Saturday, March 7, 2015

आओ करें 'सेक्स' की बातें


कैसे आती है उत्तेजना 

पेनिस में इरेक्शन विचार से होता है, स्पर्श से होता है। दिमाग में एक सेक्स सेंटर है। जब वह उत्तेजित होता है तो मेसेज पेनिस की तरफ जाता है। बदन में खून का प्रवाह तेज हो जाता है। पूरे शरीर में पेनिस में खून का प्रवाह सबसे ज्यादा तेज होता है। इसी वजह से लिंग में उत्तेजना ओर स्त्रियों की योनि में गीलापन आता है। पेनिस के इरेक्शन के लिए योग्य हॉर्मोन का होना जरूरी है। पुरुषों में 60 साल के बाद और महिलाओं में 45 साल के बाद हॉर्मोन की कमी होने लगती है। 

इरेक्टाइल डिस्फंक्शन 
क्या है: सेक्स के दौरान या उससे पहले पेनिस में इरेक्शन (तनाव) के खत्म हो जाने को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या नपुंसकता कहते हैं। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन कई तरह का हो सकता है। हो सकता है, कुछ लोगों को बिल्कुल भी इरेक्शन न हो, कुछ लोगों को सेक्स के बारे में सोचने पर इरेक्शन हो जाता है, लेकिन जब सेक्स करने की बारी आती है, तो पेनिस में ढीलापन आ जाता है। इसी तरह कुछ लोगों में पेनिस वैजाइना के अंदर डालने के बाद भी इरेक्शन की कमी हो सकती है। इसके अलावा, घर्षण के दौरान भी अगर किसी का इरेक्शन कम हो जाता है, तो भी यह इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की निशानी है। इरेक्शन सेक्स पूरा हो जाने के बाद यानी इजैकुलेशन के बाद खत्म होना चाहिए। कई बार लोगों को वहम भी हो जाता है कि कहीं उन्हें इरेक्टाइल डिस्फंक्शन तो नहीं। सीधी सी बात है कि आप जिस काम को करने की कोशिश कर रहे हैं, वह काम अगर संतुष्टिपूर्ण तरीके से कर पाते हैं तो सब ठीक है और नहीं कर पा रहे हैं तो समस्या हो सकती है। जिन लोगों में यह दिक्कत पाई जाती है, वे चिड़चिड़े हो सकते हैं और उनका कॉन्फिडेंस लेवल भी कम हो सकता है। 

वजह: इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह शारीरिक भी हो सकती है और मानसिक भी। अगर किसी खास समय इरेक्शन होता है और सेक्स के समय नहीं होता, तो इसका मतलब यह समझना चाहिए कि समस्या मानसिक स्तर की है। खास समय इरेक्शन होने से मतलब है- सुबह सोकर उठने पर, पेशाब करते वक्त, मास्टरबेशन के दौरान या सेक्स के बारे में सोचने पर। अगर इन स्थितियों में भी इरेक्शन नहीं होता तो समझना चाहिए कि समस्या शारीरिक स्तर पर है। अगर समस्या मानसिक स्तर पर है तो साइकोथेरपी और डॉक्टरों द्वारा बताई गई कुछ सलाहों से समस्या सुलझ जाती है। 

शारीरिक वजह ये चार हो सकती हैं : चार छोटे एस (S) बड़े एस यानी सेक्स को प्रभावित करते हैं। ये हैं : शराब, स्मोकिंग, शुगर और स्ट्रेस। 

हॉर्मोंस डिस्ऑर्डर्स इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की एक खास वजह है। 

पेनिस के सख्त होने की वजह उसमें खून का बहाव होता है। जब कभी पेनिस में खून के बहाव में कमी आती है तो उसमें पूरी सख्ती नहीं आ पाती और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। कुछ लोगों के साथ ऐसा भी होता है कि शुरू में तो पेनिस के अंदर ब्लड का फ्लो पूरा हो जाता है, लेकिन वैजाइना में एंटर करते वक्त ब्लड का यह फ्लो वापस लौटने लगता है और पेनिस की सख्ती कम होने लगती है। 

नर्वस सिस्टम में आई किसी कमी के चलते भी यह समस्या हो सकती है। यानी न्यूरॉलजी से जुड़ी समस्याएं भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह हो सकती हैं। 

हमारे दिमाग में सेक्स संबंधी बातों के लिए एक खास केंद्र होता है। इसी केंद्र की वजह से सेक्स संबंधी इच्छाएं नियंत्रित होती हैं और इंसान सेक्स कर पाता है। इस सेंटर में अगर कोई डिस्ऑर्डर है, तो भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन हो सकता है। 

कई बार लोगों के मन में सेक्स करने से पहले ही यह शक होता है कि कहीं वे ठीक तरह से सेक्स कर भी पाएंगे या नहीं। कहीं पेनिस धोखा न दे जाए। मन में ऐसी शंकाएं भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह बनती हैं। इसी डर की वजह से लॉन्ग-टर्म में व्यक्ति सेक्स से मन चुराने लगता है और उसकी इच्छा में कमी आने लगती है। 

डॉक्टरों का मानना है कि 80 फीसदी मामलों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह शारीरिक होती है, बाकी 20 फीसदी मामले ऐसे होते हैं जिनमें इसके लिए मानसिक कारण जिम्मेदार होते हैं। 

ट्रीटमेंट 
पहले इस समस्या को आहार-विहार और कसरत करने से ठीक करने की कोशिश की जाती है, लेकिन जब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता तो कोई भी ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले डॉक्टर समस्या की असली वजह का पता लगाते हैं। इसके लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। वजह के अनुसार आमतौर पर इलाज के तरीके ये हैं: 

1. हॉर्मोन थेरपी : अगर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह हॉर्मोन की कमी है तो हॉर्मोन थेरपी की मदद से इसे दो से तीन महीने के अंदर ठीक कर दिया जाता है। इस ट्रीटमेंट का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। 

2. ब्लड सप्लाई : जब कभी पेनिस में आर्टरीज की ब्लॉकेज की वजह से ब्लड सप्लाई में कमी आती है, तो दवाओं की मदद से इस ब्लॉकेज को खत्म किया जाता है। इससे पेनिस में ब्लड की सप्लाई बढ़ जाती है और उसमें तनाव आने लगता है। 

3. सेक्स थेरपी : कई मामलों में समस्या शारीरिक न होकर दिमाग में होती है। ऐसे मामलों में सेक्स थेरपी की मदद से मरीज को सेक्स संबंधी विस्तृत जानकारी दी जाती है, जिससे वह अपने तरीकों में सुधार करके इस समस्या से बच सकता है। 

4. वैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा : वैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा जैसे ड्रग्स की मदद से भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को दूर किया जा सकता है। वैसे कुछ डॉक्टरों का मानना है कि वैक्यूम पंप और इंजेक्शन थेरपी अब पुराने जमाने की बात हो चुकी हैं। 

वैक्यूम पंप : आजकल बाजार में कई तरह के वैक्यूम पंप मौजूद हैं। रोज अखबारों में इसके तमाम ऐड आते रहते हैं। इसकी मदद से बिना किसी साइड इफेक्ट के इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का हल निकाला जा सकता है। वैक्यूम पंप एक छोटा सा इंस्ट्रूमेंट होता है। इसकी मदद से पेनिस के चारों तरफ 100 एमएम (एचजी) से ज्यादा का वैक्यूम बनाया जाता है जिससे पेनिस में ब्लड का फ्लो बढ़ने लगता है, और तीन मिनट के अंदर उसमें पूरी सख्ती आ जाती है। लगभग 80 फीसदी लोगों को इससे फायदा हो जाता है। चूंकि इसमें कोई दवा नहीं दी जाती है, इसलिए इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। वैक्यूम पंप आमतौर पर उन लोगों के लिए है जो 50 की उम्र के आसपास पहुंच गए हैं। यंग लोगों को इसकी सलाह नहीं दी जाती है, फिर भी जो भी इसका इस्तेमाल करे, उसे डॉक्टर की सलाह जरूर ले लेनी चाहिए। 

वायग्रा : इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए वायग्रा का इस्तेमाल अच्छा ऑप्शन है, लेकिन इसका इस्तेमाल किसी भी सूरत में बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं करना चाहिए। वायग्रा में मौजद तत्व उस केमिकल को ब्लॉक कर देते हैं, जो पेनिस में होने वाले ब्लड फ्लो को रोकने के लिए जिम्मेदार है। इससे पेनिस में ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है और फिर इरेक्शन आ जाता है। वायग्रा इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को ठीक करने में फायदेमंद तो साबित होती है, लेकिन यह महज एक टेंपररी तरीका है। इससे समस्या की वजह ठीक नहीं होती। 

इनका असर गोली लेने के चार घंटे तक रहता है। वायग्रा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेनी चाहिए। कई मामलों में इसे लेने के चलते मौत भी हुई हैं। गोली लेने के 15 मिनट बाद असर शुरू हो जाता है। 

अगर हाई और लो ब्लडप्रेशर, हार्ट डिजीज, लीवर से संबंधित रोग, ल्यूकेमिया या कोई एलर्जी है तो वायग्रा लेने से पहले विशेष सावधानी रखें और डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ही चलें। 

सर्जरी : जब ऊपर दिए गए तरीके फेल हो जाते हैं, तो अंतिम तरीके के रूप में पेनिस की सर्जरी की जाती है। 

प्रीमैच्योर इजैकुलेशन 
प्रीमैच्योर इजैकुलेशन या शीघ्रपतन पुरुषों का सबसे कॉमन डिस्ऑर्डर है। सेक्स के लिए तैयार होते वक्त, फोरप्ले के दौरान या पेनिट्रेशन के तुरंत बाद अगर सीमेन बाहर आ जाता है, तो इसका मतलब प्रीमैच्योर इजैकुलेशन है। ऐसी हालत में पुरुष अपनी महिला पार्टनर को पूरी तरह संतुष्ट किए बिना ही फारिग हो जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पुरुष का अपने इजैकुलेशन पर कोई अधिकार नहीं होता। आदर्श स्थिति यह होती है कि जब पुरुष की इच्छा हो, तब वह इजैकुलेट करे, लेकिन प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की स्थिति में ऐसा नहीं होता। 

सेरोटोनिन जैसे न्यूरो ट्रांसमिटर्स की कमी से प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की समस्या हो सकती है। 

यूरेथेरा, प्रोस्टेट आदि में अगर कोई इंफेक्शन है, तो भी प्रीमैच्योर इजैकुलेशन हो सकता है। 

दिमाग में मौजूद सेक्स सेंटर एरिया में अगर कोई डिस्ऑर्डर है तो भी सीमेन का डिस्चार्ज तेजी से होता है। 

कुछ लोगों के पेनिस में उत्तेजना पैदा करने वाले न्यूरोट्रांसमिटर्स ज्यादा संख्या में होते हैं। इनकी वजह से ऐसे लोगों में टच करने के बाद उत्तेजना तेजी से आ जाती है और वे जल्दी क्लाइमैक्स पर पहुंच जाते हैं। 

कई बार एंग्जायटी, टेंशन और सीजोफ्रेनिया की वजह से भी ऐसा हो सकता है। 

दवाएं : प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की वजह को जानने के बाद उसके मुताबिक खाने की दवाएं दी जाती हैं। इनकी मदद से प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। इसमें करीब दो महीने का वक्त लगता है। इन दवाओं के कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं। 

इंजेक्शन थेरपी: अगर खाने की दवाओं से काम नहीं चलता तो इंजेक्शन थेरपी दी जाती है। इनसे तीन मिनट के अंदर पेनिस हार्ड हो जाता है और यह हार्डनेस 30 मिनट तक बरकरार रहती है। इसकी मदद से कोई भी शख्स सही तरीके से सेक्स कर सकता है। ये इंजेक्शन कुछ दिनों तक दिए जाते हैं। इसके बाद खुद-ब-खुद उस शख्स का अपने इजैकुलेशन पर कंट्रोल होने लगता है और फिर इन इंजेक्शन को छोड़ा जा सकता है। 

टोपिकल थेरपी : यह टेंपररी ट्रीटमेंट है। इसमें कुछ खास तरह की क्रीम का यूज किया जाता है। इन क्रीम की मदद से डिस्चार्ज का टाइम बढ़ जाता है। इनका भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। 

सेक्स थेरपी : दवाओं के साथ मरीज को कुछ एक्सरसाइज भी सिखाई जाती हैं। ये हैं : 

स्टॉप स्टार्ट टेक्निक : पार्टनर की मदद से या मास्टरबेशन के माध्यम से उत्तेजित हो जाएं। जब आपको ऐसा लगे कि आप क्लाइमैक्स तक पहुंचने वाले हैं, तुरंत रुक जाएं। खुद को कंट्रोल करें और सुनिश्चित करें कि इजैकुलेशन न हो। लंबी गहरी सांस लें और कुछ पलों के लिए रिलैक्स करें। कुछ पलों बाद फिर से पेनिस को उत्तेजित करना शुरू कर दें। जब क्लाइमैक्स पर पहुंचने वाले हों, तभी रोक लें और रिलैक्स करें। इस तरह बार बार दोहराएं। कुछ समय बाद आप महसूस करेंगे कि शुरू करने और स्टॉप करने के बीच का समय धीरे धीरे ज्यादा हो रहा है। इसका मतलब है कि आप पहले के मुकाबले ज्यादा समय तक टिक रहे हैं। लगातार प्रैक्टिस करने से इजैकुलेशन कब हो इस पर काबू पाया जा सकता है। 

कीजल एक्सरसरइज : कीजल एक्सरसाइज न सिर्फ प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को कंट्रोल करने में सहायक है, बल्कि प्रोस्टेट से संबंधित समस्याएं भी इससे ठीक की जा सकती हैं। इसके लिए पेशाब करते वक्त स्क्वीज, होल्ड, रिलीज पैटर्न अपनाना होता है। यानी पेशाब का फ्लो शुरू होते ही मसल्स का स्क्वीज करें, कुछ पलों के लिए रुकें और फिर से रिलीज कर दें। इस दौरान इस प्रॉसेस का बार बार दोहराएं। इन सेक्स एक्सरसाइज की प्रैक्टिस अगर कोई शख्स चार हफ्ते तक लगातार कर लेता है तो उसके बाद वह 8 से 10 मिनट तक बिना इजैकुलेशन के इरेक्शन बरकरार रख सकता है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि काफी टाइम बाद सेक्स करने से भी व्यक्ति जल्दी स्खलित हो जाता है। ऐसे मामलों में इन एक्सरसाइजों को कर लिया जाए तो इस समस्या से भी निजात पाई जा सकती है। 

मास्टरबेशन 
सेक्स के दौरान पेनिस जो काम योनि में करता है, वही काम मास्टरबेशन के दौरान पेनिस मुट्ठी में करता है। मास्टरबेशन युवाओं का एक बेहद सामान्य व्यवहार है। जिन लोगों के पार्टनर नहीं हैं, उनके साथ-साथ मास्टरबेशन ऐसे लोगों में भी काफी कॉमन है, जिनका कोई सेक्सुअल पार्टनर है। जिन लोगों के सेक्सुअल पार्टनर नहीं हैं या जिनके पार्टनर्स की सेक्स में रुचि नहीं है, ऐसे लोग अपनी सेक्सुअल टेंशन को मास्टरबेशन की मदद से दूर कर सकते हैं। जो लोग प्रेग्नेंसी और एसटीडी के खतरों से बचना चाहते हैं, उनके लिए भी मास्टरबेशन उपयोगी है। 

नॉर्मल: मास्टरबेशन बिल्कुल नॉर्मल है। सेक्स का सुख हासिल करने का यह बेहद सुरक्षित तरीका है और ताउम्र किया जा सकता है, लेकिन अगर यह रोजमर्रा की जिंदगी को ही प्रभावित करने लगे तो इसका सेहत और दिमाग दोनों पर गलत असर हो सकता है। 

कुछ तथ्य 
सामान्य सेक्स के तीन तरीके होते हैं - पार्टनर के साथ सेक्स, मास्टरबेशन और नाइट फॉल। अगर पार्टनर से सेक्स कर रहे हें तो जाहिर है सीमेन बाहर आएगा। सेक्स नहीं करते, तो मास्टरबेशन के जरिये सीमेन बाहर आएगा। अगर कोई शख्स यह दोनों ही काम नहीं करता है तो उसका सीमेन नाइट फॉल के जरिये बाहर आएगा। सीमेन सातों दिन और चौबीसों घंटे बनता रहता है। सीमेन बनता रहता है, खाली होता रहता है। 

मास्टरबेशन करने से कोई शारीरिक या मानसिक कमजोरी नहीं आती। 

पेनिस में जितनी बार इरेक्शन होता है, उतनी बार मास्टरबेशन किया जा सकता है। इसकी कोई लिमिट नहीं है। हर किसी के लिए अलग-अलग दायरे हैं। 

इससे बाल गिरना, आंखों की कमजोरी, मुंहासे, वजन में कमी, नपुंसकता जैसी समस्याएं नहीं होतीं। 

सीमेन की क्वॉलिटी पर कोई असर नहीं होता। न तो सीमेन का कलर बदलता और न वह पतला होता है। 

इससे पेनिस के साइज पर भी कोई असर नहीं होता। जो लोग कहते हैं कि मास्टरबेशन से पेनिस का टेढ़ापन, पतलापन, नसें दिखना जैसी समस्याएं हो जाती हैं, वे खुद भी भ्रम में हैं और दूसरों को भी भ्रमित कर रहे हैं। 

कुछ लोगों को लगता है कि मास्टरबेशन करने के तुरंत बाद उन्हें कुछ कमजोरी महसूस होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। यह मन का वहम है। 

मास्टरबेशन एड्स और रेप जैसी स्थितियों को रोकने का अच्छा तरीका है। 

कामसूत्र या आयुर्वेद में कहीं यह नहीं लिखा है कि मास्टरबेशन बीमारी है। 

- 13-14 साल की उम्र में लड़कों को इसकी जरूरत होने लगती है। कुछ लोग शादी के बाद भी सेक्स के साथ-साथ मास्टरबेशन करते रहते हैं। यह बिल्कुल नॉर्मल है। 

मिथ्स क्या हैं 

1. पेनिस का साइज छोटा है तो सेक्स में दिक्कत होगी। बड़ा पेनिस मतलब सेक्स का ज्यादा मजा। 

सचाई : छोटे पेनिस की बात नाकामयाब दिमाग में ही आती है। दुनिया में ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे पेनिस के स्टैंडर्ड साइज का पता किया सके। वैजाइना की सेक्सुअल लंबाई छह इंच होती है। इसमें से बाहरी एक तिहाई हिस्सा यानी दो इंच में ही ग्लांस तंतु होते हैं। अगर किसी महिला को उत्तेजित करना है, तो वह योनि के बाहरी एक तिहाई हिस्से से ही उत्तेजित हो जाएगी। जाहिर है, अगर उत्तेजित अवस्था में पुरुष का लिंग दो इंच या उससे ज्यादा है, तो वह महिला को संतुष्ट करने के लिए काफी है। ध्यान रखें, खुद और अपने पार्टनर की संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण चीज पेनिस की लंबाई नहीं होती, बल्कि यह होती है कि उसमें तनाव कैसा आता है और कितनी देर टिकता है। पेनिस की चौड़ाई का भी खास महत्व नहीं है। योनि इलास्टिक होती है। जितना पेनिस का साइज होगा, वह उतनी ही फैल जाएगी। बड़ा पेनिस किसी भी तरह से सेक्स में ज्यादा आनंद की वजह नहीं होता। 

2. पेनिस में टेढ़ापन होना सेक्स की नजर से समस्या है। 

सचाई : पेनिस में थोड़ा टेढ़ापन होता ही है। किसी भी शख्स का पेनिस बिल्कुल सीधा नहीं होता। यह या तो थोड़ा दायीं तरफ या फिर थोड़ा बायीं तरफ झुका होता है। इसकी वजह से पेनिस को वैजाइना में प्रवेश कराने में कोई दिक्कत नहीं होती है। ध्यान रखें, घर में दाखिल होना महत्वपूर्ण है, थोड़े दायें होकर दाखिल हों या फिर बायें होकर या फिर सीधे। ऐसे मामलों में इलाज की जरूरत तब ही समझनी चाहिए योनि में पेनिस का प्रवेश कष्टदायक हो। 

3. बाजार में तमाम तेल हैं, जिनकी मालिश करने से पेनिस को लंबा मोटा और ताकतवर बनाया जा सकता है। इसी तरह तमाम गोलियां, टॉनिक आदि लेने से सेक्स पावर बढ़ोतरी होती है। 

सचाई : पेनिस पर बाजार में मिलने वाले टॉनिक का कोई असर नहीं होता, असर होता है उसके ऊपर बने सांड या घोड़े के चित्र का। इसी तरह जब पेनिस पर तेल की मालिश की जाती है, तो उस हाथ की स्नायु मजबूत होती हैं, जिससे तेल की मालिश की जाती है, लेकिन पेनिस की मसल्स पर इसका कोई भी असर नहीं होता। 

4. पेनिस में नसें नजर आती हैं तो यह कमजोरी की निशानी है। 

सचाई : पेनिस में अगर कभी नसें नजर आती भी हैं तो वे नॉर्मल हैं। उनका पेनिस की कमजोरी से कोई लेना देना नहीं है। 

5. जिन लोगों के पेनिस सरकमसाइज्ड (इस स्थिति में पेनिस की फोरस्किन पीछे की तरफ रहती है और ग्लांस पेनिस हमेशा बाहर रहता है) हैं, वे सेक्स में ज्यादा कामयाब होते हैं। 

सचाई : सरकमसाइज्ड पेनिस का सेक्स की संतुष्टि से कोई लेना-देना नहीं है। यह तब कराना चाहिए जब उत्तेजित अवस्था में पुरुष की फोरस्किन पीछे हटाने में दिक्कत हो। 

6. सेक्स पावर बढ़ाने नुस्खे, गोलियां (आयुर्वेदिक और एलोपैथिक), मसाज ऑयल, शिलाजीत आदि बाजार में हैं। इनसे सेक्स पावर बढ़ाई जा सकती है। 

सचाई : बाजार में आमतौर मिलने वाली ऐसी गोलियों और दवाओं से सेक्स पावर नहीं बढ़ती। आयुर्वेद के नियम कहते हैं कि मरीज को पहले डॉक्टर से मिलना चाहिए और फिर इलाज करना चाहिए। हर मरीज के लिए उसके हिसाब से दवा दी जाती है, दवाओं को जनरलाइज नहीं किया जा सकता। 

एक पक्ष यह भी 
यूथ्स की सेक्स समस्याओं पर एलोपैथी और आयुर्वेद की सोच में अंतर मिलता है। जहां एक तरफ एलोपैथी में माना जाता है कि सीमेन शरीर से बाहर निकलने से शरीर और दिमाग को कोई नुकसान नहीं होता, वहीं आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज करने वाले लोग सीमेन के संरक्षण की बात करते हैं। आयुर्वेदिक डॉक्टरों के मुताबिक : 

महीने में दो से आठ बार तक नाइट फॉल स्वाभाविक है, लेकिन इससे ज्यादा होने लगे, तो यह सेहत के लिए नुकसानदायक है। 

मास्टरबेशन करने से याददाश्त कमजोर होती है। एकाग्रता और सेहत पर बुरा असर होता है। 

प्रीमैच्योर इजैकुलेशन और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को आयुर्वेद में दवाओं के जरिए ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए मरीज को खुद डॉक्टर से मिलकर इलाज कराना चाहिए। दरअसल, आयुर्वेद में मरीज विशेष के लक्षणों और हाल के हिसाब से दवा दी जाती है, जिनका फायदा होता है। 

बाजार में आयुर्वेद के नाम पर बिकने वाले मालिश करने के तेल, कैपसूल और ताकत की दवाएं जनरल होती हैं। इन बाजारू दवाओं से सेक्स पावर बढ़ाने या पेनिस को लंबा-मोटा करने में कोई मदद नहीं मिलती। ये चीजें आयुर्वेद को बदनाम करती हैं। 

विज्ञापनों और नीम-हकीमों से दूर रहें। तमाम नीम-हकीम आयुर्वेद के नाम पर युवकों को बेवकूफ बनाकर पैसा ठगते हैं। इनसे बचें और हमेशा किसी योग्य डॉक्टर से ही संपर्क करें। 

मर्यादित सेक्स करने से जिंदगी में यश बढ़ता है और परिवार में बढ़ोतरी होती है, जबकि अमर्यादित और बहुत ज्यादा सेक्स रोगों को बढ़ाता है। 

मल-मूत्र का वेग होने पर और व्रत, शोक और चिंता की स्थिति में सेक्स से परहेज करना चाहिए। 

जो चीजें शरीर को सेहतमंद रखने में मदद करती हैं, वही चीजें सेक्स की पावर बढ़ाने में भी मददगार हैं। ऐसे में अगर आप स्वास्थ्य के नियमों का पालन कर रहे हैं और सेहतमंद खाना ले रहे हैं तो आपको सेक्स पावर बढ़ाने वाली चीजें अलग से लेने की कोई जरूरत नहीं है। 






क्या चाहता है महिलाओं का 'मन'?

महिलाओं को सेक्स से जुड़ी कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। झिझक की वजह से ज्यादातर वे अपनी दिक्कतें किसी से शेयर नहीं कर पातीं और ताउम्र परेशान रहती हैं। ऐसी ही तमाम दिक्कतों पर डॉ. प्रकाश कोठारी की खास रिपोर्ट: 

आम धारणा के उलट महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सेक्स की इच्छा होती है। सहवास तरीके से पूरा न होने पर उन्हें शारीरिक और मानसिक परेशानी हो सकती है। उन्हें ख्याल और स्पर्श से सेक्स की इच्छा होती है। सेक्स का सेंटर दिमाग में होता है। ख्याल या स्पर्श से जब जोश महसूस होता है तो पूरे शरीर में खून का बहाव बढ़ जाता है। स्त्री जनन अंग में दौरा ज्यादा होता है। इसके बाद ऐसा मुकाम होता है, जहां सुकून का अहसास होता है। इसे ही ऑर्गेज्म, क्लाइमैक्स या चरम सुख कहा जाता है। सेक्स के इस पूरे प्रोसेस को कई महिलाएं इंजॉय नहीं कर पातीं। महिलाओं को सेक्स से जुड़ी नीचे लिखीं दिक्कतें हो सकती हैं 

कामेच्छा में कमी- बहुत-सी महिलाओं को सेक्स की चाहत ही नहीं होती। अगर वे पार्टनर के कहने पर तैयार होती हैं तो भी बिल्कुल ऐक्टिव नहीं हो पातीं। बस अपनी ड्यूटी समझकर 'काम' निबटा देती हैं। बच्चे होने के बाद यह समस्या ज्यादा होती है। 
वजह : डिप्रेशन, थकान या तनाव की वजह से यह दिक्कत हो सकती है। कई बार बचपन की किसी बुरी घटना की वजह से भी सेक्स में दिलचस्पी खत्म हो जाती है। इसके अलावा कुछ और वजहें भी सकती हैं, मसलन पार्टनर जिस तरह छूता है, वह पसंद नहीं आना, उसके शरीर की महक नापसंद होना, उसे बहुत ज्यादा पसीना आना, उसके मुंह से पान-तंबाकू वगैरा की बदबू आना आदि। कई महिलाओं को शरीर के कुछ खास हिस्सों पर हाथ लगाने से दर्द महसूस होता है या अच्छा नहीं लगता। इससे भी वे सेक्स से बचने लगती हैं। 

इलाज : पार्टनर को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि साथी महिला को क्या पसंद है और क्या नापसंद। उसी के मुताबिक आगे बढ़ना चाहिए। फोरप्ले में ज्यादा वक्त बिताना चाहिए। इससे महिला मानसिक और शारीरिक रूप से अच्छी तरह तैयार हो जाती है। जब एक्साइटमेंट ज्यादा हो, तभी आगे बढ़ना चाहिए। अगर डिप्रेशन की वजह से दिक्कत है तो पहले उसका इलाज कराएं। डिप्रेशन से मुक्त होने पर ही कामेच्छा जागेगी। 'सेंसेट फोकस एक्सरसाइज' या 'प्लेजरिंग सेशन' से काफी फायदा हो सकता है। इस सेशन में स्पर्श पर सारा फोकस होता है और सहवास की मनाही होती है। इसका तरीका यह है कि बारी-बारी से स्त्री व पुरुष एक-दूसरे को प्यार से सहलाएं और एक-दूसरे के शरीर पर उत्तेजना केंद्र खोजें। दोनों एक-दूसरे को बताएं कि उन्हें कहां अच्छा लगता है। इससे महिलाओं की झिझक भी कम होती है। साथ ही परफॉर्मेंस का प्रेशर नहीं होता। वे कपल जिन्हें कोई दिक्कत नहीं है, वे भी तीन-चार महीनों में अगर एक हफ्ते इस सेशन को करें और सहवास से परहेज रखें तो सेक्स लाइफ को ज्यादा इंजॉय कर सकते हैं। 

लुब्रिकेशन की कमी- स्त्री जनन अंग में लुब्रिकेशन (गीलापन) को उत्तेजना का पैमाना माना जाता है। कुछ महिलाओं को इसमें कमी की शिकायत हो सकती है। ऐसे में सहवास काफी तकलीफदेह हो जाता है। 

वजह : लुब्रिकेशन में कमी तीन वजहों से हो सकती है। इन्फेक्शन, हार्मोंस में गड़बड़ी या फिर तरीके से फोरप्ले न होना। अगर जनन अंग में खुजली हो, खून आता हो, कपड़े पर धब्बे पड़ जाते हों या बहुत बदबू आती हो तो इन्फेक्शन हो सकता है। हार्मोंस में गड़बड़ी यानी एस्ट्रोजन की कमी आमतौर पर मीनोपॉज के बाद ज्यादा होती है। पार्टनर का महिला की जरूरत न समझ पाना या फोरप्ले में ज्यादा वक्त न गुजारना भी इसकी वजह हो सकती है। 

इलाज : अगर इन्फेक्शन है या हॉर्मोंस में गड़बड़ी है तो फौरन अच्छे डॉक्टर को दिखाकर इलाज कराएं। हॉर्मोंस वाली दिक्कत अक्सर मरीज को खुद पता नहीं लगती। डॉक्टर जांच के बाद इसका पता लगा पाते हैं। तीसरी वजह है तो पार्टनर से बातचीत और समझ से प्रॉब्लम दूर की जा सकती है। पार्टनर को फोरप्ले में ज्यादा वक्त देना चाहिए क्योंकि यह बहुत अहम होता है। इसी से सेक्स को सही ढंग से इंजॉय किया जा सकता है। 

सहवास में दर्द और वैजिनिस्मस- कुछ महिलाओं को सहवास के दौरान दर्द होता है। कई बार यह दर्द बहुत ज्यादा होता है और ऐसे में महिला सेक्स से बचने लगती है। साथी को इस दर्द का अहसास नहीं होता। उसे लगता है कि साथी महिला उसे सहयोग नहीं दे रही। यह दोनों के बीच झगड़े की वजह बनता है। इस प्रॉब्लम को डिस्परयूनिया (पेनफुल इंटरकोर्स) कहा जाता है। अगर पूरे इलाज या सलाह के बिना संबंध बनाने की कोशिश की जाती है तो प्रॉब्लम और बढ़ जाती है। 

वजह : संबंध बनाते वक्त दर्द की वजह लुब्रिकेशन में कमी या सही ढंग से फोरप्ले न होना हो सकता है। कई बार इन्फेक्शन या एंडोमेट्रियोसिस यानी ओवरी में ब्लड जमा होने पर यह प्रॉब्लम हो सकती है। एंडोमेट्रियोसिस के लिए हॉर्मोन थेरपी या फिर जरूरत पड़ने पर लेप्रोस्कोपी भी की जाती है। 

वैजिनिस्मस : वैजिनिस्मस का मतलब है किसी बाहरी चीज के स्त्री जनन अंग में जाने का डर। इसमें संभोग की कोशिश या संभावना का आभास मिलते ही महिला जनन अंग के बाहरी एक-तिहाई हिस्से में अनैच्छिक संकुचन आ जाता है। इससे समागम नहीं हो पाता और साथी अगर जबरन कोशिश करता है तो दिक्कत और दर्द दोनों बढ़ जाते हैं। 

वजह : इसके मानसिक कारण होते हैं - जैसे कि कई बार महिला के मन में सहवास को लेकर डर बैठ जाता है कि इस दौरान काफी दर्द होता है। इसके अलावा, किसी तरह की जोर-जबरदस्ती, सेक्स को पाप या गलत समझने और अपने जननांगों को गंदे या बदबूदार मानने की भावना से भी यह परेशानी हो सकती है। 

इलाज : इस परेशानी की कोई दवा या सर्जरी नहीं होती। यह मानसिक बीमारी है और इसे काउंसलिंग से बहुत हद तक सुधारा जा सकता है। पीड़ित महिला के मन से सेक्स संबंधी डर दूर किया जाता है। उसे समझाया जाता है कि जनन अंग इलास्टिक की तरह होता है, जो जरूरत के मुताबिक बढ़ जाता है। इससे उसके दिमाग से काफी हद तक फिक्र निकल जाती है और वह मानसिक तौर पर राहत महसूस करने लगती है। इसके बाद एक खास थेरपी के जरिए जनन अंग को धीरे-धीरे बाहरी चीज के टच के प्रति सहज किया जाता है। फिर डाइलेटर की मदद से ज्यादा जगह बनाई जाती है। इसके लिए कीजल एक्सरसाइज भी की जा सकती है। इसका तरीका यह है कि महिला पेशाब को रोके और छोड़ दे। फिर रोके, फिर छोड़ दे। इस तरह जनन अंग पर उसका कंट्रोल बढ़ जाता है। 

सलाह : डॉक्टर कहते हैं कि संबंध कायम करने के दौरान प्रवेश का काम औरत को ही करना चाहिए क्योंकि उसे ही मालूम है कि वह कब तैयार है। ऐसे में उसे संबंध के दौरान दर्द नहीं झेलना पड़ेगा। 

क्लाइमैक्स न होना या देर से होना- महिलाओं में यह शिकायत आम है कि उनका पार्टनर उन्हें संतुष्ट किए बिना ही छोड़ देता है। कुछ को ऑर्गेज्म (क्लाइमैक्स) नहीं होता और कुछ को होता है, पर महसूस नहीं होता। कुछ महिलाओं को लुब्रिकेशन के दौरान ही जल्दी क्लाइमैक्स हो जाता है। कुछ को बहुत देर से क्लाइमैक्स होता है। असल में क्लाइमैक्स के दौरान महिला को अपने जनन अंग में लयात्मक संकुचन महसूस होता है और फिर मन एकदम शांत हो जाता है। लेकिन लयात्मक संकुचन 10 में से 8 महिलाओं को ही होता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी दो को क्लाइमैक्स नहीं होता। उन्हें भी क्लाइमैक्स होता है, बस अहसास नहीं होता। वैसे, कुछ महिलाओं में पुरुषों की प्रीमैच्योर इजाकुलेशन की तरह शीघ्र क्लाइमैक्स होता है। 

वजह : इस समस्या की वजह महिला खुद और साथी दोनों हो सकते हैं। आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अपने पार्टनर को संतुष्ट करना ही उसकी जिम्मेदारी है। इस सोच की वजह से वह अपनी इच्छा बता नहीं पाती। दूसरी ओर, पुरुष भी कई बार खुद संतुष्ट होने के बाद महिला साथी के बारे में सोचता ही नहीं है। 

इलाज : महिला अपनी झिझक खत्म करे और साथी को बताए कि वह संतुष्ट हुई या नहीं। ऐसे मुकाम पर पहुंचना जरूरी है, जहां पूरी तरह संतुष्टि महसूस हो। पुरुष को अपनी पार्टनर की इच्छा समझनी चाहिए। वैसे भी कहा जाता है कि उत्तम पुरुष वह है, जो महिला के कहे बिना ही उसकी बात समझ कर उसे संतुष्ट करे। मध्यम पुरुष वह है, जो कहने पर उसे संतुष्ट करे और अधम पुरुष वह है, जो कहने के बावजूद उसे असंतुष्ट छोड़ दे। 

मीनोपॉज- पुष्पांजलि क्रॉसले हॉस्पिटल के गाइनिकॉलजी डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. शारदा जैन के मुताबिक आमतौर पर मीनोपॉज हो जाने पर कुछ महिलाओं में सेक्स की इच्छा काफी घट जाती है। लुब्रिकेशन भी कम हो जाता है। इससे संबंध बनाते हुए तकलीफ होती है। जाहिर है, महिला इससे बचने की कोशिश करने लगती है। 

वजह : हॉर्मोंस में बदलाव की वजह से ऐसा होता है। इस दौरान महिलाओं के शरीर में सेक्स हॉर्मोन का लेवल काफी कम हो जाता है। 

इलाज : फोर-प्ले में ज्यादा वक्त बिताएं। इससे नेचरल लुब्रिकेशन होता है। जरूरत पड़े तो बाहरी लुब्रिकेशन का इस्तेमाल करें। नारियल तेल अच्छा ऑप्शन हो सकता है। जरूरत पड़ने एस्ट्रोजन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं। मीनोपॉज हो जाने पर ऐसी डाइट लें, जिसमें एस्ट्रोजन ज्यादा हो जैसे सोयाबीन, हरी सब्जियां, उड़द, राजमा आदि। डॉक्टर की सलाह पर सिंथेटिक एस्ट्रोजन की गोलियां भी ले सकती हैं। 

पीरियड्स के दौरान सेक्स- अगर दोनों को इच्छा हो तो पीरियड्स के दौरान भी सेक्स कर सकते हैं, बल्कि कुछ लोग तो इसे ज्यादा सेफ मानते हैं क्योंकि इस दौरान प्रेग्नेंसी के चांस नहीं होते। साथ ही, पहले से ही गीलापन होने से आसानी भी होती है। लेकिन कुछ लोग इसे हाइजिनिक नहीं मानते। ऐसे में कॉन्डोम का इस्तेमाल बेहतर है। 

मास्टरबेशन- पुरुषों की तरह महिलाएं भी खुद को संतुष्ट करने के लिए मास्टरबेशन करती हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक करीब 50 फीसदी महिलाएं ऐसा करती हैं। इसका कोई नुकसान नहीं है, बल्कि एक्सपर्ट्स इसे बेहतर ही मानते हैं क्योंकि एक तो इसमें प्रेग्नेंसी के चांस नहीं होते। दूसरे इसमें कोई दूसरा शख्स अपनी पसंद-नापसंद को महिला पर थोप नहीं पाता। तीसरा एसटीडी (सेक्स ट्रांसमिटेड डिजीज) और एड्स की आशंका नहीं होती। 

वैजाइनल पेन (वुलवुडेनिया पेल्विक पेन)- कभी-कभी महिलाओं को नाभि के नीचे और प्यूबिक एरिया के आसपास दर्द महसूस होता है। यह दर्द वैसा ही होता है, जैसा पीरियड्स के दौरान होता है। इसकी वजह यह है कि उत्तेजना होने पर प्राइवेट पार्ट के आसपास खून का बहाव होता है। ऐसे में लुब्रिकेशन होता है, पर क्लाइमैक्स नहीं होता। इससे इस एरिया में खून जम जाता है और दर्द होने लगता है। ऐसे में संतुष्ट होना जरूरी है, फिर चाहे महिला खुद संतुष्ट हो या पुरुष उसे संतुष्ट करे। ऐसा न होने पर दर्द होता रह सकता है और महिला चिड़चिड़ी हो सकती है। 

लेक्स पैरिनियम- मैक्स हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अनुराधा कपूर के मुताबिक उम्र बढ़ने और बच्चे होने के बाद कुछ महिलाओं का जनन अंग ढीला पड़ जाता है, जिससे दोनों को पूरी संतुष्टि का अहसास नहीं होता। आमतौर पर यह समस्या 40 साल के आसपास और दो-तीन बच्चे होने पर होती है। इसके लिए कीजल एक्सरसाइज और जरूरत पड़ने पर सर्जरी (वैजाइनोप्लास्टी) की जाती है। चार हफ्ते तक कीजल एक्सरसाइज करने से स्त्री जनन अंग में कसाव आने लगता है। 

जी स्पॉट : महिला जनन अंग में एक ऐसा क्षेत्र होता है, जहां सेक्स संबंधी संवेदनशीलता ज्यादा होती है। यह स्पॉट दो इंच की गहराई पर होता है। उत्तेजना बढ़ने पर यह स्पॉट थोड़ा फूल जाता है या कठोर हो जाता है। महिला को सबसे ज्यादा संतुष्टि इसी स्पॉट के छुए जाने पर होती है। 

मिथ और सचाई 
महिलाओं को सेक्स की इच्छा कम होती है। 
महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही सेक्स की इच्छा होती है। बच्चे होने के बाद भी कमी नहीं होती हालांकि कई बार परफॉर्मेंस में कमी आ जाती है। इसकी शारीरिक और मानसिक दोनों वजहें होती हैं। 

पहली बार सेक्स करते हुए ब्लड निकलना ही चाहिए। 
लोग मानते हैं अगर महिला वर्जिन है तो पहली बार सेक्स के दौरान इसे ब्लीडिंग होनी ही चाहिए। यह सच नहीं है क्योंकि कुछ खेलकूद या साइकल चलाते वक्त भी कुछ महिलाओं की हाइमेन टूट सकती है। ऐसे में पहली बार सहवास के दौरान ब्लड नहीं निकलता। 

महिलाओं को भी पुरुषों की तरह डिस्चार्ज होता है। 
महिलाओं में पुरुषों की तरह डिस्चार्ज नहीं होता। 100 में से बमुश्किल एक महिला को थोड़ा-बहुत डिस्चार्ज होता है। उत्तेजना के दौरान होने वाले लुब्रिकेशन को ही ज्यादातर लोग डिस्चार्ज समझ लेते हैं। हालांकि डिस्चार्ज होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि महिला को असली सुकून क्लाइमैक्स पर पहुंचने से ही मिलता है। 

महिलाओं को क्लाइमैक्स नहीं होता। 
यह पूरी तरह गलत है। महिलाओं को भी क्लाइमैक्स होता है। ऐसे में पुरुष का उसकी जरूरत को समझना और उसके मुताबिक काम करना जरूरी है। 

महिलाओं को ज्यादा वक्त लगता है। 
सभी महिलाएं क्लाइमैक्स पर पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लेतीं। अगर पार्टनर उनकी पसंद का है तो वे जल्दी मुकाम पर पहुंच जाती हैं। हालांकि कुछ को ज्यादा वक्त भी लग सकता है।

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