fundudzi lake
दक्षिण अफ्रीका के प्रांत उत्तरी ट्रांसवाल में पांडुजी नाम की एक अद्भुत ङील है। इस ङील के बारे में कहा जाता है कि इसके पानी को पीने के बाद कोई जिन्दा नहीं रहा और न ही आज तक कोई वैज्ञानिक इसके पानी का रासायनिक विश्लेषण कर पाया है।
मुटाली नामक जिस नदी से इस ङील में पानी आता है, उसके उद्गम स्थल का पता लगाने की भी वैज्ञानिकों ने बहुत कोशिश की, मगर इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। इसकी खास बात है कि इस ङील का पानी अजीबो-गरीब तरीके से ज्वार भाटे की तरह उठता व गिरता है।
सन् 1947 में हैडरिक नामक एक किसान ने ङील में नाव चलाने का प्रयास किया। नाव सहित जैसे ही वह ङील के बीचों-बीच पहुंचा, वह रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। वहां के निवासियों ने उसका पता लगाया, लेकिन हैडरिक और उसकी नाव का कहीं कोई पता नहीं चल सका।
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सन् 1953 में बर्न साइड नामक एक प्रोफेसर ने इस ङील के रहस्य से पर्दा उठाने का बीड़ा उठाया। प्रोफेसर बर्न साइड अपने एक सहयोगी के साथ अलग-अलग आकार की 16 शीशियां लेकर पांडुजी ङील की तरफ चल पड़े। उन्होंने अपने इस काम में पास के बावेंडा कबीले के लोगों को भी शामिल करना चाहा, लेकिन कबीले के लोगों ने जैसे ही पांडुजी ङील का नाम सुना तो वे बिना एक पल की देर लगाए वहां से भाग खड़े हुए। कबीले के एक बुजुर्ग आदिवासी ने बर्न साइड को सलाह भी दी कि अगर उन्हें अपनी और अपने सहयोगी की जान प्यारी है तो पांडुजी ङील के रहस्य को जानने का विचार फौरन ही छोड़ दें। उसने कहा कि वह मौत की दिशा में कदम बढ़ा रहा है क्योंकि आज तक जिसने भी इस ङील के रहस्य से पर्दा उठाना चाहा,वह जिन्दा नहीं बचा।
प्रोफेसर बर्न साइड वृद्ध आदिवासी की बात सुनकर कुछ वक्त के लिए परेशान जरूर हुए, लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे, साहस जुटाकर वह फिर ङील की तरफ चल पड़े। एक लंबा सफर तय कर जब वे ङील के किनारे पहुंचे तब तक बहुत रात हो चुकी थी।
अंधेरा इतना घना था कि पास की चीज भी दिखाई नहीं दे रही थी।
इस भयानक जंगल में प्रोफेसर बर्न साइड ने अपने सहयोगी के साथ सुबह का इंतजार करना ही बेहतर समझ। सुबह होते ही बर्न साइड ने ङील के पानी को देखा, जो काले रंग का था। उन्होंने अपनी अंगुली को पानी में डुबोया और फिर जबान से लगाकर चखा।
उनका मुंह कड़वाहट से भर गया। इसके बाद बर्न साइड ने अपने साथ लाई गईं शीशियों में ङील का पानी भर लिया। प्रोफेसर ने ङील के आसपास उगे पौधों और झड़ियों के कुछ नमूने भी एकत्रित किए। उन्होंने और उनके सहयोगी ने वहां से चलने का फैसला किया।
ङील के बारे में सुनीं बातों को लेकर वे आशंकित थे ही, इसलिए उन्होंने तय किया कि बारी-बारी से सोया जाए। जब प्रोफेसर बर्न साइड सो रहे थे तब उनके सहयोगी ने कुछ अजीबो-गरीब आवाजें सुनीं। उसने घबराकर प्रोफेसर को जगाया। सारी बात सुनने पर बर्न साइड ने आवाज का रहस्य जानने के लिए टार्च जलाकर आसपास देखा, लेकिन उन्हें कुछ भी पता नहीं चला। आवाजों के रहस्य को लेकर वे काफी देर तक सोचते रहे।
सवेरे चलने के समय जैसे ही उन्होंने पानी की शीशियों को संभाला तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं। हैरानी की एक बात यह भी थी कि शीशियों के ढक्कन ज्यों के त्यों ही लगे हुए थे। वे एक बार फिर पांडुजी ङील की तरफ चल पड़े। लेकिन बर्न साइड खुद को अस्वस्थ महसूस कर रहे थे, उनके पेट में दर्द भी हो रहा था। वे ङील के किनारे पहुंचे। बोतलों में पानी भरा और फिर वापस लौट पड़े।
रास्ते में रात गुजारने के लिए वे एक स्थान पर रुके, लेकिन इस बार उनकी आंखों में नींद नहीं थी। सुबह दोनों यह देखकर फिर हैरान रह गए कि शीशियां खाली थीं। बर्न साइड का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए वे खाली हाथ ही लौट पड़े।
घर पहुंचने पर नौवें दिन बर्न साइड की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आंतों में सूजन आ जाने के कारण बर्न साइड की मौत हुई थी।
प्रोफेसर द्वारा एकत्रित ङील के समीप उगे पौधों के नमूने भी इतने खराब हो चुके थे कि उनका परीक्षण कर पाना मुमकिन नहीं था।
बर्न साइड का जो सहयोगी उनके साथ पांडुजी ङील का रहस्य जानने गया था, उनकी मौत उनके एक हफ्ते बाद हो गई। वह पिकनिक मनाने समुद्र तट पर गया, वह एक नाव में बैठकर समुद्र के किनारे से बहुत दूर चला गया।
दो दिन बाद समुद्र तट पर उसकी लाश पाई गई। आज तक इस रहस्य का पता नहीं लग पाया है कि उसकी मौत महज एक हादसा थी या खौफनाक पांडुजी ङील का अभिशाप।
इस अभिशप्त ङील के बारे में जानकारी हासिल करने वालों की मौत भी इस ङील के रहस्य की तरह ही एक रहस्य बनकर रह गई है।
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