Tuesday, August 13, 2013

इस अमृत से बनती है नौनिहालों की सेहत


एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि मां के दूध पर पलने बढऩे वाले बच्चे भविष्य में ऊंचाईयों पर पहुंचते हैं। इस अमृत को पीकर ही बच्चे हर प्रकार की बीमारी से बचे रहते हैं। और मानसिक रूप से भी उतने ही सुदृढ़ होते हैं। प्रेगनेंसी के दौरान या डिलिवरी के तुरंत बाद बनने वाला गाढ़ा पीला दूध नवजात के लिए सवरेत्तम माना जाता है। इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं, जो बच्चों की सुरक्षा करने में सहायक होते हैं।
पचने में आसान बच्चों को और खासतौर से प्रीमेच्योर बेबीज को मां के दूध के अलावा कोई अन्य दूध पचाने में परेशानी आती है। बाजार में मिलने वाले डिब्बाबंद दूध में प्रोटीन होता है, यह गाय के दूध से तैयार किया जाता है, जिसे नवजातों को पचाने में दिक्कत आती है।
और भी मिलता है लाभ
विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रेस्टफीडिंग से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा भी कम होता है और यह डिलिवरी के बाद वजन को नियंत्रित करने का भी काम करता है। ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली कामकाजी महिलाओं को अपने काम से कम ब्रेक लेना पड़ता है क्योंकि उनके बच्चे कम बीमार पड़ते हैं। बीमारियों से सुरक्षा दूध में मौजूद सेल्स, हार्मोन, एंटीबॉडीज की मौजूदगी बच्चों को कई बीमारियों से बचाती है।
डिब्बाबंद दूध पोषण के मामले में मां के दूध की तुलना नहीं कर सकता है। जो बच्चे डिब्बाबंद दूध पर बड़े होते हैं उनमें ईयर इंफेक्शन और डायरिया काफी आम होता है। साथ ही कई अन्य बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है।
. लोअर रेस्पेरेटरी इंफेक्शन. दमा. मोटापा. टाइप 2 डायबिटीज. एक शोध में यह बात स्पष्ट हुई है कि ब्रेस्टफीडिंग से टाइप 1 डायबिटीज, चाइल्डहुड ल्युकेमिया और स्किन रैश जैसे अटॉपिक डर्मटाइटिस का खतरा भी कम होता है। साथ ही यह सडन इनफेंट डेथ सिंड्रोम के खतरे से भी बच्चे को बचाता है। मां को भी होता है फायदा. ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे के साथ-साथ मां की सेहत पर भी प्रभाव पड़ता है।
. टाइप 2 डायबिटीज की आशंका कम होती है।
. ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
. ओवेरियन कैंसर की आशंका कम होती है।
. पोस्टपार्टम डिप्रेशन कम होता है। नहीं मिल रहा हो पर्याप्त दूध अधिकांश मांओं को इस बात की चिंता रहती है कि उनके बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल रहा है,लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम होती है। वैसे अपनी तसल्ली के लिए डॉक्टर से इस बारे में सलाह ली जा सकती है।
. यदि बच्चा करीब छह हफ्ते या दो महीने का हो चुका है और वक्षों में लंबे समय तक खालीपन महसूस हो तो यह सामान्य प्रक्रिया है। इस अवस्था तक पहुंचते- पहुंचते बच्चों को पांच मिनट तक ब्रेस्टफीडिंग की जरूरत होती है। इसका अर्थ है कि मां और बच्चा स्तनपान की प्रक्रिया से संतुलन बनाना सीख गए हैं और बेहतर तरीके से दोनों अपना काम कर रहे हैं।
. बच्चे का विकास तेजी से हो रहा है तो उसे और अधिक फीड कराने की जरूरत होती है। दो से तीन हफ्ते, छह हफ्ते से तीन महीने के बीच बच्चे का विकास तेजी होता है। वैसे यह वृद्धि किसी भी उम्र में हो सकती है। बच्चे के विकास के अनुसार पूर्ति करें। मां के दूध की तुलना अमृत से की गई है।
बच्चों को जन्म के तुरंत बाद मां का पीला गाढ़ा दूध पिलाने की सलाह दी जाती है। कोलोस्ट्रम नाम से जाना जाने वाला यह पीला गाढ़ा दूध लिक्विड गोल्ड कहलाता है। इस अमृत को पीने वाले नवजातों को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी परेशानी नहीं होती। इंफेक्शन होने पर स्तनपान कराने वाली मां को यदि बुखार और कमजोरी जैसे लक्षण नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। यह इंफे क्शन के कारण हो सकता है। इसके कुछ लक्षण इस प्रकार नजर आते हैं।
. इसमें दोनों ही ब्रेस्ट प्रभावित नजर आते हैं।
. दूध में पस या खून का नजर आना।
. ब्रेस्ट के आस-पास लालिमा छा जाना।
विशेषज्ञ की राय भारतीय महिलाएं बच्चों को फॉमरूला दूध देना पसंद नहीं करतीं। स्तनपान से मां को भी फायदा होता है। डिलवरी के बाद की ब्लीडिंग जल्दी ठीक हो जाती है। महिलाएं पहले की तरह ही शेप में आ जाती हैं। स्तनपान के दौरान साफ-सफाई रखें ताकि बच्चे को इंफेक्शन न हो।

नए इंटरनेट प्रोटोकॉल की तैयारी


आने वाले समय में मशीनें आपस में बात करेंगी। आप खुद भी अपने फ्रिज, एयर कंडिशनर, वॉशिंग मशीन या अवन से सीधे संवाद कर सकेंगे क्योंकि ये सब मशीनें इंटरनेट के जरिए एक-दूसरे से, और फोन या किसी और प्राइवेट गैजट के जरिए आप से भी जुड़ जाएंगी। लेकिन मशीनों को आपस में जोडऩे के लिए हमें इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) के नए वर्जन की जरूरत पड़ेगी। यदि आज दुनिया नेट से जुडी हुई है तो उसका श्रेय इंटरनेट प्रोटोकॉल को ही जाता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल बुनियादी रूप से एक कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल है, जिसका इस्तेमाल नेटवर्क पर डेटा के पैकेट्स भेजने के लिए किया जाता है। इस वक्त हम इसी प्रोटोकॉल का आईपीवी 4 नामक वर्जन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो 35 वर्ष पुराना हो चुका है।


आईपीवी 4 में पतों के लिए 32 बिट की जगह है, जिसकी वजह से कुल मिला कर 4.3 अरब आईपी अड्रेस संभव हो पाए हैं। लेकिन जिस तेजी से इंटरनेट, ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवाओं का विस्तार हो रहा है, उससे आईपी अड्रेस की मांग में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। इसका नतीजा यह है कि पूरी दुनिया में आईपीवी 4 के अड्रेस अब लगभग खत्म होने के मुकाम पर पहुंच चुके हैं और नए अड्रेस की गुंजाइश बहुत कम बची है। आईपीवी 4 की सीमाओं को भांपते हुए इंटरनेट इंजिनियरिंग टास्क फोर्स ने नब्बे के दशक में इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 (आईपीवी 6) का विकास किया था। इस वर्जन में पतों के लिए 128 बिट की जगह है। इस तरह इसमें असीमित आईपी अड्रेस की गुंजाइश है। इस वर्जन में सुरक्षा और सेवाओं की बेहतर क्वालिटी देने वाले फीचर भी हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आईपीवी 6 का विकास आईपीवी 4 के समक्ष आई चुनौतियों को ध्यान में रख कर किया गया है।
इंटरनेट प्रोटोकॉल के मौजूदा संस्करण की सबसे बड़ी समस्या अभी सुरक्षा की बनी हुई है। आए दिन कोई न कोई वायरस, वॉर्म या कोई और मालवेयर लोगों की नींद हराम किए रहता है। आईपीवी 4 में इन चीजों से बचने के लिए जो सुरक्षा उपाय तैयार किए जाते हैं, वे नए मालवेयर्स के सामने थोड़ी देर भी नहीं टिक पाते। हैकरों के लिए भी किसी सिस्टम में घुसकर अति गोपनीय जानकारियां निकाल लेना, किसी भी बैंक का अकाउंट कर लेना या किसी क्रेडिट कार्ड का क्लोन तैयार करके अच्छे-भले आदमी को मिनटों में कंगाल कर देना बच्चों का खेल हो गया है। इसकी अकेली वजह यह है कि मात्र 32 बिट के पते में सेंधमारी करना उनके लिए बहुत आसान है। इसकी चार गुना या यानी 128 बिट में लिखे जाने वाले आईपीवी 6 के पते कहीं ज्यादा जटिल होंगे और आने वाले दिनों में इसका इस्तेमाल करने वाले लोग खुद को कहीं ज्यादा सुरक्षित महसूस कर सकेंगे।



आईपीवी 4 के स्थान पर आईपीवी 6 को अपनाने की जरूरत दुनिया में काफी समय से महसूस की जा रही है। आईपी के नए वर्जन को अपनाने में अभी जापान काफी आगे चल रहा है। उसने नब्बे के दशक में ही नए वर्जन की तैनाती शुरू कर दी थी। वहां लाखों स्मार्टफोन, टैबलट और दूसरे उपकरण आईपीवी 6 नेटवर्क पर निर्भर हैं। एशिया के दूसरे दिग्गज चीन ने भी अपने नेक्स्ट जेनरेशन इंटरनेट प्रोजेक्ट के जरिए दुनिया का सबसे बड़ा आईपीवी 6 नेटवर्क खड़ा कर दिया है। यूरोप में नए वर्जन को अपनाने में अपेक्षाकृत पिछड़ा समझा जाने वाला मध्य यूरोपीय देश फिलहाल रोमानिया 8.43 प्रतिशत की दर के साथ सबसे आगे चल रहा है। फ्रांस में यह दर 4.69 है, जबकि अमेरिका की दर 1.7 प्रतिशत है। भारत ने भी इसकी गंभीरता को समझा है, हालांकि इंटरनेट प्रोटोकॉल के नए वर्जन को अपनाने की हमारी दर अभी सिर्फ 0.24 प्रतिशत है। नेट संचालित अर्थव्यवस्था के युग में आईपी के नए वर्जन में पारंगत होना बेहद जरूरी है।
भारतीय दूरसंचार विभाग ने नए वर्जन के बारे में पहला रोडमैप अथवा नीतिगत दस्तावेज 2010 में तैयार किया था। पिछले साल जारी की गई राष्ट्रीय दूरसंचार नीति ने आईपीवी 6 के महत्व को समझते हुए अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में इसके उपयोग को रेखांकित किया था। लेकिन आईपीवी 4 के स्थान पर आईपीवी 6 को लागू करना आसान नहीं है। इसके लिए कोई निश्चित समय तय करना बहुत मुश्किल है। प्रोटोकॉल बदलना एक बहुत जटिल और दीर्घकालिक प्रक्रिया है। इसका संक्रमण काल बहुत लंबा है। आईपीवी 6 की शुरुआत होने पर भी आईपीवी 4 का उपयोग कई वर्षों तक जारी रहेगा। यह स्थिति भारत ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों में बनी रहेगी। आईपीवी 6 को सिर्फ चरणबद्ध तरीके से ही लागू किया जा सकता है।
सरकार ने सभी स्टेक होल्डरों अथवा पक्षकारों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद आईपीवी 6 रोडमैप का दूसरा संस्करण पिछले मार्च में जारी किया था। इस नए रोडमैप में सभी सर्विस प्रोवाइडरों, उपकरण निर्माताओं और सरकारी संगठनों के लिए कुछ खास निर्देश जारी किए गए हैं। रोडमैप के अनुसार भारत में अगले साल 30 जून के बाद बेचे जाने वाले सभी मोबाइल फोनों, टैब्लेट्स और दूसरे उपकरणों में आईपीवी 6 ट्रैफिक के वहन की क्षमता होनी चाहिए। सरकारी संगठनों को प्रोटोकॉल का नवीनतम वर्जन अपनाने के लिए इस साल दिसंबर तक अपनी योजनाओं को अंतिम रूप देने को कहा गया है। इस रोडमैप पर आगे बढऩा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अधिकांश सरकारी संगठन इस बारे में जागरूक नहीं हैं और न ही उन्होंने तकनीकी अपग्रेडेशन के लिए अपने वार्षिक बजटों में कोई प्रावधान किया है। सरकारी दफ्तरों में रखे उपकरणों का नवीकरण अथवा नए उपकरणों की खरीद अपने आपमें एक बड़ी समस्या है। आईपीवी 4 से आईपीवी 6 में जाने की प्रक्रिया की देखरेख करने के लिए आईपीवी 6 में प्रशिक्षित इंजिनियरों की भी भारी कमी है। रोडमैप में कॉलेजों के तकनीकी कोर्सों में अब आईपीवी 6 को शामिल करने का सुझाव दिया गया है, जिस पर तुरंत अमल किया जाना चाहिए। हालांकि यह काम कुछ साल पहले शुरू हो गया होता तो अभी हम ज्यादा बेहतर स्थिति में होते। भारत ने 2017 तक 17.5 करोड़ और 2020 तक 60 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन देने का लक्ष्य बनाया है। देश में मौजूद डिजिटल खाई को पाटने के लिए अगर हमें ब्रॉडबैंड क्रांति को सफल बनाना है तो हमें जल्द से जल्द आईपी के नए वर्जन को अपनाना पड़ेगा। नई पीढ़ी का नेटवर्क भारत के लिए आर्थिक दृष्टि से भी बहुत फायदेमंद हो सकता है। आईपीवी 6 आधारित प्रॉडक्ट्स और सेवाओं को देश में ही विकसित करके दुनिया के दूसरे देशों को निर्यात भी किया जा सकता है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा, टेली एजुकेशन, स्मार्ट ग्रिड, स्मार्ट सिटी और स्मार्ट बिल्डिंग आदि में आईपीवी 6 आधारित एप्लिकेशंस देश के आर्थिक-सामाजिक विकास को काफी तेजी से आगे ले जा सकते हैं, और हमें इसका भरपूर लाभ उठाना चहिए।