Wednesday, May 8, 2013
..कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो
हालांकि पीने वालों को पीने का बहाना मात्र चाहिए होता है, लेकिन पीने के वक्त मात्रा का ध्यान न रखना घातक हो सकता है। शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि कम मात्रा में शराब का सेवन दिल की बीमारियों से बचा सकता है। दिन में एक या दो पेग तक शराब पीने वालों में दिल की बीमारियों को जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है। इस शोध में शराब के सेवन को लेकर हुए 150 अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। इसमें बताया गया है कि कम मात्रा में शराब का सेवन- चाहे वह बियर हो या वाइन, हृदय की बीमारियों को काफी हद तक दूर रखता है।
अध्ययन में पाया गया कि कम मात्रा में शराब का सेवन करने वाले लोग ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों में हृदय रोगों की संभावना उन लोगों की तुलना में कम होती है जो एल्कोहॉल का सेवन बिलकुल नहीं करते। शोध के अनुसार शराब का ज्यादा सेवन निश्चित तौर पर स्वास्थ्य के लिए घातक है, लेकिन कम सेवन स्वास्थ्य को सुधारता है। शोध में बताया गया है कि कम मात्रा में एल्कोहॉल का सेवन रक्त में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर सहित अन्य तत्वों के स्तर में भी सुधार ला सकता है। इससे हृदय की सुरक्षा में मदद मिल सकती है और रक्त वाहिनियों के अवरुद्ध होने का खतरा भी कम हो सकता है।
शराब का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह, इस पर लंबी बहस होती रही है। ज्यादातर अध्ययन बताते हैं कि कम मात्रा में शराब का सेवन दिल की सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह संदेश ज्यादा शराब के सेवन से होने वाले नुकसान को छिपा देता है। ज्यादा शराब पीने से न सिर्फ लिवर खराब होता है, बल्कि मृत्यु भी जल्दी होती है। विशेषज्ञ अभी भी इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि शराब किस तरह दिल की बीमारियों को दूर रखती है। इस बारे में एक सिद्धांत यह है कि शराब चयापचय को दुरुस्त रखकर ब्लड क्लॉटिंग को रोकती है। वाइन में उच्च स्तर के एंटीऑक्सिडेंट्स यौगिक पाए जाते हैं जिन्हें फ्लेवोनोल्स कहा जाता है। ये एंटीऑक्सिडेंट्स रक्त संचरण को ठीक रखते हैं। कालगेरी यूनिवर्सिटी, कनाडा के प्रोफेसर विलियम घाली ने इस शोध का नेतृत्व किया।
कम खाने से दिमाग करता है तेज काम
एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि कम खाने से दिमाग तेज होता है। इस शोध में स्मरण शक्ति और सीखने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण सीआरईबी-1 नाम के प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया गया था। वैज्ञानिको ने चूहे पर प्रयोग करते वक्त यह पाया कि कैलोरी की मात्रा कम करने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है।
अगर तेज दिमाग के साथ याद्दाश्त भी अच्छी हो तो फिर क्या कहना! आप अपनी स्मरण शक्ति को मजबूत बनाना चाहते हैं तो रोजाना विटमिन बी लें। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि रोजाना विटमिन बी की खुराक इंसान को बुढ़ापे मे डिमेंशिया और अल्जाइमर से बचाती है। इस अध्ययन में 250 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें 70 और उससे भी ज्यादा उम्र के वे लोग थे, जो कमजोर स्मरण शक्ति की समस्या से जूझ रहे थे। इन लोगों के भोजन में लगातार दो वर्षो तक अंकुरित अनाज, केला, बीन्स और रेड मीट आदि को प्रमुखता से शामिल किया गया।
विटमिन बी से भरपूर इन चीजों का सेवन करने वाले लोगों की याद्दाश्त में बहुत तेजी से सुधार हुआ। शोधकर्ताओं के अनुसार सप्लीमेंट की तुलना में विटमिन बी युक्त चीजों का सेवन ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। इसलिए इन्हें भोजन में जरूर शामिल करना चाहिए।
बादाम-अखरोट खाएं मोटापा दूर भगाएं
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि ड्राई फ्रूट्स के सेवन से मोटापा नहीं बढ़ता, बल्कि इससे वजन कम करने में मदद मिलती है। स्पेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार रोजाना तकरीबन 30 ग्राम कच्चा और बिना छिलका उतारे बादाम या अखरोट खाने से चर्बी नहीं बढ़ती
वैज्ञानिकों के मुताबिक बादाम और अखरोट में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो दिमाग में मौजूद रसायन सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाते हैं। यह रसायन भूख के एहसास को कम कर देता है। लकवा, दिल के दौरे और मधुमेह केलक्षणों सहित मेटाबॉलिज्म की समस्याओं से ग्रस्त 22 मरीजों का 12 हफ्तों तक अध्ययन कर इस प्रभाव की खोज की गई। यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना के वैज्ञानिकों ने मरीजों के खानपान में बादाम और अखरोट को शामिल किया, जिससे उन्हें वजन कम करने और स्वस्थ होने में मदद मिली।
प्यार की परिभाषा (कहानी)
नील मुझे बहुत पसन्द आया था। वह एक सुन्दर युवक था, पढा-लिखा, सांवला-सलोना, उसका अण्डाकार चेहरा मासूमियत से भरा था। परंतु मुझे उस की जो अदा सब से प्यारी लगी वह थी उस की सादगी। उसका बगैर किसी मांग के इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना वह भी मेरे यह बताने के बाद कि मैं सिर्फ एक सूट के साथ आप के द्वार पर आऊंगी, वगैर किसी दहेज के। मासूमियत के साथ की गई इस सहमति को मैं आज तक नहीं भूल सकी हूं। उसका यह कहना कि, मुझे अच्छे संस्कारों वाली लडकी चाहिए अच्छे पैसों वाली नहीं। मुझे भावविभोर कर दिया था। बाद में नील की आंखों में मचल रहे सपने मुझे अपने लगने लगे।
नील के साथ मेरी यह छोटी सी मुलाकात तब हुई थी जब एक समाचार पत्र के माध्यम से हमारे रिश्ते की बात आगे बढी। हालांकि उसके आगे बढने का रास्ता भी आसान न था। मेरी सबसे बडी दीदी को ये रिश्ता पसन्द नहींथा क्योंकि प्रथम दृष्टि से हम दोनों के परिवारों में कोई समानता न थी। हमारा छोटा सा पढा लिखा संपन्न परिवार था तो उनका बहुत बडा, अनपढ और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा परिवार । न तो घरों का कोई मेल था, न परिवार का, न संस्कृति, संस्कारों का और न ही विचारों का।
शुक्र था कि मेरे पापा को यह रिश्ता पसन्द आया तो सिर्फ इसलिए कि इन असमानताओं के बीच एक समानता सब से बडी थी कि मेरी तरह नील भी सरकारी अध्यापक था। आस-पास से पता करने पर सभी ने यही कहा था कि लडका अच्छे स्वभाव वाला, सरल. सहज. संवेदनशील और परिष्कृत रुचियों से भरपूर व्यक्तित्व का मालिक । पापा ने भी अपनी दूरदृष्टि से यह भांप लिया था। जबकि मैं दिखने में भी अधिक आकर्षक न थी।
मेरे मन के एक कोने में अपने हमसफर की छवि अंकित थी। घर से यह सोचकर निकले थे कि एक बार देखने के बाद मेरे द्वारा ही जवाब भेज दिया जाएगा क्योंकि एक ही छत के नीचे पली बढी मेरी बहन को यह रिश्ता नागवार ही गुजरा था। परंतु नील से हुई इस मुलाकात ने मेरे विचार बदल डाले। गहन आत्मीयता और निष्कलंक स्नेह पाकर मुझे उनकी चन्द बातें ही झकझोर गई। मेरा मन कह उठा कि,तुम वही हो, जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी।
पापा हमेशा कहा करते थे कि जब भी मन और मस्तिष्क के बीच एक का चयन करना हो तो सदैव अपने मन की सुनो, क्योंकि मन में आत्मा का वास होता है और आत्मा में ईश्वर वास करते हैं। पापा कहते थे कि दुनिया की चकाचौंध हमें कुछ देर के लिए भ्रमित कर सकती है किंतु हमारे संस्कार और सामाजिक मूल्य हमें कभी भटकने नहींदेते इसलिए मनुष्य में अच्छे संस्कार होना आवश्यक है। अच्छी धन दौलत नहीं।
मैने आंखें बंद करके ईश्वर से प्रार्थना की- हे ईश्वर, मुझे सही राह दिखाइये और सही निर्णय लेने की क्षमता दीजिए। ईश्वर से स्वीकृति लेकर मैने तमाम बातें जानते हुए भी अपने मन की मानी और पापा के लिए फैसले पर अपनी मोहर लगा दी। हमारा विवाह धूम-धाम से सम्पन्न हुआ।
कुछ
महीनों में उस घर की परिस्थितियां, अलग परिवेश, अशिक्षित सदस्यों के व्यवहार मुझे भीतर ही भीतर से तोडने लगा। जिन रिश्तों पर नील को बहुत मान था वह उसकी शादी के बाद रंग दिखाने लगे। सभी पर दिल खोल कर खर्च करने वाला नील जब अपनी घर-गृहस्थी में रुचि लेने लगा तो कुछ सदस्यों को ये कचोटने लगा। मां को बेटे की कमाई लेने की शौक तो था पर उसे खर्च करने में संयम वो जिंदगी भर न सीख पाईं। भाई जिनको कपडे तक नील लाकर देता था वो भी अपना नाशुक्रापन दिखाने लगे।
मैं कभी-कभी सोचती कि मैंने मन की बात मान कर कहीं गलती तो नहींकी। फिर भी मैं धैर्य के साथ सब कुछ देखती सुनती रही। शादी से पहले जिन्दगी की जो ऊंची उडानें भरने की सोची थी अब वह धीरे-धीरे धरातल पर आ रही थी।
लेकिन इन कडवी सच्चाइयों के बीच एक सच्चाई यह भी थी कि इतने सब के बाद भी नील का मासूम, कोमल मन प्यार से वंचित था। सभी रिश्तों का प्यार पैसे से जुडा था यह समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी। नील के सुन्दर मन को किसी ने नहीं पढा था जिसे प्यार की जरूरत थी।
रिश्तों की इसी उधेडबुन में मुझे एक दिन नील का वो चेहरा देखने को मिला जिसने मेरे प्यार की परिभाषा को भी बदल डाला। मैने यूं ही नील से पूछा कि मैं तो सुन्दरता में भी आपसे पीछे हूं और आपके परिवार के विचारों से भी भिन्न हूं तो आपने मुझसे शादी क्यों की?
नील ने बडे सलीके से जवाब दिया, मैं मानता हूं कि प्यार केवल एक एहसास भर नहींरह जाता बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में जिन बातों को हम अपनाते हैं, जो करते हैं, हम अपने से ज्यादा औरों का ख्याल रखते हैं. बडों को मान-सम्मान देते हैं वो प्यार है। एक पति का एक पत्नी से प्यार और बढता है लेकिन तब नहीं जब हम सिर्फ अपनी सोचें।
वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे साथ तुम्हारा व्यवहार हमेशा प्यार भरा रहे। तुम दिखने में साधारण सी हो लेकिन तुम्हें देखने से पहले मैने जो तुम्हारे बारे में सुना था, जाना था, उसने मुझे तुम्हारे खूबसूरत होने का एहसास पहले से ही करा दिया था। तुम्हारा टूटकर मुझे चाहना, मेरी हर इच्छा को अहमियत देना, मेरी नाराजगी पर भी मुस्कराना मुझे अनुभव कराता है कि तुम्हारा प्यार कितना सच्चा है, कितना सात्विक है। कमी और खामियों के साथ किसी को अपनाना ही सच्चा प्यार है। यही सच्चा समर्पण है। प्यार सुन्दरता में नहीं रिश्तों की मिठास में होता है, परस्पर विश्वास में होता है। प्यार चांद सितारे तोड लाने से नहीं बढता प्यार तो वो है जब हम एक दूसरे से ताउम्र यही कहते गुजरें-
कि तेरे सारे गम मेरे होंगे
और मेरे सारे सुख तेरे होंगे।
अब मेरा प्यार नील के प्यार की परिभाषा के आगे नतमस्तक खडा था।
एक था चिड़ा (कहानी)
चिडा एक डाल पर बैठा हुआ अपने खाली पडे घोंसले को देख रहा था। उसके चेहरे पर चिडचिडाहट थी और रह-रह कर उसकी यह चिडचिडाहट उसके स्वरों में ढल कर आ रही थी.. चिड... चिड.. चिड... चिड..। घोंसले में चिडिया और उसके बच्चे नहीं थे। मुन्ने ने भी दो बार झांककर देखा, सच में घोंसला खाली पडा था। पेड- पौधों से पत्ते झर रहे थे जो बार-बार उसके चेहरे को स्पर्श करते जा रहे थे। मुन्ना अपने चेहरे को इधर-उधर कर उनसे बचने का प्रयास कर रहा था और- उसकी नींद टूट गई।
मुन्ने को याद आया कि कल रात वह दादी से कहानी सुनते-सुनते सो गया था। कहानी में आगे क्या हुआ, यह तो उसे पता ही नहीं चला। संभवत: दादी ने उसे सोया देखकर कहानी आगे नहीं सुनाई होगी या फिर दादी स्वयं भी सो गई होगी क्योंकि मम्मी कह रही थी कि बूढे लोग जल्दी थक जाते हैं। दिनभर कुछ न कुछ करती भी रहती है। आजकल उसकी दादी कुछ दिनों के लिए उसके पास आई हुई थी। कोई बात नहीं, आज कहानी सुनकर ही सोऊंगा- मुन्ने ने स्वयं से कहा।
सुबह के नाश्ते के बाद ही वह दादी के पास जा पहुंचा और लगा जिद करने कि कल वाली कहानी सुनाओ। दादी ने उसे समझाया कि कहानी रात में सुनी जाती है। दिन में कहानी सुनने से आदमी रास्ता भूल जाता है। उसने फिर जिद कीनहीं, मुझे सुननी है.. वही कल वाली कहानी। वह तो सुना दी थी। वह सब मैं कुछ नहीं जानता। मैं सो गया था, बस मुझे कहानी सुननी है।.. आप कहती हैं, रात में सपने में कहानी पूरी हो जाती है परन्तु मैंने तो सपने में भी पूरी कहानी नहीं सुनी और न देखी। अच्छा ठीक है, आज रात में सुन लेना, मैं फिर से सुना दूंगी।
बात तय हो गयी और मुन्ना दिनभर प्रतीक्षा करता रहा कि कब रात हो और वह दादी से कहानी सुने। रात भी हो गई और जब सबने भोजन कर लिया तो मुन्ना फिर दादी के बिस्तर में जा घुसा। उसके विचार से अब सोने का समय हो गया था और उसे दादी से कल वाली कहानी सुननी थी। उसने फिर से दादी को कहानी सुनाने को कहा। दादी ने उससे पूछा-
अच्छा यह बता; तूने कहानी कहां तक सुनी थी? आप शुरू से सुनाइए न..।
अच्छा ठीक है। -दादी ने कहानी शुरू करने के पहले उसे सावधान किया- परन्तु कल की तरह सो मत जाना। मैं बिल्कुल नहीं सोऊंगा, बस आप कहते जाइए।
अच्छा तो सुन एक था चिडा और एक थी चिडिया। दोनों ने पेड की एक डाल पर अपना घोंसला बना रखा था। उनके दो बच्चे भी थे। छोटे-छोटे और प्यारे- प्यारे। उन लोगों ने उनका नाम चीं-चीं और चूं-चूं रखा था। एक दिन चिडिया को कहीं से चावल के ढेर सारे दाने और चिडा को दाल के दाने मिले। दोनों ने सोचा कि आज कुछ बनाया जाए। सप्ताह का अन्तिम दिन था यानि शनिवार। चिडा और चिडिया चाहते थे कि खिचडी बने परन्तु बच्चे का मन था कि पुलाव बने। चिडिया ने पुलाव बनाना ही तय किया।
सो तो नहीं गए? दादी ने बीच में ही पूछा। नहीं दादी।
तो आगे सुनो मुन्ना को सोया नहीं जानकर, दादी ने कहानी आगे बढाई। एक बडा सा पतीला चढाया गया।
मुन्ने ने बीच में ही रोककर उत्सुकतावश जानना चाहा कि चिडा-चिडिया का पेट तो छोटा होता है तो फिर बडा सा पतीला क्यों? और दादी ने समझाया कि गुडियों के बर्तन में से सबसे बडा वाला। चिडा भी साथ देता रहा और दोनों ने मिलकर पुलाव बनाया। पुलाव बडा ही स्वादिष्ट बना।
चिडा ने पेड से पत्ते तोडे और झटपट पत्तों की प्लेट बना डाली। दो डालों पर टहनियों और बडे पत्तों को बिछाकर बैठने की व्यवस्था कर ली गई। सबने जी भरकर पुलाव का आनन्द लिया और अपने-अपने बिस्तरों में आराम करने घुस गए। सबको नींद आ गई। अभी शाम हो ही रही थी कि सहसा चीं-चीं की नींद टूटी- उसके पेट में दर्द था। इतने में चूं-चूं भी उठ बैठा और मतली करने लगा। चिडिया उन्हें संभालने लगी। बच्चों के रोने से घर में शोर मचने लगा। क्या किया जाए, किसे बुलाया जाए? कौन से डाक्टर, कौन से वैद्य की खोज की जाए, चिडा समझ नहीं पा रहा था। वह घबराकर बाहर निकला तभी मुन्ने ने प्रश्न किया-दादी आपने बताया नहीं कि चिडा उदास क्यों था? उसे अपने सपने की बात याद आ गई थी जिसे उसने आज सुबह देखा था जिसमें चिडा चिडचिड करता, उदास बैठा, अपने घोंसले को देख रहा था। अब पूरी कहानी सुनोगे, तब तो समझ में आएगा?
और कितनी लम्बी कहानी है? ज्यादा नहीं, ..पहले तुम चुप रह कर सुनो तो-! अच्छा अब मैं चुप रहूंगा। आप आगे सुनाइए।
चिडा बाहर निकला तो उसकी भेंट उसी पेड पर रहने वाले कौए से हुई। उन दिनों कौए अच्छे वैद्य होते थे और उन्हें दवाओं का अच्छा ज्ञान होता था परन्तु कौए बडे धूर्त होते हैं दुष्ट भी। वह कौआ भी कुछ ऐसा ही था। अपनी धूर्तता और चालाकी से वह दूसरे पक्षियों को बेवकूफ बनाकर कभी उनके अंडों को खा जाता तो कभी उनके बच्चों पर हाथ साफ कर देता। चिडा उससे सावधान रहता था परन्तु अभी तो उसे अपने बच्चों के लिए दवा चाहिए थी। वह कहावत सुनी है न तुमने?
मरता क्या न करता। मुन्ने ने बिना कुछ समझे हां में सिर हिलाया और कहानी आगे बढी। चिडे ने कौए से सब कुछ कह सुनाया और कौए ने झटपट पुडिया बनाकर दी और यह भी सलाह दी कि सावधानी के तौर पर चिडा और चिडिया को भी दवा खा लेनी चाहिए ताकि उनकी तबियत बिगडने न पाए। चिडा ने दोनों बच्चों को दवा खिलाई और दोनों ने स्वयं भी खा लिया। बच्चों की तबीयत में कुछ सुधार हुआ और वे सो गए। शाम हो आई थी।
चुन-चुन, चुन-चुन करते चिडा और चिडिया भी सो गए। जानते हो; दुष्ट कौए ने दवा की पुडिया में बेहोशी की दवा भी मिला दी थी। उसने दोनों बच्चों को चुरा लिया। सुबह चिडे ने चारों तरफ बच्चों को खोजा परन्तु वे न मिले। वह निराश होकर लौट आया और घोंसले के पास एक डाल पर बैठकर चिड-चिडाने लगा। निराश होकर चिडिया भी यह कहती हुई निकल पडी कि एक बार मैं भी देख लूं, शायद मिल जाएं। यहीं तो मैंने कल सुलाया था।
और इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है। बताया तो था कि दुष्ट और दुश्मन का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। कहीं ऐसी भी कहानी होती है?
तो फिर तू ही बता।
दादी बोली। मुन्ने ने कहा- वह सब बात नहीं है- कौआ भी कहीं वैद्य होता है। कौए और चिडिए में दोस्ती भी नहीं होती। बात यह थी कि दोनों बच्चे बडे हो गए थे और दूर- ऽऽ - बहुत दूर चले गए थे इसलिए वे उदास थे।
तेरी ही कहानी सही है। दादी ने गहरी सांस ली।
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