आजकल घर के आसपास के माहौल के असुरक्षित होते जाने के कारण पेट्स पालने का चलन बढ़ता जा रहा है। ये पेट्स वफादार साथी साबित होते हैं इसलिए बहुत से परिवारों में इनके साथ परिवार के सदस्य की तरह बर्ताव किया जाता है। विशेषकर छोटे बच्चे तो सारा-सारा दिन पेट्स से चिपके रहते हैं।
हमारे यही प्यारे पेट्स कभी-कभी हमारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकते हैं। इनके काटने से हमें रैबीज हो सकता है जिसके कीटाणु पालतू जानवरों की लार द्वारा व्यक्ति के खून के सम्पर्क में आ सकते हैं। इससे व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा पेट्स से अन्य त्वचा रोग तथा एलर्जी भी हो सकती है इसलिए पेट्स को घर में बड़ी सावधानी से रखना चाहिए।
रैबीज पेट्स के काटने के एक साल बाद तक कभी भी हो सकता है। पेट्स के काटने का असर कितने समय में होगा यह जख्म के स्थान पर निर्भर करता है। जख्म यदि शरीर के ऊपरी हिस्से में है तो उसका असर केवल तीन-चार दिन में ही हो जाता है। दूसरी ओर यदि जख्म निचले हिस्से में है तो असर को मस्तिष्क में पहुंचने में ज्यादा दिनों का समय लग जाता है।
पेट्स के काटने के बाद दस दिन तक उस पर नजर रखनी चाहिए यदि रैबीज हो तो जानवर तीन-चार दिन में मर जाता है। इसलिए बेहतर यही होता है कि कुत्ता काटने के तुरंत बाद वैक्सीन लगवाना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि एंटीबाडीज बनने में थोड़ा समय लग ही जाता है। कुल मिलाकर छ एन्टीरैबीज वैक्सीन लगवाने पड़ते हैं।
जानवर के काटते ही काटे हुए स्थान को पानी से खूब धोना चाहिए। साथ ही घाव को किसी ऐसे साबुन से धोना चाहिए जिसमें कास्टिक सोड़े की मात्रा ज्यादा हो जैसे कपड़े धोने का साबुन क्योंकि कास्टिक वायरस को खत्म कर देता है। जख्म पर पट्टी नहीं बांधनी चाहिए। लोगों में यह गलतफहमी भी है कि पेट्स के काटने पर प्रभावित स्थान पर लाल मिर्च लगाना चाहिए जिससे इसका प्रभाव खत्म हो जाता है। परन्तु ऐसा सही नहीं है, अपितु यह नुकसानदायक भी हो सकता है।
रैबीज होने के लिए पेट्स के द्वारा काटा जाना ही जरूरी नहीं है। यदि शरीर में कहीं चोट लगी है और यदि कुत्ता उस चोट को चाटता है तो उसकी लार हमारे रक्त के सम्पर्क में आ जाती है। इससे भी रैबीज हो सकता है। साथ ही चाटने से घाव से खून भी निकल सकता है जो और कष्टदायी हो सकता है।
इसके अलावा यदि पेट्स की लार किसी तरह पेट में चली जाए तो रैबीज नहीं होता क्योंकि रैबीज लार के खून के सम्पर्क में आने के बाद होता है। परन्तु यदि व्यक्ति को अल्सर है और उसके पेट में पेट्स की लार चली जाती है तो उसे रैबीज होने की पूरी-पूरी संभावना होती है।
कई बार पेट्स पंजा मार देता हैं इससे घबराना नहीं चाहिए क्योंकि पंजों से रैबीज नहीं फैलता परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से टिटनेस का इंजैक्शन जरूर लगवा लेना चाहिए। पंजा लगने से विभिन्न त्वचीय रोग हो सकते हैं इसलिए किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए।
पालतू जानवरों को अपने शयन कक्ष में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि इससे विभिन्न संक्रमण फैल सकते हैं। हालांकि पालतू जानवरों की कोई भी बीमारी इंसानों को नहीं होती परन्तु फिर भी कुछ सामान्य बीमारियां जैसे टीबी पेट्स के सम्पर्क में आने के बाद हो सकती है। दूसरी ओर यदि आपके पेट्स को त्वचा रोग स्केबिज है तो इसके सम्पर्क में आकर यह रोग आपको भी हो सकता है।
यदि आपका पालतू जानवर घर से बाहर जाता है तो उसका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि आसपास के जानवरों के सम्पर्क में आने से उसे टिक्स हो सकती है। इन टिक्स से लाइम जैसी खतरनाक बीमारी भी हो सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि समय-समय पर अपने पेट्स की जांच करते रहें कि उसे टिक्स तो नहीं है। एक बार यदि टिक्स पूरे घर में फैल जाएं तो उन्हें हटाना मुश्किल हो जाता है। टिक्स से निजात पाने के लिए पशु चिकित्सक की सलाह से किसी साबुन या शैम्पू का प्रयोग भी किया जा सकता है।
कभी-कभी पेट्स के रोएं झडऩे लगते हैं जो पूरे घर में फैल जाते हैं। ये भोजन के साथ हमारे पेट में भी जा सकते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है। इसलिए जरूरी है कि जानवर के रोएं झड़ते ही उसका उचित उपचार करवाया जाए।
पालतू जानवर से आप चाहे जितना प्यार करें परन्तु फिर भी उससे थोड़ी दूरी बनाकर रखना भी जरूरी होता है।
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