Wednesday, May 8, 2013

प्यार की परिभाषा (कहानी)


नील मुझे बहुत पसन्द आया था। वह एक सुन्दर युवक था, पढा-लिखा, सांवला-सलोना, उसका अण्डाकार चेहरा मासूमियत से भरा था। परंतु मुझे उस की जो अदा सब से प्यारी लगी वह थी उस की सादगी। उसका बगैर किसी मांग के इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना वह भी मेरे यह बताने के बाद कि मैं सिर्फ एक सूट के साथ आप के द्वार पर आऊंगी, वगैर किसी दहेज के। मासूमियत के साथ की गई इस सहमति को मैं आज तक नहीं भूल सकी हूं। उसका यह कहना कि, मुझे अच्छे संस्कारों वाली लडकी चाहिए अच्छे पैसों वाली नहीं। मुझे भावविभोर कर दिया था। बाद में नील की आंखों में मचल रहे सपने मुझे अपने लगने लगे।
नील के साथ मेरी यह छोटी सी मुलाकात तब हुई थी जब एक समाचार पत्र के माध्यम से हमारे रिश्ते की बात आगे बढी। हालांकि उसके आगे बढने का रास्ता भी आसान न था। मेरी सबसे बडी दीदी को ये रिश्ता पसन्द नहींथा क्योंकि प्रथम दृष्टि से हम दोनों के परिवारों में कोई समानता न थी। हमारा छोटा सा पढा लिखा संपन्न परिवार था तो उनका बहुत बडा, अनपढ और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा परिवार । न तो घरों का कोई मेल था, न परिवार का, न संस्कृति, संस्कारों का और न ही विचारों का।
शुक्र था कि मेरे पापा को यह रिश्ता पसन्द आया तो सिर्फ इसलिए कि इन असमानताओं के बीच एक समानता सब से बडी थी कि मेरी तरह नील भी सरकारी अध्यापक था। आस-पास से पता करने पर सभी ने यही कहा था कि लडका अच्छे स्वभाव वाला, सरल. सहज. संवेदनशील और परिष्कृत रुचियों से भरपूर व्यक्तित्व का मालिक । पापा ने भी अपनी दूरदृष्टि से यह भांप लिया था। जबकि मैं दिखने में भी अधिक आकर्षक न थी।
मेरे मन के एक कोने में अपने हमसफर की छवि अंकित थी। घर से यह सोचकर निकले थे कि एक बार देखने के बाद मेरे द्वारा ही जवाब भेज दिया जाएगा क्योंकि एक ही छत के नीचे पली बढी मेरी बहन को यह रिश्ता नागवार ही गुजरा था। परंतु नील से हुई इस मुलाकात ने मेरे विचार बदल डाले। गहन आत्मीयता और निष्कलंक स्नेह पाकर मुझे उनकी चन्द बातें ही झकझोर गई। मेरा मन कह उठा कि,तुम वही हो, जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी।
पापा हमेशा कहा करते थे कि जब भी मन और मस्तिष्क के बीच एक का चयन करना हो तो सदैव अपने मन की सुनो, क्योंकि मन में आत्मा का वास होता है और आत्मा में ईश्वर वास करते हैं। पापा कहते थे कि दुनिया की चकाचौंध हमें कुछ देर के लिए भ्रमित कर सकती है किंतु हमारे संस्कार और सामाजिक मूल्य हमें कभी भटकने नहींदेते इसलिए मनुष्य में अच्छे संस्कार होना आवश्यक है। अच्छी धन दौलत नहीं।
मैने आंखें बंद करके ईश्वर से प्रार्थना की- हे ईश्वर, मुझे सही राह दिखाइये और सही निर्णय लेने की क्षमता दीजिए। ईश्वर से स्वीकृति लेकर मैने तमाम बातें जानते हुए भी अपने मन की मानी और पापा के लिए फैसले पर अपनी मोहर लगा दी। हमारा विवाह धूम-धाम से सम्पन्न हुआ।
कुछ
महीनों में उस घर की परिस्थितियां, अलग परिवेश, अशिक्षित सदस्यों के व्यवहार मुझे भीतर ही भीतर से तोडने लगा। जिन रिश्तों पर नील को बहुत मान था वह उसकी शादी के बाद रंग दिखाने लगे। सभी पर दिल खोल कर खर्च करने वाला नील जब अपनी घर-गृहस्थी में रुचि लेने लगा तो कुछ सदस्यों को ये कचोटने लगा। मां को बेटे की कमाई लेने की शौक तो था पर उसे खर्च करने में संयम वो जिंदगी भर न सीख पाईं। भाई जिनको कपडे तक नील लाकर देता था वो भी अपना नाशुक्रापन दिखाने लगे।
मैं कभी-कभी सोचती कि मैंने मन की बात मान कर कहीं गलती तो नहींकी। फिर भी मैं धैर्य के साथ सब कुछ देखती सुनती रही। शादी से पहले जिन्दगी की जो ऊंची उडानें भरने की सोची थी अब वह धीरे-धीरे धरातल पर आ रही थी।
लेकिन इन कडवी सच्चाइयों के बीच एक सच्चाई यह भी थी कि इतने सब के बाद भी नील का मासूम, कोमल मन प्यार से वंचित था। सभी रिश्तों का प्यार पैसे से जुडा था यह समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी। नील के सुन्दर मन को किसी ने नहीं पढा था जिसे प्यार की जरूरत थी।
रिश्तों की इसी उधेडबुन में मुझे एक दिन नील का वो चेहरा देखने को मिला जिसने मेरे प्यार की परिभाषा को भी बदल डाला। मैने यूं ही नील से पूछा कि मैं तो सुन्दरता में भी आपसे पीछे हूं और आपके परिवार के विचारों से भी भिन्न हूं तो आपने मुझसे शादी क्यों की?
नील ने बडे सलीके से जवाब दिया, मैं मानता हूं कि प्यार केवल एक एहसास भर नहींरह जाता बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में जिन बातों को हम अपनाते हैं, जो करते हैं, हम अपने से ज्यादा औरों का ख्याल रखते हैं. बडों को मान-सम्मान देते हैं वो प्यार है। एक पति का एक पत्नी से प्यार और बढता है लेकिन तब नहीं जब हम सिर्फ अपनी सोचें।
वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे साथ तुम्हारा व्यवहार हमेशा प्यार भरा रहे। तुम दिखने में साधारण सी हो लेकिन तुम्हें देखने से पहले मैने जो तुम्हारे बारे में सुना था, जाना था, उसने मुझे तुम्हारे खूबसूरत होने का एहसास पहले से ही करा दिया था। तुम्हारा टूटकर मुझे चाहना, मेरी हर इच्छा को अहमियत देना, मेरी नाराजगी पर भी मुस्कराना मुझे अनुभव कराता है कि तुम्हारा प्यार कितना सच्चा है, कितना सात्विक है। कमी और खामियों के साथ किसी को अपनाना ही सच्चा प्यार है। यही सच्चा समर्पण है। प्यार सुन्दरता में नहीं रिश्तों की मिठास में होता है, परस्पर विश्वास में होता है। प्यार चांद सितारे तोड लाने से नहीं बढता प्यार तो वो है जब हम एक दूसरे से ताउम्र यही कहते गुजरें-
कि तेरे सारे गम मेरे होंगे
और मेरे सारे सुख तेरे होंगे।
अब मेरा प्यार नील के प्यार की परिभाषा के आगे नतमस्तक खडा था।



No comments:

Post a Comment