भारत में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या को देखते हुए मानव संसाधन और लघु उद्योग मंत्रालय ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने की अच्छी पहल की है। 'प्लास्टिक टॉय मेकिंगÓ भी इसी का हिस्सा है। इसके अंतर्गत प्लास्टिक खिलौनों के डिजाइन से लेकर उनके रंग-रूप एवं उन्हें अंतिम रूप देने संबंधी हर कार्य किए जाते हैं।
खिलौने बनाने के लिए जरूरी
स्वयं में कलात्मक क्षमता, बच्चों की पसंद-नापसंद को परखना, रंगों का संयोजन, मार्केटिंग एवं बिजनेस स्किल्स आदि को आत्मसात करना बेहद जरूरी है।
प्रशिक्षण एवं खर्च
प्लास्टिक टॉय मेकर बनने के लिए प्रशिक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके लिए डिजाइनिंग, क्रिएटिविटी, बाजार की मांग तथा अन्य सम्यक जानकारी जरूरी है। सरकारी संस्थानों में छह माह से वर्ष भर की फीस 4,000 रुपए और गैर सरकारी संस्थानों में दोगुनी है।
यूनिट खर्च
यूनिट लगाने में काफी कम खर्च आता है। आप चाहें तो 50 हजार से भी मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर सकते हैं।
मार्केटिंग
वैसे तो प्लास्टिक टॉय की मांग भारत के बाजारों में भी काफी है, लेकिन अन्तरराष्ट्रीय डिमांड भी बहुत है। हालांकि चीन जैसा विकसित देश इन मांगों को पूरा करने के लिए अग्रसर है, इसके बावजूद खिलौनों का उद्योग दिन-प्रतिदिन फल-फूल रहा है।
ऋण देने वाले बैंक
पब्लिक सेक्टर व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
कॉरपोरेशन बैंक
केंद्रीय व राज्य सरकार की वित्तीय संस्थाएं
आमदनी
आज अन्तरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए उद्यमी छोटी से छोटी यूनिट भी स्थापित करता है तो महीने में 25 से 30 हजार रुपए का फायदा होता है।
प्रशिक्षण संस्थान
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ प्लास्टिक इंडस्ट्रीज, नई दिल्ली-15
इंडियन प्लास्टिक इंस्टीट्यूट, विले पाले, मुम्बई-4000056
इंस्टीट्यूट ऑफ टॉय मेकिंग टेक्नोलॉजी, कोलकाता-700091
खिलौने बनाने के लिए जरूरी
स्वयं में कलात्मक क्षमता, बच्चों की पसंद-नापसंद को परखना, रंगों का संयोजन, मार्केटिंग एवं बिजनेस स्किल्स आदि को आत्मसात करना बेहद जरूरी है।
प्रशिक्षण एवं खर्च
प्लास्टिक टॉय मेकर बनने के लिए प्रशिक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके लिए डिजाइनिंग, क्रिएटिविटी, बाजार की मांग तथा अन्य सम्यक जानकारी जरूरी है। सरकारी संस्थानों में छह माह से वर्ष भर की फीस 4,000 रुपए और गैर सरकारी संस्थानों में दोगुनी है।
यूनिट खर्च
यूनिट लगाने में काफी कम खर्च आता है। आप चाहें तो 50 हजार से भी मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर सकते हैं।
मार्केटिंग
वैसे तो प्लास्टिक टॉय की मांग भारत के बाजारों में भी काफी है, लेकिन अन्तरराष्ट्रीय डिमांड भी बहुत है। हालांकि चीन जैसा विकसित देश इन मांगों को पूरा करने के लिए अग्रसर है, इसके बावजूद खिलौनों का उद्योग दिन-प्रतिदिन फल-फूल रहा है।
ऋण देने वाले बैंक
पब्लिक सेक्टर व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
कॉरपोरेशन बैंक
केंद्रीय व राज्य सरकार की वित्तीय संस्थाएं
आमदनी
आज अन्तरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए उद्यमी छोटी से छोटी यूनिट भी स्थापित करता है तो महीने में 25 से 30 हजार रुपए का फायदा होता है।
प्रशिक्षण संस्थान
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ प्लास्टिक इंडस्ट्रीज, नई दिल्ली-15
इंडियन प्लास्टिक इंस्टीट्यूट, विले पाले, मुम्बई-4000056
इंस्टीट्यूट ऑफ टॉय मेकिंग टेक्नोलॉजी, कोलकाता-700091
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