Sunday, May 12, 2013
गुणों की खान है खीरा
खीरे में प्रचुर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेट होते है जो हमारे शरीर के इम्यून फंक्शन को बरकरार रखने मदद करते है। इसे रोजाना खाने से गर्मी से लू नहीं लगती। इसमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है, जो शरीर में पानी की कमी नहीं होने देती। इसके सेवन से थकावट नहीं होती है। यहां आपको डाइटीशियन इति भल्ला बता रही है इसके अन्य गुणों के बारे में।
1. इसका प्रयोग गर्मी से राहत देने और जलन को दूर करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में किया जाता रहा है। यह सिर्फ डाइट में ही नहीं प्रयोग किया जाता है, स्त्रियां इसका खास उपयोग आंखों की थकावट को दूर करने के लिए भी करती है।
2. इसे अच्छी तरह से साफकरके छिलके समेत खाएं तो अच्छा रहता है। खीरे में फाइबर बहुत होता है।
3. अगर आपको इसे साबुत खाने में समस्या है तो जूस पिएं।
4. डायबिटीज, एसिडिटी, ब्लड प्रेशर से पीडि़त व्यक्ति या जो वजन को नियंत्रित करना चाहते है, उन्हे सुबह खाली पेट खीरे का जूस लेना चाहिए। स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा नीबू का रस डाल सकती है। चाहे तो जूस का बर्फ जमा लें। ब्लड प्रेशर की समस्या हो तो जूस में नमक न डालें।
5. यह आंखों की सूजन कम करता है और उन्हे राहत के साथ ठंडक भरा एहसास देता है।
6. खीरा एक बेहतरीन क्लींजर और टोनर होता है।
7. खीरे में मिनरल की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, सल्फर, सिलिकॉन, क्लोरीन
संतरे की रसीली बातें
विटामिन सी से भरपूर संतरा पोषकीय तत्वों और रोग निवारक क्षमताओं से युक्त एक अत्यंत उपयोगी फल है नींबू परिवार का..
- एक सामान्य आकार के संतरे में पाए जाने वाले तत्वों का विवरण इस प्रकार है। प्रोटीन-0.25 ग्राम, कार्बोज 2.69 ग्राम, वसा 0.03 ग्राम, कैल्शियम 0.045 प्रतिशत, फास्फोरस 0.021 प्रतिशत, लोहा 5.2 प्रतिशत, तांबा 0.8 प्रतिशत।
- संतरे की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसका रस शरीर के अंदर पहुंचते ही रक्त में रोग निवारणीय कार्य प्रारंभ हो जाता है। इसमें पाए जाने वाले ग्लूकोज एवं डेक्सट्रोज जैसे जीवनशक्ति प्रदान करने वाले तत्व पचकर शक्तिवर्धन का कार्य करने लगते हैं। इसका रस अत्यंत दुर्बल व्यक्ति को भी दिया जा सकता है।
- संतरे में पाये जाने वाले उपयोगी तत्वों के कारण यह अनेक शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाता है।
- मितली और उल्टी में संतरे के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और काला नमक मिलाकर लिया जाना लाभकारी रहता है।
- रक्तस्राव, मानसिक तनाव, दिल और दिमाग की गर्मी में इसकी विशेष उपयोगिता है।
- कब्जियत होने पर संतरे के रस का शर्बत और शिकंजी के साथ काला नमक, काली मिर्च और भुना जीरा मिलाकर लेना लाभकारी रहता है।
- संतरे में लहसुन, धनिया, अदरख मिलाकर चटनी खाने से पेट के रोगों में लाभ मिलता है।
- बुखार के रोगी को और पाचन विकार में संतरे के रस को हल्का गर्म करके उसमें काला नमक और सोंठ का चूर्ण मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी रहता है।
- संतरे और मुनक्के का मिश्रण लेने से आंव और पेट के मरोड़ से मुक्ति मिल जाती है।
- सर्दी-जुकाम या इनफ्लुएंजा में एक सप्ताह एक गुनगुना संतरे का रस काली मिर्च और पीपली का चूर्ण मिलाकर लेना लाभकारी रहता है।
- मुंहासे होने पर संतरे के रस का सेवन तथा उसके छिलके में हल्दी मिलाकर लेप लगाना लाभकारी रहता है।
- चेहरे के सौंदर्य को निखारने के लिए हल्दी, चंदन, बेसन और संतरे के छिलके का चूर्ण दूध या मलाई में मिलाकर लगाएं।
नहीं चलेगी एलर्जी की मर्जी
एलर्जी तब होती है, जब शरीर किसी पदार्थ के प्रति प्रतिक्रिया करता है। वह पदार्थ जिसके कारण प्रतिक्रिया होती है, उसे एलर्जन कहा जाता है। एलर्जी के विभिन्न प्रकार होते हैं। सामान्य रूप से एलर्जी इन कारणों से उत्पन्न होती है-
- हवा में मौजूद धुआ, गर्दा और फूलों के पराग कण आदि।
- कुछ लोगों में दूध, रसायनों या फिर कुछ दवाओं के सेवन से।
- कीड़ों के डंक जैसे बर्र, मधुमक्खी या चीटे के काटने आदि से।
लक्षण
- नाक में खुजली, नाक का बहना या बद होना।
- गले में खुजली होना या खासी आना।
- छींकना, खासना और कभी-कभी अस्थमा या दमा का दौरा पडऩा।
- आखों में खुजली, लाली, सूजन, जलन या पानी सरीखा द्रव बहना।
- त्वचा पर लाली पडऩा और खुजली होना।
- कान में तकलीफ होने पर सुनने की क्षमता में कमी आना।
- सिरदर्द, मितली या उल्टी, पेट में दर्द या मरोड़ होना। दस्त होना।
- मुंह के आसपास सूजन या निगलने में कठिनाई।
एलर्जी के प्रकार
एलर्जिक कन्जंक्टिवाइटिस: यह आमतौर पर पाया जाने वाला एलर्जी का एक प्रकार है। यह समस्या धूल, धुएं, कॉन्टैक्ट लेंस व सौंदर्य प्रसाधन से सबधित वस्तुओं के इस्तेमाल से उत्पन्न हो सकती है। इसमें आमतौर पर आखों में लाली, जलन व खुजली महसूस होती है।
त्वचा की एलजीर्: त्वचा की एलर्जी सबसे आम समस्याओं में से एक है। इसमें एग्जिमा व अरटीकेरिया नामक रोग प्रमुख हैं। एग्जिमा आमतौर पर बचपन में होता है किन्तु वयस्क अवस्था तक जारी रह सकता है। त्वचा पर लाल चकत्ते उभर आते हैं। एलर्जी का यह प्रकार अक्सर अज्ञात कारणों से उत्पन्न होता है।
फूड एलजीर्: किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी की शिकायत होना फूड एलर्जी का सूचक है। एलर्जी से सबधित शिकायतों का निदान व उसका उपचार आवश्यक है।
डायग्नोसिस
त्वचा परीक्षण: एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों की पहचान के लिए यह परीक्षण किया जाता है।
रक्त परीक्षण: यह रक्त में विशिष्ट एंटीबॉडीज- की पहचान के लिए किया जाता है।
उपचार
- डॉक्टर की सलाह से कई एलर्जी रोधक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे मोन्टेल्यूकास्ट तत्व से युक्त दवा आदि।
- इम्यूनोथेरेपी के माध्यम से व्यक्ति में धीरे-धीरे किंतु अधिक मात्रा में एलर्जन पहुंचाया जाता है।
गर्भाशय की सुरक्षित सर्जरी
ऑपरेशन के रूप में हिस्टेरेक्टॅमी का इलाज दो सर्जिकल विधियों (लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और ओपन सर्जरी) द्वारा किया जा रहा है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि उलर भारत में हिस्टेरेक्टॅमी से सबधित लगभग 80 फीसदी से अधिक मामले ओपन सर्जरी के जरिये ही किए जा रहे हैं। जबकि ओपन सर्जरी की तुलना में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिये हिस्टेरेक्टॅमी का ऑपरेशन काफी सुरक्षित, कारगर व सुविधाजनक है।
क्या हैं कारण
हिस्टेरेक्टॅमी का ऑपरेशन इन स्थितियों में किया जाता है..
-माहवारी के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, जो दवाओं से ठीक नहीं हो रहा हो।
-40 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में फाइब्रॉयड का होना।
-एंडोमैट्रियोसिस और एडेनोमायोसिस नामक रोग होना।
-गर्भाशय व अंडाशय के सर्विक्स या ट्यूब का कैंसर।
-गर्भाशय के किसी भाग में कैंसर पूर्व अवस्था।
अतीत में हिस्टेरेक्टॅमी पेट पर एक बड़ा चीरा लगाने के बाद ही की जाती थी, लेकिन अब गर्भाशय को निकालने की इस विधि को अधिकतर स्त्री रोग विशेषज्ञ पुराना मानते हैं। दुनिया के अधिकतर देशों में 30 प्रतिशत सर्जरी ओपन तकनीक से की जाती है, जिसके कारण सर्जरी के बाद पीडि़त महिला को स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है।
तुलना दोनों सर्जरी की
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी, ओपन सर्जरी की तुलना में कई गुना बेहतर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सर्जन या स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी दृश्य को 20 गुना बड़ा और अच्छी तरह से देख सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में विशेष उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि सर्जन ओपन सर्जरी की तुलना में कहींअधिक अच्छे ढंग से बेहतर गुणवत्त के साथ सर्जरी कर सके।
भ्रातिया और तथ्य
लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी से कुछ मिथक जुड़े हैं, जिनका तथ्यों की रोशनी में निवारण करना जरूरी है
भ्राति: लेप्रोस्कोपी से बड़े आकार के गर्भाशय की सर्जरी नहीं की जा सकती।
तथ्य: इस तरह की धारणा गलत है। सच तो यह है कि लैप्रोस्कोपी से किसी भी आकार के गर्भाशय की सर्जरी की जा सकती है।
भ्राति: जो महिलाएं पहले ही सर्जरी करा चुकी हैं या जिनके बच्चे ऑपरेशन से हुए हैं, उनकी लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी सभव नहीं है।
तथ्य: जो महिलाएं पहले भी सीजेरियन या अन्य किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण ओपन सर्जरी करा चुकी हैं, वे भी लैप्रोस्कोपी के द्वारा सर्जरी करा सकती हैं। इन दिनों स्तरीय लैप्रोस्कोपिक केन्द्रों पर कैसर सर्जरी (जैसे -सर्विक्स, गर्भाशय, आदि) भी लेप्रोस्कोपी के जरिये आसानी से की जा सकती है।
भ्राति: लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी अधिक महंगी है।
तथ्य: यह मिथक पूरी तरह से गलत है क्योंकि लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी, ओपन सर्जरी की तुलना में न सिर्फ तुलनात्मक रूप से सस्ती है बल्कि पीडि़त महिला जल्द ही अपने काम पर जा सकती है और इस तरह उसे अपनी कमाई करने में मदद मिल सकती है।
भ्राति: लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी के बाद आखें और हड्डिया कमजोर हो जाती हैं और हार्मोन्स में असतुलन पैदा हो जाता है।
तथ्य: इन दिनों हिस्टेरेक्टॅमी के द्वारा अंडाशय (ओवरी)को आम तौर पर नहीं निकाला जाता (जब तक कि पीडि़त महिला कैंसर से ग्रस्त न हो)। अंडाशय से उत्सर्जित होने वाले हार्मोन्स में सामान्य तौर पर कोई गड़बड़ी नहीं होती है और न ही हिस्टेरेक्टॅमी के बाद आखें और हड्डिया कमजोर होती हैं।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और ओपन सर्जरी में अंतर
1. अस्पताल में सिर्फ एक दिन रहना पड़ता है।
2. रक्त का बहुत कम नुकसान होता है (100 मिली से भी कम)। अधिकतर मामलों में रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।
3. आई. वी. ड्रिप की जरूरत नहीं होती है।
4. बहुत कम दर्द होता है (अधिकतर पीडि़त महिलाओं को दर्दनिवारक गोलिया लेने की भी जरूरत नहीं पड़ती)।
5. ऑपरेशन कराने के बाद महिला दो-तीन दिनों में ही काम पर वापस लौट सकती है।
6. कम महंगी है।
1. अस्पताल में पाच से छह दिनों तक रहना पड़ता है।
2. रोगी में करीब 500 मिली रक्त का नुकसान होता है। ओपन सर्जरी में कई बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
3. आई. वी. ड्रिप की जरूरत 24 घटे तक होती है।
4. अधिक दर्द होता है (सर्जरी के बाद 3-4 दिनों तक दर्द रहता है)।
5. आम तौर पर एक महीने के बाद काम पर लौट सकती हैं। कुछ महिलाओं को इससे ज्यादा वक्त लग सकता है।
6. अधिक महंगी है।
फूड, फैट और फिटनेस
बच्चों को कोई खा- पदार्थ खाने से मना नहीं करना चाहिए। इसके बजाय उन्हें यह समझा सकती है कि अमुक वस्तु तुम्हारी सेहत के लिए अच्छी रहेगी और अमुक नहीं..
बाल्यावस्था के दिन बेफिक्री के होते है। मौजमस्ती और नटखटपन इस अवस्था के प्रमुख गुण होते है। इस अवस्था में शरीर का विकास भी होता है। इसलिए बाल्यावस्था में खानपान पर समुचित ध्यान देना जरूरी है। इससे बच्चों का सही तरह से शारीरिक व मानसिक विकास हो सकता है। खानपान के अलावा उन्हे व्यायाम की भी जरूरत होती है। यह अभिभावकों का फर्ज है कि वे अपने बच्चों में अच्छी सेहत के प्रति सजगता की आदत बचपन से ही डालें।
परीक्षण करे
आपका बच्चा (6-12 साल) शारारिक-मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ है या नहीं, इस बात का परीक्षण करने के लिए इस चेकलिस्ट पर गौर फरमाएं
- क्या आपका बच्चा सुस्त रहता है
- क्या वह तुनुक-मिजाज है
- रोजमर्रा में उसे भूलने की आदत है
- पढऩे-लिखने में मन कम लगता है
- वह बेचैन रहता है
- उसका शैक्षिक प्रदर्शन अच्छा नहीं है
यदि आपके बच्चे में उपर्युक्त लक्षणों में से दो से अधिक लक्षण है तो यह समझें कि उसे पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो रहे है।
सामान्य समस्याएं
बाल्यावस्था में मोटापा, वजन कम होना, एनीमिया और दांतों संबंधी समस्याएं पैदा होती है। कुछ बच्चों में अपनी उम्र के बच्चों या अन्य लोगों के साथ घुलने-मिलने में दिक्कत होती है।
मोटापा
देश में बाल्यावस्था में होने वाले मोटापे की समस्याएं बढ़त पर हैं। आप बच्चे में खानपान से संबंधित अच्छी आदतें डालकर उन्हे मोटापे से ग्रस्त होने से बचा सकती है। जैसे उन्हे शुगर युक्त खाद्य पदार्थो से दूर रखना और आहार में पर्याप्त मात्रा में फाइबर बढ़ाना। एक अभिभावक होने के नाते आपको बच्चे को यह बताना चाहिए कि उसे मिठाइयों व उन पेयों से दूर रहना चाहिए, जिनमें शुगर ज्यादा रहती है। बच्चे को फल व कच्ची सब्जियां खाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यदि पहले से ही आपका बच्चा मोटा है तो उसे खेलों व अन्य शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
वजन कम होना
कुछ बच्चों का वजन लंबाई के अनुपात में काफी कम होता है। कुछ बच्चों की आदत कम खाने की होती है। उनकी यह प्रवृलि अभिभावकों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है। ऐसे बच्चों के बारे में अभिभावकों को यह बात मालूम करनी चाहिए कि उन्हे कौन से खाद्य पदार्थ पसंद है। संभव है कि पसंदीदा वस्तु न होने के कारण वे कम खाते हों। उन्हे प्यार से फुसलाकर विविधतापूर्ण हेल्दी भोजन दें। अगर बच्चे का वजन कम है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उसे शुगरयुक्त खाद्य पदार्थो व पेयों को पीने की अनुमति प्रदान करे। कारण, हेल्दी आहार ग्रहण करने की बात मोटे और पतले दोनों पर ही लागू होती है।
दांतों की समस्या
दांतों में कीड़ा लगना एक आम समस्या है। इस समस्या से बचने के लिए बच्चों में यह आदत डालें कि वे रात में भी सोने से पहले टूथब्रश करें। साथ ही उन्हे शुगरयुक्त खाद्य पदार्थो को कम से कम खाने की सलाह दें।
एनीमिया
शरीर में आयरन की कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर काफी कम हो जाता है। एनीमिया से ग्रस्त बच्चे थोड़ा सा काम करने पर थकान महसूस करने लगते है। उनके शरीर में चुस्ती-फुर्ती नहीं रहती। इसके चलते बच्चों की मानसिक क्षमता भी कम होने लगती है। एनीमिया की कमी दूर करने के लिए बच्चों को हरी पलेदार सब्जियां दें। इसके अलावा ड्राई फ्रूट्स भी दें। इनमें आयरन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
नाश्ता बहुत जरूरी है
सुबह का नाश्ता करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करे। ज्यादातर बच्चे स्कूल जाने से पहले अच्छी तरह नाश्ता नहीं करते। बच्चों को संतुलित-पौष्टिक नाश्ता करवाकर ही स्कूल भेजें। बच्चे को दिन में तीन मुख्य आहार और दो से तीन बार स्नैक्स जरूर देने चाहिए।
स्नैक्स
इसका सबसे अच्छा विकल्प फल है। साथ ही उन्हें ड्राई फ्रूट्स और दही भी दे सकती है।
स्कूल में
ज्यादातर स्कूल की कैंटीन में खानपान की हेल्दी वस्तुएं उपलब्ध नहीं होतीं। समोसा, बर्गर आदि वस्तुएं ही उपलब्ध होती है। ये वस्तुएं कभी-कभी खाई जाएं तो अच्छा है। बेहतर रहेगा कि बच्चे को टिफिन देकर ही स्कूल भेजें।
हेल्दी हैबिट्स
- खाना खाते समय बच्चे को टीवी न देखने दें। इससे खाने की ओर से उनका ध्यान बंटता है। उन्हे समझाएं कि खाना खाते समय पूरा ध्यान खाने पर ही लगाएं।
- हेल्दी फूड ग्रहण करने की आदत बच्चा घर से ही सीखता है। इस संदर्भ में अभिभावकों को हेल्दी फूड ग्रहण कर बच्चों के समक्ष खुद को रोल मॉडल के तौर पर पेश करना चाहिए।
- खानपान के संदर्भ में बच्चे के समक्ष कई विकल्प पेश करने चाहिए। मसलन यदि बच्चा केला नहीं खाना चाहता तो उसे सेब दें। पपीता नहीं खाना चाहता तो गाजर दें।
ओट्स से पाएं सेहत और सौंदर्य
गर्मियों के लिए ओट्स (जई) एक बेहतरीन सीरियल है। इसकी तासीर ठंडी होती है। यह त्वचा की जलन को दूर करता है और असमय झुर्रियों से बचाता है। तो क्यों न इसे अपने जीवन में शामिल करें। डाइटीशियन ईशी खोसला व सौंदर्य विशेषज्ञा डॉली कपूर बता रही हैं इसके अन्य गुणों के बारे में..
ओट्स में इनोजिटॉल पाया जाता है, जो ब्लड कोलेस्ट्रॉल लेवल को बरकरार रखने का एक बेहतरीन स्रोत है। ओटमील और ओट के चोकर में पर्याप्त डाइटरी फाइबर होता है। इसमें पाया जाने वाला सॉल्युबल फाइबर डाइजेस्टिव ट्रैक्ट को दुरुस्त रखने में मदद करता है। दरअसल, गर्मियों में अक्सर लोगों को तमाम तरह पेट की समस्याएं मसलन एसिडिटी, जलन और डाइजेशन की प्रॉब्लम होती है। बावल मूवमेंट्स को नियमित करने के लिए फाइबर की जरूरत होती है।
सेहत के लिए जरूरी
- आपने सुना होगा कि दिन अच्छी शुरुआत करने के लिए ब्रेकफास्ट बहुत जरूरी होता है। यह जान लें कि दिन की शुरुआत के लिए एक बाउल ओटमील से अच्छा कोई मील नहीं है।
- ओट्स में पर्याप्त फाइबर होने के कारण इसे अपने आहार में शामिल करना अच्छा होता है। इसमें सॉल्युबल और अनसॉल्युबल दोनों प्रकार के फाइबर होते हैं। अनसॉल्युबल पानी में नहीं घुल पाता। यह स्पॉन्जी होता है, जो कब्ज को दूर करने में मदद करता है। साथ ही पेट खराब होने से भी बचा पाता है।
- इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, विटामिन बी-काम्प्लेक्स और मैग्नीशियम होता है, जो नर्वस सिस्टम के लिए बहुत जरूरी होता है। गर्मी के कारण चक्कर, दिल घबराने जैसी आम समस्याओं में यह बहुत लाभदायक होता है।
- पके हुए ओट्स शरीर से अतिरिक्त फैट कम करते हैं, वहीं अनरिफाइन्ड ओटमील स्ट्रेस को कम करता है।
- हाई फाइबर होने के कारण यह बावल कैंसर से बचाता है। साथ ही हृदय रोग के खतरों से दूर रखता है।
- अगर आप डाइबिटीज और ब्लड शुगर की समस्या से ग्रस्त हैं तो ओट्स का सेवन करें, क्योंकि यह शरीर में ब्लड शुगर और इंसुलिन को नियंत्रित रखता है।
- एक शोध से यह पता चला है कि 2-18 साल के बीच के बच्चे, जो नियमित रूप से ओटमील लेते हैं, उनमें ओबेसिटी होने का खतरा बहुत कम होता है। शोध से यह भी पता चला है कि जिन बच्चों की डाइट में ओटमील शामिल होता है उनमें 50 प्रतिशत कम वजन बढऩे की संभावना होती है।
सौंदर्य बढ़ाए
- ओटमील फेसपैक त्वचा को कोमल और कांतिमय बनाता है। यह एक बेहतरीन ब्यूटी एन्हेंसर है। यह त्वचा को चमकदार बनाता है।
- अत्यधिक रूखी त्वचा और एग्जीमा को दूर करने के लिए ओटमील बाथ लेना अच्छा उपाय है। यह त्वचा की जलन को दूर करता है। इसके लिए 500 ग्राम ओट्स की भूसी को एक लीटर पानी में 20 मिनट तक उबालें। फिर छानकर ठंडा करें और उस पानी से नहाएं।
- खोई हुई रंगत और कोमलता पाने के लिए ओट्स स्क्रब लगाएं। इसके लिए दो टेबलस्पून ओटमील, दो टीस्पून ब्राउन शुगर, दो टेबलस्पून एवोकैडो और पांच-छह बूंद रोज एसेंशियल ऑयल मिलाकर पेस्ट बनाएं और गीली त्वचा पर इससे हल्का मसाज करें। गुनगुने पानी से चेहरा साफ कर लें। पूरे शरीर पर लगाने के लिए इसकी मात्रा बढ़ा सकते हैं।
ओट्स ऐंड हनी मिल्क बाथ
आधा टी-कप ओटमील, एक चौथाई टी-कप आमंड मिल्क , पांच-छह बूंद लैवेंडर ऑयल को एक छोटे फैब्रिक बैग में भरकर बाथटब में डालें, फिर नहाएं।
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