देश के नए रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर की अध्यक्षता में 22 नवम्बर को रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की पहली बैठक ऐतिहासिक बन गई क्योंकि बोफोर्स तोपों के सौदे में दलाली के भूत से बाहर निकलकर रक्षा मंत्रालय ने तकरीबन 28 वर्षो बाद 15750 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय सेना के लिए नई तोपें खरीदने का फैसला किया। उल्लेखनीय है कि अस्सी के दशक में बोफोर्स तोप घोटाले के बाद से लेकर अब तक थल सेना के लिए कोई तोप नहीं खरीदी जा सकी थी। अब नई सरकार ने लम्बे समय से तोप खरीद की रुकी हुई प्रक्रिया को गति देने की कोशिश की है। डीएसी की यह बैठक करीब दो घंटे चली जिसमें थल सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा, नौसेना प्रमुख एडमिरल आरके धवन, रक्षा सचिव आरके माथुर और रक्षा उत्पादन सचिव जीसी पति उपस्थित थे। बैठक में सैन्य जरूरतों के मद्देनजर 155 मिलीमीटर 52 कैलिबर की 814 तोपें (बड़ी माउंटेनगन) खरीदे जाने का निर्णय हुआ। यह रक्षा खरीद प्रक्रिया मेक इन इंडिया श्रेणी के तहत पूरी की जाएगी। तोप सौदा घरेलू उत्पादन बढ़ाने की योजना के अंतर्गत किया गया है। समझौते के तहत पहली सौ तोपें तैयार हालत में प्राप्त होंगी और इसके बाद शेष 714 का निर्माण भारत में ही किया जाएगा। हालांकि इस सौदे को अंतिम रूप लेने में अभी कुछ समय और लगेगा। थल सेना के इस प्रस्ताव के लिए अब निविदा (आरएफपी) आमंत्रित की जाएंगी। निविदा आने पर परीक्षण प्रक्रिया पूरी की जाएगी और उसके बाद तोप खरीद प्रस्ताव हकीकत में सामने आ जाएगा।
बैठक में थलसेना की तोपों की खरीद के अलावा वायुसेना के लिए चार इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की खरीद के लिए 7160 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की गई। वायु सेना के पास ऐसे पांच सिस्टम पहले से मौजूद हैं। रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने सरकार की मेक इन इंडिया योजना को आगे बढ़ाने की र्चचा करते हुए कहा कि अधिक से अधिक रक्षा उत्पादन देश में हो, इसके तरीके व उपाय खोजने होंगे और वे तेज व पारदर्शी निर्णय लेने की प्रक्रिया को जारी रखेंगे। बैठक में यह भी तय किया गया कि अब रक्षा खरीद परिषद की बैठक महीने में एक से अधिक बार भी हो सकती है। इससे पहले अधिक मामले होने पर ही परिषद की बैठक बुलाई जाती थी। भारतीय सेना में तोपखाना के नाम पर देश के पास कुछ खास प्रकार की ही हथियार पण्रालियां मौजूद हैं जिनमें पिनाका रॉकेट सिस्टम, स्मर्च रॉकेट सिस्टम, 155 एम.एम. 45 कैलिबर, 155 एम.एम. 39 कैलिबर एवं ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम प्रमुख हैं। ये पण्रालियां अति आधुनिक नहीं हैं इसीलिए भारतीय थल सेना एवं रक्षा मंत्रालय सेना के तोपखाने के आधुनिकीकरण की तैयारी में लगे हुए हैं। तोपों की खरीद में विलम्ब से सेना की तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और भारतीय सेना का तोपखाना पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रही आधुनिकतम तोपों से वंचित था। अब सेना 1970 के दशक वाली तोपों को हटाकर आधुनिक तकनीक वाली तोपों से लैस हो जाएगी।
सेना पिछले लगभग 18 वर्षो से 155 मिलीमीटर और 52 कैलिबर की खींच कर ले जाई जा सकने वाली 400 तोपें, 145 बेहद हल्की तोपें तथा पहियों वाली खुद चलने में सक्षम 140 तोपें खरीदने की कोशिश कर रही थी। अब इनके प्राप्त होने की उम्मीद भी बढ़ गई है। भारत की आवश्यकताओं के हिसाब से नई तोपें भरोसेमंद एवं अत्यन्त उपयोगी होंगी। इनको सरलता के साथ हवाई जहाज द्वारा इधर-उधर लाया व ले जाया जा सकेगा। इस कारण इन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से तैनात करने किया जा सकेगा। ये काफी अत्याधुनिक किस्म की तोपें हैं। भारतीय सेना की योजना के मुताबिक इन हॉवित्जर तोपों को लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा। इनकी तैनाती के बाद ऊंचाई पर स्थित चौकियां युद्ध के लिए सक्षम हो जाएंगी। उत्तरी मोर्चे पर यही चौकियां युद्ध का मुख्य मैदान होंगी। इस तरह भारत की तोपखाना ताकत अत्यन्त बढ़ जाएगी। चूंकि तोपों की खरीद में लगातार विलम्ब हो रहा था इसलिए देश में रक्षा उत्पादन की तस्वीर बदलने वाले एक कार्यक्रम को बढ़ाते हुए बोफोर्स जैसी 100 तोपें अपने यहां निर्मित करवाने का फैसला सन 2012 में लिया गया था। सेना ने 155 मिलीमीटर की 100 तोपें खरीदने का आदेश आयुध कारखाना बोर्ड को दे रखा है और इन तोपों के निर्माण की योजना को एक निश्चित समय में पूरा करने को कहा था। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन का पुणो स्थित आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (ए.आर.डी.ए.) सेना के लिए 155 मिलीमीटर की 52 कैलिबर की तोप विकसित कर रहा है। इनकी खास बात यह है कि इसकी लम्बाई बैरल के व्यास (155 मिलीमीटर) से 52 गुना अधिक है। इस तरह यह तोप देश के भीतर बनने वाली सबसे लम्बी तोप होगी। इसकी मारक क्षमता भी ज्यादा होगी। अब तक जो तोपें इस्तेमाल में हैं, उनकी मारक क्षमता काफी कम है। इससे भारतीय सेना की मारक क्षमता अत्यन्त मजबूत हो जाएगी। इससे पहले रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन सेना के लिए 105 मिलीमीटर की तोपें बना चुका है जो आज भी थल सेना की सेवा में हैं। विदित हो कि जब बोफोर्स तोपों की खरीद की गई थी तभी से इनके उत्पादन की तकनीक भारत में आ गई थी। उस समय लिया गया यह फैसला रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल करने का एक बड़ा कदम था। इधर इतने दिनों में यह अनुभव सेना ने भी किया कि देश में तोपों का उत्पादन प्रारम्भ किया जाना विदेशी निर्भरता कम करने के लिए आवश्यक है। इन स्वदेशी तोपों का विकास जबलपुर के तोप कारखाने में किया जाएगा। इसके बाद इनका निर्माण कोलकाता स्थित कारखाने में किया जाएगा। तोपों की कमी के संकट से गुजर रही सेना के लिए स्वदेशी तोपों का दूसरा मॉडल भी तैयार किया जा रहा है। यह तोप भी देश के लिए कॉफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। अक्टूबर 2011 में रक्षा खरीद परिषद द्वारा लिए गए फैसले के मुताबिक आर्डिनेन्स कारखाना बोर्ड को 39 कैलिबर की 155 एमएम (एफ.एच. 77 बी 02) तोपों के दो प्रोटोटाइप तैयार करने हैं। इसके साथ ही बोर्ड को 45 कैलिबर की 155 एम.एम. हॉविट्जर तोप का उन्नत मॉडल भी तैयार करना है। उल्लेखनीय है कि स्वीडन की एबी बोफोर्स कम्पनी के साथ हुए तकनीकी अनुबन्ध के तहत आयुध कारखाना बोर्ड 155 मिलीमीटर की हॉविट्जर तोपों का निर्माण कर रहा है। स्वीडन की एबी बोफोर्स कम्पनी के साथ हुए लाइसेंस समझौते में दोनों तरह की तोपों में गोला बारूद के घरेलू निर्माण के प्रावधान शामिल हैं। निश्चित है कि इन आधुनिक किस्म की तोपों के आने से भारतीय थल सेना का तोपखाना अत्यन्त मजबूत हो जाएगा।
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