Wednesday, November 26, 2014

आधुनिक तोपों से लैस होगी थलसेना



देश के नए रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर की अध्यक्षता में 22 नवम्बर को रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की पहली बैठक ऐतिहासिक बन गई क्योंकि बोफोर्स तोपों के सौदे में दलाली के भूत से बाहर निकलकर रक्षा मंत्रालय ने तकरीबन 28 वर्षो बाद 15750 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय सेना के लिए नई तोपें खरीदने का फैसला किया। उल्लेखनीय है कि अस्सी के दशक में बोफोर्स तोप घोटाले के बाद से लेकर अब तक थल सेना के लिए कोई तोप नहीं खरीदी जा सकी थी। अब नई सरकार ने लम्बे समय से तोप खरीद की रुकी हुई प्रक्रिया को गति देने की कोशिश की है। डीएसी की यह बैठक करीब दो घंटे चली जिसमें थल सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा, नौसेना प्रमुख एडमिरल आरके धवन, रक्षा सचिव आरके माथुर और रक्षा उत्पादन सचिव जीसी पति उपस्थित थे। बैठक में सैन्य जरूरतों के मद्देनजर 155 मिलीमीटर 52 कैलिबर की 814 तोपें (बड़ी माउंटेनगन) खरीदे जाने का निर्णय हुआ। यह रक्षा खरीद प्रक्रिया मेक इन इंडिया श्रेणी के तहत पूरी की जाएगी। तोप सौदा घरेलू उत्पादन बढ़ाने की योजना के अंतर्गत किया गया है। समझौते के तहत पहली सौ तोपें तैयार हालत में प्राप्त होंगी और इसके बाद शेष 714 का निर्माण भारत में ही किया जाएगा। हालांकि इस सौदे को अंतिम रूप लेने में अभी कुछ समय और लगेगा। थल सेना के इस प्रस्ताव के लिए अब निविदा (आरएफपी) आमंत्रित की जाएंगी। निविदा आने पर परीक्षण प्रक्रिया पूरी की जाएगी और उसके बाद तोप खरीद प्रस्ताव हकीकत में सामने आ जाएगा।


बैठक में थलसेना की तोपों की खरीद के अलावा वायुसेना के लिए चार इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की खरीद के लिए 7160 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की गई। वायु सेना के पास ऐसे पांच सिस्टम पहले से मौजूद हैं। रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने सरकार की मेक इन इंडिया योजना को आगे बढ़ाने की र्चचा करते हुए कहा कि अधिक से अधिक रक्षा उत्पादन देश में हो, इसके तरीके व उपाय खोजने होंगे और वे तेज व पारदर्शी निर्णय लेने की प्रक्रिया को जारी रखेंगे। बैठक में यह भी तय किया गया कि अब रक्षा खरीद परिषद की बैठक महीने में एक से अधिक बार भी हो सकती है। इससे पहले अधिक मामले होने पर ही परिषद की बैठक बुलाई जाती थी। भारतीय सेना में तोपखाना के नाम पर देश के पास कुछ खास प्रकार की ही हथियार पण्रालियां मौजूद हैं जिनमें पिनाका रॉकेट सिस्टम, स्मर्च रॉकेट सिस्टम, 155 एम.एम. 45 कैलिबर, 155 एम.एम. 39 कैलिबर एवं ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम प्रमुख हैं। ये पण्रालियां अति आधुनिक नहीं हैं इसीलिए भारतीय थल सेना एवं रक्षा मंत्रालय सेना के तोपखाने के आधुनिकीकरण की तैयारी में लगे हुए हैं। तोपों की खरीद में विलम्ब से सेना की तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और भारतीय सेना का तोपखाना पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रही आधुनिकतम तोपों से वंचित था। अब सेना 1970 के दशक वाली तोपों को हटाकर आधुनिक तकनीक वाली तोपों से लैस हो जाएगी।


सेना पिछले लगभग 18 वर्षो से 155 मिलीमीटर और 52 कैलिबर की खींच कर ले जाई जा सकने वाली 400 तोपें, 145 बेहद हल्की तोपें तथा पहियों वाली खुद चलने में सक्षम 140 तोपें खरीदने की कोशिश कर रही थी। अब इनके प्राप्त होने की उम्मीद भी बढ़ गई है। भारत की आवश्यकताओं के हिसाब से नई तोपें भरोसेमंद एवं अत्यन्त उपयोगी होंगी। इनको सरलता के साथ हवाई जहाज द्वारा इधर-उधर लाया व ले जाया जा सकेगा। इस कारण इन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से तैनात करने किया जा सकेगा। ये काफी अत्याधुनिक किस्म की तोपें हैं। भारतीय सेना की योजना के मुताबिक इन हॉवित्जर तोपों को लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा। इनकी तैनाती के बाद ऊंचाई पर स्थित चौकियां युद्ध के लिए सक्षम हो जाएंगी। उत्तरी मोर्चे पर यही चौकियां युद्ध का मुख्य मैदान होंगी। इस तरह भारत की तोपखाना ताकत अत्यन्त बढ़ जाएगी। चूंकि तोपों की खरीद में लगातार विलम्ब हो रहा था इसलिए देश में रक्षा उत्पादन की तस्वीर बदलने वाले एक कार्यक्रम को बढ़ाते हुए बोफोर्स जैसी 100 तोपें अपने यहां निर्मित करवाने का फैसला सन 2012 में लिया गया था। सेना ने 155 मिलीमीटर की 100 तोपें खरीदने का आदेश आयुध कारखाना बोर्ड को दे रखा है और इन तोपों के निर्माण की योजना को एक निश्चित समय में पूरा करने को कहा था। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन का पुणो स्थित आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (ए.आर.डी.ए.) सेना के लिए 155 मिलीमीटर की 52 कैलिबर की तोप विकसित कर रहा है। इनकी खास बात यह है कि इसकी लम्बाई बैरल के व्यास (155 मिलीमीटर) से 52 गुना अधिक है। इस तरह यह तोप देश के भीतर बनने वाली सबसे लम्बी तोप होगी। इसकी मारक क्षमता भी ज्यादा होगी। अब तक जो तोपें इस्तेमाल में हैं, उनकी मारक क्षमता काफी कम है। इससे भारतीय सेना की मारक क्षमता अत्यन्त मजबूत हो जाएगी। इससे पहले रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन सेना के लिए 105 मिलीमीटर की तोपें बना चुका है जो आज भी थल सेना की सेवा में हैं। विदित हो कि जब बोफोर्स तोपों की खरीद की गई थी तभी से इनके उत्पादन की तकनीक भारत में आ गई थी। उस समय लिया गया यह फैसला रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल करने का एक बड़ा कदम था। इधर इतने दिनों में यह अनुभव सेना ने भी किया कि देश में तोपों का उत्पादन प्रारम्भ किया जाना विदेशी निर्भरता कम करने के लिए आवश्यक है। इन स्वदेशी तोपों का विकास जबलपुर के तोप कारखाने में किया जाएगा। इसके बाद इनका निर्माण कोलकाता स्थित कारखाने में किया जाएगा। तोपों की कमी के संकट से गुजर रही सेना के लिए स्वदेशी तोपों का दूसरा मॉडल भी तैयार किया जा रहा है। यह तोप भी देश के लिए कॉफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। अक्टूबर 2011 में रक्षा खरीद परिषद द्वारा लिए गए फैसले के मुताबिक आर्डिनेन्स कारखाना बोर्ड को 39 कैलिबर की 155 एमएम (एफ.एच. 77 बी 02) तोपों के दो प्रोटोटाइप तैयार करने हैं। इसके साथ ही बोर्ड को 45 कैलिबर की 155 एम.एम. हॉविट्जर तोप का उन्नत मॉडल भी तैयार करना है। उल्लेखनीय है कि स्वीडन की एबी बोफोर्स कम्पनी के साथ हुए तकनीकी अनुबन्ध के तहत आयुध कारखाना बोर्ड 155 मिलीमीटर की हॉविट्जर तोपों का निर्माण कर रहा है। स्वीडन की एबी बोफोर्स कम्पनी के साथ हुए लाइसेंस समझौते में दोनों तरह की तोपों में गोला बारूद के घरेलू निर्माण के प्रावधान शामिल हैं। निश्चित है कि इन आधुनिक किस्म की तोपों के आने से भारतीय थल सेना का तोपखाना अत्यन्त मजबूत हो जाएगा।
(साभार)

Wednesday, November 19, 2014

दिल बोले, ऑल इज वेल


दिल की बीमारी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पहले इसे बुढ़ापे की बीमारी माना जाता था लेकिन अब यह कमउम्र के लोगों को भी अपनी चपेट में ले रही है। ऐसे में जरूरी है अपने दिल की सेहत का ख्याल रखना। बेहतर लाइफस्टाइल और सही जानकारी से इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है। बीमारी हो ही जाए तो भी सही इलाज और देखभाल से जिंदगी अच्छी कट सकती है। आज वर्ल्ड हार्ट डे के मौके पर दिल की बीमारियों पर पूरी जानकारी दे रहे हैं श्रीकान्त शर्मा : 


हमारे दिल को लगातार काम करने के लिए ऑक्सिजन की जरूरत होती है, जो उसे नलिकाओं से आने वाले खून से मिलती है। दिल एक मिनट में करीब 72 बार धड़कता है और इसके लिए उसे करीब 250 मिली खून की जरूरत होती है। जब दिल तक खून पहुंचाने वाली नलिकाओं में फैट जमा हो जाता है तो दिल तक खून की सप्लाई कम हो जाती है। फैट की इसी परत को ब्लॉकेज कहते हैं। आमतौर पर मरीजों को नसों में 80 फीसदी से ज्यादा ब्लॉकेज होने पर ही पता लगता है। बैठे हुए व्यक्ति के दिल को काम करने के लिए 10 फीसदी, चलने पर 20 और दौड़ने पर 30 फीसदी खून की जरूरत होती है। दौड़ने, चलने या बैठने में तकलीफ के आधार पर पता लगाया जा सकता है कि दिल को कितने खून की सप्लाई हो रही है। मसलन, बैठे रहने पर भी दिक्कत हो तो समझना चाहिए कि दिल को 10 फीसदी भी खून नहीं मिल पा रहा। 

किसको खतरा ज्यादा 
परिवार में दिल की बीमारी की हिस्ट्री होने के अलावा सही लाइफस्टाइल न अपनाने पर भी ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जाती है। खानपान ठीक न होना, स्मोकिंग करना, एक्सरसाइज न करना, बेहद बिजी और टेंशन में रहना जैसे फैक्टर बीमारी की आशंका को 15 से 20 फीसदी बढ़ा देते हैं। हालांकि वक्त पर ब्लॉकेज का पता लगने और सही इलाज होने से हार्ट अटैक से बचा जा सकता है। 

कैसे पहचानें 
छाती के लेफ्ट हिस्से में दर्द या भारीपन हो तो एंजाइना (दिल को पूरा साफ खून न मिल पाने पर सीने में दर्द) की आशंका हो सकती है। यह तकलीफ चलते हुए या काम करते हुए ज्यादा होती है। कभी-कभी छाती से हाथ की ओर भी तकलीफ जा सकती है। कुछ मामलों में सांस फूलना भी एंजाइना का लक्षण हो सकता है। 

लक्षण के बाद क्या करें : एंजाइना होने पर डॉक्टरी जांच कराएं। इसके लिए सबसे पहले ईसीजी किया जाता है, पर ईसीजी दिल की सिर्फ उसी वक्त की स्थिति की जानकारी देता है, इसीलिए चलते हुए ईसीजी यानी टीएमटी किया जाता है। जरूरत पड़ने पर ईको काडिर्योग्राम भी किया जाता है, जिसमें दिल के सही साइज, वॉल्व्स की खराबी और दिल की पंपिंग कैपेसिटी आदि के बारे में सही जानकारी मिल जाती है लेकिन इसमें भी कॉरोनरी ब्लॉकेज के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती। सेहतमंद आदमी के दिल की पंपिंग पावर 60 फीसदी होनी चाहिए लेकिन माइनर हार्ट अटैक के बाद यह पावर 55 फीसदी और मेजर हार्ट अटैक के बाद यह सिर्फ 30 फीसदी रह जाती है। 

कैथेटर कॉरोनरी एंजियॉग्रफी : इस जांच के लिए मरीज को अस्पताल में दाखिल किया जाता है। इसमें एक मीटर लंबी तार (कैथेटर) को मरीज की जांघ के पास से घुसाकर दिल की ओर धकेला जाता है। इसमें एक छेद से धमनी के अंदर 'रेडियोएक्टिव डाई' डाली जाती है और 'फ्लूरोस्कोपी' यानी एक्सरे किए जाते हैं। बाकी धमनियों में भी यही प्रॉसेस दोहराया जाता है। नलियों में रुकावट होगी तो डाई पूरी नहीं भर पाएगी। शरीर में कैथेटर घुसाए जाने से अंदरूनी हिस्सों को नुकसान का खतरा रहता है। 

सीटी कॉरोनरी एंजियॉग्रफी : इसमें शरीर में कैथेटर डाले बगैर मशीन से नाड़ियों के अंदर के एक्सरे लिए जाते हैं और ब्लॉकेज का पता लगाया जाता है। 

थैलियम जांच : इस जांच में चार-पांच घंटे का वक्त लग जाता है। इसे आराम और एक्सरसाइज के दौरान दिल को मिल रहे खून के प्रवाह की जांच के लिए किया जाता है। इसके लिए मरीज को दिल की स्पीड बढ़ाने वाली कुछ दवाएं देकर ट्रैडमिल पर चलाया जाता है। 

सीरम लिपिड प्रोफाइल : इसमें कई टेस्ट होते हैं, जोकि धमनियों में जमा फैट की मात्रा का पता लगाने के लिए किए जाते हैं। इनके जरिए कॉलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड, एचडीएल और एलडीएल के लेवल का पता लगाया जाता है। दिल के मरीज को हर तीन महीने बाद यह टेस्ट कराना चाहिए। 

हार्ट अटैक 
हार्ट अटैक के दौरान दिल की मांसपेशियों के एक हिस्से को खून की सप्लाई पूरी तरह से रुक जाती है। इससे दिल की मांसपेशियों को खून व ऑक्सिजन नहीं मिलता और दिल की धड़कन रुक जाती है। माइनर हार्ट अटैक में दिल की मांसपेशियों का 5 से 10 फीसदी हिस्सा प्रभावित होता है, जबकि मेजर हार्ट अटैक में 30-40 फीसदी हिस्सा प्रभावित होता है। 

कब होता है : वैसे तो हार्ट अटैक कभी भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर सुबह के वक्त, फैटवाला खाना पेट भर खाने पर, अचानक तेज गुस्सा आने, बहुत दुखी होने, भारी सदमे या तनाव की स्थिति में होता है। 

ब्लॉकेज की मुख्य वजहें 
ब्लॉकेज बनने और उसके बढ़ने की ये वजहें हो सकती हैं : 
कॉलेस्ट्रॉल : खून में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा 160-180एमजी/डीएल और ट्राइग्लिसराइड की मात्रा 100-130एमजी/डीएल सेफ मानी जाती है। हालांकि 130एमजी/डीएल तक कॉलेस्ट्रॉल होना ही बेहतर है। खून में एचडीएल यानी गुड कॉलेस्ट्रॉल 40एमजी/डीएल से ज्यादा होना चाहिए। यह ब्लॉकेज हटाने का काम करता है। एलडीएल यानी बैड कॉलेस्ट्रॉल 70-100एमजी/डीएल से ज्यादा नहीं होना चाहिए। कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा हो तो ब्लॉकेज हो सकती है। 

हाई बीपी और डायबीटीज : हाई बीपी और डायबीटीज हार्ट अटैक की वजह बन सकते हैं। बीपी अगर 120/80एमजी/डीएल से ज्यादा हो या शुगर फास्टिंग 100 एमजी/डीएल व खाने के बाद 140एमजी/डीएल से ज्यादा हो तो ब्लॉकेज बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है। बीपी कंट्रोल में न हो तो महीने में एक बार जांच जरूर करानी चाहिए। हाई बीपी के मरीजों को नमक कम खाना चाहिए। 

मोटापा : मोटापा भी ब्लॉकेज बढ़ा सकता है। बीएमआई 25 से ज्यादा और कमर का माप 34 इंच से ज्यादा नहीं होना चाहिए। 

टेंशन : टेंशन ब्लॉकेज बढ़ने की ज्यादातर वजहों में इजाफा करता है। 

स्मोकिंग और शराब : किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन (सिगरेट, जर्दा, गुटका, खैनी आदि) दिल के लिए खतरनाक है। इससे दिल की धमनियां चिपचिपी हो जाती हैं और उन पर आसानी से फैट जमा हो जाता है। 

एक्सरसाइज की कमी : फिजिकली एक्टिव न होने से दिल की बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। दिल को सेहतमंद रखने के लिए रोजाना कम-से-कम 35 मिनट सैर और एक्सरसाइज करें। 

फाइबर की कमी : दिल की बीमारी से बचने के लिए फाइबर से भरपूर खाना खाना चाहिए। फलों और सब्जियों में रेशे यानी कि फाइबर होता है, जो आंतों में फैट को कम करता है। खाने में फाइबर और एंटी-ऑक्सिडेंट यानी विटामिन ए, सी, ई के अलावा मैग्नीज, जिंक आदि ज्यादा लेना चाहिए। ये फलों और अंकुरित दालों में पाए जाते हैं।

क्या है इलाज 
ब्लॉकेज तीन तरह के हो सकते हैं। अगर ब्लॉकेज करीब 30-40 फीसदी है और मेन आर्टरी में नहीं है तो दवाओं से इलाज करने की कोशिश की जाती है। अगर ब्लॉकेज क्रिटिकल (30-40 फीसदी से ज्यादा) हैं, पर दो-तीन जगह से ज्यादा नहीं हैं तो स्टेंट से इलाज किया जा सकता है। अगर ब्लॉकेज क्रिटिकल हैं और दो-तीन से ज्यादा जगह पर हैं तो बाईपास ही फायदेमंद है। 

बाईपास : यह बड़ा ऑपरेशन है। इसमें मरीज के दिल की धड़कन थोड़ी देर के लिए रोककर मशीन से खून की सप्लाई जारी रखी जाती है। ऑपरेशन से मरीज के पैर, छाती या हाथ की नस काटकर ब्लॉकेज वाली नस के स्थान पर इसके जरिए दिल को खून की सप्लाई दी जाती है। 

खर्च : दो से तीन लाख रुपये 

टाइम : ऑपरेशन में करीब 3-4 घंटे। दो हफ्ते तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। 

फायदा : इस ऑपरेशन के बाद आमतौर पर मरीज का दिल 10-12 साल तक ठीक काम करता है। 

एंजियोप्लास्टी (स्टेंट लगवाना) : इसमें ब्लॉकेज को एक बैलून के जरिए धक्का देकर खोला जाता है। बैलून को कैथेटर के जरिए पैर या हाथ से शरीर में डालकर दिल तक ले जाते हैं और ब्लॉकेज खोलते हैं। फिर वहां स्टेनलैस स्टील का एक छल्ला (स्टेंट) लगा दिया जाता है, ताकि फिर से रुकावट न हो। शुगर के पेशंट्स में और बड़े ब्लॉकेज में लंबे स्टेंट लगाने पर स्टेंट के जल्दी बंद होने की आशंका होती है। 

खर्च : दो से पांच लाख रुपये। जितने स्टेंट लगाए जाने हैं, उसी के मुताबिक खर्च होता है। एक स्टेंट की कीमत एक से डेढ़ लाख रुपये वसूली जाती है। 

टाइम : करीब आधा घंटा। 

फायदा : इसमें शरीर को काटने की जरूरत नहीं होती। सिर्फ जांघ में एंजियॉग्रफी की तरह छोटा-सा छेद किया जाता है, लेकिन फिर से ब्लॉकेज होने की आशंका बनी रहती है। 

दवाएं : दिल की बीमारी में दवाओं का काम ब्लॉकेज वाली नसों को चौड़ा कर मरीज को आराम दिलाना है। कुछ दवाएं दिल की रफ्तार को धीमा करती हैं, कुछ खून को पतला करती हैं तो कुछ कॉलेस्ट्रॉल कम करती हैं। इन दवाओं में सॉबिर्टेट, बीटा ब्लॉकर, नाइट्रेट्स, इकोस्प्रिन, स्टेटिन आदि शामिल हैं। दवाओं से फौरी राहत जरूर मिलती है लेकिन ये ब्लॉकेज दूर नहीं करतीं। 

बायोकेमिकल क्लिनिंग : इसमें इंजेक्शन से कुछ दवाएं शरीर में डाली जाती हैं, जिससे 5 से 50 फीसदी तक ब्लॉकेज खुलने की उम्मीद होती है। इस पर अमेरिका में अब भी रिसर्च चल रही हैं। इसमें 15 से 20 इंजेक्शन लगाए जाते हैं और एक इंजेक्शन की कीमत करीब दो हजार रुपये आती है। 

लाइफस्टाइल में करें बदलाव 
लाइफस्टाइल में बदलाव करने और नियमित रूप से सही दवाएं लेते रहने से दिल की बीमारी के 95 फीसदी मामलों में बाईपास या एंजियोप्लास्टी कराने से बचा जा सकता है। 

खाने में बदलाव 
खाने में तेल के इस्तेमाल से ब्लॉकेज तेजी से बढ़ता है, इसलिए तेल कम-से-कम इस्तेमाल करें। वैसे भी, तेल में अपना कोई स्वाद नहीं होता। खाने में स्वाद मसालों से आता है। इसके अलावा अनाज, फलों और सब्जियों में भी फैट होता है। ये सब खाने से शरीर को 18 फीसदी फैट मिल जाता है, इसलिए अलग से ऑयल की जरूरत नहीं पड़ती। 

दूध और दूध से बनी चीजें भी लिमिट में खाएं। मीट, चिकन, अंडा, दूध और पनीर आदि चीजें कॉलेस्ट्रॉल का सोर्स होती हैं। जिनका कॉलेस्ट्रॉल पहले ही ज्यादा है, वे दिन में 200 ग्राम से ज्यादा दूध न लें और वह भी डबल टोंड। दूध न पीने पर होनेवाली कैल्शियम की कमी की भरपाई राजमा, मोठ, चना, पत्तेदार सब्जियां, कमल ककड़ी, मेथी आदि से की जा सकती है। 

ज्यादा-से-ज्यादा फल खाएं। डायबीटीज के मरीज ऐसे फल खाएं, जिनमें मिठास कम हो। 

स्ट्रेस मैनेजमेंट 
स्ट्रेस दिल की बीमारी के मुख्य कारणों में से है। क्षमता से ज्यादा काम, कमाई से ज्यादा खर्च, जिंदगी में असंतुलन आदि दूर करें। दूसरों से बात करने की कुशलता भी सीखें। 

नियमित सैर करें 

रोजाना कम-से-कम 35 मिनट टहलना चाहिए। टहलने से दिल की स्पीड बढ़ती है, जिससे दिल की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। 

एक्सरसाइज 
दिल एक मिनट में करीब 70 बार धड़कता है। हालांकि इसकी कैपेसिटी एक मिनट में 200 बार तक धड़कने की है, लेकिन फिजिकल एक्सरसाइज न करने की वजह से यह अपनी कैपेसिटी से बहुत कम धड़कता है। जो लोग एक्सरसाइज नहीं करते, वे दौड़ने, तेज चलने और सीढ़ियां चढ़ने आदि के दौरान फौरन थक जाते हैं। दिल की धमनियों में कोई रुकावट होने या एंजाइना के मरीजों में यह समस्या ज्यादा होती है। दिल के मरीजों को नियमित रूप से एक्सरसाइज करनी चाहिए। इससे दिल को सेहतमंद रहने में मदद मिलती है और एंजाइना रुकता है। एक्सरसाइज से कैलरी खर्च होती हैं और कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। इससे ट्राइग्लिसराइड और ब्लड शुगर का लेवल भी कम होता है। 

कितनी एक्सरसाइज करें 
दिल की बीमारी से बचने और स्टेमिना बढ़ाने के लिए किसी भी सेहतमंद आदमी को रोजाना कम-से-कम आधा घंटा एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए। दिल के मरीजों को भी रेग्युलर एक्सरसाइज करनी चाहिए। एंजाइना दूर करने और धमनियों में रुकावट कम करने में यह बहुत मददगार होती है। जानकारी की कमी से दिल के बहुत-से मरीज एक्सरसाइज छोड़ देते हैं, जिससे बाद में बीमारी बढ़ती है। लेकिन दिल के मरीज एक्सरसाइज करते हुए उसकी स्पीड और टाइम का ध्यान रखें। एक्सरसाइज सही स्पीड से न करने पर एंजाइना हो सकता है। ऐसा होने पर एक्सरसाइज कम कर देनी चाहिए। एक्सरसाइज के दौरान दिल की धड़कन बढ़ जाती है, जिससे दिल की ऑक्सिजन की जरूरत भी बढ़ जाती है। जब तक धमनियां इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करती रहती हैं, तब तक एंजाइना नहीं होता। लेकिन जब धमनियां उस मांग को पूरा करने में कामयाब नहीं हो पातीं तो समस्या पैदा होती है। मरीज 'एक्सरसाइज स्ट्रेस टेस्ट' यानी टीएमटी कराकर दिल की धड़कन की सेफ स्पीड का पता कर सकते हैं। एक्सरसाइज करते हुए मरीज अपने दिल की धड़कन की स्पीड खुद माप सकता है। वह एक हाथ की दो उंगलियां दूसरे हाथ की कलाई पर हथेली से चार उंगलियों की दूरी पर रख कर नाड़ी की रफ्तार महसूस कर सकता है और 10 सेकंड में जितनी बार नब्ज चले, उसे छह से गुणा करने पर एक मिनट में दिल की धड़कन की स्पीड पता चल जाएगी। 

नोट : अगर दिल के मरीज हैं तो कोई भी एक्सरसाइज शुरू करने से पहले हार्ट स्पेशलिस्ट से जरूर सलाह लें और उस पर अमल करें। 

योग करें 
योग से दिल की बीमारी के कारणों को 70 फीसदी तक कंट्रोल किया जा सकता है। मेडिटेशन से तनाव कम करने में मदद मिलती है। तनाव से बीपी और शुगर बढ़ते हैं। योग करनेवाले मरीजों की दवा की मात्रा भी कम हो सकती है। दिल के मरीजों को आसन, अनुलोम-विलोम और ध्यान करना चाहिए। नीचे लिखे आसन करें : 

योगासन 

खड़े होकर : ताड़ासन और पादहस्तासन 

बैठकर : शशांक आसन और वज्रासन 

पेट के बल लेटकर : भुजंगासन और शलभासन 

पीठ के बल लेटकर : उत्थानपादासन और मेरुदंडासन 

प्राणायाम और ध्यान 

अनुलोम-विलोम प्राणायाम : अनुलोम-विलोम में सुखासन में रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर बैठना चाहिए और अंगूठे से एक ओर की नासिका बंद कर दूसरी ओर की नासिका से गहरी सांस लें। उस सांस को छोड़ने के लिए पहली ओर की नासिका उंगली से बंद कर लें और दूसरी ओर की नासिका खोलकर उससे धीरे-धीरे सांस छोड़ें। फिर उसी ओर की नासिका से गहरा सांस लें और अंगूठे से उस नासिका को बंद कर दूसरी ओर की नासिका से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। ध्यान रहे कि जिस ओर की नासिका से सांस ली है, उससे दूसरी ओर की नासिका से सांस छोड़नी है और फिर जिस नासिका से सांस छोड़ी है, उसी से सांस लेनी है। सांस गहरी लें और धीरे-धीरे छोड़ें। 

मेडिटेशन करें: रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर सुखासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर मन में विचारों को आने-जाने दें। उन्हें रोकने के लिए मन में तनाव पैदा न करें। विचारों के आने-जाने पर नियंत्रण रखना मुमकिन नहीं है। बस इतना करें कि आंखें बंद कर अपनी सांस के आने-जाने पर ध्यान केंदित करने की कोशिश करें। या आंखें बंद कर अपने शरीर के हर अंग का मन से अवलोकन करें या फिर दिल के पास मौजूद 'अनाहत चक्र' पर ध्यान लगाएं। 

शीतलीकरण : शीतलीकरण की प्रक्रिया के लिए सुखासन में रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर बैठ जाएं और फिर होठों को गोल कर जीभ को होठों की गोलाई में ही हल्का-से बाहर निकाल लें। फिर मुंह से सांस लें और फेफड़ों में भर लें। फिर मुंह बंद करके सांस को धीरे-धीरे नाक से निकाल दें। 

कायोत्सर्ग : कायोत्सर्ग से शरीर और मन को रिलैक्स किया जाता है। जब भी मरीज को गुस्सा आए, मन स्थिर न हो या थकान महसूस हो तो शवासन में लेटकर कायोत्सर्ग करें। इसमें एक-एक कर शरीर के एक-एक हिस्से पर ध्यान लगाएं और महसूस करें कि वह रिलैक्स हो रहा है। इससे धीरे-धीरे पूरी बॉडी रिलैक्स हो जाती है। 

कब करें : योग करने का सही वक्त सुबह का होता है। लेकिन अगर सुबह समय न मिले तो कभी भी योग कर सकते हैं। योग सुबह खाली पेट करना चाहिए या फिर खाना खाने से कम-से-कम तीन घंटे बाद किया जाना चाहिए। योग से पहले जूस ले सकते हैं। 

हार्ट अटैक होने पर 
हार्ट अटैक से ठीक होने के एक हफ्ते बाद टहलना शुरू कर देना चाहिए। सुबह नाश्ते से दोपहर के खाने के बीच और रात के खाने से आधा घंटा पहले घर में ही एक मिनट टहलें। दो-तीन दिन बाद टहलने का समय दो मिनट कर दें। दो-तीन दिन बाद तीन मिनट कर दें। इस तरह जब टहलने का समय पांच मिनट तक पहुंच जाए तो टहलने के लिए बाहर जाएं। 

सावधानियां : ध्यान रहे कि खाली पेट ही घूमें। खाना खाने के बाद एक घंटे तक नहीं टहलना चाहिए। चढ़ाई या ढलान पर स्पीड बहुत कम रखनी चाहिए। 

दिल की बीमारी और सेक्स 
आमतौर पर दिल के मरीज एंजाइना या हार्ट अटैक होने के डर से सेक्स करना छोड़ देते हैं, जबकि सेक्सुअल गतिविधियां तनाव से निजात दिलाती हैं। दिल के मरीजों को सेक्स के दौरान कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए।

पहली - सेक्स के दौरान जहां तक हो सके, शांत रहें और साथी को सक्रिय भूमिका निभाने दें। 

दूसरी - जल्दबाजी नहीं करें। 

तीसरी - सेक्स से पहले 'सब-लिंगुअल सॉर्बिट्रेट' की एक गोली ली जा सकती है। सब-लिंगुअल यानी जीभ के नीचे रखी जानेवाली। 

नोट : दिल के मरीज को वायग्रा जैसी दवाएं बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए। 

होम्योपैथी 
होम्योपैथी में दिल की बीमारी के इलाज के लिए कई दवाएं मौजूद हैं। हालांकि ये दवाएं बहुत धीरे असर करती हैं। दिल की बीमारी में एकोनाइट, स्ट्रॉफैंथस, कैटेगस आदि दवा दी जाती है। होम्योपैथी में रुमेटिक हार्ट डिसीज (वॉल्व्स का सख्त होना) का अच्छा इलाज मौजूद है। काल्मिया, रसटॉक्स, मेडोरिनम के इस बीमारी में कारगर रिजल्ट मिले हैं। बीपी धमनियों में ब्लॉकेज की मुख्य वजह बनता है। बीपी ठीक रखने के लिए रॉवलफिया, एलियम, सैटाइवा, बेलाडोना दवाएं काफी प्रभावी रहती हैं। 

नेचरोपैथी 
ब्लॉकेज दूर करने के लिए देसी पान के पत्तों का करीब तीन चम्मच रस, अदरक का तीन चम्मच रस, लहसुन का तीन चम्मच रस, प्याज का तीन चम्मच रस शहद में मिलाकर रोजाना सुबह-शाम कुछ भी खाने के एक घंटा पहले लें और एक घंटे बाद तक कुछ न खाएं। अगर शुगर हो तो शहद की बजाय करेला और तीन-चार टमाटर का रस मिला लें। छह महीने से एक साल तक नियमित रूप से लें। पान का रस ब्लॉकेज खोलता है, जबकि प्याा का रस धमनियों में कॉलेस्ट्रॉल को जमने नहीं देता। लहसुन नसों को खोलता है। 

करीब 100 ग्राम उड़द की दाल रात में भिगो दें। सुबह कपड़छान कर दाल के साथ 10 ग्राम अरंडी का तेल, 10 ग्राम शुद्ध गुग्गल, 10 ग्राम गाय का मक्खन मिलाकर करीब घंटे भर तक सिलबट्टे पर पीसें। सिलबट्टा न हो तो मिक्सी में ही अच्छी तरह पीसें। इस मिश्रण को नहाने के बाद छाती से पेट तक लेप करें। करीब दो घंटे तक लगा रहने दें। फिर लेप को साफ कर लें। रोजाना लगाएं। इस प्रोसेस को छह महीने से एक साल तक लगातार करने से ब्लॉकेज खुल जाते हैं। ध्यान रखें कि अगर ब्लॉकेज न हो और सिर्फ हार्ट बीट बढ़ी हुई हो तो लेप लगाने की जरूरत नहीं है। तब सिर्फ पान के पत्तों का रस, अदरक, लहसुन, प्याज का ही रस लें। 

खाने में प्याज का इस्तेमाल ज्यादा करें। दोपहर को हींग और जीरा डालकर छाछ पिएं। 

गेहूं, चना और जौ को बराबर मात्रा में मिलाकर पिसवा लें। इस आटे को भूनकर रख लें। गेहूं, चने और जौ के इस भुने हुए आटे को छाने बगैर ही गूंथें और रोटी बनवाएं। चना कॉलेस्ट्रॉल सोख लेता है और ब्लॉकेज नहीं बनने देता। जौ किडनी को फिल्टर करता है। जौ में मौजूद ओमेगा-थ्री दिल के लिए काफी अच्छा होता है। 

रोजाना सेब का रस पीने से कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। सेब का रस खाली पेट पीना चाहिए। अगर दिन में सेब के रस का सेवन करें तो रस पीने से एक घंटे पहले कुछ नहीं खाना चाहिए। 

रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में चौथाई चम्मच हल्दी डालकर पिएं। । 

एक कप ठंडे पानी में एक नीबू निचोड़ कर सुबह-शाम लगातार 30 दिन तक पिएं। इसके बाद एक दिन छोड़ कर लें। एक महीने बाद दो दिन छोड़कर नीबू पानी पिएं। इसके अलावा, तरबूज की गिरी (मींगरी) एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाएं। लंबे समय तक नीबू पीने और मींगरी खाने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है, जो दिल की बीमारी की प्रमुख वजहों में से है। 

आयुर्वेद 
आयुर्वेद दिल की बीमारी के लक्षणों का नहीं, बल्कि उसकी वजहों का इलाज करता है। वात, कफ और पित्त के असंतुलन और 'रस धातु' में गड़बड़ को ठीक कर देने से दिल की बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है। 

दिल के मरीज के लिए लहसुन बहुत फायदेमंद है। सुबह खाली पेट लहसुन की तीन-चार कलियां निगलने से खून का गाढ़ा होना रुकता है और गैस नहीं बनती। यह ब्लॉकेज को भी रोकता है। 

अर्जुनारिष्ट (अर्जुन की छाल से बनी दवा) दिल की बीमारी में कारगर होती है, पर आयुर्वेदिक दवाओं को किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही लेना चाहिए। 

हार्ट डे का थीम 
इस बार का थीम है 'वेलनेस एंड वर्क', यानी काम करते हुए सेहतमंद कैसे रहा जाए और अपने दिल का ख्याल कैसे रखा जाए? वक्त की कमी की वजह से जो लोग एक्सरसाइज नहीं कर पाते, वे इन बातों का ध्यान रखें : 

बस स्टैंड तक रिक्शा से नहीं, पैदल जाएं। 

कार ऑफिस से दूर पार्क करें और वहां से पैदल ऑफिस जाएं। 

लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें। 

ऑफिस में किसी साथी को कॉल करने के बजाय उसकी सीट तक चलकर जाएं। 

चाय-कॉफी मंगाने या फोटोस्टेट/फैक्स आदि कामों के लिए खुद चलकर जाएं। 

कभी टेंशन तो कभी थकान के बहाने बार-बार चाय-कॉफी न पिएं। 

ऑफिस में जिम है तो ब्रेक के दौरान या ऑफिस टाइम के बाद रुककर एक्सरसाइज करें। 

फैमिली फिजिशियन से रेग्युलर चेकअप कराएं। इससे वक्त रहते बीमारी का पता चल सकता है। 

सेवा के लिए समर्पित माने जानेवाले मेडिकल सेक्टर में भी अब कमर्शलाइजेशन हावी है। मौत का डर दिखाकर इलाज और टेस्ट के नाम पर कई बार मरीज से भारी रकम वसूल ली जाती है। दिल के इलाज में ऐसा अक्सर होता है। बाईपास सर्जरी और स्टेंट को लेकर अक्सर तस्वीर साफ नहीं होती कि इनमें से कौन-सा इलाज मरीज के लिए बेहतर होगा? यह भी अहम सवाल है कि स्टेनलैस स्टील के एक छल्ले (स्टेंट) की कीमत इतनी ज्यादा क्यों है? क्या इसके लिए दवा कंपनियों और डॉक्टरों की सांठगांठ जिम्मेदार है? या फिर नामी डॉक्टरों को मिलनेवाले बड़े पैकेज के बाद कमाई का दबाव इसकी वजह है? 

छोटा-सा दिल! लेकिन शरीर में सबसे ज्यादा काम करने की जिम्मेदारी इसी छोटे-से दिल की होती है। यह जिंदगी भर धड़कता रहता है और पूरे शरीर के हर हिस्से को खून और ऑक्सिजन पहुंचाता रहता है। जिंदगी भर एक पल के लिए भी रुक नहीं सकता। रुका तो जिंदगी खत्म। इसी दिल के साथ हम कितना अत्याचार करते हैं, इसका अंदाजा उस वक्त बिल्कुल नहीं होता, जब चटपटा और तला-भुना खाना चटखारे लेकर खाते हैं। जानते हुए भी उस वक्त शायद ही ध्यान आता हो कि ऐसा खाना दिल को जिंदगी देने के लिए खून ले जानेवाली धमनियों में फैट को जमा कर ऐसा ब्लॉकेज बना देता है कि खून दिल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। इसके बाद डॉक्टरों की शरण लेनी पड़ती है। 

जेब को चपत 
दिल को लगा एक झटका मरीज या उसके परिवार वालों की जेब के लिए भारी चपत साबित होता है। अक्सर डॉक्टर एंजियोग्राफी की मेज तक पहुंचने वाले मरीज को बीमारी का डर दिखाकर बाईपास या एंजियोप्लास्टी कराने के लिए तैयार कर लेते हैं। डॉक्टर एंजियोप्लास्टी या स्टेंट लगवाने के पक्ष में भारी तर्क देते हैं, हालांकि ये भी बीमारी से निजात दिलाने की सौ फीसदी गारंटी नहीं हैं। पिछले 20 बरसों में जितने भी स्टेंट माकेर्ट में आए, उनमें दिक्कत पाए जाने पर नए स्टेंट आ गए। पहले सादा बैलूनिंग होती थी, फिर सामान्य स्टेंट आया, फिर गोल्ड स्टेंट लेकिन एक-एक कर ये सभी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। इसके बाद आया रेडियोएक्टिव स्टेंट और अब मेडिकेटिड स्टेंट लगाया जाता है। लेकिन यही मेडिकेटिड स्टेंट अमेरिका में विदा होने की तैयारी में है। वजह, मेडिकेटिड स्टेंट लगवाने वालों में से 66 फीसदी मरीजों में एक साल में ही फिर से ब्लॉकेज शुरू हो जाता है लेकिन हम तो फिलहाल इसी के भरोसे हैं। कई डॉक्टर ब्लॉकेज खत्म करने का दावा करते हैं लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है। इनमें मामूली अंतर तो आ सकता है लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता। वैसे परहेज या सही दवा खाने से ब्लॉकेजों के बढ़ने को कुछ हद तक रोका जा सकता है। 

कौन-सा इलाज बेहतर 
दिल की बीमारी के इलाज में स्टेंटिंग, बाईपास और दवाएं शामिल हैं। दिल में कुल तीन मुख्य आर्टरीज (दिल से शरीर को साफ खून सप्लाई करनेवाली पाइप) होती हैं। इन्हीं में फैट जमा होने से ब्लॉकेज होती हैं। अगर एक या दो आर्टरी में रुकावट हो तो स्टेंट लगाया जा सकता है, लेकिन अगर सभी आर्टरीज में ब्लॉकेज हो, दो आर्टरीज में सौ फीसदी ब्लॉकेज हो या लेफ्ट मेन आर्टरी बंद हो तो बाईपास कराने को कहा जाता है। 50 साल से कम उम्र के मरीजों को अच्छे स्टेंट लगाने से बाईपास जैसे रिजल्ट मिल सकते हैं। स्टेंट अच्छी क्वॉलिटी का और सही आकार का होना चाहिए। वैसे तो ये दोनों ही विकल्प सही हैं, पर अगर एक को चुनना हो तो बाईपास को स्टेंट से बेहतर कहा जा सकता है। बाईपास सर्जरी के बाद आमतौर पर मरीज 10-12 साल तक ठीक रह सकता है, जबकि स्टेंट लगवाने के छह महीने से लेकर दो साल के बीच फिर से ब्लॉकेज के लक्षण दिखने लगते हैं। 

अगर पूरा परहेज किया जाए, शुगर, बीपी आदि को कंट्रोल में रखा जाए, स्मोकिंग व नशे से दूर रहें, कंट्रोल्ड डाइट ली जाए और रेग्युलर एक्सरसाइज की जाए तो स्टेंट भी 12-15 साल तक चल जाता है और इससे ज्यादा भी चल सकता है। छाती की नस (लीमा ग्राफ्ट) से की गई बाईपास सर्जरी से मरीज 12-15 साल तक ठीक रह सकता है। आमतौर पर बाईपास में टांग से नस लेकर ग्राफ्ट लगाया जाता है और 10-12 साल के बाद उनमें धीरे-धीरे ब्लॉकेज होने लगती है। अगर छाती से नस ली जाती है तो वह आमतौर पर ब्लॉकेज नहीं होती या लंबे समय बाद ब्लॉकेज होती है। वैसे, बाईपास में भी उतने ही परहेज की जरूरत होती है, जितनी स्टेंट लगवाने के बाद होती है। स्टेंट लगवाने के बाद कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। खून को पतला करने की दवाएं रेग्युलर लेनी चाहिए। स्टेंट लगवाने के बाद जब भी कोई सर्जरी या दांत निकलवाया जाए तो स्टेंट डालने वाले डॉक्टर से नई दवाओं के बारे में सलाह जरूर ली जानी चाहिए। स्टेंट लगवाने के बाद अगर दवाएं बंद कर दी जाएं तो काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

मेदांता मेडिसिटी के चेयरमैन और नामी कार्डिएक सर्जन डॉ. नरेश त्रेहन के मुताबिक स्टेंट लगवाने के बाद पांच साल में उसके बंद होने की आशंका 30 फीसदी होती है, जबकि बाईपास में यह आशंका 5 फीसदी होती है। एक या दो छोटी ब्लॉकेज में स्टेंट कामयाब हो सकता है लेकिन लंबे या मल्टिपल ब्लॉकेज में स्टेंट लगवाने का खास फायदा नहीं होता। बाईपास सर्जरी के चलने की कोई उम्र नहीं होती। अगर संयमित जिंदगी जी जाए तो ताउम्र फिर से बाईपास की जरूरत नहीं पड़ती। 

वजह सांठगांठ तो नहीं? 
स्टेंट की क्वॉलिटी के साथ उसकी लागत पर भी सवाल खड़ा होता है कि जब इसे बनाने में ज्यादा-से-ज्यादा सौ डॉलर (करीब 4-5 हजार रुपये) का खर्च आता है तो इसे लगाने के लाखों रुपये क्यों लिए जाते हैं? स्टेंट एक-दो ग्राम के वजन की स्टेनलैस स्टील का बना होता है और इसमें कैंसर में इस्तेमाल होनेवाली दवा की कोटिंग होती है। इसकी लागत 4-5 हजार रुपये से ज्यादा नहीं होती, जबकि इसे लगाने के बदले एक-डेढ़ लाख रुपये वसूले जाते हैं, जोकि बहुत ज्यादा हैं। जानकार मानते हैं कि इसमें कंपनियों ने कमिशन तय किया हुआ है, जिसकी वजह से इसकी कीमत इतनी बढ़ जाती है। ऐसा नहीं है कि माकेर्ट में सिर्फ विदेशी स्टेंट ही हैं। भारतीय स्टेंट भी मौजूद हैं। पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पर 'कलाम स्टेंट' है, जिसकी कीमत पांच हजार रुपये है लेकिन उसमें कमिशन वाला गोरखधंधा नहीं है इसलिए उसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता। 

डॉ. त्रेहन इस बात को स्वीकार करते हैं कि कुछ डॉक्टर वाकई लालच में मरीज को गुमराह करते हैं। इसकी वजह, कंपनियां का डॉक्टरों को दिया जाने वाला कमिशन है लेकिन मरीजों के साथ धोखा करनेवाले और कंपनियों से कमिशन खाने वाले डॉक्टरों की इज्जत बरकरार नहीं रहती और इसके बाद मरीज उसके पास जाना छोड़ देते हैं। 20 से 25 फीसदी मामलों में डॉक्टर अपने फायदे को ज्यादा तरजीह दे देते हैं। भारतीय कंपनियों के स्टेंट के बारे में उनका कहना है कि इस बारे में कोई इंटरनैशनल डेटा मौजूद नहीं हैं। जब दिल का मामला हो तो भरोसा जरूरी है। भारतीय स्टेंट अब तक विश्वसनीय नहीं हो सके हैं। 

मेट्रो हार्ट हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. पुरुषोत्तम लाल का भी मानना है कि यह बात कुछ हद तक सही है कि स्टेंट बनाने वाली कंपनियां डॉक्टरों के साथ सांठगांठ रखती हैं और उन्हें परिवार के साथ विदेश घूमने के मौके देती हैं। ये कंपनियां उन्हें और भी कई तरह के लालच देती हैं। अच्छे और समझदार डॉक्टर ऐसी सांठगांठ से दूर रहते हैं। यह सांठगांठ बंद हो जाए तो देश में मेडिकल सविर्सेज की लागत काफी कम हो सकती है। 

ब्रेन ड्रेन भी है एक मसला 
बकौल डॉ. लाल, मेडिकल सुविधाओं की कीमत बेहद बढ़ने की वजहों में से इंटर-हॉस्पिटल ब्रेन ड्रेन भी है। यह सिलसिला इतना भयानक चल रहा है कि अनुमान लगाना मुश्किल है। अच्छे डॉक्टर को लेने के लिए हॉस्पिटलों में होड़ लगी रहती है और बदले में डॉक्टर को बेहद मोटी रकम दी जाती है। करोड़ों की इस तरह की डील के बदले डॉक्टरों के सामने बड़े टारगेट रखे जाते हैं और बड़ी सैलरी देने की वजह से उनसे रिटर्न की उम्मीदें भी बड़ी-बड़ी बांधी जाती हैं। उन टारगेटों को पूरा करने के लिए डॉक्टरों में कमर्शल टेंडेंसी आ जाती है। हालांकि सभी डॉक्टर ऐसे नहीं होते। अच्छे और अपने काम के प्रति समर्पित डॉक्टर इस तरह की चीजों में शामिल नहीं होते। 

एक दावा यह भी 
मॉडर्न साइंस जहां दिल की बीमारी के इलाज में दवाओं और सर्जरी की बात करता है, वहीं एक पक्ष ऐसा भी है, जो कहता है कि बाईपास या एंजियोप्लास्टी न सिर्फ बहुत महंगी हैं, बल्कि सौ फीसदी कामयाब भी नहीं हैं। बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें बाईपास या एंजियोप्लास्टी कराने वालों के दिल में रुकावटें फिर से पैदा होने लगीं और बीमारी बनी रही। इसकी मुख्य वजह यह है कि डॉक्टर मर्ज का इलाज तो कर देते हैं लेकिन मर्ज की वजहें दूर नहीं करते यानी मरीजों को लाइफस्टाइल मैनेजमेंट नहीं सिखाते। इसके लिए डॉक्टरों को मरीज के साख खासा वक्त बिताना पड़ता है, जिसके लिए अमूमन डॉक्टर तैयार नहीं हैं। 

साओल यानी साइंस एंड आर्ट ऑफ लिविंग की हिमायत करनेवाले डॉ. बिमल छाजेड़ का दावा है कि लाइफस्टाइल बदलने से बीमारी से राहत मिल सकती है। इसमें योग और ध्यान के जरिए शारीरिक व मानसिक तनाव को कम करने के तरीके और ऑयल-फ्री खाना पकाना सिखाया जाता है। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि साओल का असर स्थायी तो होता है लेकिन चमत्कारिक नहीं। इसका असर धीरे-धीरे होता है। अगर किसी को हार्ट अटैक हो जाए या दिल से संबंधित किसी और बीमारी की वजह से इमरजेंसी के हालात पैदा हो जाएं तो मॉडर्न मेडिकल साइंस ही कारगर है। ऐसी स्थिति आने पर मरीज को जल्द-से-जल्द अस्पताल पहुंचना चाहिए। 

दूसरी ओर, डॉ. लाल के मुताबिक लाइफस्टाइल मैनेजमेंट से स्टेंट लगाने या बाईपास कराने की जरूरत खत्म करने का दावा सही नहीं है। सिर्फ लाइफस्टाइल बदलने से उस ब्लॉकेज का इलाज नहीं हो सकता, जिसके लिए स्टंट लगवाने या बाईपास कराने की जरूरत है। अगर बॉर्डर लाइन ब्लॉकेज है या ऐसे ब्लॉकेज हैं, जो महत्वपूर्ण आर्टरीज में नहीं हैं तो उनके लिए लाइफस्टाइल मैनेजमेंट से काम चल सकता है। 

प्रियंका सिंह बता रही हैं कि दिल को लेकर कॉरपोरेट वर्ल्ड कितना बेपरवाह है- 
पढ़े-लिखे और ऊंचे ओहदे वाले लोग अपनी सेहत को लेकर ज्यादा जागरूक होते हैं। वे अपना और अपनी फैमिली का रेग्युलर मेडिकल चेकअप कराते हैं। उन्हें सेहत के बारे में अच्छी जानकारी होती है। आम धारणा के उलट हालिया सर्वे ने ये तमाम बातें झुठला दी हैं। इस सर्वे में पता चला कि कॉरपोरेट वर्ल्ड में काम करनेवाले 76 फीसदी लोग दिल की सेहत की जांच के लिए कोई टेस्ट नहीं कराते, जबकि 78 फीसदी को मालूम ही नहीं है कि वे किस रिस्क फैक्टर जोन में आते हैं। मैक्स हेल्थकेयर द्वारा कराए गए इस सवेर् में इफको, जीई, अमेरिकन एक्सप्रेस, हीरो होन्डा और नेस्ले आदि कंपनियों के 1000 कर्मचारियों को शामिल किया गया, जिसमें 20-60 साल के हर तबके के एम्पलॉयी थे। 

वर्ल्ड हार्ट-डे के मौके पर जारी इस सवेर् का मकसद यह पता लगाना था कि हमारी इंडस्ट्री के लोग अपने दिल को लेकर कितने सेहतमंद और जागरूक हैं? नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। करीब 63 फीसदी लोगों को लगता ही नहीं है कि उन्हें दिल की बीमारी हो सकती, जबकि 20 फीसदी में इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री पाई गई। 39 फीसदी अपने बच्चों का भी चेकअप नहीं कराते तो 30 फीसदी को लाइफस्टाइल में बदलाव से होनेवाले फायदों की कोई जानकारी नहीं है। 

मैक्स हॉस्पिटल के सीनियर कार्डियोलजिस्ट और सर्वे के सुपरवाइजर डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि इस सर्वे से साबित हो गया कि पढ़े-लिखे लोगों में भी प्रिवेंटिव हेल्थ को लेकर जागरूकता नहीं है। लोग आज भी बीमार पड़ने का इंतजार करते हैं और उसके बाद ही डॉक्टर के पास जाते हैं। यही नहीं, ज्यादातर लोग हेल्दी लाइफस्टाइल भी नहीं अपनाते। न उनके पास पूरी जानकारी है और ही कमिटमेंट। 

सर्वे के मुताबिक 35 फीसदी एम्पलॉयी बिल्कुल एक्सरसाइज नहीं करते और 37 फीसदी बैलेंस्ड डाइट को फॉलो नहीं करते। हालांकि एक्सरसाइज न करने की एक वजह ज्यादा वर्किंग आवर भी हैं, पर 17 फीसदी लोग सिर्फ आलस की वजह से एक्सरसाइज नहीं करते। 30 फीसदी थकान की वजह से एक्सरसाइज से बचना चाहते हैं। 

मजेदार यह है कि इसके बावजूद 48 फीसदी खुद को ठीक-ठाक फिट मानते हैं और 24 फीसदी पूरी तरह फिट। जबकि 25 फीसदी एम्पलॉयी तय वजन से ज्यादा पाए गए। डॉ. कुमार काम में बेहद बिजी रहनेवाले कॉरपोरेट वर्ल्ड के लोगों को सलाह देते हैं कि वे स्मोकिंग से दूर रहें और कॉलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखें। साथ ही, बीमार होने का इंतजार करने की बजाय रेग्युलर चेकअप कराएं। बहरहाल, इस सवेर् से तो यही लगता है कि लाखों रुपये की सैलरी पानेवाले और देश-विदेश में ट्रैवल करनेवाले हाई-प्रोफाइल कॉरपोरेट एम्पलॉयीज भी अपने दिल को लेकर बेफिक्र हैं! 

दिल के मशहूर डॉक्टर ऐसे रखते हैं अपने दिल का ख्याल 
टॉप कॉर्डियो डॉक्टरों से बातचीत की प्रियंका सिंह ने 

डॉ. नरेश त्रेहन 
चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, मेदांता-द मेडिसिटी 
एक्सरसाइज : हफ्ते में छह दिन एक्सरसाइज करता हूं, जिसमें कार्डियो (वॉक, जॉगिंग आदि), योग और वजन तीनों शामिल हैं। 45 मिनट के इस सेशन में तीन दिन पावर योग और तीन दिन प्राणायाम करता हूं। मोटे तौर पर सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को एक्सरसाइज या पावर योग और मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को हल्का योग व प्राणायाम करता हूं। प्राणायाम से पहले 40 मिनट वॉक करता हूं। घूमने के लिए लोदी गार्डन जाता हूं या फिर घर में ही ट्रैडमिल पर चल लेता हूं। हल्के वेट भी उठाता हूं। योग में भुजंगासन, वज्रासन आदि के अलावा विपश्यना व अनुलोम-विलोम भी करता हूं। 

खानपान : सुबह नाश्ते में एक अंडे के सफेद हिस्से का ऑमलेट या अंकुरित दालें और एक कप बिना चीनी की चाय लेता हूं। 10:30 बजे आधा फ्रूट और पांच-छह बादाम खाता हूं। दोपहर 12 बजे के करीब सलाद और डेढ़ बजे लंच करता हूं। लंच में एक रोटी और सब्जी खाता हूं। 3:30 पर आधा फ्रूट और आधा अखरोट। 5:30 पर बिना चीनी की एक कप चाय और एक बिस्कुट लेता हं। रात में 8 बजे डिनर में एक पीस चिकन या फिश, रोटी या काठी रोल और सलाद खाता हूं। स्मोकिंग नहीं करता और कभी-कभी सोशल ड्रिंकिंग करता हूं। दो स्मॉल ड्रिंक हफ्ते में चार बार तक लेना दिल के लिए बुरा नहीं है। 

टेस्ट : साल में एक बार पूरी बॉडी की स्क्रीनिंग के लिए टेस्ट कराता हूं, इसमें ब्लड टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, लिवर फंक्शन टेस्ट, प्रोस्टेट टेस्ट, एब्डॉमिनल अल्ट्रासाउंड आदि शामिल हैं। दिल के लिए स्ट्रेस टेस्ट (टीएमटी), ईसीजी और ईको कराता हूं। 

तेल : ऑलिव ऑयल, कोरोनोला और सनफ्लावर ऑयल बदल-बदल कर यूज करते हैं। 

टिप्स : एक्सरसाइज, इंटेलिजेंट ईटिंग और खुद को डी-स्ट्रेस करना जरूरी है। 

डॉ. अशोक सेठ 
चेयरमैन, कार्डिएक साइंसेज, एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट 
एक्सरसाइज : हफ्ते में पांच-छह दिन 45 मिनट से एक घंटा तक एक्सरसाइज करता हूं। इसमें ट्रैडमिल पर वॉक (30-40 मिनट) और लाइट वेट उठाना शामिल है। संडे को डेढ़ घंटे तक वॉक करता हूं। इसी वॉक के दौरान कई बार फैमिली से बातचीत भी हो जाती है। हालांकि वॉक करते हुए आप बहुत बातें नहीं कर सकते क्योंकि इसका मतलब है कि आप ठीक से वॉक नहीं कर रहे हैं। प्राणायाम के लिए वक्त नहीं मिलता। वैसे भी अगर आप तनाव को खुद से दूर रखते हैं तो मेडिटेशन की खास जरूरत नहीं है। भगवान की पूजा और संगीत का रियाज मुझे टेंशन से दूर रखता है। 

खानपान : मैं खाने का शौकीन हूं। हफ्ते में एक-दो बार चिकन और फिश खाता हूं। ब्रेकफास्ट काफी लाइट होता है, जिसमें टोस्ट और फ्रेश जूस होता है। लंच में भी अंकुरित दालें, मोठ और पोहा आदि होता है। लंच हल्का होता है क्योंकि काम के दौरान ही खाना पड़ता है। रात के खाने में तीन चपाती, सब्जी, दाल और दही लेता हूं। दही आंतों पर जमा फैट को दूर करता है। रोजाना बादाम खाता हूं, जो दिल के लिए अच्छे होते हैं। मन होने पर रेस्तरां में जाकर अच्छा खाना भी खा लेता हूं लेकिन तब एक्सरसाइज से फालतू कैलरी जलाना नहीं भूलता। स्मोकिंग से दूर रहता हूं, पर कभी-कभार सोशल ड्रिंकिंग कर लेता हूं। ज्यादातर रेड वाइन लेता हूं। अल्कोहल अगर कंट्रोल में लिया जाए तो बुरा नहीं है। हर दिन तीन-चार पैग लेना दिल के लिए खतरनाक हो सकता है। 

टेस्ट : हर साल लिपिड प्रोफाइल कराता हूं। पिछले पांच साल में दो बार सीटी एंजियोग्राम कराया है इसलिए एक्सरसाइज टेस्ट (टीएमटी) की जरूरत नहीं पड़ती। बाकी लोगों को साल में एक बार टीएमटी, ईसीजी और ईको जरूर कराना चाहिए। 

तेल : सनफ्लावर और ऑलिव ऑयल। 

टिप्स : सब कुछ खाना चाहिए लेकिन लिमिट में। जिनको कॉलेस्ट्रॉल है, उन्हें रेड मीट से दूर रहना चाहिए। खुश रहें और वही काम करें, जिसे आप एंजॉय करें। इससे आप दिमागी और शारीरिक तौर पर फिट रहेंगे। 

डॉ. पुरुषोत्तम लाल 
चेयरमैन, मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स 
एक्सरसाइज : रोजाना जमकर एक्सरसाइज करता हूं, घंटे भर से भी ज्यादा। ट्रैडमिल पर 30-50 मिनट चलता हूं, बल्कि जॉगिंग करता हूं। फिर 10 मिनट वेट उठाता हूं, ताकि बॉडी टोन्ड रहे। 20 मिनट साइक्लिंग भी करता हूं। कभी-कभी जिम जाता हूं, जबकि बाकी टाइम घर पर ही एक्सरसाइज करता हूं। आसन के लिए पेशंस और वक्त चाहिए, इसलिए नहीं करता। प्राणायाम करता हूं, खासकर अनुलोम-विलोम और कपालभांति। 

खानपान : खाने में कोई परहेज नहीं करता। सुबह नौ बजे ब्रेकफास्ट, दोपहर डेढ़ बजे लंच और रात में 8 बजे डिनर खाता हूं। नाश्ते में कभी परांठे, कभी टोस्ट, कभी उबला अंडा खाता हूं लेकिन फ्रूट्स नियमित रूप से खाता हूं। लंच और डिनर में दाल, सब्जी, चपाती व दही आदि होता है। वैसे मैं चाय-कॉफी, आइसक्रीम, मिठाई, पिज्जा आदि सभी कुछ खाता हूं। लेकिन ध्यान रखता हूं कि एक्सरसाइज करके सब कुछ पचा लूं। स्मोकिंग बिल्कुल नहीं करता और महीने में एक-दो बार वाइन ले लेता हूं, लेकिन बहुत थोड़ी करीब 30 सीसी। 

टेस्ट : हर छह महीने में ब्लड टेस्ट कराता हूं और साल में एक बार टीएमटी और ईको टेस्ट कराता हूं। बीपी, शुगर आदि की रेग्युलर जांच तो होती ही है। 

तेल : मुझे तो देसी घी पसंद है, वैसे बदल-बदल कर तेल इस्तेमाल करते हैं। 

टिप्स : एक्सरसाइज करें, अच्छा खाएं, स्मोकिंग न करें। कुछ भी खा सकते हैं, पर एक्सरसाइज करके पचा लें और वजन कंट्रोल में रखें। 

डॉ. के. के. अग्रवाल 
प्रेजिडेंट, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया 
एक्सरसाइज : सुबह 4 बजे उठकर रोजाना 15-20 मिनट तेज वॉक करता हूं या ट्रैडमिल पर चलता हूं। इसके बाद करीब घंटा भर प्राणायाम करता हूं। इसमें डीप ब्रीदिंग और ध्यान दोनों शामिल होते हैं। डीप ब्रीदिंग के दौरान एक मिनट में चार बार सांस लेता हूं। इससे फेफड़े और दिल दोनों मजबूत होते हैं। लिफ्ट का इस्तेमाल बहुत कम करता हूं। इससे खुद-ब-खुद एक्सराइज हो जाती है। 

खानपान : सुबह नाश्ते में एक कप दूध और भीगे हुए 10-12 बादाम लेता हूं या फिर फ्रूट्स खा लेता हूं। दोपहर में 1-2 बजे दाल-सब्जी या फल खाता हूं। लंच में रोटी नहीं खाता। शाम 5 बजे रात फल खाता हूं और रात 8 बजे पूरा खाना। इसमें 2-3 रोटी, सब्जी दही आदि होती है। चावल, चीनी और मैदा नहीं खाता। अनाज भी एक बार खाता हूं। चाय-कॉफी, सॉफ्ट ड्रिंक, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग और नॉनवेज से दूर रहता हूं। रोज दिन में दो बार फल, एक भीगा अखरोट और बादाम जरूर खाता हूं क्योंकि ये दिल के लिए अच्छे हैं। 

टेस्ट : साल में एक बार सारे टेस्ट कराता हूं। ब्लड टेस्ट, लिवर टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, किडनी टेस्ट, थाइरॉइड टेस्ट आदि। हीमोग्राम और टीएमटी से दिल की हालत का पता चल जाता है। 

तेल : हर बार तेल बदलता है। इस तरह बारी-बारी से सारे तेलों का नंबर आ जाता है। घर में हर मेंबर के लिए घी, तेल और मक्खन तीनों मिलाकर दिन भर में तीन चम्मच से ज्यादा यूज नहीं करते। 

मंत्र : खूब पैदल चलो, स्मोकिंग मत करो और पेट की चर्बी न चढ़ने दो। जो काम करो, डेडिकेशन से करो। इससे खुशी मिलती है, जो दिल की सेहत सुधारती है। 

(साभार)