इसका पौधा फैलने वाला होता है। इसकी पत्तियां चिकनी तथा नरम होती हैं जिनकी लंबाई ज्यादा से ज्यादा एक इंच तथा चौड़ाई सामान्यतः 10 मिलीमीटर होती है। इसमें गर्मियों में नीले सफेद या हल्के गुलाबी रंग के फूल आते हैं जिनमें से छोटे−छोटे बीज निकलते हैं। इसका काण्ड लगभग 2−3 फुट ऊंचा होता है परन्तु यह छोटा और झुका हुआ दिखाई देता है क्योंकि काण्ड की ग्रंथियों से जड़ें निकलकर जमीन पकड़ लेती हैं।
ब्राह्मी में एल्केलाइड तथा सेपोनिन नामक दो मुख्य जैव सक्रिय पदार्थ पाए जाते हैं। इसमें पाए जाने वाले दो मुख्य एल्केलाइड हैं ब्राह्मीन तथा हरपेस्टिन जबकि बेकोसाइड ए तथा बी मुख्य सेपोनिन हैं। गुणों की दृष्टि से ब्राह्मी कुचला में पाए जाने वाले एल्केलाइड स्ट्रीककनीन के समान हैं परन्तु यह उसकी तरह विषाक्त नहीं होती। इनके अतिरिक्त ब्राह्मी में बोटूलिक अम्ल, डी0 मेनिटॉल, स्टिग्मा स्टेनॉल, बीटा−साइटोस्टीरॉल तथा टेनिन आदि भी पाए जाते हैं। हरे पत्तों में प्रायः एल्केलाइड तथा उड़नशील तेल पाए जाते हैं जबकि सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं।
ब्राह्मी के पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। प्रायः इसका ताजा या सुखाया गया पचांग प्रयोग किया जाता है। जहां तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही प्रयोग करना चाहिए। परन्तु जहां यह उत्पन्न नहीं होती वहां इसका छाया में सुखाया गया पचांग ही प्रयोग में लाया जाता है। यदि इसे उबाला जाए या धूप में सुखाया जाए तो इसका उड़नशील तेल नष्ट हो जाता है और इसके गुण नष्ट हो जाते हैं इस कारण इसका क्वाथ भी प्रयोग में लाया जाता है। सुखा कर रखे गए पचांग के चूर्ण को एक वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है।
ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यतः मस्तिष्क पर पड़ता है। यह मस्तिष्क के लिए एक पौष्टिक टॉनिक तो है ही साथ ही यह मस्तिष्क को शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान के कारण जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी का आश्चर्यजनक असर होता है। ब्राह्मी स्नायुकोषों का पोषण कर उन्हें उत्तेजित कर देती है और हम पुनः स्फूर्ति का अनुभव करने लगते हैं।
मिरगी तथा उन्माद में भी यह बहुत लाभकारी होती है। मिरगी के दौरों में यह विद्युत स्फुरण के लिए उत्तरदायी केन्द्र को शांत करते हैं इससे स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती है तथा दौरे धीरे−धीरे घटते हुए लगभग बिल्कुल बंद हो जाते हैं। उन्माद में भी यह इसी प्रकार काम करती है।
उदासी, निराशाभाव तथा अधिक बोलने से होने वाले स्वर भंग में भी ब्राह्मी बड़ी गुणकारी होती है। यदि कोई बच्चा जन्म से ही तुतलाता हो तो उसका उपचार भी ब्राह्मी द्वारा सफलतापूर्वक किया जा सकता है। अनिद्रा के उपचार के लिए ब्राह्मी चूर्ण की तीन ग्राम मात्रा को गाय के दूध के साथ रोगी को दिया जाता है। यदि ताजा पत्ते उपलब्ध हों तो इसके 20−25 पत्तों को अच्छी तरह साफ करके आधा किलो गाय के दूध में घोंट छानकर लगभग सात दिनों तक दिया जाता है। इससे वर्षों पुराना अनिद्रा का रोग भी दूर हो जाता है।
मिरगी के दौरों में ब्राह्मी का रस आधा चम्मच शहद के साथ दिया जाता है यदि रस उपलब्ध नहीं हो तो चूर्ण का शहद के साथ प्रयोग किया जा सकता है। शुरू में चूर्ण केवल ढाई ग्राम ही देना चाहिए परन्तु यदि फायदा न हो तो 5 ग्राम तक दिया जा सकता है।
स्मृति दौर्बल्य तथा अल्पमंदता में ब्राह्मी का रस या चूर्ण पानी या मिसरी के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए। ब्राह्मी के तेल की मालिश से मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है। तेल बनाने के लिए 1 लीटर नारियल तेल में लगभग 15 तोला ब्राह्मी का रस उबाल लें। यह तेल सिरदर्द, चक्कर, भारीपन, चिंता आदि से भी राहत दिलाता है।
हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरन्त प्रभावी होती है जिससे सभी लक्षण तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। चिन्ता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी ज्वर या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। बच्चों को खांसी या छोटी उम्र में क्षयरोग होने पर छाती पर इसका गर्म लेप करना चाहिए। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए। अग्निमंदता रक्त विकार तथा सामान्य शोध में भी यह तुरन्त फायदा पहुंचाती है।