Saturday, April 20, 2013
इंसानों की तरह होता है शार्क का दिमाग
वैज्ञानिकों का कहना है कि शार्क के दिमाग की कई खूबियां इंसानों के मस्तिष्क की तरह होती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया (यूडब्ल्यूए) के शोधकर्ताओं ने पाया कि शार्क और कुछ मछलियों के पास मस्तिष्क संबंधी प्रणाली तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित होती है और उनका दिमाग भी बड़ा होता है। यूएडब्ल्यू से जुड़ी कारा योपाक के अनुसार शोध में पाया गया कि इंसानों और शार्क में बहुत सारी खूबियां एक जैसी होती हैं। उन्होंने कहा कि दिमागी तौर पर शार्क और इंसानों के बीच कई बातें समान होती हैं।
आउटडोर गेम्स: मस्ती और सेहत का खजाना..
तुम्हारे पसंदीदा खेल कौन से हैं? तुम्हारा जवाब होगा एंग्री बर्ड, फार्म विले, कार रेसिंग, फाइटिंग और ऐसे ही कई और नाम। स्कूल का होमवर्क निपटाने के बाद तुम इन्हें खेलने बैठ जाते होगे। हम मानते हैं कि ये गेम्स टाइम पास कराते हैं और तुम्हें मजा भी खूब आता होगा इन्हें खेलने में, पर आउटडोर गेम्स के मुकाबले ये कहीं नहीं ठहरते। बस एक बार इन्हें खेलने की देर है, तुम दूसरे गेम्स भूल ही जाओगे।
कंप्यूटर गेम्स खेलने में बड़ा मजा आता है। हम भी ये बात मानते हैं, पर क्या तुम यह जानते हो कि तुम्हारे जैसे बच्चों के लिए ऐसे खेल खेलना बड़ा जरूरी है, जिनमें तुम खूब दौड़ो-भागो, उछलो-कूदो और मस्ती करो। अगर तुम ऐसे खेल नहीं खेलोगे तो तुम्हारा शारीरिक विकास ठीक तरह से नहीं होगा। या तो तुम हाइट में छोटे रह जाओगे या फिर कमजोर। क्या तुम ऐसा बनना चाहते हो? नहीं ना, तो क्यों हर समय कंप्यूटर गेम्स, टीवी गेम्स, टीवी प्रोग्राम, काटरून से चिपके रहते हो। जरा घर से बाहर निकलकर देखो न, कई सारे ऐसे खेल हैं, जो तुम्हें खूब पसंद आएंगे। आज हम तुम्हें बताते हैं इन खेलों के बारे में-
ट्रेजर आइलैंड
ट्रेजर आइलैंड बहुत पुराना खेल है। अलग-अलग जगहों पर इसे कई नामों से जाना जाता है। इस गेम में एडवेंचर के साथ एक थ्रिल भी है। इसमें किसी भी चीज को खजाना बनाकर छुपा देते हैं। फिर दूसरी टीम पहली टीम के लिए क्लू बनाती है। उन क्लूज को फॉलो करते हुए उस खजाने तक पहुंचना होता है। इसमें तुम टाइमिंग भी शामिल कर सकते हो। जो भी टीम खजाने को ढूंढऩे में सफल हो जाती है, वह जीती हुई मानी जाती है।
छुपन-छुपाई
ये खेल सबसे पुराना और एवरग्रीन है। तुम्हारे मम्मी-पापा ने भी इसे बचपन में जरूर खेला होगा। इसमें खूब सारे बच्चे एक साथ इक_े होते हैं। एक बच्चे को डेन चुना जाता है। डेन चुनने के लिए तुम अक्कड़-बक्कड़ का सहारा ले सकते हो।
फिर बाकी बचे सभी बच्चे अलग-अलग जगहों पर छुप जाते हैं और डेन उन्हें ढूंढ़ता है। जिस बच्चे को वह सबसे पहले ढूंढ़ लेता है, अगली बार उसे ही डेन बनना होता है। लेकिन एक को ढूंढऩे से ही काम नहीं चलता। उसे सभी को ढूंढऩा होता है। अगर कोई छुपा बच्चा पीछे से जाकर उसे धप्पा कर दे तो डेन को फिर दुबारा डेन बनना होता है।
स्टापू
इसमें जमीन में चौकोर बॉक्सेज डिजाइन कर दिये जाते हैं। एक से दस तक गिनती लिखी जाती है। हर बच्चा एक-एक करके दस खानों में स्टापू फेंकता है। लंगड़ी करते हुए उस पत्थर तक पहुंचना होता है और उसे पैर से खिसकाते हुए वापस लाना होता है। इस गेम से ब्रीदिंग प्रैक्टिस होती है और पैर मजबूत होते हैं।
हंट मिस्ट्री
ये गेम बहुत ही मजेदार है। इसमें किसी खास पौधे, पक्षी या किसी भी खास चीज को ढूंढऩा होता है। इस खेल से नई चीजों के बारे में पता चलता है।
स्पाइंग गेम्स
ये चोर-पुलिस की तरह का गेम होता है। इसमें दो टीम होती हैं। एक टीम चोर बनती है तो दूसरी पुलिस। पुलिस वाली टीम चोर वाली टीम को खोजकर उन्हें कैद करती है।
पि_ू
इस खेल में भी दो टीमें होती हैं। एक टीम पत्थरों का पिरामिड बनाने का प्रयास करती है और दूसरी टीम उसे बॉल से तोडऩे का। यह खेल शरीर व दिमाग दोनों के लिए लाभदायक माना गया है।
घर से बाहर खेलने के हैं कई फायदे..
यह पता चलता है कि तुम्हें किस तरह अपने आस-पास के लोगों और दोस्तों के साथ व्यवहार करना है। घर से बाहर खेले जाने वाले खेलों की वजह से नए-नए दोस्त बनते हैं।
इस तरह के खेलों से शारीरिक और मानसिक मजबूती बढ़ती है। सारा दिन कंप्यूटर या टेलीविजन के आगे बैठे रहने से शरीर मोटा और आलसी हो जाता है, लेकिन इस तरह के आउटडोर गेम्स न केवल आपके शरीर को, बल्कि आपके दिमाग को भी एक्टिव बनाते हैं।
जब तुम घर से बाहर खेलने जाते हो तो अपने आस-पास के पर्यावरण और माहौल की जानकारी पाते हो। इससे पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
नए बच्चों और दोस्तों के साथ मिलकर हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है, इसलिए आउटडोर गेम्स से सीखने की क्षमता बढ़ती है।
इनसे तुम्हारी लीडरशिप क्वालिटी बढ़ती है। इन्हीं खेलों के जरिये तुम टीम को लीड करना सीखते हो।
टीमवर्क को समझते हो। बहुत सारे बच्चों के साथ खेलने की वजह से तुम टीम में काम करने के लिए प्रेरित होते हो।
शेयरिंग करना सीखते हो। अगर तुम्हारे पास फुटबॉल या बैट है, तो उससे खेलने के लिए तुम्हें दोस्तों की जरूरत होगी। शेयरिंग करके गेम्स खेलना सबसे मजेदार होता है।
बैकलेस ड्रेसेज मतलब टशन
फेस्टिव सीजन में ग्लैम लुक चाहती हैं, तो इन दिनों बैकलेस ड्रेसेज फैशन में हैं। दरअसल, बैकलेस ड्रेसेज सिंपल ड्रेस को भी मॉडर्न लुक बनाने का ईजी वे है। वैसे भी, ये डिजाइन आपकी ट्रडिशनल और मॉडर्न सभी ड्रेसेज पर फबते हैं। यही वजह है कि इन दिनों हर फैशन डिजाइनर बैकलेस ड्रेसेज के हर डिजाइन में खूब क्रिएटिविटी दिखा रहे हैं। हालांकि इसी के साथ ही बैक डिजाइंस भी पॉप्युलर हो रहे हैं। फैशन डिजाइनर लीना सिंह कहती हैं कि ड्रेसेज में बैक डिजाइन आपको ग्लैम लुक देते हैं। 2013 का सबसे हॉट ट्रेंड बैकलेसेज ड्रेसेज हैं, जो आपको ट्रडिशनल वियर से लेकर वेस्टर्न में हर स्टाइल में नजर आएंगी। इसके अलावा, बैक डिजाइंस में हैवी अक्सेसरीज भी डिफरेंट पैटर्न में यूज की गई हैं।
हर ड्रेस पर परफेक्ट
बैक डिजाइंस आपकी हर तरह की ड्रेस पर सूट करेंगे। अगर आप ब्लाउज के बैक पर डिजाइन बनाना चाहती हैं, तो बैकलेस विद डोरी, सिंगल शोल्डर, स्ट्राइप्स, बो, बटरफ्लाई वगैरह डिजाइन बनवा सकती हैं। वहीं गाउन, फ्रॉक, टी-शर्ट, टॉप वगैरह में हैंगिंग, पाइपिंग, एम्ब्रॉयडरी व पैच वर्क भी डिफरेंट कट में यूज कर सकती हैं। इसके अलावा, बैक डिजाइन में अक्सेसरीज भी डिजाइन की जा रही हैं। इनमें स्टाइलिश डायमंड राउंड रिंग, ब्रेसलेट, क्रिस्टल व ब्रॉच की डिफरेंट शेप्स को ड्रेसेज में डिजाइन किया जा रहा है, ताकि आपकी ड्रेस का बैक डिजाइन बिल्कुल अलग लगे और कोई भी आपकी ड्रेस की तारीफ किए बिना ना रह सके।
डिजाइनर क्रिएटिविटी
फैशन डिजाइनर अंजलि कपूर कहती हैं कि बैक डिजाइन में आपको हर स्टाइल मिल जाएगा। आप अपनी ड्रेस की बैक में लेस, मिरर, सिक्विन, एम्ब्रॉयडरी, पैच, फ्रील, क्रिस्टल वगैरह तो लगा ही सकती हैं। वहीं, आपको बैक डिजाइन में कट्स और पैटर्न्स में भी बहुत सारी वरायटी मिलेंगी। लेकिन सच तो यह है कि बैक डिजाइंस फैशन डिजाइनर्स की क्रिएटिविटी पर डिपेंड करते हैं, जैसे इन दिनों चोली में बैक डिजाइन में नेट सबसे ज्यादा यूज किया जा रहा है। इससे फिगर की शेप बहुत अच्छी आती है। चोली के इस डिजाइन को हेल्दी महिलाएं खूब पसंद कर रही हैं। अगर आपने टैटू बनवाया है, तो आपकी नेट चोली दिखता टैटू आपको बोल्ड लुक देगा। वहीं, इससे आपकी पर्सनैलिटी में ग्लैमरस टच भी आएगा।
ग्लैमरस बैक
ड्रेसेज के बैक डिजाइंस उन लड़कियों को ज्यादा पसंद आते हैं, जो डिस्कोथिक और पब ज्यादा जाती हैं। अगर आप शॉर्ट ड्रेसेज नहीं पहनना चाहतीं, तो अपनी ड्रेस के बैक में एक सुंदर-सा डिजाइन बनवा सकती हैं। इससे आप मॉडर्न भी दिखेंगी। यह डिजाइन आपको ग्लैमर लुक भी देगा। अगर आपकी कर्वी फिगर है, तो यह डिजाइन आपके लिए परफेक्ट हैं। फैशन डिजाइनर दीपिका कहती हैं कि पतली लड़कियों पर बैक डिजाइंस की ड्रेसेज ज्यादा फबती हैं। यही नहीं, आप इन डिजांइस को आप शॉर्ट व लॉन्ग हर तरह की ड्रेस पर डिजाइन करवा सकती हैं।
अक्सेसरीज हैं खास
वैसे, बैक डिजाइन में अक्सेसरीज खूब यूज की जा रही हैं। आपको बैक में लगाने के लिए हर तरह की अक्सेसरीज मिल जाएंगी। इनमें बीड्स की मालाएं, सिल्वर व गोल्ड चेन, राउंड बैंगल, हैंगिंग बटन, ब्रॉच, बटरफ्लाई और बो वगैरह डिजाइन खास हैं। इसके अलावा, कलरफुल क्रिस्टल, घुंघरू, मोती, मिरर भी लगा सकती हैं। वहीं, बाजार में आपको कई शेप्स में पैच भी मिलेंगे, जिन्हें आप अपनी ड्रेस के बैक में लगवा सकती हैं। इनमें थ्रेड और अक्सेसरीज यूज की गई हैं। यह देखने में बहुत ही खूबसूरत हैं। डिजाइनर सुरभि चावला कहती हैं कि आप लहंगे और साड़ी के साथ लो-वेस्ट चोली डिजाइन करवा सकती हैं। वहीं, चोली में हैंगिंग लेस व बटन जैसे ऑप्शन चुन सकती हैं।
चोली के खास डिजाइन
इन दिनों शादियों को देखते हुए चोलियों में आपको हर तरह के डिजाइन मिल जाएंगे। आप डीप नेक चोली के अलावा, बैकलेस विद चेन यूज कर सकती हैं। वहीं, ट्रांसपैरंट फैब्रिक की चोली भी डिजाइन करवा सकती हैं।
वर्क और पैटर्न
किसी भी ड्रेस का बैक डिजाइन वर्क और पैटर्न पर डिपेंड करता है। अगर वर्क की बात की जाए, तो आप एम्ब्रॉयडरी, सिक्विन, लेस, क्रोशिया, पैच, थ्रेड वर्क ट्राई कर सकती हैं। वैसे, इस बार गाउन में हॉरिजेंटल स्ट्राइप्स वाले डिजाइन ट्रेंड में हैं। अगर आप किसी खास तरह का पैटर्न डिजाइन करवाने की सोच रही हैं, तो सिलुएट्स, प्लेट्स व लाइट वॉल्यूम भी ट्राई कर सकती हैं। इससे आपकी ड्रेसेज बेहद ही खूबसूरत दिखेगी।
कॉकटेल रिंग का तूफानी स्टाइल
यंग गर्ल्स एकदम उस स्टाइल पर फिदा होती हैं, जिनमें वह मॉड लुक के साथ यूनीक भी दिखें। इसी की बानगी है कॉकटेल रिंग। इसकी क्वालिटी इसका साइज है। यानी जितनी बिग, उतनी अट्रैक्टिव। आपको बता दें कि फैशनेबल लुक पाने में इसका साइज खासा मायने रखता है। अक्सेसरी डिजाइनर निकिता के मुताबिक, कॉकटेल रिंग ने कई फिंगर्स पर रिंग्स पहनने के ट्रेंड को आउट कर दिया है। रेग्युलर ड्रेसेज के साथ इन दिनों ट्रेंड मल्टीकलर पैटर्न में एक बड़ी रिंग पहनने का है। हां, बात अगर मैच करवाने की हो, तो तब लाइट कलर की रिंग्स के साथ सेंटर में ब्राइट कलर यूज किया जा रहा है।
वैसे, कॉकटेल रिंग की पॉप्युलैरिटी इतनी ज्यादा है कि इवनिंग पार्टी या किसी अकेजन पर इसे बखूबी कैरी किया जा रहा है। दरअसल, पार्टी वियर के साथ ऐसी रिंग्स बेहद ग्लैमरस लुक देती हैं।
डिजाइंस की वरायटी
कॉकटेल रिंग में राउंड शेप सबसे ज्यादा कैरी की जा रही है। अगर आप डायमंड स्टडेड कॉकटेल रिंग लेना चाहती हैं, तो इस टाइम वाइट, ब्लैक, शैंपेन, ब्लू, ब्लैक कलर के डायमंड की ज्यादा डिमांड है। इसके अलावा, थ्री रो डायमंड रिंग, मॉडर्न स्नेक डायमंड रिंग, डायमंड रिंग में सिंगल ब्राइट स्टोन वाली रिंग और एनिमल के साथ फ्लॉवर्स की शेप वाली रिंग्स काफी पसंद की जा रही हैं। अगर प्लानिंग स्टोंस में लेने की है, तो सिंगल ब्राइट स्टोन लगी रिंग सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है। रूबी और एमरल्ड सेमी-प्रीशस स्टोन्स से बनी रिंग में सिल्वर का यूज खूब पसंद किया जा रहा है। ब्रिक और मल्टिकलर भी कुछ हद तक डिमांड में हैं। खासतौर पर इवनिंग पार्टी के लिए स्टोन व जेम्स जड़ी कॉकटेल रिंग ज्यादा डिमांड में है। बोल्ड स्टाइल को रिफ्लेक्ट करने में सिंगल बड़े स्टोन वाली रिंग की भी डिमांड है।
वहीं, वाइल्डलाइफ लवर्स के लिए स्नेक और दूसरे एनिमल्स की बॉडी शेप के पैटर्न की रिंग्स भी आ रही हैं। इनमें सॉलिड डिजाइन से लेकर वर्क वाले ऑप्शन भी मिलेंगे। इसके अलावा, कलर्ड स्टोन्स की कॉकटेल रिंग भी ड्रेस से मैच करती हुई खूब पहनी जा रही है। इनकी प्राइस 300 से लेकर 700 रुपए तक है। इसमें छोटे-बड़े साइज के नग का यूज किया जाता है। बता दें कि कॉकटेल रिंग की स्टार्टिंग प्राइस 6 हजार रुपए है। इसके बाद इसकी कीमत लाखों तक हो सकती है। इसकी प्राइस इसमें यूज होने वाले स्टोन, डायमंड, डिजाइन वगैरह पर डिसाइड होता है।
टेक केयर
कॉकटेल रिंग का क्रेज ही ऐसा है कि इसकी कलेक्शन हर लेडी करना चाहेगी। लेकिन बेहतर होगा कि शॉपिंग से पहले आप कुछ बातों को ध्यान में रखें।
- अगर आपकी फिंगर्स लंबी हैं, तो पियर शेप की जगह राउंड शेप की कॉकटेल रिंग्स पहनें। मारकीज शेप के बड़े स्टोन वाली रिंग अवॉइड करें।
- नैरो फिंगर्स पर हार्ट और राउंड शेप की रिंग सूट नहीं करती। चौड़े बैंड जैसे डिजाइन की रिंग से फिंगर्स थोड़ी वाइड लगेंगी।
- अगर आपकी फिंगर्स शॉर्ट हैं, तो आपको ऐसी रिंग खरीदने की जरूरत है, जो फिंगर्स पर लंबे होने का इफेक्ट लाए। इसके लिए राउंड शेप की रिंग अवॉइड करें। आप पर मारकीज शेप स्टोन वाली रिंग सूट करेगी।
- अगर उंगलियां छोटी हैं, तो कॉकटेल रिंग का डिजाइन रेक्टेंगल शेप में ट्राई करें।
- अगर फिंगर वाइड है, तो कोशिश करें कि रिंग से फिंगर का वाइडर पार्ट शो न हो। वहीं, टोन्ड फिंगर पर राउंड शेप की रिंग सूट करेगी।
स्टाइल चेक
पर्सनैलिटी को अट्रैक्टिव लुक देने में जितनी हेल्प आपकी ड्रेस करती है, उतने ही जरूरी फुटवियर्स भी हैं। इसलिए इनकी शॉपिंग करते समय जरूरी है सबसे पहले उसका कम्फर्ट लेवल देखना और फिर ट्रेंड। इसी को ध्यान में रख लोटो ने फॉल विंटर कलेक्शन स्काईराइड लॉन्च किया है। इसमें शूज में कई तरह के डिजाइंस लाए गए हैं। लाइटवेट होने के साथ ही ये कलरफुल भी हैं, जिनका यूज आप मल्टि पर्पज वर्क के लिए कर सकते हैं। इनका अपर सिंथेटिक, लेदर और नायलोन में है। इनमें यूज की गई टेक्नॉलजी के चलते आप आराम से रनिंग, वॉकिंग वगैरह कर सकते हैं।
डिफरेंट स्टाइल...
फेस्टिव सीजन शुरू हो चुका है। यानी अब मौका है सजने-संवरने और शॉपिंग का। करवा चौथ, दीवाली, क्रिसमस और फिर नया साल। इन मौकों पर आप ग्लैमरस नजर आ पाएं, इसके लिए जरूरी है ड्रेस में कुछ सिलेक्टेड अंदाज कैरी करना। इसी के चलते फ्यूजन बीट्स ने इंडियन किट्च रेंज लॉन्च की है। यह क्लासी रेंज इंटरनैशनल एक्सपोजर से इंस्पायर्ड है और कलरफुल प्रिंट्स में वर्सेटाइल लुक लिए है। कलर्स की बात करें, तो इसमें सेफरन, सैंड, ब्लैक, एमरेल्ड और इलेक्ट्रिक ब्लू में आप लाइट व ब्राइट में कई शेड्स पा सकती हैं। इसमें मधुबनी पेंटिंग, बर्ड्स और रंगोली मोटिफ्स में टॉप, ट्यूनिक, कुर्तीज, लेगिंग्स वगैरह में खासी वरायटी लाई गई है।
त्वचा जल जाए तो जानलेवा बन सकती है लापरवाही
मारे देश में जलना मृत्यु का एक बड़ा कारण है। आग से सुरक्षा बहुत जरूरी है। मामूली रूप से जलने के जख्म तो समय के साथ वैसे ही अच्छे हो जाते हैं, पर गंभीर रूप से जलने पर संक्रमण को रोकने और घावों को भरने के लिए विशेष देखभाल करनी होती है। उष्णता के अलावा रेडिएशन, रसायन, बिजली से होने वाले जख्मों को भी बर्न कहते हैं।
त्वचा का जलना
त्वचा का जलना हल्के से लेकर बहुत ज्यादा तक हो सकता है। जब बहुत ही हल्का जला हो तो उसे फस्र्ट डिग्री बर्न कहते हैं। इसमें मेडिकल ट्रीटमेंट की इतनी आवश्यकता नहीं पड़ती है, जब तक जलने का असर उतकों पर न हो। सेकेंड और थर्ड डिग्री के बर्न में अस्पताल ले जाना जरूरी है।
फर्स्ट डिग्री
इसमें सिर्फ त्वचा की सबसे ऊपरी परत प्रभावित होती है। घाव में दर्द होता है और सूजन और लालपन आ जाता है। अगर घाव तीन इंच से बड़ा हो या ऐसा लगे कि घाव त्वचा की अंदरूनी परत तक है या वह आंख, मुंह, नाक या गुप्तांग के पास हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। सामान्य घाव को भरने में 3 से 6 दिन लगते हैं।
क्या है उपचार
-जली हुई त्वचा को जल्दी से ठंडे पानी में डुबो लें। उसे कम से कम 15 मिनट पानी में डुबोकर रखें, ताकि चमड़ी से गर्मी निकल जाए और सूजन न हो।
-संक्रमण से बचने के लिए जली हुई त्वचा पर एलोवेरा जेल या एंटीबायोटिक क्रीम लगाएं।
-घाव के ऊपर ढीली पट्टी या न चिपकने वाली पट्टी बांध लें, ताकि वह हवा से बचे और दर्द कम हो। इससे संक्रमण भी नहीं फैलेगा।
सेकेंड डिग्री बर्न
यह बाहरी परत एपिडर्मिस और अंदरूनी परत डर्मिस दोनों को प्रभावित करता है। इससे दर्द, लालपन, सूजन और फफोले हो जाते हैं। अगर घाव जोड़ों पर हुआ है तो उस हिस्से को हिलाने-डुलाने में तकलीफ होगी। शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
क्या है उपचार
-घाव गहरा है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
-त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ सकती है।
-अंगों के मुडऩे से फिजिकल थेरेपी की जरूरत पड़ती है।
-अस्पताल में भर्ती करना जरूरी होता है।
थर्ड डिग्री बर्न
इसमें त्वचा की तीनों परतें प्रभावित हो जाती हैं। इससे त्वचा सफेद या काली हो जाती है और सुन्न हो जाती है। जले हुए स्थान के हेयर फॉलिकल, स्वेट ग्लैंड और तंत्रिकाओं के सिरे नष्ट हो जाते हैं। तंत्रिकाओं के नष्ट होने से दर्द नहीं होता। कोई फफोला या सूजन नहीं होती। रक्त का संचरण बाधित हो जाता है। अत्यधिक डिहाइड्रेशन हो जाता है। लक्षण समय बीतने के साथ गंभीर होते जाते हैं। 80-90 प्रतिशत जलने पर जीवित बचने की संभावना बहुत कम रह जाती है।
क्या है उपचार
-अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ेगी।
-रोगी के शरीर में शिराओं से तरल पदार्थो की आपूर्ति की जाती है।
-कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन देने की आवश्यकता पड़ती है।
-पूरी देखभाल की आवश्यकता होती है।
-रोगी अवसाद में जा सकता है।
क्या करें
-अगर आग लग जाए तो फर्श पर लोट जाएं, धुंए की परत से नीचे। अगर आग पूरे स्थान पर फैल रही है तो बाहर निकलकर भागें।
-मामूली रूप से जले हुए स्थान पर दस या पंद्रह मिनट तक ठंडा पानी डालें। ध्यान रहे कि पानी ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।
-जख्म के थोड़ा सूखने के बाद उस पर सूखी पट्टी ढीली बांधें, ताकि गंदगी और संक्रमण न फैले।
-सांस नहीं चल रही हो तो सीपीआर दें।
-जलने के बाद संक्रमण फैलने की आशंका अत्यधिक होती है। इसलिए टिटनेस का इंजेक्शन जरूर लगाएं।
क्या न करें
गंभीर रूप से जलने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कोई भी जला हुआ कपड़ा या दूसरी चीज उससे चिपक गई हो तो उसे न निकालें।
-गंभीर रूप से जले घाव पर कोई मल्हम, क्रीम, तेल या मक्खन न लगाएं।
-फफोले और मृत त्वचा को न छेड़ें, इससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
-अगर व्यक्ति गंभीर रूप से जला है तो उसे कुछ भी न खिलाएं।
-गंभीर रूप से जले हुए अंग या शरीर को पानी में न डुबोएं।
-जले हुए व्यक्ति के सिर के नीचे तकिया न रखें। अगर जलने से श्वास नली प्रभावित हुई होगी तो इससे श्वास मार्ग बंद हो सकता है।
-घाव पर मक्खन या बर्फ न लगाएं। इससे कोई लाभ नहीं होगा बल्कि त्वचा के ऊतक नष्ट हो जाएंगे।
-अगर कपड़े जलकर चिपक चुके हैं तो उन्हें घाव से खींचकर न निकालें।
-गंभीर रूप से जली अवस्था में उस भाग पर ठंडा पानी न डालें, क्योंकि इससे शरीर का तापमान और कम हो सकता है और ब्लड प्रेशर गिरकर रक्त संचरण को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
..तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं
-अगर जला हुआ क्षेत्र बड़ा हो।
-अगर बर्न थर्ड डिग्री का हो।
-अगर व्यक्ति ने धुआं अंदर ले लिया हो।
-अगर बिजली का झटका लगा हो।
-48 घंटे बाद भी दर्द कम न हुआ हो।
-अगर बहुत प्यास लगे, चक्कर आएं।
बरतें कुछ सावधानियां
-माचिस और लाइटर बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
-किचन में सिंथेटिक कपड़े न
दिमाग रहेगा हमेशा जवां
जिस तरह शरीर को पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मस्तिष्क को भी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज, 'स्वस्थ वसाÓ मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। दिन में तीन बार मेगा मील खाने की बजाए 5 या 6 बार मिनी मील खाएं। इससे रक्त में शुगर का स्तर कम नहीं होता, जो नकारात्मक रूप से मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
ओमेगा 3 फैटी एसिड
ओमेगा 3 फैटी एसिड से भरपूर भोजन करें। यह मानसिक शक्ति बढ़ाता है और अल्जाइमर की आशंका कम करता है। मछलियां जैसे सालमन, टुना, माकेरल, सार्डिन्स और हेरिंग ओमेगा 3 फैटी एसिड के अच्छे स्रोत हैं। इसके अलावा अंडे, अखरोट, सोयाबीन, कद्दू और फ्लैक्स के बीजों में भी यह भरपूर मात्र में पाया जाता है।
एंटी ऑक्सीडेंट्स
एंटी ऑक्सीडेंट मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाता है। रंग-बिरंगे फल और सब्जियां विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियां एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होती हैं। टमाटर, पालक, ब्रोकली, गाजर, लहसुन, साबुत अनाज भी एंटी ऑक्सीडेंट के अच्छे स्रोत हैं। ग्रीन टी में पॉलीफिनल भरपूर मात्र में पाया जाता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है। ये मस्तिष्क की कोशिकाओं को फ्री रेडिकल से नष्ट होने से बचाता है। नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन याददाश्त बढ़ाता और मस्तिष्क के बूढ़ा होने की प्रक्रिया को धीमा करता है।
टायरोसिन प्रोटीन
टायरोसिन प्रोटीन न्यूरोट्रांसमीटर के निर्माण में उपयोगी है, जो न्यूरॉन्स के बीच संकेतों का आदान-प्रदान करते हैं। डेयरी प्रोडक्ट, अंडे और सी फूड में यह भरपूर मात्र में पाया जाता है।
फाइबर
फाइबर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट से शुगर के अवशोषण को नियंत्रित करता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को ऊर्जा की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। फाइबर युक्त भोज्य पदार्थो में सब्जियां विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, मेवे, बीज, फल और साबुत अनाज प्रमुख हैं।
शारीरिक रूप से फिट रहें
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से व्यायाम करें। व्यायाम करने से मस्तिष्क में रक्त का संचरण बढ़ता है, जिससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है। नियमित रूप से 30 मिनट पैदल चलना आपको डिमेंशिया से बचाता है। व्यायाम और योग से दिमाग में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है, जिससे तनाव घटता, मानसिक शक्ति बढ़ती और याददाश्त मजबूत होती है।
ध्यान करें
मानसिक शांति के लिए प्रतिदिन दस मिनट ध्यान करें। ध्यान सेरिब्रल कोरटेक्स की मोटाई बढ़ाता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच संपर्को को बढ़ाता है, इससे मस्तिष्क का पैनापन और याददाश्त बढ़ती है।
तनाव न लें
तनाव मस्तिष्क का सबसे बड़ा शत्रु है। लगातार तनाव की स्थिति मस्तिष्क की कोशिकाओं और हिप्पोकैम्पस को नष्ट कर देगी।
भरपूर पानी पिएं
शरीर में पानी की कमी मानसिक क्षमता को कम करती है और याददाश्त को भी कमजोर बनाती है। इसलिए शरीर में पानी की उचित मात्र होना अत्यंत जरूरी है। हमारे मस्तिष्क में सिर्फ न्यूरॉन ही नहीं, न्यूरोट्रांसमीटर भी होते हैं, जो एक मैसेंजर की तरह मस्तिष्क के संकेतों को एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन की ओर ले जाते हैं।
अल्जाइमर बढ़ती उम्र का मानसिक रोग
ल्जाइमर एक घातक मानसिक रोग है। इसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं का आपस में संपर्क खत्म हो जाता है और वे मरने लगती हैं। प्राय: यह 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पाया जाता है। अल्जाइमरमें मस्तिष्क में कुछ रसायनों की मात्र भी कम होने लगती है। ये रसायन मस्तिष्क में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए जरूरी होते हैं। अल्जाइमरएक लगातार बढऩे वाला रोग है। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता जाता है, मस्तिष्क का अधिक से अधिक भाग क्षतिग्रस्त होता जाता है और लक्षण ज्यादा गंभीर हो जाते हैं।
क्या है इसका कारण
वैसे तो इसका ठीक-ठीक कारण पता नहीं है, लेकिन मस्तिष्क में अमायलयिड प्रोटीन के एकत्र हो जाने को इसके सबसे बड़े कारण के रूप में देखा जाता है। अल्जाइमरकी शुरुआत धीरे-धीरे होती है। इसमें सबसे पहले मस्तिष्क का वह भाग प्रभावित होता है, जो भाषा और याददाश्त को नियंत्रित करता है। इसके रोगी को चीजों और लोगों के नामों को याद रखने में दिक्कत होती है। उम्र, अनुवांशिकी, पर्यावरणीय कारक, जीवन शैली और स्वास्थ्य समस्याएं भी अल्जाइमरको बढ़ाने का काम करते हैं। इनमें प्रमुख हैं-
-अगर परिवार में माता-पिता या दूसरे रिश्तेदारों को अल्जाइमरहै तो अगली पीढ़ी में इसकी आशंका बढ़ जाती है।
- डाउन सिंड्रोम से पीडि़त लोगों में इसकी आशंका बढ़ जाती है।
-कभी सिर में गंभीर चोट लगी हो तो इसका खतरा बढ़ जाता है।
-कई अनुसंधानों में यह बात भी सामने आई है कि जो लोग धूम्रपान करते हैं, जिनके शरीर में ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक होता है या जिन्हें डायबिटीज होती है, उनमें इस रोग के विकसित होने की आशंका अधिक होती है।
-डिप्रेशन, उत्तेजना, एलर्जी और पर्किसन बीमारियों के उपचार के लिए दी जाने वाली दवाओं से भी मस्तिष्क में एसीटिल कोलिन नामक रसायन का स्तर प्रभावित होता है, जो मस्तिष्क के न्यूरन के बीच संदेश पहुंचाने के लिए एक जरूरी रसायन है।
इन लक्षणों पर ध्यान दें
अल्जाइमर की शुरुआत में याददाश्त कमजोर हो जाना और बात करने में सही शब्द ढूंढने में कठिनाई होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है, रोगी में ये तकलीफें बढ़ती जाती हैं-
-रोगी भ्रमित हो जाता है और बार-बार लोगों के नाम, स्थान और हाल-फिलहाल में हुई घटनाओं को भूलने लगता है।
-बार-बार मूड बदलने लगता है, अपनी याददाश्त के कमजोर पडऩे से दुखी, क्रोधित और हताश महसूस करने लगता है।
-आत्मविश्वास कम होने से लोगों से कटा-कटा रहने लगता है।
-चीजें यहां-वहां रखकर भूल जाता है।
जब समस्या गंभीर हो जाए
धीरे-धीरे ये लक्षण इतने गंभीर हो जाते हैं कि उसे अपनी दिनचर्या के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। बोलने, लिखने और पढऩे में भी समस्या आती है। अपने परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाता। वह यह भी भूल जाता है कि कंघी कैसे की जाती है या दांत कैसे साफ किए जाते हैं। बाद में वह बहुत उत्तेजित या उग्र हो जाता है या घर से निकलकर यहां-वहां भटकता है। फिर उसे पूरी तरह देखभाल की जरूरत होती है।
उपचार कठिन, पर घबराएं नहीं
वर्तमान में इस रोग का कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। कुछ दवाएं इसे नियंत्रित कर गंभीर होने से रोक सकती हैं। अल्जाइमर पीडि़तों के मस्तिष्क में एसिटाइल कोलिन की मात्र कम पाई जाती है। इसलिए ऐसी दवाएं दी जाती हैं जिससे मस्तिष्क में एसिटाइल कोलिन का स्तर नियंत्रित रहे। जितनी जल्दी इस रोग के बारे में पता चलेगा, इसका उपचार उतना ही आसान होगा।
नई-नई चीजें सीखें
कई शोधों ने यह साबित किया है कि मस्तिष्क भी मांसपेशियों के समान ही कार्य करता है। जितना ज्यादा आप इसका इस्तेमाल करेंगे, उतना ही यह शक्तिशाली होगा। मानसिक व्यायाम नई मस्तिष्क कोशिकाओं के निर्माण में मदद कर मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखते हैं। नई जटिल चीजें सीखें जैसे कोई नई भाषा, चुनौतीपूर्ण खेल जैसे शतरंज वगैरह खेलें। ब्रेन गेम जैसे सुडोकू, क्रॉस वर्ड बेहतरीन मानसिक व्यायाम हैं।
इनसे करें तौबा
वजन न बढऩे दें। धूम्रपान न करें। शराब का सेवन न करें या कम करें। ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखकर इसके खतरे से बच सकते हैं। सिर को चोट लगने से बचाएं।
झपकी सुधारे याददाश्त
दिन में झपकी आना आमतौर पर अच्छा नहीं माना जाता। अगर आप दिन के समय अपने काम पर या ऑफिस में झपकी लेंगे तो लोग आपको टोकेंगे कि रात सोए नहीं क्या। लेकिन वैज्ञानिक शोध में यह बात सामने आई है कि दिन में एक झपकी आपके दिमाग के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक टीम ने अपने शोध में पाया कि दिन भर जागने वाले छात्रों की सीखने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है, जबकि उन छात्रों की सीखने की क्षमता में वृद्धि होती है जो दिन में एक बार झपकी ले लेते हैं। यह शोध मैथ्यू वॉकर और उनकी टीम ने किया।
नियमित रूप से पढ़ें-लिखें, दिमाग रहेगा दुरुस्तआप अपने दिमाग से जितना काम लेंगे, वह उतना ही दुरुस्त रहेगा। यह मान्यता हमारे यहां पहले से ही रही है, लेकिन हाल में ही अमेरिका के इलिनोएस प्रौद्योगिकी संस्थान में किए गए शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि पढ़ाई-लिखाई और शतरंज जैसे खेल को अपनी दिनचर्या में प्रमुखता से शामिल करने वाले लोगों का दिमाग उन लोगों की तुलना में ज्यादा दुरुस्त रहता है जो इन गतिविधियों से दूर रहते हैं।
40 के हो गए तो टमाटर जरूर खाएं
40 साल के बाद कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। इनमें कोलेस्ट्रॉल का स्तर बिगडऩे से लेकर बीपी बढऩे या घटने तक की समस्याएं सामने आ सकती हैं। हृदय रोग और मधुमेह की भी आशंका बढऩे लगती है। एक शोध के अनुसार, अगर आप 40 पार कर गए हैं तो आपको अपने भोजन में बादाम, जै, टमाटर, मछली आदि को नियमित रूप से शािमल करना चाहिए। शोध में पाया गया है कि 20 मिनट के व्यायाम के बाद 150 मिलीग्राम टमाटर का जूस पीने से कैंसर से बचे रहते हैं, दिल भी दुरुस्त रहता है और कई अन्य बीमारियां भी नियंत्रित रहती हैं। कोलेस्ट्रॉल के खतरे से दूर रहने के लिए रोज 3 ग्राम जै खाएं।
रेसपीज-फ्रेंच ऑनियन पौटेटो बेक
फ्रेंच ऑनियन पौटेटो बेक
इंग्रिडिएंट्स
2 किलो आलू (छिलकर स्लाइस में कटे हुए), 4 ब्राउन अनियन (स्लाइस में कटे हुए), एक पैकेट फ्रेंच अनियन सूप मिक्स, 600 मिली क्रीम (लिक्विड)।
मेथड
एक बड़ी बेकिंग डिश में चीजों को एक के बाद एक लेयर में रखते जाएं। सबसे पहले प्याज, फिर सूप मिक्स और फिर आलू। ध्यान रहे कि आलू को सबसे ऊपर की लेयर में रखें। अब इसमें क्रीम डाल दें। इसे फाइल से कवर कर लें। 180 डिग्री सेल्सियस पर 50 मिनट बेक करें। यह लंच के साथ सलाद के तौर पर भी यूज किया जा सकता है।
नूडल्स भेल
इंग्रिडिएंट्स
100 ग्राम मसाला नूडल्स, 100 ग्राम मंूग, मोठ, चना (अंकुरित), 50 ग्राम लंबी कटी शिमला मिर्च, 25 ग्राम भूनी मंूगफली, 2 बड़े चम्मच कसा नारियल, एक छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, आधा छोटा चम्मच राई, 2 बारीक कटी हरी मिर्चें, 5 से 6 करी पत्ते, 1 प्याज बारीक कटा हुआ, दो चम्मच बारीक कटी धनिया पत्ती, नमक व नीबू का रस स्वादानुसार, दो चम्मच तेल।
मेथड
कड़ाई में तेल गर्म करें। राई डाल दें। राई चटकने के बाद प्याज डाल दें। हल्का बादामी होने पर करी पत्ते और हरी मिर्च मिला लें। फिर उसमें अलग से उबली हुई अंकुरित दालें व नूडल्स डालें। लाल मिर्च, मूंगफली और नमक डालकर चलाएं। फिर इसमें शिमला मिर्च, धनिया पत्ती, नीबू का रस व कसा नारियल मिलाएं।
ये बीड्स वाला बढिय़ा स्टाइल
हेयर स्टाइल में थोड़ा टशन चाहिए, तो बीड्स ट्राई करें। इनको कई तरह की ड्रेसेस के साथ कैरी किया जा रहा है और इसमें आप खासी वैराइटी ट्राई कर सकती हैं। लेकिन पहले इन बातों पर ध्यान दें :
- बालों को स्टाइल देने के लिए बीड्स का यूज किया जाता है और ये कई कलर्स, शेप और डिजाइंस में आपको मिलेंगे। अपने बालों के टेक्सचर और ड्रेस के कलर के हिसाब से आप इनको चुन सकती हैं।
- आपके फेस कट पर किस तरह का बीडेड हेयर स्टाइल सूट करेगा, इस बात पर जरूर ध्यान दें।
- बीड्स सिर पर टिके रहें, इसके लिए छोटे-छोटे जूड़ा पिंस यूज करें।
- बीडेड हेयर स्टाइल में हर साइज के बीड्स यूज किए जाते हैं। लेकिन प्रिफर करें बड़े साइज के बीड्स। छोटे साइज के बीड्स बालों में सही तरीके से दिखाई नहीं देते और इनसे बना डिजाइन भी ठीक से उभरकर नहीं आता। बड़े साइज के बीड्स दिखाई तो देते ही हैं, इनसे ग्रेस भी आता है।
- इनमें ब्राइट और नजर आने वाले कलर्स, जैसे पिंक, रेड, ग्रीन, गोल्डन, ब्लू वगैरह यूज करें।
- जिस भी कलर के बीड्स यूज करें, उन्हें ड्रेस, जूलरी और फुटवियर्स से मैच करवाएं। इससे आपका ओवरऑल लुक परफेक्ट दिखेगा। लेकिन यह ध्यान रखें कि आपकी सारी एक्सेसरीज एक ही रंग की न हों।
ये सच नहीं, मिथ है
बालों की खूबसूरती को लेकर हम सभी बहुत कॉन्शस होते हैं। शायद यही वजह है कि हम ऐसी बातों को भी मानने लगते हैं, जिनका कोई आधार नहीं होता। आइए, जानते हैं कुछ ऐसे ही मिथकों के बारे में :
कंडीशनर है ग्लू नहीं
कई लोग सोचते हैं कि कंडिशनर लगाने से दो मुंहे बाल ठीक हो जाते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। यह कंडिशनर है, ग्लू नहीं, जो आपके बालों के सिरों को दोबारा चिपका देगा। दरअसल, कंडिशनर मॉश्इचराइजर की तरह होता है, जिससे बाल सॉफ्ट और शाइनिंग करते हैं।
ज्यादा से तौबा
कई महिलाएं ज्यादा शैंपू और कंडिशनर यह सोचकर लगाते हैं कि इससे उनके बाल अच्छे हो जाएंगे। लेकिन होता इससे उलटा ही है। ज्यादा शैंपू यूज करने से सिर की स्किन ड्राई हो जाती है और बालों में डैंड्रफ हो जाती है। जबकि अधिक कंडिशनर लगाने से बाल ऑयली व चिकने हो जाते हैं। इसलिए आप जब भी शैंपू व कंडिशनर यूज करें, तो उसकी क्वांटिटी का ध्यान रखें। अपने बालों की लेंथ के अकोर्डिंग ही इनकी अमाउंट निकालें। बाल के लिए यही फायदेमंद रहेगा।
अधिक कंघी करना
अगर आप सोचती हैं कि दिन में कई बार कंघी करने से आपके बाल खराब नहीं होंगे, तो आपकी सोच गलत हैं। हालांकि कई एक्सपर्ट भी ऐसी सलाह देते हैं। लेकिन बालों में उतनी ही कंघी करें, जितनी जरूरत है। ज्यादा कंघी करने से बाल खराब हो जाते हैं।
कोई नियम कानून नहीं
बाल धोने का कोई टाइम टेबल नहीं होता। आप उनको रोजाना या एक दिन छोड़कर भी धो सकते हैं। अगर आपको लगता है कि आपके बला गंदे व चिपचिपे जल्दी हो जाते हैं, तो रोज भी धो सकते हैं।
गीले बालों में कंघी
लोग मानते हैं कि गीले बालों में कंघी करने पर वे टूटते और उलझते हैं, जो बिल्कुल गलत है। हां, गीले बालों पर चौड़ी कंघी का यूज करें। अगर आप गीले बालों पर कंघी कर लेते हैं, तो बाल आराम से सुलझ जाते हैं।
रहस्यमयी ङील ‘पांडुजी’
fundudzi lake
दक्षिण अफ्रीका के प्रांत उत्तरी ट्रांसवाल में पांडुजी नाम की एक अद्भुत ङील है। इस ङील के बारे में कहा जाता है कि इसके पानी को पीने के बाद कोई जिन्दा नहीं रहा और न ही आज तक कोई वैज्ञानिक इसके पानी का रासायनिक विश्लेषण कर पाया है।
मुटाली नामक जिस नदी से इस ङील में पानी आता है, उसके उद्गम स्थल का पता लगाने की भी वैज्ञानिकों ने बहुत कोशिश की, मगर इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। इसकी खास बात है कि इस ङील का पानी अजीबो-गरीब तरीके से ज्वार भाटे की तरह उठता व गिरता है।
सन् 1947 में हैडरिक नामक एक किसान ने ङील में नाव चलाने का प्रयास किया। नाव सहित जैसे ही वह ङील के बीचों-बीच पहुंचा, वह रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। वहां के निवासियों ने उसका पता लगाया, लेकिन हैडरिक और उसकी नाव का कहीं कोई पता नहीं चल सका।
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सन् 1953 में बर्न साइड नामक एक प्रोफेसर ने इस ङील के रहस्य से पर्दा उठाने का बीड़ा उठाया। प्रोफेसर बर्न साइड अपने एक सहयोगी के साथ अलग-अलग आकार की 16 शीशियां लेकर पांडुजी ङील की तरफ चल पड़े। उन्होंने अपने इस काम में पास के बावेंडा कबीले के लोगों को भी शामिल करना चाहा, लेकिन कबीले के लोगों ने जैसे ही पांडुजी ङील का नाम सुना तो वे बिना एक पल की देर लगाए वहां से भाग खड़े हुए। कबीले के एक बुजुर्ग आदिवासी ने बर्न साइड को सलाह भी दी कि अगर उन्हें अपनी और अपने सहयोगी की जान प्यारी है तो पांडुजी ङील के रहस्य को जानने का विचार फौरन ही छोड़ दें। उसने कहा कि वह मौत की दिशा में कदम बढ़ा रहा है क्योंकि आज तक जिसने भी इस ङील के रहस्य से पर्दा उठाना चाहा,वह जिन्दा नहीं बचा।
प्रोफेसर बर्न साइड वृद्ध आदिवासी की बात सुनकर कुछ वक्त के लिए परेशान जरूर हुए, लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे, साहस जुटाकर वह फिर ङील की तरफ चल पड़े। एक लंबा सफर तय कर जब वे ङील के किनारे पहुंचे तब तक बहुत रात हो चुकी थी।
अंधेरा इतना घना था कि पास की चीज भी दिखाई नहीं दे रही थी।
इस भयानक जंगल में प्रोफेसर बर्न साइड ने अपने सहयोगी के साथ सुबह का इंतजार करना ही बेहतर समझ। सुबह होते ही बर्न साइड ने ङील के पानी को देखा, जो काले रंग का था। उन्होंने अपनी अंगुली को पानी में डुबोया और फिर जबान से लगाकर चखा।
उनका मुंह कड़वाहट से भर गया। इसके बाद बर्न साइड ने अपने साथ लाई गईं शीशियों में ङील का पानी भर लिया। प्रोफेसर ने ङील के आसपास उगे पौधों और झड़ियों के कुछ नमूने भी एकत्रित किए। उन्होंने और उनके सहयोगी ने वहां से चलने का फैसला किया।
ङील के बारे में सुनीं बातों को लेकर वे आशंकित थे ही, इसलिए उन्होंने तय किया कि बारी-बारी से सोया जाए। जब प्रोफेसर बर्न साइड सो रहे थे तब उनके सहयोगी ने कुछ अजीबो-गरीब आवाजें सुनीं। उसने घबराकर प्रोफेसर को जगाया। सारी बात सुनने पर बर्न साइड ने आवाज का रहस्य जानने के लिए टार्च जलाकर आसपास देखा, लेकिन उन्हें कुछ भी पता नहीं चला। आवाजों के रहस्य को लेकर वे काफी देर तक सोचते रहे।
सवेरे चलने के समय जैसे ही उन्होंने पानी की शीशियों को संभाला तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं। हैरानी की एक बात यह भी थी कि शीशियों के ढक्कन ज्यों के त्यों ही लगे हुए थे। वे एक बार फिर पांडुजी ङील की तरफ चल पड़े। लेकिन बर्न साइड खुद को अस्वस्थ महसूस कर रहे थे, उनके पेट में दर्द भी हो रहा था। वे ङील के किनारे पहुंचे। बोतलों में पानी भरा और फिर वापस लौट पड़े।
रास्ते में रात गुजारने के लिए वे एक स्थान पर रुके, लेकिन इस बार उनकी आंखों में नींद नहीं थी। सुबह दोनों यह देखकर फिर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं। बर्न साइड का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए वे खाली हाथ ही लौट पड़े।
घर पहुंचने पर नौवें दिन बर्न साइड की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आंतों में सूजन आ जाने के कारण बर्न साइड की मौत हुई थी।
प्रोफेसर द्वारा एकत्रित ङील के समीप उगे पौधों के नमूने भी इतने खराब हो चुके थे कि उनका परीक्षण कर पाना मुमकिन नहीं था।
बर्न साइड का जो सहयोगी उनके साथ पांडुजी ङील का रहस्य जानने गया था, उनकी मौत उनके एक हफ्ते बाद हो गई। वह पिकनिक मनाने समुद्र तट पर गया, वह एक नाव में बैठकर समुद्र के किनारे से बहुत दूर चला गया।
दो दिन बाद समुद्र तट पर उसकी लाश पाई गई। आज तक इस रहस्य का पता नहीं लग पाया है कि उसकी मौत महज एक हादसा थी या खौफनाक पांडुजी ङील का अभिशाप।
इस अभिशप्त ङील के बारे में जानकारी हासिल करने वालों की मौत भी इस ङील के रहस्य की तरह ही एक रहस्य बनकर रह गई है।
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