एक्सपोर्ट या इंपोर्ट अच्छा बिजनस हो सकता है क्योंकि इसमें अच्छी कमाई के साथ-साथ दूसरे देशों में घूमने और उन्हें जानने का मौका भी मिलता है। अच्छे एक्सपोर्टर या इंपोर्टर बनने के लिए इस फील्ड से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी होना जरूरी है, वरना फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है। एक्सपर्ट्स की मदद से एक्सपोर्ट-इंपोर्ट से जुड़ी अहम जानकारियां और सावधानियां दे रही हैं प्रियंका सिंह :
शुरुआत से पहले होमवर्क
- सबसे पहले तय करें कि आप किस फील्ड में बिजनस करना चाहते हैं। उसके बारे में पूरी स्टडी करें, जानकारी जमा करें। इसके लिए इंटरनेट के अलावा उस फील्ड से जुड़े लोगों से मिलें और उनसे सीखें।
- एक्सपोर्ट के लिए प्रॉडक्ट की डिमांड के बारे में जानकारी जमा करें और देखें कि कौन-से देशों में उसकी मांग ज्यादा है और वहां इसका इस्तेमाल कैसे होता है। अच्छे मार्केट तलाशें।
- सप्लाई चेन और मटीरियल फ्लो के बारे में अच्छी जानकारी लें। मैन्युफैक्चरिंग हब से लेकर लीड टाइम (प्रॉडक्ट तैयार होने में लगने वाला वक्त), शेल्फ टाइम (जितने वक्त के लिए मटीरियल स्टोर में रहेगा) के बारे में जानें।
- एक्सपोर्ट में प्रॉडक्ट का सेलेक्शन सबसे अहम है। कम कीमत से शुरू करना चाहते हैं तो ऐसा प्रॉडक्ट चुनें, जिसमें आइडिया अहम हो।
- जिस भी देश में काम शुरू करना हो, वहां की स्टडी करें। देखें कि वहां उस प्रोडक्ट का कॉम्पिटिशन कैसा है। हर बाजार के नियम-कायदे अलग हैं। उनका ध्यान रखें।
- इसके बाद पता लगाएं कि आपकी मदद के लिए कौन-सी सरकारी स्कीम या संस्थाएं हैं। मसलन, क्लस्टर एक अच्छी सरकारी स्कीम है, लेकिन लोग दूसरों को पता न लग जाए, इस डर से इसका फायदा नहीं उठाते। इसमें एक ही तरह के प्रॉडक्ट बनाने वाले लोग मिलकर सरकार को अप्रोच करते हैं और फिर सरकार उसे एक इंडस्ट्री की तरह मानकर मदद करती है। इस स्कीम में 80 फीसदी फंडिंग बिना ब्याज होती है। देखें : msmedinewdelhi.gov.in
- एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम, विशेष कृषि एंड ग्राम उद्योग योजना (सीकेजीयूवाई), फोकस प्रोडक्ट स्कीम (एफपीएस), मार्केट लिंक्ड फोकस प्रोडक्ट स्कीम (एमएलएफपीएस), स्पेशल बोनस बेनेफिट स्कीम, साथ ही ड्यूटी वापस लेने की स्कीम भी है।
स्कीमों की और जानकारी के लिए आप eximguru.com, eximbankindia.com, commerce.nic.in, indiatradefair.com आदि की मदद ले सकते हैं।
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ऐसे करें शुरुआत
- आप अपने बिजनस की शुरुआत घर में बैठकर एक फोन के साथ कर सकते हैं। हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन के साथ एक कंप्यूटर या लैपटॉप जरूरी है। अगर बहुत बड़ा ऑर्डर मिलता है तो बैंक से सपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि अडवांस पेमेंट वाले कस्मटर भी मिलते हैं।
- अट्रैक्टिव कैटलॉग बनवाएं, जिसमें आपके प्रॉडक्ट की पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसकी हार्ड और सॉफ्ट, दोनों कॉपी हों। साथ में सारे जरूरी सर्टिफिकेट भी होने चाहिए।
- आपका बिजनस कार्ड, लेटर हेड इंटरनैशनल कॉरपोरेट इमेज वाला हो। कंपनी का लोगो तैयार कराएं और कंपनी के नाम के आगे देश का नाम जोड़कर लिखें मसलन इंडियन ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड और कॉन्टैक्ट नंबर में इंटरनैशनल कोड यानी +91 जोड़ें।
- इसके बाद अलग-अलग ग्रुप और फोरम से मिलें। फ्री साइट्स को भी देखें, जोकि खरीदनेवालों की अच्छी जानकारी देती हैं। इन साइटस पर पेड लिस्टिंग कराने पर आपको बेहतर रिजल्ट मिलते हैं। ऐसी साइट्स पर लिस्टिंग के लिए कंपनियां 12-15 हजार रुपये सालाना तक चार्ज करती हैं। आप बाइंग हाउस से भी कॉन्टैक्ट कर सकते हैं। ये एक्सपोर्टर को खरीदार से कनेक्ट करने में मदद करते हैं। कुछ प्रमुख साइट्स हैं : www.indiamart.com, www.alibaba.com, www.thomasnet.com, www.exportersindia.com, www.tradeindia.com
- होमवर्क पूरा करने के बाद खुद जाकर मार्केट का जायजा लें। टारगेट मार्केट, कंस्यूमर और उनकी जरूरतों को निजी तौर पर जानने के लिए वहां जाना बेहतर है। वहां आप अपने संभावित खरीदारों या सप्लायर्स के साथ मीटिंग करें और प्रॉडक्ट बेचने व खरीदनेवाले स्टोर्स में घूमें। अपने कॉम्पिटीटर की कीमतों का जायजा लें। उसी के मुताबिक कीमत तय करें। अपने एक्सपोर्ट या इम्पोर्ट मार्केट की जियोग्रफी और भाषा को भी थोड़ा जान लें तो बेहतर है।
- विदेशों में अपना प्रॉडक्ट बेचने के इच्छुक लोकल सप्लायर्स से संपर्क करें और उन्हें भरोसा दिलाएं कि आपके विदेशों में कॉन्टैक्ट हैं और आप उनके एक्सपोर्ट एजेंट हो सकते हैं। आप उनके तमाम पेपरवर्क, शिपिंग, कस्टम और फॉरेन डिस्ट्रिब्यूशन की जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं।
नोट : अपनी ताकत और कमजोरियों को पहचानें। मौके और खतरों पर भी गौर करें।
कॉन्टैक्ट्स और कागजात जरूरी
- अपने टारगेट मुल्क के कानूनों को ध्यान में रखते हुए लाइसेंस, एक्सपोर्ट परमिट आदि की जरूरत होती है। इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के अलावा संबंधित एक्सपोर्ट अथॉरिटी इस बारे में जानकारी दे सकते हैं।
- आपको ट्रेडिंग और डिलिवरी की शर्तों, इंटरनैशनल पेमेंट के तरीकों, अंतरराष्ट्रीय व्यापार मूल्यों को समझना चाहिए और ऐसी शर्तें चुननी चाहिए, जो फायदेमंद हों। इसके बाद आप कंपनी का माल एक्सपोर्ट या इम्पोर्ट करने के लिए लीगल अग्रीमेंट करेंगे।
- अब आपके निर्माता और खरीदार दोनों के साथ कॉन्ट्रैक्ट हैं और आप काम शुरू करने के लिए तैयार हैं।
- इस बिजनेस में कॉन्टैक्ट्स बहुत अहम हैं। कॉन्टैक्ट्स पाने के लिए दूसरे देशों के कॉन्स्युलेट्स होते हैं, जिनमें कमर्शल अटैची होते हैं। इनका काम यहां अपने देशों के कमर्शल इंस्टिट्यूशंस के आउटलेट्स स्थापित करना है। ये अटैची अपने देशों के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट एंटरप्राइज ढूंढने में मदद कर सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए देखें : india. gov.in/overseas/embassies
- दूसरे देशों में मौजूद भारतीय दूतावास भी कॉन्टैक्ट्स हासिल करने और उनकी जांच का जरिया हो सकते हैं। यहां से आप किसी विदेशी कंपनी की साख और माली हालत का जायजा ले सकते हैं।
- जिन शहरों से बिजनस शुरू करना चाहते हैं, वहां के कॉन्स्युलेट्स, दूतावासों और चैंबर्स ऑफ कॉमर्स से अनुरोध करें कि वे अपने मासिक बुलेटिन में आपका नोटिस छापें। जिन कंपनियों के नाम आपको मिलें, उन्हें मेल करें।
- जब आप विदेशी कंपनियों के साथ बातचीत शुरू करें तो उनके सेल्स रिप्रजेंटेटिव्स से भी बेहतर संबंध बनाने पर ध्यान दें।
- एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया कई तरह की सेवाएं देती है, जैसे : गुड्स और सर्विसेज के एक्सपोर्ट में नुकसान होने पर क्रेडिट रिस्क इंश्योरेंस को मुहैया कराना। बैंकों और फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस को गारंटी मुहैया कराना ताकि वे एक्सपोर्टर्स को बेहतर सेवाएं दे सकें। विदेश में लोन के हिस्सेदार के तौर पर जॉइंट वेंचर बनाने वाली भारतीय कंपनियों को ओवरसीज इनवेस्टमेंट इंश्योरेंस मुहैया कराना।
यह है सबसे खास : इंपोर्टर-एक्सपोर्टर कोड का मतलब है एक्सपोर्टर या इंपोर्टर के तौर पर केंद्र सरकार से मान्यता लेने के लिए आईईसी लेना। इसे विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी), नई दिल्ली से 1,000 रुपये की ऐप्लिकेशन फीस देकर हासिल किया जा सकता है। यह फीस पेऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के जरिए जमा की जानी चाहिए, जोकि जोनल जॉइंट डीजीएफटी के फेवर में बना होना चाहिए। यह फॉर्म www.dgft.gov.in पर ऑनलाइन भी भर सकते हैं। यह फॉर्म भरने के लिए पैन कार्ड होना अनिवार्य है। ध्यान रखें कि आईईसी कोड तीन तरह के होते हैं : मर्चेंट एक्सपोर्टर, मैन्युफैक्चर एक्सपोर्टर और मर्चेंट एक्सपोर्टर/मैन्युफैक्चर एक्सपोर्टर। आप ध्यान से अपना कोड चुनें क्योंकि उसी के मुताबिक आप सरकार की अलग-अलग स्कीम का फायदा उठा सकते हैं।
नोट : कुछ खास सेंसिटिव प्रॉडक्ट्स, जैसे दवाएं, शराब, केमिकल, हथियारों के अलावा कुछ खास फूड आइटम और कपड़ों के एक्सपोर्ट या इंपोर्ट में आपको लाइसेंस की जरूरत पड़ सकती है। इसके लिए डीजीएफटी से पूरी जानकारी जरूर हासिल कर लें। अलग-अलग देशों के बहुत सारे एक्सपोर्ट सर्टिफिकेट की भी जरूरत होती है जैसे कि यूएस के लिए एएसटीएम और यूरोप के लिए ईएन सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। हमारे देश में एनएबीएल एक्रेडिट लैब्स हैं, जो ये सर्टिफिकेट मुहैया कराती हैं।
मिलना-जुलना है बहुत जरूरी
- मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स के तहत स्पेशल काउंसिल्स होती हैं, जोकि खासतौर पर एक्सपोर्ट पर ही फोकस करती हैं। ये काउंसिल अलग-अलग देशों में बायर-सेलर मीट्स कराती हैं। ये एक्सपोर्ट्स को इंटरनैशनल लेवल के ट्रेड फेयर्स में हिस्सा लेने का मौका देती हैं। ये ट्रांसलेटर्स, रहने और खाने का इंतजाम, लोकल ट्रैवल आदि का बेहद कम खर्चे पर इंतजाम कराते हैं। इसके लिए काउंसिल का मेंबर बनना जरूरी है, जिसके लिए सालाना फीस ली जाती है, जोकि काफी कम है। ज्यादा जानकारी के लिए देखें : commerce.nic.in
- इसी तरह, दूसरे देशों में लगने वाली एग्जीबिशन की भी जानकारी इंटरनेट से लें। मसलन चीन और साउथ कोरिया में लगनेवाली इलेक्ट्रॉनिक गुड्स की एग्जबीनिशन की जानकारी hktdc.com, globalsources.com से ले सकते हैं।
बैंक चुनें, सावधानी से
- आपको ऐसे बैंक का चुनाव करना है, जो आपका इंटरनैशनल कारोबार हैंडल कर सके। एक फॉरन करंसी अकाउंट खोलें। हमारे देश में यूएसडी यानी अमेरिकी डॉलर अकाउंट खोलना होता है क्योंकि अमेरिकी डॉलर दुनिया भर में चलते हैं। बैंक कैश मुहैया कराने के अलावा क्रेडिट मैनेजर का भी काम करेगा। बैंक जरूरत पड़ने पर आपके सौदों के सिलसिले में अहम सलाह और रेफरेंस भी देगा।
- बैंक से लेटर ऑफ क्रेडिट इश्यू कराएं। यह एक अहम दस्तावेज है, जो तय करता है कि जिसे आप सामान एक्सपोर्ट कर रहे हैं वह इसकी कीमत अदा कर सकेगा। ऐसा तब ही होता है जब पूरा माल बिना किसी अडवांस लिए एक्सपोर्ट किया जाता है। इसे रद्द नहीं किया जा सकता। इससे यह भी तय हो जाता है कि खरीदने वाला आपका ऑर्डर किसी भी समय कैंसल नहीं कर सकता।
- नए एक्सपोर्टस के लिए खासतौर पर क्रेडिट इंश्योरेंस एक अहम इंस्ट्रूमेंट है, जो आपको खरीदार के डिफॉल्ट या दिवालियेपन से पैदा होने वाले जोखिम से बचाता हैं। यह इंश्योरेंस तीन तरह की सेवाएं देता है : जोखिम से बचाव, कर्ज की वसूली और दावों का भुगतान।
- क्लाइंट की डिटेल्स जांचने के लिए आप डीएनबी जैसी रेटिंग एजेंसी से भी रेटिंग सर्टिफिकेट ले सकते हैं। इस रेटिंग आधार पर ही इंश्योरेंस का प्रीमियम तय होता है।
ऑर्डर को कराएं अप्रूव
- एक्सपोर्ट में मार्केट के ट्रेंड और मिजाज को समझना बहुत जरूरी है। जो पैकेजिंग एक देश में कामयाब हो, वह दूसरे देश में नाकाम हो सकती है। अगर आप कोई एक प्रॉडक्ट 3-4 मार्केट में एक्सपोर्ट कर रहे हैं, तो आपको उन सभी के ट्रेंड को अलग-अलग समझना होगा। उन मार्केट में प्रतिबंधित इंग्रेडिएंट्स और लोकल ग्रेड्स के हिसाब से अपने प्रॉडक्ट में बदलाव भी करना होगा।
- एक बार ऑर्डर फाइनल होने के बाद आपको खरीदार को प्रोफॉर्मा इनवॉयस भेजना होता है। इसमें खरीदार की पूरी डिटेल्स, डिलिवरी की डेट, गुड्स की डिटेल्स, कीमत और नियम लिखे होते हैं। यह बेहद बेसिक पर अहम डॉक्युमेंट है। आप इसमें पेमेंट के नियमों का भी चुनाव कर सकते हैं। आमतौर पर 30 एडवांस और 70 फीसदी डिलिवरी के वक्त पेमेंट का नियम सही रहता है।
- इंपोर्ट में हो सके तो पहले सैंपल मंगवाएं और बाद में बल्क ऑर्डर दें। एक्सपोर्ट में आपको टाइम पर डिलिवर करना है, इसलिए अपने खरीदार से प्रॉडक्ट को अप्रूव करा लें। अगर खरीदार बड़ा है तो उसकी एजेंसी होगी, जो आपकी फैक्टरी या प्रॉडक्शन हाउस आकर सामान देखेगी। अगर खरीदार बड़ा नहीं है तो आप ईमेल से फोटो भेज सकते हैं या कूरियर से सैंपल भेजकर अप्रूव करा सकते हैं।
- अप्रूव होने के बाद आप खरीदार के नॉमिनेटिड शिपर को कॉन्टैक्ट करें ताकि वह शिपमेंट के लिए कंटेनर मुहैया कराए। अगर खरीदार का शिपर नहीं है तो आप शिपर तलाश कर खरीदार से अप्रूवल ले लें।
ट्रांसपोर्टेशन का इंतजाम
- एक्सपोर्ट-इंपोर्ट में ट्रांसपोर्ट बहुत अहम भूमिका निभाता है। आपको एफओबी (फ्रेट ऑन बोर्ड) यानी गोदाम से लेकर माल के लोड होने तक की कीमत कोट करनी होगी क्योंकि इंडिया में बहुत सारे कस्टमर को वेट (समुद्री) पोर्ट की जरूरत होती है। कीमत कोट करते वक्त सावधानी बरतें क्योंकि आमतौर पर लोग वेट पोर्ट की कीमत नहीं लिखते। कंटेनर को लोड कराने के लिए आईसीडी (तुगलकाबाद, लोनी, दादरी) के साथ रजिस्ट्रेशन करना होगा। ध्यान रखें कि कंटेनेर आपके नाम पर बुक होता है इसलिए आपको एक सिक्युरिटी अमाउंट डिपॉजिट करना होगा और जब तक कंटेनर तय जगह पर नहीं पहुंचकर वहां से रिलीज़ नहीं होगा, जिम्मेदारी आप पर होगी। अगर सारी चीजें सही हैं तो कंटेनर खरीदार की ओर निकल जाएगा। अलग-अलग देशों के लिए सेलिंग टाइम अलग है जैसे कि यूएस के लिए 30 दिन, साउथ अफ्रीका के लिए 20-25 दिन, यूरोप के लिए 20-25 दिन लगते हैं।
- अगर प्लेन से माल भेजना है तो अलग-अलग फ्लाइट के रेट कंपेयर करें। फॉरवर्डिंग एजेंट की मदद लें। ये एजेंट सामान को भेजने में आने वाली मुश्किलों को आसान करते हैं और इसके बदले चार्ज करते हैं।
- ध्यान रखें कि यह पूरी प्लानिंग से होता है। आपको अपना शिपमेंट टाइम पर देना है, इसलिए आपको कंटेनर की बुकिंग पहले से करके रखनी होगी। शिपिंग की डेट भी फिक्स होती है, जिसे आप मिस नहीं कर सकते क्योंकि इसका पूरा एक साइकल होता है।
विवाद होने पर
- माल रिजेक्ट होने पर सबसे पहले आपको अपने खरीदार से बात करके रकम कुछ कम करके मामला हल करने की कोशिश करनी चाहिए।
- विवाद चाहें कैसा भी हो उसे हल करने के लिए हर एंबेसी में एक अलग कमर्शल रिड्रेसल विंग होता है।
- वह ऐसे मामले को सुलझाने में मदद करता है।
- विवाद से होने वाले नुकसान से बचने के लिए सामान का इंश्योरेंस कराना चाहिए। सरकार भी अलग-अलग स्कीमों के जरिए इंश्योरेंस कराती है।
क्या खासियतें जरूरी
- मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेडिंग से जुड़ी बेसिक जानकारी
- पूरे प्रॉसेस को अच्छी तरह मैनेज करने की आर्ट
- अपनी बातों और बर्ताव से दूसरों का भरोसा जीतने की क्वॉलिटी
- अपना माल बेचने का हुनर होना
- प्रॉडक्ट की क्वॉलिटी से समझौता न करना
- वक्त पर डिलिवरी सुनिश्चित कराना
क्या करें
- अपने टारगेट मुल्क के कायदों को फॉलो करें।
- डिलिवरी शेड्यूल और पेमेंट शेड्यूल को लेकर साफ अग्रीमेंट बनाएं।
- अपने प्रॉडक्ट का इंश्योरेंस कराएं।
- अपने प्रॉडक्शन और क्वॉलिटी को लेकर बढ़ चढ़ कर कमिटमेंट न करें।
- एक साथ कई के बजाय किसी एक प्रोडक्ट पर फोकस करें।
क्या न करें
1. मार्केट में घुसने से पहले उसकी अच्छी तरह जानकारी न लेना
2. अधूरे या सही कागजात न होना
3. सरकारी स्कीमों की जानकारी न होना
4. सरकारी महकमों में सही ढंग से रजिस्ट्रेशन न कराना
5. इंस्पेक्शन प्रोसेस को फॉलो न करना
6. किसी एक ही खरीदार या सप्लायर पर डिपेंड रहना
पहले 5-7 साल जमकर किया स्ट्रगल
पहले 5-7 साल जमकर किया स्ट्रगल
आज से 12 साल पीछे देखती हूं तो लगता है कि पहले के मुकाबले एक्सपोर्ट अब बहुत आसान हो गया है। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद करीब 6 साल नौकरी की और उसके बाद मैंने कुछ अपना करने की सोची। पहले साड़ी और सूट्स के लोकल मार्केट में काम किया लेकिन वहां पेमेंट का बहुत पंगा था। फिर मैंने एक्सपोर्ट में आने की सोची। मैंने इंटरनेट की मदद ली और मिडल ईस्ट के देशों के फैशन पर फोकस किया। कुल 4.5 लाख रुपये से शुरुआत की। अपने कुछ सैंपल तैयार कराए और फिर उन्हें लेकर कुवैत और दुबई गई। वहां की एग्जीबिशन में हिस्सा लिया। पहला ऑर्डर बहुत छोटा-सा था, सिर्फ 70-80 पीस का। पर लगा कि चलो शुरूआत तो हुई। उस वक्त कपड़ा लाने से लेकर डिजाइनिंग तक का काम मैं खुद करती थी। फिर धीरे-धीरे और बायर्स आने लगे। इसी तरह एक देश से दूसरे देश तक के खरीदार अप्रोच करने लगे। आज एक ठीक-ठीक टीम और कारीगरों की बड़ी संख्या मेरे साथ काम कर रही है। शुरूआत में सबसे ज्यादा दिक्कत आई डॉक्युमेंट्स पूरे करने की। मेरा शिपमेंट तैयार था और मैं डीएम के ऑफिस में बैठी थी अपना पैनकार्ड लेने के लिए। उस वक्त यह इतनी आसानी से नहीं मिलता था। इसी तरह मैंने अपना आईईसी कोड भी खुद ऑफिस में बैठकर निकलवाया। फिर पेमेंट की दिक्कत आई। मिडिएटर पैसा लेकर भाग गए तो कुछ माल लेकर गायब हो गए। शुरुआती 5-7 साल काफी स्ट्रगल किया। फिर धीरे-धीरे 10 मशीनों से शुरू किया गया काम आज ठीक लेवल पर पहुंच गया है। एक्सपोर्ट में आने के इच्छुक लोगों को मेरी सलाह है कि डॉक्युमेंट्स, अकाउंट्स और पेमेंट के नियम व शर्तों पर खास तौर पर गौर करें।
- शालिनी बत्रा, गारमेंट एक्सपोर्टर
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