Saturday, March 23, 2013

जल है तो हम हैं



तुमने कई बार सुना होगा कि पानी के बिना हम जी नहीं सकते। पानी के बिना सब सूना है। पर क्या इस बात को महसूस भी किया है? यदि नहीं तो 22 मार्च को आ रहे विश्व जल दिवस पर तुम केवल एक दिन सुबह उठने से लेकर रात को सोते समय तक कब-कब तुमने पानी का इस्तेमाल होते हुए देखा, यह नोट करो। तुम्हें खुद ही समझ आ जाएगा कि पानी कितना जरूरी है। 
पानी अनमोल है। यह कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से ही लगा सकते हो कि अगर धरती पर पानी नहीं होगा तो न पेड़-पौधे होंगे, न जल की रानी मछली होगी, न शेर होगा, न तोते और गौरैया और न ही मनुष्य। छोटे-छोटे कीड़ों से लेकर बड़े पेड़ों को जीवित रहने के लिए पानी की जरूरत होती है। तुम ऐसा मान सकते हो कि जैसे सांस लेने के लिए हवा जरूरी है, वैसे ही जीने के लिए पानी।
हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है। पानी हमारे शरीर की कोशिकाओं और खून में होता है। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है। यहां तक कि खाना पचाने के लिए भी पानी की जरूरत होती है। साथ ही ऑक्सीजन लेने के लिहाज से भी पानी जरूरी होता है।
पानी की तीन अवस्थाएं होती हैं। ठोस, द्रव और गैस। ठोस पानी को बर्फ कहा जाता है, द्रव अवस्था में पानी हम हर रोज इस्तेमाल करते ही हैं। और जब पानी उबलकर भांप बनता है या सूर्य की किरणों से वाष्पीकृत होकर ऊपर चला जाता है तो यह उसकी गैस अवस्था होती है। गैस अवस्था ही बारिश होने का कारक बनती है। पृथ्वी में पानी सतह के ऊपर नदियों, झरनों के रूप में मिलता है। सतह के नीचे भी पानी होता है। तुम्हें यह जानकर हैरत होगी कि दुनिया की करीब 90त्नआबादी को सीधे तौर पर साफ पानी नहीं मिलता है।
18% पानी पीने लायक नहीं
दिल्ली एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किया गया 18% पानी पीने लायक नहीं होता है और शहर का हर पांचवां आदमी प्रदूषित पानी पीता है। दिल्ली में करीब 60% घरों में दिल्ली जल बोर्ड का पानी प्रयोग होता है। प्रदूषित पानी पीने से कॉलरा, टायफायड, पीलिया जैसी बीमारियां हो जाती हैं। दिल्ली में औसत रूप से हर व्यक्ति को पेरिस और एम्सटर्डम की तुलना में अधिक पानी मिलता है। यहां औसतन प्रति व्यक्ति को 191 लीटर पानी मिलता है, पर उन लोगों को जहां हर समय पानी उपलब्ध होता है, वहीं दिल्ली के कुछ इलाकों में एक दिन में मुश्किल से तीस मिनट पानी मिल पाता है। समाजसेवी और पर्यावरणविद् डॉ. संजय कुमार कहते हैं, 'इतना पानी पीने के बावजूद अगर पानी की परेशानी है तो उसका कारण पानी का सही वितरण न होना और ज्यादा व्यर्थ होना है।Ó
पानी से ही गुलजार है कुदरत की खूबसूरती
कहते हैं कि कुदरत ने अपनी खूबसूरती चप्पे-चप्पे पर बिखेरी है। लहराते पेड़-पौधे हों या कल-कल कर बहते झरने, सभी इस कायनात में चमत्कार की तरह लगते हैं। एक से एक सुंदर दृश्य मन में ताजगी भर देते हैं। दुनिया भर में फैली यह खूबसूरती पानी की वजह से ही है।
जोन्हा फॉल: यह झरना झारखंड में है। गौतम बुद्ध के नाम पर इस झरने का नाम गौतम धारा पड़ गया। पास ही में यहां दो बौद्ध मंदिर हैं, जो राजा बलदेव राय द्वारा बनवाए गए थे।
आंद्रपल्ली (अतिरापल्ली) फॉल: यह झरना केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है। इस झरने की लंबाई 80 फीट है। यह झरना कालकुंडी नदी पर है। 
धुंआधार फॉल: मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में यह झरना नर्मदा नदी पर स्थित है। यह जगह मार्बल रॉक के नाम से मशहूर है। 
केम्पटी फॉल: मंसूरी का यह फॉल उत्तरांचल का मुख्य आकर्षण है।
वसुधारा फॉल: यह झरना उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
दूधसागर फॉल: यह झरना गोवा में स्थित है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसका पानी दूध के समान है। यह मांडवी नदी पर है। यह भारत का पांचवां सबसे लंबा झरना है।
हम बनेंगे जल के रक्षक
ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखेंगे। 
पांच मिनट से ज्यादा शावर नहीं चलाएंगे। फव्वारे या टब में बैठकर नहाने से पानी अधिक खर्च होता है, इसलिए ऐसा करने से बचेंगे।
पेंट, थर्मामीटर, कीटनाशक और पारे को नदी, नाले और सीवर में नहीं डालेंगे। इससे न सिर्फ पानी को दोबारा साफ करने में कठिनाई होती है, बल्कि पानी में सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले जहरीले तत्व मिल जाते हैं। 
बारिश के पानी को इक_ा करके उसका इस्तेमाल गाड़ी धोने या पौधों को देने में करेंगे।
टॉयलेट में पानी की टंकी को आधा दबाएंगे
किसी भी पाइप या नल में से पानी टपक रहा है तो उसको ठीक करवाएंगे।
रीसाइकलिंग से बच सकता है पानी
क्या तुम जानते हो कि अगर गंदे पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो पानी की किल्लत को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। पानी की समस्या को हल करने में रीसाइकलिंग एक बेहतर विकल्प हो सकता है। दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में रीसाइकिल किए गए करीब 255 मिलियन गैलन पानी का प्रतिदिन प्रयोग पीने के अलावा अन्य कामों में भी होता है। कुछ पानी का प्रयोग दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के द्वारा बसों को धोने और साफ करने में प्रयोग होता है, तो कुछ पानी एनडीएमसी और सीपीडब्ल्यूडी द्वारा हॉर्टकिल्चर के लिए होता है।
बेशकीमती है पानी
पानी अपने कई गुणों के कारण बेहतर होता है। कल्पना कीजिए कि अगर पानी में ये गुण न हों तो क्या हो? अगर पानी के कोहेसिव और एडहेसिव गुण (जिसके कारण अणु आपस में जुड़ते हैं और दूर होते हैं) खत्म हो जाएं तो आईड्रॉप से बूंद नहीं गिरेगी।
डिटर्जेट के इस्तेमाल से उठने वाला झाग भी नहीं उठ सकेगा।
अगर पानी में घुलना बंद हो जाए तो
तुम चाय या कॉफी नहीं पी सकोगे।
साबुन से बर्तन-कपड़े नहीं धुल सकेंगे।
अगर पानी में हटने का गुण न हो तो 
नहाने के बाद शरीर नहीं सूखेगा।
न तो कार के वाइपर काम करेंगे और न ही घर की सफाई के लिए पानी का इस्तेमाल हो पाएगा।
जल का सच 
सोलर सिस्टम में धरती एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां पर नदियां और समुद्र हैं और बारिश होती है। 
एक व्यक्ति खाने के बिना एक महीने से अधिक जीवित रह सकता है, वहीं पानी के बिना एक हफ्ते से अधिक जीवित रहना मुश्किल होता है। 
धरती पर 75 प्रतिशत पानी है। 
पृथ्वी का 97 प्रतिशत पानी समुद्रों में है। सिर्फ तीन प्रतिशत पानी का प्रयोग ही पीने के लिए किया जाता है। 
एक गैलन पानी 3.7865 लीटर पानी के बराबर होता है। 
दुनिया के करीब आधे स्कूलों में साफ पानी उपलब्ध नहीं है। 
विश्व की सबसे लंबी नदी नील है।
पानी से बिजली का निर्माण भी किया जाता है। दुनिया में कई हाइड्रॉलिक पावर स्टेशन लगे हैं। 
बीते सौ सालों में दुनिया के आधे से अधिक जलाशय गुम हो गए हैं।
तेल की एक बूंद से 25 लीटर पानी पीने लायक नहीं रहता।

Friday, March 22, 2013

यूं सामना करें जब आए आपात स्थिति



कई बार अचानक कार्डिएक अटैक की समस्या सामना करता पड़ता है तो कई बार अस्थमा परेशान कर देती है। कुछ खाने-पीने के बाद अचानक सांस फंसने-फूलने लगती है और कई बार हाथ जल या कट जाता है।
जानलेवा आपात स्थितियां कभी भी, कहीं भी हो सकती हैं। इनकी वजह कोई स्वास्थ्य समस्या, दुर्घटना, जहरीले पदार्थ का सेवन, प्राकृतिक आपदा या हिंसा हो सकती है। हम आपको बता रहे हैं कार्डिएक अरेस्ट, चोकिंग (सांस की नली या गले में किसी बाहरी वस्तु का फंस जाना) और अस्थमा अटैक के अचानक हुए हमले में क्या करें कि पीडिम्त की जान बचाई जा सके।
कार्डिएक अरेस्ट
कार्डिएक अरेस्ट में दिल के बंद होने से रक्त का संचरण पूरी तरह बंद हो जाता है। लक्षण नजर आने के कुछ ही मिनटों में मरीज की मौत हो जाती है। हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं, अगर कार्डिएक अरेस्ट होने के कुछ मिनटों में पीडिम्त को आकस्मिक और डॉक्टरी सहायता उपलब्ध करा दी जाए तो उसके जीवित रहने की संभावना 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
क्या करें
हार्ट एसोसिएशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्डिएक अरेस्ट आने के दस मिनट के भीतर छाती को दबाकर और तेजी से थपथपाकर तथा कृत्रिम श्वास द्वारा दिल को रिवाइव करने की कोशिश करें। ऐसा न करने पर स्थिति बिगड़ सकती है।
सबसे पहले मरीज की धड़कन चेक करें। अगर धड़कन नहीं चल रही हो तो सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन) शुरू कर दें।
सीपीआर में छाती को तेजी से दबाकर और तेजी से थपथपाकर तथा कृत्रिम श्वास द्वारा दिल को रिवाइव करने की कोशिश की जाती है।
सीपीआर से ऑक्सीजन युक्त रक्त का संचरण मस्तिष्क और हृदय में करने में मदद मिलती है।
सीपीआर
छाती को जोर-जोर से और तेजी से दबाएं।
ध्यान रहे आपका हाथ छाती के बीच में होना चाहिए। एक हाथ को हथेली की तरफ से छाती पर रखें, दूसरे हाथ को भी हथेली की ओर से ही पहले हाथ पर 90 डिग्री का कोण बनाते हुए रखें। छाती को 30 बार दबाएं, गिनती को जोर से गिनें। दबाने की रफ्तार प्रति मिनट 100 होनी चाहिए।
ढेर से दो इंच (4-5 से.मी.) दबाने के बाद छाती को सजह छोड़ दें। कोई हस्तक्षेप न करें।
सांस चेक करें। सांस नहीं चल रही हो तो रेस्क्यू ब्रीद (मुंह से कृत्रिम सांस) दें।
30 कंप्रेशन और दो कृत्रिम श्वास इन्हें बारी-बारी से दोहराएं।
अस्थमा
अस्थमा श्वास संबंधी रोग है। इसमें श्वास नलिकाओं में सूजन आने से वह सिकुड़ जाती हैं, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। लेकिन कई बार सर्द हवाओं के संपर्क में आने, अत्यधिक व्यायाम करने, कम वायु दाब वाले स्थानों जैसे पहाड़ों पर, वायु प्रदूषण या बारिश में भीगने पर अचनक अस्थमा का प्रकोप बढ़ जाता है और मरीज की सांसें उखड़ने लगती हैं। इसे अस्थमा अटैक कहते हैं। अटैक अधिक तीव्र होने पर मरीज बेहोश भी हो जाता है।
क्या करें
अस्थमा के रोगी नियमित रूप से दवाओं का सेवन करें और उन कारकों से बचें, जिनसे अस्थमा होता है तो अस्थमा के अटैक का खतरा टाला जा सकता है। परंतु फिर भी यदि कोई इमरजेंसी हो जाए तो-
बिना कोई देर किए डॉक्टर द्वारा दी दवाएं लें।
सीधे बैठ जाएं, लेटें बिल्कुल भी नहीं।
कपड़ों को ढीला कर लें, संभव हो तो आरामदायक कपड़े पहन लें।
शांत रहने का प्रयास करें।
डॉक्टर से संपर्क करें या बिना देर किए नजदीक के किसी अस्पताल में जाएं।
अगर व्यक्ति अस्थमा की कोई दवाई जैसे इनहेलर आदि इस्तेमाल कर रहा हो तो, उसे इस्तेमाल करने में उसकी मदद करें।


चोकिंग
चोकिंग तब होता है, जब कोई बाहरी वस्तु गले या सांस की नली में अटक जाती है और हवा के प्रवाह को अवरुद्ध कर देती है। बड़ों में अधिकतर खाने की कोई चीज फंस जाती है और कई बार बच्चे कोई छोटी चीज निगल लेते हैं। चोकिंग से मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जितनी जल्दी से जल्दी हो सके, प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराया जाए।
लक्षणों की जांच करें
चोकिंग का सामान्य लक्षण है कि पीडित अपने गले को हाथों से दबाता है। यह नहीं होता है तब इन संकेतों को समझें।
बोल नहीं पाना।
सांस लेने में तकलीफ होना।
त्वचा, होंठ और नाखून नीले या धूसर पड़ने लगना।
बेहोशी की स्थिति आने लगना।
क्या करें
चोकिंग होने पर रेड क्रॉस ने प्राथमिक उपचार देने के लिए ‘पांच और पांच’ की सिफारिश की है:’कमर पर पीछे कंधे की ब्लैड के बीच में मुट्ठी से पांच धीमे-धीमे मुक्के मारें।
व्यक्ति के पीछे खड़े हो जाएं। अपनी बांहें उसकी कमर के आसपास लपेट दें। व्यक्ति को थोड़ा-सा आगे की ओर झुका दें।
एक हाथ की मुट्ठी बांध लें। इसे व्यक्ति की नाभी के थोड़ा-सा ऊपर रखें।
मुट्ठी को दूसरे हाथ से पकड़ें। उसे पेट में अंदर और ऊपर की ओर तेजी से दबाएं, जैसे आप उसे उठाने का प्रयास कर रहें हों।
कुल पांच बार जोर-जोर से पेट में अंदर की ओर झटके दें। फिर भी ब्लॉकेज न निकले तो इसे पांच-पांच के समूह में दोहराते रहें।
चिकित्सा सहायता पहुंचने से पहले अगर व्यक्ति बेहोश होने लगे तो उसे सीपीआर और कृत्रिम श्वास दें। वैसे अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन कमर पर घूंसे मारने की सिफारिश नहीं करता है।
रखें इन बातों का ध्यान
घर में फर्स्ट एड बॉक्स सही जगह पर जरूर रखें।
बॉक्स में तमाम जरूरी सामान हो, इसकी जांच करते रहें।
रसोई में चाकू, लाइटर, माचिस आदि को सही जगह पर रखें।
रसोई में सामान को सही जगह पर रखें ताकि बच्चे उन तक न पहुंच पाएं।
कुछ जरूरी टेलीफोन नम्बर की लिस्ट घर में सही जगह टांग कर रखें।
अगर आपको हार्ट, अस्थमा आदि की तकलीफ है तो अपनी दवाओं की उपलब्धता की जांच करते रहें, ताकि दवा की कमी न आए।
अगर घर में बुजुर्ग हैं तो उनके स्वास्थ्य की जांच समय-समय पर करवाते रहें। खासकर आंखों की जांच छह महीने पर जरूर करवाएं।
गिरना
गिरने से सामान्य से लेकर गंभीर चोटें आ सकती हैं। अगर कोई गिर जाए तो सबसे पहले उसे उठाएं और खुली हवा में लेटा दें। चोटों का मुआयना करें। व्यक्ति बेहोश हो गया हो तो पहले उसे होश में लाने का प्रयास करें। व्यक्ति को ज्यादा हिलाएं-डुलाएं नहीं जब तक कि डॉक्टरी सहायता पहुंच नहीं जाती।
औंधे मुंह गिरा है तो सबसे पहले उसे सीधा कर लें, उसे कमर के बल लेटा दें। सांसें उखड़ रही हों तो कृत्रिम रूप से सांस दें और लेटा दें।
घर में अकेले हों और सीढियों से या किसी ऊंची जगह से गिर जाएं तो जल्दी से उठने की कोशिश न करें। पास में अगर कोई कुर्सी और सोफा है तो उस तक रेंगते हुए पहुंचें और फिर धीरे से उस पर बैठ जाएं।
परिचित या अस्पताल में फोन करें।
कटना
सब्जी या फल काटते हुए चाकू के फिसलने से उंगली कट जाना, शरीर के किसी भाग विशेषकर पैर या हाथ में कील या कांच चुभ जाना और जख्म से खून बहने लगना, इस संसार में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा जिसे इसका अनुभव कभी न हुआ हो। कभी-कभी मामूली रूप से कटना भी संक्रमण फैलने से जानलेवा हो जाता है।
रखें इन बातों का ध्यान
हल्के जख्म में डॉक्टर के पास न जाएं।
घाव से गंदगी बाहर निकाल दें।
जख्म को बहते हुए ठंडे पानी से धो लें।
हाइड्रोजन परऑक्साइड से अच्छी तरह साफ करने के बाद बैंडेड से लपेट लें।
सूजन कम करने के लिए कटी हुई जगह पर बर्फ मलें।
घाव को साफ रखें ताकि संक्रमण न फैले, लगातार पट्टी बदलते रहें।
कटने पर अगर दस मिनट में खून बहना बंद हो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
जलना
खाना बनाते समय आग की चपेट में आ जाना जलने की सबसे प्रमुख वजह है। मामूली रूप से जलने के जख्म तो समय के साथ वैसे ही ठीक हो जाते हैं, पर गंभीर रूप से जलने पर विशेष देखभाल करनी होती है।
क्या करें-क्या नहीं
आग लग जाए तो वह फर्श पर लोट जाएं, धुंए की परत से नीचे, अगर आग पूरे स्थान पर फैल रही है तो बाहर निकलकर भागें।
मामूली रूप से जले हुए स्थान पर 10-15 मिनट तक ठंडा पानी डालें। ध्यान रहे पानी ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।
जली हुई त्वचा पर सीधे बर्फ न रखें। इससे त्वचा को और नुकसान पहुंच सकता है।
जख्म के थोड़ा सूखने के बाद उस पर सूखी पट्टी ढीली बांधें, ताकि गंदगी और संक्रमण न फैले।
गंभीर रूप से जलने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

रंगों से यूं सुरक्षित रहेंगे आपके बाल और त्वचा




होली में कई बार आप रंग खेलने से बचते हैं, क्योंकि आपको डर लगता है कि रंग त्वचा और बालों को नुकसान न पहुंचाए।
त्वचा की देखभाल
- होली के एक दिन पहले अपने चेहरे, गर्दन, कान, हाथ और पैरों पर सरसों का तेल लगा लें। इससे आपकी त्वचा पर लगने वाला रंग आसानी से साफ हो जाएगा।
- अपनी त्वचा को रंगों से सुरक्षित रखने के लिए इस दिन ऐसे कपड़े पहनें, जो आपके शरीर को अधिक से अधिक ढक कर रख सकें। इससे आपके शरीर का कम से कम हिस्सा रंगों के संपर्क में आएगा।
- रंगों को साफ करने के लिए दो बड़े चम्मच नींबू पानी में एक कटोरी दही मिलाएं और त्वचा के उस हिस्से में लगाएं, जहां रंग साफ करना है। उसके बाद सामान्य पानी से स्नान कर लें। रंगों से मुक्ति मिल जाएगी।
- त्वचा के रंग वाले हिस्से को साफ करने के लिए आप गुलाब जल में दूध, बादाम का तेल और चने का आटा मिला कर लेप भी बना सकते हैं, जिसे रंग वाले हिस्सा पर लगा कर थोड़ी देर बाद हाथों से रगड़ कर साफ कर सकते हैं।
- रंगों को साफ करने के बाद अपनी आंखों में गुलाब जल की कुछ बूंदें डाल कर थोड़ा आराम कर लें। इससे आपकी आंखों को काफी आराम मिलेगा।

बालों की देखभाल
- महिलाएं बालों के जूड़े बना लें, वे सुरक्षित रहेंगे।
- होली के एक रात पहले अपने सिर की जोजोबा और मेहंदी के तेल या नारियल के तेल से मसाज करवा लें। इससे आपके बाल सुरक्षित रहेंगे।
- बाल संवेदनशील हैं तो इस मिश्रण में कुछ बूंद नींबू पानी भी डाल दें। इससे रंगों में मौजूद रसायन का बालों और सिर की त्वचा पर संक्रमण नहीं हो पाएगा।
- होली खेलने के बाद सादे पानी से बालों को धो लें। इससे अधिकांश रंग साफ हो जाएंगे। थोड़ी देर बाद बालों को हल्के शैंपू से धो दें और कंडीशनर लगाएं।
- दो बड़े चम्मच जैतून के तेल, चार बड़े चम्मच शहद और कुछ बूंद नींबू पानी को मिला लें। इससे सिर के बाल और त्वचा की मालिश करें। इसे आधे घंटे सूखने दें, फिर हल्के शैंपू और गुनगुने पानी से उसे साफ कर लें।

व्यक्तित्व में चार चांद लगाएं आपके दांत


साफ और सुंदर दांत तथा स्वस्थ मसूड़े न सिर्फ अच्छे स्वास्थ्य की निशानी होते हैं, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक भी बनाते हैं। दांत और मसूड़ों का स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर करता है। अगर मसूड़े स्वस्थ नहीं होंगे तो दांत भी स्वस्थ नहीं रह पाएंगे, इसलिए स्वस्थ दांतों के लिए स्वस्थ मसूड़े बहुत जरूरी हैं।
पोषक और संतुलित भोजन भी है जरूरी
संतुलित भोजन आपके दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखता है और संक्रमण से बचाता है। इसके अलावा फाइबर युक्त भोजन करें। यह आपके दांतों को साफ और मसूड़ों के ऊतकों को मजबूत बनाता है। हर बार जब आप भोजन करते हैं या ऐसा पेय पदार्थ पीते हैं, जिसमें शुगर या स्टार्च होता है तो वह एसिड उत्पन करता है। यह 20 मिनट या उससे ज्यादा देर तक आपके दांतों पर हमला करता है। दांतों को स्वस्थ रखने के लिए ऐसा भोजन करें, जो विटामिन, मिनरल, कैल्शियम और फॉस्फोरस से भरपूर हो। काबरेनेटेड पेय पदार्थों, जंक फूड और मीठे पदार्थों का सेवन कम करें।
दांतों की समस्याएं
दांतों का पीलापन
तंबाकू, गुटखा, शराब आदि के सेवन या दांतों की ठीक तरह से सफाई न करने से दांत पीले पड़ जाते हैं। कई लोगों में उम्र बढ़ने के साथ दांतों पर प्लाक की परत चढ़ती जाती है। इससे भी दांत पीले दिखने लगते हैं। ज्यादा मात्र में चाय, कॉफी और कोल्ड  ड्रिंक का सेवन करने से भी दांत पीले पड़ जाते हैं। विटामिन डी की कमी भी दांतों की चमक खत्म कर देती है। कुछ खास रसायनों से दांतों को साफ कर चमकाया जाता है। इसे डेंटल ब्लीचिंग कहते हैं। यह एक सुरक्षित तरीका है। दांतों को चमकदार बनाने के लिए लेजर ट्रीटमेंट सबसे प्रभावी और सुरक्षित तरीका है।
दांतों में संवेदनशीलता
हमारे दांतों के ऊपर एक सुरक्षा परत होती है, जिसे इनेमल कहते हैं। हम जो भी खाते हैं, उसका पहला संपर्क हमारे दांतों के इसी इनेमल से होता है। इनेमल हमें ताप और दूसरी चीजों से बचाता है। खानपान की गलत आदतों ओर कई अन्य कारणों से ये परत पतली हो जाती है। इससे दांतों में अति संवेदनशीलता की समस्या हो जाती है। अगर यह संवेदनशीलता ज्यादा नहीं है तो एंटी सेंसिटिविटी टूथपेस्ट से ठीक हो सकती है। अगर समस्या गंभीर है या एंटी सेंसिटिविटी टूथपेस्ट के उपयोग के बाद भी ठीक नहीं हो रही तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए, क्योंकि यह सेंसिटिविटी किसी गंभीर समस्या का संकेत भी हो सकती है, जैसे कैविटी या दांतों में दरार आ जाना।
मुंह से दुर्गंध्‍ा आना
कई लोग जब सांस लेते हैं या बात करते हैं तो उनके मुंह से दुर्गंध्‍ा आती है। यह दुर्गंध्‍ा पाचन प्रणाली के कमजोर पड़ जाने या दांतों या मसूड़ों के किसी रोग के कारण हो सकती है। यह किसी आंतरिक रोग का संकेत भी हो सकती है। यह ऐसा रोग है, जिससे किसी के व्यक्तित्व का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान करने से मुंह में लार बननी कम हो जाती है। इससे भी मुंह से बदबू आने लगती है।
मसूड़ों की समस्याएं
मसूड़ों की बीमारी का सबसे प्रमुख कारण प्लाक होता है। इसके अलावा कई बीमारियां जैसे कैंसर, एड्स, डायबिटीज, महिलाओं में किशोरावस्था, गर्भावस्था, मेनोपॉज और पीरियड्स के समय होने वाला हार्मोन परिवर्तन भी मसूड़ों पर संक्रमण की आशंका बढ़ा देते हैं। धूम्रपान भी मसूड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वैसे मुंह की साफ-सफाई का ख्याल न रखना मसूड़ों की समस्याओं का सबसे प्रमुख कारण है। मसूड़ों की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। हाल ही में हुए कई अध्ययनों में यह बात उभर कर आई है कि 35 वर्ष की उम्र के बाद मसूड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस उम्र में हर चार में से तीन लोग मसूड़ों की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होते हैं।
सबसे आम है जिन्जीवाइटिस
जिन्जीवाइटिस मसूड़ों की सबसे आम समस्या है। इसमें मसूड़े सूख कर लाल हो जाते हैं और कमजोर पड़ जाते हैं। कई लोगों में दांतों के बीच में उभरा हुआ तिकोना क्षेत्र बन जाता है, जिसे पेपीले कहते हैं। इसका प्रमुख कारण सफेद रक्त कोशिकाओं का जमाव, बैक्टीरिया का संक्रमण और प्लाक हो सकता है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि मुंह की साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए।


पायरिया
अगर ब्रश करने या खाना खाने के बाद मसूड़ों से खून बहता हो तो यह पायरिया के लक्षण हैं। इसमें मसूड़ों के ऊतक सड़ कर पीले पड़ने लगते हैं। इसका मुख्य कारण दांतों की ठीक से सफाई न करना है। गंदगी की वजह से दांतों के आसपास और मसूड़ों में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं।
पीरियोडोंटिस
यदि समय रहते जिन्जीवाइटिस का उपचार नहीं किया जाता तो वह गंभीर रूप लेकर पीरियोडोंटिस में बदल जाती है। पीरियोडोंटिस से पीड़ित व्यक्ति में मसूड़ों की अंदरूनी सतह और हड्डियां दांत से दूर हो जाती हैं। दांतों और मसूड़ों के बीच स्थित इस छोटी-सी जगह में गंदगी इकट्ठी होने लगती है और दांतों और मसूड़ों में संक्रमण फैल जाता है। अगर ठीक से इलाज न किया जाए तो दांतों के चारों ओर मौजूद ऊतक नष्ट होने लगते हैं। यह दांतों के लिए गंभीर स्थिति होती है। इससे दांत गिरने लगते हैं।
संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है ओरल हाइजीन
- मसूड़ों और दांतों की बीमारियां दरअसल बैक्टीरिया का संक्रमण है। ये बैक्टीरिया खाने के साथ हमारे रक्त में पहुंच जाते हैं और हमारे लिए कई घातक बीमारियों की आशंका बढ़ा देते हैं।
- जिन लोगों को मसूड़ों की बीमारी होती है, उन्हें हार्ट अटैक होने का खतरा दोगुना हो जाता है।
- हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ओरल इंफेक्शन से स्ट्रोक की आशंका भी बढ़ जाती है।
- डायबिटीज से मसूड़ों की बीमारियों की आशंका ही नहीं बढ़ती, बल्कि मसूड़ों की बीमारी से डायबिटीज की आशंका भी बढ़ जाती है।
- ओरल कैविटी में मौजूद बैक्टीरिया फेफड़ों में चले जाते हैं। इससे खासकर जिन्हें मसूड़ों की बीमारियां हैं, उन्हें श्वसन संबंधी बीमारी निमोनिया होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
- जिन गर्भवती महिलाओं को मसूड़ों की बीमारियां हैं, उनका बच्चा समय से पहले और कम भार का होता है।
दांतों को स्वस्थ रखने के टिप्स
- फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट और मुलायम ब्रश से दिन में दो बार दांत साफ करने की आदत डालें। इसके साथ जीभ की सफाई भी करें, क्योंकि बैक्टीरिया ज्यादातर यहीं पनपते हैं।
- दिन में एक बार फ्लॉस भी करें। इससे दांतों के बीच फंसे भोजन के टुकड़े निकल जाते हैं। 
- अधिक गर्म चीजें न खाएं।
- ज्यादा कड़क ब्रिसल वाले ब्रश से दांत साफ न करें।
- नॉनवेज खाने के बाद कुल्ला जरूर करें। इससे दांतों में फंसे रेशे भी निकल जाएंगे और गंध भी।
इन बातों का भी रखें ख्याल
साल में एक बार दांतों का चेकअप कराएं: दांतों में तकलीफ न हो, तब भी साल में एक बार दांतों का चेकअप जरूर कराएं। कभी-कभी बाहर से देखने पर दांत सामान्य लगते हैं, लेकिन कई बार अंदर ही अंदर उनमें कोई बीमारी पल रही होती है। शुरू में इसका पता नहीं चलता, लेकिन समय के साथ यह समस्या गंभीर होती जाती है। डेंटल चेकअप इस तरह की समस्याओं से बचाता है।
दो बार ब्रश करें: सुबह और रात को दो बार ब्रश करें। इसके अलावा कुछ भी खाने-पीने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें।
टूथपिक का प्रयोग न करें: अगर दांतों में खाना फंस जाए तो उसे टूथपिक से न निकालें। इससे मसूड़ों को नुकसान होता है। इस समस्या को नजरअंदाज भी न करें। डेंटिस्ट को दिखाएं।
तीन महीने में बदलें ब्रश: ज्यादा पुराना ब्रश मसूड़ों और दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए हर तीन महीने में ब्रश बदल लें।
घरेलू उपचार
- नींबू, पुदीने का रस तथा नमक एक गिलास गुनगुने पानी में मिला कर सुबह-शाम कुल्ला करें। मुंह से दुर्गंध नहीं आएगी।
- आधा कप गुनगुने पानी में पुदीने की पत्तियां मिला कर गरारा करें, इससे भी मुंह की दुर्गंध से निजात मिलेगी।
- दांतों की चमक बनाए रखने के लिए आधा चम्मच नमक में दस बूंद नींबू मिला लें। इस मिश्रण को दांतों पर लगा कर पांच मिनट के लिए छोड़ दें। फिर दांतों पर बिना पेस्ट लगाए ब्रश करें। दांत लंबे समय तक चमकेंगे।