Sunday, April 21, 2013

ठोस आहार की हो सही शुरुआत


बच्चे को जब आप ठोस आहार देना शुरू करती हैं, तब आपको अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है। सतर्कता का अभाव बच्चे को बीमार कर सकता है या उसके शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
10 महीने के आहान की मां निशिता अग्रवाल बाल रोग विशेषज्ञ से मिलने के बाद काफी दुखी व चिंतित हो गईं। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उसका बेटा एनीमिया से ग्रस्त है, क्योंकि उसके रक्त में आयरन की कमी है। निशिता समझ नहीं पाईं कि ऐसा कैसे हो गया। दरअसल, वे माएं जो अपने बच्चे को ठोस आहार खिलाना शुरू करती हैं, उनके लिए यह फैसला करना आसान नहीं होता कि बच्चे को कब, क्या और कितना खाना देने की जरूरत है। पर थोड़ा-सा ध्यान देने से यह बदलाव सरल हो जाता है। छह महीने से पहले तक मां का दूध ही बच्चे के लिए सर्वोत्तम होता है, लेकिन इसके बाद जब बच्चे को ठोस आहार देना शुरू किया जाता है तो शरीर में पोषक तत्वों की कमी की शिकायत अकसर हो जाती है। इसलिए बच्चे की आहार योजना बनाते वक्त कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
भीतर छुपी समस्या
निशिता का अनुभव बड़ी संख्या में भारतीय माताओं के अनुभव को दर्शाता है। छह महीने के बाद बढ़ते बच्चे की क्या आवश्यकताएं हैं, इस बारे में अधूरी जानकारी के चलते विकसित होते बच्चे के शरीर में पोषक तत्वों की कमी रह जाती है। यह देखा गया है कि छह महीने के बाद बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता, क्योंकि अब तक मां के दूध से आयरन, प्रोटीन, जिंक, विटामिन व कैल्शियम जैसे पोषक तत्व उन्हें मिलते थे, वो अब ठोस आहार से नहीं मिल पाते। अगर आपका बच्चा छह महीने का होने जा रहा है तो आपको सोचना शुरू कर देना चाहिए कि उसे खाने में आपको क्या-क्या देना है। छह महीने के बाद आपके बच्चे की पोषण संबंधी आवश्यकताएं काफी अधिक हो जाती हैं और आपको यह सुनिश्चित करना होता है कि आपके बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक खुराक मिले। आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि छह महीने के बच्चे का पेट उसकी मु_ी के बराबर होता है, इसलिए उसके लिए ज्यादा मात्रा में खा पाना संभव नहीं होता। इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि बच्चे को थोड़े-थोड़े अंतराल पर खाने के लिए दिया जाए।
ठोस आहार की शुरुआत, जानकारी के साथ
यह जानना महत्वपूर्ण है कि बच्चे को ठोस आहार देना धीम-धीमे बढऩे वाली प्रक्रिया है। खुराक कैलोरी व प्रोटीन से भरपूर होनी चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप ऐसे खाद्य पदार्थ चुनें, जिनसे बच्चे की जरूरतें पूरी हो सकें। शुरुआत में आप अपने शिशु को कोमल कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थ दे सकती हैं, जैसे कि सूजी की खीर, घी वाली खिचड़ी, दलिया, कुचला हुआ केला आदि। आपके शिशु के लिए इस उम्र में आयरन बेहद अहम है। जो शिशु मां के गर्भ में वक्त पूरा करके जन्म लेते हैं उसके शरीर में आयरन का भंडार छह महीनों तक रहता है। उसके बाद उसके शरीर से आयरन का भंडार कम होने लगता है और उसकी खुराक में आयरन जरूरी हो जाता है। इस लिहाज से आयरन युक्त खाद्य को खास महत्व देना चाहिए। आप कुचली हुई सब्जियों से शुरुआत करें और फिर धीरे-धीरे उसे अन्य चीजें खिलाएं। दालें, फलियां, अंकुरित दालें, ब्रोकली व बंदगोभी आयरन का अच्छा स्त्रोत हैं।
क्या है पोषक तत्वों की भूमिका
आयरन, बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास के अलावा हीमोग्लोबिन के उत्पादन के लिए जरूरी है। हीमोग्लोबिन कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाने व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
कैल्शियम व फॉस्फोरस, हड्डियों की बढ़त के लिए जरूरी है। बच्चे को प्रचुर मात्रा में कैल्शियम देने की सलाह दी जाती है, ताकि बाद में फ्रैक्चर आदि की आशंका कम हो।
विटामिन ए, विटामिन ई, आपके बच्चे की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने के लिए जरूरी है।
प्रोटीन बच्चे की समग्र वृद्धि व विकास में केन्द्रीय भूमिका निभाता है। यह शरीर के ऊतकों के निर्माण व मरम्मत के लिए जरूरी हैं। प्रोटीन की कमी के चलते बच्चे की विकास गति धीमी पड़ सकती है।
कैलोरी से भरपूर खुराक अहम है, जिससे बच्चे की ऊर्जा संबंधी जरूरतें पूरी होती हैं। अगर ऊर्जा की जरूरत पूरी न हो तो हो सकता है कि शरीर प्रोटीन को ऊर्जा के लिए प्रयोग करे और इससे बच्चे के विकास व वृद्धि पर विपरीत असर पड़ेगा।






कैसे पकाती हैं आप अपना खाना?


खाना आप बनाती तो स्वादिष्ट हैं, पर कहीं ऐसा तो नहीं कि पकाने की गलत विधि के कारण आप सारे पोषक तत्वों को नष्ट कर देती हों। सिर्फ खाना पकाना ही नहीं, उसे सही तरीके से पकाना भी जरूरी है ताकि पोषक तत्व बर्बाद न हों।
यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितनी मात्रा में सब्जियां और फल खाते हैं, उससे भी महत्वपूर्ण है कि इनमें मौजूद विटामिन, मिनरल और दूसरे पोषक तत्व कितनी मात्रा में हमारे शरीर को मिल पाते हैं। यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि हम इन्हें किस तरह से खाते हैं। पकाने से विटामिन और मिनरल की कुछ मात्रा नष्ट हो जाती है। लेकिन पकाना कुछ रसायनों की सक्रियता को खत्म कर देता है, जो पोषक तत्वों के अवशोषण की राह में बाधक बन जाता है।
क्यों जरूरी है पकाना
यह सही है, खाने को हम कितना भी सावधानीपूर्वक पकाएं, उसके 10-15 प्रतिशत तक पोषक तत्व नष्ट हो ही जाते हैं। लेकिन पकाने के फायदे भी हैं, इससे पाचकता सुधरती है और पोषक तत्व उस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जो आसानी से अवशोषित हो सकें। कुछ खाद्य पदार्थो के लिए पकाना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम उन्हें कच्चा नहीं खा सकते।
खाना बनाने की सुरक्षित विधियां 
हम क्या खाते हैं, उससे ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि उसे कैसे खाते व पकाते हैं। खाद्य पदार्थों को दो रूप में खाया जाता है, कच्चा या पकाकर। कई सब्जियों और फलों को कच्चा खाना बहुत लाभदायक है, लेकिन हर चीज को कच्चा नहीं खाया जा सकता, इसलिए हम भोजन को पकाते हैं। खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए कई मसाले, शक्कर, घी, तेल और दूसरी चीजें डालकर हम उसके पोषक तत्वों को नष्ट कर देते हैं। लेकिन पकाने की कुछ ऐसी विधियां हैं, जिनसे अधिक से अधिक पोषक तत्वों को सुरक्षित रख सकते हैं।
स्टीमिंग यानी भाप में पकाना 
भाप में भोजन को पकाना पोषक तत्वों को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका है। ताजी सब्जियां, चावल और दलिया को जहां तक संभव हो कम पानी में भाप में पकाएं। सब्जियों को प्रेशर कुकर में भाप में पकाना सबसे अच्छा है। इसमें तेल की जरूरत भी कम होती है, समय भी कम लगता है और विटामिन व दूसरे पोषक तत्व भी पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। पकाने के बाद सब्जियों की जितनी रंग और चमक बरकरार रहेगी, उनमें पोषक तत्वों की मात्रा उतनी ही अधिक रहेगी।
ग्रिलिंग 
इस विधि में खाद्य पदार्थों के स्वाद और गुण सुरक्षित रहते हैं। इसमें पकाए जानेवाले खाद्य पदार्थ को ग्रिल के ऊपर रखते हैं, जिसमें नीचे से आंच लगती है।
स्टर फ्राइंग 
इसमें ग्रिलिंग की तरह ही कम घी-तेल का इस्तेमाल होता है। कम तेल के कारण खाद्य पदार्थ पैन में न चिपकें, इसके लिए उसे धीरे-धीरे लगातार हिलाया जाता है या बीच-बीच में थोड़ा पानी छिड़का जाता है। इसमें खाद्य पदार्थों के पोषक तत्वों के साथ ही उनका रंग और फ्लेवर भी सुरक्षित रहता है।
रोस्टिंग
पोषक तत्वों को सुरक्षित रखने के लिए आंच पर सब्जियों या दूसरी खाने की चीजों को सीधे पकाने की इस विधि से सब्जियां जल्दी और आसानी से पक जाती हैं। इसमें भी घी और तेल का उपयोग कम होता है।
फायदे भी हैं पकाने के 
कच्चे भोजन में बैक्टीरिया होता है, जो पकाने के बाद नष्ट हो जाता है। भोजन पचने लायक बनता है।
पकने के बाद भोजन नरम हो जाता है। यह भोजन को चबाने, निगलने और पचाने में आसान बना देता है।
पकाने से स्वाद बेहतर हो जाता है।
भोजन को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है।
किस चीज को कैसे पकाएं
पालक: पालक को काटने से पहले धो लें। ज्यादा देर पकाने से पालक का 64 प्रतिशत विटामिन सी नष्ट हो जाता है। इसलिए पकाते समय इसमें अलग से पानी न डालें, ढक कर 2-3 मिनट से ज्यादा न पकाएं। पालक में आयरन काफी होता है, लेकिन इसमें अक्सेलिक एसिड भी काफी मात्रा में होता है, जो आयरन के अवशोषण को रोकता है।
मांसाहारी खाना: मांस, चिकन व मछली को पकाने के लिए बहुत कम पानी में भाप में गला लें और फिर कम मसालों और तेल में पकाएं। अगर ज्यादा पानी में बना रही हैं तो उस पानी का सूप के रूप में उपयोग करें।
अंडे: अंडे को कभी भी कच्चा न खाएं। उबालकर खाने से आयरन और बायोटिन की उपलब्धता बढ़ जाती है।
चावल: चावल को उबालने के बाद उसका पानी फेंके नहीं। चावल के पानी के साथ करीब 25 प्रतिशत विटामिन बी नष्ट हो जाता है। चावल को कम पानी में भाप में पकाएं। पके हुए चावल बहुत जल्दी संक्रमित हो जाते हैं और दोबारा गर्म करने पर भी नष्ट नहीं होते। बासी चावल कतई न खाएं।
करेला: कड़वा करेला औषधीय गुणों और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। भाप में कम मसालों के साथ पका कर खाना इसे पकाने का सबसे कारगर तरीका है। कुछ लोग इसे उबालकर सब्जी बनाते हैं।
भिंडी: धीमी आंच पर भाप में पकाएं, मसालों का कम से कम प्रयोग करें। अगर इसे अधपके रूप में खाया जाए तो इसके पोषक तत्व बरकरार रहेंगे।
साबुत अनाज: साबुत अनाज को रातभर कम पानी में भिगोएं, कम आंच पर भाप में गलाएं और कम तेल-मसालों में पकाएं। इसमें मौजूद फायटिक एसिड जो हमारे लिए हानिकारक है, पकाने से 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है। अंकुरण से भी अनाजों में इसका स्तर कम हो जाता है।
तेल: तेल को ज्यादा देर गर्म न करें, क्योंकि 15 मिनट तक गर्म करने से उसके प्राकृतिक गुण नष्ट होने लगते हैं। इसमें ट्रांस फैटी एसिड की मात्रा बढ़ जाती है।
इनका भी रखें ख्याल
सब्जियों को पकाने से पहले पानी में न भिगोएं, इससे पोषक तत्व पानी में घुलकर नष्ट हो जाएंगे।
सब्जियों को कम पानी में पकाएं, पानी की मात्रा जितनी कम होगी, उतने ही कम पोषक तत्व इसमें घुलकर नष्ट होंगे।
भोजन को ज्यादा देर न पकाएं। जितनी देर पकाएंगे उसके पोषक तत्व उतने ही ज्यादा नष्ट हो जाएंगे।
हरी पत्तेदार सब्जियों को काटने से पहले धो लें,
क्योंकि इनमें मौजूद विटामिन और मिनरल पानी में घुलनशील होते हैं।
सब्जियों को ढक कर पकाएं, पोषक तत्व सुरक्षित रहेंगे।
रिफाइंड तेल के बजाए सरसों या जैतून के तेल में भोजन बनाएं, इनमें पोषक तत्व संतुलित मात्रा में होते हैं।
मसालों का प्रयोग कम करें।
ताजा भोजन करें। भोजन को बार-बार गर्म न करें।
ताजे और मौसमी फल और सब्जियों का ही उपयोग करें।
सब्जियों को काटकर कभी न धोएं, इससे विटामिन बी और सी नष्ट हो जाते हैं।
फ्रिज में खाद्य पदार्थों को 4 डिग्री सेंटिग्रेड पर रखें, फ्रोजन फूड को -18 डिग्री पर और डिब्बा बंद को सूखे और ठंडे स्थान पर रखें।

क्यों जरूरी है फेशियल


आपके चेहरे की त्वचा सुंदर, स्वच्छ, चिकनी, कोमल और कातिमय है? अगर हा, तो आप भाग्यवान हैं। लेकिन आपकी त्वचा का यह सौंदर्य सदा ऐसा ही बना रहे इसके लिए देखभाल बहुत जरूरी है। फेशियल एक ऐसा सौंदर्य उपचार है, जो त्वचा की कमनीयता को बरकरार रखने में सहायक होता है।
फेशियल रूखी व सामान्य त्वचा के लिए आदर्श है। फेशियल से रक्त संचार बढ़ता है और त्वचा के अंदर की गंदगी बाहर निकल जाती है। फेशियल मसाज के दौरान दिए जाने वाले स्ट्रोक्स से मृत कोष निकल जाते हैं और नए सेल्स का निर्माण होता है। नियमित फेशियल से चेहरे पर झुर्रिया देर से आती हैं।
जिनकी उम्र 25 वर्ष से अधिक है उनको पंद्रह दिन में एक बार फेशियल करना अपनी आदत बना लेना चाहिए। उचित सफाई के अभाव में प्रदूषण व मेकअप से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और रोमछिद्र बंद हो जाने से सीबम ऑयल बाहर नहीं निकल पाता। इस कारण एक्ने, मुंहासे और ब्लैक हेड्स जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए फेशियल एक कारगर उपाय है। साधारण फेशियल में कम से कम एक घटा लग जाता है। फेशियल में काफी भिन्नता है, लेकिन स्टेप्स एक जैसे रहते हैं। अंतर प्रोडक्ट में व उनकी प्रॉपर्टीज में होता है।
सौंदर्य विशेषज्ञ एवं नेचर ऐसेंस ब्यूटी प्रोडक्ट की जनरल मैनेजर सुनीता अरोड़ा कहती हैं कि फेशियल एक प्रकार की फेस एक्सरसाइज है, जिसके जरिए त्वचा के डेड सेल को हटाया जाता है। फेशियल कितनी बार किया जाए यह त्वचा और आयु पर निर्भर करता है, जिसके बारे में जानकारी चार्ट में दी गई है।
जितनी प्रकार की त्वचा होती है, उतनी ही प्रकार के फेशियल हैं। त्वचा में जब कुदरती लचीलापन कम हो जाता है तो उसकी क्लीजिंग और पालिशिग जरूरी हो जाती है। यह फेशियल बखूबी करता है, साथ ही यह त्वचा में कसाव भी लाता है। त्वचा खिली-खिली नजर आती है।
फेशियल कैसे करें
फेशियल में पहले चेहरे की सफाई की जाती है, फिर मालिश।
सफाई: फेशियल हमेशा साफ व स्वच्छ त्वचा पर ही किया जाता है। सबसे पहले मेकअप को हटाने के लिए स्किन टोनर का इस्तेमाल करें। फिर क्लींजर से, जिसमें कुछ सॉल्टिक तत्व हो, चेहरे को साफ करें। अगर आपकी त्वचा तैलीय है तो गुनगुने पानी या फेशवॉश से चेहरा साफ करें, अगर त्वचा शुष्क है तो ठंडे पानी में कॉटन को भिगोकर चेहरे को पोंछ लें।
फेस स्क्त्रब: मृत त्वचा को हटाने के लिए फेस स्क्त्रब का इस्तेमाल करें। स्क्त्रब अपनी त्वचा के अनुरूप ही प्रयोग करें। जैसे रूखी त्वचा के लिए मॉइश्चरयुक्त स्क्त्रब होना चाहिए।
फेशियल मसाज: अगर त्वचा को मसाज की जरूरत है तो फेशियल मसाज करें। अगर जरूरत नहीं है तो मॉइश्चराइजिंग करें। मॉइश्चराइजिंग में सिर्फ मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करते हैं। अगर मसाज करनी हो तो उसके लिए क्त्रीम का चयन अपनी त्वचा को ध्यान में रखकर ही करें। अगर आपकी त्वचा सामान्य है तो ऑल परपज क्त्रीम, शुष्क है तो विटामिन प्रोटेक्शन क्त्रीम और अगर त्वचा तैलीय है तो ऑयल फ्री क्त्रीम या लोशन का प्रयोग करें।
मसाज हमेशा अंदर से बाहर व नीचे से ऊपर की ओर ही करें। आखों के आसपास की त्वचा अत्यंत कोमल होती है इसलिए यहा दबाव डाले बिना ही क्त्रीम लगाएं। मालिश दस से पंद्रह मिनट तक की जानी चाहिए। चेहरे पर जहा सूजन हो उन प्वाइंट्स को हल्के हाथों से दबाते हुए नीचे की दिशा में मालिश करें ताकि उन प्वाइंट्स में एकत्रित पानी धीरे-धीरे नीचे की ओर चला जाए। अगर चेहरे पर फालतू क्त्रीम बच जाए तो उसे कॉटन से पोंछ दें।
स्टीम: स्टीम उस त्वचा पर देते हैं, जिसमें एक्ने हो या जिसके रोमछिद्र बंद हों, क्योंकि भाप लेने से त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं और त्वचा को फेसपैक का पूरा लाभ मिलता है। हर त्वचा को फेशियल स्टीम की जरूरत नहीं होती।
फेसपैक: मसाज के बाद चेहरे को साफ करके पैक लगाते हैं। फेसपैक अलग-अलग त्वचा पर अलग-अलग इस्तेमाल करें। फेसपैक कितनी देर तक फेस पर लगा रहे यह आपकी त्वचा व फेसपैक की किस्म पर निर्भर करता है।
मुख्य बात यह है कि फेसपैक सूख जाना चाहिए। इसके बाद ठंडे पानी में स्किन टोनर डालकर एक तौलिया उसमें भिगोकर चेहरे पर रखते हैं। फेस साफ करने के बाद अपनी स्किन के मुताबिक कोई स्किन प्रोटेक्टर यानी सन ब्लॉक या सनस्क्त्रीन लोशन जरूर लगाएं।
सौंदर्य के प्रति बढ़ती जागरूकता को देखते हुए आजकल कई नए तरह के फेशियल किए जाने लगे हैं- गोल्ड फेशियल, सिल्वर फेशियल और पर्ल फेशियल।
गोल्ड फेशियल
गोल्ड फेशियल एक क्लीनिकल उपचार है। इस फेशियल में गोल्ड क्त्रीम और गोल्ड जैल प्रयुक्त होता है। गोल्ड फेशियल क्त्रीम में सोने की बहुत ही पतली परत उत्पाद में मिलाई जाती है। त्वचा में कोई भी मेटल सीधे नहीं जा सकता, इसलिए सोने को पिघलाकर क्त्रीम में मिलाया जाता है।
शहनाज हर्बल गोल्ड फेशियल 24 कैरेट सोना, व्हीट जर्म ऑयल, चंदन का तेल, चंदन पाउडर मिलाकर एलोवेरा के जैल में डालकर तैयार किया जाता है। गोल्ड फेशियल हीटिंग एफेक्ट देता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है और मृत त्वचा निकल जाती है। नए सेल्स को पोषण मिलता है।
शहनाज कहती हैं, गोल्ड फेशियल में विशेष तरीके की जरूरत होती है, जो कि त्वचा को सफाई से शुरू होता है। इसमें गोल्ड क्त्रीम से मालिश की जाती है, जो त्वचा के विषैले पदार्थ बाहर निकाल देती है। क्त्रीम हटाने के बाद लैवेंडर ऑयल के साथ हल्का-हल्का दबाव डाला जाता है। फिर गोल्ड जैल लगाया जाता है और क्त्रीम को जज्ब कराने के लिए विशेष तरीके को अपनाया जाता है। यह फेस मास्क त्वचा को पोषण देता है और कुदरती लचीलापन लाता है। इससे नए सेलों को ऊर्जा मिलती है और त्वचा का यौवन नए सेल्स पर निर्भर करता है। इसे लगाने के बाद आखों पर गीली रुई रख दी जाती है ताकि आखों को आराम मिले।
सुनीता अरोड़ा बताती हैं, नेचर एसेंस के मैटेलिक गोल्ड फेशियल में गोल्ड को पिघलाकर उसके सोल्यूशन का प्रयोग किया जाता है। यह फेशियल ऐसी किसी भी त्वचा के लिए उपयोगी है, जिसे ब्लीचिंग का कुदरती एफेक्ट चाहिए। यह फेशियल स्किन पीलिंग का भी काम करता है। इसमें सॉफ्ट जैल फॉम में प्रोडक्ट तैयार किए गए हैं। इसलिए यह 18 साल से ऊपर किसी भी उम्र की त्वचा पर किया जा सकता है। इस फेशियल में पहले गोल्ड क्त्रीम क्लींजर से त्वचा की सफाई की जाती है। इससे बाहरी त्वचा कातिमय व कोमल हो जाती है। इसके बाद स्किन को पॉलिशिग एफेक्ट देने के लिए गोल्ड ब्यूटी ग्रेन्स का इस्तेमाल किया जाता है।
नए सेल्स के निर्माण के लिए गोल्ड टिशू रिपेयर लोशन लगाते हैं फिर गोल्ड नरिशिग मसाज जैल से चेहरे की मसाज करते हैं, ताकि ब्लड सर्कुलेशन बढ़े। इसके बाद चेहरे की चमक और नमी बरकरार रखने के लिए गोल्ड रिवाइटलाइजिंग पैक लगाते हैं।
पर्ल फेशियल
पर्ल फेशियल शहनाज हर्बल का उपचार है। इससे मसाज करने पर त्वचा काफी गहराई तक साफ होती है। यह त्वचा के लिए बहुत लाभदायक होता है। पर्ल फेशियल त्वचा के तैलीय और पी.एच. संतुलन को बरकरार रखता है, त्वचा को पोषण देने के साथ-साथ नए सेल्स का निर्माण करता है।
अगर यह नियमित रूप से किया जाए तो त्वचा में निखार आ जाता है और चेहरे पर झुर्रिया देर से पड़ती हैं, क्योंकि पर्ल क्त्रीम मैलानिन पर काफी असर डालती है। पर्ल फेशियल धूप से झुलसी हुई त्वचा को एक नया निखार देता है।






व्रत में सेहत से न करें खेल


मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों से पीडि़त लोगों को नवरात्र में व्रत रखने का आस्था से जुड़ा महत्वपूर्ण फैसला काफी सोच-विचार कर लेना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि खानपान व दिनचर्या में लापरवाही बरतने से ऐसे लोग कई स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हो सकते हैं। इन समस्याओं को कैसे दें शिकस्त..
ऐलोपैथी का दृष्टिकोण
मधुमेह से ग्रस्त रोगियों को नवरात्र में व्रत रखने का महत्वपूर्ण फैसला काफी सोच-विचार कर और अपने डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लेना चाहिए। हालाकि व्रत रखने का फैसला निजी स्तर पर आस्था से जुड़ा है, लेकिन इस सदर्भ में मधुमेह पीडि़तों का मामला गैर मधुमेहग्रस्त व्यक्तियों से अलग है। ऐसा इसलिए, क्योंकि लापरवाही बरतने पर व्रत के दौरान मधुमेह रोगियों के समक्ष कई जटिलताएं और जोखिम पैदा हो सकते हैं।
कौन रखें व्रत और कौन नहीं
-ऐसे मधुमेह रोगी, जिनका दवाओं से मधुमेह नियत्रित है, वे कुछ सजगताएं बरतकर व्रत रख सकते हैं।
-ऐसे व्यक्ति जिन्होंने खान-पान व व्यायाम से मधुमेह को नियत्रण में रखा है, वे भी व्रत रख सकते हैं।
-जिन लोगों का ब्लड शुगर लेबल बमुश्किल नियत्रण में रहता है, उन्हें व्रत नहीं रखना चाहिए।
-इंसुलिन लेने वाले मधुमेह रोगियों को व्रत नहीं रखना चाहिए।
ऐसे करें नियत्रित
कुछ सुझावों पर अमल कर व्रत के दौरान मधुमेह का प्रबधन या नियत्रण किया जा सकता है। व्रत के दौरान लापरवाही बरतने से मधुमेह रोगियों को हाइपोग्लाइसीमिया और हाई ब्लड शुगर जैसी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। बावजूद इसके कुछ सुझावों पर अमल कर इन परेशानियों को नियत्रित किया जा सकता है
थोड़ी मात्रा में खाएं
मधुमेह से ग्रस्त रोगियों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में एक निश्चित अंतराल जैसे हर तीन या चार घटे पर कुछ न कुछ स्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ खाने चाहिए। उन्हें खाने के मामले में लबा अंतराल नहीं रखना चाहिए और भूख से अधिक खाद्य पदार्थ ग्रहण नहींकरने चाहिए। जो लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं, उनके लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि खानपान के प्रति लापरवाही न बरतें। जो व्यक्ति डाइबिटीज से सबधित दवाएं ले रहे हैं, उन्हें तो खानपान में लबा अंतराल बिल्कुल नहीं रखना चाहिए। अगर इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति चद घटों के अंतराल पर स्वास्थ्यप्रद आहार लेते रहें, तो इससे उनके ब्लड शुगर का स्तर तेजी से बढ़ नहींसकेगा।
ऐसा हो खानपान
व्रत में मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति लौकी, कूटू के आटे से निर्मित रोटी कद्दू की सब्जी के साथ खा सकते हैं। कूटू का चीला, सावा का चावल खीरे के रायते के साथ, ताजा पनीर, दूध, मक्खन और नारियल का पानी भी इस रोग से पाीडि़त व्रत रखने वाले लोगों के लिए लाभप्रद है। एक नियमित अंतराल पर फल लें। स्नैक्स में बादाम और रोस्टेड मखाना भी ले सकते हैं।
शुगर की जाच: मधुमेह से ग्रस्त उपवास रखने वाले लोगों को दिन में कई बार रक्त में शुगर के स्तर की जाच करनी चाहिए।
तरल पदार्थ लें
मधुमेह से ग्रस्त लोगों को शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) होने का खतरा कहीं ज्यादा होता है। ब्लड शुगर के स्तर के बढ़े होने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इसलिए तरल पदार्थ (जैसे नारियल पानी, नीबू पानी और म_ा) पर्याप्त मात्रा में लें। इन्हें लेने से डीहाइड्रेशन की आशका खत्म हो जाती है।
डीहाइड्रेशन के लक्षण
-बहुत ज्यादा प्यास महसूस करना।
-भूख न लगना, थकान या कमजोरी महसूस करना।
-चिड़चिड़ापन।
-तेज सास चलना या फिर सास लेने में परेशानी महसूस करना।
उपर्युक्त सभी लक्षण शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) से सबधित हैं। इन लक्षणों के प्रकट होते ही सचेत हो जाएं और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लें।
जमकर आहार ग्रहण न करें
एक बार की सिटिंग में जमकर भोजन करने से बचें। अनेक लोग हैं, जो नवरात्र व्रत के दौरान खाने-पीने पर नियत्रण नहीं रख पाते। कुछ लोग तो सामान्य दिनों की तुलना में व्रत के दौरान कुछ ज्यादा ही खाते-पीते हैं। जैसे वे तले हुए आलू, मखाने की खीर, साबूदाना की खिचड़ी व पकौड़ा आदि खाते हैं। कुछ खाद्य पदार्थ जैसे साबूदाना खिचड़ी और आलू टिक्की खाने से परहेज करें, क्योंकि इन खाद्य पदार्र्थो में रेशा या फाइबर कम और वसा अधिक मात्रा में पायी जाती है।
डॉक्टर का परामर्श
जब आप उपवास करने का सकल्प लेती/ लेते हैं, तो अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। डॉक्टर व्रत के दौरान ब्लडशुगर को नियत्रित करने के सदर्भ में आपको आवश्यक परामर्श देंगे। इसके अलावा वह आपकी दवा या इंसुलिन की डोज को भी नए सिरे से निर्धारित कर सकते हैं।
आयुर्वेद के आइने में
आध्यात्मिक लाभ के अलावा उपवास रखने से शरीर की शुद्धि भी होती है, लेकिन जो लोग मधुमेह उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर), हृदय रोग या खून की कमी (एनीमिया) जैसे रोगों से पीडि़त हैं, उन्हें नवरात्र में व्रत रखते समय खानपान में विशेष सजगताएं बरतने की जरूरत है।
भारी (गरिष्ठ) आहार से बचें
नवरात्र के दौरान उपवास रखने वाले लोग अक्सर तला हुआ आहार ग्रहण करते हैं। जैसे आलू, कूटू या सिघाड़े के आटे के पकौड़े, साबूदाना की कचौड़ी, साबूदाना खीर और टिक्की आदि खाते हैं। लगातार नौ दिनों तक गरिष्ठ भोजन करने से कई प्रकार के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा घटे खाली पेट न रहें
मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीडि़त रोगियों को अधिक समय तक भूखा नहीं रहना चाहिए। यदि वे पेट को खाली रखते हैं, तो प्रत्येक दो से तीन घटे के बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सुपाच्य भोजन करते रहना चाहिए। मधुमेह के रोगियों के लिए लौकी, कद्दू, तुरई जैसी सब्जिया या उनका सूप लेना चाहिए। पपीता, सेब, मौसमी या मुसम्मी, नाशपाती व बादाम का सेवन लाभप्रद है। चीनी (शुगर) और इससे निर्मित खाद्य पदार्र्थो और मीठे फलों जैसे केला आदि का सेवन न करें।
नमक के अधिक सेवन से परहेज
उच्च रक्तचाप से पीडि़त लोगों को विभिन्न प्रकार की नमकीन, आलू के चिप्स और अन्य नमकयुक्त खाद्य पदार्र्थो के अधिक सेवन से परहेज करना चाहिए। चाय, कॉफी अचार, मिर्च और तली हुई खाद्य वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। खीरा, ककड़ी, केला, लस्सी और ताजा फलों का सेवन उच्च रक्तचाप से पीडि़त व्यक्तियों के लिए लाभप्रद है।
निर्जल उपवास न करें
मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीडि़त व्यक्तियों को निर्जल उपवास कदापि नहीं करना चाहिए। कुछ लोग पूरा दिन भूखा रहकर रात को हाई कैलोरी युक्त भोजन अधिक मात्रा में करते हैं। यह भोजन पूर्ण रूप से जल्दी नहीं पच पाता। इस स्थिति में अपच या बदहजमी की शिकायत पैदा हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप आतों में एक विशेष पदार्थ उत्पन्न होता है। इस पदार्थ को आयुर्वेद में आम(आंव) कहते हैं। अधिक मात्रा में आम बनने से शरीर में अनेक प्रकार के रोगों के पैदा होने की आशकाएं बढ़ जाती हैं। कुछ लोग कम मात्रा में भोजन करके या पूर्ण रूप से भोजन त्यागकर उपवास रखते हैं। ऐसे लोगों के शरीर में धातुओं का क्षय, कमजोरी, थकान व अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
ये तरीका ठीक नहीं
कुछ लोग नवरात्र का व्रत वजन कम करने के लिए भी करते हैं। इसलिए वे पानी या तरल पदार्थ सूप या जूस पीते हैं या फिर केवल एक बार भोजन करते हैं। ऐसा करने से शरीर का न केवल मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है, बल्कि उनके शरीर में वसा (फैट) की मात्रा भी बढ़ती है। अधिक समय तक भूखा रहने से एसीडिटी की समस्या भी पैदा हो जाती है। इस कारण ब्लडप्रेशर भी अनियत्रित हो जाता है और ब्लडशुगर के कम होने की आशकाएं बढ़ जाती हैं। इसी कारण व्रत के दौरान हर दो-तीन घटे पर फल, सलाद, जूस आदि लेते रहना चाहिए।
इन बातों पर न करें अमल
कुछ लोग नवरात्र में दिन भर कुछ न कुछ खाते रहते हैं। कई प्रकार के पैकेट फूड्स, फास्ट फूड्स, स्पेशल नवरात्र थाली और अनेक प्रकार के स्नैक्स बाजार में उपलब्ध होने के कारण नवरात्र में दिन भर खाने का चलन बढ़ गया है। इसलिए खान-पान पर सयम रखना जरूरी है, तभी उपवास का सही लाभ मिलता है। इसके अतिरिक्त नवरात्र के दौरान सतुलित भोजन करना अत्यत आवश्यक है।
ध्यान दें
-जो लोग किसी गभीर रोग से पीडि़त हैं, उन्हें उपवास नहीं करना चाहिए। जैसे हृदय, किडनी व सास से सबधित रोग और लिवर से सबधित बीमारी आदि।
-गर्भवती महिलाओं और बच्चे को स्तनपान कराने वाली माओं को भी उपवास नहीं रखना चाहिए।
डॉ.प्रताप चौहान आयुर्वेद चिकित्सक फरीदाबाद (हरियाणा)
प्राकृतिक चिकित्सा का नजरिया
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोग का एकमात्र कारण शरीर के किसी अंग में सचित विकार होते हैं। रोग का कारण उस सचित विकार की सड़ान (फर्मेन्टेशन) है। ऋतु या मौसम के परिवर्तन के दौरान फर्मेन्टेशन की यह प्रक्रिया तेज हो जाती है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने साल के दो ऋतु परिवर्तनों यानी दशहरे की नवरात्र और रामनवमी की नवरात्र में उपवास करने का नियम बताया ताकि शरीर के विकार दूर हो सकें। इसके अलावा ऋषियों ने नवरात्र के दौरान आत्म-बल बढ़ाने के लिए उपासना का भी विधान बताया।
सच तो यह है कि उपवास को सही ढंग से करने पर शरीर निरोग होता है और गलत ढंग से करने से और भी बीमार होता है। प्रस्तुत हैं इस सदर्भ में कुछ सार्थक सुझाव
-नवरात्र में उपवास के दौरान दिन में तीन या चार बार नीबू-शहद का गुनगुना शर्बत पीना लाभप्रद है।
-उपवास रखने वाले व्यक्तियों को कूटू के आटे की पूडिय़ा, पराठे और पकोड़े आदि तले हुए खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए।
-सब्जियों का रस या सूप और फलों का जूस या सूप लेना लाभप्रद है।
-दिन में कम से कम चार से पाच लीटर शुद्ध जल का सेवन आवश्यक है।
-उपवास के दौरान कठोर श्रम या कठोर व्यायाम कदापि न करें।
-कब्ज के रोगी उपवास के दौरान त्रिफला चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
-उपवास तोड़ते वक्त अत्यधिक सावधानी रखें। भारी भोजन से उपवास न तोड़ें।
-उपवास के दौरान वायु के रोगियों (पेट में गैस बनने की समस्या से ग्रस्त व्यक्ति) को कच्ची छोटी हरड़ (जंगहरड़) को सुबह-शाम कम से कम दो बार चूसना चाहिए।
-कफ के रोगियों को कच्ची अदरक चूसनी चाहिए।
-एसीडिटी के रोगियों को गरी का पानी या गरी चूसना चाहिए।

कैसा हो नवदंपती का बेडरूम


1. नवदंपती का बेडरूम सदा दक्षिण-पश्चिम दिशा स्थित नैऋत्य कोण में होना चाहिए। अगर ऐसा संभव न हो तो दक्षिण या पश्चिम दिशा में भी बेडरूम बनाया जा सकता है।
2. इस बात का ध्यान रखें कि नवदंपती का बेडरूम पूर्वोत्तर दिशा में न हो क्योंकि इस दिशा में जल तत्व की प्रमुखता रहती है और जल के समान शीतल गुणों से परिपूर्ण यह दिशा वंश वृद्धि के अनुकूल नहीं है।
3. नवदंपती के बेडरूम में कोई भी एक्वेरियम या फाउंटेन आदि न रखें।
4. इस बात का ध्यान रखें कि सोते समय सिरहाना कभी भी उत्तर दिशा की ओर न हो क्योंकि ऐसा होने पर समान चुंबकीय ध्रुव परस्पर विकर्षण रखते हैं। इससे सोते समय नींद में बाधा आ सकती है।
5. बेडरूम की दीवारों पर सदा मन को प्रफुल्लित करने वाले हलके, उज्ज्वल एवं इस प्रकार के रंगों का प्रयोग करे, जो पति-पत्नी दोनों के मन को भाते हों। यहां कभी भी फीके रंगों का इस्तेमाल न करे।
6. नवविवाहित दंपती के कमरे में काला, गहरा सलेटी व गहरा भूरा रंग नहीं होना चाहिए। बल्कि हलका गुलाबी, हलका पीला, नारंगी, लाल और बैगनी रंगों का प्रयोग नित नई स्फूर्ति प्रदान करने की क्षमता रखता है।
7. बेडरूम में सजावट के लिए उगता हुआ सूरज, बाग-बगीचे, खेलते हुए बच्चे या फूलों आदि के पोस्टर लगाने चाहिए।
8. नवदंपती के बेडरूम में हलके वुडवर्क व फर्नीचरों का प्रयोग करे।
9. पति-पत्नी का फोटोग्राफ कमरे के दक्षिण दिशा की दीवार पर लगाने से उनमें प्रेम, सद्भावना व एक-दूसरे के प्रति उत्तरदायित्व की भावना में वृद्धि होती है।
ृ10. बेड के सामने कभी कोई दर्पण न लगाएं, इससे दांपत्य जीवन में समस्याएं आ सकती है।
11. अगर बेडरूम में शीशा लगाना ही हो तो उसे हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की दीवार पर लगाना चाहिए। यदि किसी कारण से आपके कमरे की सेटिंग कुछ इस प्रकार से बनती हो, जिसमें ड्रेसिंग टेबल बेड के सामने पड़ता हो तो रात को सोने से पहले उस पर कोई चादर या पर्दा डाल दें।
12. यदि बेडरूम में किसी प्रकार के शो केस, कैबिनेट, कबर्ड आदि की आवश्यकता होती है तो स्टोरेज के लिए बनाई गई हर ऐसी चीज को कमरे की दक्षिण या पश्चिम दिशा की दीवार के साथ रखें।
13. युवा दंपती के कमरे की पूर्व या उत्तर दिशा में एक या इससे अधिक एवं बड़ी से बड़ी खिड़कियां होनी चाहिए। जिससे कि उन्हे पूर्वोत्तर की दिशाओं से भवन में प्रवेश करने वाली सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिल सके। इन खिड़कियों पर बहुत हलके रंग क्रीम, हलका पीला, हलका हरा या सफेद रंग के पर्दे प्रयोग करने चाहिए।
14. आजकल लगभग हर कमरे के साथ अटैच्ड टॉयलेट होता है। ऐसे में यह प्रयास करे कि टॉयलेट का दरवाजा हर समय बंद रहे व सीट या कमोड का ढक्कन हर समय ढंका रहे।
15. अपने बेड को कमरे में कुछ इस तरह व्यवस्थित करे कि जिससे सोते समय आपके पांवों के ठीक सामने या सिर के पीछे कोई दरवाजा न हो। पांवों के सामने या सिर के पीछे टॉयलेट का दरवाजा होने से दंपती के कमरे में नकारात्मक ऊर्जा तरंगों की वृद्धि होती है और इससे आत्मीयता में कमी आती है। साथ ही, संबंधों में कड़वाहट भी आ सकती है।
16. बेड की साइड टेबल पर यदि परस्पर प्रेम के प्रतीक फेंगशुई के लवबर्ड का जोड़ा या स्फटिक की बनी गोल आकृति एक जोड़े के रूप में रखी जाए तो पति-पत्नी में प्रेम का बंधन और भी अधिक मजबूत होगा। उनकी गृहस्थी सुख-समृद्धि, आपसी प्रेम व खुशहाली से परिपूर्ण रहेगी।




डेंगू के इलाज में मददगार होता है विटामिन ई


डेंगू के मरीजों को यदि उपचार के साथ शुरुआत से विटामिन ई दवा भी दी जाए तो उनमें न केवल प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ती हैं बल्कि रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या में हो रही कमी पर भी काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.एके वैश्य द्वारा किया गया यह शोध हाल में इंग्लैंड के इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल द अनॉल्स ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ है। डॉ. वैश्य बताते हैं कि विटामिन ई में एंटी ऑक्सीडेंट होता है। डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से कम होती है जिससे कई तरह की गंभीर समस्याएं हो जाती हैं। अकसर अंदरूनी रक्तस्राव होने से मरीज की मृत्यु तक हो जाती है। ऐसे में मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाना एकमात्र उपचार रह जाता है।
उन्होंने बताया कि केजीएमयू में डेंगू के 66 मरीजों को दो भाग में विभाजित कर अध्ययन किया गया। 33 मरीजों के एक समूह को उपचार के साथ 400 मिग्रा. की विटामिन ई की एक टैबलेट भी दी गई जबकि दूसरे समूह को केवल जरूरी दवाएं ही दी गई। जिन मरीजों को दवाओं के साथ विटामिन ई की टैबलेट भी दी गई, उनमें 64 फीसद मरीजो में एक हफ्ते में प्लेटलेट्स की संख्या एक लाख तक बढ़ गई। दूसरी तरफ जिन मरीजों को विटामिन ई नहीं दिया गया उनमें मात्र 39.28 फीसद मरीजों में ही प्लेटलेट्स की संख्या में वृद्धि देखी गई। ऐसे मरीज जिन्हें अन्य दवाओं के साथ विटामिन ई भी दिया गया था एक सप्ताह पश्चात उनमें से मात्र 6 फीसद मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ी। इसके विपरीत जिन मरीजों को विटामिन ई नहीं दिया गया उनमें से 15.15 फीसद मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाना पड़ा।
डॉ. वैश्य बताते हैं कि मरीजों के दोनों समूहों में शुरुआत में प्लेटलेट्स की संख्या लगभग बराबर थी लेकिन देखा गया जिन मरीजों को विटामिन ई दिया जा रहा था उनमें प्लेटलेट्स की संख्या काफी तेजी से बढ़ी। इस शोध अध्ययन से साफ है कि डेंगू मरीजों में यदि प्लेटलेट्स की संख्या कम हो रही हो तो विटामिन ई देने से न केवल इसकी गिरावट को कम किया जा सकता है बल्कि प्लेटलेट्स की संख्या में तेज वृद्धि भी होती है।



परिवार की ख़ुशहाली के लिए अपनाएं वास्तु


यदि हम वास्तुशास्त्र के नज़रिये से देखने का प्रयास करे तो हम यह पाएंगे कि वास्तु के सिद्धांतों को बनाने एवं समाज द्वारा उनके पालन के पीछे जितने भी उद्देश्य रहे है, उनमें एक अहम बात होती थी कि परिवार के बीच आपसी प्रेम, सद्भावना, अपनापन एवं सम्मान बना रहे।
आज हम चाहे कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं परंतु निश्चित रूप से एक बात तो कभी न कभी हर किसी के मन में आती होगी कि पुराने ज़माने में परिवार में ़ज्यादा लोग होते थे और आर्थिक साधन बहुत सीमित होते थे। फिर भी परिवार के सभी सदस्यों के बीच बेहद अपनत्व और स्नेह होता था। यदि हम वास्तुशास्त्र के नज़रिये से देखने का प्रयास करे तो हम यह पाएंगे कि वास्तु के सिद्धांतों को बनाने एवं समाज द्वारा उनके पालन के पीछे जितने भी उद्देश्य रहे है, उनमें एक अहम बात होती थी कि परिवार के बीच आपसी प्रेम, सद्भावना, अपनापन एवं सम्मान बना रहे। पहले लोग मकान बनवाते समय वास्तु के सिद्धांतों का ध्यान ज़रूर रखते थे। हालांकि आज के संदर्भ में उन सभी प्राचीन सिद्धांतों को व्यवहार में लाना पूरी तरह संभव नहीं, फिर भी उनमें से ़ज्यादातर बातें तो आज भी प्रासंगिक है। अत: जहां तक संभव हो आप परिवार की खुशहाली के लिए वास्तु सिद्धांतों का पालन करें।
1. यदि आपका भवन केवल एक ही तल वाला हो या फिर अगर किसी मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में आपका फ़्लैट हो तो उसके पश्चिमी या फिर दक्षिणी भाग में बुज़ुर्गो एवं हमारे वरिष्ठतम सदस्यों जैसे दादा-दादी या फिर माता-पिता का कमरा होना चाहिए।
2. इसके विपरीत बच्चों के रहने के लिए बाकी सभी दिशाएं उपयुक्त है।
3. यह ध्यान रखें कि परिवार के सभी सदस्यों के बेडरूम में प्राकृतिक प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे स्थान केवल तभी मिल सकते है, जब प्रत्येक कमरा आगे-पीछे या खुले स्थान से मिलता हो। यदि प्रकाश की ़ज्यादा व्यवस्था न हो पाए तो खिड़की के साथ रोशनदान ज़रूर बनाएं।
4. प्राकृतिक प्रकाश से सोचने का तरीका सकारात्मक बनता है व किसी के प्रति वैमनस्य की भावना नहीं पनपती।
5. पूजा-पाठ, जप, कथा, प्रवचन एवं ऐसे ही अन्य धार्मिक कृत्यों के लिए यों तो संपूर्ण पूर्व दिशा उत्तम है, फिर भी ऐसे सभी शुद्ध कार्यो के लिए पूर्वोत्तर दिशा सर्वोत्तम है।
6. परिवार के सभी बड़े सदस्यों को चाहिए कि वे सभी बच्चों व अन्य सदस्यों में ऐसी परंपरा विकसित करे कि चाहे थोड़े ही क्षणों के लिए सही, परंतु सभी लोग भगवान के समक्ष नतमस्तक होना सीखें। इससे सभी के मन को शांति मिलती है और अहंकार की भावना से ऊपर उठकर सभी लोग परस्पर एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना रखते है।
7. सुबह बिस्तर से उठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बड़ों के चरण स्पर्श करना एक ऐसी शक्ति रखता है कि इससे परिवार में एकता की भावना मजबूत होती है।
8. इसी प्रकार रात को सोने से पहले बड़ों का आशीर्वाद लेने से आयु, विद्या एवं वंश बढ़ता है। परंतु ऐसे संस्कारों को यदि हम अपने परिवार के संदर्भ में पूर्णत: चरितार्थ होते देखना चाहते है तो सबसे पहले बड़े सदस्यों को भी इसकी शुरुआत करनी होगी। तभी यह परंपरा हम भावी पीढ़ी को हस्तांतरित कर सकेंगे।
9. यदि आपका मकान एक से अधिक तल वाला है तो आयु में बड़े सदस्यों को ऊपर के तल पर एवं कम उम्र के सदस्यों को नीचे वाले तल पर रहना चाहिए। अर्थात बड़ों के पांव के नीचे के भाग में छोटे सदस्य रहें तो उत्तम है। अगर परिवार के बुज़ुर्ग सीढिय़ां चढऩे-उतरने में असमर्थ हों तो उन्हे नीचे वाले तल में में रहना चाहिए।
10. पूरे परिवार की एकजुटता के लिए यह भी ध्यान रखें कि आपका डाइनिंग रूम घर के पूर्व, उत्तर या दक्षिण-पूर्व दिशा में हो।
11. इसके साथ ही यह आवश्यक है कि परिवार के सभी सदस्य 24 घंटे में से किसी एक समय का भोजन एकसाथ बैठकर करे। इस समय बुज़ुर्ग व्यक्तियों को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
12. भोजन करते समय परिवार के सभी सदस्य टीवी आदि न देख कर परस्पर बातें करे व अपनी दिनचर्या, उपलब्धियों व ऐसे ही अन्य क्रियाकलाप के विषय में सामान्य या फिर प्रसन्नतापूर्ण बातों की चर्चा करे। ध्यान रहे कि कोई भी अप्रिय विषय न उठाया जाए। इस तरह वास्तु सिद्धांतों को अपनाना वास्तव में परिवार को एक सूत्र में पिरोए रखने में सहयोगी होगा।





आजकल खान-पान का रखें खास ध्यान


यह त्योहारों का मौसम है। नवरात्र मना रहे अधिकतर लोग उपवास कर रहे हैं, लेकिन यह जानना बहुत जरूरी है कि सेहत को ध्यान में रखते हुए उपवास कौन करे और कौन नहीं।
मौसम त्योहारों का है। आप नवरात्र की नियमित पूजा कर रहे होंगे और रोज व्रत भी रख रहे होंगे। उपवास करना वैसे तो तन और मन दोनों के लिए फायदेमंद होता है, पर कुछ स्थितियों में इसे न रखा जाए तो बेहतर।
आपको उपवास नहीं करना चाहिए
बालक, वृद्ध, निर्बल, रोगी, दूध पिलाने वाली माताओं और गर्भवती महिलाओं को उपवास बिल्कुल नहीं करना चाहिए। बहुत से माता-पिता बच्चों को उपवास करने के लिए अनेक उदाहरण देते हैं और व्रत रखवाते हैं। कोई किसी की देखा-देखी व्रत करने को तैयार हो जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए।
उपवास के पहले यह जरूर सोचें
यह किसी की बराबरी करने का नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और आस्था का मामला है, इसलिए पहले अपने शरीर की शक्ति का आकलन करें। फिर उपवास करने की सोचें। कमजोर शरीर वाली महिला अथवा पुरुष व्रत रखने की न सोचें। ऐसे लोग अगर व्रत रखते हैं तो संभव है उनके रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में कमी आ जाए, जिससे शरीर में और कमजोरी या थकान आ जाए। इसलिए सेहत का खयाल पहले रखें। यदि आप स्वस्थ हैं, निरोग हैं तो ही धर्म का भली-भांति पालन कर पाएंगे।
हमारे उपवास बहुत होते हैं। सातों वारों (रविवार से सोमवार तक) और प्रतिपदा से अमावस्या, पूर्णिमा तक सभी त्योहार और उपवास ही हैं। इनमें जन्माष्टमी, चतुर्थी, शिवरात्रि, नवरात्र सभी शामिल हैं। इनमें से किसी में एक समय का भोजन लेने की तो किसी में केवल फल आदि से व्रत खोलने की परम्परा है। ऐसे में शरीर की क्षमता को देखना बहुत जरूरी है कि वह उस त्योहार को करने योग्य है या नहीं।
ऐसा न करें
व्रत करने वालों में बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो पूरे दिन उपवास रखते हैं। शाम को व्रत खोलने के समय तला-भुना या गरिष्ठ भोजन इतना अधिक कर लेते हैं, मानो दोनों समय के भोजन की पूर्ति करनी हो। यह खाना खाते ही नींद काफी तेज आती है और यह सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है।
शांतिपूर्वक सात्विक भोजन करें
ध्यान रखें, व्रत में केवल सात्विक भोजन शान्ति से बैठ कर पालथी मार कर इष्टदेव को अर्पण कर किया जाना चाहिए।
गप-शप करते हुए किसी के साथ एक थाली में तथा झूठा भोजन करना वजिर्त है। उपवास के दौरान ऐसा करना उचित नहीं।
सावधानी बरतें
उपवास खोलते समय अपने इष्ट देव का ध्यान करें और जो प्राप्त भोजन है, उसे अर्पण कर एक ग्रास अलग निकाल कर भोजन करें।
भोजन धीरे-धीरे शान्त चित्त से करें। उतना ही खाएं कि भूखे भी न रहें और पेट भी भारी न हो।





कहीं जीना मुहाल न कर दे ऑस्टियोपोरोसिस


यह बीमारी कभी 45 साल की उम्र के बाद परेशान करती थी, लेकिन अब युवाओं को भी अपनी चपेट में लेने लगी है। कैल्शियम और विटामिन डी की कमी से होने वाली इस बीमारी में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
हड्डियों की कमजोरी आज एक आम समस्या बन गई है। यह सही है कि ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है और उम्र बढऩे के साथ इस बीमारी की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली ने हमारी दिनचर्या और खानपान की आदतों में ऐसा बदलाव किया है कि युवा भी तेजी से इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
क्या है ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों की एक बीमारी है। इसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और आसानी से उनमें फ्रैक्चर आ जाता है। इसका सबसे प्रमुख कारण बोन मिनरल डेंसिटी कम हो जाना है। उम्र बढऩे के साथ हड्डियों से कैल्शियम का क्षरण होने लगता है, जिससे हड्डियां कमजोर होकर आसानी से टूटने लगती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस दो प्रकार का होता है- टाइप 1 और टाइप 2। टाइप 1 महिलाओं में ज्यादा आम है, जो खासकर मेनोपॉज के बाद होता है। टाइप 2 ऑस्टियोपोरोसिस को सेनाइल ऑस्टियोपोरोसिस भी कहते हैं। यह आमतौर पर 75 साल की उम्र के बाद होता है और महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से अपना शिकार बनाता है। इसका प्रभाव सबसे ज्यादा नितंब, रीढ़ की हड्डी और कलाइयों की हड्डियों पर होता है।
बोन डेंसिटी टेस्ट
बोन डेंसिटी टेस्ट में एक विशेष प्रकार के एक्स-रे, जिसे डीएक्सए कहते हैं, के द्वारा स्पाइन, कूल्हों और कलाइयों की स्क्रीनिंग की जाती है। इन भागों की हड्डियों का घनत्व माप कर इनकी शक्ति का पता लगाया जाता है।
इसके कारण
ऑस्टियोपोरोसिस का मुख्य कारण महिलाओं में एस्ट्रोजन और पुरुषों में एंड्रोजन हार्मोनों की कमी होता है।
शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी।
थायराइड की समस्या।
बढ़ती उम्र और अत्यधिक भार।
दवाओं का अत्यधिक सेवन।
शारीरिक सक्रियता में कमी या अधिक दिनों तक बेड रेस्ट करना।
धूम्रपान और शराब का अधिक सेवन।
ऐसे पहचानें
यह बीमारी मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डियों, पसलियों, कूल्हों और कलाइयों में होती है।
इसमें हड्डियों में सिकुडऩ और अस्थिमज्जा में कमी आ जाती है। बोन मास और बोन टिशु का भी क्षरण हो जाता है।
प्रारम्भ में तो इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते, बाद में हड्डियों या मांसपेशियों में दर्द, विशेषकर कमर के निचले हिस्से या गर्दन में दर्द होता है।
हड्डियों का दर्द सर्दियों में अचानक बढ़ जाता है और कई बार लगातार बना रहता है।
शारीरिक सक्रियता में कमी आ जाती है।
शरीर के भार में कमी आ जाती है या कभी-कभी लंबाई भी कम हो जाती है।
कैल्शियम और विटामिन डी है जरूरी
जीवनशैली में बदलाव लाएं: पोषक भोजन खाएं, जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो। इनमें हरी पत्तेदार सब्जियां, डेयरी प्रोडक्ट आदि प्रमुख हैं।
कम से कम 1,500 मिलीग्राम कैल्शियम का प्रतिदिन सेवन करें।
शरीर का भार औसत रखें।
प्रतिदिन एक मील पैदल चलने की कोशिश करें। पैदल चलना हड्डियों की वृद्धि में सहायक होता है।
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
सप्लीमेंट्स से न घबराएं
ऑस्टियोपोरोसिस से पीडि़त लोगों को कैल्शियम और विटामिन डी, विशेषकर विटामिन डी3 और बायोफॉस्फोनेट को सप्लीमेंट के रूप में लेने की सलाह दी जाती है। विटामिन के भी हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है, इसलिए कई लोगों को सप्लीमेंट भी दिया जाता है। पहले एस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए एक प्रचलित उपचार था, पर आजकल इसका प्रयोग काफी कम हो गया है। इसके अलावा सीरम थेरेपी भी इसके उपचार के लिए इस्तेमाल की जाती है।





तनाव से रखे दूर दो पल की खुशी


सेहतमंद जीवन के लिए खुश रहना जरूरी है, लेकिन तनाव भरे शहरी जीवन में हम खुश रहना भी भूल जाते हैं। जब छोटी-छोटी बातें आपके तनाव को छूमंतर कर सकती हैं, तरोताजा कर सकती हैं तो क्यों न खुशी पाने के उपाय खोजें।
अपने अंदर के बच्चे को जगाएं
कहते हैं कि हम कितने भी बड़े हो जाएं, लेकिन हमारे अंदर हमारा बचपन हमेशा सुरक्षित रहता है। वह बचपन, जिसमें हमने ढेर सारी मस्ती की है, तरह-तरह की ऐसी शरारतें की हैं, जिन्हें याद करके हमें आज भी हंसी आती है। तो आज जब आप काम के दबाव में तनाव में आ जाते हैं, उन पलों को याद क्यों नहीं करते? ऐसे पलों में अपने अंदर के उस बच्चे को जगाइए और देखिए कि कैसे आपके चेहरे पर खुद ब खुद मुस्कान की लंबी-लंबी लकीरें उभरने लगती हैं। मुस्कान की ये लकीरें न केवल आपको वर्तमान के तनाव से मुक्त कर देंगी, बल्कि आपके मन को बहुत हल्का भी कर देंगी और आप तरोताजा महसूस करने लगेंगे।
दोस्त बनाएं
हम बचपन से सुनते आए हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। हमें कुछ ऐसे लोग चाहिए होते हैं, जिन पर हम विश्वास करें और उनके साथ अपनी हर तरह की बातें शेयर कर सकें। डिप्रेशन का कारण एकांत भी माना जाता है। तो आप भी क्यों नहीं ऐसे दोस्त बनाते, जिनके साथ आप अपने सुख-दुख बांट सकें। अगर आपको दोस्तों के साथ समय बिताना ज्यादा अच्छा नहीं लगता तो आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी दोस्त बना सकते हैं।
व्यायाम करें
जब आप पर काम का बोझ ज्यादा हो तो थोड़ा-सा व्यायाम जरूर करें। डॉक्टर मानते हैं कि व्यायाम आपके दिमाग में एंडोर्फिन्स और अनन्डामाइड नामक कैमिकल्स भेजता है, जो आपके मूड को फ्रैश करने और आपको ताजा महसूस करने में मदद करते हैं। माना जाता है कि व्यायाम आपका आत्मविश्वास भी बढ़ाता है और आत्मसम्मान बढ़ाने में भी सहयोग करता है।
कॉमेडी फिल्म देखें
आज हमारे ऊपर काम का बोझ कुछ ज्यादा ही रहता है। यही वजह है कि हम छोटी-से-छोटी बात पर भी एकदम डिप्रेशन में चले जाते हैं। लेकिन एक शोध में कहा गया है कि हंसना हमारी केलोरीज को खत्म करने और दिल को स्वस्थ रखने में हमारी मदद करता है। हमें हंसने का मौका देने में हास्य फिल्मों के महत्व को हम बिल्कुल भी नकार नहीं सकते। अगली बार जब भी आप डिप्रेस्ड महसूस कर रहे हों, कॉमेडी फिल्म देखें।
अच्छा खाएं
एक पुरानी कहावत है कि अच्छा खाएं, स्वस्थ रहें। लेकिन आज के समय में तो हम जंक फूड्स पर निर्भर होते जा रहे हैं। इस कारण हम अक्सर बीमार भी होते रहते हैं। तो जरा सोचिए कि अगर स्वस्थ ही नहीं रहेंगे तो खुशी कहां से आएगी? इसलिए पौष्टिक खाना खाएं और जंक से परहेज करें। शोध में यह बात सामने आई है कि आपकी डाइट में ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्र कम हो जाए तो भी डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं और आपके अंदर नकारात्मक सोच बढऩे लगती है। दूसरी तरफ फिनलैंड के कुओपियो विश्वविद्यालय के एक शोध में यह पाया गया है कि विटामिन बी की कमी भी आपको डिप्रेशन का शिकार बनाती है, इसलिए हमेशा अच्छा खाना खाने की ही कोशिश करें।
परोपकार भावना रखें
आज हमारे काम पर हमारा स्वार्थ हावी होता जा रहा है। इस कारण हम जो काम करते हैं, उसके बदले में कुछ उम्मीद करते हैं। यह उम्मीद पूरी नहीं होती है तो हम डिप्रेशन की स्थिति में आ जाते हैं। हम उस कहावत को भी भूल जाते हैं कि नेकी कर, दरिया में डाल। तो आप क्यों न परोपकार की भावना से भी कुछ काम करते! खुशी चाहिए तो परोपकार की भावना से भी काम करें।
अच्छी नींद लें, आराम करें
काम के दबाव के चलते हम ठीक से आराम भी नहीं कर पाते। इससे हमें नींद न आने की शिकायत रहने लगी है। ऐसे में आप कुछ समय बाद चिड़चिड़े होने लगेंगे और तनाव बढऩे लगेगा। इससे बचने के लिए आप अपने काम का समय तय करें और सही समय पर पूरी नींद लें।
सुबह सैर है जरूरी
शोध कहते हैं कि विटामिन डी की कमी से मूड खराब हो सकता है और हम डिप्रेशन में आ सकते हैं। विटामिन डी खाने में तो पाया ही जाता है, सुबह की धूप में यह सबसे अधिक मिलता है। अपने शरीर में विटामिन डी की मात्र ठीक रखने के लिए सुबह की धूप में 10 से 15 मिनट टहलने का नियम बनाएं।
अपने शौक पूरे करें 
कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जब आप खाली बैठे होते हैं तो आपके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आते हैं। उनके बारे में सोच कर आपका मूड खराब हो जाता है और आप डिप्रेशन के शिकार होते हैं। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप कोई हॉबी क्लास ज्वॉइन कर लें। ऐसा करने से आप गलत खयालों से भी बचे रहेंगे और आपकी दबी हुई प्रतिभा भी उभरेगी।
आगे की सोचें
अगर आप डिप्रेस्ड महसूस कर रहे हैं तो अपने किसी भी सपने को साकार करने के लिए आगे की योजना बना लें। ऐसा करने से आपका ध्यान अपने आप उस लक्ष्य को साकार करने की तरफ चला जाएगा और उस दिशा में कदम बढ़ाते हुए आप खुशी महसूस करेंगे। सहयोग करने वाले व्यक्ति के प्रति मन में शक रखना कि वह किसी स्वार्थ की वजह से आपकी सहायता कर रहा है, डिप्रेशन का कारण बन सकता है। अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखें।





दर्दों की दवा फिजियोथेरेपी


कभी कमर में दर्द तो कभी पीठ में, कभी कंधे में तो कभी गर्दन में। राजधानी की मशीनी होती जिंदगी में ये तकलीफें आम हैं। कई बार इनकी वजह कोई अंदरूनी चोट भी होती है, लेकिन इनसे आराम और मुक्ति के लिए आजकल फिजियोथेरेपी काफी लोकप्रिय हो रही है। दवा खाने की टेंशन और साइड इफेक्ट से दूर यह थेरेपी लगभग हर बीमारी में कारगर साबित होती है।
आम तौर पर लोग यही सोचते हैं कि फिजियोथेरेपी सिर्फ खिलाडिय़ों के लिए होती है, लेकिन सच यह है कि बड़े काम की है यह थेरेपी और इस थेरेपी का लाभ कोई भी उठा सकता है। जोड़ों और हड्डियों के साथ-साथ दिल और दिमाग को भी स्वस्थ करती है फिजियोथेरेपी।
रोजाना चलने और थोड़ा बहुत शारीरिक काम करने से पूरी तरह शरीर की एक्सरसाइज नहीं हो पाती। ऐसे में मांसपेशियों का सही संतुलन नहीं बन पाता। आज हमारी जीवनशैली कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल जैसे लग्जरी और आरामप्रद गैजेट्स में सिमट कर रह गई है। इस कारण एक ही मुद्रा में कई घंटे तक बैठे रहना कई शारीरिक और मानसिक बीमारियों का रूप ले रहा है। पीठ दर्द, जोड़ों का दर्द, गर्दन का दर्द, बांहों और कंधों में दर्द आमतौर पर लगातार एक ही स्थिति में बैठे रहने के कारण पैदा होता है। लोगों में यह गलतफहमी है कि जिम जाकर व्यायाम करना हमेशा फायदेमंद होता है। आपके शरीर के लिए कौन-सा व्यायाम उपयुक्त है, यह भी आपके ही शरीर पर निर्भर करता है, इसलिए रोजाना किया जाने वाला हल्का-फुल्का व्यायाम ही आपके शरीर के लिए बेहतर साबित होता है। फिजियोथेरेपिस्ट की मानें तो अपने शरीर के लिए व्यायाम चुनने से पहले डॉक्टर से राय जरूर लेनी चाहिए। यदि आप किसी भी रोग या दर्द से पीडि़त हैं तो बिना फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह के कोई भी व्यायाम करना आपके रोग को और बढ़ा सकता है। इसलिए शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाले दर्द और मांसपेशियों का उचित संतुलन बनाए रखने के लिए फिजियोथेरेपी की मदद लें। इस पद्घति में सिकाई और व्यायाम के माध्यम से आप अपने दर्द से छुटकारा पा सकते हैं।
क्या है फिजियोथेरेपी
दर्द से छुटकारा पाने के लिए दवा लेना ही काफी नहीं होता। इसके अलावा भी कई ऐसी थेरेपी हैं, जो बिना दवा के ही आपको दर्द से मुक्ति दिला सकती हैं। फिजियोथेरेपी ऐसी ही एक थेरेपी है। फिजियोथेरेपी को फिजिक्स ट्रीटमेंट भी कहते हैं। यह मेडिकल साइंस की ही एक शाखा है। इसमें इलाज का एक अलग तरीका होता है, जिसमें एक्सरसाइज, हाथों की कसरत, पेन रिलीफ मूवमेंट द्वारा दर्द को दूर किया जाता है। इस थेरेपी का उद्देश्य रोग के कारणों को जान कर उस रोग से मरीज को मुक्त करना है। यह थेरेपी एक तरीके से शरीर को तरोताजा करने का काम करती है।
कई तरह की है यह थेरेपी
रॉकलैंड हॉस्पिटल के सीनियर फिजियोथेरेपिस्ट डॉ़ संजय बताते हैं कि फिजियोथेरेपी में कुछ खास मूवमेंट्स से इलाज किया जाता है। फिजियोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाले सभी व्यायाम आसान होते हैं और इनका चुनाव मरीज की स्थिति और उम्र को देखकर किया जाता है।
एक्टिव मूवमेंट
यह ट्रीटमेंट उन मरीजों के लिए होता है, जो एक्सरसाइज करने में सक्षम होते हैं। ऐसे मरीज के शरीर की अकडऩ को दूर करने और मसल्स की ताकत वापस लाने के लिए हल्के-फुल्के व्यायाम का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ ब्रीदिंग एक्सरसाइज और डिवाइस के जरिए फेफड़ों की क्षमता को बढ़ा कर फेफड़ों से संबंधित बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा गायनी समस्याओं जैसे कंसीव समस्या, मां बनने के बाद और कई अन्य समस्याओं में भी यह उपयोगी साबित होती है।
पैसिव मूवमेंट
कुछ मरीजों को ऑपरेशन के बाद बेड से उठने में परेशानी होती है। ऐसी कई अन्य बीमारियां हैं, जिनमें मरीज बिस्तर पर पड़े रहना पसंद करते हैं। ऐसे मरीज का इलाज पैसिव मूवमेंट से किया जाता है। शरीर में आई स्टिफनेस को गर्मी देकर व्यायाम करवाया जाता है, जिससे शरीर की मसल्स की स्टिफनेस कम हो जाती है और शरीर में फिर से मूवमेंट शुरू हो जाती है।
कॉन्टिन्यूअस पैसिव मूवमेंट
इसमें कई तरह से हीट के जरिये मरीज का उपचार किया जाता है। इसमें कई बार हाथों के प्रयोग से व्यायाम करवाया जाता है तो कई बार आधुनिक तरीकों से मशीन का इस्तेमाल करके इलाज किया जाता है। इसके अलावा फिजियोथेरेपी में हॉट पैक, आइस पैक और हाइड्रो थेरेपी भी शामिल होती है। जैसी तकलीफ वैसा इलाज, लेकिन बिल्कुल अचूक।
कई बीमारियों में फायदेमंद 
किस बीमारी में किस तरह की थेरेपी देनी है, यह मरीज की स्थिति, उसकी तकलीफ, उसकी जीवनशैली आदि को ध्यान में रख कर तय किया जाता है। फिजियोथेरेपी का इस्तेमाल आमतौर पर हड्डियों और जोड़ों की समस्या, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, लकवा, सर्वाईकल, स्पॉन्डिलाइटिस, कमर दर्द, स्लिप डिस्क, कार्डियो समस्या, स्पोर्ट्स इंजरी, न्यूरो से संबंधित समस्या, वजन नियंत्रण और महिलाओं की समस्या में किया जाता है। फिजियोथेरेपी के तरीके अलग-अलग इस्तेमाल होते हैं, लेकिन इलाज अचूक है।
खुद उठाएं इसका लाभ
लगभग हर बीमारी में फिजियोथेरेपी का इस्तेमाल होने लगा है। आमतौर पर डॉक्टर ही मरीजों को फिजियोथेरेपी के लिए भेजते हैं। लेकिन अब बहुत से लोग जागरूक हैं और खुद ही इस थेरेपी का लाभ उठाने लगे हैं। फिजियोथेरपी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल महिलाओं और बुजुर्गों द्वारा किया जाता है। दिल्ली में लगभग 70-80 प्रतिशत बुजुर्ग इस पद्घति का लाभ उठाते हैं। वयस्कों में इस थेरेपी का इस्तेमाल करने वाले लगभग 40-50 प्रतिशत लोग हैं, जिन्हें एक्सीडेंट आदि के बाद इसकी सलाह दी जाती है। बच्चों में जन्मजात समस्याएं जैसे पोलियो, दिमागी या शारीरिक विकास कम होने की स्थिति में इस थेरेपी का उपयोग किया जाता है और 10-20 प्रतिशत बच्चे फिजियोथेरेपी लेते हैं। महिलाओं में आमतौर पर 45 साल के बाद कई हारमोनल बदलाव आते हैं, जिनसे उनमें हारमोन असंतुलन, कैल्शियम की कमी, जोड़ों की समस्याएं आदि उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में महिलाओं को दवाओं से ज्यादा फिजियोथेरपी की आवश्यकता होती है।





डांडिया लुक्स थोड़ा मॉड हो जाएं


डांडिया नाइट में हर साल चनिया-चोली पहनकर बोर हो गई हैं, तो इस बार इंडो-वेस्टर्न ट्राई करें। बेशक यह अंदाज आपको डिफरेंट लुक्स देने के साथ डांस में कंफर्ट भी देगा। डांडिया नाइट में अब डांडिया और गरबा ही नहीं, बल्कि अब बॉलिवुड डांस भी बहुत पॉप्युलर हो रहा है। अगर आप भी डांडिया नाइट में मस्ती करने जा रही हैं और उसके लिए चनिया चोली और ट्रडिशनल जूलरी सर्च कर रही हैं, तो प्लीज इस बार थोड़ा ब्रेक लें। आखिर हर बार आपको वही पुराना लुक कैरी करने की जरूरत नहीं है, बल्कि कुछ नया आजमाना चाहिए। तो इस बार कैरी करें इंडो-वेस्टर्न लुक।
ऐसा हो अंदाज
आपने चनिया-चोली तो कई बार पहनी होगी, लेकिन इस बार डांडिया नाइट पर डिफरेंट दिखने के लिए कुछ इंडो-वेस्टर्न ड्रेस डिजाइन पहनें। फैशन डिजाइनर लीना सिंह कहती हैं, अब चनिया चोली के स्टाइल में हैरम पैंट्स और साड़ी खूब आ रही हैं। अगर आप मस्ती के मूड में हैं और बिल्कुल फ्री स्टाइल चाहती हैं, तो बंधेज हैरम पैंट्स और साड़ी पहन सकती हैं। इसके अलावा, लॉन्ग फिटेड स्कर्ट, बंधेज और लहरिया रेडीमेड साड़ी व बंधेज काफ्तान्स भी कैरी कर सकती हैं।
मॉडर्न जूलरी
आप हैवी जूलरी पहनने का मन बना रही हैं, तो आपको बता दें कि डांडिया नाइट में हैवी मांग टीका व नेकलेस पहनकर डांस करना बेहद मुश्किल होता है। वहीं, इनके गिरने का भी डर रहता है। ऐसे में जरूरी है कि आप लाइट जूलरी पहनें। हां, इनमें स्टाइल ट्राई कर सकती हैं। बीड्स और थ्रेड से बने मांग टीका या फिर थ्रेड व मिरर से बनी वेस्ट चेन पहन सकती हैं। अगर आप साड़ी पहन रही हैं, तो उस पर मेटल की वेस्ट चेन कैरी करें। बाकी लुक लाइट ही रखें। वहीं हैवी एंकलेट्स की जगह आप एंकलेट्स ब्रेसलेट ट्राई कर सकती हैं। यह कलरफुल ब्रेसलेट हाथ और पैर, दोनों में पहन सकती हैं।
डांडिया टैटू
डांडिया नाइट में मेकअप करने का मूड नहीं है, तो आप टैटू जैसे ऑप्शंस पर जा सकती हैं। दरअसल, लड़कियां डांडिया नाइट पर कलर्ड टैटू बनवा रही हैं। मेकअप आर्टिस्ट मंजू रावत कहती हैं कि अगर बिंदास और मस्त होकर डांडिया नाइट इंजॉय करना चाहती हैं, तो जाहिर है कि आपका लुक भी वैसा ही होना चाहिए। आप बैक या फिर हाथ पर टैटू बनवा सकती हैं। डांडिया नाइट को देखते हुए आप डांडिया या अपना नाम या फिर कोई भी यूनीक पिक्चर बनवा सकती हैं। अगर मेकअप करना लाइट हैं, तो नाइट में शिमर मेकअप बहुत अच्छा लगता है। मेकअप आर्टिस्ट भारती तनेजा के मुताबिक, शिमर व ग्लॉसी मेकअप आप करवा सकती हैं। इसमें आंखों पर वाइट शैडो यूज करें। यह ना केवल आपको मॉड लुक देगा, बल्कि इससे आपकी आंखें डिफरेंट भी लगेंगी। लिप ग्लॉस या फिर शिमर लिपस्टिक लगा सकती हैं।
फुटवियर में सबकुछ
चूंकि डांडिया नाइट में आप खूब डांस करेंगी, तो ऐसे में आप कंफटेर्बल फुटवियर्स ही पहने। अगर आपको लगता है कि मोजरी पहनकर आप डांस करने में कंफटेर्बल डांस नहीं कर सकती हैं, तो आप कैनवस से लेकर स्नीकर्स तक पहन सकती हैं।




अब खून में नहीं बचेगा कोई इन्फेक्शन


दिल्ली सरकार जनवरी 2013 से राजधानी के सरकारी ब्लड बैंकों में ब्लड का सबसे आधुनिक टेस्ट न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (एनएटी) शुरू करने जा रही है। माना जा रहा है कि दिल्ली देश का पहला ऐसा राज्य होगा जो सरकारी ब्लड बैंकों में यह टेस्ट शुरू करेगा। देश के कुछ जाने-माने अस्पतालों में ही इस टेस्ट की सुविधा है। अभी केवल ब्लड डोनर का ही टेस्ट किया जाता है। लिहाजा कई बार ब्लड में आए इन्फेक्शन का पता नहीं चल पाता।
लिहाजा डोनर के ब्लड देने के बाद ब्लड बैंक में जमा खून के सैंपल लेकर उनका नैट टेस्ट किया जाएगा। इस टेस्ट में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी तीन वायरसों का टेस्ट होगा। ये टेस्ट करने के बाद ही ब्लड बैंक में खून रखा जाएगा। इस टेस्ट में ब्लड के अंदर मौजूद किसी भी इन्फेक्शन का पता लगाया जा सकेगा।
दिल्ली के हेल्थ मिनिस्टर डॉ. अशोक कुमार वालिया के मुताबिक इस टेस्ट का काम फाइनल स्टेज में है। इस तरह की तैयारियां की जा रही हैं कि जनवरी, 2013 तक राजधानी के 10 सरकारी ब्लड बैंकों में इस टेस्ट को पूरी तरह से लागू कर दिया जाए। बाद में सभी ब्लड बैंकों में यह टेस्ट शुरू करने की प्लानिंग है। राजधानी में इस समय 53 ब्लड बैंक हैं। इनमें से 39 प्राइवेट व 14 सरकारी ब्लड बैंक हैं।
राजधानी में सालाना 4.5 लाख यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है। इन सभी ब्लड बैंकों को एक आधुनिक लैब से आईटी के जरिए जोड़ा जाएगा। लैब लोक नायक जय प्रकाश अस्पताल में बनाई जाएगी। इस लैब में हर साल 1 लाख 25 हजार के करीब ब्लड बैंकों से आए सैंपलों की जांच की जाएगी। चूंकि लैब सीधे ब्लड बैंकों से वेब के जरिए जुड़ी होगी लिहाजा टेस्ट की रिपोर्ट तत्काल ब्लड बैंकों को ऑनलाइन दी जाएगी। दिल्ली स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल के डायरेक्टर डॉ. भरत सिंह के मुताबिक अभी राजधानी में एलिजा (ईएलआईएसए) टेस्ट होता है।
इसमें भी एचआईवी और हेपेटाइटिस बी और सी का टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए ऐंटि बॉडी का पता लगाया जाता है। इनका पता लगाने में 20 से 30 दिन का समय लग जाता है, लेकिन नैट टेस्ट में 5 दिन के अंदर ही इन्फेक्शन का पता लगाया जा सकता है।
हेल्थ डिपार्टमेंट के मुताबिक लैब को ऑपरेट करने का काम एक प्राइवेट एजेंसी को दिया जाएगा। प्राइवेट एजेंसी का कांट्रेक्ट हर 5 साल में बदला जाएगा। इसी साल नवंबर के महीने से इसके लिए टेंडरिंग का काम शुरू हो जाएगा। दिसंबर तक सब कुछ फाइनल करके जनवरी, 2013 तक ब्लड की नैट टेस्टिंग शुरू हो जाएगी।