खरगोश पालन क्यों अत्यधिक सन्तति उत्पादन के कारण मांस व ऊ न उत्पादन प्रति खरगोश सभी पालतू जीवों से अधिक है। यह जीव शोर व कोलाहल नहीं करता है। इसकी ऊ न बहुत बारीक व मुलायम होती है और इसकी ऊ न की ताप अवरोधक शक्ति भेड़ की ऊ न से लगभग तीन गुना होती है। इस कारण इसके पैसे ज्यादा मिलते हैं।
जलवायु: यद्यपि अंगोरा खरगोश 7 डिग्री से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में पाले जा सकते हैं, परंतु 20 डिग्री सेंटीग्रेड पर इनकी उत्पादन क्षमता अच्छी रहती है। बहुत अधिक तापमान में इनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। न्यून पर इनके फीड़ खाने की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे आर्थिक दृष्टि से हानि होती है। खरगोशों के लिए 70 प्रतिशत अपेक्षित आर्द्रता उचित रहती है। बेहतर प्रजनन के लिए दिन में 16 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है।
भवन व पिंजरे: जंगली अवस्था में खरगोश बिल खोदकर रहते हैं, लेकिन पालतू अवस्था में उन्हें अकेले पिंजरों में रखा जाता है। अंगोरा खरगोश को रखने के लिए भवनों का निर्माण इस ढंग से किया जाना चाहिए, जहां यह बाहरी प्रभावों जैसे सूर्य की तेज सीधी रोशनी, खराब मौसम व अवांछित शोर से बचे रहें। खिड़कियों तथा रोशनदानों पर जाली लगी हो, ताकि कीड़े-मकौड़े, पक्षी, चूहे, नेवले इत्यादि अन्दर न आने पायें। भवन में वायु का प्रभावशाली आवागमन हो।
खरगोशों को गैलवेनाई जड़ आयरन वैल्डेड वायरमैश से बने पिंजरों में रखा जाता है। एक पिंजरों में एक खरगोश रखा जाता है। पिंजरे में आहार तथा पानी के बर्तन इस ढंग से लगाए जाते हैं कि विभिन्न आयु वर्ग के जानवरों को आहार लेने व पानी पीने की सुविधा रहे।
प्रजनन योग्य खरगोशों के लिए पिंजरे का आकार 60 वर्ग सेंटीमीटर तथा अन्य खरगोशों के लिए -60 गुणा 35 सेंटीमीटर रखना चाहिए। बच्चे देने वाली मादाओं के पिंजरे के साथ प्रसव से पांच दिन पहले नैस्ट बॉक्स लगाए जाते हैं, जो प्लाईवुड के बने हों। नैस्ट बॉक्स का आकार 36 वाई 36 वाई 30 सेंटीमीटर होता है।
खरगोशों के लिए आहार: खरगोश शाकाहारी जीव है और घास इसका महत्वपूर्ण आहार है। यह सूखी हरी घास व हरी पत्तीयां जैसे शहतूत, दूब घास, लूसर्नघास, पालक, बरशीम आदि मुलायम हरे पत्तों को खूब खाता है। इसके अतिरिक्त शलजम, गाजर, चुकन्दर, गोभी, बंदगोभी आदि भी इसके मनचाहे खाद्य पदार्थ हैं।
अंगोरा खरगोशों को आहार पैलेट्ज के रूप में दिया जाता है। औसतन एक खरगोश प्रतिदिन 150-175 ग्राम आहार लेता है।
गर्भवती एवं बच्चे दिए हुई मादा के आहार में 100 ग्राम दैनिक वृद्धि हो जाती है। इसके अतिरिक्त 80-100 ग्राम हरी घास व हरी सब्जियां भी देनी चाहिए। एक खरगोश दिन में लगभग 350 मिलीलीटर पानी पीता है।
प्रजनन: केवल स्वस्थ व रोग मुक्त खरगोशों से ही प्रजनन करवाया जाना चाहिए। अंगोरा खरगोश 5-6 माह की आयु में जब इनका भार लगभग तीन किलोग्राम हो जाए, प्रजनन योग्य हो जाते हैं। उत्तेजित अवस्था में मादा की योनी लाल हो जाती है व अपनी ठोढ़ी पिंजरे में मलती हुई पूंछ को खूब हिलाती है। प्रजनन दो से करवाया जाता है।
प्राकृतिक गर्भधान: इसमें मादा खरगोश को नर खरगोश के पिंजरे में ले जाते हैं। समागम का ठीक व उचित समय सायं का रहता है। समागम के अंत में वह एक विशेष आवाज निकालता है। प्राकृतिक गर्भाधान के पश्चात मादा को वापस अपने पिंजरे में छोड़ दिया जाता है।
कृत्रिम गर्भधान: इसमें कृत्रिम वैजाईना की सहायता से वीर्य एकत्रित करके, उसे दूध से पतला किया जाता है तथा इसका एक मिली लीटर प्रत्येक प्रजनन योग्य मादा खरगोश की योनी में छिड़काव किया जाता है।
गर्भाधान के 14 दिन के बाद गर्भ हेतु जांच की जाती है। यदि गर्भधारण न हुआ हो तो दोबारा से मादा को नर के पास ले जाकर समागम करवाया जाता है। गर्भ के 25वें दिन नैस्ट बॉक्स लगा दिए जाते हैं। गर्भित मादा की विशेष देखभाल की जानी चाहिए। गर्भित मादा 31वें दिन बच्चे देती है।
बच्चे जनने के तुरंत बाद मां बच्चों को दूध पिलाने लगती है। जब खरगोश के बच्चों का जन्म होता है, तब उनके शरीर पर बाल नहीं होते। इनका रंग लाल और आंखें बंद होती हैं। तापमान को सामान्य रखने के लिए उन्हें एक ही स्थान पर रखना आवश्यक होता है। मादा अपने बच्चों को 24 घण्टों में एक बार ही लगभग 5-7 मिनट तक दूध पिलाती है और यदि कोई बच्चा दूध पीने से रह जाए तो वह अत्यंत कमजोर हो जाता है। जन्म से 11-12 दिन में वह चुस्त और फुरतीले हो जाते हंै और हरी घास व दाने को मुंह मारने लगते हैं। लगभग 4-5 सप्ताह की आयु होने पर इन बच्चों को मां से अलग कर दिया जाता है। इसे वीनिंग कहते हैं। अंगोरा खरगोश से वर्ष में 5-6 बार बच्चे लिए जा सकते हैं तथा प्रत्येक बार औसतन 6 बच्चे उत्पन्न होते हैं।
ऊन उत्पादन: अंगोरा खरगोश मुख्यत: अपनी बेहतरीन ऊ न के लिए पाले जाते हैं। एक वयस्क खरगोश से वर्ष में 4 बार ऊ न उतारी जाती है। औसतन एक खरगोश 200 से 250 ग्राम ऊन देता है। पहली ऊ न की कटाई खरगोश की 60 दिन की उमर पर कर देनी चाहिए, लेकिन दिसंबर या जनवरी में सर्दी के मौसम में ऊ न नहीं काटनी चाहिए।
अंगोरा खरगोश पालन हेतु अनुकूल है। अंगोरा पालन प्रदेश के कृषकों व बेरोजगार युवक-युवतियों द्वारा अपनाया जा रहा है। आरंभ में खरगोश प्रजनन फार्म नगवाई (जिला मण्डी) में 1984 में स्थापित किया गया था। इसके पश्चात पालमपुर में सन् 1986 में दूसरा खरगोश प्रजनन प्रक्षेत्र खोला गया। इन प्रक्षेत्रों में जर्मन अंगोरा खरगोश रखे जाते हैं। अंगोरा खरगोश की ऊन मुलायम और बारीक होती है, जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। अंगोरा खरगोश पालन के इच्छुक व्यक्तियों को विभागीय प्रक्षेत्रों पर प्रशिक्षण प्रदान करवाया जाता है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें
खरगोश को पकडऩे व उठाने में विशेष ध्यान देना चाहिए। खरगोश को ऊपर से हाथ को कन्धे पर रखकर दोनों तरफ चमड़ी को पकड़ कर तथा दूर हाथ पेट के नीचे पिछले भाग में रखकर उठाया जाता है। कभी भी खरगोश को कान व टांगों से नहीं उठाना चाहिए।
कौपरोफेजी- खरगोश अपनी मेंगनों का एक भाग दोबारा खा जाता है। यह सामान्य बात है। यह मेंगने आम तौर पर दो प्रकार की करता है। जो मेंगने नरम हल्की हरी सी होती है, उन्हें वापस खा जाता है। खरगोश बैक्टीरियल पाचन का पूरा फायदा उठाता है, जो मेंगने दिन में करता है वह मामूली मटियाली और सख्त होती हैं वह उन्हें नहीं खाता। अंगोरा खरगोश नाजुक व डरपोक जानवर होता है। इसके आसपास विस्फोट, शोरगुल आदि उत्पादन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालते हैं। अंगोरा इकाई छोटे रूप में 10-15 खरगोशों से शुरू करनी चाहिए।
सामान्य बीमारियां एवं उनकी रोकथाम
खरगोशों में पाई जाने वाली मुख्य बीमारियों में कक्सीडियोसिस, टलारीमियाय, मयुकोएड एंटरोपैथी, न्यूमोनियाय, आंख आना, रिंग वर्मय, फोड़े इत्यादि प्रमुख हैं। इनकी रोकथम के लिए पिंजरों में आहार व पानी के बर्तनों व अन्य उपयोग में आने वाले उपकरणों को समय पर कीटाणु रहित करना चाहिए। किसी भी अंगोरा कक्सीडियोसिस इकाई का लाभप्रद होना मुख्यत: ऊन उत्पादन तथा ऊन की कीमत तथा आहार के मूल्य पर निर्भर करती है। ऊन का विक्रय ही आय का मुख्य स्त्रोत है। ऊन के इलावा इनकी खाल, मांस तथा युवा खरगोशों के विक्रय से भी आय में वृद्धि होती है। अंगोरा खरगोश इकाईयों को आर्थिक दृष्टि से जीवित रखने तथा खरगोशों की ऊन उत्पादन क्षमता को बनाए रखने हेतु बढिय़ा स्टाकॅ का चयन करना व कम उत्पादन वाले खरगोशों का नियमित रूप से निष्कासन अति आवश्यक है।