ऑपरेशन के रूप में हिस्टेरेक्टॅमी का इलाज दो सर्जिकल विधियों (लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और ओपन सर्जरी) द्वारा किया जा रहा है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि उलर भारत में हिस्टेरेक्टॅमी से सबधित लगभग 80 फीसदी से अधिक मामले ओपन सर्जरी के जरिये ही किए जा रहे हैं। जबकि ओपन सर्जरी की तुलना में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिये हिस्टेरेक्टॅमी का ऑपरेशन काफी सुरक्षित, कारगर व सुविधाजनक है।
क्या हैं कारण
हिस्टेरेक्टॅमी का ऑपरेशन इन स्थितियों में किया जाता है..
-माहवारी के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, जो दवाओं से ठीक नहीं हो रहा हो।
-40 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में फाइब्रॉयड का होना।
-एंडोमैट्रियोसिस और एडेनोमायोसिस नामक रोग होना।
-गर्भाशय व अंडाशय के सर्विक्स या ट्यूब का कैंसर।
-गर्भाशय के किसी भाग में कैंसर पूर्व अवस्था।
अतीत में हिस्टेरेक्टॅमी पेट पर एक बड़ा चीरा लगाने के बाद ही की जाती थी, लेकिन अब गर्भाशय को निकालने की इस विधि को अधिकतर स्त्री रोग विशेषज्ञ पुराना मानते हैं। दुनिया के अधिकतर देशों में 30 प्रतिशत सर्जरी ओपन तकनीक से की जाती है, जिसके कारण सर्जरी के बाद पीडि़त महिला को स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है।
तुलना दोनों सर्जरी की
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी, ओपन सर्जरी की तुलना में कई गुना बेहतर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सर्जन या स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी दृश्य को 20 गुना बड़ा और अच्छी तरह से देख सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में विशेष उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि सर्जन ओपन सर्जरी की तुलना में कहींअधिक अच्छे ढंग से बेहतर गुणवत्त के साथ सर्जरी कर सके।
भ्रातिया और तथ्य
लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी से कुछ मिथक जुड़े हैं, जिनका तथ्यों की रोशनी में निवारण करना जरूरी है
भ्राति: लेप्रोस्कोपी से बड़े आकार के गर्भाशय की सर्जरी नहीं की जा सकती।
तथ्य: इस तरह की धारणा गलत है। सच तो यह है कि लैप्रोस्कोपी से किसी भी आकार के गर्भाशय की सर्जरी की जा सकती है।
भ्राति: जो महिलाएं पहले ही सर्जरी करा चुकी हैं या जिनके बच्चे ऑपरेशन से हुए हैं, उनकी लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी सभव नहीं है।
तथ्य: जो महिलाएं पहले भी सीजेरियन या अन्य किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण ओपन सर्जरी करा चुकी हैं, वे भी लैप्रोस्कोपी के द्वारा सर्जरी करा सकती हैं। इन दिनों स्तरीय लैप्रोस्कोपिक केन्द्रों पर कैसर सर्जरी (जैसे -सर्विक्स, गर्भाशय, आदि) भी लेप्रोस्कोपी के जरिये आसानी से की जा सकती है।
भ्राति: लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी अधिक महंगी है।
तथ्य: यह मिथक पूरी तरह से गलत है क्योंकि लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी, ओपन सर्जरी की तुलना में न सिर्फ तुलनात्मक रूप से सस्ती है बल्कि पीडि़त महिला जल्द ही अपने काम पर जा सकती है और इस तरह उसे अपनी कमाई करने में मदद मिल सकती है।
भ्राति: लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॅमी के बाद आखें और हड्डिया कमजोर हो जाती हैं और हार्मोन्स में असतुलन पैदा हो जाता है।
तथ्य: इन दिनों हिस्टेरेक्टॅमी के द्वारा अंडाशय (ओवरी)को आम तौर पर नहीं निकाला जाता (जब तक कि पीडि़त महिला कैंसर से ग्रस्त न हो)। अंडाशय से उत्सर्जित होने वाले हार्मोन्स में सामान्य तौर पर कोई गड़बड़ी नहीं होती है और न ही हिस्टेरेक्टॅमी के बाद आखें और हड्डिया कमजोर होती हैं।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और ओपन सर्जरी में अंतर
1. अस्पताल में सिर्फ एक दिन रहना पड़ता है।
2. रक्त का बहुत कम नुकसान होता है (100 मिली से भी कम)। अधिकतर मामलों में रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।
3. आई. वी. ड्रिप की जरूरत नहीं होती है।
4. बहुत कम दर्द होता है (अधिकतर पीडि़त महिलाओं को दर्दनिवारक गोलिया लेने की भी जरूरत नहीं पड़ती)।
5. ऑपरेशन कराने के बाद महिला दो-तीन दिनों में ही काम पर वापस लौट सकती है।
6. कम महंगी है।
1. अस्पताल में पाच से छह दिनों तक रहना पड़ता है।
2. रोगी में करीब 500 मिली रक्त का नुकसान होता है। ओपन सर्जरी में कई बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
3. आई. वी. ड्रिप की जरूरत 24 घटे तक होती है।
4. अधिक दर्द होता है (सर्जरी के बाद 3-4 दिनों तक दर्द रहता है)।
5. आम तौर पर एक महीने के बाद काम पर लौट सकती हैं। कुछ महिलाओं को इससे ज्यादा वक्त लग सकता है।
6. अधिक महंगी है।
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