Wednesday, September 18, 2013

वायुसेना का मजबूत होता परिवहन बेड़ा




भारतीय वायुसेना की सामरिक क्षमता को मजबूत बनाने की कवायद के तहत रक्षा मंत्री एके एंटनी द्वारा दो सितम्बर 2013 को हिंडन एयर बेस पर 75 से 80 टन क्षमता वाले सी-17 ग्लोबमास्टर- 3 (भारी मालवाहक विमान) को औपचारिक रूप से सेवा में शामिल कर लिया गया है। यह मालवाहक परिवहन विमान भारी टैंकों, रसद और सैनिकों को ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं पर पहुंचाने में सक्षम है। रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा कि यह विमान सामरिक तथा गैर सामरिक सभी अभियानों को अंजाम देगा। वायुसेना प्रमुख एनएके ब्राउन ने कहा कि सी-17 ग्लोबमास्टर परिवहन विमान का परिचालन पूर्वोत्तर राज्यों में एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड से और उत्तर व अंडमान निकोबार क्षेत्र के अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों से किया जा सकता है। वायुसेना के अधिकारियों के मुताबिक इसे नवनिर्मित 81वीं सडन में शामिल किया गया है। इस विमान की क्षमता 80 टन भार ढोने की है और इसमें 150 सैनिकों को ले जाया जा सकता है। यह मालवाहक विमान वायुसेना के अब तक के सबसे बड़े रूसी परिवहन विमान आईएल-76 का स्थान लेंगे जो 40 टन भार को ढोने में सक्षम थे। अमेरिका की हथियार निर्माता कम्पनी बोइंग ने इसे अपने यहां से 20 अगस्त को रवाना करवाया था।


 23 अगस्त 2013 को भारतीय वायुसेना को तीसरा और इससे एक माह पहले 23 जुलाई को दूसरा सी-17 ग्लोब मास्टर प्राप्त हुआ था। वायुसेना के लिए खरीदे गए 10 बोइंग सैन्य परिवहन विमान सी-17 ग्लोबमास्टर में से पहले विमान के हिस्सों को कैलिफोर्निया के लांगबीच में 31 जुलाई 2012 को एक समारोह के दौरान जोड़ा गया था। उसके बाद यह 18 जून 2013 को भारत आया था। इस तरह अब तक देश को अत्याधुनिक किस्म के कुल तीन सी-17 ग्लोबमास्टर भारी मालवाहक परिवहन विमान प्राप्त हो चुके हैं। सैन्य परिवहन विमानों की यह खरीदारी भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण अभियान का प्रमुख और महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन्हें तुरंत इनके मिशन पर लगा दिया गया है। बोइंग कंपनी के उपाध्यक्ष और सी-17 विमान कार्यक्रम के प्रबंधक नैन बोचार्ड के मुताबिक सी-17 में हिमालयी तथा दुर्गम रेगिस्तानी इलाकों में अभियान संचालित करने की क्षमता है और इससे उसकी अभियान क्षमता में काफी वृद्धि होगी। अमेरिका के बाद भारतीय वायुसेना सी-17 विमानों का संचालन करने वाली दूसरी सबसे बड़ी वायुसेना होगी। सी-17 ग्लोबमास्टर के चालक दल में दो पायलट व एक लोडमास्टर होता है। इसकी लम्बाई 174 फुट तथा उंचाई 55.1 फुट है। इसके डैने 169.8 फुट ऊंचे हैं।



77,519 किलोग्राम पेलोड के साथ इसकी गति 0.76 मैक है। चार इंजनों से लैस सी-17 ग्लोबमास्टर की रेंज 2420 नॉटिकल मील है। टी आकार के पिछले भाग वाले इस विमान के पिछले हिस्से में माल चढ़ाने के लिए रैंप है। यह विमान सात हजार फुट लंबी हवाई पट्टी से उड़ान भर सकता है, ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी उतरने में सक्षम है और आपातकालीन परिस्थितियों में मात्र 3000 फुट लंबी हवाई पट्टी पर उतर सकता है। फिलहाल ऐसी विशेषताओं वाले विमान अमेरिका, कनाडा, कतर, हंगरी व ब्रिटेन जैसे 18 देशों के पास हैं। नाटो संगठन के 12 सदस्य देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। अब तक यह कम्पनी 256 सी-17 विमान विभिन्न देशों को बेच चुकी है। इस भरोसेमंद विमान से भारतीय वायुसेना की ताकत दो गुना हो गई है। इसकी रफ्तार 830 किलोमीटर प्रति घंटा और ईंधन क्षमता 134556 लीटर है। सी-17 विमान बख्तरबंद गाडिय़ां ले जा सकता है। इस पर टैंक व हेलीकाप्टर भी लादकर ले जाए जा सकते हैं। मल्टी परपज वाला यह दुनिया का अत्याधुनिक विमान है। यह संकीर्ण स्थानों पर सैनिक टुकड़ी पहुंचाने में सक्षम है और ऐसी जगहों में इसे उतारा जा सकेगा। जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर-पूर्व जैसे इलाकों में यह कारगर भूमिका निभाएगा। भारत ने इस मालवाहक विमान का चयन जून 2009 में किया था। जून 2011 में बोइंग कम्पनी के साथ ऐसे 10 विमानों की खरीद के समझौते पर हस्ताक्षर कर आपूर्ति का ऑर्डर दिया गया। यह सौदा 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का होने की उम्मीद है। इसके साथ भारत इन विमानों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया और इनके निर्माण की शुरुआत जनवरी 2012 में हो गई थी। इनके आ जाने से पुराने हो चुके रूस निर्मित भारतीय मालवाहक विमानों के बेड़े को आधुनिक रूप दिया जा सकेगा। सैन्य कायरें के अतिरिक्त इनका उपयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मदद पहुंचाने में भी किया जाएगा। समुद्री क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल का जवाब देने के लिए अंडमान निकोबार द्वीप समूह की कैम्पबेल खाड़ी में भारतीय नौसेना का पहला एयर स्टेशन कुछ समय पहले खोला गया है। यह क्षेत्र मलक्का स्टेट्स से मात्र 75 मील की समुद्री दूरी पर है। इस एयर स्टेशन पर सबसे बड़े परिवहन विमान सी-17 ग्लोबमास्टर व हरक्यूलिस को रखा जाएगा। चार इंजन वाला सी-17 ग्लोब मास्टर 2400 मील समुद्री दूरी तक कार्रवाई करने में सक्षम है। इसकी पहाड़ी व समुद्री इलाकों की मारक क्षमता से चीन व पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गई हैं। निश्चित रूप से इसने हमें रणनीतिक रूप से चीन के मुकाबले मजबूत किया है। तिब्बत जैसे स्वायत्तशासी इलाके में जिस तरह चीन की गतिविधियां बढ़ी हैं, उसके मद्देनजर सी-17 से चीन के खिलाफ विशेष सामरिक बढ़त मिलेगी। उम्मीद है कि 2013 के अन्त तक दो और विमानों की आपूर्ति हो जाएगी। 2014 में शेष पांच और विमानों भारत को सौंप दिए जाएंगे। इन सभी विमानों के मिलने के बाद भारतीय वायुसेना का परिवहन बेड़ा काफी मजबूत हो जाएगा।

Tuesday, September 17, 2013

परमाणु बिजली, उम्मीद की नई रोशनी



तेरह जुलाई 2013 की आधी रात को जब हिन्दुस्तान की लगभग पूरी आबादी सोने की तैयारी में थी वहीं तमिलनाडु स्थित एक एक छोटे से शहर तिरुनेल्वेल्लि में बन रहे कुडनकुलम परमाणु बिजली घर में देश के परमाणु वैज्ञानिकों और अभियंताओं का दस्ता लगातार एक मिशन को अंजाम देने में जुटा था। रात 11 बजकर 5 मिनट पर ब््रोकिंग न्यूज आयी जिसका इंतजार हर किसी को काफी समय से था- परमाणु बिजली घर की क्रिटिकैलिटी का..(एक ऐसी प्रक्रिया जिसमे रिक्टर कोर में न्यूक्लियर फिशन की शुरुआत होती है।) रूस के सौजन्य से निर्मिंत 1000 मेगावाट का यह बिजलीघर, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व एईआरबी के दिशा निर्देशों और विभिन्न प्रकार के मानदंडों पर खरा उतरने के बाद राष्ट्र को समर्पित होने की प्रक्रिया में पूरी तरह तैयार था। देश में बढ़ती बिजली समस्या के चलते कुडनकुलम परमाणु बिजली घर उभरते भारत के लिए नयी जगमगाहट की तरह है। आजादी के लगभग 67 वषा बाद भी हिन्दुस्तान की जो 40 प्रतिशत आबादी बिजली की आस में है, इसके शुरू होने से शायद कुछ हद तक कमी पूरी हो सकेगी। दो वर्ष पूर्व जापान के फुकुशिमा में आई भारी दैवीय विपदा के चलते वहां के परमाणु बिजली घरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जिस से हमारे देश में भी परमाणु ऊर्जा और इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर विरोध के स्वर मुखिरत होने लगे। परमाणु ऊर्जा के प्रति वैचारिक मतभेद रखने वालों ने विरोध शुरू कर दिया। अंतत: सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद बिजलीघर शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हो सका। देश की सर्वोच्च अदालत ने माना कि ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए परमाणु ऊर्जा का विकल्प अपनाना ही होगा। दक्षिण के राज्यों पर नजर डालें तो जानकर हैरानी होगी की ये राज्य अभूतपूर्व बिजली संकट से जूझ रहें है। उद्योग धंधे बुरी तरह से प्रभावित है। बिजली के अभाव में तमाम राज्यों में विकास की मंद रफ्तार इशारा करती है कि किस तरह से लोड शेडिंग और बिजली की कटौती से लोगों का जीवन यापन दुलर्भ हो गया है। आज भी तमिलनाडु में सैकड़ो गांवों को बिजली के दर्शन तक नसीब नही है। ऐसे में इस परियोजना का विरोध समझ से परे है। आखिर हम कैसे विकास का लक्ष्य हासिल पाएंगे। रूस के सहयोग से निर्मिंत भारत का यह पहला लाइट वॉटर रिएक्टर होगा जिससे बिजली का निर्माण किया जाएगा। सुरक्षा और संरक्षा की ष्टि से बेहतरीन व बेमिसाल खूबियों से युक्त जेनरेशन- 3 प्लस के इस रिएक्टर की संरक्षा संबंधी कई खूबियां इसे अपने तरीके का सर्वश्रेष्ठ रिएक्टर बनाती है। इस विश्व स्तरीय रिएक्टर में कोर केचर, पैसीव हीट रिमूवल सिस्टम, हाइड्रोजन री-काबाइनर्स जैसे फीचर इसे जनता और पर्यावरण दोनों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करने में मददगार साबित होंगे। प्रारंभ में इस परियोजना से 400 मेगावाट और धीरे धीरे चरणबद्ध तरीके बढ़ाकर 1000 मेगावाट बिजली उत्पन्न की जाएगी। कुडनकुलम परमाणु बिजली घर की दूसरी इकाई अगले वर्ष तक प्रारंभ होने की संभावना है जिससे 1000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली का निर्माण हो सकेगा और बड़े पैमाने पर दक्षिण समेत देश के कई राज्यों को बिजली मिल सकेगी। एक तरफ जहां देश में विभिन्न ऊर्जा ाोतों से बिजली का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है, जिसमे लगभग 68 प्रतिशत बिजली थर्मल से, 18 प्रतिशत हाइड्रो से, 12 प्रतिशत अन्य ाोतों से, जिनमे (सोलर और विंड प्रमुख है) वहीं परमाणु ऊर्जा से महज 2.3 प्रतिशत ही बिजली का उत्पादन होता है। आज संपूर्ण विश्व में थर्मल पावर से निर्मिंत बिजली ग्लोबल वॉर्मिग और वातावरण में उत्सर्जित होने वाली कई हानिकारक गैसों के चलते गहन चिंता का विषय बनी हुई है, जबकि दूसरी तरफ परमाणु ऊर्जा स्वच्छ और हरित ऊर्जा का किफायती विकल्प साबित हो रही है। विश्व की बात करें तो फ्रांस जैसे देश में परमाणु ऊर्जा से लगभग 80 प्रतिशत बिजली का निर्माण किया जाता है। न केवल फ्रांस बल्कि बेल्जियम, स्वीडेन, हंगरी, जर्मनी, स्विट्जरलैड, अमेरिका, जापान, चीन, रूस आदि देशों की लगभग 20-50 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा से ही निर्मिंत होती है और इनकी समृद्धि किसी से छिपी नहीं है। इसके विपरीत देश में वर्तमान में जहां 3-3.5 लाख मेगावाट बिजली की मांग की तुलना में महज 2.25 लाख मेगावाट का ही उत्पादन हो रहा है, तो एक लाख मेगावाट का अंतर कैसे मिटेगा? कोयले का भंडार सीमित है और हाइड्रो का हमने लगभग दोहन कर लिया है। सोलर और विंड की उत्पादन क्षमता, ज्यादा जगह, धूप और हवा के प्रवाह की समुचित उपलब्धता पर निर्भर होने के साथ ही कम किफायती और अल्प विकसित तकनीक पर आधारित है। ऐसे में परमाणु बिजली को नकार नहीं सकते। सोचिए, 40-50 साल बाद जब परंपरागत ऊर्जा ाोत खत्म हो जाएंगे और आबादी दोगुनी हो जाएगी, हम बिजली कहां से लाएंगे? ऐसे में परमाणु ऊर्जा के अलावा क्या कोई विकल्प बचता है? देश में 20 परमाणु बिजलीघरों के लगभग 380 रिएक्टर पिछले करीब 44 वषा से सुरक्षित तरीके से कार्यशील है। इनसे लगभग 4780 मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है। भुज के भूकंप और तमिलनाडु की सुनामी के बावजूद देश के परमाणु बिजलीघर सुरक्षित रहे। दो वर्ष पूर्व जापान के फुकुशिमा में भूकंप और सुनामी जैसी दुर्घटना के मद्देनजर हमारे देश के सभी परमाणु बिजली घर को सुरक्षा की ष्टि से और बेहतर और उन्नत तकनीक युक्त कर दिया गया है। विश्व में लाखों लोग सड़क और अन्य दुर्घटनाओं में जान गवां देते है। लाखों बाढ़, भूस्खलन और अन्य दैवीय आपदाओं में मारे जाते है, लेकिन इससे भयभीत होकर घर तो नहीं बैठ जाते है। इसलिए मन से डर निकाल इसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए। विश्व के तमाम विकसित राष्ट्रों ने इसे खुले दिल से अपनाया है और आज वो किस मुकाम पर है, यह सबके सामने है। विरोधियों को समझना होगा कि अगर त्रि-चरणीय परमाणु कार्यक्रम चरणबद्ध तरीके से लागू हो तो देश में प्रचुर मात्रा में मौजूद थॉरियम से बिजली की तकनीक विकसित कर कई पीढिय़ों को बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।

अंतरिक्ष में 3डी प्रिंटर से बनेंगे रॉकेट


मुकुल व्यास 

भविष्य में ऐसे 3डी प्रिंटर बन जाएंगे जो अंतरिक्ष में ही रॉकेट के इंजनों और अंतरिक्षयानों का निर्माण करने में सक्षम होंगे। इस दिशा में कोशिश शुरू भी हो गई है।

नासा के इंजीनियर एक ऐसे 3डी प्रिंटर का परीक्षण कर रहे हैं, जो निम्न गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में प्लास्टिक की वस्तुएं निर्मित कर सकता है। बहुचर्चित साइंस फिक्शन सीरियल, स्टार ट्रेक के ‘रेप्लीकेटर’ में कुछ ऐसी ही टेक्नोलॉजी दर्शाई गई थी। नासा अगले साल जून में इस प्रिंटर को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजने की तैयारी कर रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के इंजीनियरों को उम्मीद है कि इससे भविष्य में और अधिक उन्नत 3डी प्रिंटरों के निर्माण का आधार तैयार हो जाएगा जो अंतरिक्ष में हर तरह की जरूरत का सामान निर्मित कर सकेंगे।

3डी प्रिंटर को अंतरिक्ष में रवाना करने से पहले उसमें उन सारे कलपुर्जो और हिस्सों के ब्ल्यूप्रिंट लोड किए जाएंगे जो बदले जाने के लायक हैं। कुछ अन्य चीजों के बारे में पृथ्वी से ही निर्देश भेजे जा सकते हैं। 3डी प्रिंटर का एक बड़ा फायदा यह भी होगा कि अंतरिक्षयात्री अपने सम्मुख आने वाली समस्या से निपटने के लिए अपनी जरूरत के हिसाब से कलपुजरें का निर्माण कर सकेंगे। इस सिस्टम से पृथ्वी से अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजे जाने वाले एवजी कलपुजरें की मात्रा में कमी आएगी।

इससे आपात स्थिति में अंतरिक्षयात्रियों को जल्दी से जल्दी अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचाने में भी मदद मिलेगी।

1970 में एपोलो-13 के अंतरिक्षयात्रियों को अपने यान में ऑक्सीजन टैंक में विस्फोट के बाद अपने यान के कार्बन डायोक्साइड फिल्टर की मरम्मत करनी पड़ी थी। लेकिन मरम्मत के लिए उन्हें डक्ट टेप और प्लास्टिक की थैली जैसी चीजों से ही काम चलना पड़ा था। अभी हाल ही में इटली के अंतरिक्षयात्री लुका पर्मिटानो के हेलमेट में वेंटिलेशन सिस्टन से पानी घुस गया था, जिसकी वजह से उसे अंतरिक्ष में चहलकदमी की योजना त्यागनी पड़ी थी। इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए नासा को आवश्यक सप्लाई के साथ मरम्मत का सामान भी भेजना पड़ा था। भविष्य में इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए अंतरिक्षयात्री अपने स्टेशन पर ही जरूरी उपकरणों की प्रिंटिंग कर सकेंगे।

नासा के मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर में 3डी प्रिंटिंग पर रिसर्च चल रही है। रिसर्च टीम के प्रमुख निकी वर्कहाइस्रर का कहना है कि हम सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में 3डी प्रिंटिंग को आजमाना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं। कई बार कलपुर्जे टूट-फूट जाते हैं या गुम हो जाते हैं। उन्हें बदलने के लिए बहुत से अतिरिक्त कजपुज्रे भेजने पड़ते हैं। नई टेक्नोलॉजी से इन हिस्सों को आवश्यकतानुसार अंतरिक्ष में ही निर्मित करना संभव है। इस टेक्नोलॉजी के बारे में अभी कोई खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन समझ जाता है कि इसमें प्लास्टिक के पेस्ट का उपयोग किया जाता है। पिछले कुछ दिनों से इस प्रिंटर का शून्य गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में परीक्षण चल रहा है। नासा ने एक वीडियो जारी करके इस प्रिंटर की कार्य प्रणाली दर्शाई है।

नासा ने एक अन्य प्रोजेक्ट के तहत पिछले महीने एक ऐसे रॉकेट इंजन का परीक्षण किया, जिसका निर्माण 3डी प्रिंटिंग से तैयार किए गए हिस्सों से किया गया था।

रॉकेट इंजेक्टर के निर्माण के लिए धातु के पाउडर को गलाने और उसे एक त्रिआयामी संचरना में बदलने के लिए लेजर तरंगों का प्रयोग किया गया था। नासा का मानना है कि 3डी प्रिंटिंग से धरती पर और अंतरिक्ष में कलपुर्जो, इंजन के पार्ट्स और यहां तक कि पूरे अंतरिक्षयान को प्रिंट करके उत्पादन समय और उत्पादन लागत में भारी कमी की जा सकती है। इससे अंतरिक्ष के समस्त भावी मिशनों में बहुत मदद मिल सकती है।

अंतरिक्ष स्टेशन पर छह महीने बिताने वाले अमेरिकी अंतरिक्षयात्री टिमोथी क्रीमर का कहना है कि 3डी प्रिंटिंग से हम भी मौके पर ही स्टार ट्रेक के रेप्लीकेटर की तरह वे चीजें बना सकते हैं, जिन्हें हम गंवा बैठे हैं या जो हमसे छूट गई हैं। साथ ही हम अंतरिक्ष में उपयोग के लिए दूसरी नई चीजें भी निर्मित कर सकते हैं रिसर्चरों का ख्याल है कि अगले वर्ष पूरी तरह से तैयार 3डी प्रिंटर अंतरिक्ष स्टेशन के लिए जरूरी करीब एक-तिहाई अतिरिक्त कलपुजरें को प्रिंट करने में सक्षम होगा।

Saturday, September 14, 2013

रिप्लाई ढंग का होना चाहिए, ‘हम्म’ तो भैंस भी करती है!


लड़का हैंडसम होना चाहिए, ‘स्मार्ट’ तो फोन भी होते हैं।

फोन तो आईफोन होना चाहिए, ‘S1, S2...S4’ तो ट्रेन के डिब्बे भी होते हैं।

इंसान का दिल बड़ा होना चाहिए, ‘छोटा’ तो भीम भी है।

व्यक्ति को समझदार होना चाहिए, ‘सेंसटिव’ तो टूथपेस्ट भी है।

टीचर ज्यादा नंबर देने वाला होना चाहिए, ‘अंडा’ तो मुर्गी भी देती है।

युवा राष्ट्रवादी होना चाहिए, ‘कूल’ तो नवरत्न तेल भी है।

राष्ट्रपति कलाम होना चाहिए, ‘मुखर्जी’ तो रानी भी है।

कैप्टन दादा जैसा होना चाहिए, ‘एमएस’ तो ऑफिस भी है।

बाथरूम में हेयर ड्रायर होना चाहिए, ‘टॉवल’ तो श्रीसंत के पास भी है।

लड़की में अक्ल होनी चाहिए, ‘सूरत’ तो गुजरात में भी है।

मोबाइल जनरल मोड पर होना चाहिए, ‘साइलेंट’ तो चनमोहन भी हैं।

सेब मीठा होना चाहिए, ‘लाल’ तो आडवाणी भी हैं।

घूमना तो हिल स्टेशन पर चाहिए, ‘गोवा’ तो पान मसाला भी है।

दवाई ठीक करने के लिए होना चाहिए, ‘टेबलेट’ तो सैमसंग का भी है।

रिप्लाई ढंग का होना चाहिए, ‘हम्म’ तो भैंस भी करती है।


Thursday, August 29, 2013

दुनिया के सबसे लम्बे बाल


25 सालों से नहीं की बालों में कंघी
उसके बाल साफ करने में एक बार में छ: शंपू के बॉटल लग जाते हैं। बाल सूखने में दो दिन लगते हैं। 17 किलोग्राम सिर्फ उसके बालों का वजन है, जिसे वह सिर पर हमेशा ढोती है। डॉक्टर कहते हैं कि उसके बालों के वजन के कारण उसे लकवा मार सकता है और वह अपाहिज हो सकती है। 25 सालों से उसने बाल नहीं कटाए, न कंघी किया है। आज भी अपने बाल कटवाने को वह अपनी मौत के समान मानती है। बालों के बीच बैठी यह महिला आशा मंडेला हैं। आशा मंडेला मूल रूप से त्रिनिदाद की हैं। त्रिनिदाद से न्यूयॉर्क आने के बाद ही उन्होंने अपने बालों को प्राकृतिक रूप से बढ़ाने का फैसला किया।
आशा की मां को इनका यह फैसला मंजूर नहीं था, परन्तु आशा अपनी बात पर अटल रहीं। शुरूआत में उन्होंने बस बाल बढ़ाए, धीरे-धीरे इसमें कंघी न कर लटें बनाने का फैसला किया। सुनने में आसान लगने वाला यह फैसला इतना आसान नहीं था। बालों की लटें बढऩे के साथ ही उसका भार भी बढ़ रहा था जो आशा की कमर और कंधे को नुकसान पहुंचा सकता था।
असामान्य रूप से इतने लंबे बालों की देखरेख भी आसान नहीं थी, लेकिन आशा ने हार नहीं मानी। इस तरह वर्ष 2008 में विश्व की सबसे लंबी लटों के लिए गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज हुआ। इसे कायम रखते हुए 2010 में उन्होंने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा। आज भी आशा विश्व की सबसे लंबी लटों की मल्लिका हैं और उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज है।
डॉक्टर बालों के भार से उन्हें लकवा होने की आशंका जता चुके हैं, परन्तु आशा को अपने इन लंबी लटों से इतनी मुहब्बत है कि वे इसके बिना जीने की कल्पना भी दुखद मानती हैं। आशा का अपनी लटों के लिए प्रेम तो स्वाभाविक है। इन्होंने इसके लिए 25 साल मेहनत की है, लेकिन आम लोगों के लिए उनकी लटें अजूबा से कम नहीं।
न्यूयॉर्क की आशा के बाल 55 फीट 7 इंच लंबे हैं। आशा ने अपने बालों को बढ़ाने के साथ ही उसमें कंघी करना भी छोड़ दिया है। आज उनकी 55 फीट 7 इंच लंबे बालों की लटें हैं। इसके लिए आशा का नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है।