Wednesday, May 8, 2013
मौसमी मर्जो को दें मात
गर्मिया दस्तक दे चुकी है। आखें शरीर का बेहद सवेदनशील अंग है। इसलिए गर्मियों के मौसम का दुष्प्रभाव आखों पर भी पड़ता है। आखों की कई बीमारिया जैसे फ्लू, सूजी हुई और थकी-थकी लाल आखें व ड्राई आई आदि के मामले मौजूदा मौसम में कहींज्यादा सामने आते हैं। इसके अलावा इस मौसम में पाचन तत्र से सबधित सक्रमण व गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन आदि के मामले कहीं ज्यादा सामने आते हैं, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इन रोगों से राहत पायी जा सकती है..
नयनों की सेहत को न करें नजरअंदाज
आई फ्लू: आखों पर वाइरस के सक्रमण को आई फ्लू कहते हैं, जो आखों में सफेद दिखने वाले भाग पर चढ़ी झिल्ली को नुकसान पहुचाता है। इस फ्लू का वाइरस गदी उगलियों, गदे पानी, मक्खियों, धूल-धुआ और गदगी के माध्यम से तेजी से फैलता है। इस समस्या के दौरान आखों से निरतर पानी सरीखा द्रव निकलता है। आखों में दर्द और जलन भी बनी रहती है और पलकें सूजकर लाल हो जाती है।
फोटो-फोबिया: यह भी आई फ्लू का ही एक रूप है। पीडि़त को धूप में जाते समय दिक्कत होती है। आखों को धूप और तेज रोशनी चुभती है। इससे पीडि़त आखों को पूरी तरह से नहीं खोल पाता । आखों में दर्द व थकान भी महसूस होती है.
ड्राई आई: गर्मियों में बढ़ते हुए प्रदूषण और कंप्यूटर पर लबे समय तक काम करने की वजह से शुष्क आखों की परेशानी बढ़ सकती है। इस समस्या के दौरान आखों में खुजली या जलन होने लगती है। आखों से कभी-कभी कीचड़ निकलता है। इसी तरह अपने काम के सिलसिले में प्रदूषित क्षेत्रों से प्रतिदिन गुजरने वालों को भी एलर्जी की समस्या और ड्राई आई के लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
इन बातों पर दें ध्यान
-आखों के किसी भी सक्रमण से ग्रस्त होने के बाद साफ-सफाई का खास ख्याल रखें।
-आखों को बार-बार हाथ से न छुएं और न ही रगड़ें। इन्हें छूने से पहले साबुन से हाथ धो लें।
-पीडि़त द्वारा इस्तेमाल की हुई किसी भी वस्तु को अपने सपर्क में न लाएं।
-कड़कड़ाती धूप में अल्ट्रावायलेट किरणें आप की आखों पर सीधे तौर से प्रहार करती है। इसीलिए धूप में जाते समय छतरी का उपयोग करे और आखों पर धूप का चश्मा लगाएं जिससे आप की आखों का बचाव हो सके। अपना चश्मा किसी अन्य व्यक्ति को पहनने के लिए न दें।
-अगर आप पॉवर लेंस लगाते है तो भी आप को धूप का चश्मा पहनना चाहिए ताकि अल्ट्रावायलेट किरणें आखों को नुकसान न पहुचा सकें।...
-आखों पर दिन में कई बार ठडे पानी के छींटे मारे। आखों पर खीरे के टुकड़े या रुई के फाहे में गुलाबजल डालकर आखों पर रखें। आखों को ताजगी मिलेगी।
-आखों के लिए स्वस्थ भोजन और अच्छी नींद से कभी भी समझौता न करे। खाने में हरी सब्जिया, अंकुरित अनाज आदि का अधिकाधिक प्रयोग करें।
-दिन में पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, ताकि आप के शरीर की गदगी बाहर निकले और शरीर के अंगों में नमी बनी रहे। यह नमी आंखों के लिए भी जरूरी है।
-डॉक्टर के परामर्श से आखों में ऐसी दवाएं डालें, जो आखों को शुष्क होने से रोकें और सक्रमण न पैदा होने दें। आखों के आसपास सनस्क्रीन न लगाएं। इनसे आखों को नुकसान हो सकता है।
-कंप्यूटर पर काम करते समय बीच-बीच में ब्रेक लें और पलकें झपकाते रहे।
इन रोगों की न करें अनदेखी
जब कभी मौसम बदलता है, तब कुछ खास बीमारिया सिर उठाती हैं। इसका कारण यह है कि मौसम के बदलने के कारण पर्यावरण और उसके तापक्रम में भी बदलाव आ जाता है। हवा में विभिन्न प्रकार के तत्व या कण (एलर्जेन) फैल जाते हैं। जैसे सर्दियों में तापमान के अत्यधिक कम होने के कारण हाईब्लड प्रेशर और मस्तिष्क आघात(स्ट्रोक) होने के मामले बढ़ जाते हैं। मौजूदा मौसम (बसत या स्प्रिंग) में दमा, स्किन एलर्जी, त्वचा सबधी सक्रमण और हाजमे से सबधित सक्रमण व बीमारिया (गैस्ट्रोइंटेस्टाइल इंफेक्शन) जैसे डायरिया व डीसेन्ट्री आदि की शिकायतें बढ़ जाती हैं।
कुछ सुझाव
-इस मौसम में धूल भरी तेज हवा चलने से और पराग कणों(पॉलेन) के हवा के जरिये प्रसारित होने पर दमा सबधी शिकायत होने का जोखिम बढ़ जाता है। दमा की शिकायत होने पर डॉक्टर के परामर्श से इनहेलर व अन्य दवाएं ले। खुले स्थानों पर न जाएं, धूल आदि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगा सकते हैं।
-तेज हवा के कारण धूल व पराग कणों के कारण त्वचा में एलर्जी से सबधित शिकायतें बढ़ जाती हैं। इनसे राहत पाने के लिए डॉक्टर के परामर्श से एंटी एलर्जिक दवा ले सकते हैं।
-मौजूदा मौसम में जीवाणुओं और फंगस के दुष्प्रभाव से त्वचा सबधी सक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं। जीवाणु और फंगस गदगी के कारण बहुत तेजी से फैलते हैं। इसलिए शरीर को स्वच्छ रखें। कीटाणुनाशक साबुन से नहाएं।
-इस मौसम में पेट और आतों में सक्रमण (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन) से सबधित शिकायतें होने की आशका बढ़ जाती है। डायरिया व डीसेन्ट्री और पेट सबधी शिकायतों से बचने के लिए घर में स्वच्छता से तैयार किया भोजन ही ग्रहण करें। सड़क किनारे लगे ठेलों पर बिकने वाले खाद्य पदार्र्थो से परहेज करें। कच्चे खाद्य पदार्थ व कच्ची सब्जिया न खाएं। जिन कटे-खुले फलों व सब्जियों पर मक्खिया व अन्य कीट बैठे हुए हों, उनके खाने से वाइरल हेपेटाइटिस होने की आशका काफी बढ़ जाती है। जिन फलों या सब्जियों की सिचाई गदे प्रदूषित पानी से की जाती है, वे शरीर व खासकर पेट के लिए अत्यत नुकसानदेह होती हैं।
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