Monday, April 22, 2013

देसी तरीके: प्याज को ऐसे खाने से पुरुषों की हर तरह की कमजोरी दूर हो जाएगी


प्याज भोजन को केवल स्वादयुक्त ही नहीं बनाता है, बल्कि यह अरुचि और अपच जैसी स्थितियों में भी काफी फायदेमंद होता है। आहार विशेषज्ञों एवं सेक्सुअल रोगों के विशेषज्ञों की मानें तो प्याज भोजन में रूचि को तो बढ़ाता ही है, साथ ही सेक्सुअल दुर्बलता को दूर करने में भी काफी उपयोगी पाया जाता है। सुखी और संतुष्ट वैवाहिक जीवन के लिए सम्भोग शक्ति का प्रबल होना भी आवश्यक है और इसके लिए प्याज एक सरल उपाय है। यौन शक्ति के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए प्याज एक सस्ता एवं सुलभ विकल्प है। आइए अब आपको इसके कुछ औषधिय प्रयोगों की जानकारी देते हैं-

देसी तरीके: प्याज को ऐसे खाने से पुरुषों की हर तरह की कमजोरी दूर हो जाएगी

- सफेद प्याज के रस को अदरक के रस के साथ मिलाकर शुद्ध शहद तथा देशी घी सभी के पांच-पांच ग्राम की मात्रा लेकर एक साथ मिलाकर सुबह नियम से एक माह तक सेवन करें और लाभ देखें इससे यौन क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जाती है।

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- लाल प्याज पचास ग्राम की मात्रा में लेकर इसे देशी घी पचास ग्राम और ढाई सौ ग्राम दूध मिलाकर गर्म कर नियमित चाटना चाहिए। शीत ऋतु में इस योग को नियमित रूप से दो से तीन बार लिया जाना चाहिए। गर्मियों में इस योग सूर्योदय से पूर्व केवल एक बार करें तो बेहतर है।

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-शीघ्रपतन रोगियों के लिए एक और प्रयोग काफी लाभकारी होता है- सौ ग्राम अजवाइन लेकर सफेद प्याज के रस में भिगोकर सुखा लें,सूख जाने पर पुन: पुन: प्याज के रस में भिगोकर तीन बार सुखाएं। अब अच्छी तरह सूख जाने पर इसका बारीक पाउडर बना लें,अब इस पाउडर को पांच ग्राम की मात्रा में घी और शक्कर की लगभग पांच ग्राम की मात्रा से सेवन करें। इस योग को इक्कीस दिन तक लेने पर शीघ्रपतन में लाभ मिलता है।

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-एक किलो प्याज के रस में आधा किलो उड़द की काली दाल मिलाकर पीस कर पीठी बना लें और इसे सुखा लें, सूख जाने पर पीठी को एक किलो प्याज के रस में पुन: दुबारा पीसें और पुन: दुबारा पीस कर लिख लें। अब इस पीठी को दस ग्राम की मात्रा में लेकर भैंस की दूध में पुन: पकाए और इच्छानुसार शक्कर डाल कर पी जाएं, इस योग का सेवन लगातार तीस दिन तक सुबह शाम सेवन करने से सेक्स स्तम्भन शक्ति बढ़ जाती है।

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-जिन्हें शीघ्रपतन (प्री-मेच्युर इजेकुलेशन) की समस्या है ,उन्हें ढाई ग्राम शहद एवं इतना ही प्याज का रस मिलाकर चाटना चाहिए। इस प्रयोग को शीत ऋतु में दो से तीन बार किया जाना चाहिए। ध्यान रहे कि गर्मियों में इस प्रयोग को सूर्योदय से पूर्व केवल एक बार ही किया जाए तो बेहतर है।

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-एक किलो प्याज का रस ,एक किलो शहद के साथ लेकर उसमें आधा किलो शक्कर मिलाकर किसी साफ सुथरे डिब्बे में पैक कर लें। अब इसे पंद्रह ग्राम की मात्रा में एक माह तक रोज नियमित सेवन करें। इस योग के प्रयोग से सेक्सुअल डिजायर में वृद्धि देखी जाती है।

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-प्याज को पीसकर गुड मिलाकर खाने से वीर्य (सीमन ) वृद्धि देखी जाती है।प्याज का रस एक चम्मच,आधा चम्मच शहद मिलाकर पीने से वीर्य की वृद्धि होती है। ये प्याज के कुछ ऐसे प्रयोग हैं, जिनका उपयोग सुलभ ,सस्ता एवं प्रभावी है। बस इनका प्रयोग चिकित्सकीय निर्देशन में हो तो बेहतर है।

नारियल है इन बड़ी बीमारियों की अचूक दवा, जानेंगे तो मुंह से निकलेगा OMG!



हमारे इर्दगिर्द ही अनेक पेड-पौधे और उनके फल इत्यादि उपलब्ध हैं जिनका उपयोग कर हम अपने स्वास्थय को बेहतर बना सकते हैं। अब वो दौर आ चुका है जब अंग्रेजी दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों को लोग समझने लगे हैं और अपने तमाम रोगों के बेहतर इलाज के लिए प्राकृतिक उत्पादों की तरफ रुझान दिखाने लगे हैं। हिन्दुस्तानी पारंपरिक ज्ञान सदियों पुराना ऐसा खजाना है जिसे अब तक हमने सही तरह से अपनाया नहीं हैं। आदिवासी अंचलों में आज भी लोग अपने परिवेश में पाए जाने वाले पौधों से अपने रोगों का निदान करते है। आईये आज जानते हैं कि आदिवासी और ग्रामीण लोग आज भी नारियल या श्रीफल द्वारा किस तरह अपनी शारीरिक समस्याओं का इलाज करते हैं।

नारियल के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित करने का काम कर रहे हैं और ऐसे विषय जानकार हैं जो अपने विषय को पहले विज्ञान की नजरों से देखते हैं और फिर परंपराओं के नजरिये से....
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1. नारियल का प्रयोग लगभग हर भारतीय घर में होता है। नारियल के पत्तों से लेकर तेल तक सब कुछ हमारे लिए बड़ा उपयोगी होता है। नारियल का वनस्पतिक नाम कोकस न्यूसीफेरा है। नारियल का पानी हल्का, प्यास बुझाने वाला, वीर्यवर्धक, अग्निप्रदीपक तथा मूत्र संस्थान के लिए बहुत उपयोगी होता है।

2. नारियल के पानी में दूध से ज्यादा पोषक तत्व होते हैं। माना जाता है कि किसी बीमार व्यक्ति को कच्चे नारियल का पानी पिलाया जाए तो उसमें ऊर्जा का संचार होने लगता है और नारियल रोगों से लडने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढाता है।

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3. बच्चों को कच्चा नारियल खिलाने से उनके पेट के कृमि निकल जाते हैं। आदिवासी हर्बल जानकारों की मानी जाए तो बच्चों को प्रतिदिन दिन में 3 से 4 बार कच्चा नारियल खिलाया जाए, पेट के कीडे मर कर मल द्वारा बाहर निकल आते हैं।

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4. ब्लड़ प्रेशर और दिल के मरीजों के लिए नारियल का पानी बहुत उपयोगी होता है क्योंकि इसमें इलेक्ट्रोलाइट और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है जो दिल की गतिविधियों को सुचारू रूप से कार्य करने में सहायता करती है।

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5. नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर सिर में मालिश करने से रूसी से छुटकारा मिलता है और बाल स्वस्थ और लंबे होते हैं।नारियल के पानी में खीरे का रस मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से लगाने से चेहरे के दाग मिट जाते हैं या नारियल के तेल में नींबू का रस अथवा ग्लिसरीन मिलाकर चेहरे पर लगाने से भी मुहाँसे मिट जाते हैं।

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6. दक्षिण भारत में नारियल के तेल का प्रयोग खाना बनाने के लिए किया जाता है। नारियल तेल में पकाया गया भोजन अधिक देर तक ताजा रहता है और पोषक पदार्थों के अवशोषण में मदद करता है।नाक से खून निकलने पर कच्चे नारियल का पानी नियमित रूप से पीना चाहिए। साथ ही खाली पेट नारियल के सेवन से भी रक्त का बहाव रुक जाता है।

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7. नारियल का पानी ना केवल शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है बल्कि शरीर में मौजूद बहुत से विषाणुओं (वायरस) से भी लड़ाई करता है। नियमित रूप से 50 ग्राम नारियल की गिरी को चबाने से गर्भवती महिला को स्वास्थ्य में तो लाभ होता ही है। साथ ही गर्भस्थ बालक भी गौरवर्ण का एवं हृष्ट-पुष्ट होता है। इसके अलावा नारियल पानी भी गर्भवती महिला के लिए विशेष रूप से लाभदायक माना गया है इससे गर्भवती में होने वाली उल्टी की समस्या में राहत मिलती है।

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8. रात के भोजन पश्चात नियमित रूप से आधा गिलास नारियल पानी पीने से पाचन क्रिया में फायदा होता है और अनिद्रा जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है।

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9. पातालकोट मध्यप्रदेश के हर्बल जानकार मानते हैं कि सुबह नियमित रूप से 50 ग्राम नारियल की गिरी को चबाने से गर्भवती महिला को स्वास्थ्य में तो लाभ होता ही है साथ ही गर्भस्थ बालक भी जन्म के बाद गौरवर्ण का एवं हृष्ट-पुष्ट होता है।


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10. नारियल तेल की मालिश से मस्तिष्क ठंडा रहता है। गर्मी में लगने वाले दस्तों में एक कप नारियल पानी में पिसा जीरा मिलाकर पिलाने से दस्तों में तुरंत आराम मिलता है।नारियल की गिरी में बादाम, अखरोट एवं मिश्री मिलाकर सेवन करने से स्मृति में वृद्धि होती है। नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाने से रूसी एवं खुश्की से छुटकारा मिलता है।


इतिहास की पटरी पर भारतीय रेल


भारत में पहली रेल 16 अप्रैल सन् 1853 ई.में मुंबई से थाणो के बीच (34 किमी.) चली थी।

अंग्रेजों ने अपने हितों के लिए भारत में रेल की शुरुआत की थी। उस समय रेल को भारत में लाने का उद्देश्य कच्चे माल को देश के अंदर अन्य बंदरगाहों तक पहुचना था। रेल निर्माण की दिशा में पहला प्रयास डलहौजी ने 1846 में किया था, लेकिन भारत में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 में मुंबई (तत्कालीन बम्बई) से थाणो के बीच (34 किमी.) चली थी। कार्ल मार्क्‍स के अनुसार रेलवे व्यवस्था ही भारत के विकास की अग्रदूत बनी।

रेलवे के प्रसार में अंग्रेज इंजीनियर रोबर्ट मैटलैंड की भूमिका उल्लेखनीय रही थी। भारत की पहली सवारी गाड़ी हावड़ा से हुगली के बीच 15 अगस्त 1854 को चली। यह 24 मील की यात्रा थी। मुंबई से कोलकाता के बीच सीधी रेल यात्रा की शुरुआत 1870 में हुई। दक्षिण में पहली रेल 1 जुलाई 1856 में मद्रास रेलवे कंपनी द्वारा व्यासर्पदी जीवा निलयम से वालाजाह रोड के बीच चलाई गई। भारत में रेलों के जाल बिछाने के लिए ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला रेलवे नामक कंपनी बनाई गई, 1900 में इसे सरकार ने खरीद लिया। उस समय विभिन्न रियासतों की अपनी-अपनी रेल कंपनियां थीं, लेकिन 1907 तक लगभग सभी कंपनियों को सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया।

1900 के करीब लॉर्ड कर्जन के समय भारत में रेलवे का सर्वाधिक विस्तार हुआ। रेल में शौचालय की सुविधा की शुरुआत प्रथम श्रेणी में 1891 और निचले दर्जे में 1907 में हुई। भारत में पहली विद्युत रेलगाड़ी 3 फरवरी 1925 को बम्बई वीटी से कुर्ला के बीच चली थी।

1924 से पहले तक रेल विभाग के लिए कोई अलग से बजट का प्रावधान नहीं था। इसके लिए धन का आवंटन आम बजट में से किसी अन्य मंत्रालय की तरह से ही किया जाता था, लेकिन 1921 में ईस्ट इंडियन रेलवे समिति ने इसे अलग करने की सिफारिश की, फलस्वरूप 1924 से रेलवे को वित्त मंत्रालय से अलग कर दिया गया, तभी से इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान कर दिया गया। 1924 में रेल का बजट भारत के आम बजट का लगभग 70 प्रतिशत था जो आज लगभग 14-15 प्रतिशत तक रह गया है। भारतीय रेल सोलह क्षेत्रों में बंटी हुई है। प्रत्येक क्षेत्र में कई मंडल हैं।

ये मंडल पूरे भारत में फैले हुए हैं, जो निम्नवत् हैं- उत्तर पश्चिम रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, उत्तर रेलवे, दक्षिण पश्चिम रेलवे, दक्षिण मध्य रेलवे, दक्षिण रेलवे, दक्षिणपूर्व मध्य रेलवे, दक्षिणपूर्व रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, पश्चिम रेलवे, पूर्व तटीय रेलवे, पूर्व रेलवे, पूर्वमध्य रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, मध्य रेलवे,कोंकण रेलवे।

अप्रैल की 16 तारीख को हमारे देश में पहली पैसेंजर ट्रेन के शुरू होने के 160 साल पूरे हो चुके हैं। आज जब हम भारत में हाईस्पीड वाली बुलेट ट्रेनों के चलने का ख्वाब सच होता देख रहे हैं , वहीं एक समय ऐसा भी था जब बैल ट्रेन को खींचा करते थे। यह बात सबको आश्चर्य में डालने वाली है।

करीब 153 वर्ष पहले गुजरात में नैरोगेज ट्रेन की शुरुआत हुई थी। इस ट्रेन में खींचने का काम इंजन नहीं बल्कि बैल किया करते थे। इस हल्की ट्राम-वे को एक जोड़ा बैलों से खिंचवाया जाता था। बैल बहुत ही आसानी से एक ट्राम-वे को खींचते थे, जिसमें पांच गुड्स कैरिज्स होते थे। ये बैल दो-तीन मील की दूरी एक घंटे में तय कर लेते थे।

बड़ोदा के शासक खांडेराव गायकवाड़ ने एक अंग्रेज इंजीनियर मिस्टर ए.डब्ल्यू फोर्ड से पहली डभोई-मियागांव में रेल लाइन की डिजाइन तैयार करवाई और फिर इन्हीं की देखरेख में रेल लाइन का निर्माण किया गया। इस लाइन का 2 फीट 6 इंच का गेज था, जिस पर एक हल्की ट्राम-वे चलाई जाती थी।

इसके बाद यह तय किया कि इस नैरोगेज रेल लाइन पर भाप से चलने वाले इंजन चलाए जाएं। ब्रिटेन के शहर ग्लागो में यहां के लिए तीन इंजन तैयार किए गए।

मिस्टर फोर्ड ने इनकी डिजाइन तैयार की और इनका वजन छह टन था। इस लाइन पर चलने वाली नैरोगेज ट्रेन के लिए कुछ डिब्बे भी भारत में तैयार किए गए थे।

गुजरात में डभोई-मियागांव नैरोगेज रेल लाइन अंतत: इंजन से चलने वाली ट्रेन के लिए 1862 में खोल दिया गया। इस तरह से भारत की पहली नैरोगेज लाइन बनाई गई। इसकी लंबाई 8 मील (13 किमी) लंबी थी। भारत में पहले राजघरानों की अपनी रेल हुआ करती थी।




अंटार्कटिक महाद्वीप रहस्यों का द्वीप


दक्षिणी ध्रुव प्रदेश में स्थित विशाल भू-भाग को अंटार्कटिक महाद्वीप अथवा अंटार्कटिका कहते हैं।
इसका एक नाम अंध महाद्वीप भी है। झंझवातों, हिमशिलाओं तथा ऐल्बैट्रॉस नामक पक्षियों से घिरा हुआ यह एकांत प्रदेश मानव के लिए रहस्यमय रहा है। इस द्वीप को लेकर तमाम ऐतिहासिक खोज आज भी जारी हैं।
खोजों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 17 वीं शताब्दी से ही नाविकों ने इसकी खोज के प्रय} प्रारंभ कर दिए थे। 1769 ई. से 1773 ई. तक कप्तान कुक ने इसके बारे में जानकारी हासिल की। 1819 ई. में स्मिथ शेटलैंड तथा 1833 ई. में केंप ने केंपलैंड का पता लगाया। 1841-42 ई. में रॉस ने अंर्टाकटिका द्वीप में उच्च सागरतट, उगलते ज्वालामुखी इरेवस तथा शांत माउंट टेरर का पता लगाया। इसके साथ ही गरशेल ने यहां मौजूद 100 द्वीपों की खोज की। वहीं सन् 1910 में पांच शोधक दल काम में लगे थे जिनमें कप्तान स्काट तथा अमुंडसेन दल के मुखिया थे। अमुंडसेन दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा और इस विशाल भू-भाग का नाम उसने सम्राट हक्कन सप्तम पठार रखा। 35 दिनों बाद स्काट भी वहां पहुंचा और लौटते समय मार्ग में ही उसकी मौत हो गई।
इस द्वीप की खोज यात्रा में माउसन शैकल्टन और बियर्ड ने यात्राएं कीं। 1950 ई. में ब्रिटेन, नार्वे और स्वीडन के शोधक दलों ने मिलकर शोध कार्य किया। नवंबर, 1958 में रूसी वैज्ञानिकों ने यहां पर लोहे तथा कोयले की खानों का पता लगाया, जो दुनिया के लिए एक बड़ी खोज साबित हुई।
इसका दक्षिणी ध्रुव 10,000 फुट ऊंचे पठार पर स्थित है जिसका क्षेत्रफल 50,00,000 वर्ग मील है। इसके अधिकांश भाग पर बर्फ की परत 2,000 फुट है और केवल 100 वर्ग मील को छोड़कर शेष भाग वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है। समतल शिखर वाली हिमशिलाएं यहां की विशेषताएं हैं। यहां पाई जाने वाली पमोकाबरेनिफेरस समय की प्राचीन चट्टानें हैं। यहां के समान चट्टानें भारत, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका में मिलती हैं। यहां पर ग्रेनाइट तथा नीस नामक शैलों की एक 1100 मील लंबी पर्वत श्रेणी है जिसका धरातल बलुआ पत्थर तथा चूने के पत्थर से बना है। इसकी ऊंचाई 8,000 से लेकर 15,000 फुट तक है। दक्षिणी ध्रुव महासागर में पौधों तथा छोटी वनस्पतियों की भरमार है। लगभग 15 प्रकार के पौधे इस महाद्वीप में पाए गए हैं, जिनमें से तीन मीठे पानी के पौधे हैं, शेष धरती पर होने वाले पौधे, जैसे काई आदि।अंध महाद्वीप का सबसे बड़ा दुग्धपाई जीव ह्वेल है। यहां तेरह प्रकार के सील नामक जीव भी पाए जाते हैं। उनमें से चार तो उत्तरी प्रशांत महासागर में होने वाले सीलों के ही समान हैं।
ये फर-सील हैं तथा इन्हें सागरीय सिंह अथवा सागरीय गज भी कहते हैं। बड़े आकार के किंग पेंगुइन नामक पक्षी भी यहां मिलते हैं। यहां पर विश्व में अत्यंत अप्राप्य 11 प्रकार की मछलियां होती हैं। दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेश में धरती पर रहने वाले पशु नहीं पाए जाते। धरती पर रहने वाले पशुओं अथवा पुष्पों वाले पौधों के न होने के कारण इस प्रदेश का आय स्नेत एक प्रकार से नगण्य है। परंतु पेंगुइन पक्षियों, सील, ह्वेल तथा हाल में मिली लोहे एवं कोयले की खानों से यह प्रदेश भविष्य में संपत्तिशाली हो जाएगा, इसमें संदेह नहीं। यहां की ह्वेल मछलियों के व्यापार से काफी धन अर्जित किया जाता है। वायुयानों के वर्तमान युग में यह महाद्वीप विशेष महत्व का होता जा रहा है।
ग्रीष्म में 60 दक्षिण अक्षांश से 78 दक्षिण अक्षांश तक इसका तापमान 28 डिग्री फारेनहाइट रहता है। सर्दियों में यहां का ताप 71 से 30 दक्षिण अक्षांश में 45 डिग्री रहता है। ध्रुवीय प्रदेश के ऊपर उच्च वायुभार का क्षेत्र रहता है।
यहां पर दक्षिण-पूर्व को बहने वाली वायु का प्रति चक्रवात उत्पन्न होता है। महाद्वीप के मध्य भाग का ताप 100.फारेनहाइट से भी नीचे चला जाता है। इस महाद्वीप पर अधिकतर बर्फ की वर्षा होती है। यहां पर मनुष्य नहीं रहते। अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष में संयुक्त राष्ट्र (अमरीका), रूस और ब्रिटेन तीनों की इस महाद्वीप के प्रति विशेष रुचि परिलक्षित हुई है और तीनों ने दक्षिणी ध्रुव पर अपने झंडे गाड़ दिए हैं।





गर्मियों में व्यायाम में बरतें जरूरी सावधानियां


व्यायाम जरूरी है, लेकिन गर्मियों में इसमें सावधानी भी जरूरी होती है। 
मौसम का मिजाज गर्म होने लगा है। सुबह से ही आसमान में तेज धूप का पहरा लग जाता है और देर शाम तक इसका असर बरकरार रहता है, जो कि बाहर निकलने के आपके रूटीन को प्रभावित करता है। इसका प्रभाव अधिकतर लोगों के व्यायाम पर भी पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम चाहे जो भी हो, फिट रहने के लिए व्यायाम जरूरी है लेकिन सावधानी से।
जल्दी उठें
सुबह टहलना बेहतरीन व्यायाम होता है, जो न सिर्फ आपके मसल्स और हड्डियों को बल्कि त्वचा और मन को भी तरोताजा करने में मददगार है। इससे तनाव भी कम होता है। ऐसे में अगर आपको सुबह खुली हवा में टहलने की आदत है तो इसे किसी भी हाल में बंद न करें। हां, धूप और गर्मी से बचने के लिए अगर आप सुबह 7 बजे से पहले टहलने के लिए निकलें।
धैर्य जरूरी
अगर अपना वजन कम करने के लिए व्यायाम करना शुरू कर रहे हैं थोड़ा धैर्य से काम लेना होगा। इस मौसम में पसीना काफी ज्यादा आता है, ऐसे में कम समय में ज्यादा वनज घटाने के लिए एक साथ बहुत ज्यादा व्यायाम न करें। एक साथ बहुत सारा पसीना बाहर आने से शरीर में सोडियम और पानी की कमी हो सकती है जिसके चलते डीहाइड्रेशन हो सकता है। ऐसे में एक साथ बहुत ज्यादा वजन घटाने का लक्ष्य न रखें। धीरे-धीरे व्यायाम के समय को बढ़ाएं। गर्मियों में व्यायाम के दौरान बीच-बीच में जूस, ग्लूकोज या पानी पीते रहें। इससे शरीर को जरूरी एनर्जी मिलती रहेगी और आप थका हुआ महसूस नहीं करेंगे।
बनाएं फूड डायरी
गर्मियों में खुद को फिट रखने के लिए व्यायाम के साथ अपने खान पान की आदतों में भी बदलाव लाएं। इसके बिना आपके लिए फिटनेस के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा, क्योंकि गर्मी में उमस के चलते बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया तेजी से बपनपते हैं, ऐसे में खान-पान की मामूली लापरवाही आपको बीमार कर सकती है।
लें ट्रेनर की सलाह
कई लोगों का यह मानना होता है कि जिनता ज्यादा पसीना आएगा, उतनी ज्यादा कैलोरी बर्न होगी। ऐसे में वे अपनी मर्जी से गर्मियों के दिनों में जहां 20 मिनट की जरूरत होती है वहां 40 मिनट व्यायाम करते हैं, इससे उनमें दो-चार दिन बाद ही थकान और बीमार होने का एहसास होने लगा जाता है। ऐसी दिक्कतों से बचने के लिए जानकार फिटनेस ट्रेनर की सलाह पर ही व्यायाम रूटीन बनाएं।
ज्यादा चलें
हमारा शरीर 10 हजार कदम रोजाना चलने के हिसाब से डिजाइन किया गया है, लेकिन मौजूदा समय में हम ऐसा करने के बजाय डेस्क, कार या टीवी के सामने बैठकर अधिक से अधिक समय गुजारते हैं। ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की रिसर्च के मुताबिक, रोजाना 30 से 60 मिनट वॉकिंग आपको कार्डियोवस्कुलर बीमारियों से बचाती है। तेज कदमों से एक घंटा टहलने से 400 कैलोरी बर्न होता है। दौडऩा बेस्ट एरोबिक व्यायाम है।
खूब हंसें
हंसने से आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ब्लड प्रेषर कम होता है, तनाव बढ़ाने वाले हार्मोंस कम हैं और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। कई शोधों में यह पाया गया कि एक मिनट खुलकर हंसने से 2.31 कैलोरी बर्न होती है। इसलिए अब से हंसने का कोई भी मौका न छोड़ें और हमेशा फिट रहें।






कई बीमारियों में अचूक रंग चिकित्सा


आप ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं, आत्मविश्वास में कमी पाते हैं, सोच स्पष्ट नहीं हो पाती तो रंग चिकित्सा आपकी सहायता कर सकती है।
रंगों का हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। रंगों की इस ताकत ने उपचार के लिए भी उपयोगी बना दिया। कई सारी बीमारियां हैं, जिनके उपचार के लिए रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इन खूबियों के कारण इसे कलर थेरेपी यानी रंग चिकित्सा का नाम दिया गया है।
बढ़ रही है लोकप्रियता
भारत में यह चिकित्सा अभी लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाई है, लेकिन यूट्यूब पर इससे संबंधित लगभग डेढ़ लाख वीडियो मौजूद हैं। इनमें काफी भारतीयों से संबंधित भी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अब भारत में भी लोकप्रिय हो रहा है।
कैसे आया प्रभाव में
रंगों और इंसानी व्यवहार को देखते हुए तमाम लोगों ने इसपर शोध किए। इनमें से एक नाम जर्मनी के नामी लेखक, कलाकार व दार्शनिक गोथ का भी है। उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि रंगों का हमारी भावनाओं पर सीधा असर पड़ता है। कुछ ऐसे ही शोधों से यह विचार आया कि क्यूं न रंगों का इस्तेमाल इंसान के मूड से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने में किया जाए।
हर रंग कुछ कहता है
हमारी आंखें रंग को देखती हैं, वो दिमाग को मैसेज भेजती हैं और हमारा दिमाग ऐसे रसायन पैदा करता है, जो हमें नाक-मुंह सिकोडऩे या स्माइल करने का सिग्नल देते हैं। किसी कपड़े की दुकान पर दो युवतियों को कपड़े पसंद करते हुए देखकर आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं।
कैसे काम करती है यह थैरेपी 
इसके दो तरीके हैं। इसमें सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लायी जाती है रोशनी। सूरज की रोशनी को अपनी जरूरत के हिसाब के रंग में से गुजारते हुए शरीर के किसी खास हिस्से पर फेंका जाता है। लैंप जैसी मशीन के जरिए भी रोशनी फेंकी जाती है। इसके अलावा शरीर पर सीधे-सीधे पेंट भी किया जाता है। ये रंग हर्बल होते हैं। अलग-अलग परेशानियों के लिए अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।
एक बार आजमाएं
अगर कभी सर्दी व कफ हो जाए तो लाल रंग की रोशनी को छाती के ऊपर पांच से सात मिनट तक डाले रखें। आपको जरूर लाभ होगा।
सावधानी भी है जरूरी
लाल: 5 से 10 मिनट, सिर, चेहरे पर कभी नहीं।
संतरी: 5 से 10 मिनट
पीला: 15 मिनट
हरा: 10 से 25 मिनट
नीला: 10 मिनट तक, सिर के आसपास ज्यादा देर तक नहीं।
रंग और उसका असर
लाल: हिम्मत, जोश और ऊर्जा
लाल रंग से हीमोग्लोबीन बढ़ता है, जो शरीर में ऊर्जा पैदा करता है। आयरन की कमी और खून से जुड़ी दिक्कतों में इस रंग का इस्तेमाल बड़े काम का साबित होता है।
संतरी: खुशी, आत्मविश्वास और संपूर्णता
ये रंग आपको दिनभर खुशमिजाज रख सकता है। ये रंग जीवन के लिए भूख पैदा करता है। ये हमें हमारी भावनाओं से जोड़ता है और हमें स्वतंत्र व सामाजिक बनाता है।
पीला: समझदारी और स्पष्ट सोच
इस रंग का सबसे ज्यादा असर हमारे दिमाग और बुद्धि पर पड़ता है। कहते हैं कि आंतों और पेट से जुड़ी गड़बडिय़ों को दुरुस्त करने में भी ये रंग काम आता है।
हरा: प्यार, आत्म नियंत्रण और संतुलन
हरे रंग में घावों को भरने की शक्ति होती है। इंद्रधनुष के रंगों के बीच में हरा पड़ता है। इस रंग में आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों तरह के प्रभाव डालने की क्षमता होती है। ये मसल्स को आराम देता है।
इंडिगो: दिमागी संतुलन, समझदारी
इस रंग को पवित्रता की किरण माना जाता है। यह रक्त की सफाई और दिमागी समस्याओं के निदान में बड़ा कारगर है। यह भी कहा जाता है कि इस रंग का संबंध हमारी आत्मा से होता है। आंखों और कानों से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
जामुनी: सुंदरता और रचनात्मकता
यह रंग सिर्फ आत्मिक स्तर पर काम करता है। लियोनाडरे द विंची ने एक बार कहा था कि आप जामुनी रोशनी के बीच योग करें तो आपकी योग करने की शक्ति दस गुना तक बढ़ सकती है। यह रंग हमारे विचारों को शुद्ध करता है। इंसान को भीतर से मजबूत करने के साथ-साथ कलात्मक सोच को बढ़ावा देता है।
सफेद: शांति
सफेद अपने आप में एक पूर्ण रंग है। अगर सभी रंगों को एक चक्र पर बनाकर उसे तेजी से घुमाएं तो आपको सिर्फ सफेद रंग ही नजर आएगा। यह रंग शांति देता है और घावों को भरने में मदद देता है।
इस थेरेपी का इस्तेमाल
फिलहाल इस थेरेपी का इस्तेमाल ऐसे क्लीनिक में किया जा रहा है जो योग, आयुर्वेद व चेचुरोपैथी के जरिए रोगों के दिना में जुटे हैं। दिल्ली-एनसीआर में ऐसे सेंटर हैं, जो कलर थैरेपी की सुविधा मुहैया कराते हैं। इसकी फीस एक सिटिंग की हजार से 1200 रुपये के बीच होती है। फिलहाल रंग चिकित्सा का इस्तेमाल तनाव, आत्मविश्वास की कमी, उदासी और अशांत मन को दुरुस्त करने के लिए किया जा रहा है।
कुछ प्रमुख केन्द्र
- एन 2 इमेजिंग, ए-5, ग्रीन पार्क
- चक्र अ क्यूपंक्चर वेलनेस सेंटर, वशिष्ट पार्क, पंखा रोग, सागरपुर
- अक्यूप्रेशर हेल्थ केयर होम सविर्सेस, बलजीत विहार, नांगलोई
- महर्षि आयुर्वेद हॉस्पिटल, वेस्ट शालीमार बाग
- आयुष नेचर केयर, मानसरोवर पार्क, शाहदरा
क्रोमो थेरेपी टॉर्च भी है मौजूद
आप खुद भी कलर थेरेपी का लाभ प्राप्त कर सकता है। इसके लिए बाजार में उपकरण भी मिलने लगे हैं। ऐसा ही एक उपकरण है कलर टॉर्च। यह टॉर्च अलग-अलग रंगों की डिस्क के साथ आती है। जिस भी रंग की जरूरत हो, लगाएं और इस्तेमाल करें। वैसे कलर थेरेपी के उपकरण के साथ उन्हें इस्तेमाल करने के लिए छोटी सी किताब भी दी जाती है।



बॉडी पॉलिशिंग से पाएं निखरी व कोमल त्वचा


गर्मी के दिनों में पूरे शरीर की रंगत एक जैसी नहीं रहती। त्वचा पर कहीं ब्लैक पैचेज बन जाते हैं तो कहीं स्किन टैन हो जाती है। बहुत देर तक एसी में बैठने से भी त्वचा नमी खोने लगती है, जिस कारण स्किन ड्राई हो जाती है। ऐसे में बॉडी पॉलिशिंग एक बेहद नायाब तरीका है साफ-सुथरी, निखरी और कोमल त्वचा पाने का। क्या है बॉडी पॉलिशिंग में खास, आइये जानते हैं-
प्रक्रिया
बॉडी पॉलिशिंग में पूरे शरीर की पॉलिशिंग की जाती है। इसके लिए खास तरह के प्रोडक्ट इस्तेमाल किए जाते हैं, जैसे-बॉडी क्रीम, बॉडी ऑयल, बॉडी साल्ट, बाम, बॉडी पैक, एक्सफॉलिएशन क्रीम वगैरह। इसमें सबसे पहले बॉडी पर स्क्रब किया जाता है। स्क्रब को पूरे शरीर पर लगाकर हल्के गीले हाथों से हल्के-हल्के रगड़ा जाता है और 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है। स्क्रबिंग की मदद से बॉडी की डेड स्किन निकल जाती है और साथ ही साथ टैनिंग भी रिमूव होती है। नैचुरल तरीकों से बनाया गया ये स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है। इसके बाद बॉडी को वॉश करके उस पर स्किन ग्लो पैक लगाते हैं और सूख जाने के बाद इसे वॉश करके हटाया जाता है, इसके बाद बॉडी शाइनर लगाकर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज की जाती है।
सावधानियां
यूं तो यह एक प्राकृतिक उपचार है, जिसका कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। बस इतना जरूर ध्यान रखें कि बॉडी पॉलिशिंग के कुछ दिनों तक केमिकल युक्त किसी भी चीज का बॉडी पर इस्तेमाल करने से बचें। इसके साथ ही धूप में निकलते वक्त सन्स्क्रीन लोशन जरूर लगाएं।
फायदे
बॉडी पॉलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं, साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है, जिससे त्वचा में कोमलता व निखार आता है।
मसाज से हम स्ट्रेसफ्री फील करते हैं और बॉडी रिलैक्स होती है।
पूरी बॉडी की रंगत एक जैसी हो जाती है।
शरीर साफ और चमकने लगता है।
यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक उपचार है, इसलिए शरीर पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता।


घर से झलकेगी आपकी परछाई


किराये का घर है, कहीं यह सोच कर तो आप अपने घर का ध्यान नहीं रख रहीं? यह सच है कि मकान-मालिक द्वारा तय कुछ नियम-कायदों का आपको ध्यान रखना होगा, बावजूद इसके आप अपने घर को सपनों का आशियाना बना सकती हैं।
सिर्फ एक दीवार सजाएं
किसी भी सलाह को मानने से पहले बेहतर होगा कि आप अपने मकान मालिक से इस बात की इजाजत ले लें कि आप घर की दीवारों को पेंट कर सकती हैं या नहीं। कई मकान मालिक घर की दीवारों को रंगने की इजाजत इस शर्त पर देते हैं कि घर छोडऩे से पहले आप दीवारों को सफेद रंग में रंगवा देंगी। अगर घर की दीवारों का रंग आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं है, तो पूरे घर की दीवारों का रंग बदलने की जगह सिर्फ एक दीवार को अपने पसंदीदा रंग से रंग दें। इस एक दीवार मात्र से पूरे घर की रंगत बदल जाएगी।
वॉलपेपर आजमाएं
अगर मकान मालिक दीवारों को अपनी पसंद के रंग से रंगने की इजाजत नहीं दे रहा तो प्लाईवुड के पैनल पर मनपसंद वॉलपेपर चिपका कर उसे घर की दीवारों के पास रख सकती हैं। इससे न सिर्फ घर की खूबसूरती बढ़ेगी, बल्कि यह विकल्प अपेक्षाकृत सस्ता भी पड़ेगा। वॉलपेपर को इस तरीके से लगाने का एक और फायदा यह भी है कि समय-समय पर आप वॉलपेपर को आसानी से बदल भी सकती हैं।
बेडशीट हो सबसे खूबसूरत
आपके बेडरूम में सबसे खास चीज है आपका बेड। हमेशा बेडशीट व तकिया कवर आकर्षक रंग और डिजाइन वाले चुनें। सही बेडशीट और कुशन कवर आपके बेडरूम की सूरत को बदल देंगे।
स्टोरेज की व्यवस्था हो खास
हर साल आपको घर बदलना होगा और जरूरी नहीं कि हर घर में सामान और कपड़ों को रखने के लिए स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था हो। बेहतर होगा स्टोरेज के लिए मॉडय़ूलर अलमारी खरीदें। इसे लगाना व एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान है। एक ऐसा रैक भी खरीद सकती हैं, जिसमें शीशा लगा हो। इसमें अपनी निजी चीजें रखें।
रोशनी की व्यवस्था हो खास
लालटेन, लैंप व सीलिंग लाइट की मदद से आप अपने घर की रंगत को आसानी से नियंत्रित कर सकती हैं। अपने घर के कोनों में, वॉर्डरोब वाले हिस्से में या फिर लिविंग रूम में रोशनी का सही तरीके से उपयोग करें।
घर से झलके आपकी झलक
आपकी व आपके परिवार के सदस्यों की फोटो से बेहतर कोई आर्ट पीस नहीं हो सकता। आप किसी भी साधारण दीवार पर तस्वीरें चिपकाकर, फोटो फ्रेम लगाकर या सिर्फ तस्वीरों का कोलाज लगाकर उसे आकर्षक लुक दे सकती हैं। इससे आपकी यादें हमेशा ताजा रहेंगी।






त्वचा रहेगी हर उम्र में जवां


स्वस्थ और दमकती त्वचा हर उम्र में सभी की चाहत होती है। आपकी त्वचा का रंग चाहे जैसा हो या आप किसी भी उम्र की हों, कुछ सामान्य समस्या जैसे पिग्मेन्टेशन, गहरे धब्बे, एक्ने और सनबर्न आदि आपको अपना शिकार बना सकती हैं।
महिलाएं अमूमन तनाव में रहती हैं, जिसका असर असमय उनकी त्वचा पर दिखने लगता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि साहू के मुताबिक अगर महिलाएं तनाव से दूरी बनाकर चलने का गुर सीख लें तो वे अपनी उम्र की किसी भी दहलीज पर जवां ही रहेगी। दूसरी ओर पीरियड्स के दौरान त्वचा से अत्यधिक तेल का स्रव होता है और त्वचा तैलीय हो जाती है। कभी-कभी कुछ महिलाओं की त्वचा बहुत ढीली भी हो जाती है। जरूरी है कि आप अपने भोजन के साथ विटामिन सी और विटामिन ए की गोलियां भी लें, ताकि आपकी त्वचा को अतिरिक्त पोषण मिले। ब्यूटी एक्सपर्ट भारती तनेजा के मुताबिक कुछ बातों को ध्यान में रखकर त्वचा हर उम्र में जवां रह सकती है:
बीस से कम उम्र में
त्वचा में तेल की मात्रा को संतुलित करने के लिए प्रोटीनयुक्त चीजें जैसे दूध, दही, पनीर, दालें, अंकुरित अनाज आदि का सेवन करें और नमी को बरकरार रखने के लिए दिन में 10-12 गिलास पानी जरूर पिएं। धूप में निकलते वक्त सन्स्क्रीन लोशन का प्रयोग अवश्य करें।
बीस वर्ष की उम्र में
हमेशा सोने से पहले क्लींजिंग मिल्क से चेहरा साफ करें और फिर अच्छी क्वॉलिटी का टोनर लगाएं। इसके बाद मॉइस्चराइजर से चेहरे व गर्दन की 2-3 मिनट तक मसाज जरूर करें। किसी अच्छे कॉस्मेटिक क्लीनिक में जाकर आप अपनी त्वचा की प्रकृति के अनुरूप फेशियल भी करवा सकती हैं।
तीस की उम्र में
हर तरह के तनाव को खुद से दूर रखें। बेहतर होगा कि इस समय तक आप एंटी-एजिंग क्रीम का इस्तेमाल शुरू कर दें। आज की इस बदलती जीवनशैली में यह जरूरी हो गया है कि बढ़ती उम्र के लक्षणों पर समय रहते ही लगाम लगा दिया जाए। यदि आपको इसकी जरूरत इस उम्र से पहले ही महसूस होती है तो आप किसी एक्सपर्ट से सलाह लेकर इसका इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके अलावा चेहरे पर नियमित रूप से विटामिन ई युक्त क्रीम की मसाज भी काफी लाभदायक रहती है।
जब हो जाएं चालीस की
यह उम्र की एक ऐसी दहलीज है, जहां महिलाएं प्राय: बच्चों को जन्म देने की प्रक्रिया से मुक्त हो जाती हैं। अत: इस दौरान शरीर के हार्मोन स्थिर होते हैं। आप चाहें तो किसी ब्यूटी क्लीनिक में जाकर चेहरे के काले निशान हटवा सकती हैं। इसके अलावा जरूरी है कि 35 की उम्र के बाद एएचए फेशियल करवाएं और कोलाजन मास्क भी लगवाएं, इस मास्क से त्वचा के भीतर कोलाजन बनना शुरू हो जाता है।
पचास की उम्र में फिर से पाएं चमक
मेनोपॉज के बाद त्वचा पर इसका प्रभाव दिखने लगता है। इस दौरान गर्भनिरोधक दवा के पूर्व प्रयोग के असर से भी त्वचा बेजान, अधिक संवेदनशील और ढीली हो जाती है। त्वचा की चमक गायब होने लगती है। इसलिए जरूरी है कि आप ऐसे प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें, जो एंटीऑक्सिडेंट हो और मिलेनिन को कम करता हो। मुलेठी का प्रयोग भी करें, यह भी इस उम्र में त्वचा के लिए लाभदायक है।






ब्लड शुगर रहेगा नियंत्रित


यह आम धारणा है कि डायबिटीज के मरीजों को व्यायाम करते वक्त ज्यादा वजन नहीं उठाना चाहिए, पर एक नए शोध में इस बात को गलत ठहराया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक नियमित व्यायाम और बढ़ती उम्र के साथ शरीर में सफेद मांसपेशियों में वृद्धि होती है। ये सफेद मांसपेशियां खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करती हैं। यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन के लाइफ साइंस इंस्टीटय़ूट द्वारा किया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक व्यायाम के दौरान जब हम भारी वजन उठाते हैं, उस वक्त हमारी मांसपेशियां सिकुड़ती हैं और इस प्रक्रिया में हमारी मांसपेशियां ग्लाइकोजेन का इस्तेमाल करती हैं, जिससे खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।




डांस कीजिए, बुढ़ापा दूर भगाइए


माना जा रहा है कि 2030 तक दुनिया के हर आठवें व्यक्ति की उम्र 65 साल या इससे भी ज्यादा होगी। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उम्र बढऩे के साथ ही साथ लोग स्वस्थ कैसे रह सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक कला की ओर रुझान बढऩे से बड़ी उम्र में होने वाली बीमारियों का इलाज संभव है। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसे लोग जो नियमित रूप से डांस करते हैं, उनकी जिंदगी पहले से बेहतर हो जाती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक डांस में हर स्टेप की टाइमिंग बेहद उतार-चढ़ाव वाली होती है और इस तरह की गतिविधियों से ही इस उम्र में सक्रियता और ऊर्जा बनी रहती है।




क्या भूख पर लग सकती है लगाम?


क्या विज्ञान के जरिए भूख पर नियत्रंण पाया जा सकता है? मुमकिन है कि इस सवाल का जवाब हां में हो जाए। दरअसल, वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में कोशिकाओं के एक ऐसे समूह की पहचान की है, जिसमें भूख को नियंत्रित करने की ताकत है। इन्हीं कोशिकाओं की वजह से खाने की आदत बिगड़ जाती है, जिससे मोटापा जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने अपने शोध में यह निष्कर्ष निकाला है कि भूख जन्म के समय से ही तय नहीं होती है। पहले माना जाता था कि भूख को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाएं गर्भ में भ्रूण के विकास के दौरान ही बनती हैं और इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। लेकिन बड़े चूहों और गिलहरी पर किए गए शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भूख पर भी लगाम लगाई जा सकती है।




आलसी हैं तो इसमें आपका दोष नहीं


अगर आप आलसी हैं तो इसमें आपकी गलती नहीं है। एक नए शोध के मुताबिक लोग अनुवांशिक रूप से आलसी होते हैं। दरअसल, हमारी जीन्स में कुछ ऐसे खास गुण होते हैं, जिसकी वजह से हम ज्यादा सक्रिय या आलसी होते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी के शोधकर्ताओं ने यह शोध खास तरह के चूहों पर किया। शोध में ऐसे चूहों को शामिल किया गया, जो या तो बहुत ज्यादा आलसी थे या बहुत सक्रिय। इन चूहों पर किए गए अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि मनुष्यों में भी अनुवांशिकी इस बात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि हम व्यायाम करने या शारीरिक रूप से सक्रिय होने के लिए कितने प्रेरित होते हैं।