नई दिल्ली। अमेरिका में तत्कालीन पाकिस्तानी राजदूत रियाज खोखर ने खुलासा किया है कि कारगिल युद्ध में भारत की जवाबी कार्यवाही देख अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना को तुरंत पीछे हटने के लिए कहा था। खोखर ने कहा है कि अमेरिका को भारतीय गुस्से का अंदाजा हो गया था, इसलिए उसने ऐसा कहा था। खोखर के मुताबिक, उन्होंने यह संदेश पाकिस्तान के हुक्मरानों तक पहुंचा दिया था।
कारगिल युद्ध में जहां हमने कई बहादुर अफसरों और जवानों को खोकर पाकिस्तानी मंसूबों को नेस्तनाबूद किया था, वहीं उसके बाद की परिस्थितियों में भी भारत ने सीमा पार से हो रही बेवजह की कार्यवाही का करारा जवाब दिया था। भले ही कारगिल युद्ध के 15 साल बाद इस्लामाबाद साहित्य महोत्सव में यह मुद्दा उठा हो, लेकिन पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव खोखर, पूर्व राजदूत तारिक उस्मान हैदर और पत्रकार नसीम जेहरा सहित सभी वक्ताओं की मौजूदगी में हुए इस खुलासे से कारगिल युद्ध की यादें ताजा कर दीं। कारगिल के 15 साल बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा सीमा पर हरकतें बंद नहीं हुई हैं।
कई राज छिपे हैं कारगिल युद्ध में-
भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था। इसकी शुरुआत हुई थी 8 मई 1999 से जब पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था। यह लड़ाई 14 जुलाई तक चली थी। माना जाता है कि पाकिस्तान इस ऑपरेशन की 1998 से तैयारी कर रहा था। 14 जुलाई 1999 को दोनो देशों ने कारगिल पर अपनी कार्यवाही रोक दी थी। इसके बाद 26 जुलाई को भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ था।
कारगिल युद्ध कोई भी आसानी से भुला नहीं सकता। कारगिल की लड़ाई में कई खास बातें थी जिनकी वजह से इस युद्ध का परिणाम ही बदल गया था। कारगिल की लड़ाई अपने आप में कई राज छुपाए हुए है। उस समय क्या हुआ था, ये कोई नहीं जानता। हर कोई अलग-अलग अंदाजा लगाता है। कारगिल के बारे में ऐसे कुछ राज हैं जिनके बारे में आपको शायद न पता हों। हम आज आपको बताने जा रहे हैं कारगिल से जुड़े कुछ अहम राज जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
कारगिल युद्ध में शामिल थे मुजाहिद्दीन लड़ाके -
पाकिस्तान ने दावा किया था कि कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिक नहीं बल्कि मुजाहिद्दीन लड़ाके शामिल थे। एक बड़े खुलासे के तहत पाकिस्तान का यह दावा झूठा साबित हुआ है। करगिल लड़ाई में मुजाहिद्दीन शामिल नहीं थे। यह लड़ाई पाकिस्तान के नियमित सैनिकों ने लड़ी। इसका पूरा सच अब भी लोग नहीं जानते। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने यह राज उजागर किया है। उन्होंने 1999 की इस लड़ाई को ‘निरर्थक’ भी करार दिया।
मुशर्रफ थे जिम्मेदार-
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) अजीज ने कहा था कि पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने पूरे मामले को ‘रफा-दफा’ कर दिया। वे ही भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए भी जिम्मेदार हैं। मुशर्रफ और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस लड़ाई के बारे में जानते थे। मुशर्रफ खुद नक्शों के साथ नवाज शरीफ से मिलते थे।
मुशर्रफ ने सीमा पार कर भारत में बिताई एक रात -
कारगिल सेक्टर में 1999 में भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी और भारतीय भूभाग में करीब 11 किमी अंदर एक स्थान पर एक रात भी बिताई थी। यह दावा स्वयं मुशर्रफ के एक पूर्व सहायक ने किया है। मुशर्रफ के साथ 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे. दोनों ने जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी। इस खुलासे के बाद यह साफ हो गया है कि जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध में एक अहम भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान का यह दावा कि कारगिल की लड़ाई सुनियोजित नहीं थी बिल्कुल गलत साबित हुआ है।
पाकिस्तान इस्तेमाल करने वाला था परमाणु हथियार -
कारगिल की लड़ाई का एक और अहम राज परमाणु हथियारों से जुड़ा हुआ है। जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था। कई लोगों का कहना है कि कारगिल की लड़ाई उम्मीद से ज्यादा खतरनाक थी। हालात को देखते हुए और भारतीय सेना की दमदार जवाबी कार्रवाई से परेशान होकर मुशर्रफ ने परमाणु हथियार तक इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली थी। अगर इस लड़ाई में परमाणु हथियारों का प्रयोग किया जाता तो यह और खतरनाक हो सकती थी।
5000 जवानों के साथ पाक सेना ने की थी कारगिल पर चढ़ाई-
पाकिस्तानी सेना कारगिल युद्ध को 1998 से अंजाम देने की फिराक में थी। इस काम के लिए पाक सेना ने अपने 5000 जवानों को कारगिल पर चढ़ाई करने के लिए भेजा था। सूत्रों के मुताबिक, पाक सेना ने 132 पोस्ट में 1000 से ज्यादा सैनिकों की भर्ती की थी। इस संख्या को 4 गुना बढ़ा दिया गया था। इसी के साथ पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एक गहरी साजिश रची थी।
पाकिस्तानी एयरफोर्स ने नहीं दिया था साथ-
कारगिल की लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को पहले इस ऑपरेशन की खबर नहीं दी गई थी। जब इस बारे में पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को बताया गया तो उनहोंने इस मिशन में आर्मी का साथ देने से मना कर दिया था। इसी के साथ पाकिस्तानी नौसेना ने भी इस ऑपरेशन में साथ नहीं दिया था।
पाकिस्तानी सेना ने सैनिकों को वापस बुलाने के निर्णय का समर्थन किया था-
पाकिस्तानी सेना की रणनीति काफी कमजोर थी। भारतीय सैनिकों के डटकर मुकाबला करने के कारण पाक सेना की कमर टूट गई थी। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी सेना वापस बुलाने की बात को स्वीकार कर लिया था। पाकिस्तानी सेना युद्ध के अंतिम हफ्ते में भारतीय सैनिकों के हाथों खाई मार को बर्दाश्त नहीं कर पाई थी।
पाकिस्तान ने खो दिए थे 2700 से ज्यादा सैनिक-
उर्दू डेली में छपे एक बयान में नवाज शरीफ ने इस बात को स्वीकारा था कि कारगिल का युद्ध पाकिस्तानी सेना के लिए एक आपदा साबित हुआ था। पाकिस्तान ने इस युद्ध में 2700 से ज्यादा सैनिक खो दिए थे। भारतीय सैनिकों के जोश के आगे पाकिस्तान की सेना कम पड़ गई थी। पाकिस्तान को 1965 और 1971 की लड़ाई से भी ज्यादा नुकसान हुआ था।
भारतीय वायुसेना ने किया था मिग विमानों का प्रयोग-
भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ कारगिल युद्ध में मिग-27 और मिग-29 का प्रयोग किया था। मिग-27 की मदद से इस युद्ध में उन स्थानों पर बम गिराए जहां पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था। इसके अलावा मिग-29 करगिल में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ इस विमान से पाक के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलें दागी गईं थीं। इनकी वजह से भारत को इस युद्ध में अहम बढ़त मिली थी। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि कारगिल की पहाड़ियों पर विमान उड़ाना बेहद खतरनाक है। हमारी वायुसेना के जांबाज सैनिकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर कारगिल में जीत दिलवाई थी।
इस्तेमाल किए गए थे 300 विमान-
8 मई को कारगिल युद्ध शुरू होने के बाद 11 मई से भारतीय वायुसेना की टुकड़ी ने इंडियन आर्मी की मदद करना शुरू कर दिया था। कारगिल की लड़ाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में वायुसेना के करीब 300 विमान उड़ान भरते थे।
भरी गईं थी 550 से ज्यादा उड़ाने-
वेस्टर्न एयर कमांड ने तीन हफ्तों की ट्रेनिंग ली थी। इस ट्रेनिंग में करीब 5000 उड़ानों का टारगेट बनाया गया था। वायुसेना के चीफ का दावा है कि कारगिल के युद्ध के दौरान करीब 550 उड़ाने भरी गईं थीं। इन उड़ानों के चलते वायुसेना दिन-रात एक कर केवल दुश्मनों को धूल चटाने की कोशिश में लगी रही।
गिराए जाते थे रोजाना 200 बम-
कारगिल के युद्ध के समय भारतीय वायुसेना ने कारगिल युद्ध में सबसे ज्यादा गोला-बारूद इस्तेमाल किया गया था। कारगिल के युद्ध में वायुसेना ने करीब 35000 टारगेट प्लान किए थे। पाकिस्तान हमारी वायुसेना के आगे टिक नहीं पाया ।
कारगिल में उड़ान भरना था बेहद खतरनाक-
कारगिल का इलाका भारत के कुछ सबसे दुर्गम इलाकों में से एक है। कारगिल की ऊंचाई समुद्र तल से 16000 से 18000 फीट ऊपर है। ऐसे में उड़ान भरने के लिए विमानों को करीब 20,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ना पड़ता है। ऐसी ऊंचाई पर हवा का घनत्व 30% से कम होता है। इन हालात में पायलट का दम विमान के अंदर ही घुट सकता है और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है।
युद्ध के बाद आला अफसरों का कर दिया था तबादला-
युद्ध के पहले वायुसेना ने खासी तैयारी की थी। इस युद्ध के लिए वायुसेना के सैनिकों को तीन हफ्तों की कड़ी ट्रेनिंग दी गई थी। मगर आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि इस युद्ध के बाद वायुसेना के कमांडर इन चीफ और सीनियर एयर स्टाफ ऑफिसर का विवादास्पद रूप से तबादला कर दिया गया था। यह क्यों किया गया किसी को नहीं पता।
घातक हो गई थी बोफोर्स तोप -
बोफोर्स तोप की गिनती दुनिया के सबसे घातक तोपों में होती है। हल्के वजन के कारण इसे युद्धभूमि में कही भी तैनात करना और यहां-वहां ले जाना आसान होता है। 155 mm लंबी बैरल वाली यह तोप एक मिनट में 10 गोले दागने की ताकत रखती है। तोप की सबसे बड़ी खासियत इसे -3 डिग्री से लेकर 70 डिग्री के ऊंचे कोण तक फायर करने की है। इस खासियत से यह तोप पहाड़ी इलाकों में बहुत उपयोगी साबित होता है। यह 27 किलोमीटर की दूरी तक गोले दाग सकता है।
कारगिल की लड़ाई में बना था रिकॉर्ड-
भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध में तोपखाने (आर्टिलरी) से 2,50,000 गोले और रॉकेट दागे गए थे। 300 से अधिक तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों ने रोज करीब 5,000 बम फायर किए थे। लड़ाई के महत्वपूर्ण 17 दिनों में प्रतिदिन हर आर्टिलरी बैटरी से औसतन एक मिनट में एक राउंड फायर किया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली ऐसी लड़ाई थी, जिसमें किसी एक देश ने दुश्मन देश की सेना पर इतनी अधिक बमबारी की थी।
(साभार)