एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि मां के दूध पर पलने बढऩे वाले बच्चे भविष्य में ऊंचाईयों पर पहुंचते हैं। इस अमृत को पीकर ही बच्चे हर प्रकार की बीमारी से बचे रहते हैं। और मानसिक रूप से भी उतने ही सुदृढ़ होते हैं। प्रेगनेंसी के दौरान या डिलिवरी के तुरंत बाद बनने वाला गाढ़ा पीला दूध नवजात के लिए सवरेत्तम माना जाता है। इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं, जो बच्चों की सुरक्षा करने में सहायक होते हैं।
पचने में आसान बच्चों को और खासतौर से प्रीमेच्योर बेबीज को मां के दूध के अलावा कोई अन्य दूध पचाने में परेशानी आती है। बाजार में मिलने वाले डिब्बाबंद दूध में प्रोटीन होता है, यह गाय के दूध से तैयार किया जाता है, जिसे नवजातों को पचाने में दिक्कत आती है।
और भी मिलता है लाभ
विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रेस्टफीडिंग से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा भी कम होता है और यह डिलिवरी के बाद वजन को नियंत्रित करने का भी काम करता है। ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली कामकाजी महिलाओं को अपने काम से कम ब्रेक लेना पड़ता है क्योंकि उनके बच्चे कम बीमार पड़ते हैं। बीमारियों से सुरक्षा दूध में मौजूद सेल्स, हार्मोन, एंटीबॉडीज की मौजूदगी बच्चों को कई बीमारियों से बचाती है।
डिब्बाबंद दूध पोषण के मामले में मां के दूध की तुलना नहीं कर सकता है। जो बच्चे डिब्बाबंद दूध पर बड़े होते हैं उनमें ईयर इंफेक्शन और डायरिया काफी आम होता है। साथ ही कई अन्य बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है।
. लोअर रेस्पेरेटरी इंफेक्शन. दमा. मोटापा. टाइप 2 डायबिटीज. एक शोध में यह बात स्पष्ट हुई है कि ब्रेस्टफीडिंग से टाइप 1 डायबिटीज, चाइल्डहुड ल्युकेमिया और स्किन रैश जैसे अटॉपिक डर्मटाइटिस का खतरा भी कम होता है। साथ ही यह सडन इनफेंट डेथ सिंड्रोम के खतरे से भी बच्चे को बचाता है। मां को भी होता है फायदा. ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे के साथ-साथ मां की सेहत पर भी प्रभाव पड़ता है।
. टाइप 2 डायबिटीज की आशंका कम होती है।
. ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
. ओवेरियन कैंसर की आशंका कम होती है।
. पोस्टपार्टम डिप्रेशन कम होता है। नहीं मिल रहा हो पर्याप्त दूध अधिकांश मांओं को इस बात की चिंता रहती है कि उनके बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल रहा है,लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम होती है। वैसे अपनी तसल्ली के लिए डॉक्टर से इस बारे में सलाह ली जा सकती है।
. यदि बच्चा करीब छह हफ्ते या दो महीने का हो चुका है और वक्षों में लंबे समय तक खालीपन महसूस हो तो यह सामान्य प्रक्रिया है। इस अवस्था तक पहुंचते- पहुंचते बच्चों को पांच मिनट तक ब्रेस्टफीडिंग की जरूरत होती है। इसका अर्थ है कि मां और बच्चा स्तनपान की प्रक्रिया से संतुलन बनाना सीख गए हैं और बेहतर तरीके से दोनों अपना काम कर रहे हैं।
. बच्चे का विकास तेजी से हो रहा है तो उसे और अधिक फीड कराने की जरूरत होती है। दो से तीन हफ्ते, छह हफ्ते से तीन महीने के बीच बच्चे का विकास तेजी होता है। वैसे यह वृद्धि किसी भी उम्र में हो सकती है। बच्चे के विकास के अनुसार पूर्ति करें। मां के दूध की तुलना अमृत से की गई है।
बच्चों को जन्म के तुरंत बाद मां का पीला गाढ़ा दूध पिलाने की सलाह दी जाती है। कोलोस्ट्रम नाम से जाना जाने वाला यह पीला गाढ़ा दूध लिक्विड गोल्ड कहलाता है। इस अमृत को पीने वाले नवजातों को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी परेशानी नहीं होती। इंफेक्शन होने पर स्तनपान कराने वाली मां को यदि बुखार और कमजोरी जैसे लक्षण नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। यह इंफे क्शन के कारण हो सकता है। इसके कुछ लक्षण इस प्रकार नजर आते हैं।
. इसमें दोनों ही ब्रेस्ट प्रभावित नजर आते हैं।
. दूध में पस या खून का नजर आना।
. ब्रेस्ट के आस-पास लालिमा छा जाना।
विशेषज्ञ की राय भारतीय महिलाएं बच्चों को फॉमरूला दूध देना पसंद नहीं करतीं। स्तनपान से मां को भी फायदा होता है। डिलवरी के बाद की ब्लीडिंग जल्दी ठीक हो जाती है। महिलाएं पहले की तरह ही शेप में आ जाती हैं। स्तनपान के दौरान साफ-सफाई रखें ताकि बच्चे को इंफेक्शन न हो।