Tuesday, March 26, 2013

उत्तर पूर्व की अनछुई खूबसूरती



दार्जिलिंग परिक्षेत्र, उत्तर पूर्वी भारत और कश्मीर के कई क्षेत्र भी टूरिस्टों के लिए अच्छे आकर्षण हो सकते हैं।
दार्जिलिंग
पश्चिम बंगाल का छोटा सा शहर, जो टूरिस्टों को खास पसंद आता है। चाय बागानों के लिए मशहूर।


कैसे जाएं: न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन से यहां पहुंचा जा सकता है। न्यू जलपाईगुड़ी दिल्ली सहित देश के लगभग सभी प्रमुख स्टेशनों से जुड़ा है। हवाई जहाज से जाना है तो न्यू जलपाईगुड़ी स्थित बागडोगरा हवाई अड्डा पहुंचें। यहां से 88 किलोमीटर दूर स्थित है दार्जिलिंग। स्टेशन या हवाई अड्डे के सामने से ही शेयरिंग टैक्सी मिल जाएंगी।


क्या है खास: न्यू जलपाईगुड़ी से सटे सिलीगुड़ी से हिमालय पर्वत की गगनचुंबी सीरीज शुरू हो जाती हैं। यहां से दार्जिलिंग का रास्ता बेहद खूबसूरत है। दार्जिलिंग में टाइगर व्यू हिल से सूर्यास्त देखिए। हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट में पर्वतारोहण से जुड़ी चीजों का संग्रह है। पास ही है मिरिक, जहां संतरे, चाय और दूसरे पौधों के बीच घिरी शुमेंदु लेक के पास एक रात बिता सकते हैं।
गंगटोक
हिमालय पर्वत सीरीज में स्थित गंगटोक सिक्किम की राजधानी है।
कैसे पहुंचें: दार्जिलिंग या मिरिक से गंगटोक जा सकते हैं। न्यू जलपाईगुड़ी से सीधे तीस्ता नदी के किनारे-किनारे 120 किलोमीटर की दूरी तय करके भी यहां पहुंचा जा सकता है।
क्या है खास: यहां गांधी मार्केट से स्थानीय चीजें खरीदी जा सकती हैं, खासतौर से ग्रीन टी। गंगटोक में शीशे की छोटी-छोटी खूबसूरत डिजाइनदार शीशियों में रम मिलती है। पीने के लिए नहीं, दोस्तों को गिफ्ट करने के लिए। देर शाम पहाड़ी मार्गों पर जाने से परहेज करें।
संदकफू
एडवेंचर का शौक है तो दार्जिलिंग परिक्षेत्र में ढेरों ऐसी जगहें हैं, जहां टेकिंग कर सकते हैं। ऐसा ही एक रूट है, जिसे पर्वतारोही चंद्रशेखर पांडे ने तलाशा है।
कैसे जाएं: दार्जिलिंग या मिरिक से आप टैक्सी द्वारा मानेभंजन पहुंचिए। यहां से ऊपर की तरफ 42 किमी की दूरी पर संदकफू चोटी है।
क्या है खास: अप्रैल से नवंबर तक यहां जाया जा सकता है। 11,000 फुट पर कालपोखरी एक ऐसी जगह है, जहां एक छोटी सी पोखरी (तालाब) है, जिसका पानी हर समय सर्दी पड़ने के बावजूद जमता नहीं है। यहां खूब ठंड पड़ती है, इसलिए मोटे गर्म कपड़े जरूर हों।
गुवाहाटी
असम की राजधानी गुवाहाटी प्राचीन शहर है। पहले कभी इसे प्राग ज्योतिषपुर भी कहा जाता था।
कैसे जाएं: गुवाहाटी दिल्ली सहित देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से रेल और हवाई मार्ग से जुड़ा है।
क्या है खास: ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे टहलना, लहरों की अठखेलियां देखना, उनसे बातें करना, सब कुछ अद्भुत है। स्टीमर से ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित उमा नंदा टेंपल भी जा सकते हैं। 1000 फुट की ऊंचाई पर कामाख्या मंदिर है।
शिलांग
गुवाहाटी से 103 किलोमीटर आगे है। शिलांग मेघालय की राजधानी है।
कैसे जाएं: यहां जाने के लिए ट्रेन से पहले गुवाहाटी पहुंचें। फिर आगे का रास्ता बस या टैक्सी से।
क्या है खास: यह रास्ता बेहद खूबसूरत है। एक तरफ पहाड़, एक तरफ बांस, सुपाड़ी, शरीफे और न जाने किन-किन चीजों के लहराते-झूमते पेड़। शिलांग का जू, चर्च, नेहरू पार्क देखने लायक हैं।
चेरापूंजी
मेघालय की राजधानी शिलांग से 54 किलोमीटर दूर है। चेरापूंजी वह जगह है, जिसे पहले कभी संसार के सबसे ज्यादा बारिश वाला क्षेत्र माना जाता था।
कैसे जाएं: गुवाहाटी से बस या टैक्सी से शिलांग आएं। फिर शिलांग से चेरापूंजी के लिए टैक्सी मिलती हैं। जलेबीदार पहाड़ी रास्ता है।
क्या है खास: आज भी यहां लगभग हर समय बारिश होती है, पर सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह का श्रेय इससे करीब 12 किलोमीटर आगे मोशेरम को जाता है। यह पूरी जगह गीली-गीली सी ही लगेगी।
श्रीनगर और गुलमर्ग
श्रीनगर कश्मीर की राजधानी है और इससे आगे गुलमर्ग है।
कैसे जाएं: श्रीनगर जाने के लिए दिल्ली से सीधी उड़ानें हैं। ट्रेन से जम्मू तक जा सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। श्रीनगर में टैक्सी या राज्य परिवहन निगम की बसों से गुलमर्ग जाया जा सकता है।
क्या है खास: धरती पर जन्नत के नाम से मशहूर कश्मीर खूबसूरती का दूसरा नाम है। ठंडा मौसम, हरे-भरे चिनार, चीड़ के पेड़ और चारों ओर पसरी खामोशी आपका मन मोह लेगी। श्रीनगर का मुख्य आकर्षण 20 किमी में फैली डल झील है। यहां पानी में तैरते शिकारे यानी चलते-फिरते होटल हैं। चारमीनार, चश्मे शाही, हजरत बल और निशात बाग हैं।
दीव
गुजरात में पोरबंदर से आगे समुद्र के किनारे पर है दीव।
कैसे जाएं: दीव पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल है। अहमदाबाद से भी वाया राजकोट-सोमनाथ, पोरबंदर होते हुए सड़क मार्ग से दीव पहुंचा जा सकता है।
क्या है खास: करीब 48 किलोमीटर का यह टापू बेहद खूबसूरत है। यहां देखने के लिए सी म्यूजियम, मंदिर, सेंट पॉल चर्च और 1550 में बना किला है। इस किले की छत से दूर-दूर तक अरब सागर के उछलते पानी का विहंगम नजारा दिखता है। यहां के सी बीच बेहद खूबसूरत हैं। खरीदने के लिए समुद्र से जुड़ी चीजें मिल जाएंगी।

गर्मी की छुट्टियों में बन जाइए घूम घुमंतू



मई, जून अभी दूर हैं लेकिन अगर गर्मी की छुट्टियों में घूमने जाने का मन बना रहे हैं तो इसके लिए प्लैनिंग का सही वक्त यही है।
1. मोटर बाइकिंग
लद्दाख
लद्दाख शायद हर बाइकर का सपना होता है। दर्रों के देश यानी लद्दाख पहुंचने के लिए वाकई कई दुर्गम दर्रे पार करने पड़ते हैं, लेकिन जो नजारे इस सफर पर मिलते हैं, शायद ही दुनिया में कहीं और हों।
कब और कैसे जाएं: इस सफर पर मई से अक्टूबर के बीच निकला जा सकता है। अगस्त-सितंबर में बारिश की वजह से जाने से बचें। दिल्ली से मनाली होते हुए लेह की दूरी 1,050 किमी. और श्रीनगर होते हुए 1,250 किमी. है।
क्या है खास: दुनिया का सबसे ऊंचा ठंडा रेगिस्तान और उनके बीच नीले पानी की अनंत विस्तार लिए झीलें, साल भर बर्फ से ढकी रहने वाली दुनिया के सबसे ऊंची सड़कें, रंग-बिरंगे प्रेयर फ्लैग्स से घिरे बौद्ध गोंपा और छोरतेन, मुश्किल हालात में भी सादगी और विनम्रता का संदेश देती संस्कृति।
साच पास
कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें लद्दाख के बर्फ से ढके दर्रे उतना रोमांचित नहीं कर पाते। ऐसे लोगों के लिए है साच पास। हिमाचल प्रदेश के चंबा और पांगी इलाकों को जोड़ने वाला यह दर्रा 4,420 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पहुंचने के चक्कर में लोगों का दम फूलने लगता है और भारी-भरकम बाइक भी जवाब दे जाती हैं।
कब और कैसे जाएं: जुलाई से सिर्फ 3 महीनों के लिए ही यह दर्रा आने-जाने लायक हो जाता है। इस बीच भी बारिश के दिनों में पांगी की तरफ लैंड स्लाइड्स से रास्ता खतरनाक बना रहता है। दिल्ली से पठानकोट और चंबा होते हुए साच पास की दूरी 730 किमी है। वैसे, मनाली-उदयपुर और जम्मू-किश्तवाड़ होते हुए भी साच पास जा सकते हैं।
क्या देखें: रास्ते में पड़ने वाली चुराह और भांदल की खूबसूरत घाटियां, बर्फ की कई मंजिला ऊंची दीवारों से गुजरता साच पास का दुर्गम रास्ता और अगर साच पास पार कर गए, तो दुनिया से कटे जनजातीय इलाके पांगी को देखने का मौका।
2. रूरल टूरिजम
सैलानियों की भीड़-भाड़ और ट्रैफिक की चिल्लपौं से भरे टूरिस्ट स्पॉट्स से मन उकता चुका हो, तो चलिए ऐसे ग्रामीण भारत की सैर पर, जहां जीवन अब भी प्रकृति के करीब है।
गुरेज और तुलैल घाटी
कश्मीर के उत्तर में बसे हैं गुरेज (2600 मीटर ऊंचाई) और तुलैल (2900 मीटर ऊंचाई)। श्रीनगर से गुरेज की दूरी 130 किमी है। कश्मीर में होते हुए भी यहां की संस्कृति कश्मीर से नहीं, बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके गिलगित और बाल्टिस्तान से मिलती है। तुलैल के लगभग सभी गांवों में मकान लकड़ी के हैं और यहां रहने वाले दर्द कबीले के लोग खेती और पशुओं के सहारे जीवन चलाते हैं।
कब और कैसे जाएं: जून से अक्टूबर तक जा सकते हैं। बारिश के दिनों में राजदान पास के आसपास लैंड स्लाइड्स की वजह से परेशानी हो सकती है। दिल्ली से श्रीनगर और बांडीपोरा होते हुए गुरेज पहुंच सकते हैं।
क्या है खास: गर्मियों में भी बर्फ से ढके पहाड़ों को देखा जा सकता है। चटख नीले आसमान के नीचे हरी दूब के मैदान, उनके बीच से गुजरती किशनगंगा नदी के किनारे पल-पल रंग बदलती हब्बा खातून पहाड़ी अलौकिक नजारा पेश करती है।
खिर्सू
दो-तीन दिन का ही समय हो और दिल्ली से ज्यादा दूर न जाते हुए हिमालय के ग्रामीण जीवन की सादगी को अनुभव करना हो, तो खिर्सू (1800 मीटर ऊंचाई) सही विकल्प है। उत्तराखंड के जिला पौड़ी में बसा यह छोटा सा गांव गढ़वाली संस्कृति की झलक दिखाता है। गांव होने के बावजूद इसकी अपनी वेबसाइट है, जहां तमाम जानकारी उपलब्ध है।
कब जाएं: साल भर कभी भी खिर्सू जा सकते हैं। बारिश के दिनों में भी यहां जाना मुमकिन है। दिल्ली से बिजनौर, कोटद्वार और लैंसडाउन होते हुए इसकी दूरी लगभग 370 किमी है।
क्या है खास: जंगलों से घिरा एक ऊंघता सा गांव है खिर्सू। हिमालय की बर्फ से ढकी श्रंृखला को यहां से दिन भर निहारते रहें या जंगलों में आसपास किसी भी गांव तक छोटा-मोटा ट्रेक कर लें। प्रकृति के ज्यादा से ज्यादा करीब रहना हो, तो यहां खुले आसमान के नीचे टेंटों या बैंबू हट्स में रहने का विकल्प खुला है।
3. ट्रेकिंग
पहाड़ों को खुद ही खंगालने का शौक हो और सामान पीठ पर लादकर चलने का दमखम हो, तो यकीन मानिए स्वर्ग से सुंदर नजारे देखने से आपको कोई नहीं रोक सकता। असली प्राकृतिक सुंदरता तो सड़क से बहुत दूर कहीं वीराने में छिपी होती है, जिसे ट्रेकर्स बखूबी समझते हैं।
हर की दून
हफ्ते भर का समय निकाल सकें, तो गढ़वाल के एक छोर पर स्थित हर की दून (3,560 मीटर) ट्रेकिंग अभियान पर निकल जाएं। स्वर्गारोहिणी चोटी की तलहटी में स्थित हर की दून अब एक जाना-माना ट्रेक बन चुका है। सांकरी नाम के गांव तक तो बस जाती है, लेकिन इसके बाद छह दिन का अभियान आपको पैदल पूरा करना होता है।
कब और कैसे जाएं: दिल्ली से देहरादून और वहां से पुरोला के लिए सीधी बस मिल जाती है। पुरोला से सांकरी के लिए थोड़ी-थोड़ी देर में टैक्सी चलती हैं। यहां ट्रेकिंग का स्तर मॉडरेट है। एक-दो छोटे ट्रेक करने के बाद ही इस ट्रेकिंग अभियान पर जाना मुनासिब होगा।
क्या है खास: बीच में ठहरने के लिए सरकार ने तीन जगह रेस्ट हाउस बनाए हैं, लेकिन अगर आप अभियान का असली लुत्फ उठाना चाहें, तो ग्रामीणों के साथ उनके घर में रहें। अगर अनुभवी ट्रेकर हैं, तो हर की दून से आगे बोड़ासू पास होते हुए हिमाचल के किन्नौर जिले (छितकुल गांव) में निकल सकते हैं।
चोपता-तुंगनाथ
उत्तराखंड में स्थित पंदकेदार मंदिरों में से एक होने की वजह से तुंगनाथ का धार्मिक महत्व है। इस वजह से यहां कुछ खास मौकों पर हर उम्र के श्रद्धालुओं को ट्रेकिंग करते देखा जा सकता है। बेस कैंप चोपता है, जहां से करीब 3-4 घंटे की चढ़ाई के बाद तुंगनाथ पहुंचते हैं।
कब और कैसे जाएं: अप्रैल से अक्टूबर के बीच यह ट्रेक किया जा सकता है। दिल्ली से रुदप्रयाग या ऊखीमठ होते हुए चोपता जा सकते हैं। आसान ट्रेक है और दूरी कम होने की वजह से एक दिन में पूरा किया जा सकता है।
क्या है खास: रास्ते में पड़ने वाले हरे-भरे बुग्याल और उन पर अठखेलियां करते बादल थकान हर लेते हैं। चाहें तो तुंगनाथ में एक रात कैंपिंग कर या चाय की दुकानों में बिताकर अगले दिन चंदशिला (4,000 मीटर) तक ट्रेक कर सकते हैं। इस चोटी पर खड़े होकर अपने चारों ओर बर्फ से ढकी चोटियां को निहारें।
4. ऐतिहासक भारत
भारत की हजारों साल प्राचीन सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध है कि लोग इसके मोहपाश से बच नहीं पाते। इतिहास के पन्नों में दर्ज ऐसी ही कुछ जगहों से आप खुद इन छुट्टियों में रूबरू हो सकते है।
ओरछा
इतिहास में कभी राजा-महाराजाओं की गद्दी रह चुका ओरछा आज बेतवा नदी के किनारे पहाडि़यों से घिरा छोटा सा गांव है। बेतवा के दोनों छोर पर बने ऐतिहासिक मंदिरों, महलों और छतरियों के बीच खुले आसमान के तले कैंपिंग का मजा ही कुछ और है।
कब और कैसे जाएं: ओरछा का मौसम दिल्ली जैसा है। मार्च-अप्रैल और अक्टूबर-नवंबर सबसे बढि़या समय है। दिल्ली से झांसी होते हुए ओरछा की दूरी लगभग 450 किमी है। दिल्ली से झांसी के लिए कई ट्रेन हैं। यमुना एक्सप्रेसवे, ग्वॉलियर और दतिया होते हुए लॉन्ग-ड्राइव भी की जा सकती है।
क्या है खास: अद्भुत वास्तुकला से सजे यहां के प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक महल और छतरियां चंदेल और बुंदेल साम्राज्य की निशानी हैं। कहते हैं यहां बेतवा नदी के किनारे बना रामराजा मंदिर पूरी दुनिया में अकेला ऐसा मंदिर है, जहां श्री राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।


तवांग
अरुणाचल प्रदेश का खूबसूरत जिला है तवांग। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। यह इलाका भारत से सिर्फ एक तरफ से जुड़ा है, बाकी दिशाओं में भूटान और तिब्बत इसके पड़ोसी हैं।
कब और कैसे जाएं: अप्रैल से अक्टूबर के बीच तवांग खुला रहता है। सर्दियों के मौसम में सेला पास पर भारी बर्फ बारी की वजह से तवांग बाकी दुनिया से कट जाता है। दिल्ली से गुवाहाटी (1900 किमी) तक ट्रेन या फ्लाइट से और उसके बाद सड़क से बोमडिला होते हुए तवांग पहुंचा जा सकता है। गुवाहाटी से तवांग के बीच एक दिन का समय लग जाता है। यहां आने के लिए इनर लाइन परमिट जरूरी है, जो दिल्ली और गुवाहाटी में मिलता है।
क्या है खास: तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद तवांग मोनेस्ट्री दुनिया की सबसे पुरानी मोनेस्ट्री है। इस तिमंजिला गोंपा में 500 से ज्यादा लामा पढ़ाई करते हैं। खूबसूरत झील, बर्फीले पहाड़ और भारतीय सैनिकों की वीरगाथा बयां करते वॉर मेमोरियल भी देखने लायक हैं।
5. स्प्रिचुअल
क्यों न इस बार छुट्टियों में सिर्फ घूमने के बजाय कुछ ऐसा किया जाए, जिससे आप घर लौटकर शारीरिक, मानसिक और रूहानी तौर पर तरोताजा महसूस करें।
तीर्थ यात्राएं
आप पारंपरिक तीर्थों की यात्रा कर सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं - चार धाम यात्रा (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) (उत्तराखंड), अमरनाथ (कश्मीर), रामेश्वरम, तिरुपति और मदुरै (दक्षिण भारत), शिर्डी (महाराष्ट्र)। इन सभी यात्राओं के लिए आजकल कई तरह के पैकेज मिल जाते हैं।
कैलास मानसरोवर यात्रा
कैलास पर्वत हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव का घर है, जबकि मानसरोवर की मान्यता हिन्दू और बौद्ध धर्म में भी है। वैसे तो कैलाश-मानसरोवर तिब्बत में स्थित हैं, लेकिन तिब्बत पर चीन का कब्जा होने की वजह से चीन सरकार से वीजा लेना पड़ता है। भारत सरकार की आधिकारिक यात्रा के अलावा आप प्राइवेट टूर ऑपरेटरों के जरिए इस यात्रा पर जा सकते हैं। भारत सरकार वाली यात्रा कुमायूं होकर और प्राइवेट एजेंसियों की यात्रा नेपाल से जाती है। इन यात्राओं में एक आदमी का खर्च 1 लाख रुपये से ज्यादा आता है।
कब और कैसे जाएं: भारत सरकार इस साल यात्रा का आयोजन जून से सितंबर के बीच कर रही है, लेकिन इसके रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख निकल चुकी है। आप चाहें तो नेपाल के रास्ते इस यात्रा पर जा सकते हैं, जिसके लिए प्राइवेट टूर ऑपरेटरों से संपर्क करें।
6. हेल्थ टूरिज्म
आनंद स्पा रेजॉर्ट
आप चाहें, तो ऋषिकेश के पास आनंद स्पा रेजॉर्ट जा सकते हैं। यहां कुछ समय प्रकृति के बीच बिताकर अपने शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा में भी नए जीवन का संचार किया जा सकता है। यहां प्राचीन स्पा पद्धति की उपचारात्मक शक्तियों से शरीर में एक खास तरह की ताजगी का अहसास होता है।
कब और कैसे जाएं: साल भर कभी भी जा सकते हैं। गर्मियों में भी यहां अधिकतम तापमान 30 डिग्री के आसपास रहता है। दिल्ली से ऋषिकेश होते हुए टिहरी रोड पर नरेंद्र नगर तक जाएं। आनंद स्पा नरेंद्र नगर के पास स्थित है।
7. वॉटर स्पोर्ट्स
हममें से कई ऐसे हैं, जिन्हें पानी में खेलना पसंद है। अब अपने देश में भी ऐसे लोगों को छुट्टी बिताने के लिए कई विकल्प मिल रहे हैं।
ऋषिकेश और मनाली
पहाड़ी नदियों का शोर रोमांचक होता है। ऐसी नदियों के तेज बहाव में किसी पत्ते की तरह बहते, उलटते-पुलटते राफ्ट पर सवार होकर मंजिल तक पहुंचना रोंगटे खड़े कर देने वाला अहसास है। पिछले कुछ समय से दिल्ली के आसपास रिवर राफ्टिंग कई जगहों पर होने लगी है, लेकिन ऋषिकेश और मनाली प्रमुख हैं।
अलप्पी (केरल)
खुले आसमान के नीचे पानी पर तैरते घरों में छुट्टी बिताने का अहसास रूमानी कर देता है। वैसे, हाउसबोट्स का नाम सुनते ही जहन में श्रीनगर की मशहूर डल झील की तस्वीर उभरती है, लेकिन केरल में अलप्पी के बैक वॉटर्स में हाउस बोट्स पर तैरने का अनुभव थोड़ा अलग है। नारियल के पेड़ों की छांव में तैरते हाउसबोट्स में साउथ इंडियन खाने का आनंद कहीं और मिलना मुश्किल है।



लक्षद्वीप
पर्यटकों की भीड़ में साफ -सुथरे समुदी बीच की तलाश करते थक गए हैं, तो अरब सागर में बिखरे खूबरसूरत द्वीपों के समूह लक्षद्वीप जाएं। यहां जाने के लिए प्रशासन से स्पेशल परमिशन लेनी पड़ती है। इस नियंत्रण की वजह से यहां पर्यटन को अनुशासित तरीके से चलाया जा रहा है, जिसका सीधा असर द्वीपों की साफ सफाई और व्यवस्था में दिखाई पड़ता है। स्कूबा डाइविंग, कयाकिंग, कैनोइंग जैसे कई वॉटर स्पोर्ट्स का लुत्फ यहां उठाया जा सकता है। यहां जाने का सबसे अच्छा समय दिसंबर से मई तक है। कोच्चि (केरल) लक्षद्वीप का प्रवेश द्वार है। यहीं से आप लक्षद्वीप जाने की परमिशन ले सकते हैं और यहीं से फ्लाइट या शिप से लक्षद्वीप आ-जा सकते हैं।

Monday, March 25, 2013

बुरा न मानो, मिलावट जारी है





शहर के सड़क के किनारे लगाने वाले ठेले हो या अन्य बाजारों में लगने वाली दुकाने यहां कुछ भी शुद्ध नहीं है। शुद्धता का दावा करने वाले कई नामचीन रेस्टोरेंट भी मोटी कमाई के चक्कर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ जमकर खिलवाड़ कर रहें हैं। होली के त्योहार पर भी नकली खोए से बनी मिठाइयों से ही त्योहारों की रौनक बनाने की तैयारी है। हालांकि विभागीय अधिकारियों की तंद्रा समय-समय पर भंग होती रही है लेकिन वह सिर्फ कागजी खानापूर्ति के लिए होती रही है।
पनीर भी नकली
पनीर दूध के बजाय पाम आयल से बनाया जा रहा है। 125 रुपये में तैयार पांच किलो सिंथेटिक पनीर असली दामों पर बेंचा जा रहा है। स्किंड मिल्क की बची सामाग्री को सोडियम बाई कार्बोनेट खाने का सोडा से तैयार घोल में गर्म करके पाम आयल, वेजिटेबल आयल डालकर पनीर बनाया जा रहा है।
मावे में अरारोट
मावा दूध की क्रीम निकालकर रिफाइंड और वनस्पति घी मिलाकर बनते हैं। खुशबू के लिए हाइड्रो और पपड़ी केमिकल डाला जाता है। सूखा पाउडर खोए में सूखा मिल्क पाउडर, पानी, वनस्पति घी, हाइड्रो और पपड़ी केमिकल मिलाया जाता है।
दूध भी नहीं शुद्ध 
दूध में कार्बोनेट, फार्मलीन, यूरिया, खराब मिल्क पाउडर, हैंडपंप या तालाब का पानी मिलाया जा रहा है। जानकारों की माने तो एक लीटर दूध में छह फीसद फैट और नौ फीसद प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और कार्बोहाइड्रेट होता है। मिलावट से फैट कम हो जाता है।
ऐसे करें पहचान
लाल मिर्च- सीसे के गिलास में पानी भरे उसमें लाल मिर्च डाल दे यदि गिलास की तली में नीचे कुछ जमा होता है तो समझ ले कि मिलावट की गई है।
चाय पत्ती- दो चम्मच चाय की पत्ती लेकर उस पर चुंबक घुमाएं यदि उस पर लोहे के बुरादे का मिश्रण होगा तो बुरादे चिपक जाएंगे। दूसरा तरीका यह है कि कागज की गेंद बनाकर उसी में जलाएं यदि चमड़े का मिश्रण होगा तो महक आएगी।
धनिया व मसाले
शीशे के गिलास में पानी में धनिया डालने पर बुरादे का मिश्रण होने पर बुरादा ऊपर तैरने लगता है।
हल्दी
गीले कागज पर हल्दी छिड़क कर कागज छिड़क दें। हल्दी रंग छोड़ देगी।
देसी घी
हथेली के पिछले हिस्से में देशी घी रगड़ने पर मिलावट है तो दाने बन जाते हैं।
बीमारियों को दावत
वरिष्ठ फिजीशियन डा. राजीव सौरभ बताते हैं कि कृत्रिम रंग और रसायन पेट, त्वचा और हृदय को प्रभावित करते हैं। सिंथेटिक पनीर, मेवा, दूध और तेल लीवर और किडनी को डैमेज करता है। रक्त धमनियों में थक्का जमने से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
पैकिंग पर न जाएं
सुंदर दिखने वाले तेल, बेसन और मसाले के पैकेट शुद्ध हैं, यह बिल्कुल न सोचे। प्रतिबंधित रंग और केमिकल मिलाए जा रहा है। बेसन में मटरी, पीली मिट्टी, मसालों में रंग, काली मिर्च में पपीते के बीज,धनिया में लीद मिलाई जा रही है।

Saturday, March 23, 2013

ऊर्जा का जबर्दस्त सोत बनेगी जलती बर्फ



तेल और गैस के भारी आयात ने भारत का व्यापार घाटा बहुत बढ़ा दिया है। यह चीज देश की तेज आर्थिक वृद्धि की राह में रोड़ा बन रही है। लेकिन पिछले हफ्ते जापान ऑयल गैस एंड मेटल्स नैशनल कॉरपोरेशन (जेओजीएमईसी) की एक तकनीकी उपलब्धि हमारे लिए अंधेरे में आशा की किरण बनकर आई है। वे लोग समुद तल पर जमा मीथेन हाइड्रेट के भंडार से प्राकृतिक गैस निकालने में कामयाब रहे। इस चीज को आम बोलचाल में फायर आइस या जलती बर्फ भी कहते हैं, क्योंकि यह चीज सफेद ठोस क्रिस्टलाइन रूप में पाई जाती है और ज्वलनशील होती है। भारत के पास संसार के सबसे बड़े मीथेन हाइड्रेट भंडार हैं। तकनीकी प्रगति के जरिये अगर इसके दोहन का कोई सस्ता और सुरक्षित तरीका निकाला जा सका तो देश के लिए यह बहुत बड़ा वरदान साबित होगा।
गैस का भंडार
जेओजीएमईसी का कहना है कि 2016 तक वह इस स्त्रोत से वाणिज्यिक पैमाने पर गैस का उत्पादन शुरू कर सकता है। इस बीच चीन और अमेरिका ने भी फायर आइस की खोज और इसके प्रायोगिक उत्कर्षण को लेकर बड़े कार्यक्रम बनाए हैं। अफसोस की बात है कि भारत इस तस्वीर में कहीं नहीं है। दुनिया में इस चीज की कुल मात्रा के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। यह मात्रा 28 हजार खरब से लेकर 80 अरब खरब घन मीटर गैस के समतुल्य आंकी जाती है। संसार में मौजूद कुल 4400 खरब घन मीटर पारंपरिक गैस की तुलना में यह मात्रा कई गुना ज्यादा है। यह बात और है कि हाइड्रेट भंडारों के एक छोटे हिस्से का ही इस्तेमाल गैस उत्पादन में किया जा सकेगा।
जलती बर्फ का राज
मीथेन हाइड्रेट प्राकृतिक गैस और पानी का मिश्रण है। गहरे समुद्र तल पर पाई जाने वाली निम्न ताप और उच्च दाब की विशेष स्थितियों में यह ठोस रूप धारण कर लेता है। कनाडा और रूस के स्थायी रूप से जमे रहने वाले उत्तरी समुद्रतटीय इलाकों में यह जमीन पर भी पाया जाता है। इन जगहों से निकाले जाने के बाद इसे गरम करके या कम दबाव की स्थिति में लाकर (जेओजीएमईसी ने यही तकनीक अपनाई थी) इससे प्राकृतिक गैस निकाली जा सकती है। एक लीटर ठोस हाइड्रेट से 165 लीटर गैस प्राप्त होती है। यह जानकारी काफी पहले से है कि भारत के पास मीथेन हाइड्रेट के बहुत बड़े भंडार हैं। अपने यहां इसकी मात्रा का अनुमान 18,900 खरब घन मीटर का लगाया गया है। भारत और अमेरिका के एक संयुक्त वैज्ञानिक अभियान के तहत 2006 में चार इलाकों की खोजबीन की गई। ये थे- केरल-कोंकण बेसिन, कृष्णा गोदावरी बेसिन, महानदी बेसिन और अंडमान द्वीप समूह के आसपास के समुद्री इलाके। इनमें कृष्णा गोदावरी बेसिन हाइड्रेट के मामले में संसार का सबसे समृद्ध और सबसे बड़ा इलाका साबित हुआ। अंडमान क्षेत्र में समुद तल से 600 मीटर नीचे ज्वालामुखी की राख में हाइड्रेट के सबसे सघन भंडार पाए गए। महानदी बेसिन में भी हाइड्रेट्स का पता लगा।
बहरहाल, आगे का रास्ता आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से होकर गुजरता है। हाइड्रेट से गैस निकालने का किफायती तरीका अभी तक कोई नहीं खोज पाया है। उद्योग जगत का मोटा अनुमान है कि इस पर प्रारंभिक लागत 30 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू (मिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट) आएगी, जो एशिया में इसके हाजिर भाव का दोगुना और अमेरिका में इसकी घरेलू कीमत का नौगुना है। जेओजीएमईसी को उम्मीद है कि नई तकनीक और बड़े पैमाने के उत्पादन के क्रम में इस पर आने वाली लागत घटाई जा सकेगी। लेकिन पर्यावरण की चुनौतियां फिर भी अपनी जगह कायम रहेंगी। गैस निकालने के लिए चाहे हाइड्रेट को गरम करने का तरीका अपनाया जाए, या इसे कम दाब की स्थिति में ले जाने का, या फिर ये दोनों तरीके एक साथ अपनाए जाएं, लेकिन हर हाल में गैस की काफी बड़ी मात्रा रिसकर वायुमंडल में जाएगी और इसका असर पर्यावरण पर पड़ेगा। कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में प्राकृतिक गैस 15-20 गुना गर्मी रोकती है। पर्यावरण से जुड़ी इन आशंकाओं के चलते कई देशों ने अपने यहां शेल गैस का उत्पादन ठप कर दिया है और हाइड्रेट से गैस निकालने के तो पर्यावरणवादी बिल्कुल ही खिलाफ हैं। लेकिन शेल गैस के रिसाव को रोकना ज्यादा कठिन नहीं है। कौन जाने आगे हाइड्रेट गैस के मामले में भी ऐसा हो सके।
काफी पहले, सन 2006 में मुकेश अंबानी ने गैस हाइड्रेट्स के बारे में एक राष्ट्रीय नीति बनाने को कहा था, लेकिन आज तक दिशा में कुछ किया नहीं जा सका है। अमेरिका, जापान और चीन में हाइड्रेट्स पर काफी शोध चल रहे हैं लेकिन भारत में इस पर न के बराबर ही काम हो पाया है। राष्ट्रीय गैस हाइड्रेट कार्यक्रम के तहत पहला इसके भंडार खोजने के लिए पहला समुदी अभियान भी 2006 में चला था। दूसरे अभियान की तब से अब तक बात ही चल रही है। कुछ लोग इस उम्मीद में हैं कि अमेरिका और जापान जब गैस निकालने की तकनीक विकसित कर लेंगे तो हम इसे सीधे उनसे ही खरीद लेंगे। लेकिन यह उम्मीद बेमानी है। भारत के बड़े सबसे बड़े हाइड्रेट भंडार, जिनमें कृष्णा गोदावरी बेसिन भी शामिल है, समुदी चट्टानों की दरारों में हैं, जबकि जापान और अमेरिका में ये बलुआ पत्थरों में पाए जाते हैं। जाहिर है, अमेरिका और जापान की उत्कर्षण तकनीकें बिना सुधार के हमारे यहां काम नहीं आने वाली। अपनी तकनीकी क्षमता हमें खुद ही विकसित करनी होगी।
गलत प्राथमिकताएं
भारत के हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने काफी पहले एक राष्ट्रीय गैस हाइड्रेट शोध व विकास केंद्र स्थापित करने की गुजारिश की थी। इसे सरकारी निकाय न बनाया जाए। निजी क्षेत्र की तेल व गैस कंपनियों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही भारतीय समुद्री क्षेत्र में हाइड्रेट भंडारों की और ज्यादा खोज और पुष्टि के लिए जापान और अमेरिका के साथ कुछ और साझा अभियान भी चलाए जाने चाहिए। अभी तो ड्रिलिंग के जरिये निकाले गए हाइड्रेट्स के नमूनों को जांच के लिए विदेशी प्रयोगशालाओं में भेजा जा रहा है। यह दयनीय स्थिति हमारी गलत प्राथमिकताओं की ओर इशारा करती है, और हर हाल में इसे बदलना ही होगा।

जल है तो हम हैं



तुमने कई बार सुना होगा कि पानी के बिना हम जी नहीं सकते। पानी के बिना सब सूना है। पर क्या इस बात को महसूस भी किया है? यदि नहीं तो 22 मार्च को आ रहे विश्व जल दिवस पर तुम केवल एक दिन सुबह उठने से लेकर रात को सोते समय तक कब-कब तुमने पानी का इस्तेमाल होते हुए देखा, यह नोट करो। तुम्हें खुद ही समझ आ जाएगा कि पानी कितना जरूरी है। 
पानी अनमोल है। यह कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से ही लगा सकते हो कि अगर धरती पर पानी नहीं होगा तो न पेड़-पौधे होंगे, न जल की रानी मछली होगी, न शेर होगा, न तोते और गौरैया और न ही मनुष्य। छोटे-छोटे कीड़ों से लेकर बड़े पेड़ों को जीवित रहने के लिए पानी की जरूरत होती है। तुम ऐसा मान सकते हो कि जैसे सांस लेने के लिए हवा जरूरी है, वैसे ही जीने के लिए पानी।
हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है। पानी हमारे शरीर की कोशिकाओं और खून में होता है। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है। यहां तक कि खाना पचाने के लिए भी पानी की जरूरत होती है। साथ ही ऑक्सीजन लेने के लिहाज से भी पानी जरूरी होता है।
पानी की तीन अवस्थाएं होती हैं। ठोस, द्रव और गैस। ठोस पानी को बर्फ कहा जाता है, द्रव अवस्था में पानी हम हर रोज इस्तेमाल करते ही हैं। और जब पानी उबलकर भांप बनता है या सूर्य की किरणों से वाष्पीकृत होकर ऊपर चला जाता है तो यह उसकी गैस अवस्था होती है। गैस अवस्था ही बारिश होने का कारक बनती है। पृथ्वी में पानी सतह के ऊपर नदियों, झरनों के रूप में मिलता है। सतह के नीचे भी पानी होता है। तुम्हें यह जानकर हैरत होगी कि दुनिया की करीब 90त्नआबादी को सीधे तौर पर साफ पानी नहीं मिलता है।
18% पानी पीने लायक नहीं
दिल्ली एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किया गया 18% पानी पीने लायक नहीं होता है और शहर का हर पांचवां आदमी प्रदूषित पानी पीता है। दिल्ली में करीब 60% घरों में दिल्ली जल बोर्ड का पानी प्रयोग होता है। प्रदूषित पानी पीने से कॉलरा, टायफायड, पीलिया जैसी बीमारियां हो जाती हैं। दिल्ली में औसत रूप से हर व्यक्ति को पेरिस और एम्सटर्डम की तुलना में अधिक पानी मिलता है। यहां औसतन प्रति व्यक्ति को 191 लीटर पानी मिलता है, पर उन लोगों को जहां हर समय पानी उपलब्ध होता है, वहीं दिल्ली के कुछ इलाकों में एक दिन में मुश्किल से तीस मिनट पानी मिल पाता है। समाजसेवी और पर्यावरणविद् डॉ. संजय कुमार कहते हैं, 'इतना पानी पीने के बावजूद अगर पानी की परेशानी है तो उसका कारण पानी का सही वितरण न होना और ज्यादा व्यर्थ होना है।Ó
पानी से ही गुलजार है कुदरत की खूबसूरती
कहते हैं कि कुदरत ने अपनी खूबसूरती चप्पे-चप्पे पर बिखेरी है। लहराते पेड़-पौधे हों या कल-कल कर बहते झरने, सभी इस कायनात में चमत्कार की तरह लगते हैं। एक से एक सुंदर दृश्य मन में ताजगी भर देते हैं। दुनिया भर में फैली यह खूबसूरती पानी की वजह से ही है।
जोन्हा फॉल: यह झरना झारखंड में है। गौतम बुद्ध के नाम पर इस झरने का नाम गौतम धारा पड़ गया। पास ही में यहां दो बौद्ध मंदिर हैं, जो राजा बलदेव राय द्वारा बनवाए गए थे।
आंद्रपल्ली (अतिरापल्ली) फॉल: यह झरना केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है। इस झरने की लंबाई 80 फीट है। यह झरना कालकुंडी नदी पर है। 
धुंआधार फॉल: मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में यह झरना नर्मदा नदी पर स्थित है। यह जगह मार्बल रॉक के नाम से मशहूर है। 
केम्पटी फॉल: मंसूरी का यह फॉल उत्तरांचल का मुख्य आकर्षण है।
वसुधारा फॉल: यह झरना उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
दूधसागर फॉल: यह झरना गोवा में स्थित है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसका पानी दूध के समान है। यह मांडवी नदी पर है। यह भारत का पांचवां सबसे लंबा झरना है।
हम बनेंगे जल के रक्षक
ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखेंगे। 
पांच मिनट से ज्यादा शावर नहीं चलाएंगे। फव्वारे या टब में बैठकर नहाने से पानी अधिक खर्च होता है, इसलिए ऐसा करने से बचेंगे।
पेंट, थर्मामीटर, कीटनाशक और पारे को नदी, नाले और सीवर में नहीं डालेंगे। इससे न सिर्फ पानी को दोबारा साफ करने में कठिनाई होती है, बल्कि पानी में सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले जहरीले तत्व मिल जाते हैं। 
बारिश के पानी को इक_ा करके उसका इस्तेमाल गाड़ी धोने या पौधों को देने में करेंगे।
टॉयलेट में पानी की टंकी को आधा दबाएंगे
किसी भी पाइप या नल में से पानी टपक रहा है तो उसको ठीक करवाएंगे।
रीसाइकलिंग से बच सकता है पानी
क्या तुम जानते हो कि अगर गंदे पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो पानी की किल्लत को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। पानी की समस्या को हल करने में रीसाइकलिंग एक बेहतर विकल्प हो सकता है। दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में रीसाइकिल किए गए करीब 255 मिलियन गैलन पानी का प्रतिदिन प्रयोग पीने के अलावा अन्य कामों में भी होता है। कुछ पानी का प्रयोग दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के द्वारा बसों को धोने और साफ करने में प्रयोग होता है, तो कुछ पानी एनडीएमसी और सीपीडब्ल्यूडी द्वारा हॉर्टकिल्चर के लिए होता है।
बेशकीमती है पानी
पानी अपने कई गुणों के कारण बेहतर होता है। कल्पना कीजिए कि अगर पानी में ये गुण न हों तो क्या हो? अगर पानी के कोहेसिव और एडहेसिव गुण (जिसके कारण अणु आपस में जुड़ते हैं और दूर होते हैं) खत्म हो जाएं तो आईड्रॉप से बूंद नहीं गिरेगी।
डिटर्जेट के इस्तेमाल से उठने वाला झाग भी नहीं उठ सकेगा।
अगर पानी में घुलना बंद हो जाए तो
तुम चाय या कॉफी नहीं पी सकोगे।
साबुन से बर्तन-कपड़े नहीं धुल सकेंगे।
अगर पानी में हटने का गुण न हो तो 
नहाने के बाद शरीर नहीं सूखेगा।
न तो कार के वाइपर काम करेंगे और न ही घर की सफाई के लिए पानी का इस्तेमाल हो पाएगा।
जल का सच 
सोलर सिस्टम में धरती एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां पर नदियां और समुद्र हैं और बारिश होती है। 
एक व्यक्ति खाने के बिना एक महीने से अधिक जीवित रह सकता है, वहीं पानी के बिना एक हफ्ते से अधिक जीवित रहना मुश्किल होता है। 
धरती पर 75 प्रतिशत पानी है। 
पृथ्वी का 97 प्रतिशत पानी समुद्रों में है। सिर्फ तीन प्रतिशत पानी का प्रयोग ही पीने के लिए किया जाता है। 
एक गैलन पानी 3.7865 लीटर पानी के बराबर होता है। 
दुनिया के करीब आधे स्कूलों में साफ पानी उपलब्ध नहीं है। 
विश्व की सबसे लंबी नदी नील है।
पानी से बिजली का निर्माण भी किया जाता है। दुनिया में कई हाइड्रॉलिक पावर स्टेशन लगे हैं। 
बीते सौ सालों में दुनिया के आधे से अधिक जलाशय गुम हो गए हैं।
तेल की एक बूंद से 25 लीटर पानी पीने लायक नहीं रहता।

Friday, March 22, 2013

यूं सामना करें जब आए आपात स्थिति



कई बार अचानक कार्डिएक अटैक की समस्या सामना करता पड़ता है तो कई बार अस्थमा परेशान कर देती है। कुछ खाने-पीने के बाद अचानक सांस फंसने-फूलने लगती है और कई बार हाथ जल या कट जाता है।
जानलेवा आपात स्थितियां कभी भी, कहीं भी हो सकती हैं। इनकी वजह कोई स्वास्थ्य समस्या, दुर्घटना, जहरीले पदार्थ का सेवन, प्राकृतिक आपदा या हिंसा हो सकती है। हम आपको बता रहे हैं कार्डिएक अरेस्ट, चोकिंग (सांस की नली या गले में किसी बाहरी वस्तु का फंस जाना) और अस्थमा अटैक के अचानक हुए हमले में क्या करें कि पीडिम्त की जान बचाई जा सके।
कार्डिएक अरेस्ट
कार्डिएक अरेस्ट में दिल के बंद होने से रक्त का संचरण पूरी तरह बंद हो जाता है। लक्षण नजर आने के कुछ ही मिनटों में मरीज की मौत हो जाती है। हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं, अगर कार्डिएक अरेस्ट होने के कुछ मिनटों में पीडिम्त को आकस्मिक और डॉक्टरी सहायता उपलब्ध करा दी जाए तो उसके जीवित रहने की संभावना 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
क्या करें
हार्ट एसोसिएशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्डिएक अरेस्ट आने के दस मिनट के भीतर छाती को दबाकर और तेजी से थपथपाकर तथा कृत्रिम श्वास द्वारा दिल को रिवाइव करने की कोशिश करें। ऐसा न करने पर स्थिति बिगड़ सकती है।
सबसे पहले मरीज की धड़कन चेक करें। अगर धड़कन नहीं चल रही हो तो सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन) शुरू कर दें।
सीपीआर में छाती को तेजी से दबाकर और तेजी से थपथपाकर तथा कृत्रिम श्वास द्वारा दिल को रिवाइव करने की कोशिश की जाती है।
सीपीआर से ऑक्सीजन युक्त रक्त का संचरण मस्तिष्क और हृदय में करने में मदद मिलती है।
सीपीआर
छाती को जोर-जोर से और तेजी से दबाएं।
ध्यान रहे आपका हाथ छाती के बीच में होना चाहिए। एक हाथ को हथेली की तरफ से छाती पर रखें, दूसरे हाथ को भी हथेली की ओर से ही पहले हाथ पर 90 डिग्री का कोण बनाते हुए रखें। छाती को 30 बार दबाएं, गिनती को जोर से गिनें। दबाने की रफ्तार प्रति मिनट 100 होनी चाहिए।
ढेर से दो इंच (4-5 से.मी.) दबाने के बाद छाती को सजह छोड़ दें। कोई हस्तक्षेप न करें।
सांस चेक करें। सांस नहीं चल रही हो तो रेस्क्यू ब्रीद (मुंह से कृत्रिम सांस) दें।
30 कंप्रेशन और दो कृत्रिम श्वास इन्हें बारी-बारी से दोहराएं।
अस्थमा
अस्थमा श्वास संबंधी रोग है। इसमें श्वास नलिकाओं में सूजन आने से वह सिकुड़ जाती हैं, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। लेकिन कई बार सर्द हवाओं के संपर्क में आने, अत्यधिक व्यायाम करने, कम वायु दाब वाले स्थानों जैसे पहाड़ों पर, वायु प्रदूषण या बारिश में भीगने पर अचनक अस्थमा का प्रकोप बढ़ जाता है और मरीज की सांसें उखड़ने लगती हैं। इसे अस्थमा अटैक कहते हैं। अटैक अधिक तीव्र होने पर मरीज बेहोश भी हो जाता है।
क्या करें
अस्थमा के रोगी नियमित रूप से दवाओं का सेवन करें और उन कारकों से बचें, जिनसे अस्थमा होता है तो अस्थमा के अटैक का खतरा टाला जा सकता है। परंतु फिर भी यदि कोई इमरजेंसी हो जाए तो-
बिना कोई देर किए डॉक्टर द्वारा दी दवाएं लें।
सीधे बैठ जाएं, लेटें बिल्कुल भी नहीं।
कपड़ों को ढीला कर लें, संभव हो तो आरामदायक कपड़े पहन लें।
शांत रहने का प्रयास करें।
डॉक्टर से संपर्क करें या बिना देर किए नजदीक के किसी अस्पताल में जाएं।
अगर व्यक्ति अस्थमा की कोई दवाई जैसे इनहेलर आदि इस्तेमाल कर रहा हो तो, उसे इस्तेमाल करने में उसकी मदद करें।


चोकिंग
चोकिंग तब होता है, जब कोई बाहरी वस्तु गले या सांस की नली में अटक जाती है और हवा के प्रवाह को अवरुद्ध कर देती है। बड़ों में अधिकतर खाने की कोई चीज फंस जाती है और कई बार बच्चे कोई छोटी चीज निगल लेते हैं। चोकिंग से मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जितनी जल्दी से जल्दी हो सके, प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराया जाए।
लक्षणों की जांच करें
चोकिंग का सामान्य लक्षण है कि पीडित अपने गले को हाथों से दबाता है। यह नहीं होता है तब इन संकेतों को समझें।
बोल नहीं पाना।
सांस लेने में तकलीफ होना।
त्वचा, होंठ और नाखून नीले या धूसर पड़ने लगना।
बेहोशी की स्थिति आने लगना।
क्या करें
चोकिंग होने पर रेड क्रॉस ने प्राथमिक उपचार देने के लिए ‘पांच और पांच’ की सिफारिश की है:’कमर पर पीछे कंधे की ब्लैड के बीच में मुट्ठी से पांच धीमे-धीमे मुक्के मारें।
व्यक्ति के पीछे खड़े हो जाएं। अपनी बांहें उसकी कमर के आसपास लपेट दें। व्यक्ति को थोड़ा-सा आगे की ओर झुका दें।
एक हाथ की मुट्ठी बांध लें। इसे व्यक्ति की नाभी के थोड़ा-सा ऊपर रखें।
मुट्ठी को दूसरे हाथ से पकड़ें। उसे पेट में अंदर और ऊपर की ओर तेजी से दबाएं, जैसे आप उसे उठाने का प्रयास कर रहें हों।
कुल पांच बार जोर-जोर से पेट में अंदर की ओर झटके दें। फिर भी ब्लॉकेज न निकले तो इसे पांच-पांच के समूह में दोहराते रहें।
चिकित्सा सहायता पहुंचने से पहले अगर व्यक्ति बेहोश होने लगे तो उसे सीपीआर और कृत्रिम श्वास दें। वैसे अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन कमर पर घूंसे मारने की सिफारिश नहीं करता है।
रखें इन बातों का ध्यान
घर में फर्स्ट एड बॉक्स सही जगह पर जरूर रखें।
बॉक्स में तमाम जरूरी सामान हो, इसकी जांच करते रहें।
रसोई में चाकू, लाइटर, माचिस आदि को सही जगह पर रखें।
रसोई में सामान को सही जगह पर रखें ताकि बच्चे उन तक न पहुंच पाएं।
कुछ जरूरी टेलीफोन नम्बर की लिस्ट घर में सही जगह टांग कर रखें।
अगर आपको हार्ट, अस्थमा आदि की तकलीफ है तो अपनी दवाओं की उपलब्धता की जांच करते रहें, ताकि दवा की कमी न आए।
अगर घर में बुजुर्ग हैं तो उनके स्वास्थ्य की जांच समय-समय पर करवाते रहें। खासकर आंखों की जांच छह महीने पर जरूर करवाएं।
गिरना
गिरने से सामान्य से लेकर गंभीर चोटें आ सकती हैं। अगर कोई गिर जाए तो सबसे पहले उसे उठाएं और खुली हवा में लेटा दें। चोटों का मुआयना करें। व्यक्ति बेहोश हो गया हो तो पहले उसे होश में लाने का प्रयास करें। व्यक्ति को ज्यादा हिलाएं-डुलाएं नहीं जब तक कि डॉक्टरी सहायता पहुंच नहीं जाती।
औंधे मुंह गिरा है तो सबसे पहले उसे सीधा कर लें, उसे कमर के बल लेटा दें। सांसें उखड़ रही हों तो कृत्रिम रूप से सांस दें और लेटा दें।
घर में अकेले हों और सीढियों से या किसी ऊंची जगह से गिर जाएं तो जल्दी से उठने की कोशिश न करें। पास में अगर कोई कुर्सी और सोफा है तो उस तक रेंगते हुए पहुंचें और फिर धीरे से उस पर बैठ जाएं।
परिचित या अस्पताल में फोन करें।
कटना
सब्जी या फल काटते हुए चाकू के फिसलने से उंगली कट जाना, शरीर के किसी भाग विशेषकर पैर या हाथ में कील या कांच चुभ जाना और जख्म से खून बहने लगना, इस संसार में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा जिसे इसका अनुभव कभी न हुआ हो। कभी-कभी मामूली रूप से कटना भी संक्रमण फैलने से जानलेवा हो जाता है।
रखें इन बातों का ध्यान
हल्के जख्म में डॉक्टर के पास न जाएं।
घाव से गंदगी बाहर निकाल दें।
जख्म को बहते हुए ठंडे पानी से धो लें।
हाइड्रोजन परऑक्साइड से अच्छी तरह साफ करने के बाद बैंडेड से लपेट लें।
सूजन कम करने के लिए कटी हुई जगह पर बर्फ मलें।
घाव को साफ रखें ताकि संक्रमण न फैले, लगातार पट्टी बदलते रहें।
कटने पर अगर दस मिनट में खून बहना बंद हो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
जलना
खाना बनाते समय आग की चपेट में आ जाना जलने की सबसे प्रमुख वजह है। मामूली रूप से जलने के जख्म तो समय के साथ वैसे ही ठीक हो जाते हैं, पर गंभीर रूप से जलने पर विशेष देखभाल करनी होती है।
क्या करें-क्या नहीं
आग लग जाए तो वह फर्श पर लोट जाएं, धुंए की परत से नीचे, अगर आग पूरे स्थान पर फैल रही है तो बाहर निकलकर भागें।
मामूली रूप से जले हुए स्थान पर 10-15 मिनट तक ठंडा पानी डालें। ध्यान रहे पानी ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।
जली हुई त्वचा पर सीधे बर्फ न रखें। इससे त्वचा को और नुकसान पहुंच सकता है।
जख्म के थोड़ा सूखने के बाद उस पर सूखी पट्टी ढीली बांधें, ताकि गंदगी और संक्रमण न फैले।
गंभीर रूप से जलने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

रंगों से यूं सुरक्षित रहेंगे आपके बाल और त्वचा




होली में कई बार आप रंग खेलने से बचते हैं, क्योंकि आपको डर लगता है कि रंग त्वचा और बालों को नुकसान न पहुंचाए।
त्वचा की देखभाल
- होली के एक दिन पहले अपने चेहरे, गर्दन, कान, हाथ और पैरों पर सरसों का तेल लगा लें। इससे आपकी त्वचा पर लगने वाला रंग आसानी से साफ हो जाएगा।
- अपनी त्वचा को रंगों से सुरक्षित रखने के लिए इस दिन ऐसे कपड़े पहनें, जो आपके शरीर को अधिक से अधिक ढक कर रख सकें। इससे आपके शरीर का कम से कम हिस्सा रंगों के संपर्क में आएगा।
- रंगों को साफ करने के लिए दो बड़े चम्मच नींबू पानी में एक कटोरी दही मिलाएं और त्वचा के उस हिस्से में लगाएं, जहां रंग साफ करना है। उसके बाद सामान्य पानी से स्नान कर लें। रंगों से मुक्ति मिल जाएगी।
- त्वचा के रंग वाले हिस्से को साफ करने के लिए आप गुलाब जल में दूध, बादाम का तेल और चने का आटा मिला कर लेप भी बना सकते हैं, जिसे रंग वाले हिस्सा पर लगा कर थोड़ी देर बाद हाथों से रगड़ कर साफ कर सकते हैं।
- रंगों को साफ करने के बाद अपनी आंखों में गुलाब जल की कुछ बूंदें डाल कर थोड़ा आराम कर लें। इससे आपकी आंखों को काफी आराम मिलेगा।

बालों की देखभाल
- महिलाएं बालों के जूड़े बना लें, वे सुरक्षित रहेंगे।
- होली के एक रात पहले अपने सिर की जोजोबा और मेहंदी के तेल या नारियल के तेल से मसाज करवा लें। इससे आपके बाल सुरक्षित रहेंगे।
- बाल संवेदनशील हैं तो इस मिश्रण में कुछ बूंद नींबू पानी भी डाल दें। इससे रंगों में मौजूद रसायन का बालों और सिर की त्वचा पर संक्रमण नहीं हो पाएगा।
- होली खेलने के बाद सादे पानी से बालों को धो लें। इससे अधिकांश रंग साफ हो जाएंगे। थोड़ी देर बाद बालों को हल्के शैंपू से धो दें और कंडीशनर लगाएं।
- दो बड़े चम्मच जैतून के तेल, चार बड़े चम्मच शहद और कुछ बूंद नींबू पानी को मिला लें। इससे सिर के बाल और त्वचा की मालिश करें। इसे आधे घंटे सूखने दें, फिर हल्के शैंपू और गुनगुने पानी से उसे साफ कर लें।

व्यक्तित्व में चार चांद लगाएं आपके दांत


साफ और सुंदर दांत तथा स्वस्थ मसूड़े न सिर्फ अच्छे स्वास्थ्य की निशानी होते हैं, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक भी बनाते हैं। दांत और मसूड़ों का स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर करता है। अगर मसूड़े स्वस्थ नहीं होंगे तो दांत भी स्वस्थ नहीं रह पाएंगे, इसलिए स्वस्थ दांतों के लिए स्वस्थ मसूड़े बहुत जरूरी हैं।
पोषक और संतुलित भोजन भी है जरूरी
संतुलित भोजन आपके दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखता है और संक्रमण से बचाता है। इसके अलावा फाइबर युक्त भोजन करें। यह आपके दांतों को साफ और मसूड़ों के ऊतकों को मजबूत बनाता है। हर बार जब आप भोजन करते हैं या ऐसा पेय पदार्थ पीते हैं, जिसमें शुगर या स्टार्च होता है तो वह एसिड उत्पन करता है। यह 20 मिनट या उससे ज्यादा देर तक आपके दांतों पर हमला करता है। दांतों को स्वस्थ रखने के लिए ऐसा भोजन करें, जो विटामिन, मिनरल, कैल्शियम और फॉस्फोरस से भरपूर हो। काबरेनेटेड पेय पदार्थों, जंक फूड और मीठे पदार्थों का सेवन कम करें।
दांतों की समस्याएं
दांतों का पीलापन
तंबाकू, गुटखा, शराब आदि के सेवन या दांतों की ठीक तरह से सफाई न करने से दांत पीले पड़ जाते हैं। कई लोगों में उम्र बढ़ने के साथ दांतों पर प्लाक की परत चढ़ती जाती है। इससे भी दांत पीले दिखने लगते हैं। ज्यादा मात्र में चाय, कॉफी और कोल्ड  ड्रिंक का सेवन करने से भी दांत पीले पड़ जाते हैं। विटामिन डी की कमी भी दांतों की चमक खत्म कर देती है। कुछ खास रसायनों से दांतों को साफ कर चमकाया जाता है। इसे डेंटल ब्लीचिंग कहते हैं। यह एक सुरक्षित तरीका है। दांतों को चमकदार बनाने के लिए लेजर ट्रीटमेंट सबसे प्रभावी और सुरक्षित तरीका है।
दांतों में संवेदनशीलता
हमारे दांतों के ऊपर एक सुरक्षा परत होती है, जिसे इनेमल कहते हैं। हम जो भी खाते हैं, उसका पहला संपर्क हमारे दांतों के इसी इनेमल से होता है। इनेमल हमें ताप और दूसरी चीजों से बचाता है। खानपान की गलत आदतों ओर कई अन्य कारणों से ये परत पतली हो जाती है। इससे दांतों में अति संवेदनशीलता की समस्या हो जाती है। अगर यह संवेदनशीलता ज्यादा नहीं है तो एंटी सेंसिटिविटी टूथपेस्ट से ठीक हो सकती है। अगर समस्या गंभीर है या एंटी सेंसिटिविटी टूथपेस्ट के उपयोग के बाद भी ठीक नहीं हो रही तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए, क्योंकि यह सेंसिटिविटी किसी गंभीर समस्या का संकेत भी हो सकती है, जैसे कैविटी या दांतों में दरार आ जाना।
मुंह से दुर्गंध्‍ा आना
कई लोग जब सांस लेते हैं या बात करते हैं तो उनके मुंह से दुर्गंध्‍ा आती है। यह दुर्गंध्‍ा पाचन प्रणाली के कमजोर पड़ जाने या दांतों या मसूड़ों के किसी रोग के कारण हो सकती है। यह किसी आंतरिक रोग का संकेत भी हो सकती है। यह ऐसा रोग है, जिससे किसी के व्यक्तित्व का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान करने से मुंह में लार बननी कम हो जाती है। इससे भी मुंह से बदबू आने लगती है।
मसूड़ों की समस्याएं
मसूड़ों की बीमारी का सबसे प्रमुख कारण प्लाक होता है। इसके अलावा कई बीमारियां जैसे कैंसर, एड्स, डायबिटीज, महिलाओं में किशोरावस्था, गर्भावस्था, मेनोपॉज और पीरियड्स के समय होने वाला हार्मोन परिवर्तन भी मसूड़ों पर संक्रमण की आशंका बढ़ा देते हैं। धूम्रपान भी मसूड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वैसे मुंह की साफ-सफाई का ख्याल न रखना मसूड़ों की समस्याओं का सबसे प्रमुख कारण है। मसूड़ों की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। हाल ही में हुए कई अध्ययनों में यह बात उभर कर आई है कि 35 वर्ष की उम्र के बाद मसूड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस उम्र में हर चार में से तीन लोग मसूड़ों की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होते हैं।
सबसे आम है जिन्जीवाइटिस
जिन्जीवाइटिस मसूड़ों की सबसे आम समस्या है। इसमें मसूड़े सूख कर लाल हो जाते हैं और कमजोर पड़ जाते हैं। कई लोगों में दांतों के बीच में उभरा हुआ तिकोना क्षेत्र बन जाता है, जिसे पेपीले कहते हैं। इसका प्रमुख कारण सफेद रक्त कोशिकाओं का जमाव, बैक्टीरिया का संक्रमण और प्लाक हो सकता है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि मुंह की साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए।


पायरिया
अगर ब्रश करने या खाना खाने के बाद मसूड़ों से खून बहता हो तो यह पायरिया के लक्षण हैं। इसमें मसूड़ों के ऊतक सड़ कर पीले पड़ने लगते हैं। इसका मुख्य कारण दांतों की ठीक से सफाई न करना है। गंदगी की वजह से दांतों के आसपास और मसूड़ों में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं।
पीरियोडोंटिस
यदि समय रहते जिन्जीवाइटिस का उपचार नहीं किया जाता तो वह गंभीर रूप लेकर पीरियोडोंटिस में बदल जाती है। पीरियोडोंटिस से पीड़ित व्यक्ति में मसूड़ों की अंदरूनी सतह और हड्डियां दांत से दूर हो जाती हैं। दांतों और मसूड़ों के बीच स्थित इस छोटी-सी जगह में गंदगी इकट्ठी होने लगती है और दांतों और मसूड़ों में संक्रमण फैल जाता है। अगर ठीक से इलाज न किया जाए तो दांतों के चारों ओर मौजूद ऊतक नष्ट होने लगते हैं। यह दांतों के लिए गंभीर स्थिति होती है। इससे दांत गिरने लगते हैं।
संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है ओरल हाइजीन
- मसूड़ों और दांतों की बीमारियां दरअसल बैक्टीरिया का संक्रमण है। ये बैक्टीरिया खाने के साथ हमारे रक्त में पहुंच जाते हैं और हमारे लिए कई घातक बीमारियों की आशंका बढ़ा देते हैं।
- जिन लोगों को मसूड़ों की बीमारी होती है, उन्हें हार्ट अटैक होने का खतरा दोगुना हो जाता है।
- हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ओरल इंफेक्शन से स्ट्रोक की आशंका भी बढ़ जाती है।
- डायबिटीज से मसूड़ों की बीमारियों की आशंका ही नहीं बढ़ती, बल्कि मसूड़ों की बीमारी से डायबिटीज की आशंका भी बढ़ जाती है।
- ओरल कैविटी में मौजूद बैक्टीरिया फेफड़ों में चले जाते हैं। इससे खासकर जिन्हें मसूड़ों की बीमारियां हैं, उन्हें श्वसन संबंधी बीमारी निमोनिया होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
- जिन गर्भवती महिलाओं को मसूड़ों की बीमारियां हैं, उनका बच्चा समय से पहले और कम भार का होता है।
दांतों को स्वस्थ रखने के टिप्स
- फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट और मुलायम ब्रश से दिन में दो बार दांत साफ करने की आदत डालें। इसके साथ जीभ की सफाई भी करें, क्योंकि बैक्टीरिया ज्यादातर यहीं पनपते हैं।
- दिन में एक बार फ्लॉस भी करें। इससे दांतों के बीच फंसे भोजन के टुकड़े निकल जाते हैं। 
- अधिक गर्म चीजें न खाएं।
- ज्यादा कड़क ब्रिसल वाले ब्रश से दांत साफ न करें।
- नॉनवेज खाने के बाद कुल्ला जरूर करें। इससे दांतों में फंसे रेशे भी निकल जाएंगे और गंध भी।
इन बातों का भी रखें ख्याल
साल में एक बार दांतों का चेकअप कराएं: दांतों में तकलीफ न हो, तब भी साल में एक बार दांतों का चेकअप जरूर कराएं। कभी-कभी बाहर से देखने पर दांत सामान्य लगते हैं, लेकिन कई बार अंदर ही अंदर उनमें कोई बीमारी पल रही होती है। शुरू में इसका पता नहीं चलता, लेकिन समय के साथ यह समस्या गंभीर होती जाती है। डेंटल चेकअप इस तरह की समस्याओं से बचाता है।
दो बार ब्रश करें: सुबह और रात को दो बार ब्रश करें। इसके अलावा कुछ भी खाने-पीने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें।
टूथपिक का प्रयोग न करें: अगर दांतों में खाना फंस जाए तो उसे टूथपिक से न निकालें। इससे मसूड़ों को नुकसान होता है। इस समस्या को नजरअंदाज भी न करें। डेंटिस्ट को दिखाएं।
तीन महीने में बदलें ब्रश: ज्यादा पुराना ब्रश मसूड़ों और दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए हर तीन महीने में ब्रश बदल लें।
घरेलू उपचार
- नींबू, पुदीने का रस तथा नमक एक गिलास गुनगुने पानी में मिला कर सुबह-शाम कुल्ला करें। मुंह से दुर्गंध नहीं आएगी।
- आधा कप गुनगुने पानी में पुदीने की पत्तियां मिला कर गरारा करें, इससे भी मुंह की दुर्गंध से निजात मिलेगी।
- दांतों की चमक बनाए रखने के लिए आधा चम्मच नमक में दस बूंद नींबू मिला लें। इस मिश्रण को दांतों पर लगा कर पांच मिनट के लिए छोड़ दें। फिर दांतों पर बिना पेस्ट लगाए ब्रश करें। दांत लंबे समय तक चमकेंगे।


Wednesday, March 20, 2013

Solar Airplane - Sunseeker II


The solar powered aircraft, the Sunseeker II will fly over Europe following its featured presentation at the e-flight expo(April 2-5)). The tour will be the largest journey for the Sunseeker since 1990, when its predecessor, Sunseeker I, crossed the United States in 21 flights, with 121 hours in the air. The new Sunseeker II has improved for better performance, including wing modifications, an increase in surface area for solar cells, more powerful motor and new lithium polymer batteries. The tour will cover 8 countries: Germany, Switzerland, Austria, Hungary, Slovenia, Italy, France and Spain. Designed by aircraft mastermind Eric Raymond. 06 more images after the break...







Pamban Bridge — India


The Pamban Bridge  is a cantilever bridge on the Palk Strait connects Rameswaram on Pamban Island to mainland India. It refers to both the road bridge and the cantilever railway bridge, though primarily it means the latter. It was India's first sea bridge. It is the second longest sea bridge in India (after Bandra-Worli Sea Link) at a length of about 2.3 km. The rail bridge is for the most part, a conventional bridge resting on concrete piers, but has a double leaf bascule section midway, which can be raised to let ships and barges pass through. The railway bridge is 6,776 ft (2,065 m) and was opened for traffic in 1914. The railroad bridge is a still-functioning double-leaf bascule bridge section that can be raised to let ships pass under the bridge.


The railway bridge historically carried metre-gauge trains on it, but Indian Railways upgraded the bridge to carry broad-gauge trains in a project that finished Aug. 12, 2007. Until recently, the two leaves of the bridge were opened manually using levers by workers. About 10 ships — cargo carriers, coast guard ships, fishing vessels and oil tankers — pass through the bridge every month. From the elevated two-lane road bridge, adjoining islands and the parallel rail bridge below can be viewed.

After completion of bridge metre-gauge lines were laid by them from Mandapam up to Pamban Station, from here the railway lines bifurcated into two directions one towards Rameshwaram about 6.25 miles (10.06 km) up and another branch line of 15 miles (24 km) terminating at Dhanushkodi. The section was opened to traffic in 1914. 09 more images after the break...



The noted boat mail ran on this track between 1915 and 1964 from Madras-Egmore up to Dhanushkodi, from where the passengers were ferried to Talaimannar in Ceylon. The metre-gauge branch line from Pamban Junction to Dhanushkodi was abandoned after it was destroyed in a cyclone in 1964.

According to Dr Narayanan, the bridge is located at the "world's second highly corrosive environment", next to Miami, US, making the construction a challenging job. The location is also a cyclone-prone high wind velocity zone. This Bridge consist of 143 piers and the centre span is a Schrezers rolling type lift span. It's 220 ft (67 m) long and each of 100 tonnes.

On 13 January 2013 the bridge suffered minor damages when a naval barge that went adrift close to the Pamban Rail Bridge has collided on the century old structure that's vying for UNESCO's heritage status.The ship that was towing a naval barge from Kolkata to a port near Mumbai first went aground hitting rocks on the January 10 following bad weather. Disaster followed as the vessel remained stuck just 50 metres away from the rail bridge. The barge that was afloat around 100 metres away hit the Pamban Rail Bridge.


A middle aged man was appointed to roll the wheels up and down when ships arrive. Once he saw a train slowly approaching, while he was pulling back the bridge after a ship quietly passed beneath. He had to pull back quickly or else there would be a fatal accident and thousands would have died.  At that time his 9 year old son came with lunch. When he saw his father struggling with the wheels, he kept the lunch box down and started helping him to roll the wheels to put the bridge back. Suddenly his son's finger got caught inside the wheel and he started crying out. At this time if the father tries to save his son, the bridge could not be put back on time. He had no other option but to ignore his son's cry. With all his strength he kept on rolling the wheels to down the bridge. As the wheels rolled on, his son slowly started slipping away into the huge machine. Tears rolled down his father's cheeks, but he ignored his son's cry. If he tried to save him, the train will surely fall into the sea and thousands of people will die. Slowly the boy's whole body fell into the machine and his father could hear his bones breaking one by one, until with a loud sound, his head cracked.


The train with thousands of passengers slowly rolled on the rails, without knowing what had happened there. Though this man performed his duty honestly he lost his only loving son. With extreme lamentation, he pulled out his son's body parts from the machine and held it close to his chest and cried bitterly. British Government honored him greatly and in memory of this incident they placed the picture at the entrance of the bridge.

This story is highly scattered all around the internet although at various forum discussions it has been seen that the above story is false. The bridge requires twelve people, six on each side, to manually operate its moving sections. Also, there is no such picture at the entrance of the bridge. And neither is this story known to locals as fact or hearsay from previous generations. The story seems to have been entirely manufactured on the internet.

The earliest known version of the story appears as Christian propaganda, and since then the story has been spread in many Catholic schools. The propaganda attempts to draw a parallel between the father's alleged sacrifice of his son, and the sacrifice of the Christian God in sending his son Jesus down to Earth. The propaganda itself, created in 2008, was not original, and was based off an award-winning 2003 Czech film, Most.









The Largest Aquarium in the World — Georgia Aquarium




The world’s largest aquarium is located in Atlanta, Georgia. It houses more than 120,000 animals, representing 500 species in 8.5 million gallons of water. There are 60 different habitats with 12,000 square feet of viewing windows, and it cost $290 million to build.

Georgia Aquarium was the result of the vision of one enterprising businessman Bernard Marcus, who dreamed of presenting Atlanta with an aquarium that would encourage both education and economic growth. Marcus was so inspired by aquariums that after visiting 56 of them in 13 countries with his wife, he donated $250 million toward what was to become Georgia Aquarium. Additional $40 million came in as corporate donations. The land was donated by the Coca Cola Company. 10 more images after the break...


The Georgia Aquarium has five separate galleries arranged around a central atrium. They are Georgia Explorer, Tropical Diver, Ocean Voyager, Cold-Water Quest and River Scout. Tanks within the galleries house a diverse population of animals, including whales, sharks, penguins, otters, electric eels, rays, seahorses, sea stars, crabs and a variety of fish of all sizes.

The Ocean Voyager tank, the largest habitat, holds three-fourths of the aquarium's water and the aquarium's central attraction – the whale shark. A slow-moving conveyor belt takes visitors through a 100-foot acrylic tunnel under the tank, letting them view the fish from below. Other aquarium exhibits include the 800,000 gallon beluga whale enclosure, smaller tanks and multiple touch tanks where visitors can get hands-on experience with aquatic animals.

  • Building and running such a huge complex is no easy task. The organization employs hundreds of staff that take care of everything from feeding the animals to cleaning the tanks, assisted by many dozens of computers that monitors tank levels, temperatures and pumping flow, all of which are critical to animal health and system operation.
  • Below are some statistics that will give you an idea of the scale of operation in this gigantic facility:
  • To fill the tanks, the aquarium pipes 8 million gallons of ordinary tap water mixed with 1.5 million pounds of salt to make it saline.
  • 218 pumps, 141 sand filters and 70 protein skimmers keep the tank waters clean and habitable. These pumps move 261,000 gallons of water per minute. The tank turnover time -- the amount of time it takes for all the water in a tank to be filtered and cleaned – is two hours.
  • To store food for the animals, the aquarium has a freezer that holds 20,000 pounds of food as well as a refrigerator that holds 6,000 pounds.
  • To treat sick animals, the Georgia Aquarium has a veterinary services and conservation medicine facility in a 5,800 square foot unit with 15 people on staff, and it houses 26 treatment tanks (think hospital beds). The unit is fully equipped with a surgery and radiography unit with endoscopy, ultrasound and x-ray machines.