मई, जून अभी दूर हैं लेकिन अगर गर्मी की छुट्टियों में घूमने जाने का मन बना रहे हैं तो इसके लिए प्लैनिंग का सही वक्त यही है।
1. मोटर बाइकिंग
लद्दाख
लद्दाख शायद हर बाइकर का सपना होता है। दर्रों के देश यानी लद्दाख पहुंचने के लिए वाकई कई दुर्गम दर्रे पार करने पड़ते हैं, लेकिन जो नजारे इस सफर पर मिलते हैं, शायद ही दुनिया में कहीं और हों।
कब और कैसे जाएं: इस सफर पर मई से अक्टूबर के बीच निकला जा सकता है। अगस्त-सितंबर में बारिश की वजह से जाने से बचें। दिल्ली से मनाली होते हुए लेह की दूरी 1,050 किमी. और श्रीनगर होते हुए 1,250 किमी. है।
क्या है खास: दुनिया का सबसे ऊंचा ठंडा रेगिस्तान और उनके बीच नीले पानी की अनंत विस्तार लिए झीलें, साल भर बर्फ से ढकी रहने वाली दुनिया के सबसे ऊंची सड़कें, रंग-बिरंगे प्रेयर फ्लैग्स से घिरे बौद्ध गोंपा और छोरतेन, मुश्किल हालात में भी सादगी और विनम्रता का संदेश देती संस्कृति।
साच पास
कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें लद्दाख के बर्फ से ढके दर्रे उतना रोमांचित नहीं कर पाते। ऐसे लोगों के लिए है साच पास। हिमाचल प्रदेश के चंबा और पांगी इलाकों को जोड़ने वाला यह दर्रा 4,420 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पहुंचने के चक्कर में लोगों का दम फूलने लगता है और भारी-भरकम बाइक भी जवाब दे जाती हैं।
कब और कैसे जाएं: जुलाई से सिर्फ 3 महीनों के लिए ही यह दर्रा आने-जाने लायक हो जाता है। इस बीच भी बारिश के दिनों में पांगी की तरफ लैंड स्लाइड्स से रास्ता खतरनाक बना रहता है। दिल्ली से पठानकोट और चंबा होते हुए साच पास की दूरी 730 किमी है। वैसे, मनाली-उदयपुर और जम्मू-किश्तवाड़ होते हुए भी साच पास जा सकते हैं।
क्या देखें: रास्ते में पड़ने वाली चुराह और भांदल की खूबसूरत घाटियां, बर्फ की कई मंजिला ऊंची दीवारों से गुजरता साच पास का दुर्गम रास्ता और अगर साच पास पार कर गए, तो दुनिया से कटे जनजातीय इलाके पांगी को देखने का मौका।
2. रूरल टूरिजम
सैलानियों की भीड़-भाड़ और ट्रैफिक की चिल्लपौं से भरे टूरिस्ट स्पॉट्स से मन उकता चुका हो, तो चलिए ऐसे ग्रामीण भारत की सैर पर, जहां जीवन अब भी प्रकृति के करीब है।
गुरेज और तुलैल घाटी
कश्मीर के उत्तर में बसे हैं गुरेज (2600 मीटर ऊंचाई) और तुलैल (2900 मीटर ऊंचाई)। श्रीनगर से गुरेज की दूरी 130 किमी है। कश्मीर में होते हुए भी यहां की संस्कृति कश्मीर से नहीं, बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके गिलगित और बाल्टिस्तान से मिलती है। तुलैल के लगभग सभी गांवों में मकान लकड़ी के हैं और यहां रहने वाले दर्द कबीले के लोग खेती और पशुओं के सहारे जीवन चलाते हैं।
कब और कैसे जाएं: जून से अक्टूबर तक जा सकते हैं। बारिश के दिनों में राजदान पास के आसपास लैंड स्लाइड्स की वजह से परेशानी हो सकती है। दिल्ली से श्रीनगर और बांडीपोरा होते हुए गुरेज पहुंच सकते हैं।
क्या है खास: गर्मियों में भी बर्फ से ढके पहाड़ों को देखा जा सकता है। चटख नीले आसमान के नीचे हरी दूब के मैदान, उनके बीच से गुजरती किशनगंगा नदी के किनारे पल-पल रंग बदलती हब्बा खातून पहाड़ी अलौकिक नजारा पेश करती है।
खिर्सू
दो-तीन दिन का ही समय हो और दिल्ली से ज्यादा दूर न जाते हुए हिमालय के ग्रामीण जीवन की सादगी को अनुभव करना हो, तो खिर्सू (1800 मीटर ऊंचाई) सही विकल्प है। उत्तराखंड के जिला पौड़ी में बसा यह छोटा सा गांव गढ़वाली संस्कृति की झलक दिखाता है। गांव होने के बावजूद इसकी अपनी वेबसाइट है, जहां तमाम जानकारी उपलब्ध है।
कब जाएं: साल भर कभी भी खिर्सू जा सकते हैं। बारिश के दिनों में भी यहां जाना मुमकिन है। दिल्ली से बिजनौर, कोटद्वार और लैंसडाउन होते हुए इसकी दूरी लगभग 370 किमी है।
क्या है खास: जंगलों से घिरा एक ऊंघता सा गांव है खिर्सू। हिमालय की बर्फ से ढकी श्रंृखला को यहां से दिन भर निहारते रहें या जंगलों में आसपास किसी भी गांव तक छोटा-मोटा ट्रेक कर लें। प्रकृति के ज्यादा से ज्यादा करीब रहना हो, तो यहां खुले आसमान के नीचे टेंटों या बैंबू हट्स में रहने का विकल्प खुला है।
3. ट्रेकिंग
पहाड़ों को खुद ही खंगालने का शौक हो और सामान पीठ पर लादकर चलने का दमखम हो, तो यकीन मानिए स्वर्ग से सुंदर नजारे देखने से आपको कोई नहीं रोक सकता। असली प्राकृतिक सुंदरता तो सड़क से बहुत दूर कहीं वीराने में छिपी होती है, जिसे ट्रेकर्स बखूबी समझते हैं।
हर की दून
हफ्ते भर का समय निकाल सकें, तो गढ़वाल के एक छोर पर स्थित हर की दून (3,560 मीटर) ट्रेकिंग अभियान पर निकल जाएं। स्वर्गारोहिणी चोटी की तलहटी में स्थित हर की दून अब एक जाना-माना ट्रेक बन चुका है। सांकरी नाम के गांव तक तो बस जाती है, लेकिन इसके बाद छह दिन का अभियान आपको पैदल पूरा करना होता है।
कब और कैसे जाएं: दिल्ली से देहरादून और वहां से पुरोला के लिए सीधी बस मिल जाती है। पुरोला से सांकरी के लिए थोड़ी-थोड़ी देर में टैक्सी चलती हैं। यहां ट्रेकिंग का स्तर मॉडरेट है। एक-दो छोटे ट्रेक करने के बाद ही इस ट्रेकिंग अभियान पर जाना मुनासिब होगा।
क्या है खास: बीच में ठहरने के लिए सरकार ने तीन जगह रेस्ट हाउस बनाए हैं, लेकिन अगर आप अभियान का असली लुत्फ उठाना चाहें, तो ग्रामीणों के साथ उनके घर में रहें। अगर अनुभवी ट्रेकर हैं, तो हर की दून से आगे बोड़ासू पास होते हुए हिमाचल के किन्नौर जिले (छितकुल गांव) में निकल सकते हैं।
चोपता-तुंगनाथ
उत्तराखंड में स्थित पंदकेदार मंदिरों में से एक होने की वजह से तुंगनाथ का धार्मिक महत्व है। इस वजह से यहां कुछ खास मौकों पर हर उम्र के श्रद्धालुओं को ट्रेकिंग करते देखा जा सकता है। बेस कैंप चोपता है, जहां से करीब 3-4 घंटे की चढ़ाई के बाद तुंगनाथ पहुंचते हैं।
कब और कैसे जाएं: अप्रैल से अक्टूबर के बीच यह ट्रेक किया जा सकता है। दिल्ली से रुदप्रयाग या ऊखीमठ होते हुए चोपता जा सकते हैं। आसान ट्रेक है और दूरी कम होने की वजह से एक दिन में पूरा किया जा सकता है।
क्या है खास: रास्ते में पड़ने वाले हरे-भरे बुग्याल और उन पर अठखेलियां करते बादल थकान हर लेते हैं। चाहें तो तुंगनाथ में एक रात कैंपिंग कर या चाय की दुकानों में बिताकर अगले दिन चंदशिला (4,000 मीटर) तक ट्रेक कर सकते हैं। इस चोटी पर खड़े होकर अपने चारों ओर बर्फ से ढकी चोटियां को निहारें।
4. ऐतिहासक भारत
भारत की हजारों साल प्राचीन सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध है कि लोग इसके मोहपाश से बच नहीं पाते। इतिहास के पन्नों में दर्ज ऐसी ही कुछ जगहों से आप खुद इन छुट्टियों में रूबरू हो सकते है।
ओरछा
इतिहास में कभी राजा-महाराजाओं की गद्दी रह चुका ओरछा आज बेतवा नदी के किनारे पहाडि़यों से घिरा छोटा सा गांव है। बेतवा के दोनों छोर पर बने ऐतिहासिक मंदिरों, महलों और छतरियों के बीच खुले आसमान के तले कैंपिंग का मजा ही कुछ और है।
कब और कैसे जाएं: ओरछा का मौसम दिल्ली जैसा है। मार्च-अप्रैल और अक्टूबर-नवंबर सबसे बढि़या समय है। दिल्ली से झांसी होते हुए ओरछा की दूरी लगभग 450 किमी है। दिल्ली से झांसी के लिए कई ट्रेन हैं। यमुना एक्सप्रेसवे, ग्वॉलियर और दतिया होते हुए लॉन्ग-ड्राइव भी की जा सकती है।
क्या है खास: अद्भुत वास्तुकला से सजे यहां के प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक महल और छतरियां चंदेल और बुंदेल साम्राज्य की निशानी हैं। कहते हैं यहां बेतवा नदी के किनारे बना रामराजा मंदिर पूरी दुनिया में अकेला ऐसा मंदिर है, जहां श्री राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।
तवांग
अरुणाचल प्रदेश का खूबसूरत जिला है तवांग। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। यह इलाका भारत से सिर्फ एक तरफ से जुड़ा है, बाकी दिशाओं में भूटान और तिब्बत इसके पड़ोसी हैं।
कब और कैसे जाएं: अप्रैल से अक्टूबर के बीच तवांग खुला रहता है। सर्दियों के मौसम में सेला पास पर भारी बर्फ बारी की वजह से तवांग बाकी दुनिया से कट जाता है। दिल्ली से गुवाहाटी (1900 किमी) तक ट्रेन या फ्लाइट से और उसके बाद सड़क से बोमडिला होते हुए तवांग पहुंचा जा सकता है। गुवाहाटी से तवांग के बीच एक दिन का समय लग जाता है। यहां आने के लिए इनर लाइन परमिट जरूरी है, जो दिल्ली और गुवाहाटी में मिलता है।
क्या है खास: तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद तवांग मोनेस्ट्री दुनिया की सबसे पुरानी मोनेस्ट्री है। इस तिमंजिला गोंपा में 500 से ज्यादा लामा पढ़ाई करते हैं। खूबसूरत झील, बर्फीले पहाड़ और भारतीय सैनिकों की वीरगाथा बयां करते वॉर मेमोरियल भी देखने लायक हैं।
5. स्प्रिचुअल
क्यों न इस बार छुट्टियों में सिर्फ घूमने के बजाय कुछ ऐसा किया जाए, जिससे आप घर लौटकर शारीरिक, मानसिक और रूहानी तौर पर तरोताजा महसूस करें।
तीर्थ यात्राएं
आप पारंपरिक तीर्थों की यात्रा कर सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं - चार धाम यात्रा (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) (उत्तराखंड), अमरनाथ (कश्मीर), रामेश्वरम, तिरुपति और मदुरै (दक्षिण भारत), शिर्डी (महाराष्ट्र)। इन सभी यात्राओं के लिए आजकल कई तरह के पैकेज मिल जाते हैं।
कैलास मानसरोवर यात्रा
कैलास पर्वत हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव का घर है, जबकि मानसरोवर की मान्यता हिन्दू और बौद्ध धर्म में भी है। वैसे तो कैलाश-मानसरोवर तिब्बत में स्थित हैं, लेकिन तिब्बत पर चीन का कब्जा होने की वजह से चीन सरकार से वीजा लेना पड़ता है। भारत सरकार की आधिकारिक यात्रा के अलावा आप प्राइवेट टूर ऑपरेटरों के जरिए इस यात्रा पर जा सकते हैं। भारत सरकार वाली यात्रा कुमायूं होकर और प्राइवेट एजेंसियों की यात्रा नेपाल से जाती है। इन यात्राओं में एक आदमी का खर्च 1 लाख रुपये से ज्यादा आता है।
कब और कैसे जाएं: भारत सरकार इस साल यात्रा का आयोजन जून से सितंबर के बीच कर रही है, लेकिन इसके रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख निकल चुकी है। आप चाहें तो नेपाल के रास्ते इस यात्रा पर जा सकते हैं, जिसके लिए प्राइवेट टूर ऑपरेटरों से संपर्क करें।
6. हेल्थ टूरिज्म
आनंद स्पा रेजॉर्ट
आप चाहें, तो ऋषिकेश के पास आनंद स्पा रेजॉर्ट जा सकते हैं। यहां कुछ समय प्रकृति के बीच बिताकर अपने शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा में भी नए जीवन का संचार किया जा सकता है। यहां प्राचीन स्पा पद्धति की उपचारात्मक शक्तियों से शरीर में एक खास तरह की ताजगी का अहसास होता है।
कब और कैसे जाएं: साल भर कभी भी जा सकते हैं। गर्मियों में भी यहां अधिकतम तापमान 30 डिग्री के आसपास रहता है। दिल्ली से ऋषिकेश होते हुए टिहरी रोड पर नरेंद्र नगर तक जाएं। आनंद स्पा नरेंद्र नगर के पास स्थित है।
7. वॉटर स्पोर्ट्स
हममें से कई ऐसे हैं, जिन्हें पानी में खेलना पसंद है। अब अपने देश में भी ऐसे लोगों को छुट्टी बिताने के लिए कई विकल्प मिल रहे हैं।
ऋषिकेश और मनाली
पहाड़ी नदियों का शोर रोमांचक होता है। ऐसी नदियों के तेज बहाव में किसी पत्ते की तरह बहते, उलटते-पुलटते राफ्ट पर सवार होकर मंजिल तक पहुंचना रोंगटे खड़े कर देने वाला अहसास है। पिछले कुछ समय से दिल्ली के आसपास रिवर राफ्टिंग कई जगहों पर होने लगी है, लेकिन ऋषिकेश और मनाली प्रमुख हैं।
अलप्पी (केरल)
खुले आसमान के नीचे पानी पर तैरते घरों में छुट्टी बिताने का अहसास रूमानी कर देता है। वैसे, हाउसबोट्स का नाम सुनते ही जहन में श्रीनगर की मशहूर डल झील की तस्वीर उभरती है, लेकिन केरल में अलप्पी के बैक वॉटर्स में हाउस बोट्स पर तैरने का अनुभव थोड़ा अलग है। नारियल के पेड़ों की छांव में तैरते हाउसबोट्स में साउथ इंडियन खाने का आनंद कहीं और मिलना मुश्किल है।
लक्षद्वीप
पर्यटकों की भीड़ में साफ -सुथरे समुदी बीच की तलाश करते थक गए हैं, तो अरब सागर में बिखरे खूबरसूरत द्वीपों के समूह लक्षद्वीप जाएं। यहां जाने के लिए प्रशासन से स्पेशल परमिशन लेनी पड़ती है। इस नियंत्रण की वजह से यहां पर्यटन को अनुशासित तरीके से चलाया जा रहा है, जिसका सीधा असर द्वीपों की साफ सफाई और व्यवस्था में दिखाई पड़ता है। स्कूबा डाइविंग, कयाकिंग, कैनोइंग जैसे कई वॉटर स्पोर्ट्स का लुत्फ यहां उठाया जा सकता है। यहां जाने का सबसे अच्छा समय दिसंबर से मई तक है। कोच्चि (केरल) लक्षद्वीप का प्रवेश द्वार है। यहीं से आप लक्षद्वीप जाने की परमिशन ले सकते हैं और यहीं से फ्लाइट या शिप से लक्षद्वीप आ-जा सकते हैं।
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