Saturday, March 23, 2013

ऊर्जा का जबर्दस्त सोत बनेगी जलती बर्फ



तेल और गैस के भारी आयात ने भारत का व्यापार घाटा बहुत बढ़ा दिया है। यह चीज देश की तेज आर्थिक वृद्धि की राह में रोड़ा बन रही है। लेकिन पिछले हफ्ते जापान ऑयल गैस एंड मेटल्स नैशनल कॉरपोरेशन (जेओजीएमईसी) की एक तकनीकी उपलब्धि हमारे लिए अंधेरे में आशा की किरण बनकर आई है। वे लोग समुद तल पर जमा मीथेन हाइड्रेट के भंडार से प्राकृतिक गैस निकालने में कामयाब रहे। इस चीज को आम बोलचाल में फायर आइस या जलती बर्फ भी कहते हैं, क्योंकि यह चीज सफेद ठोस क्रिस्टलाइन रूप में पाई जाती है और ज्वलनशील होती है। भारत के पास संसार के सबसे बड़े मीथेन हाइड्रेट भंडार हैं। तकनीकी प्रगति के जरिये अगर इसके दोहन का कोई सस्ता और सुरक्षित तरीका निकाला जा सका तो देश के लिए यह बहुत बड़ा वरदान साबित होगा।
गैस का भंडार
जेओजीएमईसी का कहना है कि 2016 तक वह इस स्त्रोत से वाणिज्यिक पैमाने पर गैस का उत्पादन शुरू कर सकता है। इस बीच चीन और अमेरिका ने भी फायर आइस की खोज और इसके प्रायोगिक उत्कर्षण को लेकर बड़े कार्यक्रम बनाए हैं। अफसोस की बात है कि भारत इस तस्वीर में कहीं नहीं है। दुनिया में इस चीज की कुल मात्रा के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। यह मात्रा 28 हजार खरब से लेकर 80 अरब खरब घन मीटर गैस के समतुल्य आंकी जाती है। संसार में मौजूद कुल 4400 खरब घन मीटर पारंपरिक गैस की तुलना में यह मात्रा कई गुना ज्यादा है। यह बात और है कि हाइड्रेट भंडारों के एक छोटे हिस्से का ही इस्तेमाल गैस उत्पादन में किया जा सकेगा।
जलती बर्फ का राज
मीथेन हाइड्रेट प्राकृतिक गैस और पानी का मिश्रण है। गहरे समुद्र तल पर पाई जाने वाली निम्न ताप और उच्च दाब की विशेष स्थितियों में यह ठोस रूप धारण कर लेता है। कनाडा और रूस के स्थायी रूप से जमे रहने वाले उत्तरी समुद्रतटीय इलाकों में यह जमीन पर भी पाया जाता है। इन जगहों से निकाले जाने के बाद इसे गरम करके या कम दबाव की स्थिति में लाकर (जेओजीएमईसी ने यही तकनीक अपनाई थी) इससे प्राकृतिक गैस निकाली जा सकती है। एक लीटर ठोस हाइड्रेट से 165 लीटर गैस प्राप्त होती है। यह जानकारी काफी पहले से है कि भारत के पास मीथेन हाइड्रेट के बहुत बड़े भंडार हैं। अपने यहां इसकी मात्रा का अनुमान 18,900 खरब घन मीटर का लगाया गया है। भारत और अमेरिका के एक संयुक्त वैज्ञानिक अभियान के तहत 2006 में चार इलाकों की खोजबीन की गई। ये थे- केरल-कोंकण बेसिन, कृष्णा गोदावरी बेसिन, महानदी बेसिन और अंडमान द्वीप समूह के आसपास के समुद्री इलाके। इनमें कृष्णा गोदावरी बेसिन हाइड्रेट के मामले में संसार का सबसे समृद्ध और सबसे बड़ा इलाका साबित हुआ। अंडमान क्षेत्र में समुद तल से 600 मीटर नीचे ज्वालामुखी की राख में हाइड्रेट के सबसे सघन भंडार पाए गए। महानदी बेसिन में भी हाइड्रेट्स का पता लगा।
बहरहाल, आगे का रास्ता आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से होकर गुजरता है। हाइड्रेट से गैस निकालने का किफायती तरीका अभी तक कोई नहीं खोज पाया है। उद्योग जगत का मोटा अनुमान है कि इस पर प्रारंभिक लागत 30 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू (मिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट) आएगी, जो एशिया में इसके हाजिर भाव का दोगुना और अमेरिका में इसकी घरेलू कीमत का नौगुना है। जेओजीएमईसी को उम्मीद है कि नई तकनीक और बड़े पैमाने के उत्पादन के क्रम में इस पर आने वाली लागत घटाई जा सकेगी। लेकिन पर्यावरण की चुनौतियां फिर भी अपनी जगह कायम रहेंगी। गैस निकालने के लिए चाहे हाइड्रेट को गरम करने का तरीका अपनाया जाए, या इसे कम दाब की स्थिति में ले जाने का, या फिर ये दोनों तरीके एक साथ अपनाए जाएं, लेकिन हर हाल में गैस की काफी बड़ी मात्रा रिसकर वायुमंडल में जाएगी और इसका असर पर्यावरण पर पड़ेगा। कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में प्राकृतिक गैस 15-20 गुना गर्मी रोकती है। पर्यावरण से जुड़ी इन आशंकाओं के चलते कई देशों ने अपने यहां शेल गैस का उत्पादन ठप कर दिया है और हाइड्रेट से गैस निकालने के तो पर्यावरणवादी बिल्कुल ही खिलाफ हैं। लेकिन शेल गैस के रिसाव को रोकना ज्यादा कठिन नहीं है। कौन जाने आगे हाइड्रेट गैस के मामले में भी ऐसा हो सके।
काफी पहले, सन 2006 में मुकेश अंबानी ने गैस हाइड्रेट्स के बारे में एक राष्ट्रीय नीति बनाने को कहा था, लेकिन आज तक दिशा में कुछ किया नहीं जा सका है। अमेरिका, जापान और चीन में हाइड्रेट्स पर काफी शोध चल रहे हैं लेकिन भारत में इस पर न के बराबर ही काम हो पाया है। राष्ट्रीय गैस हाइड्रेट कार्यक्रम के तहत पहला इसके भंडार खोजने के लिए पहला समुदी अभियान भी 2006 में चला था। दूसरे अभियान की तब से अब तक बात ही चल रही है। कुछ लोग इस उम्मीद में हैं कि अमेरिका और जापान जब गैस निकालने की तकनीक विकसित कर लेंगे तो हम इसे सीधे उनसे ही खरीद लेंगे। लेकिन यह उम्मीद बेमानी है। भारत के बड़े सबसे बड़े हाइड्रेट भंडार, जिनमें कृष्णा गोदावरी बेसिन भी शामिल है, समुदी चट्टानों की दरारों में हैं, जबकि जापान और अमेरिका में ये बलुआ पत्थरों में पाए जाते हैं। जाहिर है, अमेरिका और जापान की उत्कर्षण तकनीकें बिना सुधार के हमारे यहां काम नहीं आने वाली। अपनी तकनीकी क्षमता हमें खुद ही विकसित करनी होगी।
गलत प्राथमिकताएं
भारत के हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने काफी पहले एक राष्ट्रीय गैस हाइड्रेट शोध व विकास केंद्र स्थापित करने की गुजारिश की थी। इसे सरकारी निकाय न बनाया जाए। निजी क्षेत्र की तेल व गैस कंपनियों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही भारतीय समुद्री क्षेत्र में हाइड्रेट भंडारों की और ज्यादा खोज और पुष्टि के लिए जापान और अमेरिका के साथ कुछ और साझा अभियान भी चलाए जाने चाहिए। अभी तो ड्रिलिंग के जरिये निकाले गए हाइड्रेट्स के नमूनों को जांच के लिए विदेशी प्रयोगशालाओं में भेजा जा रहा है। यह दयनीय स्थिति हमारी गलत प्राथमिकताओं की ओर इशारा करती है, और हर हाल में इसे बदलना ही होगा।

जल है तो हम हैं



तुमने कई बार सुना होगा कि पानी के बिना हम जी नहीं सकते। पानी के बिना सब सूना है। पर क्या इस बात को महसूस भी किया है? यदि नहीं तो 22 मार्च को आ रहे विश्व जल दिवस पर तुम केवल एक दिन सुबह उठने से लेकर रात को सोते समय तक कब-कब तुमने पानी का इस्तेमाल होते हुए देखा, यह नोट करो। तुम्हें खुद ही समझ आ जाएगा कि पानी कितना जरूरी है। 
पानी अनमोल है। यह कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से ही लगा सकते हो कि अगर धरती पर पानी नहीं होगा तो न पेड़-पौधे होंगे, न जल की रानी मछली होगी, न शेर होगा, न तोते और गौरैया और न ही मनुष्य। छोटे-छोटे कीड़ों से लेकर बड़े पेड़ों को जीवित रहने के लिए पानी की जरूरत होती है। तुम ऐसा मान सकते हो कि जैसे सांस लेने के लिए हवा जरूरी है, वैसे ही जीने के लिए पानी।
हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है। पानी हमारे शरीर की कोशिकाओं और खून में होता है। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है। यहां तक कि खाना पचाने के लिए भी पानी की जरूरत होती है। साथ ही ऑक्सीजन लेने के लिहाज से भी पानी जरूरी होता है।
पानी की तीन अवस्थाएं होती हैं। ठोस, द्रव और गैस। ठोस पानी को बर्फ कहा जाता है, द्रव अवस्था में पानी हम हर रोज इस्तेमाल करते ही हैं। और जब पानी उबलकर भांप बनता है या सूर्य की किरणों से वाष्पीकृत होकर ऊपर चला जाता है तो यह उसकी गैस अवस्था होती है। गैस अवस्था ही बारिश होने का कारक बनती है। पृथ्वी में पानी सतह के ऊपर नदियों, झरनों के रूप में मिलता है। सतह के नीचे भी पानी होता है। तुम्हें यह जानकर हैरत होगी कि दुनिया की करीब 90त्नआबादी को सीधे तौर पर साफ पानी नहीं मिलता है।
18% पानी पीने लायक नहीं
दिल्ली एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किया गया 18% पानी पीने लायक नहीं होता है और शहर का हर पांचवां आदमी प्रदूषित पानी पीता है। दिल्ली में करीब 60% घरों में दिल्ली जल बोर्ड का पानी प्रयोग होता है। प्रदूषित पानी पीने से कॉलरा, टायफायड, पीलिया जैसी बीमारियां हो जाती हैं। दिल्ली में औसत रूप से हर व्यक्ति को पेरिस और एम्सटर्डम की तुलना में अधिक पानी मिलता है। यहां औसतन प्रति व्यक्ति को 191 लीटर पानी मिलता है, पर उन लोगों को जहां हर समय पानी उपलब्ध होता है, वहीं दिल्ली के कुछ इलाकों में एक दिन में मुश्किल से तीस मिनट पानी मिल पाता है। समाजसेवी और पर्यावरणविद् डॉ. संजय कुमार कहते हैं, 'इतना पानी पीने के बावजूद अगर पानी की परेशानी है तो उसका कारण पानी का सही वितरण न होना और ज्यादा व्यर्थ होना है।Ó
पानी से ही गुलजार है कुदरत की खूबसूरती
कहते हैं कि कुदरत ने अपनी खूबसूरती चप्पे-चप्पे पर बिखेरी है। लहराते पेड़-पौधे हों या कल-कल कर बहते झरने, सभी इस कायनात में चमत्कार की तरह लगते हैं। एक से एक सुंदर दृश्य मन में ताजगी भर देते हैं। दुनिया भर में फैली यह खूबसूरती पानी की वजह से ही है।
जोन्हा फॉल: यह झरना झारखंड में है। गौतम बुद्ध के नाम पर इस झरने का नाम गौतम धारा पड़ गया। पास ही में यहां दो बौद्ध मंदिर हैं, जो राजा बलदेव राय द्वारा बनवाए गए थे।
आंद्रपल्ली (अतिरापल्ली) फॉल: यह झरना केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है। इस झरने की लंबाई 80 फीट है। यह झरना कालकुंडी नदी पर है। 
धुंआधार फॉल: मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में यह झरना नर्मदा नदी पर स्थित है। यह जगह मार्बल रॉक के नाम से मशहूर है। 
केम्पटी फॉल: मंसूरी का यह फॉल उत्तरांचल का मुख्य आकर्षण है।
वसुधारा फॉल: यह झरना उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
दूधसागर फॉल: यह झरना गोवा में स्थित है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसका पानी दूध के समान है। यह मांडवी नदी पर है। यह भारत का पांचवां सबसे लंबा झरना है।
हम बनेंगे जल के रक्षक
ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखेंगे। 
पांच मिनट से ज्यादा शावर नहीं चलाएंगे। फव्वारे या टब में बैठकर नहाने से पानी अधिक खर्च होता है, इसलिए ऐसा करने से बचेंगे।
पेंट, थर्मामीटर, कीटनाशक और पारे को नदी, नाले और सीवर में नहीं डालेंगे। इससे न सिर्फ पानी को दोबारा साफ करने में कठिनाई होती है, बल्कि पानी में सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले जहरीले तत्व मिल जाते हैं। 
बारिश के पानी को इक_ा करके उसका इस्तेमाल गाड़ी धोने या पौधों को देने में करेंगे।
टॉयलेट में पानी की टंकी को आधा दबाएंगे
किसी भी पाइप या नल में से पानी टपक रहा है तो उसको ठीक करवाएंगे।
रीसाइकलिंग से बच सकता है पानी
क्या तुम जानते हो कि अगर गंदे पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो पानी की किल्लत को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। पानी की समस्या को हल करने में रीसाइकलिंग एक बेहतर विकल्प हो सकता है। दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में रीसाइकिल किए गए करीब 255 मिलियन गैलन पानी का प्रतिदिन प्रयोग पीने के अलावा अन्य कामों में भी होता है। कुछ पानी का प्रयोग दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के द्वारा बसों को धोने और साफ करने में प्रयोग होता है, तो कुछ पानी एनडीएमसी और सीपीडब्ल्यूडी द्वारा हॉर्टकिल्चर के लिए होता है।
बेशकीमती है पानी
पानी अपने कई गुणों के कारण बेहतर होता है। कल्पना कीजिए कि अगर पानी में ये गुण न हों तो क्या हो? अगर पानी के कोहेसिव और एडहेसिव गुण (जिसके कारण अणु आपस में जुड़ते हैं और दूर होते हैं) खत्म हो जाएं तो आईड्रॉप से बूंद नहीं गिरेगी।
डिटर्जेट के इस्तेमाल से उठने वाला झाग भी नहीं उठ सकेगा।
अगर पानी में घुलना बंद हो जाए तो
तुम चाय या कॉफी नहीं पी सकोगे।
साबुन से बर्तन-कपड़े नहीं धुल सकेंगे।
अगर पानी में हटने का गुण न हो तो 
नहाने के बाद शरीर नहीं सूखेगा।
न तो कार के वाइपर काम करेंगे और न ही घर की सफाई के लिए पानी का इस्तेमाल हो पाएगा।
जल का सच 
सोलर सिस्टम में धरती एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां पर नदियां और समुद्र हैं और बारिश होती है। 
एक व्यक्ति खाने के बिना एक महीने से अधिक जीवित रह सकता है, वहीं पानी के बिना एक हफ्ते से अधिक जीवित रहना मुश्किल होता है। 
धरती पर 75 प्रतिशत पानी है। 
पृथ्वी का 97 प्रतिशत पानी समुद्रों में है। सिर्फ तीन प्रतिशत पानी का प्रयोग ही पीने के लिए किया जाता है। 
एक गैलन पानी 3.7865 लीटर पानी के बराबर होता है। 
दुनिया के करीब आधे स्कूलों में साफ पानी उपलब्ध नहीं है। 
विश्व की सबसे लंबी नदी नील है।
पानी से बिजली का निर्माण भी किया जाता है। दुनिया में कई हाइड्रॉलिक पावर स्टेशन लगे हैं। 
बीते सौ सालों में दुनिया के आधे से अधिक जलाशय गुम हो गए हैं।
तेल की एक बूंद से 25 लीटर पानी पीने लायक नहीं रहता।