पान किसानों के लिए अच्छी खबर है। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) न केवल पान किसानों को प्रशिक्षण देगा बल्कि पान की लुप्त हो रहीं प्रजातियों का संरक्षण भी करेगा। यही नहीं वह पान की नई प्रजातियों के लिए शोध भी करने की तैयारी कर रहा है। ताकि पान का स्वाद भी बना रहे और पान का पत्ता शीघ्र खराब भी न हो और देश-विदेश भेजने पर किसी पान में कोई कमी न निकले। महोबा में एनबीआरआइ का पान शोध केंद्र था। मगर राज्य सरकार से फंड न मिलने से बंद पड़े इस केंद्र को शुरू करने के लिए पान किसानों ने कई बार धरना-प्रदर्शन भी किया, लेकिन शुरू नहीं हो सका। अन्य फसलों की भांति पान किसानों को भी आपदा क्षतिपूर्ति देने के लिए कई बार किसानों की ओर से केंद्र व राज्य सरकार को पत्र भी लिखा गया। पान किसानों ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया सहित उद्यान विभाग के अधिकारियों से पान किसानों की समस्याएं दूर करने और पान की प्रजातियों को बचाने की मांग की थी। पान किसान यूनियन के महासचिव छोटेलाल चौरसिया का कहना है कि इसकी शुरुआत होने से प्रदेश भर के पान किसानों को फायदा होगा। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष डॉ.पीएल पुनिया 28 मार्च को शुरुआत करेंगे। राजधानी सहित महोबा, इलाहाबाद, जौनपुर, प्रतापगढ़, आजमगढ़, सुल्तानपुर, गाजीपुर, बलिया, हरदोई, कानपुर, सीतापुर, सोनभद्र, मिर्जापुर, अमेठी, वाराणसी, रायबरेली, उन्नाव, बांदा व बाराबंकी जिलों में पान की खेती होती है। देश में 30 हजार हेक्टेयर और प्रदेश में वर्तमान में 450 हेक्टेयर क्षेत्र में पान की खेती होती है। प्रदेश में दो लाख किसान खेती से जुड़े हैं जबकि 30 लाख लोग पान के व्यवसाय से जुड़े हैं। पान के निर्यात से हर वर्ष देश को 1.55 लाख अमेरिकी डॉलर की प्राप्ति होती है।