खराबी और हार्ट फेल होने की आशंका बढ़ जाएगी। वैसे लेमन सोडा से अच्छी कोई सॉफ्ट ड्रिंक नहीं है। चीनी डालने की भी आवश्यकता नहीं होती। सोडा, पानी, नींबू और बर्फ को मिलाकर एक रिफ्रेशिंग ड्रिंक बन जाएगा। इससे पोटैशियम और इलेक्ट्रोलाइट भी मिल जाएंगे।
(साभार)



सर्दियों का राजा अमरूद




अमरूद को सर्दियों में फलों का राजा यूं ही नहीं कहा जाता है। नाशपाती के आकार का अमरूद बाहर से देखने पर हरे तथा पीले रंग का और अंदर से सफेद और लाल रंग का होता है। यह अपने कुरकुरे और मीठे स्वाद के कारण जितना पसंदी किया जाता है, उससे भी अधिक इसके गुणों के कारण खाया जाता है,
अमरूद स्वास्थ्य के लिए एक अद्भुत फल है। इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व शरीर को फिट और स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, इसीलिए इसे सुपर फल का दर्जा दिया गया है। अमरूद विटामिन ए, विटामिन सी, बीटा कैरोटीन, लाइकोपीन, फोलिक एसिड, पोटैशियम, तांबा, मैगनीज, फाइबर, निकोटिन, आयरन, कैल्शियम जैसे कई पौष्टिक तत्वों का खजाना है। अध्ययनों से साबित हो चुका है कि अमरूद में संतरे की तुलना में विटामिन सी और सेब-केले की तुलना में पोटैशियम कहीं अधिक मात्रा में पाया जाता है। अमरूद को संतुलित पोषण प्रोफाइल माना गया है। अमरूद में मौजूद विटामिन सी शरीर में पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है। कैंसर रक्षक लाइकोपीन नामक एंटीऑक्सीडेंट और कैरोटीन से भरपूर अमरूद स्तन, फेफडमें और मुंह के कैंसर से लड़ने में मदद करता है। पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को कम करने में प्रभावशाली है।
हाई ब्लडप्रेशर को कंट्रोल करे
अमरूद फाइबर और हाइपोग्लीसेमिक का समृद्ध स्त्रोत है, जो ब्लडप्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में फायदेमंद है। अध्ययनों से साबित हो चुका है कि शरीर में पोटैशियम की दैनिक जरूरत के 20 प्रतिशत भाग की आपूर्ति एक मध्यम आकार का अमरूद करता है। इसमें मौजूद पोटैशियम हाई ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण कारक का काम करता है।
हृदय का रखें ध्यान
अमरूद में मौजूद लाइकोपीन दिल की सेहत को बढ़ावा देने का प्रमुख कारक है। लाइकोपीन इसके ऑक्सीकरण के लिए संकीर्ण धमनियों का निर्माण करता है।
दस्त और पेचिश
एस्ट्रीजेंट्स तत्वों से समृद्ध अमरूद दस्त में अतिसार को बांधता है। ये एस्ट्रीजेंट्स एल्काइन प्रकृति के होते हैं, जिनमें निस्संक्रामक और बैक्टीरियल विरोधी गुण होते हैं। ये माइक्रोबियल विकास को रोकते हैं, आंतों से अतिरिक्त बलगम को हटाते हैं।
कब्ज से राहत
फाइबर में धनी अमरूद पाचन में बहुत मददगार है। इसके बीज एक शक्तिशाली रेचक का काम करते हैं। यह कब्ज के दौरान पेट को नरम करता है और आंत के उत्सर्जन तंत्र को सुचारु बनाता है। पोटैशियम और विटामिन पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पेट की समस्याओं के लिए कारगर
अमरूद में मौजूद पेक्टिन पाचन को बढ़ावा देने और भूख में सुधार करने में मदद करता है। फाइबर अपच समस्याओं को रोकने में सहायक है। अमरूद पेट दर्द और पेट में कीड़ों के इलाज के लिए उपयोगी है। विशेषज्ञ पेट दर्द में आराम के लिए शहद और दूध के साथ अमरूद का गूदा मिलाकर खाने की सलाह देते हैं। इसके अलावा अमरूद के नियमित सेवन से गुर्दे की पथरी के गठन को रोकने में मदद मिलती है।
वजन घटाने में सहायक
फाइबर, खनिज और विटामिन में अमीर अमरूद का सेवन संतुष्टि का अहसास कराता है। यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो दोपहर के भोजन में एक या दो अमरूद खाने से लाभ हो सकता है। फाइबर अच्छा चयापचय का काम करता है, जिससे न केवल पेट भरता है, बल्कि अमरूद में मौजूद प्रोटीन और विटामिन शाम तक आपको ऊर्जा भी प्रदान करता है।
दांत दर्द से राहत दिलाए
अमरूद में मौजूद विटामिन सी और एस्ट्रीजेंट सामग्री दांतों से खून बहने, मसूड़ों में सूजन और मुंह के अल्सर के उपचार में उपयोगी है। इसकी पत्तियों को उबाल कर गरारे करने से दांत दर्द में आराम मिलता है।
सर्दी और खांसी में सहायक
अमरूद का रस फेफड़ों में बलगम बनने से रोकता है और सांस नली के संक्रमण को कम करता है। इसके सेवन से इन्फ्लूएंजा वायरस के संक्रमण कम करने में मदद मिलती है। यह डेंगू बुखार की रोकथाम में उपयोगी है। अमरूद में मौजूद पेक्टिन गले की खराश का प्रभावी इलाज है।
स्वस्थ थायरॉयड ग्रंथि को बढ़ावा देता है
अमरूद में मौजूद तांबा थायरॉयड के चयापचय में काम आने वाले हार्मोस का उत्पादन और अवशोषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
त्वचा का सुरक्षा कवच
अमरूद में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एस्ट्रीजेंट तत्व त्वचा को स्वस्थ, कांतिमय और उज्ज्वल बनाता है। यह त्वचा की बनावट में सुधार लाने में मदद करता है। मुंहासों, फोड़ों-फुंसियों जैसे त्वचा संबंधी विकारों के खिलाफ सुरक्षा कवच का काम करता है। विटामिन सी से समृद्ध होने के कारण यह स्कर्वी के इलाज में सहायक है।
महिलाओं की समस्याओं में फायदेमंद
अमरूद का सेवन महिलाओं में मासिक धर्म के समय होने वाली ऐंठन को कम करने में लाभकारी है। गर्भावस्था के दौरान सुबह उठते समय जी मिचलाने जैसी समस्याओं में भी यह प्रभावी है। अमरूद की पत्तियों का रस पीने से योनि स्रव में भी आराम मिलता है।
मधुमेह का खतरा कम होता है
फाइबर से भरपूर अमरूद शरीर में शर्करा के अवशोषण को धीमा करता है। अमरूद का नियमित सेवन टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
सावधानियां
हालांकि अमरूद पोषक तत्वों की खान है। लेकिन एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो अमरूद से ज्यादा खाने से बचना चाहिए।
(साभार)

आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'


आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'

PICS:आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'



इनकम टैक्स रिटर्न या आईटीआर दाखिल करने की अंतिम तिथि, 31 जुलाई अब करीब आ गई है। आईटीआर दाखिल करने के दो तरीके हैं- या तो आप परंपरागत तौर पर मिलने वाला फार्म भर कर आयकर ऑफिस में जमा करवाएं या इनकम टैक्स ऑफ इंडिया अथवा कुछ अन्य वेबसाइटों की मदद से ऑनलाइन दाखिल करें। इसके लिए करदाता अभी से तैयारी करें। पूर्व में योजना बना लेने से ऐन मौके पर किसी तरह की मुश्किल से बच जाएंगे।

 

इनकम टैक्स रिटर्न की इसी अहमियत को समझते हुए हम आपको बताने जा रहे हैं रिटर्न की कॉमन बातें, पेश है एक फोटो फीचर-

PICS:आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'



इनकम टैक्स रिटर्न के लिए निवेश तो आपने पूरा कर लिया होगा। अब रिटर्न फॉर्म भरने की तैयारी करनी होगी। कई लोग इनकम टैक्स के नाम से ही भागते हैं। ये सही तरीका नहीं है। रिटर्न हर नौकरीपेशा या कारोबारी शख्स के लिए जरूरी है। इससे बचने के बजाय इसको समझने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ हिंदी भाषी लोगों के साथ ये दिक्कत बहुत ज्यादा है। वे टैक्स को झंझट समझते हैं। हकीकत में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने में कोई मुश्किल नहीं है। जरूरत तो है सिर्फ करदाता को मानसिक तौर पर तैयार होने की है। आप रिटर्न फॉर्म को अभी समझ लें। फिर उसे ठीक से भरकर जमा कराएं।



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फॉर्म में सामान्य जानकारी आमदनी का मुख्य जरिया सिर्फ वेतन और बैंक डिपॉजिट हो तो आईटीआर फॉर्म-1 भरें। वेतन के साथ शेयर-म्यूचुअल फंड से इनकम हो। साथ ही अपना घर हो तो आईटीआर फॉर्म-2 भरना होगा। वैसे नया सरल फॉर्म भी आ गया है। इसको भी करदाता भर सकते हैं। सामान्य तौर पर ये माना जा रहा है कि अब सरल भरना ज्यादा आसान रहेगा। बेहतर यही है कि आप सरल फॉर्म भरें। पर जो लोग पुराने फॉर्म को भरना चाह रहे हों, उनको पुराना तरीका ही अपनाना होगा।


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पैन का ब्योरा दूसरी जानकारी परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) संबंधी होती है। पैन के बिना आप टैक्स रिटर्न नहीं भर सकते। आयकर विभाग में आवेदन करके आप अपना पैन कार्ड बनवा सकते हैं।


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असाइनिंग ऑफीसर का पद इसके बाद असाइनिंग ऑफीसर की डेजिगनेशन भरनी होती है। अगर आप पहली बार रिटर्न भर रहे हैं तो इसकी जानकारी आपको आयकर विभाग से मिलेगी। पुराने लोग इसकी जानकारी बीते साल के रिटर्न फार्म से ले सकते हैं।


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सेक्शन का ब्योरा किस सेक्शन के अंतर्गत रिटर्न भरना है इसकी जानकारी के लिए निर्देश जरूर पढ़ लें।

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वेतन की डिटेल इनकम टैक्स रिटर्न में सेलरी की जानकारी फार्म 16 के जरिए देनी होती है। फार्म 16 में आपके वेतन का पूरा ब्योरा आपका इंप्लायर देता है। वेतन में बेसिक सेलरी और दूसरे सभी अलाउंस जोड़े जाते हैं।

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अपने घर का टैक्स पर असर अगर आप अपने घर में रह रहे हैं तो आपको आईटीआर-2 फार्म भरना होगा। इसमें दो तरह की जानकारी देनी होगी। पहली घर के लोन के संबंध में। दूसरी घर से होने वाली आमदनी के बावत।


PICS:आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'


घर के लोन का ब्योरा -मान लीजिए आपने घर के लिए 10 फीसदी ब्याज दर पर 20 साल के लिए 20 लाख रुपये का होम लोन लिया। इस पर हर महीने करीब 19,300 रुपये की ईएमआई दे रहे हैं। इसकी साल में कुल ईएमआई बनी 2,31,600 रुपये। इसमें पहले साल ब्याज अमाउंट होगा करीब 1,98,567 रुपये। मगर आप छूट पाएंगे सिर्फ 1,50,000 रुपये पर।



PICS:आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'


फार्म में एंट्री कैसे करेंगे भ्रिटर्न फार्म में आपको 1,50,000 रुपये के ब्याज की एंट्री करनी होगी। ये ब्योरा बैंक एक सर्टिफिकेट पर देते हैं।


PICS:आईटी रिटर्न से जुड़ी 10 बेहद खास बातें, जो दिलाएंगी मोटी 'रकम'


निवेश की कमाई का हिसाब निवेश की आमदनी पर समान टैक्स नहीं लगता है। इसलिए इसकी एंट्री अलग-अलग करनी होती है। शार्ट टर्म इनकम को कुल आमदनी में जोड़कर स्लैब के हिसाब से टैक्स लगाया जाता है। सोना, प्रॉपर्टी या डेट म्यूचुअल फंड से होने वाली आमदनी का ब्योरा अलग से देना होता है।


(साभार)

इनकम टैक्‍स बचाने के सात उपाय, जो सैलरी से नहीं कटने देंगे आपके हजारों रुपये

इनकम टैक्‍स बचाने के सात उपाय, जो सैलरी से नहीं कटने देंगे आपके हजारों रुपये



मेहनत करके लोग पैसा कमाते हैं लेकिन जब यही पैसा इनकम टैक्स के रूप में साल के अंत में आपकी सैलरी से काट लिया जाता है। तो यकीनन यह सबसे कष्ट देने वाला लम्हा होता है। हर कोई चाहता है कि उसका टैक्स कम से कम कटे लेकिन इसके लिए आयकरदाता पूरी तैयारी नहीं कर पाता है। आज हम इनकम टैक्स एक्सपर्ट के शब्दों में आपको वो तरीका बताएंगे जिससे सैलरी से कटने वाला इनकम टैक्स बचाया जा सकेगा। इन तरीकों को अपनाकर आप हजारों रुपये तक हर साल बचा सकते हैं।
 
जनवरी से मार्च वित्त वर्ष के वो महीने होते हैं जब टैक्स प्लानिंग चिंता का सबसे बड़ा मुद्दा होता है। ज्यादा टैक्स कटौती के दायरे में आने वाले वेतनभोगी आखिरी समय में निवेश के ऐसे विकल्प खोजते हैं जहां वे टैक्स बचा सकें। लेकिन समझदारी इसी में है कि विभिन्न इन्स्ट्रूमेंट्स की विशेषताओं और फायदों पर नजर डाल ली जाए।सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर और और द फाइनेंशियल प्लानर्स गिल्ड इंडिया के सदस्य जितेंद्र पी.एस. सोलंकी बता रहे हैं कि टैक्स प्लानिंग के लिए कैसे समझदारी से निवेश करें:  
 
 
1. जीवन बीमा : इसमें आप हर साल प्रीमियम जमा करते हुए टैक्स सेविंग कर सकते हैं। टैक्स बेनिफिट के एक अप्रैल 2012 से हुए बदलाव के अनुसार यदि बेस कवरेज प्रीमियम के 10 गुना से कम है तो टैक्स सेविंग का लाभ नहीं मिल पाएगा। यह शर्त पॉलिसी की पूरी अवधि तक लागू रहती है। टैक्स सेविंग के लिहाज से इसे लेने का फैसला जल्दबाजी में न करें। 
 
2. ईएलएसएस : इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम भी अच्छे रिटर्न के साथ टैक्स सेविंग का पसंदीदा माध्यम रहा है। इसका मुख्य कारण तीन साल का लॉक-इन पीरियड और निवेश का सरल तरीका है। हालांकि बीते कुछ वर्षों के दौरान शेयर बाजार की अस्थिरता से इसका आकर्षण घटा है। लेकिन बाजार को समझने वालों के लिए अभी भी टैक्स सेविंग के लिए अच्छा इन्स्ट्रूमेंट है। 
 
3. स्मॉल सेविंग्स : पब्लिक प्रोविडेंट फंड लंबी अवधि की प्लानिंग के लिहाज से अच्छा निवेश है। इसमें निवेश की रकम, ब्याज और मैच्योरिटी पर टैक्स नहीं लगता है। हालांकि एक दिसंबर 2011 से इसकी ब्याज दरें बाजार से जोड़ दी गई हैं। फिर भी टैक्स सेविंग के लिए यह अच्छा विकल्प है। एनएससी या डाकघर जमा जैसी अन्य स्मॉल सेविंग स्कीम में निवेश करना आसान है। लेकिन इन पर मिलने वाले ब्याज पर कर लगता है। इसलिए सभी निवेशकों के लिए यह फायदेमंद नहीं होती। 
 
4. एनपीएस : न्यू पेंशन स्कीम अब सबके लिए उपलब्ध है। ऐसे निवेशक जो रिटायरमेंट प्लानिंग के लिहाज से निवेश का एलोकेशन नहीं कर पाते उनके लिए यह अच्छा विकल्प है। नियोक्ता के कॉन्ट्रिब्यूशन से एडिशनल टैक्स बेनिफिट इसे आकर्षक बनाता है। 
 
5. फिक्स्ड डिपॉजिट : टैक्स बचाने के लिहाज से एफडी सबसे आसान विकल्प है। लेकिन इनका ब्याज टैक्स फ्री नहीं है। यह विकल्प उनके लिए ठीक है जो लोअर टैक्स ब्रैकेट में आते हैं। 
 
6. हेल्थ इंश्योरेंस: यह 80सी से ज्यादा टैक्स बेनेफिट देता है। व्यक्ति को पहले अपनी जरूरत को समझकर इसे लेना चाहिए। इसमें टैक्स बेनिफिट एक एडेड एडवांटेज है। 
 
7. आरजीईएसएस : राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम टैक्स लाभ का नया विकल्प है। यह उनके लिए है जिन्होंने शेयर बाजार में कभी निवेश नहीं किया है। इसके तहत 50 हजार रुपए तक की सीमा में जितना भी निवेश करते हैं उसके 50 फीसदी के बराबर अपनी आय में टैक्स बेनेफिट ले सकते हैं। लेकिन इक्विटी स्कीम होने से जोखिम भी जुड़ा होता है। 
 
टैक्स प्लानिंग आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग का एक हिस्सा है। इसके उपाय वित्त वर्ष के शुरू में ही कर लेने चाहिए। इससे आखिरी महीनों में आप पर वित्तीय दबाव नहीं पड़ेगा और भागदौड़ से भी बचेंगे। 



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निवेश सलाहकारों के मानक हुए और कड़े 
 
 
सेबी के पास कराना होगा पंजीकरण 
 
हर उत्पाद की फीस का होगा खुलासा 
 
सलाह के खिलाफ राय 15 दिन तक नहीं 
 
उत्पादों में होल्डिंग का खुलासा जरूरी 
 
सारे रिकॉर्ड रखने होंगे 5 साल तक 
 
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पूंजी बाजार नियामक सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड (सेबी) ने निवेश सलाहकारों के मानकों को और कड़ा कर दिया है। अब सभी निवेश सलाहकारों को बाध्यकारी रूप से सेबी के पास पंजीकरण कराना होगा। इस मामले में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सेबी ने बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) व कॉरपोरेट्स से कहा है कि वे निवेश सलाहकारी सेवाओं को अपनी अन्य गतिविधियों से अलग करें। साथ ही, निवेश सलाहकारों को हर प्रोडक्ट पर वसूल की जाने वाली फीस को स्पष्ट करना होगा। सेबी के यह मानक तीन माह में लागू हो जाएंगे। 
 
सोमवार को जारी इस आशय की अधिसूचना में सेबी ने कहा है कि वित्तीय उत्पादों के बारे में सलाहकारी सेवाएं देने वाली सभी संस्थाओं को अब इसके पास बाध्यकारी रूप से पंजीकरण कराना होगा। साथ ही, इन्हें सलाहकारी सेवाओं को वितरण जैसी अन्य गतिविधियों से अलग करना होगा। निवेश सलाहकार बनने के लिए किसी कॉरपोरेट संगठन की न्यूनतम वैल्यू 25 लाख रुपये की होनी चाहिए। व्यक्तिगत निवेश सलाहकारों के मामले में यह वैल्यू एक लाख रुपये रखी गई है। सेबी ने सभी मौजूदा निवेश सलाहकारों को इन पूंजीगत मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक साल का समय दिया है। 
 
निवेश सलाहकारों के काम को ज्यादा जवाबदेह बनाने के लिए सेबी ने कहा है कि अगर किसी ग्राहक को कोई सलाह दी जाती है तो निवेश सलाहकार इसके बाद कम से कम 15 दिनों तक इसके ठीक विपरीत सलाह नहीं दे सकेगा। साथ ही, निवेश सलाहकारों को उत्पाद विशेष पर ली जाने वाली फीस, उत्पादों में खुद की होल्डिंग, निवेश को लेकर जोखिम और वित्तीय उत्पाद जारी करने वाली संस्था के साथ अपने संबंध के बारे में स्पष्ट खुलासा करना होगा। साथ ही निवेश सलाहकारों को पांच साल तक ग्राहकों की केवाईसी, एग्रीमेंट की कॉपी, निवेश को लेकर दी गई सलाह, फीस का डाटा और सलाह दिए जाने के समय का रिकॉर्ड भौतिक या इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखना होगा। 
 
सेबी ने निवेश सलाहकारों के लिए प्रमाणपत्र लेने को बाध्यकारी बना दिया है। मौजूदा समय में निवेश सलाहकार का काम कर रही संस्थाओं को छह माह के भीतर यह प्रमाणपत्र सेबी से लेना होगा।प्रमाणपत्र पांच साल के लिए दिया जाएगा और एक्सपायर होने से तीन माह पहले इसका नवीनीकरण कराना होगा। निवेश सलाहकारों के पार्टनरों व उनके साथ काम करने वाले प्रतिनिधियों को भी दो साल के भीतर प्रमाणपत्र हासिल करना होगा। सेबी ने इनके लिए कुछ शैक्षणिक योग्यताएं भी तय की हैं। हालांकि, सेबी ने किसी के भले के लिए सलाह देने वालों, वकीलों व बीमा एजेंटों को इस दायरे से बाहर रखा है।



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भारतीय सीईओ पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा कॉन्फिडेंट 
 
पीडब्ल्यूसी सर्वे के निष्कर्ष 
 
विदेशी कंपनियों के सीईओ का विश्वास बढऩे के बजाय अब और घट गया है 
 
अपनी कंपनियों में नई भर्तियों को लेकर भी भारतीय कंपनियों के सीईओ काफी आश्वस्त 
 
पिछले साल भारत में ही सबसे कम कंपनियों ने कर्मचारियों की छंटनी की थी
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भारतीय कंपनियों के सीईओ के कॉन्फिडेंस का कोई जवाब नहीं है। दरअसल, अपने बिजनेस में ज्यादा कमाई और ग्लोबल आर्थिक परिदृश्य में सुधार को लेकर पूरी दुनिया में भारतीय कंपनियों के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) ही सबसे ज्यादा आश्वस्त हैं। वहीं, दूसरी ओर अन्य सभी देशों की कंपनियों के सीईओ इस साल ग्लोबल अर्थव्यवस्था में सुधार होने और आने वाले समय में बेहतर कारोबारी कमाई को लेकर कुछ खास आश्वस्त नहीं हैं। 
 
कटु सच्चाई तो यह है कि विदेशी कंपनियों के सीईओ का विश्वास बढऩे के बजाय अब और घट गया है। जानी-मानी कंसल्टेंसी फर्म पीडब्ल्यूसी द्वारा द्वारा कराए गए सालाना ग्लोबल सीईओ सर्वेक्षण से ये तथ्य उभर कर सामने आए हैं। यहां आयोजित वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक के मौके पर मंगलवार की रात पीडब्ल्यूसी ने अपनी रिपोर्ट जारी की। सर्वे में बताया गया है कि अपनी-अपनी कंपनियों में नई भर्तियों को लेकर भी भारतीय कंपनियों के सीईओ काफी ज्यादा कॉन्फिडेंट हैं। बात अगर पिछले साल की करें तो उस दौरान भारत में ही सबसे कम कंपनियों में कर्मचारियों की छंटनी की गई। डब्ल्यूईएफ की शिखर वार्ता के दौरान अपने 16वें सालाना सीईओ सर्वेक्षण के निष्कर्षों का जिक्र करते हुए पीडब्ल्यूसी ने यह भी बताया, ‘ग्लोबल स्तर पर महज 36 फीसदी सीईओ ने कहा कि वर्ष 2013 में अपनी-अपनी कंपनियों में विकास की अच्छी संभावनाओं को लेकर वे काफी ज्यादा आश्वस्त हैं।’ दरअसल, वर्ष 2012 में 40 फीसदी सीईओ और वर्ष 2011 में इससे भी अधिक 48 फीसदी सीईओ ने ठीक यही बात कही थी। 


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आर्थिक मामलों के जानकार अरविंद कुमार सेन बता रहे हैं कि सोने पर लिया गया ताजा फैसला बीमारी को खत्म करने की बजाए, उसके लक्षणों को दूर करने के सरकारी ट्रेंड की एक और मिसाल है। सोने की मांग कम करने की गरज से इस पर लगने वाला आयात शुल्क चार से बढ़ाकर छह फीसदी कर दिया गया है और गोल्ड लोन देने वाली एनबीएफसी से कहा गया है कि गिरवी रखे जाने वाले आभूषणों की कीमत का अधिकतम 60 फीसदी लोन ही दिया जा सकता है। एनबीएफसी (नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कोरपोरेशन) ऐसे वित्तीय संस्थान को कहा जाता है जो कर्ज मुहैया करवाते हैं लेकिन जनता से जमाएं स्वीकार नहीं कर सकते हैं। सोने के आयात शुल्क में इजाफा करना एक ऐसी दवा है जिसकी घुट्टी सरकार कई मर्तबा पिला चुकी है लेकिन इसका असर एक बार भी देखने को नहीं मिला है। बीते साल बजट में तब के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोने पर लगने वाला आयात शुल्क दो फीसदी से बढ़ाकर चार फीसदी कर दिया था, मगर सोने के आयात में कहां कमी हुई? अब मौजूदा वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने उसी पुरानी दवा की खुराक दी है लेकिन इस बार दवा मरीज को रिएक्शन करने जा रही है। 
 
सोने पर आयात शुल्क बढ़ाना इस मर्ज की दवा नहीं है और 1990 के दशक में भारत इसके दुष्परिणाम भुगत चुका है। सोने की मांग में तेजी की असली वजहों को दूर किए बगैर इसके आयात को महंगा करने से अंडरग्राउंड कारोबार को हवा मिलेगी। 30 लाख रुपए प्रति किलो से ऊपर बिक रही इस धातु की मांग को पूरा करने के लिए तस्कर नेपाल और दुबई के रास्ते टैक्स रहित सोना भारत भेजना शुरू कर देंगे। जैसा कि 1990 में हो चुका है, अवैध तरीके से किए जाने वाले सोने के इस व्यापार से अर्थव्यवस्था को दोहरा नुकसान होगा। सोने की खपत में भी कमी नहीं आएगी और सरकार सोने पर मिलने वाले टैक्स से भी वंचित रह जाएगी। सवाल उठता है कि आखिर रास्ता क्या है और सरकार क्यों सोने का आयात कम करना चाहती है। दरअसल, सोना ही वह एकमात्र चीज है जिसने पिछले कुछ समय में देश के भुगतान संतुलन को सबसे ज्यादा तहस-नहस किया है। 2008-09 में आर्थिक मंदी के बाद से सोने का आयात बिल 21 अरब डॉलर से बढ़कर 2011-12 में 56 अरब डॉलर का दायरा पार कर चुका है। देश के चालू खाते का घाटा (आयात और निर्यात भुगतान के बीच का फर्क) मौजूदा वित्तवर्ष की आखिरी तिमाही में जीडीपी का 5.4 फीसदी हो गया है और इस इजाफे में 70 फीसदी योगदान सोने का है। जब आयात बिल निर्यात से ज्यादा हो तो चालू खाते को घाटा पैदा होता है और 5.4 फीसदी का आंकड़ा किसी भी लिहाज से अर्थव्यवस्था के लिए कंफर्ट जोन नहीं कहा जा सकता है। 
 
तेल का आयात कम नहीं किया जा सकता है, लिहाजा सोने के आयात में कमी करने के अलावा दूसरी कोई राह नहीं है। सोने में लोगों की इस कदर दिलचस्पी की दो बड़ी वजहें हैं। पहली, डबल डिजीट मुद्रास्फीति के वक्त में शेयर मार्केट, म्युचूअल फंड, बैंक और पोस्ट ऑफिस जमा योजनाएं लोगों को पॉजिटिव रिटर्न देने में नाकाम रही हैं। पिछले पांच साल के दरम्यान सोने की कीमतों में सालाना 25 फीसदी की दर से इजाफा हुआ है और इस रफ्तार ने मुद्रास्फीति में हो रही सालाना सात फीसदी की बढ़त को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सोने पर मिलने वाले रिटर्न की इस दर के सामने दूसरी सारी फाइनेंशियल एस्सेट्स फीकी पड़ गई हैं। 2009-10 से घरेलू बचत दर में लगातार आ रही कमी इस बात की तरफ इशारा कर रही है। सोने को सुरक्षित निवेश के रूप में देखने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। सोने की मांग बढऩे की दूसरी वजह यह है कि 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से मची हलचल के कारण दुनियाभर में केंद्रीय विनियामक बैंक अपने रिजर्व को डॉलर या यूरो में रखने की बजाए सोने को प्राथमिकता दे रहे हैं। चीन और ब्राजील जैसी बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं अपने रिजर्व का बड़ा हिस्सा सोने में रख रही हैं। ऐसे माहौल में वैश्विक स्तर पर 2008 के बाद से ही सोने की कीमतों में उछाल आ रहा है और इससे सोने का आयात बढ़ता जा रहा है। मांग में यह तेजी लोगों की इस धारणा को पुख्ता कर रही है महंगाई के खिलाफ हैजिंग (जोखिम से प्रतिरक्षा) का सबसे बड़ा हथियार सोना है और इससे मिलने वाले रिटर्न का मुकाबला इक्विटी या बैंक डिपॉजिट नहीं कर सकते हैं। 
 
सोने की मांग में इजाफा करने वाले इन दोनों कारणों को देखा जाए तो आयात शुल्क बढ़ाने की ताजा सरकारी कवायद से नुकसान के सिवाए कुछ नहीं मिलने वाला है। चूंकि लोगों ने सोने को निवेश का जरिया बना लिया है, इसलिए सोने की मांग में कमी लाने के लिए सरकार को निवेश के दूसरे विकल्प आकर्षक बनाने होंगे। अगर सरकार चाहती है कि लोग सोने से हटकर अपना पैसा बैंक और शेयर मार्केट में लगाएं तो इसकी वाजिब वजह उपलब्ध करानी होगी। मसलन फिलहाल बैंक डिपॉजिट पर मिलने वाली आय पर भी टैक्स लगाया जाता है, वहीं पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट तो पहले ही समय से पीछे छूट चुकी हैं। सोने का आयात कम करने के लिए बैंक डिपॉजिट पर लगने वाले टैक्स को हटाने के साथ ही बचत खाते पर मिलने वाली नाममात्र की ब्याज दरों में भी इजाफा करना होगा। हालांकि यह कड़वी सच्चाई है कि लंबे समय में मुद्रास्फीति को काबू किए बगैर सोने का आयात कम नहीं किया जा सकता है। गोल्ड लोन देने वाली एनबीएफसी पर चाबुक चलाने का फैसला भी उल्टा असर करेगा। एनबीएफसी से निराश ग्राहक सीधा सूदखोरों के पास जाएगा और ऐसे में पूरी आबादी को संस्थागत बैंकिंग के दायरे में लाने का मकसद ही नाकाम हो जाएगा। वक्त का तकाजा है कि सरकार बुखार की बजाए उसकी वजह का इलाज करे।  


(साभार)