Friday, January 25, 2013

प्यार भरी परवरिश





बच्चों के पालन-पोषण का भारतीय तरीका भले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरा न उतरता हो, मगर भारतीय परवरिश की कुछ मजबूत कडियां हैं, जिन्हें चाहकर भी नकारा नहीं जा सकता। हमारी परवरिश में कुछ खामियां हैं तो ढेरों खूबियां भी हैं। कैसे अपने परवरिश के तरीके की खामियों को दूर किया जाए और अपने बच्चे को पूरी दुनिया के मुकाबले बेहतरीन परवरिश दी जाए,
दुनिया के हर देश और प्रांत में बच्चों की परवरिश का तरीका अलग है। परवरिश की परंपरा चाहे जो हो, पर नियम हर जगह एक जैसे होते हैं। परवरिश के इन नियमों को उम्र की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। ये नियम हर उम्र के बच्चों पर लागू होते हैं। छोटी-छोटी बातें, जो हमें तोतली भाषा में बड़ी अच्छी लगती हैं, बच्चों के बड़े होने पर उनके मुंह से निकली वही बातें बुरी लगने लगती हैं। इसलिए बच्चों के खड़े होते ही उनकी बेहतर परवरिश के नियमों का पाठ शुरू कर दिया जाना चाहिए। लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि आप जिन अच्छी आदतों को अपने बच्चों में देखना चाहती हैं, उन्हें अपनी आदतों में पहले शामिल करें। सर गंगाराम अस्पताल की वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. रोमा कुमार के मुताबिक, बच्चों की बेहतर परवरिश उनके बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करती है। दो से दस साल के बच्चों की परवरिश के दौरान कुछ बातों को ध्यान में रखकर आप उनका बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकती हैं।
सेक्सुएलिटी एजुकेशन है जरूरी, सेक्स एजुकेशन के लिए करें इंतजार
बच्चों को सेक्सुएलिटी एजुकेशन देना बहुत जरूरी है। सेक्सुएलिटी एजुकेशन और सेक्स एजुकेशन में अंतर है। सेक्सुएलिटी एजुकेशन का मतलब अच्छे और बुरे टच (छूना) के अंतर से है। किस तरह का स्पर्श गलत है और किस तरह का स्पर्श सही है, इसका अंतर बच्चों को पता होना चाहिए। ज्यादातर भारतीय बच्चों को इसका अंदाजा नहीं रहता, जबकि बहुत कम उम्र से ही उन्हें इन सारी चीजों को झेलना पड़ता है। खासकर घर में आए दूर के रिश्तेदारों द्वारा कई बार ऐसी हरकत की जाती है, लेकिन बच्चे उसे समझ नहीं पाते। अपने बच्चों में स्पर्श पहचानने की क्षमता विकसित करें, ताकि वे उसका विरोध कर सकें। किसी भी दुर्घटना से खुद को बचा सकें और अपनी आत्मरक्षा कर सकें। सेक्सुएलिटी एजुकेशन देने की शुरुआत काफी कम उम्र से की जा सकती है, जैसे कि तीन साल की उम्र से ही बच्चों को ये बताना शुरू कर दें कि अगर उन्हें कोई व्यक्ति गलत तरीके से छूता है तो वे उसका विरोध करें और आकर माता-पिता को बताएं।
इसके विपरीत सेक्स एजुकेशन के लिए बच्चों के परिपक्व होने का इंतजार करें। भारतीय परिवेश में लड़कों के लिए परिपक्वता की उम्र 13 साल मानी जाती है और लड़कियों के लिए 11 साल के बाद। माना जाता है कि 13 साल की उम्र से किशोरों की समझदारी का स्तर इतना हो जाता है कि उन्हें सेक्स से संबंधित जानकारियां दी जा सकती हैं, जिससे वे गलत और सही में भेद कर सकें, जबकि लडम्कियों में दो साल पहले ही वह स्तर आ जाता है। लड़कियां 11 साल में ही परिपक्व हो जाती हैं।
परवरिश में अनुशासन है जरूरी
अनुशासन के बिना परवरिश नमक के बगर दाल जैसी है। बच्चे अनुशासित हों, लेकिन दबे हुए नहीं। अनुशासन का मतलब बच्चों का डराना नहीं होता। आपको अनुशासन और डर में अंतर करना होगा। कई माता-पिता बच्चों को अनुशासित करने के लिए मारपीट का सहारा लेते हैं। यह सही नहीं है। इससे स्थिति बिगड़ सकती है और बच्चा जल्द ही विद्रोह कर सकता है।
खुद भी सही काम करें  
बच्चों से उम्मीद करने से पहले माता-पिता को भी अपनी आदतों में सुधार करने की जरूरत है। यानी जो आप बच्चों से चाहते हैं, पहले उसे खुद करके दिखाएं।
मसलन, यदि आप चाहती हैं कि बच्चे डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाएं तो आपको भी ऐसा ही करना होगा। टीवी के सामने खाना न खाना, देर रात टीवी न देखना, चीजों को सही जगह पर रखना, किताबों के साथ कुछ समय गुजारना आदि कुछ आदतें हमें खुद में विकसित करनी होंगी, तभी बच्चे भी उन्हें अपनाएंगे।
जिद को टालें नहीं
बच्चे अक्‍सर किसी चीज के लिए जिद करते हैं। हम उनकी कई जिद पूरी कर देते हैं और कई बार ये कहकर टाल देते हैं कि अभी तुम इसके लिए छोटे हो, बड़े हो जाओ फिर तुम्हारी यह बात मानेंगे। डॉ. रोमा कुमार के मुताबिक, यह सही तरीका नहीं है। बच्चों की हर जिद पूरी नहीं की जानी चाहिए, लेकिन इसके लिए उन्हें जायज वजह बताएं। उन्हें ये कहें कि जिस चीज की तुम मांग कर रहे हो वह ठीक नहीं है। हम तुम्हारी इस जिद को पूरा नहीं कर सकते।
बातचीत है जरूरी
बच्चों के साथ खुलकर बात करें। उनके साथ सिर्फ खुशियों के पल ही नहीं, अपने दुख भी बांटें। बच्चे आपको और घर की परिस्थितियों को समझेंगे। पर ध्यान रखें कि बच्चों पर इसका गहरा असर न हो। इससे उनकी अपनी सोच प्रभावित हो सकती है।
घर में वैल्यू सिस्टम विकसित करें
घर में एक वैल्यू सिस्टम का होना जरूरी है। वैल्यू सिस्टम से मतलब है, आप घर में या कहीं भी बच्चों के सामने गालियां न दें। उनके सामने कोई गलत बात न कहें। बच्चे जब अभिभावकों को गाली देते हुए सुनते हैं, उन्हें वह सही लगता है। अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए वे भी गालियों का इस्तेमाल करने लगते हैं। खुद नियमों को न तोड़ें, क्योंकि बच्चों की मानसिकता बन जाती है कि वे भी कभी-कभी नियम तोड़ सकते हैं।
समय देना है जरूरी
आज शहरों में ज्यादातर माता और पिता दोनों वर्किंग होते हैं। ऐसे में बच्चों को माता-पिता का पर्याप्त साथ नहीं मिल पाता। हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक इन दिनों शहरों में अभिभावक अपने बच्चों के साथ औसतन चार घंटे गुजारते हैं, जो उनके विकास के लिए काफी नहीं हैं।
उम्र के हिसाब से बदलें अपना रोल
बढ़ती उम्र के साथ माता-पिता को अपना रोल भी बदलना चाहिए। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा हो, उससे दोस्त की तरह व्यवहार करें, ताकि वह आपसे अपनी चीजें बांट सके, अपनी बातें कह सके, उसके दिमाग में क्या चल रहा है आपके साथ साझा कर सके। उसके मन में किसी बात को छुपाने का डर न हो। ऐसा करने से बच्चों का बौद्धिक और मानसिक विकास सही तरीके से होता है और वे जिदंगी में आने वाली चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से कर पाएंगे।
गलत बात पर वाहवाही नहीं
कम उम्र में ड्राइविंग सीखना, किसी को धोखा देना, मदद न करना, तोतली भाषा में दूसरों को गाली देना, छोटी उम्र में ही दूसरों को मारने का इशारा करना आदि बातें, जिनकी हम शुरुआत में तारीफ करते हैं, दरअसल बच्चों की बुद्धि पर ये नकारात्मक असर डालती हैं। अच्छा हो अगर बच्चों की उम्र सीमा को समझें। इसे तोड़ने से रोकें। बच्चा कम उम्र में ही ड्राइविंग सीख ले तो इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आप उसे ड्राइविंग की आजादी ही दे दें। बच्चे की उम्र कम हो या ज्यादा, गलत बात को कभी बढ़ावा कभी न दें। उन्हें नियम तोड़ना न सिखाएं।
कुछ कमियां जहां सुधार है संभव
इहबास (इंस्टीटय़ूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइसंसेज), नई दिल्ली में मनोविज्ञान के एसो. प्रोफेसर ओम प्रकाश के मुताबिक, भारतीय परवरिश दुनिया के किसी दूसरे देशों से बिल्कुल अलग है। उनकी कुछ खास बातें हैं, जो कहीं और नहीं दिखतीं। लेकिन कुछ खामियां भी हैं, जो यहां की परवरिश पर सवालिया निशान लगा देती हैं।
उम्र के साथ-साथ बच्चों के लिए अपने व्यवहार में बदलाव करें। हमारी परवरिश में इसका चलन नहीं है। अपने बच्चों के साथ जैसा हम पांच साल की उम्र में व्यवहार करते हैं, वैसा ही दस वर्ष की उम्र में और उसके उम्रदराज होने पर भी काफी हद तक हमारा रवैया वैसा ही होता है। भारतीय परिवेश में 11 वर्ष के बाद लड़की में और 13 वर्ष के बाद लड़के में परिपक्वता आ जाती है, इसलिए इस उम्र के बाद उन्हें आत्मनिर्भर बनना सीखना चाहिए।
भारतीय परवरिश में बच्चों की हमेशा माता-पिता पर निर्भरता बनी रहती है। बात चाहे छोटे-बड़े फैसले की हो या किसी कोर्स की, भारतीय बच्चे अपने माता-पिता पर पूरी तरह से निर्भर रहते हैं। निर्भरता माता-पिता और बच्चों के बीच की बॉन्डिंग को मजबूत तो करती है, मगर एक सीमा के बाद यह बच्चे को दबाने लगती है।
माता-पिता या बड़ों द्वारा फैसले थोपने की प्रथा भी गलत है। सवाल करियर का हो या शादी का, हमेशा घर के बड़े अपनी मर्जी से ही फैसला करना चाहते हैं। कुछ सीमा तक यह बच्चों को सुरक्षा का एहसास दिलाती है, पर एक सीमा के बाद उनमें मनोविकार पैदा होने लगते हैं। वे बहुत ज्यादा दबाव महसूस करने लगते हैं, उनमें चिड़चिड़ापन, तनाव आने लगता है। वे प्राकृतिक रूप से अपनी पूरी काबिलियत नहीं दे पाते। इसलिए बच्चों को थोड़ा स्पेस देना जरूरी है ताकि बच्चे खुद को समझ सकें और अपनी कमजोरियों व ताकतों को पहचान सकें।
बच्चों में तीन साल की उम्र से ही नैतिक मूल्य विकसित करना जरूरी है। किसी किताब या ग्रंथ की सहायता से ऐसा करना संभव नहीं है। इसके लिए माता-पिता को खुद एक रोल मॉडल की तरह काम करना होगा।
(साभार)

कहें वाह! पनीर





शाकाहारी खाने में अगर कुछ स्पेशल बनाना है तो हमारे यहां सबसे पहले नाम आता है पनीर का। पनीर न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि सेहत का खजाना भी है। पनीर के क्या-क्या फायदे हैं और ज्यादा पनीर खाने से आपकी सेहत को क्या हो सकता है नुकसान,
पनीर का नाम सुनते ही आपके मुंह में पानी आना स्वाभाविक है। पनीर है ही इतना स्वादिष्ट। स्वाद के साथ-साथ सभी पोषक तत्व, जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन बी-2, बी-12 एवं विटामिन डी सभी पनीर में मौजूद हैं। पनीर एक अकेला ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसका प्रयोग सलाद, सब्जी, मिठाई सभी में होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन-सा पनीर खाते हैं। सभी प्रकार का पनीर आपके शरीर को फायदा पहुंचाता है और कई खतरनाक बीमारियों की रोकथाम करता है। आइये जानें पनीर के फायदे:
सेहत के लिए फायदेमंद
हड्डियों को बनाए मजबूत: पनीर कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मजबूत हड्डियों के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है और पनीर में प्रोटीन और कैल्शियम दोनों ही उच्च मात्रा में होते हैं। पनीर में विटामिन ए, फास्फोरस और जिंक पाए जाते हैं। विटामिन बी भी पनीर में पाया जाता है, जो शरीर को कैल्शियम प्रदान करता है। खासतौर से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों की हड्डियों को मजबूत करने में पनीर मदद करता है।
स्वस्थ दांत: जब मजबूत दांतों की बात आती है, तो कैल्शियम सबसे महत्वपूर्ण है। पनीर में कैल्शियम उच्च मात्रा में मिलता है। पनीर में लेक्टोस बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। लेक्टोस एक ऐसा पदार्थ होता है, जो खाने से निकलता है और दांतों को नुकसान पहुंचाता है। पनीर सेल्विया के प्रवाह को बढमता है और दांतों से एसिड और शर्करा को साफ करता है।
त्वचा के लिए अच्छा: चेहरे पर चमक लानी है तो पनीर का सेवन करें। पनीर में विटामिन बी होता है। विटामिन बी के सेवन से स्वस्थ एवं चमकदार त्वचा मिलती है। पनीर को अपनी डाइट में नियमित रूप से शामिल करें, आप फर्क खुद महसूस करेंगी।
पाचन शक्ति बढ़ाए: पनीर का सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है। रोग प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है तो बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता बढ़ जाती है।
तनाव करे कम: रात को नींद नहीं आती या फिर तनाव से ग्रस्त हैं तो सोने से पहले खाने में पनीर का सेवन करें, नींद अच्छी आएगी। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि पनीर में ट्राईप्टोफन एमिनो एसिड पाया जाता है, जो तनाव कम करने और नींद को बढ़ाने में मददगार साबित होता है।
गठिया से राहत: गठिया रोग का सबसे बड़ा कारण कैल्शियम की कमी है। पनीर इस रोग से पीडितों के लिए सबसे अच्छा उपाय है। इस बीमारी का इलाज प्रोटीन, कैल्शियम और उच्च मात्रा में विटामिन और मिनरल्स का सेवन है और ये सभी चीजें पनीर में मौजूद होती है।
खाएं, पर जरा संभल कर 
पनीर खाना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद रहता है। लेकिन ज्यादा पनीर खाना आपको नुकसानदेह भी हो सकता है। पनीर में उच्च मात्रा में संतृप्त वसा मौजूद होती है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाती है। कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना आपके दिल के लिए खतरा भी पैदा कर सकता है। साथ ही अगर आप वजन कम करना चाहती हैं तो पनीर कम खाएं।
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चलेगा आपकी आंखों का जादू




आंखें ही वह जरिया हैं, जो बिना बोले भी बहुत कुछ कह जाती हैं। चाहे पार्टी, ऑफिस, कॉलेज, इंटरव्यू या प्रोफेशनल मीटिंग हो, हर जगह आंखों के जरिए आप अपने आपको एक खास अंदाज में पेश कर सकती हैं। कैसे अपनी आंखों को आईशैडो से आकर्षक बनाएं,
यूं तो आजकल कई रंगों के आईशैडो चलन में हैं, लेकिन चमकते चॉकलेटी रंग, गुलाबी, बैंगनी, भूरे और नीले रंग के आईशैडो खासतौर से पसंद किए जा रहे हैं। आईशैडो का इस्तेमाल आप कई तरह से कर सकती हैं, पर इसे इस्तेमाल में लाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आपकी आंखों का आकार कैसा है। यानी आपकी आंखें छोटी हैं या बड़ी। अगर आपकी आंखें छोटी हैं तो आपको पलकों के बीच में हल्के रंग का और किनारों पर गहरे रंग का आईशैडो लगाना चाहिए, वहीं बड़ी आंखों में आईशैडो लगाते समय आंखों के किनारों पर गहरा रंग इस्तेमाल करें और आंखों के अंदर के कोनों में मस्कारा और आईलाइनर का प्रयोग करें। अगर आपकी आंखें गोल-मटोल हैं तो पूरी पलकों पर हल्के रंग के आईशैडो और कोने पर गहरे रंग का आईशैडो लगाएं।
नीली आंखों के लिए
अगर आपकी आंखें आसमान की तरह नीली दिखाई देती हैं तो आप बहुत खुशनसीब हैं, क्योंकि ऐसी आंखों को सजाने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है। इसके लिए आप भूरे या गुलाबी रंग का आईशैडो चुन सकती हैं। साथ ही भूरे रंग के आईलाइनर का इस्तेमाल कर अपनी आंखों को और भी खूबसूरत बना सकती हैं।
भूरी आंखों के लिए
भूरी आंखों पर लगभग हर रंग का आईशैडो अच्छा दिखता है। आंखों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए सुनहरे भूरे रंग, नीले, हरे, बैंगनी और बरगंडी रंग के आईशैडो का इस्तेमाल करें।
हरी आंखों के लिए 
अगर आपकी आंखें हरे रंग की हैं तो आपको नीले और सिल्वर रंग की आईशैडो का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इस तरह की आंखों को सजाने के लिए चॉकलेटी भूरे रंग का आईशैडो बेहतर होगा। आप भूरे रंग का मस्कारा और गुलाबी लिपस्टिक लगाकर अपनी खूबसूरती को और बढ़ा सकती हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
आईशैडो लगाने के लिए हमेशा अच्छी क्वालिटी का ब्रश इस्तेमाल करें। इससे न सिर्फ आईशैडो अच्छी तरह से लगा पाएंगी, बल्कि आपकी त्वचा भी सुरक्षित रहेगी।
न्यूड या न्यूट्रल रंग के आईशैडो को लगाने के बाद ही शिमर का इस्तेमाल करें। शिमर आईशैडो का प्रयोग कई बार चेहरे की झुर्रियों को उभार देता है।
अगर आंखें छोटी हैं तो आंखों के कोनों पर सफेद शैडो का इस्तेमाल करें। इससे आंखें न केवल सुंदर, बल्कि बड़ी भी दिखेंगी।
अगर आप सेक्सी दिखना चाहती हैं तो स्मोकी आईशैडो का इस्तेमाल करें।
गलत आई मेकअप को साफ करने के लिए सूती कपड़े में मेकअप रिमूवर लगाकर साफ करें। आंखों पर फाउंडेश लगाकर दोबार आईशैडो लगाएं।
आईशैडो लगाते समय इस बात का ख्याल रखें कि ब्रश में कम से कम रंग लगा हो, क्योंकि ये रंग मेकअप करने के दौरान आपकी पलकों के चारों ओर बिखर जाते हैं।
अगर आपका रंग गोरा है तो हल्के रंग के आईशैडो का इस्तेमाल करें। अगर रंगत सांवली है तो आप हल्के गुलाबी और हल्के पीले रंग के आईशैडो का इस्तेमाल कर अपनी आंखों को खूबसूरत बना सकती हैं। इसके अलावा आप सिल्वर और शिमरी आईशैडो का भी प्रयोग कर सकती हैं।
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सर्दियों में भी हो सकता है डिहाइड्रेशन

Dehydration



ठंड के मौसम में पानी ज्यादा क्यों पीना? अगर आप भी इसी गलतफहमी में हैं तो जल्द-से-जल्द अपनी इस अवधारणा को बदल डालिए। ठंड के मौसम में भी आप डिहाइड्रेशन की समस्या से परेशान हो सकती हैं। क्या हैं विंटर डिहाइड्रेशन के लक्षण और कैसे बचें इससे, 
गर्मी के मौसम में लगातार बढ़ते तापमान, माथे से टपकते पसीने की बूंदें जैसी स्थिति में तो आप अच्छी तरह से जानती हैं कि पर्याप्त मात्रा में पानी पीना कितना जरूरी है। लेकिन क्या आप इसी डिहाइड्रेशन की समस्या का ध्यान सर्दियों में भी रखती हैं? डाइटीशियन हनी खन्ना कहती हैं कि सर्दियों में मौसम ठंडा होने के कारण हमें पसीना कम आने के साथ-साथ प्यास भी कम महसूस होती है और इस वजह से हम पानी कम पीते हैं। सर्दियों में कम मात्रा में पानी और अधिक मात्रा में किया गया चाय का सेवन डिहाइड्रेशन को न्योता देने से कम नहीं है। दिन में दो कप चाय पीने के बाद भी अगर और चाय पीने की इच्छा हो तो आप ग्रीन टी पी सकती हैं। इसके अलावा चाय की जगह सूप पीना बेहतर होगा। अधिकांश लोग ठंड में तला-भुना और मीठा यह सोचकर खाते हैं कि इससे शरीर को गर्मी मिलेगी। पर यह धारणा पूरी तरह से गलत है। सही मात्रा में खाया गया हेल्दी खाना शरीर को तंदुरुस्त रखने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार से रोगों से लडम्ने की ताकत भी देता है। घर के अंदर अधिक समय तक चलने वाले रूम हीटर भी ठंड के मौसम में डिहाइड्रेशन का कारण बन सकते हैं। सर्दी हो या गर्मी, पानी शारीरिक तापमान और क्रियाओं को संतुलित रखने के साथ-साथ शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालकर शरीर को पोषक तत्व और ऑक्सीजन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
क्या हैं लक्षण
सर्दी हो या फिर गर्मी, दोनों मौसम में होने वाली डिहाइड्रेशन की समस्या के लक्षण एक जैसे हैं। मुंह के अंदर सूखापन महसूस होना, त्वचा मुरझाना, अक्‍सर थकावट महसूस होना, पेशाब कम होना, सिरदर्द होना, चक्कर आना और होंठों का फटना सर्दियों में होने वाले डिहाइड्रेशन के लक्षण हैं।
ऐसे बचें डिहाइड्रेशन से
डाइटीशियन हनी खन्ना कहती हैं कि डिहाइड्रेशन कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसको आसानी से काबू में न किया जा सके। बस जरूरत है तो थोड़ी एहतियात बरतने की। इस समस्या से दूर रहने के लिए आप अपने साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों को नियमित रूप से थोड़ी-थोड़ी देर में पानी पीने को कहें। पानी की बोतल हमेशा साथ रखें। वैज्ञानिक तौर पर यह कहा जाता है कि रोजाना महिलाओं को करीब 2.5 लीटर और पुरुषों को 3 लीटर पानी कम-से-कम पीना चाहिए। इसके अलावा हर व्यक्ति को उम्र, वजन और सेहत के मुताबिक कम या ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए। 
डिहाइड्रेशन की समस्या से बचने के लिए रोजाना कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं।  
हर दो से तीन घंटे के बाद हेल्दी फूड लें, जिसमें दूध और दूध से बने पदार्थ, दाल, मेवे, फल, सब्जियां या फिर मांसाहारी खाना भी खा सकते हैं।
पानी और विटामिन से भरपूर फल और सब्जियां जैसे तरबूज, संतरा, सलाद और जूस आदि का सेवन भरपूर करें।
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स्वस्थ रहना है तो खाएं फल और सब्जियां




मनुष्य की भावनाओं का फल और सब्जियों से सीधा रिश्ता होता है। न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं का कहना है अधिक मात्रा में फल और सब्जियां खाने वाले लोग भावनात्मक रूप से स्वस्थ होते हैं।
मनोवैज्ञानिक शोधकर्ताओं तामलिन कॉनर और बॉनी वाइट ने न्यूजीलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ ओटेगो के पोषण शोधकर्ता कैरोलीन हॉर्वथ के साथ मिलकर तरह-तरह के खान-पान के इंसानी भावनाओं पर होने वाले असर की जांच की।
शोधकर्ताओं ने करीब 20 साल की उम्र के युवाओं को इंटरनेट पर उनके खान-पान की आदतों को एक डायरी में नोट करने को कहा। प्रतिभागियों ने लगातार 21 दिनों तक भावनाओं से जुड़े नौ सकारात्मक और नौ नकारात्मक सवालों की प्रश्नावली का जवाब दिया। प्रश्नावली में यह भी शामिल था कि उन्होंने उस दिन भोजन में क्या खाया है।
अध्ययन में पता चला कि भोजन की अन्य सामग्रियों की अपेक्षा फल और सब्जियां खाने से भावनाओं में सकारात्मकता आती है। कॉनर के अनुसार प्रतिभागियों ने फल और सब्जियां खाने पर खुद को शांत, प्रसन्न और अधिक ऊर्जावान महसूस किया।

स्ट्रॉबेरी अच्छी हैं आपके लिए




सप्ताह में दो से तीन बार ब्लूबेरी या स्ट्रॉबेरी खाने से महिलाओं में दिल के दौरे का खतरा एक-तिहाई तक कम हो जाता है। यह निष्कर्ष जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में हाल ही में प्रकाशित एक शोध में निकाला गया है। दरअसल ब्लूबेरी और स्ट्रॉबेरी में फ्लैवनॉइड्स नाम का एक कम्पाउंड होता है, जो दिल की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने में मदद करता है। 25 से 42 उम्र की 93,600 महिलाओं पर यह शोध किया गया।
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टैटू और हैपेटाइटिस के बीच है गहरा संबंध




अमेरिकी शोधकर्ताओं का दावा है कि शरीर पर तस्वीरें गुदवाने (टैटू) और जिगर की बीमारी हैपेटाइटिस सी के बीच गहरा संबंध है। हैपेटाइटिस जिगर के कैंसर का बड़ा कारण है।
मेडिकल जर्नल हैपेटोलाजी में छपे एक शोध लेख में कहा गया है कि हैपेटाइटिस का विषाणु खून के जरिए अधिक फैलता है और टैटू गुदवाने से यह खतरा काफी बढ़ जाता है।
अमेरिकी संगठन सेन्टर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक अमेरिका में लगभग 32 लाख लोग हैपेटाइटिस से पीड़ित है और यह बीमारी जिगर के कैंसर का प्रमुख कारण है। इस शोध को न्यूयॉर्क विश्विवद्यालय के लेंगोन मेडिकल सेन्टर की वैज्ञानिक पिट्रज फ्रेंकोइस ने अपनी टीम के साथ किया है।
इनकी टीम ने न्यूयॉर्क के तीन अस्पतालों में ऐसे 200 मरीजों पर शोध किया जिन्होंने टैटू गुदवाए थे और हैपेटाइटिस सी की बीमारी से पीड़ित थे। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि टैटू गुदवाने वाले 34 फीसदी लोगों में हैपेटाइटिस की बीमारी पाई गई, जबकि टैटू रहित लोगों का आंकड़ा 12 प्रितशत था जिन्हें यह बीमारी हुई थी।
उन्होंने बताया कि टैटू एक बड़ा खतरा हो सकता है क्योंकि यह हैपेटाइटिस सी का विषाणु भी उपहार में दे सकता है। यह विषाणु कई वर्षों तक शरीर में सुप्तावस्था में पड़ा रह सकता है और लोगों को पता नहीं चल पाता।
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बुढ़ापे को रखे दूर बीटा कैरोटिन




बीटा कैरोटिन को बीटा कैरोटिनम, प्रो-विटामिन, ट्रांस-बीटा कैरोटिन भी कहते हैं। दूसरे कैरोटिनाइड्स की तरह बीटा कैरोटिन भी एक एंटी-ऑक्सीडेंट है। यह फ्री-रैडिकल्स द्वारा शरीर को पहुंचने वाले नुकसान से सुरक्षा करता है। फ्री-रैडिकल्स ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया  द्वारा शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। समय के साथ यह प्रक्रिया कई बीमारियों का कारण बनती है। बीटा कैरोटिन कैंसरऔर हृदय रोगों जैसी गंभीर बीमारियों की आशंका कम करता है। यह महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम के लिए भी काफी उपयोगी है। हाल ही में हुए अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि बीटा कैरोटिन अनाज से आयरन और जिंक की उपलब्धता को सुधारता है।
क्या है बीटा कैरोटिन?
बीटा कैरोटिन एक पिग्मेंट है, जो पौधों में पाया जाता है, विशेषकर रंग-बिरंगी सब्जियों और फलों में। इसी के कारण फलों और सब्जियों में चमकीली पीली और नारंगी आभा नजर आती है। यह लाल, नारंगी और पीले पिग्मेंट्स कैरोटिनाइड समूह का एक सदस्य है। बीटा कैरोटिन हमारी विटामिन ए की 50 प्रतिशत आवश्यकता पूरी कर देता है। यह फल, सब्जियों और साबुत अनाज में पाया जाता है। इसे प्रयोगशाला में भी बनाया जा सकता है। बीटा कैरोटिन भोजन के कलरिंग एजेंट मारैरिन के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
इसके स्रोत
बीटा कैरोटिन हरे पीले और नारंगी रंग के फलों जैसे अंगूर, संतरे, खूबानी और गाजर, कद्दू, शकरकंद जैसी सब्जियों में पाया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी रंगों की सब्जियों और फलों में यह नहीं पाया जाता। यह दूसरे रंग की सब्जियों और फलों में भी पाया जाता है, लेकिन कम मात्र में। उनमें यह दूसरे फाइटोन्युट्रिएंट्स से मिल कर उन्हें लाल, गुलाबी या सफेद आभा देता है। यह ब्रोकली, पालक, हरी मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों में भी पाया जाता है। सब्जियों और फलों का रंग जितना हरा होगा,  उनमें बीटा कैरोटिन की मात्र उतनी ही अधिक होगी। बीटा कैरोटिन के पादप स्रोत वसा और कोलेस्ट्रॉल फ्री होते हैं। ताजे फलों और सब्जियों में इसकी मात्र सर्वाधिक होती है। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में इसकी मात्र कम पाई जाती है।
कुछ मामलों में पकाने की प्रक्रिया भोजन में कैरोटिनाइड की उपलब्धता को सुधारती है। अगर गाजर और पालक को थोड़ी भाप में पका लिया जाए तो इसमें मौजूद कैरोटिनाइड्स को शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। हालांकि अधिक पकाने से कैरोटिनाइड्स नष्ट हो जाते हैं। कच्ची गाजर में यह 100 प्रतिशत होता है, जबकि डिब्बाबंद में यह मात्र घट कर 73 प्रतिशत रह जाती है। फलों और सब्जियों को छिलके सहित खाएं, क्योंकि छिलकों में भी यह काफी मात्र में होता है।
बीटा कैरोटिन और विटामिन
शरीर बीटा कैरोटिन को विटामिन ए (रेटिनल) में बदल देता है। विटामिन ए आंखों के स्वास्थ्य, मजबूत रोग प्रतिरोधक तंत्र, स्वस्थ त्वचा और म्युकस मेम्ब्रेन के लिए आवश्यक है। अधिक मात्र में विटामिन ए के सेवन का प्रभाव विषैला हो सकता है। शरीर उतनी ही मात्र में बीटा कैरोटिन से विटामिन ए का निर्माण करता है, जितनी मात्रा में शरीर को इसकी आवश्यकता होती है। इसका सीधा अर्थ है कि बीटा कैरोटिन विटामिन ए का सुरक्षित स्रोत है। लेकिन अधिक मात्र में बीटा कैरोटिन का सेवन भी घातक हो सकता है, विशेषकर उन लोगों के लिए, जो धूम्रपान और अधिक मात्र में शराब का सेवन करते हैं। इसलिए सबसे सुरक्षित उपाय यही है कि इसे प्राकृतिक रूप में लें, सप्लीमेंट के रूप में नहीं।
बीटा कैरोटिन टॉक्सीसिटी
अधिक मात्र में भी बीटा कैरोटिन का सेवन आपको बीमार नहीं बनाता। हालांकि इसके अधिक सेवन से त्वचा का रंग पीला या नारंगी हो सकता है, लेकिन इसके सेवन में कमी करने से फिर से त्वचा का रंग सामान्य हो जाएगा। हालांकि कई अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि बीटा कैरोटिन के सप्लीमेंट शरीर के लिए हानिकारक होते हैं, इसलिए इसे संतुलित भोजन के द्वारा प्राकृतिक रूप में लिया जाना ज्यादा उपयोगी है। धूम्रपान करने वाले या एस्बेस्टस के अधिक संपर्क में रहने वाले लोग यदि बीटा कैरोटिन के सप्लीमेंट लें तो लंग कैंसर की आशंका बढ़ जाएगी। बीटा कैरोटिन शराब से मिल कर लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है। शरीर में इसकी अधिकता से जोड़ों में दर्द की समस्या भी हो सकती है। बीटा कैरोटीन की अधिक मात्र आपको कैरोटिनोडर्मिया का शिकार बना सकती है। इसमें त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं, विशेष रूप से हथेलियों और तलवों की त्वचा पर। वैसे यह समस्या अस्थायी होती है।
किन में हो जाती है कमी
- सब्जियों और फलों का सेवन कम करने वाले लोगों में।
- धूम्रपान और शराब का अत्यधिक सेवन करने वाले लोगों में।
- टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोग कितनी भी मात्र में बीटा कैरोटिन का सेवन कर लें, उनके शरीर में इसकी मात्र कम ही पाई जाती है।
क्यों जरूरी है बीटा कैरोटिन
- कोशिकाओं को फ्री-रैडिकल्स के हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए बीटा कैरोटिन
जरूरी है।
- विटामिन ए का अच्छा स्रोत है।
- इम्यून सिस्टम को शक्तिशाली बनाता है।
- प्रजनन तंत्र के ठीक तरह से कार्य करने में सहायता करता है।
- यह सनबर्न के खतरे को कम करता है।
- मेनोपॉज के बाद गर्भाशय के कैंसर का खतरा कम करता है।
- उम्र के प्रभाव को कम करता है।
- डायबिटीज में भी काफी उपयोगी है।
- मोतियाबिंद और हृदय रोगों की आशंका कम करता है।
- जो लोग संयोजी ऊतकों के डिसऑर्डर स्क्लेरोडर्मा, जिसमें त्वचा कड़ी हो जाती है, से पीड़ित होते हैं, उनके शरीर में बीटा-कैरोटिन का स्तर कम पाया जाता है।
- कुपोषण से ग्रस्त महिलाओं में प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु और रतौंधी को रोकने में इसका उपयोग किया जाता है।
- यह अस्थमा, एड्स, अल्जाइमर्स, डिप्रेशन, उच्च रक्तचाप, बांझपन, पार्किसन, आर्थराइटिस, सीजोफ्रेनिया और त्वचा संबंधी रोगों जैसे सफेद दाग आदि के उपचार में उपयोगी है।
तथ्य और आंकड़े
- कम से कम 600 कैरोटिनाइड्स के बारे में पता है, जिनमें से 50 प्रो विटामिन ए कहलाते हैं।
- प्रतिदिन 5 फल और सब्जियों को खाने से 6-8 मिलीग्राम बीटा कैरोटिन मिल जाता है।
- बीटा-कैरोटिन वसा में घुलनशील होते हैं, इसलिए इनके उचित अवशोषण के लिए भोजन में वसा की उचित मात्र लेना आवश्यक है।
- वैसे वयस्कों को प्रतिदिन 15-50 मिलीग्राम बीटा कैरोटिन की आवश्यकता होती है। खुद से इसकी दवा न लें।
(साभार)

मधुमेह है तो दांतों का रखें विशेष ख्याल




दांतों की तकलीफ अपने आप में परेशान करने वाली होती है। अगर आप डायबिटीज से परेशान हैं तो यह तकलीफ और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में आप क्या करें,
आजकल लोग अपने चेहरे की खूबसूरती को लेकर काफी सजग हो गए हैं। ऐसे में मधुमेह जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए अपने दांतों की सुरक्षा एक समस्या बन जाती है। मधुमेह से पीड़ित लोगों को मुंह के कई सारे रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में दांत भी इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यदि दिनचर्या को नियंत्रित कर खानपान में थोड़ी-सी सावधानी बरती जाए तो मधुमेह की बीमारी के साथ ही दांतों की समस्या को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
हमारे दांत एलविओलर हड्डी तथा पीरियाडेन्टल लिगामेंट्स मांसपेशियों से एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनका मधुमेह नियंत्रित नहीं हो पा रहा है, उनके पीरियाडेन्टल लिगामेंट्स कमजोर होने लगते हैं। इससे दांतों के बीच एक खाली जगह बन जाती है और खाने के पश्चात खाने के कुछ अंश इन दांतों में रह जाते हैं और इनको नुकसान पहुंचाते हैं। इस कारण दांतों और मसूड़ों में जीवाणु पैदा हो जाते हैं, जिससे गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को पाइरिया नामक बीमारी हो सकती है और बोलते वक्त दांतों तथा मुंह से दुर्गंध आ सकती है। ऐसी स्थिति में दांत कमजोर होने शुरू हो जाते हैं। कई बार मसूड़ों में सूजन और तेज दर्द भी शुरू हो जाता है।
इसकी वजह से बाद में दांतों को उखाड़ना भी पड़ता है। मधुमेह के रोगियों के दांतों का रंग भी बदल जाता है, जो काला या फिर गहरा भूरा हो जाता है। मसूड़ों में होने वाले छोटे-छोटे छिद्रों से बैक्टीरिया या अन्य संक्रमण भी हो सकता है, जो खून में मिल कर अन्य छोटी-छोटी बीमारियों का कारण बनते हैं। मधुमेह के रोगियों में मधुमेह से होने वाले अन्य रोग कितनी जल्दी घर करते हैं, यह बात मधुमेह के रोगियों के खून में उपस्थित शुगर की मात्र पर निर्भर करती है। इस बात का ध्यान रहे कि सिर्फ मुंह की ही देखभाल से मधुमेह की बीमारी पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। इसके लिए अनुशासित व नियंत्रित दिनचर्या एवं खानपान का ध्यान रखना जरूरी है।
इन बातों का ध्यान रखें
- सुपारी, जर्दा, खैनी इत्यादि छोड़ दें।
- दातों को साफ करने के लिए कोयले, राख या ऐसे दंत मंजन, जिसमें तंबाकू हो, का प्रयोग बंद कर दें।
- मसालेदार तथा गरम चीजें कम खाएं। मसूड़ों में हुए छिद्रों को साफ करने के लिए हमेशा दांत साफ करने वाली पतली व मुलायम डेन्टल फ्लॉस का इस्तेमाल करना चाहिए।
- दांतों को साफ करने के लिए किसी प्रकार की लकड़ी, बबूल की दातून या किसी अन्य धातु से बनी चीज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- सुबह का नाश्ता करने के बाद तथा रात को सोने से पहले ब्रश अवश्य करना चाहिए।
- दांत साफ करने के लिए हमेशा अपने दांतों की बनावट के अनुसार अच्छे ब्रश तथा अच्छे दंत मंजन का इस्तेमाल करना चाहिए।
- साल में दो बार अपने दांतों की जांच अच्छे दंत विशेषज्ञ से करवाएं।

इस कार में नहीं लगेगी आग




डीटीयू के छात्रों ने फॉर्मूला रेसिंग के लिए की है तैयार, ब्रिटेन में मचाएगी धूम
दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) के छात्रों द्वारा कार्बन फाइबर से बनाई गई फार्मूला रेसिंग कार ब्रिटेन में धूम मचाएगी। इस कार की खासियत यह होगी कि इसमें आग नहीं लगेगी।
टीम ने बताया कि फार्मूला रेसिंग कारों में आग लगने की घटना होती रहती हैं। डीटीयू के छात्रों ने रेसिंग कार का जो नया मॉडल तैयार किया है, उसमें काफी हद तक आग से बचाव होगा। ड्राइवर की सुरक्षा के मद्देनजर कार में फेल्ट मेटिरियल (आग से बचाव करने वाला पदार्थ) का इस्तेमाल किया गया है। रेस के दौरान कार में आग लगने की स्थिति में ड्राइवर सुरक्षित रहता है।
यह कार एशिया में पहले ही बेहतरीन डिजाइन का खिताब हासिल कर चुकी है। इस साल जुलाई में होने वाले मुकाबले के लिए छात्रों ने इलेक्ट्रॉनिक गीयर शिफ्टिंग वाली कार का डिजाइन तैयार किया है। साथ ही कार का वजन भी 40-50 किलोग्राम कम रहेगा।
टीम लीडर दीपांशु जैन (मेकेनिकल इंजीनियरिंग) और अभिमन्यु जामवाल (ऑटो मोटर) ने बताया कि उनकी कार के निर्माण पर 18-20 लाख रुपये खर्च हुए थे। कार तैयार करने से मुकाबले तक का खर्च जेपी ग्रीन द्वारा वहन किया गया था। उन्हें उम्मीद है कि इस बार के मुकाबले में उनकी रेसिंग कार यूके सहित कई राष्ट्रों को जरूर पछाड़ देगी। जेपी ग्रीन ने इस इस कार का खर्च वहन किया था। उन्होंने कहा कि यह कार कई मायनों में सबसे अलग है।
वजन हुआ हल्का
कार्बन फाइबर और ग्रेड-7 एल्युमिनियम के इस्तेमाल से कार का वजन 220 किलोग्राम होगा, जबकि पहले   इसका वजन 260 किलोग्राम से ज्यादा था। मैनुअल की बजाए इलेक्ट्रॉनिक गीयर शिफ्टिंग होने से गीयर लगाने में समय बचेगा और सहूलियत भी रहेगी। पहले कार के गीयर शिफ्टिंग में 80-90 मिली सेकेंड लगते थे, अब 50 मिली सेकेंड लगेंगे।