Monday, April 29, 2013

ऐसे करें सिविल सर्विसेज की तैयारी



यूपीएसएसी के सिविल सर्विसेज एग्जाम का प्रिलिम्स 26 मई को होगा। पिछले कुछ सालों के दौरान इस एग्जाम में तमाम बदलाव हुए हैं। इस साल से मेन्स में भी कुछ नए नियम लागू कर दिए गए हैं। इन तमाम बदलावों के बीच कैसे करें इस प्रतिष्ठित एग्जाम की तैयारी जाने :-

यूपीएससी द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा देश की सबसे प्रमुख और सम्मानित परीक्षा है। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा निर्देशित नियमों के मुताबिक अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं के ग्रुप क और ग्रुप ख पदों पर भर्ती के लिए यूपीएससी हर साल सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करता है। आयोग हर साल फरवरी, मार्च में इसके लिए विज्ञापन निकालता है। मई के तीसरे या चौथे रविवार को प्री, नवंबर में मेन्स और अगले साल मार्च-अप्रैल में इंटरव्यू का आयोजन किया जाता है। फाइनल रिजल्ट मई के पहले या दूसरे हफ्ते तक घोषित कर दिया जाता है। जहां तक कुल वेकेंसी का सवाल है तो यह अमूमन 900 से 1100 के बीच होती हैं। इस साल सिविल सेवा प्री एग्जाम का आयोजन 26 मई को होना है। मेन्स एग्जाम 8 नवंबर से होंगे।

बदलाव की बात
- यूपीएससी ने इस साल यानी 2013 से सिविल सेवा परीक्षा में सुधार के लिए परीक्षा के तरीके में कुछ बदलाव किया है। इस नए फॉर्मैट में अब जनरल स्टडीज पर ज्यादा जोर दिया जाएगा।
- मेन्स एग्जाम में पहली बार जनरल स्टडीज के सिलेबस में नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और ऐप्टिट्यूड को शामिल किया गया है। डीओपीटी ने तमाम पेपर्स के अधिकतम अंकों के मामले में भी अच्छा खासा बदलाव किया है।
- सिविल सेवा मेन्स एग्जाम 2013 से जनरल स्टडीज के 250-250 अंकों के चार अनिवार्य पेपर होंगे।
- उम्मीदवार द्वारा चुने गए किसी एक ऑप्शनल सब्जेक्ट के दो पेपर भी 250-250 अंकों के होंगे।
- निबंध के पेपर को 200 से बढ़ाकर 250 कर दिया गया है।
- इंटरव्यू के 300 अंकों को घटाकर अब 275 कर दिया गया है।
- पहले जनरल स्टडीज के केवल दो अनिवार्य पेपर 300-300 अंकों के होते थे और दो ऑप्शनल सब्जेक्ट में हरेक के दो-दो पेपर 300-300 नंबर के होते थे।

शैक्षणिक योग्यता
- कैंडिडेट के पास किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी की ग्रैजुएशन डिग्री या समकक्ष योग्यता होनी चाहिए।
- ग्रैजुएशन के फाइनल इयर के उम्मीदवार भी प्री एग्जाम में शामिल हो सकते हैं, लेकिन जब वे मेन्स के लिए अप्लाई करेंगे तो उन्हें ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल कर लेने का सर्टिफिकेट पेश करना होगा।

उम्र
- जनरल कैटिगरी के कैंडिडेट की उम्र 21 से 30 साल के बीच होनी चाहिए।
- ओबीसी के उम्मीदवारों के मामले में अधिकतम तीन साल, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए अधिकतम पांच साल की छूट का प्रावधान है।
- उम्र की गणना के लिए विज्ञप्ति प्रकाशन वाले साल के अगस्त महीने की पहली तारीख को मानक माना जाता है।

अवसरों की संख्या
- जनरल कैटिगरी के कैंडिडेट को चार बार और ओबीसी कैंडिडेट्स को सात बार परीक्षा में शामिल होने का मौका मिलता है।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए अवसरों का कोई प्रतिबंध नहीं है।
- यहां यह जानना भी जरूरी है कि प्री एग्जाम के किसी भी पेपर में शामिल होने को ही अवसर के रूप में गिना जाता है, सिर्फ अप्लाई करने को नहीं।

रिजर्वेशन
- इस एग्जाम में सरकार द्वारा तय तरीके से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, ओबीसी और शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।
- अनुसूचित जातियों के लिए 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% और ओबीसी के लिए 27% तक आरक्षण दिया जाता है।

सिविल सर्विसेज एग्जाम-2013 से जुड़ी जरूरी इंफर्मेशन...
26 मई को होगा सिविल सर्विसेज-2013 प्री एग्जाम
8 नवंबर से होगा सिविल सर्विसेज-2013 मेन्स एग्जाम
मार्च-अप्रैल 2014 में होगा इंटरव्यू
275 अंकों का होगा अब इंटरव्यू, पहले था 300 का
1000 से 1100 तक होती हैं कुल वैकेंसी
5 लाख के करीब भरे जाते हैं कुल फॉर्म
13 गुना (कुल वेकेंसी का) कैंडिडेट्स शामिल होते हैं मेन्स एग्जाम में
करीब 3 गुने (कुल वेकेंसी का) कैंडिडेट्स शामिल होते हैं इंटरव्यू में

एग्जाम
सिविल सेवा परीक्षा के दो चरण होते हैं:
1. मेन्स एग्जाम के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए सिविल सेवा प्री एग्जाम होता है। यह ऑब्जेक्टिव होता है।

2. प्री क्वॉलिफाई करने वाले लोगों को सिविल सेवा मेन्स एग्जाम देना होता है, जिसमें लिखित परीक्षा के अलावा इंटरव्यू भी होता है।

एग्जाम में बैठने का फैसला लेने से एक साल पहले या अगर ग्रैजुएशन कर रहे हों तो इसके फाइनल इयर से इसकी तैयारी शुरू कर दें। तैयारी शुरू करने से पहले सिलेबस, प्रश्न-पत्र, उपयोगी पत्र-पत्रिकाओं, न्यूज पेपरों, किताबों और दूसरे सभी पहलुओं की सूची बनाकर सिलसिलेवार ढंग से तैयारी शुरू करनी चाहिए।

1. प्री एग्जाम

- प्री एग्जाम में ऑब्जेक्टिव टाइप के 200-200 अंकों के दो पेपर होते हैं। यह एग्जाम सिर्फ उसी साल के मेन्स एग्जाम के लिए कैंडिडेट्स की स्क्रीनिंग के लिए होता है।
- इस एग्जाम में मिले नंबरों को फाइनल मेरिट लिस्ट में नहीं जोड़ा जाता।
- मेन्स एग्जाम में शामिल होने वाले योग्य कैंडिडेट्स की संख्या विज्ञप्ति में प्रकाशित कुल वेकेंसी की संख्या का लगभग 12 से 13 गुना होती है।
- यूपीएससी मेन्स एग्जाम में शामिल होने के लिए कैंडिडेट का चयन प्री में मिले नंबरों के आधार पर करता है।

रूपरेखा
- प्री में जनरल स्टडीज के पहले पेपर में 100 ऑब्जेक्टिव प्रश्न होते हैं।
- दूसरे पेपर सिविल सर्विसेज ऐप्टिट्यूड टेस्ट (सीसेट) में 80 ऑब्जेक्टिव प्रश्न होते हैं।
- दोनों पेपरों के लिए 200-200 अंक निर्धारित हैं।
- हर पेपर को 2 घंटे के भीतर हल करना होता है।
- प्रश्नों के उत्तर देने के लिए ओएमआर शीट पर सही गोले को काले बॉल पेन की मदद से रंगना होता है।
- हर प्रश्न के लिए चार ऑप्शन होते हैं। गलत उत्तर के लिए एक तिहाई अंक कट जाता है।
- सीसेट के डिसिजन मेकिंग वाले प्रश्नों में निगेटिव मार्किंग न होकर सबसे सही से लेकर कम सही तक क्रमश: अंकों में कमी आती जाती है।

तैयारी
- जहां तक तैयारी का सवाल है तो सबसे पहले उम्मीदवार को जनरल स्टडीज के विभिन्न भागों की एक सामान्य समझ विकसित करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए कक्षा 7 से लेकर 12 तक की भूगोल, इतिहास, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, विज्ञान आदि महत्वपूर्ण विषयों की टेक्स्ट बुक का अध्ययन करना चाहिए।
- जनरल स्टडीज के सिलेबस में भारत का इतिहास, भारत एवं विश्व भूगोल, भारतीय राजतंत्र और शासन, पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक विकास, पर्यावरण, पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और सामान्य विज्ञान को शामिल किया जाता है। तैयारी के लिए इन सभी विषयों या टॉपिक्स को पूरी गहनता के साथ और समसामयिक घटनाक्रम से इन्हें जोड़कर पढ़ना चाहिए।
- अगर हम पिछले सालों के पेपर्स को गंभीरता से देखें तो हम पाते हैं कि अब तथ्यात्मक प्रकृति के प्रश्नों की तुलना में ऐसे प्रश्न ज्यादा आते हैं जिनसे यह पता चल सके कि आपके कॉन्सेप्ट कितने साफ हैं और आपको विषय की कितनी गहरी समझ है। इसलिए स्टूडेंट्स को तैयारी के दौरान विषय के सभी भागों का गहन अध्ययन करना चाहिए।
- भूगोल पढ़ते वक्त मानचित्रों, इंटरनेट आदि की मदद लेनी चाहिए।
- इतिहास पढ़ते वक्त इसके सभी भागों यानी प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक भारत का इतिहास की गंभीरता से पढ़ाई करनी चाहिए। हाल के सालों में समसामयिक घटनाक्रम को अलग से न पूछकर संबंधित विषयों की अवधारणा से जोड़कर पूछा जा रहा है। पढ़ते वक्त अर्थशास्त्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, भूगोल, राजनीतिक व्यवस्था के हालिया घटनाक्रम पर ध्यान देना जरूरी है। इसके लिए रोजाना कुछ अच्छे न्यूजपेपर और मैग्जीन्स पढ़नी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण इंटरनेट की सहायता जरूर लेनी चाहिए।
- दूसरे भाग सीसेट के सिलेबस में कॉम्प्रिहेंशन या बोधगम्यता संचार कौशल सहित इंटरपर्सनल स्किल, लॉजिकल रीजनिंग, ऐनालिटिकल एबिलिटी, सामान्य मानसिक योग्यता, बेसिक गणित, डाटा इंटरप्रटेशन और अंग्रेजी कॉम्प्रिहेंशन शामिल हैं।

सीसेट की तैयारी से जुड़े कुछ जरूरी और उपयोगी सुझाव ये हैं...
1. अंग्रेजी और हिंदी कॉम्प्रिहेंशन पर खास ध्यान देना चाहिए क्योंकि 40 से 50% प्रश्न यहीं से होते हैं।
2. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिस करनी चाहिए।
3. रीजनिंग, मैथ्स और मानसिक योग्यता के प्रश्नों की रोज प्रैक्टिस करनी चाहिए।
4. अगर अंग्रेजी के प्रश्न को समझने या करने में कठिनाई हो तो अपने अंग्रेजी के ज्ञान को बेहतर करने की कोशिश करें।
5. कई बार कॉम्प्रिहेंशन के प्रश्न का हिंदी में अनुवाद जटिल होने के कारण दिक्कत आती है। वैसी स्थिति में प्रश्न के अंग्रेजी में छपे भाग से मदद लेनी चाहिए।

2. मेन्स एग्जाम

यह एग्जाम का सबसे महत्वपूर्ण व निर्णायक भाग है क्योंकि कुल प्राप्तांक का 85% से ज्यादा वेटेज इसी का होता है। इस परीक्षा में प्राप्त किए गए अंकों की अधिकता न केवल इंटरव्यू का रास्ता साफ करती है, बल्कि अंतिम रूप से चयन और मेरिट में ऊपर आने में भी निर्णायक भूमिका अदा करती है। इसलिए परीक्षा में शामिल विषयों और इनके अंकों पर नजर डालना जरूरी है:

- मेन्स एग्जाम में संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में से उम्मीदवार द्वारा चुनी गई कोई एक भाषा और अंग्रेजी के पेपर मैट्रिकुलेशन स्तर के होते हैं, जिनमें केवल पास होना होता है। इन पेपरों में प्राप्त अंकों को फाइनल मेरिट में नहीं जोड़ा जाता।
- मेन्स में आए नए बदलाव द्वारा आयोग ने उम्मीदवारों के बीच वैकल्पिक विषयगत विषमता को दूर करते हुए सामान्य अध्ययन के क्षेत्र को ज्यादा बढ़ा दिया है। अपने उत्तर लिखने के लिए स्टूडेंट्स को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किसी भी भाषा या अंग्रेजी में लिखने की छूट है।
- टाइम मैनेजमेंट कामयाबी की पहली कुंजी है।
- जनरल स्टडीज पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना बेहद जरूरी है।
- अप्लाई करने से पहले ही ऑप्शनल सब्जेक्ट का चयन और उसके पूरे सिलेबस की पढ़ाई पूरी कर लेनी चाहिए।
- अगर जनरल स्टडीज के सिलेबस के तहत शामिल विषयों से जुड़े ऑप्शनल सब्जेक्ट चुने जाएं तो तैयारी के दौरान काफी समय की बचत हो सकती है।
- उत्तर देते वक्त तय शब्द-सीमा का पालन करते हुए गैरजरूरी विस्तार से बचना चाहिए।
- मुख्य परीक्षा की तैयारी के दौरान लगने वाले समय को जनरल स्टडीज के लिए 60%, ऑप्शनल सब्जेक्ट के लिए 30% और निबंध के लिए 10% के रूप में बांटकर तैयारी करनी चाहिए।
- निबंध का अभ्यास बेहद जरूरी है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। कई उम्मीदवार परीक्षा भवन में ही अपना पहला निबंध लिखने के कारण इसका नुकसान उठाते हैं।
- आपके उत्तरों में मौलिकता झलकनी चाहिए। किसी कोचिंग संस्थान, किताब या किसी दूसरे स्त्रोत की पूरी नकल उतार देना सही नहीं है।
- उत्तर अगर समसामयिक घटना-क्रम से जुड़ रहा हो तो जरूर जोड़ें।
- उत्तर के महत्वपूर्ण भाग को अंडरलाइन, ग्राफ, चित्रों, मानचित्रों की मदद से पेश करना अच्छे नंबर लाने के लिए जरूरी है।
- जवाब में प्रश्न की मांग के मुताबिक उसके सभी भाग का अगर मुमकिन हो तो बिंदुवार उत्तर दें।
- ऑप्शनल सब्जेक्ट का चयन सोचसमझकर करें।

पेपर
अंक
संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में से उम्मीदवार द्वारा चुनी गई कोई एक भारतीय भाषा
300
अंग्रेजी
300
निबंध
250
जनरल स्टडीज-1
(भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज)
250
जनरल स्टडीज-2
(भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज)
250
सामान्य अध्ययन-3
(प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण सुरक्षा, आपदा प्रबंधन)
250
सामान्य अध्ययन-4
(नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि)
250
ऑप्शनल सब्जेक्ट पेपर-1
250
ऑप्शनल सब्जेक्ट पेपर- 2
250
कुल योग
1750
इटरव्यू
275
टोटल
2025


3. इंटरव्यू

इंटरव्यू से पहले

परीक्षा का अंतिम पड़ाव इंटरव्यू है। मेन्स एग्जाम में कैंडिडेट द्वारा लाए गए अंकों में से आयोग द्वारा निर्धारित अंक हासिल करने वालों को इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। कैंडिडेट का मूल्यांकन एक बोर्ड करता है, जिसके प्रमुख यूपीएससी के मेंबर होते हैं। उनके अलावा 4 या 5 और सदस्य बोर्ड में शामिल होते हैं। इंटरव्यू की तैयारी मेन्स एग्जाम देने के 15 दिन बाद से शुरू करनी चाहिए और हर रोज इसके लिए 2 से 3 घंटे की तैयारी भरपूर होती है। तैयारी के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स इस तरह हैं:

- न्यूजपेपर, पत्रिकाओं, न्यूज चैनलों को सरसरी निगाह से देखने की बजाय ध्यान लगाकर पढ़ना-सुनना चाहिए।
- चर्चा में रहे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के प्रासंगिक या ज्वलंत मुद्दों पर खास ध्यान देते हुए अपनी मित्र-मंडली से इसकी चर्चा करनी चाहिए।
- इंटरव्यू डायरी बनाकर उसके महत्वपूर्ण घटनाक्रमों, अपने बायो-डेटा से जुड़े सभी पहलुओं जैसे हॉबी, शिक्षण संस्थान आदि की पूरी जानकारी रखनी चाहिए।
- मॉक इंटरव्यू का अभ्यास करना चाहिए।
- अपने इंटरव्यू का विडियो बनाकर अपनी कमियों को जानने की कोशिश करनी चाहिए।

इंटरव्यू के दौरान
- सबसे जरूरी है, बोर्ड द्वारा पूछे गए प्रश्नों को ध्यान से सुनना। अगर ठीक से सुन या समझ न पाए हों तो सॉरी कहकर प्रश्न दुहराने का निवेदन करें।
- उत्तर देने से पहले थोड़ा ठहरें, फिर शांति से उत्तर दें। जल्दबाजी महंगी साबित हो सकती है।
- सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट्स पहले रखें।
- उत्तर देते वक्त ईमानदार बने रहें। उत्तर न मालूम हो तो विनम्रतापूर्वक बोर्ड से क्षमा मांग लें।
- उदार, छोटे व संतुलित उत्तर पर जोर दें।
- किसी भी विचारधारा, धर्म, पार्टी, भाषा, प्रजाति के प्रति तटस्थ रहने की कोशिश करें।
- बॉडी-लैंग्वेज का खासा ध्यान रखें। उत्तर देते वक्त आई-टु-आई कॉन्टैक्ट बनाए रखें।
- कमरे में प्रवेश करते वक्त या कमरा छोड़ते वक्त बोर्ड सदस्यों का अभिवादन या शुक्रिया करना जरूरी है।

अलग-अलग विषयों/व्यवसायों के स्टूडेंट्स का प्रदर्शन
यूपीएससी द्वारा प्री एग्जाम में सीसेट शामिल किए जाने के बाद इसमें काफी बदलाव आ चुका है। एक ताजा सर्वे में पिछले तीन साल के अंदर अंतिम रूप से चयनित कैंडिडेट में विषय/व्यवसाय, लिंग, क्षेत्र और माध्यम के छात्रों का प्रदर्शन इस तरह रहा है:
मानदंड
वर्ष
2011
2010
2009
इंजिनियरिंग
44%
35%
26%
मेडिकल
14%
10%
7%
कला
20%
26%
24%
महिला
22%
18%
28%
ग्रामीण
70%
57%
66%
अंग्रेजी माध्यम
90%
85%
82%



हिंदी के स्टूडेंट्स की समस्या
पिछले सालों में हिंदी के स्टूडेंट्स के अंतिम रूप से चयन होने का प्रतिशत काफी कम है। सीसेट के आने से और इसके पेपर में शामिल अंग्रेजी के 8-10 प्रश्नों, रीजनिंग, डिसिजन मेकिंग, गणित, सामान्य मानसिक योग्यता, कॉम्प्रिहेंशन के जटिल अनुवाद आदि ने प्री में ही हिंदी भाषी छात्रों की सफलता के प्रतिशत को काफी हद तक प्रभावित किया है। हिन्दी भाषी उम्मीदवार को तैयारी के पहले चरण की बाधा को दूर करने के लिए अपनी सीसेट पेपर की तैयारी पर खास ध्यान देना होगा।

कुछ महत्वपूर्ण वेबसाइट्स
1. www.pib.nic.in
2. www.wikipedia.org
3. www.bbc.com
4. www.prsindia.com
5. www.indiaenvironmentportal.org.in
6. www.thediplomat.com

Sunday, April 28, 2013

वापसी (कहानी)


नींद खुलते ही कुंज हडबडाकर उठा। बाहर शाम का धुंधलका फैला हुआ था। मेज पर रखी अलार्म घडी छह बजा रही थी। बादलों से भरे आकाश और सुबह से हो रही टिप-टिप बरसात के कारण शाम में ही रात का भ्रम होने लगा था। वह कमरे से निकल कर बरामदे में रखी लंबी-चौडी आरामकुर्सी पर आ बैठा। वहां रखे सारे फर्नीचर साफ-सफाई के बाद उस जगह की गरिमा को पहले सा बनाए हुए थे। बरामदा सुनसान था। मेज पर सुबह का अखबार फडफडा रहा था। उसे उलटते-पुलटते वह मुकुंद बिहारी का इंतजार करने लगा। वह इस इलाके के प्रसिद्ध प्रॉपर्टी डीलर थे। उनके बिना किसी भी बडी जायदाद को खरीदना-बेचना संभव नहीं था।
 मौसम खराब होने की वजह से ही नहीं आ पा रहे थे। तभी उसे जगा पाकर रमिया ने एक कप चाय लाकर मेज पर रख दी।
 कुछ खाने को लाऊं?
 नहीं.. बस रहने दो काकी।
 रमिया कुंज के जन्म से भी पहले से उनके घर में काम करती थी। बूढी हो गई थी, लेकिन मालिक की इकलौती निशानी से मिलने चली आई। काम में मदद के लिए छोटी बहू को भी साथ लाई थी।
 गर्जन के साथ बारिश तेज हो गई। बिजली भी चली गई। घुप अंधेरे के बीच रह-रह कर बिजली का चमकना और ठंडी हवाओं का छू जाना इस समय बहुत भला लग रहा था। थोडी ही देर में उसका मन चंचल पांखी बन सुदूर अतीत की यादों में गोते लगाने लगा, जो बरसों से दिल के किसी कोने में दफन था।
 यह गांव सच्चे अर्थो में वह बोधिवृक्ष था, जिसकी छांव में उसे ज्ञान मिला था जीवन के हर पहलू को जानने-समझने का।
 जैसे कल की ही बात हो.., जब कभी तेज हवाएं चलतीं, उसके कदम घर में नहीं ठहर पाते थे। अम्मा की डांट का डर भी नहीं रोक पाता था। हवा के संग-संग आम के बगीचे में उडता-फिरता। आम के एक-एक टिकोरे के पीछे लपकता, बच्चों के साथ मिलकर शोर मचाता और उसके पीछे भागता पुराना नौकर यमुना, जिसे अम्मा दौडाती थीं ताकि उसे घर लाया जा सके। मगर वह यमुना को भी दौडा-दौडाकर थका देता। घर आता तो अम्मा के प्रवचन शुरू हो जाते, तुम्हें शर्म नहीं आती, ऐसे गंदे बच्चों के साथ, एक-एक टिकोरे के लिए झपटते, वो भी अपने ही बगीचे में। बोलो कितने टिकोरे चाहिए? यमुना को भेज कर अभी मंगवा देती हूं।
 अम्मा को कौन समझाए कि टिकोरा चुनकर लाने में जो मजा है वह एक टोकरा पा जाने में कहां है। अपने लिए नरम भुट्टा छांटना भी उसे बहुत पसंद था। कई भुट्टों में छेद करके देखता, तब कोई नरम भुट्टा मिलता। यमुना की नजर पडती तो वह शोर मचा देता, अम्मा से शिकायतें लगाता। संकट की घडी में उसे बचाते खेत के मचान पर बैठे दीनू काका। झट से उसे मचान पर चढा कर चादर में छुपा लेते और यमुना भन्नाता हुआ पूरे खेत में उसे खोजता। कभी-कभी अम्मा को जाने कैसे पता चल जाता कि उसे छुपाने में दीनू काका का हाथ है। फिर तो उसके साथ-साथ दीनू काका के लिए भी दसियों कसीदे पढ देतीं। अम्मा की जली-कटी सुन कर भी काका शांत रह जाते, भौजी, आप भी नन्ही सी जान के पीछे पडी रहती हैं। खेलने-कूदने दीजिए। यही तो समय है उसके खेलने-कूदने का..,
 हां..हां.. क्यों नहीं? इसका खेलना-कूदना तो देख ही रही हूं। ऐसा ही हाल रहा तो यह भी मचान पर बैठ चिडिया उडाया करेगा।
 भौजी आप जितना चाहें मुझे कोसें, कुंज के लिए कुछ न कहें। एक दिन यह खानदान का नाम रोशन कर देगा।
 दीनू काका की नजरों में उसके लिए अगाध प्रेम देख कर कभी-कभी अम्मा हैरान रह जातीं। काका के नैन-नक्श तीखे थे, लेकिन एक पैर जन्म से ही मुडा था।





कोल्ड ड्रिंक पीने से पड़ सकता है दिल का दौरा!


कम कैलोरी वाले डायट साफ्ट ड्रिंक्स से फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। एक नये अध्ययन में दावा किया गया है कि इस तरह के शीतल पेय का दिन में एक बार सेवन करने से व्यक्ति में दिल के दौरे का खतरा काफी बढ़ सकता है।
मियामी मिलर स्कूल आफ मेडिसिन यूनीवर्सिटी और कोलंबिया यूनीवर्सिटी मेडिकल सेंटर के नेतत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल ने कहा कि उनके शोध के निष्कर्षों ने इस भावना को खारिज किया है कि ये डायट ड्रिंक्स स्वास्थ्यकर होती हैं और इनके सेवन से पतले होने में मदद मिलती है।
डेली एक्सप्रेस अखबार की खबर के अनुसार, अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग प्रतिदिन डायट ड्रिंक्स पीते हैं उनमें दिल के दौरे या नाड़ी संबंधी रोग होने की आशंका 43 प्रतिशत ज्यादा होती है।
इस अध्ययन में डायट और सामान्य दोनों तरह के शीतल पेय के सेवन और दिल के दौरे तथा नाड़ी संबंधी रोगों के खतरे को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने एक खास समूह पर अध्यययन किया। निष्कर्षों में पाया गया कि जो लोग प्रतिदिन डायट ड्रिंक्स पीते हैं उनमें दिल के दौरे या नाड़ी संबंधी रोग होने की आशंका 43 प्रतिशत ज्यादा होती है।
एक महीने में एक बार से सप्ताह में छह बार हल्की डायट ड्रिंक्स पीने वालों और सामान्य शीतल पेय लेने वालों में इस तरह के रोगों के खतरे की संभावना बहुत कम होती है। इस दल का नेतृत्व करने वाले हाना गार्डनर ने कहा कि हमारे नतीजों में संकेत मिले हैं कि प्रतिदिन डायट शीतल पेय के सेवन और नाड़ी संबंधी रोगों के बीच गहरा संबंध है।








कैंसर समय से जानकारी ही बचाव


कैंसर एक घातक बीमारी तो है लेकिन जीवनशैली में थोड़ी-सी सावधानी बरती जाए तो इससे दूर भी रहा जा सकता है। अगर इसके लक्षण दिखने भी लगें तो समय रहते जरूरी उपाय करने से इसके बड़े कुप्रभाव से बच सकते हैं। 4 फरवरी को कैंसर दिवस है, तो आइए जानें कि दिल्ली की जीवनशैली में हम खुद को इससे कैसे दूर रखें।
दुनिया में कैंसर की वजह से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सन् 2008 में 76 लाख मौतें कैंसर की वजह से हुईं। यह संख्या कुल मौतों का लगभग 13 फीसदी थी। एक अनुमान के अनुसार सन् 2030 में यह संख्या बढ़ कर एक करोड़ दस लाख हो सकती है। चिंता की बात ये है कि कैंसर महानगरों और दिल्ली जैसी मैट्रो सिटीज में अधिक बढ़ रहा है। 4 फरवरी को कैंसर दिवस है। आइए जानें कि कैंसर क्या है, क्यों होता है, कैसे आप इसके होने के खतरों को कम कर सकते हैं, कैंसर से लडऩे के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए।
क्या आप जानते हैं
भारत में हर साल फेफड़े, पेट, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर से सबसे अधिक मौतें होती हैं।
लगभग 30 फीसदी कैंसर से होने वाली मौतें के पीछे ये पांच कारण जिम्मेदार होते हैं- मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, तंबाकू और धूम्रपान का अधिक सेवन, एल्कोहल लेना, फल और सब्जियां काफी कम खाना या न खाना।
यह भी एक तथ्य है कि कैंसर से मरने वालों में महिलाओं का प्रतिशत अधिक है। दिल्ली में गर्भाशय कैंसर से पीडि़त महिलाएं लगभग 10.6 फीसदी है।
भारत में हर साल लगभग दस लाख लोग कैंसर से पीडि़त होते हैं। इतना ही नहीं भारत में सबसे ज्यादा महिलाओं को सर्विकल कैंसर होता है।
एक अनुमान के अनुसार अपने यहां कैंसर के 30 लाख से भी अधिक मरीज हैं।
विश्व में हर साल लगभग 15 लाख महिलाओं की मौत तंबाकू के सेवन से होती है।
भारत में करीब हर सातवें मिनट में एक महिला की मौत का कारण सर्विकल कैंसर है और लगभग एक लाख 32 हजार महिलाएं हर साल सर्विकल कैंसर से पीडि़त होती हैं, जिनमें से लगभग 74 हजार की मौत हर साल होती है।
कैंसर क्या होता है
शरीर में कोशिकाओं के समूह की अनियंत्रित वृद्घि कैंसर है। आमतौर पर कोशिकाओं के बनने-बिगडऩे के दौरान सेल्स की होने वाली अनियंत्रित वृद्घि और उनके विकास से कैंसर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जब ये कोशिकाएं ऊतकों (टिश्यू) को प्रभावित करती हैं तो स्वस्थ ऊतक संक्रमित होकर पूरे शरीर में फैलने लगते हैं। क्या आप जानते हैं कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है। यह गले में, मुंह में, ब्रेस्ट में और यहां तक की भ्रूण को भी कैंसर हो सकता है।
देश में कैंसर का प्रकोप दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। दरअसल कैंसर का इलाज संभव तो है, लेकिन यदि इसका समय पर पता न लगाया जाए, तो ये मौत का कारण भी बन सकता है। इसलिए डॉक्टरों की यही सलाह होती है कि शुरुआती चरणों में ही इसका पता लगा लिया जाए, तभी इसे बढऩे से रोका जा सकता है।
कारण
कैंसर का कारण कोशिकाओं का अनियंत्रित रूप से बढऩा और उनका विकास होना है। लेकिन कुछ और भी महत्वपूर्ण कारक हैं, जिनसे कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। इनमें हैं उम्र का बढऩा, धूम्रपान और तंबाकू, शारीरिक निष्क्रियता, आनुवांशिक कारण, असंतुलित खानपान, किसी प्रकार का संक्रमण होना, खराब वातावरण आदि।
लक्षण
सामान्य से अधिक खांसी और खांसी के दौरान रक्त आना
शरीर के किसी हिस्से में रह-रहकर दर्द उठना
शरीर में कहीं गांठ का महसूस होना और सूजन आना
पेशाब या मल के दौरान रक्त आना
मीनोपॉज के बाद ब्लड आना
एनीमिया या लंबे समय तक एसीडिटी की शिकायत
शारीरिक कमजोरी या हीमोग्लोबिन में कमी
वजन अचानक बहुत बढऩा या घटना
ऐसा जख्म जो भरता नहीं
बचाव के उपाय
आहार का खास ध्यान रखें। खाने में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, कैल्शियम और आयरन की कमी न होने दें।
चटपटे और तले भोजन से दूर रहें।
वजन नियंत्रित करें
नियमित रूप से सैर, व्यायाम, योग करें
साफ और स्वस्थ रहें
तनाव और डिप्रेशन से बचें
पर्याप्त नींद लें
एल्कोहल और धूम्रपान से दूर रहें।
नुकसान पहुंचाने वाली इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से बचें
अनावश्यक एक्स-रे करवाने से बचें
घर के आसपास साफ-सफाई का खास ध्यान रखें
समय पर वैक्सीन या इंजेक्शन लगवाएं
घर में किए जाने वाले छोटे-छोटे उपाय
हल्दी- औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी के सेवन से कैंसर के होने की आशंका को कम किया जा सकता है। हल्दी को दूध में डालकर पीना बहुत फायदेमंद होता है।
टमाटर- टमाटर में लाइकोपीन नामक पदार्थ बहुत अधिक मात्र में पाया जाता है जो विभिन्न प्रकार के कैंसर को रोकने में ना सिर्फ फायदेमंद है, बल्कि इस पदार्थ से कैंसर के पनपने की आशंका बहुत हद तक खत्म हो जाती है।
ग्रीन टी- ग्रीन टी के सेवन से कैंसर के सेल्स का बनना बंद हो जाता है। 2-3 बार ग्रीन टी के सेवन से शरीर में कैंसर के सेल्स पनपने की आशंका खत्म हो जाती है।
पुदीना और तुलसी- पुदीना और तुलसी में कई तरह के कैंसर निरोधक और पाचक तत्व पाए गए हैं, जो फ्री रेडिकल को नष्ट कर सकते हैं। बबूल और गोखरू के पौधों में भी कैंसर -निरोधक एंजाइम पाए जाते हैं


समय कम हो तो शार्ट टाइम योग


व्यस्त दिनचर्या में कई बार समय निकालना भी मुश्किल हो जाता है। कुछ योग बताते हैं जिन्हें आप चलते-फिरते कर सकते हैं
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे पास दो चीजों का सबसे ज्यादा अभाव है- समय और सुकून। समय में वृद्धि करना तो संभव नहीं है, किंतु अपनी एकाग्रता में वृद्धि कर समय का बेहतर उपयोग करना हमारे वश में है। इसी प्रकार, अपनी एकाग्रता में वृद्धि कर मन को शांत कर लेना भी हमारे वश में है। यह सब योग के अभ्यास से सहज ही हो सकता है। अगर आपके पास समय नहीं है तो उठते-बैठते, चलते-फिरते, ऑफिस में काम करते हुए, मेट्रो या बस में यात्रा करते हुए भी आप योग कर सकते हैं।
आसन- योग की रिचाजिर्ग क्रिया अति प्रभावशाली है। बस, मेट्रो आदि में यात्रा करते समय यदि हम सीट पर बैठे हैं तो सिर, रीढ़ व गले को सीधा कर लीजिए। आंख खुली रखते हुए ही 5 से 10 गहरी श्वास लीजिए। तत्पश्चात् मन को सजग रखते हुए अपने दोनों पैरों को नितम्ब से लेकर अंगुलियों तक कड़ा कीजिए। अब कड़ेपन को थोड़ा बढ़ाते हुए अधिकतम स्थिति तक ले जाइए। 5 से 10 सेकेंड तक इस स्थिति में रुकिए। इसके पश्चात् अंगुलियों से नितम्ब की ओर धीरे-धीरे पैरों को ढीला कीजिए। इसके बाद यही क्रिया क्रमश: पीठ, सीना, पेट, गले तथा चेहरे के साथ कीजिए। अंत में गहरी श्वास-प्रश्वास लेकर वापस पूर्व की स्थिति में आ जाइए।
खड़े रहने की स्थिति में ताड़ासन तथा प्रति ताड़ासन क्रिया बहुत कारगर सिद्ध होती है। सीधा खड़े होकर दोनों पैरों की एडिय़ों को यथासंभव ऊपर उठाइए। 5 सेकेंड तक इस स्थिति में रुककर वापस पूर्व स्थिति में आइए। इसके पश्चात् पैर के पंजे को उठाकर एड़ी पर खड़े हो जाइए। दीवार आदि का सहारा लिया जा सकता है। इन दोनों क्रियाओं का बारी-बारी 25 से 50 बार तक अभ्यास कीजिए।
प्राणायाम- यहां बताई किसी भी स्थिति में दो प्रकार की श्वसन क्रियाएं बहुत लाभकारी सिद्ध होती हैं- पहली, यौगिक श्वसन तथा दूसरी स्टेप ब्रीदिंग क्रिया है। यौगिक श्वसन के अंतर्गत बैठे या खड़े हुए, आंखें बंद कर या खोलकर, गहरी श्वास-प्रश्वास लेते हैं। गहरी श्वास लेकर पहले पेट तथा उसके बाद सीने को यथासंभव फैलाइए। इसके बाद गहरी श्वास निकालते हुए पहले सीने तथा बाद में पेट को धीरे-धीरे पिचकाइए। यह यौगिक श्वसन का एक चक्र है। इसके चक्रों का यथासंभव अभ्यास कीजिए।
दूसरी क्रिया-स्टेप ब्रीदिंग है। इस क्रिया में हर एक श्वास तीन स्टेप्स में अंदर लेते हैं तथा तीन ही स्टेप्स में बाहर निकालते हैं। पहले स्टेप में थोड़ा श्वास अंदर लेकर एक सेकेंड रुकिए, उसके बाद द्वितीय स्टेप से थोड़ी श्वास अंदर लेकर एक सेकेंड तक रुकिए। अंत में पूरी श्वास अंदर लेकर एक सेकेंड रुकिए तत्पश्चात् तीन स्टेप्स में ही श्वास को बाहर निकालिए। यह एक चक्र है। इसके चक्रों का भी यथासंभव अभ्यास कीजिए।
सहज ध्यान- यह ध्यान बैठकर या खड़े होकर कहीं भी किया जा सकता है। यह एक विशेष प्रकार का ध्यान है जो आंख खोलकर या बंद कर किसी भी स्थिति में किया जा सकता है। इस ध्यान में व्यक्ति अपनी आस्था के अनुसार कोई मंत्र या किसी देवी-देवता का चित्र अपने मन में सोच सकता है। इसका अभ्यास मानसिक होता है। उदाहरण के रूप में हम ओम् को लेते हैं। प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ ओम् का अभ्यास अपने मन ही मन में करते जाइए। पूरी सजगता बनाए रखिए, ताकि विचारों, स्मृतियों तथा कल्पनाओं में मन अधिक न भटक पाये। इसका 5 मिनट तक अभ्यास मन को नकारात्मक एवं अनावश्यक विचारों से मुक्त कर देता है।
आहार- इन क्रियाओं का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को अपने आहार में प्रोटीनयुक्त तथा तरल पदार्थों को अधिक से अधिक शामिल करना चाहिए। सूप, जूस, फल, दूध तथा दही सर्वोत्तम है। तले-भुने तथा गरिष्ठ भोजन के सेवन से बचना चाहिए।
लाभ- ये क्रियाएं शरीर और मन को स्फूर्ति तथा ऊर्जा देती हैं। मन की एकाग्रता शक्ति में तीव्र वृद्धि कर स्मृति, सहनशीलता, धैर्य तथा धारणा शक्ति को बढ़ाता है। भय, चिंता, क्रोध, नकारात्मक विचार तथा असुरक्षा से रक्षा करता है। यह पाचन शक्ति, रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है तथा मस्तिष्क को रचनात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत कर हमारी कार्यक्षमता तथा उत्पादकता में वृद्धि करता है।





ताकि हमेशा साथ दे आपका मस्तिष्क


वैज्ञानिकों का मानना है कि नियमित रूप से एरोबिक व्यायाम करना आपके दिमाग के लिए दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ है। लाइव साइंस की रिपोर्ट कहती है कि मानसिक फिटनेस के लिए रोजा कम-से-कम 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि अनिवार्य है।
कैसा हो खाना
कम ग्लाइकेमिक, उच्च फाइबर, वसा और प्रोटीन वाला खाना शरीर में धीरे-धीरे टूटता है। ऐसा आहार मस्तिष्क के लिए अच्छा है और ज्यादा ऊर्जा एवं शरीर को दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रदान करता है। कई बार कम कैलोरी भी मस्तिष्क की स्मरण और कार्यक्षमता को क्षीण कर सकती है। कई अध्ययनों से ये बात साबित हुई है कि व्याकुलता, भ्रम और क्षीण स्मरणशक्ति का कारण डाइटिंग या ठीक से भोजन न करना है।
शरीर का रखें ख्याल
आमतौर पर होने वाली बीमारियां जैसे डायबिटीज, मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसे रोग काफी हद तक आपके मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य प्रणाली को स्वास्थ्य में गिरावट और क्षीण स्मरणशक्ति के जोखिम से जोड़ा गया है।
रिलैक्सेशन भी है जरूरी
जब हम आराम करते हैं, नींद लेते हैं या सपनों में खो जाते हैं तो हम एक अलग ही दुनिया में चले जाते हैं जहां हमारे मस्तिष्क को भी आराम मिलता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि जब हम अपनी नींद पूरी नहीं करते हैं तो प्रोटीन के निर्माण में बाधा होती है जिससे हमारे सीखने और समझने की क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है।
कॉफी भी है असरदार
अध्ययनों से पता चला है कि कॉफी पीने की आदत भी आपके मस्तिष्क की रक्षा करती है। एक बड़े अध्ययन ने ये साबित किया है कि दिन में दो से चार कप कॉफी से अल्जाइमर की घटनाओं में 30 से 60 प्रतिशत तक की कमी आई है।
मछली खाएं
कहते हैं कि कौशल के विकास के लिए ही आहार में मछली शामिल हुई है। आवश्यक फैटी एसिड्स जैसे ओमेगा 3, मस्तिष्क के सही ढंग से कार्य करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
सप्लीमेंट लेने से बचें
मल्टीविटामिन, प्रोटीन जैसे सप्लीमेंट लेना पैसों की बर्बादी से ज्यादा कुछ नहीं है। सप्लीमेंट्स के इस्तेमाल से उच्च रक्तचाप, पाचन, प्रजनन संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं।
मांइड गेम्स हैं लाभकारी
पहेलियां, सुडोकू और अन्य माइंड गेम्स आपके दिमाग और स्मरणशक्ति के लिए बहुत लाभकारी हैं। बढ़ती उम्र में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करना दिमाग के लिए किसी भी एक्सरसाइज से कम नहीं है।
संतरे का रस भी है हितकारी
संतरा विटामिन सी का सबसे अच्छा जरिया है, जो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।   ध्यान रहे कि संतरे के रस की मात्र ज्यादा न हो क्योंकि इसमें उच्च कैलोरी होती है। डिब्बाबंद जूस पर चीनी आदि की मात्र पढ़कर ही उसका सेवन करें।






ब्रेन स्ट्रोक: न लगा दे आपकी जिंदगी पर ब्रेक


दिल्ली की तेज रफ्तार जिंदगी में घड़ी की सुइयों संग कदमताल करती दिनचर्या, तनाव, समय पर न खाना और पूरी नींद न लेना कई जानलेवा बीमारियों की वजह बनती जा रही है। इन्हीं जानलेवा बीमारियों में से एक है 'ब्रेन स्ट्रोकÓ।
ब्रेन स्ट्रोक यानी आज के समय की एक जानलेवा बीमारी। हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों को जितनी गंभीरता से लिया जाता है, इस बीमारी को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि उम्रदराज लोग ही नहीं, युवा भी तेजी से इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
ब्रेन स्ट्रोक
'ब्रेन स्ट्रोकÓ में मस्तिष्क की कोशिकाएं अचानक मृत हो जाती हैं। यह मस्तिष्क में ब्लड क्लॉट बनने, ब्लीडिंग होने या रक्त संचरण के सुचारु रूप से न होने के कारण हो सकता है। रक्त संचरण में रुकावट आने के कुछ ही मिनट में मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाती है। जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाएं फट जाती हैं, तो इसे 'ब्रेन स्ट्रोकÓ कहते हैं। इस कारण लकवा, याददाश्त जाने की समस्या, बोलने में असमर्थता जैसी स्थिति आ सकती है। कई बार 'ब्रेन स्ट्रोकÓ जानलेवा भी हो सकता है। इसे ब्रेन अटैक भी कहा जाता है।
इसके लक्षण
इसके लक्षण अलग-अलग होते हैं। कई मामलों में तो मरीज को पता ही नहीं चलता कि वह ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुआ है। इन्हीं लक्षणों के आधार पर डॉक्टर पता लगाते हैं कि स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क का कौन-सा भाग क्षतिग्रस्त हुआ है। अक्सर इसके लक्षण अचानक दिखाई देते हैं। इनमें प्रमुख हैं-
मांसपेशियों का विकृत हो जाना।
हाथों और पैरों में कमजोरी महसूस होना।
सिर में तेज दर्द होना।
देखने में परेशानी।
याद्दाश्त कमजोर हो जाना।
कारण
सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रजनीश कुमार कहते हैं, 'मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नालिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण या उनके फट जाने के कारण ब्रेन अटैक होता है। इन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का मुख्य कारण 'आर्टियो स्क्लेरोसिसÓ है। इसके कारण नलिकाओं की दीवारों में वसा, संयोजी उत्तकों, क्लॉट, कैल्शियम या अन्य पदार्थो का जमाव हो जाता है। इस कारण नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं। उनके द्वारा होने वाले रक्त संचरण में रुकावट आता है या रक्त कोशिकाओं की दीवार कमजोर हो जाती है।Ó
बचने के उपाय
यूं तो पोषक खाद्य पदार्थों का सेवन सभी के लिए जरूरी है, लेकिन विशेष रूप से उनके लिए बहुत जरूरी है जो स्ट्रोक से पीडि़त हैं। पोषक भोजन खाने से न सिर्फ मस्तिष्क की क्षतिग्रस्त हुई कोशिकाओं की मरम्मत होती है बल्कि भविष्य में स्ट्रोक की आशंका भी कम हो जाती है। ऐसा भोजन लें जिसमें नमक, कॉलेस्ट्रॉल, ट्रांस फैट और सेचुरेटेड फैट की मात्र कम हो और एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ई, सी और ए की मात्र अधिक हो। साबुत अनाज, फलियां, सूखे मेवों और ब्राउन राइस का सेवन करें। जामुन, गाजर और गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों में एंडीऑक्सीडेंट की मात्र बहुत अधिक होती है।
सर्दियां बढ़ा देती हैं खतरा
हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं, 'जिन्हें ब्लडप्रेशर की शिकायत है, सर्दियों में सुबह के समय उनका ब्लडप्रेशर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता  है। ऐसे लोगों को इस मौसम में खास ख्याल रखना चाहिए।Ó
किन्हें है अधिक खतरा
डायबिटीज टाइप-2 के मरीजों में इसका खतरा अधिक बढ़ जाता है।
हाई ब्लप्रेशर और हाइपर टेंशन के मरीज भी इसकी चपेट में जल्दी आ जाते हैं।
मोटापा ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण बन सकता है।
धूम्रपान, शराब और गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन ब्रेन अटैक को निमंत्रण देने वाले कारक माने जाते हैं।
बढ़ता कोलेस्ट्रॉल का स्तर और घटती शारीरिक निष्क्रियता भी इसकी वजह बन सकती है।
उपचार
लक्षण नजर आते ही मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर इसके उपचार में रक्त संचरण को सुचारु और सामान्य करने की कोशिश की जाती है ताकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके। डॉ. कुमार कहते हैं, 'कई अत्याधुनिक अस्पतालों में थ्रोम्बोलिसिस के अलावा एक और उपचार उपलब्ध है जिसे सोनो थ्रोम्बोलिसिस कहते हैं। यह मस्तिष्क में मौजूद ब्लड क्लॉट को नष्ट करने का एक अल्ट्रासाउंड तरीका है। इस उपचार में केवल दो घंटे लगते हैं। इसीलिए स्ट्रोक अटैक के तीन घंटे के भीतर मरीज को जो उपचार उपलब्ध कराया जाता है उसे 'गोल्डन पीरियडÓ कहते हैं।





समुद्री हलचलों को भांपने में माहिर है सार्क मछली


यूं तो समुद्र में रहने वाली मछलियों में डाल्फिन को सबसे संवेदनशील माना जाता है। लेकिन सागर की गहराई में सबसे अधिक खूंखार मानी जाने वाली शार्क का भी कोई जवाब नहीं है। समुद्री जीव वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि धरती के चुम्बकीय क्षेत्रों में होने वाले सूक्ष्म से सूक्ष्म हलचलों का शार्क मैग्नटोमीटर की तरह पता लगा लेती है।
जिस तरह शार्क समुद्र की सीधी रेखा से हजारों किलोमीटर की यात्रा करती है, उसे लेकर वैज्ञानिक सालों से हैरान थे। हालांकि उन्होंने पहले ही यह अनुमान लगा लिया था कि शार्क को चुम्बकीय क्षेत्रों के बारे में कहीं न कहीं से संकेत मिलते हैं जिससे वह इन क्षेत्रों को पहचान लेती है।
समुद्र वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाने के लिए कई तरह की कोशिशें कीं। इसके लिए हवाई युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक शार्क को पकड़कर प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण के दौरान जब कभी उसके टैंक से कृत्रिम चुम्बकीय क्षेत्र सक्रिय किया जाता शार्क तैर कर अपने लक्ष्य तक पहुंच जाती। इससे उन्हें पता चला कि शार्क मछली में दिशा बोध होता है। जिसे भौतिक शास्त्र की भाषा में कपास सेस कहा जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस खोज के बाद यह पता लगाना आसान हो गया है कि शार्क मछलियों में यह सेंस किस तरह से काम करता है। अब वैज्ञानिक फिलहाल यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि शार्क धरती के चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति कितनी संवेदनशील होती है।
शार्क की चुम्बकीय संवेदनशीलता का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने अपने-अपने अनुसंधान के लिए छ: सेंडवार शार्कों और एक स्कैलेण्ड हैमरहेड शार्क का उपयोग किया। इन खंूखार मछलियों को प्रयोग के दौरान 7 मीटर डायमीटर वाले टैंक में रखा गया। मछलियों को 1.5 $ 6.5 मीटर क्षेत्रफल में खाद्य सामग्री की उपस्थिति से संबंध स्थापित करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इस टैंक से संलग्न भूतल पर तांबे के तारों की टंकी के चारों तरफ बिछाकर चुम्बकीय क्षेत्र तैयार किया जाता था।
इसके अलावा भी वैज्ञानिकों ने कई तरह के प्रयोग किए। जिसमें उस क्षेत्र में विभिन्न अवसरों पर अनिश्चित अंतराल में चुम्बकीय क्षेत्र सक्रिय किया गया। जब-जब चुम्बकीय क्षेत्र सक्रिय किया जाता था, मछलियां भोजन न होने के बावजूद फीडिंग जोन की तरफ बढ़ती थीं। इससे यह साबित होता है कि उनके शरीर में दिशा सूचक कपास विद्यमान है।
मजे की बात तो यह है कि जैसे ही कृत्रिम चुम्बकीय क्षेत्र सक्रिय होता, मछलियां फौरन प्रतिक्रिया व्यक्त कर देती हैं। चुम्बकीय क्षेत्र सक्रिय होने के साथ ही वह टैंक की दीवारों के सहारे धीरे-धीरे तैरना छोड़कर तेजी से तैरने लगती हैं। अब वैज्ञानिकों की दिलचस्पी यह जानने में है कि आखिर ये शार्क मछलियां चुम्बकीय क्षेत्रों को पहचानने में सफल कैसे हो जाती हैं। हालांकि कबूतर भी दिशाबोध रखते हैं क्योंकि उनके शरीर में आयरन मिनरल मैग्नेटाइट तत्व मौजूद होते हैं। जबकि शार्क के शरीर में यह लौह तत्व नहीं पाया जाता है फिर भी इनकी चुम्बकीय बोध क्षमता बेमिसाल है। हो सकता है कि उनके सिर पर कोई इलेक्ट्रोरिसप्टर्स मौजूद होगा जिससे वह चुम्बकीय क्षेत्रों का पता लगा लेती हैं। इस क्षमता का वैज्ञानिकों द्वारा आकलन किया जा रहा है




परिवार के लिए गृहिणी का स्वास्थ्य भी जरूरी


महिलाएं घर-परिवार का काम तो संभालती ही हैं, दफ्तर के काम में भी काफी व्यस्त हो रही हैं। अगर आप भी इतनी ही व्यस्त रहती हैं और अपना खयाल नहीं रख पातीं, तो जरा सोचें कि आप के शरीर पर कितना दबाव पड़ता होगा। इसलिए थोड़ा अपना भी खयाल रखें।
कहते हैं महिला परिवार की धुरी होती है। यदि महिला सेहतमंद होती है तो उसका परिवार भी सेहतमंद होगा। आज के समय में महिलाओं का सेहतमंद होना और भी जरूरी है क्योंकि वे घर के साथ-साथ बाहर भी काम करने लगी हैं।
आमतौर पर घरेलू महिलाएं हों या फिर कामकाजी महिलाएं, काम के बोझ तले वे अपने खान-पान और स्वास्थ्य को बिल्कुल ही भूल जाती है और अपना खयाल नहीं कर पाती। नतीजा या तो वे जल्दी-जल्दी बीमार पडऩे लगती हैं या फिर कई बार किसी गंभीर बीमारी का शिकार भी हो सकती हैं।
हालांकि महिलाओं में भी अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता आई है। एक सर्वे की मानें, तो देश में लगभग 77 प्रतिशत महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं। उन्हें इस बात की चिंता रहती है कि वे स्वस्थ कैसे रहें। एक अन्य शोध में यह भी बात सामने आई है कि 50 फीसदी कामकाजी महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति इसीलिए जागरूक रहती हैं कि कहीं उनके करियर में कोई बाधा न आ जाए, वहीं 40 फीसदी महिलाएं स्वस्थ रहने के प्रति जागरूक होती हैं।
यदि आप चाहती हैं कि आप फिट रहें ताकि आप अपने करियर और परिवार की देखभाल अच्छी तरह कर सकें, तो इसके लिए आपको अपनी अतिरिक्त देखभाल करनी होगी। आइए जानें कुछ टिप्स जिनको अपनाकर आप सेहतमंद और चुस्त-दुरुस्त रह सकती हैं।
सेहतमंद रहने का सबसे आसान और बढिय़ा उपाय है व्यायाम। आप अपनी दिनचर्या में व्यायाम को शामिल करें। इसके लिए आपको सुबह-सुबह 30 से 45 मिनट टहलना चाहिए और कुछ व्यायाम भी करनी चाहिए, जिससे आपमें चुस्ती बनी रहें और आप बीमारियों से भी बची रहें।
फिट रहने के लिए वजन पर नियंत्रण करना बेहद जरूरी है, क्योंकि मोटापा कई बीमारियों की जड़ होता है। इसीलिए आपको चाहिए कि यदि आपका वजन बढ़ा हुआ है या आप मोटी हैं, तो आप वजन कम करने के लिए नियमित अतिरिक्त व्यायाम करें, साथ ही शारीरिक सक्रियता बढ़ाएं।
सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन लीटर पानी पीएं और अधिक से अधिक तरल पदार्थ जैसे जूस, सूप, नींबू पानी इत्यादि लें।
आप को सेहतमंद रहने के लिए अपना डायट चार्ट बनाना होगा, जिसके तहत आप कम कैलोरीज और अधिक पौष्टिक भोजन को शामिल करेंगी। ऐसे में आप प्रतिदिन पूरे दिन में कम से कम 2000 कैलोरीज ले सकती हैं। डायट चार्ट में आप सुबह का नाश्ता पर्याप्त और रात का हल्का रखने का प्रयास करें।
महिलाओं को प्रोटीन, विटामिन और कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है। ऐसे में आपको प्रतिदिन दूध पीना चाहिए। आप चाहे तो पनीर और अंडे का सेवन भी कर सकती हैं। इससे आपको प्रोटीन और कैल्शियम भरपूर मात्र में मिलेगा।
महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि वे अपनी डाइट में हरी सब्जियां, सलाद, मौसमी फल और ड्राई फ्रूट्स को शामिल करें। इससे न सिर्फ वे सेहतमंद रह सकती हैं, बल्कि उनकी कार्यक्षमता भी बढ़ेगी और रोग उनसे दूर रहेंगे।
फिट रहने के लिए आपको चटपटे और मसालेदार खाने को छोडऩा चाहिए। इसके साथ ही आपको जंकफूड और बाहर के खाने को भी भूलना होगा, तभी आप फिट रह पाएंगी।
संभव हो तो आप रात में खाना जल्दी खाएं और रात को खाने के बाद कम से कम 30 मिनट टहलें।
यदि आपको जल्दी गुस्सा आता है या फिर जल्दी ही आप तनाव में आ जाती हैं तो इसके लिए जरूरी है आप अपने आपको समय दें। यानी आप अपने पसंदीदा कामों को करने के लिए समय निकालें। यदि आप संगीत सुनने, डांस करने, कोई गेम खेलने इत्यादि का शौक रखती हैं, तो उसे पूरा करें। इससे आप पाएंगी कि तनाव खुद-ब- खुद आपसे  दूर हो रहा है।
स्वस्थ रहने के लिए आपको शारीरिक रूप से सक्रिय रहना जरूरी हैं। इसके साथ ही यदि आपको बेड टी की आदत है तो इसे भी आपको बदलना होगा। दूध वाली चाय के बजाय, ग्रीन टी, लेमन टी इत्यादि लेना चाहिए।




राष्ट्रीय पक्षी मोर


तुम भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के बारे में जरूर जानते होगे, जो दुनिया भर में सबसे सुंदर पक्षियों में से एक माना जाता है। इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है। अपने सिर पर मुकुट के समान बनी कलगी और रंग-बिरंगी इंद्रधनुषी सुंदर तथा लंबी पूंछ से यह जाना जाता है। आंख के नीचे सफेद रंग, चमकीली लंबी गर्दन इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। बारिश के मौसम में बादलों से भरे काले आकाश के नीचे जब यह अपने पंख शानदार तरीके से फैलाकर नृत्य करता है, तो कई मोरनियों के दिलों पर राज करता है। मोर के इन्हीं गुणों के कारण भारत सरकार ने 26 जनवरी 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया।
यह माना जाता है कि मोर सबसे पहले भारत, श्रीलंका और उसके आसपास के देशों में पाए गए, जिन्हें भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अंग्रेज पूरी दुनिया में ले गए। आज मोर की मुख्य रूप से दो प्रजातियां पाई जाती हैं- नीला मोर भारत, नेपाल और श्रीलंका में और हरा मोर जावा, इंडोनेशिया तथा म्यांमार में पाया जाता है। इसके अलावा अफ्रीका के वर्षावनों में कांगो मोर भी मिलते हैं।
मोर को दुनिया भर में सबसे सुंदर पक्षियों में से एक माना जाता है। इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है। अपने सिर पर मुकुट के समान बनी कलगी और रंग-बिरंगी इंद्रधनुषी सुंदर तथा लंबी पूंछ से यह जाना जाता है। आंख के नीचे सफेद रंग, चमकीली लंबी गर्दन इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। बारिश के मौसम में बादलों से भरे काले आकाश के नीचे जब यह अपने पंख शानदार तरीके से फैलाकर नृत्य करता है तो कई मोरनियों के दिलों पर राज करता है। मोर के इन्हीं गुणों के कारण भारत सरकार ने 26 जनवरी 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया।
भारत में मोर हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, वृंदावन और तमिलनाडु में ज्यादा पाए जाते हैं। मोर दुनिया भर में उडऩे वाले विशाल पक्षियों में से एक है। नर मोर की लंबाई उसकी पूछ सहित लगभग साढ़े 5 फीट तक होती है, जिसमें उसकी पूंछ ही उसकी कुल लंबाई की तकरीबन 60 प्रतिशत होती है। ऊंचाई के हिसाब से देखा जाए तो आमतौर पर मोर 2 फीट ऊंचे होते हैं, लेकिन जब वे अपने पंख फैलाते हैं तो उनकी ऊंचाई बढ़ जाती है।
एक वयस्क मोर का वजन 4 से 6 किलोग्राम होता है, जबकि मोरनी नर मोर से काफी छोटी, तकरीबन 1 मीटर लंबी होती है। मोर का वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टेटस (लिनिअस) है। इसे अंग्रेजी में ब्ल्यू पीफॉल या पीकॉक और संस्कृत में मयूर कहते हैं।
मयूर परिवार में मोर एक नर है और मादा को मोरनी कहा जाता है। इनमें मोर आकार में अधिक बड़े और आकर्षक होते हैं। इसका शरीर चमकदार नीले रंग का होता है, जबकि मोरनी का शरीर ब्राउन रंग का होता है और उनके पास मोर के समान आकर्षक पूंछ नहीं होती। मोर की 200 लंबे-लंबे पंखों वाली शानदार पूंछ होती है, जिस पर नीले-लाल-सुनहरी रंग की आंख की तरह के चंद्राकार निशान होते हैं। ये अपनी पूंछ धनुषाकार में ऊपर की ओर फैलाकर नाचते हैं।
नाचते समय परों के मेहराब पर ये निशान बहुत अधिक मनमोहक लगते हैं। बारिश होने से पहले नर मोर नाचना आरंभ कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि मोरों को बारिश का पूर्वाभास हो जाता है और वे खुशी में नृत्य करते हैं। मोर कई बार मोरनी के साथ रोमांटिक नृत्य भी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मोरनियां मोर के आकार, रंग और पूंछ की सुंदरता से बहुत आकर्षित होती हैं। मोर को गर्मी और प्यास बहुत सताती है, इसलिए नदी किनारे के क्षेत्रों में रहना इसे भाता है। मोर बहुविवाही हैं और एक समय में वे 6 मोरनियों के साथ समूह बना कर रहते हैं। ये अकसर घनेरी झाडिय़ों के बीच जमीन पर घोंसला बनाते हैं, जिन्हें ये पत्तियों और डंडियों से बनाते हैं। रात को ये घने पेड़ों की डालियों पर खड़े-खड़े ही सोते हैं।
मोरनी साल में जनवरी से अक्टूबर के बीच अंडे देती है। एक बार में वह 3 से 5 अंडे देती है। अंडा सेने और बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी अकेले मोरनी की ही होती है। अंडे से चूजे निकलने में 25 से 30 दिन लगते हैं। बचपन में नर और मादा मोर की पहचान मुश्किल होती है। एक साल का होने के बाद ही नर की पूंछ लंबी होने लगती है। मोर के बच्चों के थोड़ा बड़े होने पर उनके सिर पर कलगी आती है। एक मोर औसतन 20 साल जिंदा रहते हैं।
मोर मुख्य रूप से घास-पात,ज्वार, बाजरा, चने, गेहूं, मकई जैसे अनाज खाते हैं। यह बैंगन, टमाटर, प्याज जैसी सब्जियां भी खाते हैं। अनार, केला, अमरूद आदि भी इसके प्रिय भोजन हैं। मोर कीड़े-मकोड़े, चूहे, छिपकली, सांपों आदि को भी चाव से खाते है। ये सांपों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। कहावत है कि जहां मोर की आवाज सुनाई पड़ती है, वहां नाग भी नहीं जाता।
मोर भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखते हैं। इन्हें न केवल धार्मिक तौर पर बल्कि संसदीय कानून 'भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972Ó के तहत सुरक्षा प्रदान की गई है। मोर का महत्व भारत की संस्कृतियों से जुड़ा है। बहुत पहले प्राचीन हिंदू धर्म में इंद्र की छवि मोर के रूप में चित्रित की गई थी। भगवान कृष्ण तो अपने सिर पर मोरपंख लगाते थे। दक्षिण भारत में मोर भगवान कार्तिकेय के वाहन के रूप में जाना जाता है। विभिन्न इस्लामी धार्मिक इमारतों की नक्काशी के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता था। कई पुरानी इमारतों में आज भी इस तरह के डिजाइन वाले काम देखे जा सकते हैं।
ईसाई धर्म में भी मोर का विशेष स्थान है। इसे पुनरुत्थान का प्रतीक भी माना जाता रहा है। इसके अलावा भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य मोर के नृत्य की तर्ज पर होते हैं, इसलिए हमारी भारतीय संस्कृति में मोर का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
मोर को सुंदरता के साथ-साथ शुभ का प्रतीक भी माना जाता है। बच्चे अपने पास मोरपंख रखते हैं। भारत सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं। मोर को तुम अपने घर के पास के चिडिय़ाघर में जाकर देख सकते हो।






बिना चीर-फाड़, बिना दवा नीरोग करे रिफ्लेक्सोलॉजी


दवाई खाना किसे अच्छा लगता है? हम में से कोई भी ऐसा नहीं होगा जो दवा का प्रयोग करना चाहेगा। दूसरी ओर कोई बीमारी होने पर दवा लेनी भी पड़ती है। दवाएं तथा अन्य डॉक्टरी खर्च जेब पर भारी तो होता ही है साथ ही यह भी देखा गया है कि दवाएं अकसर रोग को दबा देती हैं जो समय पाकर पुन: उभर आता है।
पैंतीस वर्षीया रश्मि एक प्राइवेट कम्पनी में काम करती हैं। कुछ समय पहले तक उनकी समस्या थी माइग्रेन। बहुत से डॉक्टरों को दिखाने और बहुत सी दवाओं के प्रयोग के बाद भी उन्हें आराम नहीं मिला। फिर उन्होंने रिफ्लेक्सोलॉजी का सहारा लिया। आज वे इस समस्या से पूरी तरह निजात पा चुकी हैं।
रिफ्लेक्सोलॉजी उपचार की एक सुरक्षित पद्धति है जो प्राचीन समय से ही हमारे देश में प्रचलित है। विभिन्न झंझटों से परे इलाज की यह पद्धति बिल्कुल प्राकृतिक एवं सुविधाजनक है। यहां न कड़वी दवाएं हैं और न ही चीर फाड़। यह विधि शरीर में उपस्थित रोग प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय करके ही रोगों का उपचार करती है।
इस पद्धति में दबाव का बहुत महत्व है। हमारे पूरे शरीर के उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रकृति ने कुछ रिफ्लैक्स एरिया बनाए हैं। अंगुलियों तथा अंगूठे की सहायता से इस रिफ्लैक्स एरिया के बिन्दु विशेष पर दबाव डालकर इच्छित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। ये रिफ्लैक्स एरिया हथेली, तलवे तथा कुछ अन्य भागों में होते हैं जिन पर दबाव डालकर शरीर को स्वस्थ किया जाता है।
इस विधि से उपचार द्वारा न केवल रोग दूर होता है अपितु इससे शरीर में शक्ति तथा स्फूर्ति का संचार भी होता है। हमारी शारीरिक क्रियाएं किसी एक अंग की गतिविधि का परिणाम नहीं होतीं बल्कि विभिन्न अंगों के तालमेल से इन क्रियाओं का संचालन होता है। यदि शरीर का एक भी अंग रोगी हो जाता है तो पूरे शरीर का तालमेल बिगड़ जाता है और पूरे शरीर में कष्ट होता है ऐसे में यदि अंग विशेष के रोग को ठीक कर दिया जाए तो पूरा शरीर तंदुरुस्त होता है।
रिफ्लेक्सोलॉजी न केवल रोगों का उपचार करती है अपितु यह शरीर की सफाई भी करती है। होता यह है कि हमारे शरीर में विभिन्न टाक्सिन्स जमा हो जाते हैं, वास्तव में यही जहरीले तत्व ही रोग की जड़ भी होते हैं। दबाव डालने से शरीर में एक रासायनिक क्रिया शुरू हो जाती है जिससे क्रिस्टल के रूप में जमे ये टाक्सिन्स घुलकर मल-मूत्र तथा पसीने के जरिए शरीर से बाहर निकल जाते हैं। जहरीला पदार्थ निकल जाने से शरीर में स्वस्थ रक्त की सप्लाई शुरू हो जाती है और रोग दूर हो जाता है।
इस विधि से इलाज में किसी डाइग्नोसिस की जरूरत नहीं होती बस रोगी को दबाव की कुछ सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं। सिटिंग की अवधि 25 मिनट से लेकर 60 मिनट तक हो सकती है। कितनी सिटिंग्स लेनी पडेंग़ी? अर्थात् सिटिंग्स की संख्या रोग की जटिलता पर निर्भर करती है। एकदम साफ-सुधरी इस चिकित्सा पद्धति की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पद्धति के कोई साइड इफैक्ट्स नहीं हैं। किसी भी चीरफाड़ और दर्द से रहित इस पद्धति को अपनाने के बाद रोगी पहले से अच्छा महसूस करने लगता है परंतु रोग को जड़ से मिटाने के लिए समय और धैर्य दोनों की आवश्यकता होती है।
पीठ के दर्द, जोड़ों के दर्द, विभिन्न अस्थि रोग, साइटिका, स्लिप डिस्क, चक्कर आना, एलर्जी, दमा, माइग्रेन, अनिद्रा, विभिन्न अंगों में सूजन, तनाव, अवसाद, मूत्र संबंधी रोगों, मासिक धर्म संबंधी समस्याओं, अपच, हाथ-पैर सुन्न पडऩा या ठंडे होना आदि रोगों का इलाज इस पद्धति से संभव है। सिरोसिस, उच्च या कम रक्तचाप, पार्किंसस तथा फोबिया के इलाज में भी यह पद्धति कारगर सिद्ध होती है। स्पीच संबंधी कठिनाइयां जैसे हकलाना या बोलने से किसी अन्य प्रकार की कठिनाई को भी इस विधि द्वारा दूर किया जा सकता है। थायरायड ग्रंथि में उत्पन्न किसी अनियमितता को दूर करने के लिए भी इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
यह उपचार लेते समय खानपान के मामले में मरीज को अनेक सावधानियां रखनी पड़ती हैं। मरीज को सफेद चीनी, बारीक पिसा आटा, पॉलिश किए हुए चावल, काफी, शीतल पेय, खट्टे खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए क्योंकि बाजार में उपलब्ध ऐसे किसी भी खाद्य पदार्थ में कैलोरी तो होती है लेकिन ये शरीर में जहरीले पदार्थ उत्पन्न करते हैं जिससे इलाज में बाधा आती है।
खानपान में परहेज बरत कर आप भी इस हानि रहित चिकित्सा पद्धति का लाभ उठा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इलाज करवाने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आप जिस चिकित्सक से उपचार करवा रहे हों वह अपने विषय का विशेषज्ञ हो अन्यथा इच्छित लाभ नहीं मिल पाता।




ड्रैकुला थेरेपी : थम जाएगी उम्र


ब्लड निकालकर उसे वैंपायर्स के लिए कलेक्ट करना तो हम सबने सुना है, लेकिन उसे ब्यूटी के लिए यूज करना थोड़ा नया कॉन्सेप्ट है। कॉस्मेटोलॉजी में अब अपने ही ब्लड को इंजेक्ट करके रिंकल्स को दूर किया जा रहा है। आइए जानते हैं इस ट्रेंड के बारे में : 
बोटोक्स और कॉस्मेटिक फिलर्स के बाद अब बारी है, ड्रैकुला थेरेपी की। आपके चेहरे पर उम्र का असर न दिखे, इसके लिए आपके ही ब्लड को आपके फेस पर इंजेक्ट किया जाता है। गौरतलब है कि ड्रैकुला थेरेपी में बगैर किसी सर्जरी के बेहद यूथफुल लुक मिलता है। बता दें कि इस थेरेपी को पहली बार ब्रिटेन में इंट्रोड्यूस किया गया था। लंदन-बेस्ड फ्रेंच कॉस्मेटिक डॉक्टर डेनियल सिस्टर का यह कॉन्सेप्ट अब इंडिया में अपने रिजल्ट की वजह से पॉपुलर हो रहा है। इस थेरेपी के बाद बेबी-सॉफ्ट और नेचरल स्किन मिलती है। दरअसल, इस थेरेपी में आपके ही प्लेटलेट रिच प्लाज्मा को इंजेक्ट किया जाता है। इसे इंजेक्ट करने से स्किन रिजेनेरेट हो जाती है और साथ में रिजुनेवेट भी। अगर आपको सिंथेटिक प्रॉडक्ट्स से प्रॉब्लम है, तो यह आपके लिए बेहतर है।
क्या है प्रोसेस 
फोर्टिस हॉस्पिटल के सीनियर कॉस्मेटिक सर्जन डॉ. अजय कश्यप बताते हैं कि इस नॉन-सर्जिकल एज डिफाइंग ट्रीटमेंट में डॉक्टर आपका ब्लड निकालते हैं। फिर उसे उसे रेड ब्लड सेल्स, सीरम और प्लेटलेट्स में सेपरेट कर देते हैं। फिर इसे छोटे सीरिंज नीडल से पेशंट के फेस में इंजेक्ट किया जाता है। इसके बाद नए यंगर सेल्स बनने की प्रोसेस शुरू हो जाती है। चूंकि इस प्रोसेस में कोई फॉरेन बॉडी इंजेक्ट नहीं की जाती, इसलिए यह सेफ है। यही नहीं, जरूरत पडऩे पर इसे दोबारा भी करवाया जा सकता है।
बोटोक्स से अलग 
अगर बोटोक्स की बात करें , तो यह एक नर्व पारालिटिक एजेंट है। यह फेशियल लाइंस के लुक को इंप्रूव तो करता है , लेकिन सेल्स को रिजेनेरेट नहीं करता , जबकि ड्रैकुला थेरेपी से स्किन की कंडीशनिंग हो जाती है।
हेयर फॉल में भी 
ड्रैकुला थेरेपी का यूज बालों की प्रॉब्लम्स में भी किया जाता है। स्किन स्पेशलिस्ट डॉ . रोहित बतरा बताते हैं कि अगर इसे स्कैल्प में इंजेक्ट किया जाता है , तो बहुत अच्छा रिजल्ट मिलता है। इसका रिजल्ट इंस्टैंट नहीं दिखता , लेकिन आपकी स्किन बिल्कुल इंप्रूव हो जाती है। वैसे , इसे स्टिमुलेटेड सेल्फ सीरम स्किन थेरेपी भी कहते हैं। चूंकि यह अपना ही ब्लड है , इसलिए कोई एलर्जी भी नहीं होती। हां , इसे कराने के बाद एक हफ्ते तक आप सोशलाइज न करें , तो बेहतर रहता है।
हिट है दिल्ली में 
दिल्ली में 35 से लेकर 50 की एज ग्रुप की महिलाएं इस थेरेपी को पिछले कुछ महीनों से आजमा रही हैं। वैसे , कॉस्मेटिक डर्मेटॉलजिस्ट डॉ . दीप्ति ढिल्लन की मानें , तो दिल्ली में फिलहाल इसे सेलिब्रिटीज ज्यादा करा रहे हैं। हां , इंटरनेट से दिल्ली वालों को इस बारे में जानकारी मिल रही है। वैसे , इस थेेरेपी के लिए स्किन पर बहुत ज्यादा रिंकल्स आने का इंतजार न करें , बल्कि हल्के रिंकल्स में ही आजमाएं। आपको बेहतर रिजल्ट मिलेंगे। इस बात का खास ध्यान रखें कि आप इसे किसी एक्सपर्ट से ही कराएं।
- ट्रेंड कॉस्मेटॉलजिस्ट से ही करवाएं यह थेरेपी।
- चूंकि थेरेपी के बाद स्किन थोड़ी सेंसिटिव हो जाती है , इसलिए हमेशा घर से निकलने से पहले सनस्क्रीन का यूज जरूर करें।
- आप चाहें , तो दो साल बाद इस थेरेपी को रिपीट भी कर सकती हैं।
कितना है खर्च 
हालांकि यह टेक्नीक हमारे यहां अभी नई है , लेकिन बहुत तेजी से पॉपुलर हो रही है। इस थेरेपी के हर सेशन में आपका 25,000 से लेकर 30,000 रुपये तक का खर्च आ सकता है।





प्राचीन शहर और खूबसूरत नजारे देखिए धर्मशाला में


एक पुरानी फिल्म का मशहूर गीत है ठंडी हवाएं, लहरा के छाएं...। खूबसूरत हिल स्टेशन धर्मशाला जब आप पहुंचेंगे तो प्राकृतिक छठा के बीच झरने के बीच ठंडी हवा के झोंके पाकर आप भी यह गीत गुनगुना उठेंगे। वाकई छुट्टियों में सैर के लिए यह बेहतरीन जगह है, जहां आप घने जंगल तो पाते ही हैं, बर्फबारी का भी आनंद लेते हैं। यहां का शांत वातावरण असीम सुकून देता है। यहीं पर है दलाई लामा का आश्रम स्थल। देवदार और पाइन के घने वृक्ष के साथ मैदानी इलाका और बेहतरीन स्नोलाइन कुल मिलाकर धर्मशाला को एक शानदार प्राकृतिक स्थल बनाती है।
धर्मशाला काफी चौड़े भाग में है। मगर यह दो हिस्से में बंटा है। निचला धर्मशाला 1350 मीटर में फैला है। यह व्यस्त व्यापारिक केंद्र है। ऊपरी धर्मशाला 1830 मीटर में है। जिसके साथ उपनगर मैकलियोडगंज और फोरसीथगंज है। उन्नीसवीं सदी में धर्मशाला को ब्रिटिश शासक लार्ड एलगिन ने अपनी आरामगाह बनाया था। संत जॉन नामक चर्च यहां के बीहड़ों में स्थित है। धर्मशाला में बड़ी संख्या में तिब्बती लोगों ने भी अपने घर बना रखे हैं। यहां कई तरह के प्राचीन मंदिर आप देख सकते हैं। जैसे ज्वालामुखी, वृजेश्वरी और चामुंडा।
धर्मशाला में कई दर्शनीय स्थल हैं, जैसे मोनेस्ट्री और म्यूजिक। प्राचीन शहर और खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य धर्मशाला को आकर्षक बनाते हैं। यहां की हर ऋतु अपने आप में खास है। शहर की शुरुआत में ही आप वार मेमोरियल देख सकते हैं। इसे कांगड़ा आर्ट म्यूजियम भी कहते हैं। यहां कोतवाली बाजार में आप पांचवीं सदी की कला और दस्तकारी को देख सकते हैं। कांगड़ा की प्रसिद्ध पेंटिग्स, मूर्तिकला, मिट्टी के बरतन और मानव-विज्ञान से संबंधित चीजें आपको इस बाजार में देखने को मिल जाएंगी। इस बाजार के ठीक नीचे पुस्तकालय है।
धर्मशाला से 11 किलोमीटर दूर है डल झील, जो चारों तरफ से देवदार के वृक्षों से घिरी है। यह मनोरम पिकनिक स्पॉट है। आठ किलोमीटर की दूरी पर है धर्मशाला का खूबसूरत संत जॉन चर्च। इसे खूबसूरत स्टोन से बनाया गया है, जो देवदार की छाया में खूबसूरत लगती है। 1863 में लार्ड एलगिन की मृत्यु धर्मशाला में हुई तो उनकी कब्र भी यहीं बना दी गई। मैकलियोडगंज को छोटा ल्हासा भी कहा जाता है। यहीं दलाई लामा का आश्रम है, जिसमें बुद्ध के जमाने की झलक दिखती है।
धर्मशाला से 11 किलोमीटर की दूरी पर भागसुनाथ प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट है। धर्मकोट कांगड़ा घाटियों के ऊपर है। यहां से प्रकृति का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। धर्मशाला का मौसम एक समान नहीं होता। सर्दियों में जमा देने वाला तापमान होता है। इसलिए अगर आप ठंड में यहां बर्फ गिरते देखना चाहते हैं, तो गरम कपड़े ले जाएं। गर्मियों में जहां धर्मशाला का तापमान सामान्य होता है, वहीं मानसून के दौरान यहां जम कर बारिश होती है। जनवरी से फरवरी तक आप यहां स्नोफॉल का मजा ले सकते हैं। यहां तिब्बतियों द्वारा मनाया जाने वाला नया वर्ष देखने लायक होता हैं। धर्मशाला का दिन जहां चमकदार होता है, वहीं रातें काफी सर्द होती हैं। धर्मशाला आप हवाई मार्ग और सड़क यातायात के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं।







मुस्कुराइये.. आप 'यू ट्यूबÓ में हैं!

अभी कुछ साल पहले की ही बात है। यू ट्यूब सबसे तेजी से बढ़ती वेबसाइट के रूप में सामने आया। तभी गूगल ने इसे टेक-ओवर कर लिया। आज यू ट्यूब में एक पूरी दुनिया है। यह एक ऐसा संसार है, जहां सब कुछ है। उनके अपने सेलिब्रिटीज हैं, बैंड्स हैं, कथाकार और निर्माता हैं।
आज कम कीमतों के डिजिटल कैमरे और मोबाइल फोन आ गए हैं। इससे आसानी से आप वीडियो बनाकर यू ट्यूब पर डाल सकते हैं। राम जाने कौन सा वीडियो आपको या आपके परिवार में से किसी को सुपरस्टार बना दे। इस हफ्ते हम आपको सुपरस्टार बनने के ऐसे ही आसान तरीके बता रहे हैं। किस तरह आप भी अपना वीडियो बनाकर यू ट्यूब पर मौका पा सकते हैं। आप यहां अपना यू ट्यूब चैनल बना सकते हैं, साथ ही इससे आप कमाई भी कर सकते हैं। कैसे, यहां हम इससे जुड़ी जानकारी दे रहे हैं।
स्टेप:1
अपनी डिवाइस चुनें
जब डिजिटल कैमरे का दौर नहीं था, तब कैमकॉडर्स हुआ करते थे। इसमें टेप में विजुअल रिकॉर्ड किया जाता था। यदि आपके पास अभी ऐसा कोई टेप है तो एवर मीडिया सी-039 डिजिटल सिग्नल कन्वर्टर का अपने कंप्यूटर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
इससे आप भी अपना कोई पुराना वीडियो कैमरा कंप्यूटर पर देख सकेंगे। एसडी कार्ड वाले कैमरे या सेल फोन में भी इसकी सुविधा दी जाती है। यानी आपके पास यदि बेटी के म्यूजिक फेस्ट या बेटे के फुटबॉल मैच का वीडियो है तो उसे यू ट्यूब का हिस्सा बना सकते हैं।
स्टेप:2
खुद करें एडिटिंग
यदि आपके पास एप्पल कंप्यूटर (मैक बुक, आई मैक या मैक बुक एयर) है तो आप आई मूवी भी डाल सकते हैं। यदि आपके पास विंडो (विंडो 7 से लेकर उससे ज्यादा) पीसी है तो उसमें आपको विंडोज मूवी मेकर इंस्टॉल करना होगा।
इससे आप अपने कंप्यूटर पर मूवी फाइल पा सकते हैं और इस सॉफ्टवेयर से शूट की गई फिल्म में शुरुआती एडिटिंग कर सकते हैं। जैसे पात्र परिचय, थप्पड़ मारने के दृश्य को भी ध्वनि के साथ जोड़ सकते हैं। इसके अलावा किसी दृश्य में गीत-संगीत भी जोड़ सकते हैं।
साथ ही पिनेकल 16 जैसे आप अन्य महंगे एप्लीकेशन भी पा सकते हैं। यदि आपके पास आई फोन या आईपैड है तो सिर्फ 550 रुपये में आईओएस प्लेटफॉर्म उपलब्ध है, जहां आप अपने फोन से ही कोई मूवी संपादित कर सकते हैं। यदि आप इन सबमें निवेश नहीं करना चाहते हैं या इनके इस्तेमाल में कठिनाई महसूस करते हैं तो आपके लिए यू ट्यूब की ओर से फ्री एडिटर सॉफ्टवेयर उपलब्ध है। इससे आप वीडियो को छोटा कर सकते हैं या उसमें गाने या कुछ शब्दावली जोड़ सकते हैं।
स्टेप:3
जीमेल से करें लिंक
यदि आपके पास जी मेल अकाउंट है तो आप पहले से ही एक कदम आगे हैं। यदि आपके पास जीमेल आईडी नहीं है तो आप कुछ पलों में एक एकाउंट बना सकते हैं। यह गूगल की सभी सुविधाओं के लिए उपयोगी रहेगा। जी मेल पर आईडी होगी तो आप बड़ी आसानी से एक क्लिक पर यू ट्यूब लिंक पर लॉगिन करके वीडियो अपलोड कर सकते हैं।
यदि आप सेल फोन से रिकॉर्ड की हुई वीडियो को अपलोड कर रहे हैं और आपके फोन में यू ट्यूब एप्लिकेशन है, वैसे आजकल स्मार्टफोन में यह विकल्प दिया जा रहा है। आप इसमें अपने गूगल अकाउंट से साइन इन करके अपने द्वारा शूट किया हुआ वीडिया अपलोड कर सकते हैं। ध्यान रखें कि यदि वीडियो फाइल बड़ी है तो इसे अपलोड करने में वक्त लग सकता है। हो सकता है कि यह आपके फोन में इस्तेमाल हो रहे डाटा कार्ड के नियत समय से ज्यादा वक्त ले। इससे आपका बिल बढ़ सकता है।
एक बार जब आपका वीडियो अपलोड हो जाता है तो यू ट्यूब खुद इसे फॉरमैट में ढालना शुरू कर देता है। वह आपको कई जानकारियां देने को भी कहेगा। जैसे आपने इसे कहां शूट किया और इसमें दिख रहे चेहरों या दृश्य की पहचान क्या है आदि। फिर जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो यू ट्यूब आपको एक मेल भेजेगा, जिसमें आपके वीडियो की लिंक दी जाएगी। मान लीजिए आपको यू ट्यूब एडिटर का इस्तेमाल खुद करना है तो आपको सबसे पहले वीडियो अपलोड करना होगा। यदि आप एपिल्स आई मूवी या माइक्रोसॉफ्ट मूवी मेकर या अन्य सॉफ्टवेयर पर एडिटिंग करना चाहते हैं तो अपलोड करने से पहले एडिट कर लें।



स्टेप:4
अपना चैनल शुरू करें
आपका यू ट्यूब यूजरनेम ही आपका चैनल नेम होगा। यदि आप इसे बदलना चाहते हैं तो अपने कंप्यूटर ब्राउजर में यू ट्यूब डॉट कॉम के साथ अपना नाम टाइप करें। फिर गो टू माई चैनल के विकल्प पर जाकर अपनी डिटेल को बदल दें। अब जब आपका चैनल तैयार है तो आपको इससे कमाई भी शुरू हो सकती है। इसके लिए आपको यू ट्यूब पार्टनर पर साइन अप करना होगा। यदि आप यू ट्यूब के नियम-शर्तों पर खरे उतरते हैं तो वेबसाइट आपके वीडियो का मूल्यांकन करती है। यदि आप चयनित होते हैं तो गूगल आपको इसके लिए तय कीमत अदा करती हैं। 

Thursday, April 25, 2013

भारत में बढ़ रही है ऑर्गेनिक कपड़ों की मांग


स्वास्थ्य एवं त्वचा के लिए बेहतर एवं पर्यावरण अनुकूल होने के कारण देश में बच्चों के लिए भी जैविक (ऑर्गेनिक) कपड़ों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इस प्रकार के जैविक कपड़े एलर्जी मुक्त, मौसम के अनुकूल और ज्यादा समय तक टिकने वाले होते हैं। आर्गेनिक खेती के जरिये उगाई गई कपास से ये कपड़े तैयार किए जाते हैं।
 
पर्यावरण अनुकूल कपड़े बनाने वाली प्रमुख कंपनी ग्रोन स्टॉकहोम के मुख्य कार्यपालक अधिकारी दीपक अग्रवाल ने कहा कि अब लोगों की पहुंच है, अब वे समझ चुके हैं कि केवल सूती कपड़े ही पर्यावरण के अनुकूल और सुरक्षित नहीं हैं।
 
उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए जैविक कपड़ों की मांग बढ़ने का कारण यह भी है कि अब माताएं अपने बच्चों को लेकर ज्यादा चिंतित रहती हैं और वे बच्चों को रसायन वाली डाई के प्रभाव से बचाना चाहती हैं। परंपरागत कपास में इस्तेमाल रसायन का एक समय के बाद बच्चों की त्वचा पर असर पड़ने लगता है।
 
उन्होंने बताया कि देश में जैविक कपास का उत्पादन रसायन के इस्तेमाल के बगैर किया जाता है, जबकि इनको डाई करने में एक निश्चित और सुरक्षित स्तर तक रसायन इस्तेमाल होता है।



...तो ये भी है दिल की बीमारियों का कारण


आम तौर पर लोग थायरॉइड की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन इसके कारण शरीर में कोलेस्ट्रॉल और लिपोप्रोटीन का स्तर अनियमित हो जाता है, जिससे दिल की बीमारियां, ह्दयाघात, अवसाद और आर्थरोस्क्लेरोसिस की आशंका बढ़ जाती है।
 
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डॉक्टर रवि मलिक ने बताया कि गले में पाए जाने वाली अंत:स्त्रावी ग्रंथि थायरॉइड से निकलने वाला हार्मोन थायरॉक्सिन हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है। किसी कारणवश इस हार्मोन का उत्पादन कम या ज्यादा होने लग जाए तो थायरॉइड की समस्या हो जाती है। थायरॉक्सिन का उत्पादन कम होने पर व्यक्ति को हाइपोथायरॉइड और उत्पादन अधिक होने पर हाइपरथायरॉइड की समस्या हो जाती है।
 
उन्होंने बताया आम तौर पर लोगों को हाइपोथायरॉइड की समस्या होती है। दवाओं से इसे नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसका समय रहते पता चलना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वरना यह बीमारी खतरनाक हो सकती है। जिन बच्चों को हाइपोथायरॉइड की समस्या होती है उनका मानसिक विकास बाधित होने की आशंका अधिक होती है, क्योंकि थायरॉक्सिन हार्मोन दिमाग के विकास के लिए बहुत जरूरी है।
 
इंडियन थायरॉइड सोसायटी के अध्यक्ष तथा कोच्चि स्थित अमता इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ आर वी जयकुमार ने बताया यह कड़वा सच है कि हाइपोथायरॉइड के चलते कोलेस्ट्रॉल और लिपोप्रोटीन का स्तर अनियमित हो जाता है और करीब 90 फीसदी मरीज डिस्लिपीडीमिया के शिकार हो जाते हैं।
 
डॉक्टर जयकुमार ने बताया डिस्लिपीडीमिया के कारण अवसाद, आर्थरोस्क्लेरोसिस, हदयाघात और दिल की अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। थायरॉइड हार्मोन शरीर में लिपिड सिंथेसिस, मेटाबोलिज्म (चयापचय) और अन्य शारीरिक क्रियाओं में मुख्य भूमिका निभाता है। डिस्लिपीडीमिया की वजह से कोलेस्ट्रॉल, लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल आदि का स्तर बढ़ जाता है जो खुद शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण के लिए दवाएं दी जाती हैं लेकिन थायरॉइड का नियंत्रण इसमें कारगर हो सकता है।
 
राजधानी के मेट्रो हॉस्पिटल के डॉक्टर अनुपम जुत्शी ने बताया थायरॉइड की समस्या के कारण अनुवांशिकी, पर्यावरणीय या पोषण आधारित हो सकते हैं। यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन आम तौर पर 20 से 40 साल के लोगों को इसकी आशंका अधिक होती है।

डॉक्टर जयकुमार ने बताया थायरॉइड की समस्या ऑटोइम्यून डिजीज की देन भी होती है। किसी कारणवश थायरॉइड ग्रंथि की कोशिकाएं और उतक क्षतिग्रस्त हो जाएं या ये कोशिकाएं और उतक स्वत: ही क्षतिग्रस्त हो जाएं तो थायरॉक्सिन हार्मोन के उत्पादन पर असर पड़ता है। कभी थायरॉइड ग्रंथि में गांठ बन जाती हैं जिससे हामर्ोन उत्पादन प्रभावित हो जाता है। हमारे शरीर को उर्जा उत्पादन के लिए थायरॉइड हार्मोन की निश्चित मात्रा चाहिए। इसमें एक बूंद की कमी या अधिकता उर्जा स्तर को गहरे तक प्रभावित करती है।
 
डॉक्टर मलिक ने बताया थायराइड की समस्या का स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन समय समय पर जांच तथा दवाओं से इसे नियंत्रित रखा जा सकता है और लोग सामान्य जीवन बिता सकते हैं।




कैंसर निरोधी प्रोटीन की हुई खोज


वॉशिंगटन, एजेंसी
कैंसर की गांठों को मारने में इस्तेमाल होने वाले कई तरीके प्रतिरोधक कोशिकाओं को भी मार सकते हैं, लेकिन अनुसंधानकर्ताओं ने अब एक ऐसे प्रोटीन की खोज की है, जो गांठों को दोबारा पैदा होने से रोकने में मददगार हो सकता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा के अनुसंधानकर्ताओं ने स्तन व गर्भाशय के कैंसर सहित कई प्रकार के कैंसर में उपस्थित केएलएफ-8 प्रोटीन पाया है, जो गांठों को दोबारा बनने से रोक सकता है।
जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमेस्ट्री की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैज्ञानिकों ने पाया है कि केएलएफ-8 प्रोटीन कैंसर गांठ की कोशिकाओं को मारने के लिए दी जाने वाली दवाओं से कोशिकाओं की रक्षा करता है और गांठ की कोशिकाओं की पुनर्जन्म क्षमता को भी बढ़ाता है।
यूनिवर्सिटी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि प्रोटीन की भूमिकाओं पर अनुसंधान कर रहे प्रोफेसर जिहे झाओ ने बताया है कि सभी कोशिकाओं में डीएनए की मरम्मत का एक तंत्र होता है। इसी कारण हम डीएनए के क्षतिग्रस्त होने के खतरों के बीच भी जिंदा रहते हैं, लेकिन केएलएफ-8 स्तन कैंसर व गर्भाशय कैंसर जैसे खास तरह के कैंसरों में अधिक स्पष्ट रहता है।
झाओ ने कहा है कि विचार यह है कि यदि हम इसकी सक्रियता को रोक सकें, तो हम कैंसर गांठों को वापस बनने से रोक सकते हैं। हमें अभी भी ढेर सारे अनुसंधान की आवश्यकता है, लेकिन यह मुमकिन है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, अकेले अमेरिका में 25 लाख से 27 लाख महिलाएं स्तन कैंसर से पीड़ित हैं और 10 से 20 प्रतिशत मामलों में बीमारी दोबारा पैदा हो सकती है। प्रत्येक वर्ष लगभग 22,200 महिलाओं में गर्भाशय के कैंसर का मामला भी सामने आता है।



डिंपी बनी डॉक्टर


जंबो ने जंगल में कदम रखा तो परेशान हो गया। हर तरफ गंदगी, इतनी गंदगी कि उसे मुंह पर कपड़ा बांधना पड़ गया। जंगल के जानवर गंदगी में सो रहे थे, वहीं पड़ा खाना भी खा लेते थे। जंबो को चलते-चलते खांसी होने लगी।
डिंपी बंदरिया सरकस में काम करती थी। ऊंची कूद लगाना, जलते टायर में से भाग कर निकलना, अपनी कमर पर हाथ रख कर ठुमक-ठुमक कर नाचना उसे खूब आता था। एक बार उनका सरकस एक नदी के पास लगा। नदी में बाढ़ आ गई और सरकस का तंबू ही उखड़ गया। सभी जानवर जान बचा कर भागने लगे। डिंपी तो एक पिंजड़ें में बंद थी। पिंटो रीछ को उस पर दया आ गयी। उसने पिंजड़े का दरवाजा खोल दिया। डिंपी ने फटाफट पिंजड़े से भागने में भलाई समझी। दौड़ते-भागते डिंपी और पिंटो जंगल में आ गए।
जंगल की जिंदगी डिंपी के लिए बिलकुल अनोखी थी। जब चाहे उठ सकते थे, जहां चाहे जा सकते थे। कोई डांटने वाला ना था, ना कोई मारने वाला। बस एक दिक्कत थी। सरकस में समय-समय पर खाना मिल जाता था। जंगल में अपना खाना खुद जुटाना पड़ता था। शुरू-शुरू में डिंपी को बहुत दिक्कतें आईं। उसे पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर गुलटियां खाना आता था, लेकिन वहां से जामुन या आम तोड़ना नहीं आता था।
लेकिन एक काम जो उसे सबसे अच्छे से आता था वो था सफाई से रहना। डिंपी को सरकस के अनुशासन की आदत थी। वह रोज सबेरे उठ कर अपने घर की सफाई करती। फिर नदी में जा कर नहा कर आती। रोज ही वह साफ धुले कपड़े पहनती। उसे देख कर उसके पड़ोस में रहने वाली अमि बंदरिया खूब हंसती और उसका मजाक उड़ाती। अमि बंदरिया और उसके तीनों बच्चे दिन भर धूल में पड़े रहते। बिना धोए फल और सब्जियां खाते और नहाने का तो नाम भी नहीं लेते।
बाढ़ के बाद जंगल में लगभग हर जानवर बीमार पड़ने लगा। अमि के घर में तो हर किसी की तबियत खराब हो गई। जब जंगल के लीडर रोनी शेर खुद बीमार पड़ गए, तो उन्होंने शहर से डॉक्टर जंबो हाथी को बुलवाया। जंबो ने जंगल में कदम रखा तो परेशान हो गया। इतनी गंदगी, इतनी गंदगी कि उसे मुंह पर कपड़ा बांधना पड़ गया। जंगल के जानवर गंदगी में सो रहे थे, वहीं पड़ा खाना भी खा लेते थे। जंबो को चलते-चलते खांसी होने लगी। सड़क किनारे बुल्लू चीते का ढाबा था। जंबो वहीं बैठ गया। बुल्लू ने उसकी तरफ पानी का गिलास बढ़ाया, तो जंबो ने दूर से मना कर दिया। गिलास में धूल-मिट्टी जमा थी। जंबो ने धीरे से कहा, ‘तुम लोग ऐसा पानी पीते हो, इसीलिए तो बीमार पड़ते हो।’
बुल्लू चीते ने सोच कर कहा, ‘ओह, तब तो तुम्हारे लिए डिंपी से पानी मंगवाना पड़ेगा।’
बुल्लू के बुलाने पर डिंपी चली आई। उसके हाथ में एक फ्लास्क था। डिंपी को साफ-धुले कपड़े में देख कर जंबो की आंखों में चमक आ गई। डिंपी ने फ्लास्क से गिलास निकाल कर पहले उसे धोया, अपना हाथ धोया, फिर जंबो को पानी पिलाया। पानी पीते ही जंबो समझ गया कि डिंपी ने पानी उबाला है। जंबो खुश हो गया, उसने कहा, ‘जिस जंगल में डिंपी रहती है, वहां जानवरों को बीमार क्यों पड़ना चाहिए?’
डिंपी को जंबो रोनी के पास ले गया और रोनी को दवाई देने के बाद जंबो ने घोषणा की, ‘आज से इस जंगल में डिंपी जैसा कहेगी, सब वैसा ही करेंगे। डिंपी की तरह साफ-सफाई से रहेंगे तो कोई बीमार नहीं पड़ेगा।’
डिंपी के पास धीरे-धीरे जंगल के सभी जानवर साफ-सफाई के टिप्स सीखने आने लगे। सबसे पहले तो अमि आई और अमि ने कहा—आज से तुम्हें अपने खाने-पीने की चिंता करने की जरूरत नहीं। बस तुम हमारी हैल्थ का ख्याल रखो, हम तुम्हारा रखेंगे। कहते हैं कि इसके बाद से जंगल में कभी कोई बीमार नहीं पड़ा।





गंगनम स्टाइल


तुम सबने गंगनम स्टाइल के बारे में काफी कुछ सुना होगा। हो सकता है तुमने इसका वीडियो भी देखा हो और दुनिया की कई बड़ी हस्तियों की तरह इस पर जमकर डांस भी किया हो। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि आखिर कहां से आया ये गंगनम स्टाइल और पूरी दुनिया में इसने कहां-कहां लोगों को अपना दीवाना बनाया? आज तुम्हें गंगनम स्टाइल की कहानी और उससे जुड़ी कई अनोखी बातें बता रही हैं शुभा दुबे

कहां से आया यह स्टाइल
गंगनम स्टाइल दक्षिण कोरिया के मशहूर रैप गायक साई का मस्ती भरा गाना है। इस कोरियन पॉप गाने का वीडियो जुलाई 2012 में रिलीज हुआ था, जिसे दुनियाभर में रिकॉर्ड तोड़ हिट मिले। यह गाना साई के छठे एलबम साई 6 (सिक्स रूल्स) का है। तुम्हें जानकर हैरानी होगी कि जुलाई में रिलीज हुआ यह वीडियो दिसंबर 2012 तक इंटरनेट पर सबसे ज्यादा देखा जाने वाला वीडियो बन गया था। तुम हमेशा सोचते होगे कि आखिर यह गंगनम शब्द आया कहां से? दरअसल गंगनम दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल का एक जिला है। माना जाता है कि यहां के लोग फैशन पसंद और शाही रहन-सहन वाले होते हैं। यहां के लोगों की एक खासियत होती है कि वे अपने आपको दूसरों से बड़ा नहीं समझते और न ही गंगनम का निवासी होने का रौब दिखाते हैं। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो खुद को गंगनम के लोगों जैसा बताते हैं। साई ने अपने गाने की मदद से ऐसे ही लोगों का मजाक बनाया है, जो होते कुछ हैं और दिखाते कुछ और हैं।
किसने किया गंगनम स्टाइल
इस गाने को सुनते ही तुम में से कईयों का मन अपनी कुर्सी से उठकर नाचने का करता होगा। रैप गायक साई की ओर से घुड़सवारी की तरह के इस डांस स्टाइल पर मशहूर हस्तियां भी खुद को थिरकने से नहीं रोक पाईं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा तक सभी को गंगनम स्टाइल ने नाचने पर मजबूर कर दिया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून भी खुद को नहीं रोक पाए और साई के साथ मिलकर इस गाने पर झूमे। उन्होंने तो इस गाने को दुनिया में शांति लाने की ताकत का दर्जा दे दिया। इनके अलावा हॉलीवुड और बॉलीवुड की मशहूर हस्तियों के साथ-साथ कई बड़े खिलाडियों ने भी इस गाने की डांस स्टाइल को अपनाया। फिर चाहे वह वेस्ट इंडीज के क्रिकेट खिलाड़ी क्रिस गेल हों या बांग्लादेश की क्रिकेट टीम, सभी ने इस गाने पर थिरक कर अपनी खुशी जाहिर की। अब इंतजार किस बात का है, गंगनम स्टाइल चलाओ और नाचने के लिए तैयार हो जाओ।




उड़ीसा में हर साल लगती है मादा कछुओं की भीड़


क्या आप जानते हैं कि कछुए की एक प्रजाति ऐसी भी है, जो अपने अंडे उसी स्थान पर देती है, जहां उसका जन्म हुआ होता है? उड़ीसा के गहिरमठ बीच के पास पाए जाने वाली मादा ऑलिव रिडले प्रजाति ऐसा ही करती है। यही वजह है कि इस प्रजाति की मादा कुछआ कितनी ही दूर क्यों न चली जाएं, हर साल अपने जन्म स्थल पर लौट कर आती ही हैं। दिसंबर से अप्रैल महीने के बीच उड़ीसा के इस तट पर मादा ऑलिव काफी बड़ी संख्या में इकट्ठी हो जाती हैं। वहीं यह जानना भी काफी दिलचस्प है कि नर ऑलिव कछुए जहां सुरक्षा के कारण समुद्र में ही रहना पसंद करते हैं, वहीं मादा कछुआ बहादुर मानी जाती हैं, जो हर साल लंबी-लंबी समद्री यात्रा पार करके समुद्र तट पर अंडे देने आती हैं।



दुनिया का सबसे ऊंचा रोप पार्क


रोप-वे में बैठकर ऊपर या नीचे सफर करते वक्त बड़ा मजा आता है। सफर के दौरान नीचे देखने में डर भी लगता है, पर दुख इस बात का होता है कि यह सफर चंद मिनटों में खत्म हो जाता है। यानी यह सफर लंबा नहीं होता है। अब लोगों की यह समस्या दूर हो सकती है। एडवेंचर प्रेमी ऐसे लोगों के लिए कजाकिस्तान में एक रोप पार्क हाल ही में बनाया गया है। यह पार्क कजाकिस्तान के अलमाती के पास थिआनशान पर्वत पर एक रिजॉर्ट में बनाया गया है। इसकी खासियत यह है कि यह दुनिया का सबसे ऊंचा और अनूठा रोप पार्क खुला है। इस पार्क की ऊंचाई समुद्र तल से 22250 मीटर है। यह खास इसलिए है, क्योंकि यह पूरा पार्क आर्टिफिशियल सपोर्ट से बनाया गया है। इसमें 80 मीटर ऊंचाई से बंजी जंपिंग की जा सकती है। इस पार्क का आनंद वे ही लोग ले सकते हैं, जो एडवेंचर के शौकीन हैं। इस पार्क में काफी संख्या में लोग बंजी जंप करने जाते हैं।



सबसे बड़ा कैप्सूल होटल


तरह-तरह के होटलों के बारे में हम सबने सुना है और कई बार इनमें ठहरना भी हुआ होगा। पर क्या तुम कैप्सूल होटल के बारे में जानते हैं? कैप्सूल होटल इंडिया में नहीं है, पर कई अन्य देशों में खासी संख्या में हैं। ये होटल तमाम देशों के उन शहरों में हैं, जहां पर वेतन कम है और महंगाई अधिक होती है। लोग सस्ते में रात गुजार सकते हैं। हाल ही में चीन में दुनिया का सबसे बड़ा कैप्सूल होटल बनाया गया है। चीन के शाडान्ग प्रांत के किंगडाओ शहर में बनाया गया यह होटल धीरे-धीरे काफी लोकप्रिय हो रहा है। कैप्सूल में वे सारी सुविधाएं होती हैं, जो होटलों में होती हैं। इसमें एलसीडी टीवी, वाईफाई कनेक्शन, एक कंप्यूटर, डेस्ट, ड्रेसर और बिस्तर होता है। हालांकि ये बेहद संकरे होते हैं, लेकिन रात गुजारने के लिए पर्याप्त होते हैं। इनकी लंबाई दो मीटर, चौड़ाई 1 मीटर और ऊंचाई भी एक मीटर से अधिक होती है। अब बात की जाए यहां के किराए की। यहां पर ऑफ सीजन में भारतीय मुद्रा के अनुसार 387 रुपए और पीक सीजन में 691 रुपए देने पड़ते हैं। इस होटल में 100 कैप्सूल कमरे हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा कैप्सूल होटल है।




पत्थर काटकर बनाया घर


घरों में पत्थरों का इस्तेमाल तो लोग खूब करते हैं, पर मेक्सिको में एक सज्जन ने पत्थर को काटकर घर बना लिया। हालांकि इन सज्जन ने शौकिया तौर पर नहीं, बल्कि मजबूरी में घर बनाया है। सैन जो लास पियार्दस के पास एक परिवार 30 सालों से एक पत्थर के नीचे घर बनाकर रह रहा है। इस पत्थर का व्यास 131 फुट है। यह इलाका कोहुइला रेगिस्तान में है। परिवार के मुखिया के अनुसार, किसी छोटी सी बात पर उसके परिवार को सैन जो के लोगों ने इलाके से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद व्यक्ति ने मजबूरी में कुछ ही दूरी पर एक पत्थर को काटना शुरू किया और उसी पत्थर के नीचे पूरा घर बना लिया है। इस घर को बनाने में उसे कई वर्ष का समय लग गया था।



पंछी बने उड़ते फिरें हैंग ग्लाइडिंग


हवाई जहाज में बैठकर आसमान में यात्रा की जा सकती है, पर क्या इसमें वो रोमांच होता होगा, जो पक्षियों को होता है? जवाब होगा नहीं। हां, पर हैंग ग्लाइडिंग के जरिए एडवेंचर के शौकीन लोग जरूर तेज हवा में तैरते हुए ऊंचे उड़ने की चाहत पूरी कर सकते हैं।
पक्षियों को ऊंचे उड़ते देखकर तुम्हारा मन भी करता होगा कि काश, हम भी उड़ पाते। हालांकि थोड़े बड़े होने के बाद जरूर तुम अपनी इस इच्छा को पूरा कर सकते हो। हैंग ग्लाइडिंग तेज हवा में आसमान से बातें करने की चाह रखने वाले एडवेंचर के शौकीनों के लिए बढिया विकल्प है। हैंग ग्लाइडिंग की शुरुआत 1984 में हुई थी। तब हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में पहली बार हैंग ग्लाइडिंग प्रतियोगिता आयोजित की गई थी।
‘हैंग ग्लाइडिंग’ एक रोमांचक एयरोस्पोर्ट्स यानी हवा में खेले जाने वाला खेल है। यह खेल आज एडवेंचर टूरिज्म का हिस्सा बन चुका है। विशाल पक्षी के पंखों जैसे नजर आते ग्लाइडर को पकडम्कर हवा में उड़ते व्यक्ति को देखने से ही मन में एक रोमांच पैदा होने लगता है। स्वयं ग्लाइडिंग करना तो वास्तव में एक अद्वितीय अनुभव होगा। हैंग ग्लाइडिंग में प्रयोग होने वाला ग्लाइडर मेटल का बना एक बड़ा सा तिकोना फ्रेम होता है, जिस पर पाल लगी होती है। इस फ्रेम को पकड़कर हवा में उड़ना ही हैंग ग्लाइडिंग कहलाता है।
कैसे काम करता है हैंग ग्लाइडर
मजे की बात यह है कि हैंग ग्लाइडर में किसी तरह का इंजन आदि नहीं लगा होता। यह तो खिलाड़ी को पूरी तरह अपनी दक्षता के आधार पर उड़ना होता है। यही कारण है कि ऊंची पहाडियों में तेज हवा में तैरना किसी भी साहसी व्यक्ति के लिए एक चुनौती भरा आकर्षण होता है। हैंग ग्लाइडर की बनावट एवं मजबूती हवा में ग्लाइडर का संतुलन बनाये रखने में सहयोग देती है। एल्यूमीनियम से बना इसका फ्रेम करीब 18 फीट चौड़े तिकोने आकार का होता है। इस पर मजबूत सिंथेटिक फेब्रिक की पाल लगी होती है। फ्रेंम के मध्य एक रॉड होती है, जिसे कंट्रोल बार कहते हैं। उडमन आरम्भ करने के लिए पायलट यह रॉड पकडम्कर पहले पहाड़ी ढलान पर दौड़ता है। बस कुछ ही पल बाद ग्लाइडर हवा से बातें करने लगता है।
हैंग ग्लाइडिंग के दौरान पायलट पीठ में बांधे हारनेस द्वारा फ्रेम में लगी रस्सियों के सहारे लटका रहता है, जिससे उड़ने के दौरान थकान महसूस नहीं होती। इस बीच कंट्रोल बार द्वारा ग्लाइडर को नियंत्रित किया जाता है। पायलट अधलेटी अवस्था में लटके हुए अपने शरीर के झुकाव द्वारा ग्लाइडर की दिशा को परिवर्तित करता है। उडमन समाप्त करने के लिए उड़ते हुए पहले किसी उचित स्थान की पहचान की जाती है। फिर सावधानी से ग्लाइडर को उस दिशा में लाकर ढलान पर ही उतारा जाता है।
हालांकि मौसम कैसा है, यह बात भी मायने रखती है, पर अच्छी उड़ान की मुख्य जिम्मेदारी उड़ान भरने वाले व्यक्ति की दक्षता पर ही होती है।
दुनियाभर में लाखों हैं दीवाने
पूरे विश्व में तीन लाख से भी अधिक लोग हैंग ग्लाइडिंग से जुड़े हैं। आज यह एक अन्तर्राष्ट्रीय साहसी खेल का दर्जा पा चुका है। अनेक देशों में सैकड़ों हैंग ग्लाइडिंग क्लब बने हुए हैं। हमारे देश में हैंग ग्लाइडिंग की शुरुआत 1984 में हुई थी। तब हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में पहली बार हैंग ग्लाइडिंग प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। उस समय से कांगड़ा घाटी का ‘बिलिंग’ नामक वह स्थान एयरोस्पोर्ट्स का प्रसिद्ध केन्द्र बन गया है। देश के कई राज्यों में उपयुक्त स्थान खोज कर वहां भी हैंग ग्लाइडिंग का आयोजन होने लगा। आज कांगड़ा के अतिरिक्त शिमला, धर्मशाला, सौली, पूना, सिंहगढ़, कामशेट, मऊ, इंदौर, मैसूर, ऊटी, शिलांग तथा सिकिकम में हैंग ग्लाइडिंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
इसके लिए थोड़े से प्रशिक्षण की आवश्यकता है, बस फिर तो कोई भी साहसी व्यक्ति हैंग ग्लाइडिंग कर सकता है। यह प्रशिक्षण कोई खास तकनीकी ज्ञान आदि से जुड़ा भी नहीं होता। पर इस खेल का मजा लेने के लिए साहस के साथ इसके लिए मस्तिष्क की एकाग्रता आवश्यक है। एक अच्छे प्रशिक्षण द्वारा दो सप्ताह में हैंग ग्लाइडिंग सीखी जा सकती है। उसके बाद पर्याप्त अभ्यास करने के बाद ऊंची उड़ान भरी जा सकती है।
हालांकि हमारे देश में हैंग ग्लाइडिंग के प्रशिक्षण केन्द्रों की संख्या कम है। फिर भी बहुत से शहरों में हैंग  ग्लाइडिंग क्लब मौजूद हैं। इनका सदस्य बन कर इस खेल से जुड़ा जा सकता है। आजकल इंजन से चलने वाले ग्लाइडर भी प्रयोग किए जाने लगे हैं। हैंग ग्लाइडिंग की इंजन रहित उडमन ‘फ्री फ्लाइंग’ कही जाती है, जबकि इंजन चालित ग्लाइडर की उडमन को ‘ट्राइक’ कहते हैं। इसमें एक छोटा सा इंजन फ्रेम के साथ जुड़ा होता है, जिसके पीछे एक पंखा लगा होता है। नीचे तीन पहिए भी लगे होते हैं। यह मैदानों से भी उड़ाया जा सकता है।
यहां सीख सकते हो
दिल्ली ग्लाइडिंग क्लब, सफदरजंग एयरपोर्ट, नई दिल्ली
ग्लाइडिंग एंड सोरिंग सेंटर, कानपुर
राजस्थान स्टेट फ्लाइंग स्कूल, जयपुर
पिंजौर एविएशन क्लब (ग्लाइडिंग विंग), पिंजौर
ग्लाइडिंग सेंटर, पूना
एयरोस्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स, बीड़ा, कांगड़ा
एडवेंचर स्पोर्ट्स हॉस्टल, धर्मशाला





Wednesday, April 24, 2013

कैसे करते हैं जानवर खुद की सफाई


तुम जब छोटे थे तो तुम्हारे पैर के नाखून से लेकर सिर तक पूरे शरीर की सफाई मम्मी-पाप करते थे। कुछ कामों में तो वे आज भी तुम्हारी मदद करते हैं। जानवर भी अपने शरीर की सफाई करते हैं। जानते हो कैसे, बता रही हैं पूनम जैन

बिल्ली: कहते हैं कि बिल्ली को अपना गंदा होना पसंद नहीं, इसलिए वह दिन में कई बार खुद को अपनी जीभ से चाटकर साफ करती रहती है। यहां तक कि अपने पंजों के निचले हिस्से को भी वह चाटकर साफ करती है। शरीर को चाट- चाटकर वह अपनी त्वचा के तेल को पूरे शरीर पर मालिश करते हुए फैला लेती है। इतना ही नहीं, पॉटी करने के बाद भी वह उस हिस्से की सफाई जरूर करती है। रेत या मिट्टी को अपने पैर से खोदकर पहले वह एक गड्ढा बनाती है, उसमें पॉटी करने के बाद उसे मिट्टी से ढक देती है। कुछ देर जमीन के बल बैठकर आगे की ओर सरकती है।
कुत्ता: कुत्ते को बिल्ली जितना साफ रहने का शौक नहीं होता, पर वह भी खुद को साफ रखने की पूरी कोशिश करता है। वह बिल्ली की तुलना में कम लचीला होता है, इसलिए अपने पूरे शरीर को वह खुद से साफ नहीं कर पाता। वह भी खुद को साफ करने के लिए जीभ का सहारा लेता है, पर यह तरीका उसके लिए खुद को संक्रमण या खारिश से मुक्त रखने का भी होता है। शरीर के निचले भाग को वह बिल्ली की तरह जमीन पर बैठकर आगे की ओर सरकते हुए साफ करता है। जिन घरों में एक से अधिक डॉगी हैं, वे जानते हैं कि कुत्ते सफाई में  एक-दूसरे की मदद करते हैं। मसलन, खाना खाते ही बड़ा डॉगी बेबी डॉगी के मुंह को चाटकर साफ कर देता है। इसी तरह वे एक-दूसरे के दांत भी साफ करते हैं।
पक्षी:आसमान में उड़ने वाले पक्षी अपने पंखों पर से धूल-मिट्टी और कीटाणु हटाने के लिए धूल में स्नान करते हैं। कुछ देर रेत में हिलने-डुलने के बाद वे अपने पंखों को हिलाते हुए धूल झाड़ते हैं। वे अपने पंखों को अपनी चोंच से भी साफ करते हैं।
खरगोश: खरगोश अपनी व एक दूसरे की सफाई अपनी जीभ से करते हैं। वे समय-समय पर अपने बालों को चाटते रहते हैं। वहीं ऐसी जगह जहां उनकी जीभ नहीं जाती, जैसे कि माथा, उसकी सफाई के लिए पहले वे अपने आगे के पैर के पंजों को चाटते हैं और फिर उस पंजे को कपड़े की तरह इस्तेमाल करते हुए अपना माथा साफ करते हैं। कई बार इसी तरह वे अपने कान भी साफ करते हैं, पर कई बार वे कानों को थोड़ा नीचे की ओर ले जाते हैं, जिससे जीभ से भी वे उनकी सफाई कर पाते हैं। पैरों के पंजों के नाखून से वे कानों के भीतर जमी हुई गंदगी को भी हटा लेते हैं। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि वे कानों में से निकले ईयरवैक्स, जिसे हम मैल कह देते हैं, उसे खा लेते हैं। उनके लिए यह विटामिन डी का काम करता है।
हाथी: हाथी, गेड़ा व अन्य स्तनपायी जानवर मिट्टी और कीचड़ में लिपटकर स्नान करते हैं। उसके बाद उस मिट्टी को झाड़ने पर या जब वह सूखने के बाद झड़ने वाली मिट्टी के साथ उनके शरीर से बेजान त्वचा यानी डेड स्किन भी उतर जाती है। जो जानवर पानी में खड़े हो सकते हैं, वे साफ पानी से भी स्नान करते हैं। इस संबंध में सबसे अधिक फायदा हाथी को होता है। वह सूंड के जरिए अपने पूरे शरीर पर पानी छिड़क लेता है।