Friday, March 15, 2013

कहीं बिगड़ न जाए आंखों की सेहत



गर्मियों का मौसम आ गया। इस मौसम में अनेक बीमारियां तो परेशान करती ही हैं, आंखों की सेहत के लिए भी यह मौसम अच्छा नहीं होता। खासकर युवाओं की आंखों को अपनी गिरफ्त में लेने वाले इस मौसम में कंजक्टिवाइटिस व कुछ अन्य बीमारियां आम हो जाती हैं। 
सर्दी के बाद अब मौसम ने फिर करवट ली है। दिन की तेज धूप गर्मी का एहसास करा रही है। मौसम का सीधा असर सेहत पर भी दिख रहा है। संक्रामक बुखार के साथ ही इस समय आंखों को तकलीफ पहुंचाने वाले कई तरह के वायरस भी सक्रिय हो गए हैं। आद्रता में ही कंजक्टिवाइटिस की समस्या होती है, जिसका असर सबसे अधिक कामकाजी युवाओं पर पड़ता है। घर से बाहर निकलने वाले लोगों को एहतियात के तौर पर इससे बचने की सलाह दी जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो अन्य वायरस की तरह ही आंखों को बीमार करने वाले वायरस का स्टेन भी हर साल बदल जाता है, इसलिए डॉक्टर की सलाह के बगैर किसी ड्रॉप के इस्तेमाल से नुकसान हो सकता है।
आंखों की चुभन को न करें नजरअंदाज
आंखों में खुजली या फिर चुभन का सीधे रूप से डॉक्टरी पहलू यह होता है कि आंखें  सूख जाती हैं, जिससे उनकी ल्यूब्रिकेट करने की क्षमता प्रभावित होती है। लेकिन यह समस्या पिंक आई स्टेन के कारक एडिनो 8 वायरस की वजह से भी हो सकती है, जिसमें केवल आंखों की प्यूटिरायड ग्रंन्थि ही नहीं, बल्कि ग्लूकोमा भी प्रभावित होता है। फोर्टिस हेल्थ केयर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय धवन 28 वर्षीय एक युवक की केस हिस्ट्री बताते हैं कि इस युवक  को दो सप्ताह से आंखों में चुभन और पलकों में हल्की सूजन की शिकायत थी। शुरुआत में घरेलू इलाज के रूप में युवक ने गुलाब जल और ठंडे पानी से आंखें धोईं, पर इस दौरान संक्रमण का असर और बढ़ गया। आंखों के इलाज में लापरवाही की वजह से युवक को अब सामान्य काम करने में भी आंखें खोलने में दिक्कत होती है।
एडिनो वायरस 8 कर सकता है प्रभावित 
कंजक्टिवाइटिस संक्रमण फैलाने में वैसे तो 50 प्रमुख तरह के वायरस को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन इसका स्टेन हर साल बदलता है। इस साल इन महीनों में आंखों के संक्रमण के शिकार अधिकांश मरीजों में एडिनो वायरस 8 की पहचान हुई है, जिसे पिंक आई सिंड्रोम भी कहते हैं। डॉ. सुभाष डाडिया कहते हैं कि पिंक आई सिंड्रोम का असर पहले आंखों की दृश्यता पर पड़ता है, इसके बाद कॉर्निया में हल्का सफेद चकत्ता पड़ता है। आंखों में हल्का दर्द भी इसकी प्रमुख पहचान है। हालांकि लक्षण को शुरू में पहचानने पर इसे ठीक किया जा सकता है। एहतियात के लिए जरूरी है कि आंखों पर बार-बार हाथ न लगाएं। कई बार इलाज करने पर भी आंखें ठीक न होने की वजह सिर्फ यह देखी जाती है कि मरीज बार-बार आंखों को हाथ लगा कर वायरस के संक्रमण को कम नहीं होने देता। यह भी सही है कि यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है, इसलिए इस्तेमाल की गई चीजों को अलग रखना चाहिए।  
एस्टेरॉयड के इस्तेमाल से बचें
आंखों को सही करने वाले अधिकांश आई ड्राप स्टेरॉयड हार्मोन युक्त होते हैं। अगर आप डॉक्टर से भी सलाह ले रहे हैं तो यह निश्चित कर लें कि आपको दी गई दवा स्टेरॉयड तो नहीं है। दरअसल स्टेरॉयड के इस्तेमाल से ही आंखों की पुतलियों और पलकों में सूजन होती है। यदि कंजक्टिवाइटिस को शुरुआती दिनों में पहचान लिया जाए तो दो से तीन दिन के इलाज से इसे ठीक किया जा सकता है। इसमें दवाओं से अधिक साफ-सफाई पर ध्यान देने की जरूरत है।
बच सकते हैं संक्रमण से
अन्य किसी भी संक्रमण की तरह आंखों का संक्रमण भी एक मरीज से दूसरे मरीज तक पहुंचता है, लेकिन इसके संक्रमण से बचा जा सकता है। युवाओं को सार्वजनिक जगहों पर जाने से पहले एहतियात बरतनी चाहिए। एम्स के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजपाल कहते हैं कि जिसकी आंखों में संक्रमण की शुरुआत हुई है, उसे तीन से चार दिन तक सार्वजनिक जगहों पर जाने से बचना चाहिए।
रखें आंखों का ख्याल 
स्वस्थ्य रहने के अन्य सभी पैमानों में आंखों को भी शामिल किया जाता है। आंखों की सही दृश्यता के साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं आंखें थकान की शिकार तो नहीं हो रहीं। लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करने के साथ-साथ आजकल दोपहर की तेज धूप में मौजूद अल्ट्रावॉयलेट किरणें भी आंखों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। आंखों की दृश्यता सही होने पर भी दोपहर में घर से बाहर निकलते समय अच्छी गुणवत्ता के यूवी संरक्षित चश्मे का इस्तेमाल करना चाहिए। डॉ. राजपाल कहते हैं कि जागरुकता के बाद भी लोग आंखों के चश्मे के लिए गुणवत्ता से समझौता करते हैं, जिससे बाद में आंखों की दृश्यता भी प्रभावित हो सकती है।
कंजक्टिवाइटिस
कंजक्टिवाइटिस गर्मियों में होने वाली आंखों की आम समस्या है। इसमें आंखों में लाली, चुभन और आंखों से पानी आने जैसी समस्या हो सकती है। इसका तत्काल इलाज किया जाना चाहिए। इससे दूसरे व्यक्ति में इस संक्रमण के प्रसार को रोकने और आंखों की स्थिति खराब होने से सुरक्षा मिलती है। अपनी आंखों को साफ पानी से धोकर उनकी स्वच्छता को बनाए रखें। दूसरे के रुमाल या तौलिये का इस्तेमाल न करें और कंजक्टिवाइटिस होने पर पहले दो दिन लोगों के संपर्क में कम रहें, क्योंकि शुरुआती दो दिनों में यह रोग आसानी से फैलता है।
स्टाई : आंखों की पलकों में जीवाणु संक्रमण होने पर सूजन, लाली और दर्द होता है। अगर आपकी आंखों में स्टाई हो तो आंखों की गर्म सिकाई, दर्दनिवारक दवाइयां और एंटीबायटिक के साथ आंखों की स्वच्छता का भी ध्यान रखें।
ड्राई आई : गर्मियों में तापमान बढ़ने और आंसू के वाष्पीकृत होने के कारण ड्राई आइज सिंड्रोम की समस्या आम है। आंखों को धोते रहें और चिकनाई बनाये रखने वाले आई ड्रॉप का इस्तेमाल करें।

काम आएंगे ये उपाय



- आंखों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। आंखों को ठंडे पानी से बार-बार धोएं। 
- किसी भी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
- ऑफिस में बहुत से लोग एक ही कम्प्यूटर का इस्तेमाल करते हों तो की-बोर्ड और माउस को संक्रमण रहित करके ही काम करें। 
- इस रोग के मरीज आंखों पर बार-बार हाथ न लगाएं। अगर संक्रमित आंख को छुएं तो हाथ को अच्छी तरह साफ कर लें। 
- गंदगी और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। 
- सप्ताह में एक बार आंखों का व्यायाम भी जरूरी है।
- चश्मा लगाते हैं तो बेहतर किस्म के लैंस का उपयोग करें।
- दोपहर की तेज धूप से आंखों को बचाने के लिए यूवी संरक्षित चश्मा पहनें।
- आंखों का ब्लडप्रेशर सामान्य रहे, इसके लिए जरूरी है कि तनाव मुक्त रहें। 
- सप्ताह में एक दिन आंखों पर खीरा लगाएं, इससे ठंडक मिलेगी।
- गुलाब जल या फिर घटिया किस्म के काजल का इस्तेमाल करने से बचें।
- आंखें के दोनों कोनों को नियमित रूप से साफ कपड़े से साफ करें। इससे कोनों पर स्थित छिद्र खुले रहेंगे और आंखों की ल्यूब्रिकेटिंग कम नहीं होगी।
- यदि आप तैराकी कर रहे हों तो क्लोरीन से होने वाली एलर्जी और स्विमिंग पूल कंजक्टिवाइटिस से बचने के लिए चश्मा पहनें।
- आपको धूप में जाना हो तो काला चश्मा पहन लें।
- जब आप काले चश्मे का चुनाव कर रहे हों तो यह सुनिश्चित कर लें कि वह आंखों को पराबैंगनी किरणों से शत-प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करे। निम्न गुणवत्ता वाले चश्मे पहनने से पुतली फैल सकती है, जिससे आंखों में अधिक मात्रा में हानिकारक पराबैंगनी किरणें प्रवेश कर उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं।- छह से आठ घंटे की आरामदायक नींद आपकी आंखों को प्राकृतिक तरीके से तरोताजा रखने में मदद करती है।

बच्चे की नाजुक आंखें सदा रहेंगी सलामत


यह बाल सुरक्षा माह है। बच्चों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिए बहुत सारी सावधानियां जरूरी होती हैं। इनमें बच्चों की आंखों का ख्याल रखना भी जरूरी है। 
मोतियाबिंद
वैसे तो यह पचास पार कर रहे लोगों की बीमारी मानी जाती है, पर कई बच्चों को जन्म से या जन्म के बाद मोतियाबिंद हो जाता है। एक बच्ची किताब बहुत पास से पढ़ती थी और टीवी भी बिल्कुल पास जाकर देखती थी। अभिभावकों ने इस पर खास ध्यान नहीं दिया। स्कूल गई तो टीचर ने बताया कि ब्लैकबोर्ड पर जो होमवर्क लिखा जाता है, उसे वह अक्सर गलत नोट करती है। तब मां-बाप उसे डॉक्टर के पास ले गए और जांच में पता चला कि उसे मोतियाबिंद है। पांच साल की उम्र में उसकी दोनों आंखों का एक साथ ऑपरेशन किया गया और उनमें लेंस लगा दिया गया। उसके बाद चश्मे का नंबर मिला। तो आपकी जरा-सी अनदेखी बड़ी मुसीबत का सबब बन सकती है।
एलर्जी
बच्चों में आंखों की एलर्जी होना आम बात है। यह एलर्जी किसी बाहरी रसायन की वजह से हो जाती है। इसमें आंखें लाल हो जाती हैं और उनसे पानी बहने लगता है। कई बार खुजली होती है, बुखार भी आता है और सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है। साथ ही आंखें सूज भी सकती हैं। इसे कंजक्टिवाइटिस भी कहते हैं।
मायोपिया
मायोपिया(पास का न दिखना), स्क्विंट (भेंगापन) और एम्लीओपिया (एक आंख से कम दिखना) जैसे डिसऑर्डर बच्चों में अब आम हो रहे हैं। आंखों की कोई भी समस्या हो, वह बच्चे के दिमाग और उसके विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
खास देखभाल है जरूरी
- बच्चे को स्कूल भेजने से पहले उसकी आंखों की पूरी जांच करा लें। नजर कमजोर है तो चश्मा पहनाएं, अन्यथा आंखें और कमजोर हो जाती हैं। 
- बच्चों को नुकीली चीजों अथवा खिलौनों से दूर रखें।
- लंबे समय तक उन्हें कम्प्यूटर या टीवी स्क्रीन पर न देखने दें।
- धूल, मिट्टी और तेज धूप में न खेलने दें।
- बच्चों को झुक कर न पढ़ने दें, हमेशा टेबल-कुर्सी का इस्तेमाल करवाएं।
- हमारी आंखों का फोकसिंग पावर सीमित होती है। बच्चों को आधे घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेने दें।
- सिर व आंखों में दर्द व अधिक पलक झपकाने के लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं।
हमेशा रहेंगे ऊर्जा से भरपूर
- बच्चों को फास्ट फूड और फैट फूड की बजाए घर का बना खाना खिलाएं।
- अंकुरित अनाज खिलाएं, शरीर इनको आसानी से ग्रहण कर लेता है।
- उनके भोजन में फलों और सब्जियों को शामिल करें। भोजन में एक-तिहाई फल और सब्जियां तथा दो तिहाई अनाज होना चाहिए।
- पानी की कमी न होने दें। उन्हें पानी, दूध और ताजे फलों का रस पिलाएं।
- उन्हें अंडे, मांस, चिकन, मछली भी खिलाएं। यह आयरन, जिंक और प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत होते हैं।
- ऐसा भोजन खिलाएं, जिसमें प्रोटीन और फायबर की पर्याप्त मात्रा हो।


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