Wednesday, May 8, 2013

हल्के में न लें सिरदर्द को


आए दिन लोग सिरदर्द की समस्या से ग्रस्त होते हैं। सिरदर्द की ये शिकायतें कुछ साधारण होती हैं तो कुछ असाधारण बीमारी का सकेत देती हैं। इसलिए महत्वपूर्ण बात यह है कि साधारण सिरदर्द को बीमारी में तब्दील होने से पहले ही उसका इलाज करा लिया जाए ताकि हम सेहत पर होने वाले किसी भी हमले से बचे रहें। खास बात तो यह है कि यह साधारण सिरदर्द ब्रेन ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो सकती है। गौरतलब है कि ब्रेन ट्यूमर का उपचार आज रेडियो सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी के अलावा कंप्यूटर आधारित स्टीरियोटैक्सी व रोबोटिक सर्जरी जैसी नवीनतम तकनीकों की बदौलत अत्यत कारगर, सुरक्षित और काफी हद तक कष्टरहित हो गया है। ब्रेन ट्यूमर की पहचान जितनी पहले हो जाए, इसका इलाज उतना ही आसान हो जाता है।
 ब्रेन सर्जरी में आजकल सबसे ज्यादा इंडोस्कोपिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है।
 लक्षण 
 ब्रेन ट्यूमर के लक्षण सीधे उस भाग से सबधित होते हैं, जहा दिमाग के अंदर ट्यूमर होता है। उदाहरण के तौर पर मस्तिष्क के पीछे ट्यूमर के स्थित होने के कारण दृष्टि सबधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। मस्तिष्क के बाहरी भाग में होने वाले ट्यूमर के कारण बोलते समय रुकावट आने जैसी समस्या पैदा हो सकती है। ट्यूमर का आकार बढऩे के परिणास्वरूप मस्तिष्क पर बहुत दबाव पड़ता है। इस कारण सिरदर्द, उल्टी आना, जी मिचलाना, दृष्टि सबधी समस्याएं या चलने में समस्या आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
 ट्यूमर के प्रकार 
 सामान्यत: मस्तिष्क के किसी भी भाग में वृद्घि होना बहुत खतरनाक माना जाता है। यह बात ब्रेन ट्यूमर के मामले में भी लागू होती है। ब्रेन ट्यूमर कई प्रकार के होते हैं। हालाकि इसे कैंसर के आधार पर मुख्य रूप से दो वर्र्गो कैंसरजन्य और कैंसररहित ट्यूमर में विभाजित किया जा सकता है। आम तौर पर बीस से चालीस साल के लोगों को ज्यादातर कैंसर रहित और 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को ज्यादातर कैंसर वाले ट्यूमर होने की सभावना कहीं ज्यादा रहती है। कैंसर रहित ट्यूमर, कैंसर वाले ट्यूमर की तुलना में धीमी गति से बढ़ता है.
 कोलॉयड सिस्ट मस्तिष्क के सवेदनशील क्षेत्र में स्थित होते हैं और जैसे-जैसे उनके आकार में वृद्धि होती जाती है, वे जीवन के लिए खतरा बनते चले जाते हैं। परंपरागत सर्जरी के लिए क्रैनियोटॅमी यानी खोपड़ी के एक हिस्से को हटाए जाने और कोलॉयड सिस्ट को हटाने के लिए मस्तिष्क के प्रत्याकर्षण की प्रक्रिया अपनायी जाती है। इसके अंतर्गत खोपड़ी में एक महीन सा छिद्र (6 एमएम) किया जाता है ताकि इंडोस्कोप और उसके साथ काम करने वाले अधिकतम 6 एमएम की परिधि के आवरण को अंदर डाला जा सके। कोलॉयड सिस्ट को सपूर्ण रूप से हटाने के लिए बहुत छोटे (3-6 एमएम) के इंडोस्कोपिक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है।
 सर्जरी की प्रक्रिया 
 इंडोस्कोपिक सर्जरी के माध्यम से मस्तिष्क के रिट्रैक्शन से बचा जा सकता है। इंडोस्कोप को प्रविष्ट कराए जाने के लिए परंपरागत सर्जरी की तुलना में छोटा छेद करना होता है और इससे अपेक्षाकृत मस्तिष्क में कम रिट्रैक्शन होता है। इस प्रक्रिया में ऊतकों(टिश्यूज) को देखना आसान होता है। इस कारण सर्जरी अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित रूप से की जा सकती है। सर्जरी के प्रभाव से मुक्त होने में कम समय लगता है और अस्पताल में भी कम समय तक ठहरना होता है। इंडोस्कोपी सर्जरी में सफलता की दर बहुत ऊंची है। यही कारण है कि दुनिया भर में मस्तिष्क की सर्जरी के लिए इस सुरक्षित तकनीक को अपनाया जा रहा है।





मौसमी मर्जो को दें मात


गर्मिया दस्तक दे चुकी है। आखें शरीर का बेहद सवेदनशील अंग है। इसलिए गर्मियों के मौसम का दुष्प्रभाव आखों पर भी पड़ता है। आखों की कई बीमारिया जैसे फ्लू, सूजी हुई और थकी-थकी लाल आखें व ड्राई आई आदि के मामले मौजूदा मौसम में कहींज्यादा सामने आते हैं। इसके अलावा इस मौसम में पाचन तत्र से सबधित सक्रमण व गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन आदि के मामले कहीं ज्यादा सामने आते हैं, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इन रोगों से राहत पायी जा सकती है..
 नयनों की सेहत को न करें नजरअंदाज
 आई फ्लू: आखों पर वाइरस के सक्रमण को आई फ्लू कहते हैं, जो आखों में सफेद दिखने वाले भाग पर चढ़ी झिल्ली को नुकसान पहुचाता है। इस फ्लू का वाइरस गदी उगलियों, गदे पानी, मक्खियों, धूल-धुआ और गदगी के माध्यम से तेजी से फैलता है। इस समस्या के दौरान आखों से निरतर पानी सरीखा द्रव निकलता है। आखों में दर्द और जलन भी बनी रहती है और पलकें सूजकर लाल हो जाती है।
 फोटो-फोबिया: यह भी आई फ्लू का ही एक रूप है। पीडि़त को धूप में जाते समय दिक्कत होती है। आखों को धूप और तेज रोशनी चुभती है। इससे पीडि़त आखों को पूरी तरह से नहीं खोल पाता । आखों में दर्द व थकान भी महसूस होती है.
 ड्राई आई: गर्मियों में बढ़ते हुए प्रदूषण और कंप्यूटर पर लबे समय तक काम करने की वजह से शुष्क आखों की परेशानी बढ़ सकती है। इस समस्या के दौरान आखों में खुजली या जलन होने लगती है। आखों से कभी-कभी कीचड़ निकलता है। इसी तरह अपने काम के सिलसिले में प्रदूषित क्षेत्रों से प्रतिदिन गुजरने वालों को भी एलर्जी की समस्या और ड्राई आई के लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
 इन बातों पर दें ध्यान 
 -आखों के किसी भी सक्रमण से ग्रस्त होने के बाद साफ-सफाई का खास ख्याल रखें।
 -आखों को बार-बार हाथ से न छुएं और न ही रगड़ें। इन्हें छूने से पहले साबुन से हाथ धो लें।
 -पीडि़त द्वारा इस्तेमाल की हुई किसी भी वस्तु को अपने सपर्क में न लाएं।
 -कड़कड़ाती धूप में अल्ट्रावायलेट किरणें आप की आखों पर सीधे तौर से प्रहार करती है। इसीलिए धूप में जाते समय छतरी का उपयोग करे और आखों पर धूप का चश्मा लगाएं जिससे आप की आखों का बचाव हो सके। अपना चश्मा किसी अन्य व्यक्ति को पहनने के लिए न दें।
 -अगर आप पॉवर लेंस लगाते है तो भी आप को धूप का चश्मा पहनना चाहिए ताकि अल्ट्रावायलेट किरणें आखों को नुकसान न पहुचा सकें।...
 -आखों पर दिन में कई बार ठडे पानी के छींटे मारे। आखों पर खीरे के टुकड़े या रुई के फाहे में गुलाबजल डालकर आखों पर रखें। आखों को ताजगी मिलेगी।
 -आखों के लिए स्वस्थ भोजन और अच्छी नींद से कभी भी समझौता न करे। खाने में हरी सब्जिया, अंकुरित अनाज आदि का अधिकाधिक प्रयोग करें।
 -दिन में पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, ताकि आप के शरीर की गदगी बाहर निकले और शरीर के अंगों में नमी बनी रहे। यह नमी आंखों के लिए भी जरूरी है।
 -डॉक्टर के परामर्श से आखों में ऐसी दवाएं डालें, जो आखों को शुष्क होने से रोकें और सक्रमण न पैदा होने दें। आखों के आसपास सनस्क्रीन न लगाएं। इनसे आखों को नुकसान हो सकता है।
 -कंप्यूटर पर काम करते समय बीच-बीच में ब्रेक लें और पलकें झपकाते रहे।
 इन रोगों की न करें अनदेखी 
 जब कभी मौसम बदलता है, तब कुछ खास बीमारिया सिर उठाती हैं। इसका कारण यह है कि मौसम के बदलने के कारण पर्यावरण और उसके तापक्रम में भी बदलाव आ जाता है। हवा में विभिन्न प्रकार के तत्व या कण (एलर्जेन) फैल जाते हैं। जैसे सर्दियों में तापमान के अत्यधिक कम होने के कारण हाईब्लड प्रेशर और मस्तिष्क आघात(स्ट्रोक) होने के मामले बढ़ जाते हैं। मौजूदा मौसम (बसत या स्प्रिंग) में दमा, स्किन एलर्जी, त्वचा सबधी सक्रमण और हाजमे से सबधित सक्रमण व बीमारिया (गैस्ट्रोइंटेस्टाइल इंफेक्शन) जैसे डायरिया व डीसेन्ट्री आदि की शिकायतें बढ़ जाती हैं।
 कुछ सुझाव 
 -इस मौसम में धूल भरी तेज हवा चलने से और पराग कणों(पॉलेन) के हवा के जरिये प्रसारित होने पर दमा सबधी शिकायत होने का जोखिम बढ़ जाता है। दमा की शिकायत होने पर डॉक्टर के परामर्श से इनहेलर व अन्य दवाएं ले। खुले स्थानों पर न जाएं, धूल आदि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगा सकते हैं।
 -तेज हवा के कारण धूल व पराग कणों के कारण त्वचा में एलर्जी से सबधित शिकायतें बढ़ जाती हैं। इनसे राहत पाने के लिए डॉक्टर के परामर्श से एंटी एलर्जिक दवा ले सकते हैं।
 -मौजूदा मौसम में जीवाणुओं और फंगस के दुष्प्रभाव से त्वचा सबधी सक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं। जीवाणु और फंगस गदगी के कारण बहुत तेजी से फैलते हैं। इसलिए शरीर को स्वच्छ रखें। कीटाणुनाशक साबुन से नहाएं।
 -इस मौसम में पेट और आतों में सक्रमण (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन) से सबधित शिकायतें होने की आशका बढ़ जाती है। डायरिया व डीसेन्ट्री और पेट सबधी शिकायतों से बचने के लिए घर में स्वच्छता से तैयार किया भोजन ही ग्रहण करें। सड़क किनारे लगे ठेलों पर बिकने वाले खाद्य पदार्र्थो से परहेज करें। कच्चे खाद्य पदार्थ व कच्ची सब्जिया न खाएं। जिन कटे-खुले फलों व सब्जियों पर मक्खिया व अन्य कीट बैठे हुए हों, उनके खाने से वाइरल हेपेटाइटिस होने की आशका काफी बढ़ जाती है। जिन फलों या सब्जियों की सिचाई गदे प्रदूषित पानी से की जाती है, वे शरीर व खासकर पेट के लिए अत्यत नुकसानदेह होती हैं।


अब अभिशाप नहीं है बांझपन


बांझपन के ज्यादातार मामलों में फैलोपियन ट्यूब के बद हो जाने के कारण गर्भधारण करने में मुश्किल होती है, लेकिन आसान इलाज से इसे दूर भी किया जा सकता है। हालाकि ऐसी दशा में कई बार डॉक्टर टेस्ट ट्यूब बेबी का विकल्प अपनाते हैं, लेकिन इस विकल्प की कुछ सीमाएं हैं। यह तकनीक अपेक्षाकृत महंगी भी है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी तकनीक को क्यों न अपनाएं जो न सिर्फ किफायती हो बल्कि भविष्य में सामान्य तरीके से गर्भधारण करने में मददगार भी हो। तो चलिए जानते हैं, उन तकनीकों के बारे में जो बाझपन से छुटकारा दिलाएंगी
 हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी 
 बच्चेदानी के भीतर फैलोपियन ट्यूब दो तरह से खुलती है। इसका एक सिरा सीधे बच्चेदानी के भीतर खुलता है जबकि दूसरा अंडेदानी (ओवरी) के पास खुलता है। कई बार बच्चेदानी के भीतर खुलने वाला भाग बद होता है, इसलिए गर्भधारण नहीं हो पाता है। इस तकनीक में इंडोस्कोपी और गाइड वायर के जरिए बद सिरे को खोल दिया जाता है और समस्या खत्म हो जाती है। फिर बाझपन की समस्या से पीडि़त महिलाएं आसानी से गर्भधारण कर सकती हैं।
 फिमब्रियोप्लास्टी 
 दूसरी तकनीक को हम फिमब्रियोप्लास्टी के नाम से जानते हैं। अंडेदानी(ओवरी) के पास खुलने वाला फैलोपियन ट्यूब का सिरा अपेक्षाकृत चौड़ा होता है। इसे फिम्ब्रियो बोलते हैं। कई बार जाच में पाया जाता है कि फैलोपियन ट्यूब का यह चौड़ा सिरा बद है। आमतौर पर सक्रमण की वजह से यह सिरा बद हो जाता है। लैप्रोस्कोपी की मदद से ही इस बद सिरे को खोल दिया जाता है जिसे फिमब्रियोप्लास्टी कहते हैं। इस मामूली सर्जरी के बाद बाझपन से छुटकारा मिल जाता है।
 ट्यूबोप्लास्टी 
 अक्सर ऐसा होता है कि एक-दो या फिर तीन बच्चों के बाद तमाम दंपति फैमिली प्लानिग के बारे में सोचने लगते हैं। वे तमाम सोच-विचार के बाद डॉक्टर के पास जाते हैं और झट से फैमिली प्लानिग प्रोसीजर अपना लेते हैं। इस प्रक्रिया में फैलोपियन ट्यूब का वह हिस्सा निकाल दिया जाता है जिसकी मदद से गर्भधारण होता है। दूसरी प्रक्रिया में फैलोपियन ट्यूब को बद कर दिया जाता है और गर्भधारण नहीं होता। यह परिवार नियोजन का एक तरीका है, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बच्चे पैदा होने के बाद वे जिंदा नहीं रह पाते और ऐसी स्थिति में दंपति पहले ही फैमिली प्लानिग प्रोसीजर करवा लेते हैं। ऐसे में जब दोबारा बच्चे की चाहत होती है तो फैलोपियन ट्यूब के बद हिस्से को दोबारा खोल दिया जाता है या फिर खुले हिस्से को जोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया को ट्यूबोप्लास्टी कहते हैं।





..कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो


हालांकि पीने वालों को पीने का बहाना मात्र चाहिए होता है, लेकिन पीने के वक्त मात्रा का ध्यान न रखना घातक हो सकता है। शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि कम मात्रा में शराब का सेवन दिल की बीमारियों से बचा सकता है। दिन में एक या दो पेग तक शराब पीने वालों में दिल की बीमारियों को जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है। इस शोध में शराब के सेवन को लेकर हुए 150 अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। इसमें बताया गया है कि कम मात्रा में शराब का सेवन- चाहे वह बियर हो या वाइन, हृदय की बीमारियों को काफी हद तक दूर रखता है।
 अध्ययन में पाया गया कि कम मात्रा में शराब का सेवन करने वाले लोग ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों में हृदय रोगों की संभावना उन लोगों की तुलना में कम होती है जो एल्कोहॉल का सेवन बिलकुल नहीं करते। शोध के अनुसार शराब का ज्यादा सेवन निश्चित तौर पर स्वास्थ्य के लिए घातक है, लेकिन कम सेवन स्वास्थ्य को सुधारता है। शोध में बताया गया है कि कम मात्रा में एल्कोहॉल का सेवन रक्त में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर सहित अन्य तत्वों के स्तर में भी सुधार ला सकता है। इससे हृदय की सुरक्षा में मदद मिल सकती है और रक्त वाहिनियों के अवरुद्ध होने का खतरा भी कम हो सकता है।
 शराब का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह, इस पर लंबी बहस होती रही है। ज्यादातर अध्ययन बताते हैं कि कम मात्रा में शराब का सेवन दिल की सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह संदेश ज्यादा शराब के सेवन से होने वाले नुकसान को छिपा देता है। ज्यादा शराब पीने से न सिर्फ लिवर खराब होता है, बल्कि मृत्यु भी जल्दी होती है। विशेषज्ञ अभी भी इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि शराब किस तरह दिल की बीमारियों को दूर रखती है। इस बारे में एक सिद्धांत यह है कि शराब चयापचय को दुरुस्त रखकर ब्लड क्लॉटिंग को रोकती है। वाइन में उच्च स्तर के एंटीऑक्सिडेंट्स यौगिक पाए जाते हैं जिन्हें फ्लेवोनोल्स कहा जाता है। ये एंटीऑक्सिडेंट्स रक्त संचरण को ठीक रखते हैं। कालगेरी यूनिवर्सिटी, कनाडा के प्रोफेसर विलियम घाली ने इस शोध का नेतृत्व किया।





कम खाने से दिमाग करता है तेज काम


एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि कम खाने से दिमाग तेज होता है। इस शोध में स्मरण शक्ति और सीखने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण सीआरईबी-1 नाम के प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया गया था। वैज्ञानिको ने चूहे पर प्रयोग करते वक्त यह पाया कि कैलोरी की मात्रा कम करने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है।
 अगर तेज दिमाग के साथ याद्दाश्त भी अच्छी हो तो फिर क्या कहना! आप अपनी स्मरण शक्ति को मजबूत बनाना चाहते हैं तो रोजाना विटमिन बी लें। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि रोजाना विटमिन बी की खुराक इंसान को बुढ़ापे मे डिमेंशिया और अल्जाइमर से बचाती है। इस अध्ययन में 250 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें 70 और उससे भी ज्यादा उम्र के वे लोग थे, जो कमजोर स्मरण शक्ति की समस्या से जूझ रहे थे। इन लोगों के भोजन में लगातार दो वर्षो तक अंकुरित अनाज, केला, बीन्स और रेड मीट आदि को प्रमुखता से शामिल किया गया।
 विटमिन बी से भरपूर इन चीजों का सेवन करने वाले लोगों की याद्दाश्त में बहुत तेजी से सुधार हुआ। शोधकर्ताओं के अनुसार सप्लीमेंट की तुलना में विटमिन बी युक्त चीजों का सेवन ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। इसलिए इन्हें भोजन में जरूर शामिल करना चाहिए।





बादाम-अखरोट खाएं मोटापा दूर भगाएं


आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि ड्राई फ्रूट्स के सेवन से मोटापा नहीं बढ़ता, बल्कि इससे वजन कम करने में मदद मिलती है। स्पेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार रोजाना तकरीबन 30 ग्राम कच्चा और बिना छिलका उतारे बादाम या अखरोट खाने से चर्बी नहीं बढ़ती
 वैज्ञानिकों के मुताबिक बादाम और अखरोट में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो दिमाग में मौजूद रसायन सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाते हैं। यह रसायन भूख के एहसास को कम कर देता है। लकवा, दिल के दौरे और मधुमेह केलक्षणों सहित मेटाबॉलिज्म की समस्याओं से ग्रस्त 22 मरीजों का 12 हफ्तों तक अध्ययन कर इस प्रभाव की खोज की गई। यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना के वैज्ञानिकों ने मरीजों के खानपान में बादाम और अखरोट को शामिल किया, जिससे उन्हें वजन कम करने और स्वस्थ होने में मदद मिली।















प्यार की परिभाषा (कहानी)


नील मुझे बहुत पसन्द आया था। वह एक सुन्दर युवक था, पढा-लिखा, सांवला-सलोना, उसका अण्डाकार चेहरा मासूमियत से भरा था। परंतु मुझे उस की जो अदा सब से प्यारी लगी वह थी उस की सादगी। उसका बगैर किसी मांग के इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना वह भी मेरे यह बताने के बाद कि मैं सिर्फ एक सूट के साथ आप के द्वार पर आऊंगी, वगैर किसी दहेज के। मासूमियत के साथ की गई इस सहमति को मैं आज तक नहीं भूल सकी हूं। उसका यह कहना कि, मुझे अच्छे संस्कारों वाली लडकी चाहिए अच्छे पैसों वाली नहीं। मुझे भावविभोर कर दिया था। बाद में नील की आंखों में मचल रहे सपने मुझे अपने लगने लगे।
नील के साथ मेरी यह छोटी सी मुलाकात तब हुई थी जब एक समाचार पत्र के माध्यम से हमारे रिश्ते की बात आगे बढी। हालांकि उसके आगे बढने का रास्ता भी आसान न था। मेरी सबसे बडी दीदी को ये रिश्ता पसन्द नहींथा क्योंकि प्रथम दृष्टि से हम दोनों के परिवारों में कोई समानता न थी। हमारा छोटा सा पढा लिखा संपन्न परिवार था तो उनका बहुत बडा, अनपढ और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा परिवार । न तो घरों का कोई मेल था, न परिवार का, न संस्कृति, संस्कारों का और न ही विचारों का।
शुक्र था कि मेरे पापा को यह रिश्ता पसन्द आया तो सिर्फ इसलिए कि इन असमानताओं के बीच एक समानता सब से बडी थी कि मेरी तरह नील भी सरकारी अध्यापक था। आस-पास से पता करने पर सभी ने यही कहा था कि लडका अच्छे स्वभाव वाला, सरल. सहज. संवेदनशील और परिष्कृत रुचियों से भरपूर व्यक्तित्व का मालिक । पापा ने भी अपनी दूरदृष्टि से यह भांप लिया था। जबकि मैं दिखने में भी अधिक आकर्षक न थी।
मेरे मन के एक कोने में अपने हमसफर की छवि अंकित थी। घर से यह सोचकर निकले थे कि एक बार देखने के बाद मेरे द्वारा ही जवाब भेज दिया जाएगा क्योंकि एक ही छत के नीचे पली बढी मेरी बहन को यह रिश्ता नागवार ही गुजरा था। परंतु नील से हुई इस मुलाकात ने मेरे विचार बदल डाले। गहन आत्मीयता और निष्कलंक स्नेह पाकर मुझे उनकी चन्द बातें ही झकझोर गई। मेरा मन कह उठा कि,तुम वही हो, जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी।
पापा हमेशा कहा करते थे कि जब भी मन और मस्तिष्क के बीच एक का चयन करना हो तो सदैव अपने मन की सुनो, क्योंकि मन में आत्मा का वास होता है और आत्मा में ईश्वर वास करते हैं। पापा कहते थे कि दुनिया की चकाचौंध हमें कुछ देर के लिए भ्रमित कर सकती है किंतु हमारे संस्कार और सामाजिक मूल्य हमें कभी भटकने नहींदेते इसलिए मनुष्य में अच्छे संस्कार होना आवश्यक है। अच्छी धन दौलत नहीं।
मैने आंखें बंद करके ईश्वर से प्रार्थना की- हे ईश्वर, मुझे सही राह दिखाइये और सही निर्णय लेने की क्षमता दीजिए। ईश्वर से स्वीकृति लेकर मैने तमाम बातें जानते हुए भी अपने मन की मानी और पापा के लिए फैसले पर अपनी मोहर लगा दी। हमारा विवाह धूम-धाम से सम्पन्न हुआ।
कुछ
महीनों में उस घर की परिस्थितियां, अलग परिवेश, अशिक्षित सदस्यों के व्यवहार मुझे भीतर ही भीतर से तोडने लगा। जिन रिश्तों पर नील को बहुत मान था वह उसकी शादी के बाद रंग दिखाने लगे। सभी पर दिल खोल कर खर्च करने वाला नील जब अपनी घर-गृहस्थी में रुचि लेने लगा तो कुछ सदस्यों को ये कचोटने लगा। मां को बेटे की कमाई लेने की शौक तो था पर उसे खर्च करने में संयम वो जिंदगी भर न सीख पाईं। भाई जिनको कपडे तक नील लाकर देता था वो भी अपना नाशुक्रापन दिखाने लगे।
मैं कभी-कभी सोचती कि मैंने मन की बात मान कर कहीं गलती तो नहींकी। फिर भी मैं धैर्य के साथ सब कुछ देखती सुनती रही। शादी से पहले जिन्दगी की जो ऊंची उडानें भरने की सोची थी अब वह धीरे-धीरे धरातल पर आ रही थी।
लेकिन इन कडवी सच्चाइयों के बीच एक सच्चाई यह भी थी कि इतने सब के बाद भी नील का मासूम, कोमल मन प्यार से वंचित था। सभी रिश्तों का प्यार पैसे से जुडा था यह समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी। नील के सुन्दर मन को किसी ने नहीं पढा था जिसे प्यार की जरूरत थी।
रिश्तों की इसी उधेडबुन में मुझे एक दिन नील का वो चेहरा देखने को मिला जिसने मेरे प्यार की परिभाषा को भी बदल डाला। मैने यूं ही नील से पूछा कि मैं तो सुन्दरता में भी आपसे पीछे हूं और आपके परिवार के विचारों से भी भिन्न हूं तो आपने मुझसे शादी क्यों की?
नील ने बडे सलीके से जवाब दिया, मैं मानता हूं कि प्यार केवल एक एहसास भर नहींरह जाता बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में जिन बातों को हम अपनाते हैं, जो करते हैं, हम अपने से ज्यादा औरों का ख्याल रखते हैं. बडों को मान-सम्मान देते हैं वो प्यार है। एक पति का एक पत्नी से प्यार और बढता है लेकिन तब नहीं जब हम सिर्फ अपनी सोचें।
वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे साथ तुम्हारा व्यवहार हमेशा प्यार भरा रहे। तुम दिखने में साधारण सी हो लेकिन तुम्हें देखने से पहले मैने जो तुम्हारे बारे में सुना था, जाना था, उसने मुझे तुम्हारे खूबसूरत होने का एहसास पहले से ही करा दिया था। तुम्हारा टूटकर मुझे चाहना, मेरी हर इच्छा को अहमियत देना, मेरी नाराजगी पर भी मुस्कराना मुझे अनुभव कराता है कि तुम्हारा प्यार कितना सच्चा है, कितना सात्विक है। कमी और खामियों के साथ किसी को अपनाना ही सच्चा प्यार है। यही सच्चा समर्पण है। प्यार सुन्दरता में नहीं रिश्तों की मिठास में होता है, परस्पर विश्वास में होता है। प्यार चांद सितारे तोड लाने से नहीं बढता प्यार तो वो है जब हम एक दूसरे से ताउम्र यही कहते गुजरें-
कि तेरे सारे गम मेरे होंगे
और मेरे सारे सुख तेरे होंगे।
अब मेरा प्यार नील के प्यार की परिभाषा के आगे नतमस्तक खडा था।



एक था चिड़ा (कहानी)


चिडा एक डाल पर बैठा हुआ अपने खाली पडे घोंसले को देख रहा था। उसके चेहरे पर चिडचिडाहट थी और रह-रह कर उसकी यह चिडचिडाहट उसके स्वरों में ढल कर आ रही थी.. चिड... चिड.. चिड... चिड..। घोंसले में चिडिया और उसके बच्चे नहीं थे। मुन्ने ने भी दो बार झांककर देखा, सच में घोंसला खाली पडा था। पेड- पौधों से पत्ते झर रहे थे जो बार-बार उसके चेहरे को स्पर्श करते जा रहे थे। मुन्ना अपने चेहरे को इधर-उधर कर उनसे बचने का प्रयास कर रहा था और- उसकी नींद टूट गई।
मुन्ने को याद आया कि कल रात वह दादी से कहानी सुनते-सुनते सो गया था। कहानी में आगे क्या हुआ, यह तो उसे पता ही नहीं चला। संभवत: दादी ने उसे सोया देखकर कहानी आगे नहीं सुनाई होगी या फिर दादी स्वयं भी सो गई होगी क्योंकि मम्मी कह रही थी कि बूढे लोग जल्दी थक जाते हैं। दिनभर कुछ न कुछ करती भी रहती है। आजकल उसकी दादी कुछ दिनों के लिए उसके पास आई हुई थी। कोई बात नहीं, आज कहानी सुनकर ही सोऊंगा- मुन्ने ने स्वयं से कहा।
सुबह के नाश्ते के बाद ही वह दादी के पास जा पहुंचा और लगा जिद करने कि कल वाली कहानी सुनाओ। दादी ने उसे समझाया कि कहानी रात में सुनी जाती है। दिन में कहानी सुनने से आदमी रास्ता भूल जाता है। उसने फिर जिद कीनहीं, मुझे सुननी है.. वही कल वाली कहानी। वह तो सुना दी थी। वह सब मैं कुछ नहीं जानता। मैं सो गया था, बस मुझे कहानी सुननी है।.. आप कहती हैं, रात में सपने में कहानी पूरी हो जाती है परन्तु मैंने तो सपने में भी पूरी कहानी नहीं सुनी और न देखी। अच्छा ठीक है, आज रात में सुन लेना, मैं फिर से सुना दूंगी।
बात तय हो गयी और मुन्ना दिनभर प्रतीक्षा करता रहा कि कब रात हो और वह दादी से कहानी सुने। रात भी हो गई और जब सबने भोजन कर लिया तो मुन्ना फिर दादी के बिस्तर में जा घुसा। उसके विचार से अब सोने का समय हो गया था और उसे दादी से कल वाली कहानी सुननी थी। उसने फिर से दादी को कहानी सुनाने को कहा। दादी ने उससे पूछा-
अच्छा यह बता; तूने कहानी कहां तक सुनी थी? आप शुरू से सुनाइए न..।
अच्छा ठीक है। -दादी ने कहानी शुरू करने के पहले उसे सावधान किया- परन्तु कल की तरह सो मत जाना। मैं बिल्कुल नहीं सोऊंगा, बस आप कहते जाइए।
अच्छा तो सुन एक था चिडा और एक थी चिडिया। दोनों ने पेड की एक डाल पर अपना घोंसला बना रखा था। उनके दो बच्चे भी थे। छोटे-छोटे और प्यारे- प्यारे। उन लोगों ने उनका नाम चीं-चीं और चूं-चूं रखा था। एक दिन चिडिया को कहीं से चावल के ढेर सारे दाने और चिडा को दाल के दाने मिले। दोनों ने सोचा कि आज कुछ बनाया जाए। सप्ताह का अन्तिम दिन था यानि शनिवार। चिडा और चिडिया चाहते थे कि खिचडी बने परन्तु बच्चे का मन था कि पुलाव बने। चिडिया ने पुलाव बनाना ही तय किया।
सो तो नहीं गए? दादी ने बीच में ही पूछा। नहीं दादी।
तो आगे सुनो मुन्ना को सोया नहीं जानकर, दादी ने कहानी आगे बढाई। एक बडा सा पतीला चढाया गया।
मुन्ने ने बीच में ही रोककर उत्सुकतावश जानना चाहा कि चिडा-चिडिया का पेट तो छोटा होता है तो फिर बडा सा पतीला क्यों? और दादी ने समझाया कि गुडियों के बर्तन में से सबसे बडा वाला। चिडा भी साथ देता रहा और दोनों ने मिलकर पुलाव बनाया। पुलाव बडा ही स्वादिष्ट बना।
चिडा ने पेड से पत्ते तोडे और झटपट पत्तों की प्लेट बना डाली। दो डालों पर टहनियों और बडे पत्तों को बिछाकर बैठने की व्यवस्था कर ली गई। सबने जी भरकर पुलाव का आनन्द लिया और अपने-अपने बिस्तरों में आराम करने घुस गए। सबको नींद आ गई। अभी शाम हो ही रही थी कि सहसा चीं-चीं की नींद टूटी- उसके पेट में दर्द था। इतने में चूं-चूं भी उठ बैठा और मतली करने लगा। चिडिया उन्हें संभालने लगी। बच्चों के रोने से घर में शोर मचने लगा। क्या किया जाए, किसे बुलाया जाए? कौन से डाक्टर, कौन से वैद्य की खोज की जाए, चिडा समझ नहीं पा रहा था। वह घबराकर बाहर निकला तभी मुन्ने ने प्रश्न किया-दादी आपने बताया नहीं कि चिडा उदास क्यों था? उसे अपने सपने की बात याद आ गई थी जिसे उसने आज सुबह देखा था जिसमें चिडा चिडचिड करता, उदास बैठा, अपने घोंसले को देख रहा था। अब पूरी कहानी सुनोगे, तब तो समझ में आएगा?
और कितनी लम्बी कहानी है? ज्यादा नहीं, ..पहले तुम चुप रह कर सुनो तो-! अच्छा अब मैं चुप रहूंगा। आप आगे सुनाइए।
चिडा बाहर निकला तो उसकी भेंट उसी पेड पर रहने वाले कौए से हुई। उन दिनों कौए अच्छे वैद्य होते थे और उन्हें दवाओं का अच्छा ज्ञान होता था परन्तु कौए बडे धूर्त होते हैं दुष्ट भी। वह कौआ भी कुछ ऐसा ही था। अपनी धूर्तता और चालाकी से वह दूसरे पक्षियों को बेवकूफ बनाकर कभी उनके अंडों को खा जाता तो कभी उनके बच्चों पर हाथ साफ कर देता। चिडा उससे सावधान रहता था परन्तु अभी तो उसे अपने बच्चों के लिए दवा चाहिए थी। वह कहावत सुनी है न तुमने?
मरता क्या न करता। मुन्ने ने बिना कुछ समझे हां में सिर हिलाया और कहानी आगे बढी। चिडे ने कौए से सब कुछ कह सुनाया और कौए ने झटपट पुडिया बनाकर दी और यह भी सलाह दी कि सावधानी के तौर पर चिडा और चिडिया को भी दवा खा लेनी चाहिए ताकि उनकी तबियत बिगडने न पाए। चिडा ने दोनों बच्चों को दवा खिलाई और दोनों ने स्वयं भी खा लिया। बच्चों की तबीयत में कुछ सुधार हुआ और वे सो गए। शाम हो आई थी।
चुन-चुन, चुन-चुन करते चिडा और चिडिया भी सो गए। जानते हो; दुष्ट कौए ने दवा की पुडिया में बेहोशी की दवा भी मिला दी थी। उसने दोनों बच्चों को चुरा लिया। सुबह चिडे ने चारों तरफ बच्चों को खोजा परन्तु वे न मिले। वह निराश होकर लौट आया और घोंसले के पास एक डाल पर बैठकर चिड-चिडाने लगा। निराश होकर चिडिया भी यह कहती हुई निकल पडी कि एक बार मैं भी देख लूं, शायद मिल जाएं। यहीं तो मैंने कल सुलाया था।
और इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है। बताया तो था कि दुष्ट और दुश्मन का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। कहीं ऐसी भी कहानी होती है?
तो फिर तू ही बता।
दादी बोली। मुन्ने ने कहा- वह सब बात नहीं है- कौआ भी कहीं वैद्य होता है। कौए और चिडिए में दोस्ती भी नहीं होती। बात यह थी कि दोनों बच्चे बडे हो गए थे और दूर- ऽऽ - बहुत दूर चले गए थे इसलिए वे उदास थे।
तेरी ही कहानी सही है। दादी ने गहरी सांस ली।