Thursday, April 25, 2013

पंछी बने उड़ते फिरें हैंग ग्लाइडिंग


हवाई जहाज में बैठकर आसमान में यात्रा की जा सकती है, पर क्या इसमें वो रोमांच होता होगा, जो पक्षियों को होता है? जवाब होगा नहीं। हां, पर हैंग ग्लाइडिंग के जरिए एडवेंचर के शौकीन लोग जरूर तेज हवा में तैरते हुए ऊंचे उड़ने की चाहत पूरी कर सकते हैं।
पक्षियों को ऊंचे उड़ते देखकर तुम्हारा मन भी करता होगा कि काश, हम भी उड़ पाते। हालांकि थोड़े बड़े होने के बाद जरूर तुम अपनी इस इच्छा को पूरा कर सकते हो। हैंग ग्लाइडिंग तेज हवा में आसमान से बातें करने की चाह रखने वाले एडवेंचर के शौकीनों के लिए बढिया विकल्प है। हैंग ग्लाइडिंग की शुरुआत 1984 में हुई थी। तब हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में पहली बार हैंग ग्लाइडिंग प्रतियोगिता आयोजित की गई थी।
‘हैंग ग्लाइडिंग’ एक रोमांचक एयरोस्पोर्ट्स यानी हवा में खेले जाने वाला खेल है। यह खेल आज एडवेंचर टूरिज्म का हिस्सा बन चुका है। विशाल पक्षी के पंखों जैसे नजर आते ग्लाइडर को पकडम्कर हवा में उड़ते व्यक्ति को देखने से ही मन में एक रोमांच पैदा होने लगता है। स्वयं ग्लाइडिंग करना तो वास्तव में एक अद्वितीय अनुभव होगा। हैंग ग्लाइडिंग में प्रयोग होने वाला ग्लाइडर मेटल का बना एक बड़ा सा तिकोना फ्रेम होता है, जिस पर पाल लगी होती है। इस फ्रेम को पकड़कर हवा में उड़ना ही हैंग ग्लाइडिंग कहलाता है।
कैसे काम करता है हैंग ग्लाइडर
मजे की बात यह है कि हैंग ग्लाइडर में किसी तरह का इंजन आदि नहीं लगा होता। यह तो खिलाड़ी को पूरी तरह अपनी दक्षता के आधार पर उड़ना होता है। यही कारण है कि ऊंची पहाडियों में तेज हवा में तैरना किसी भी साहसी व्यक्ति के लिए एक चुनौती भरा आकर्षण होता है। हैंग ग्लाइडर की बनावट एवं मजबूती हवा में ग्लाइडर का संतुलन बनाये रखने में सहयोग देती है। एल्यूमीनियम से बना इसका फ्रेम करीब 18 फीट चौड़े तिकोने आकार का होता है। इस पर मजबूत सिंथेटिक फेब्रिक की पाल लगी होती है। फ्रेंम के मध्य एक रॉड होती है, जिसे कंट्रोल बार कहते हैं। उडमन आरम्भ करने के लिए पायलट यह रॉड पकडम्कर पहले पहाड़ी ढलान पर दौड़ता है। बस कुछ ही पल बाद ग्लाइडर हवा से बातें करने लगता है।
हैंग ग्लाइडिंग के दौरान पायलट पीठ में बांधे हारनेस द्वारा फ्रेम में लगी रस्सियों के सहारे लटका रहता है, जिससे उड़ने के दौरान थकान महसूस नहीं होती। इस बीच कंट्रोल बार द्वारा ग्लाइडर को नियंत्रित किया जाता है। पायलट अधलेटी अवस्था में लटके हुए अपने शरीर के झुकाव द्वारा ग्लाइडर की दिशा को परिवर्तित करता है। उडमन समाप्त करने के लिए उड़ते हुए पहले किसी उचित स्थान की पहचान की जाती है। फिर सावधानी से ग्लाइडर को उस दिशा में लाकर ढलान पर ही उतारा जाता है।
हालांकि मौसम कैसा है, यह बात भी मायने रखती है, पर अच्छी उड़ान की मुख्य जिम्मेदारी उड़ान भरने वाले व्यक्ति की दक्षता पर ही होती है।
दुनियाभर में लाखों हैं दीवाने
पूरे विश्व में तीन लाख से भी अधिक लोग हैंग ग्लाइडिंग से जुड़े हैं। आज यह एक अन्तर्राष्ट्रीय साहसी खेल का दर्जा पा चुका है। अनेक देशों में सैकड़ों हैंग ग्लाइडिंग क्लब बने हुए हैं। हमारे देश में हैंग ग्लाइडिंग की शुरुआत 1984 में हुई थी। तब हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में पहली बार हैंग ग्लाइडिंग प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। उस समय से कांगड़ा घाटी का ‘बिलिंग’ नामक वह स्थान एयरोस्पोर्ट्स का प्रसिद्ध केन्द्र बन गया है। देश के कई राज्यों में उपयुक्त स्थान खोज कर वहां भी हैंग ग्लाइडिंग का आयोजन होने लगा। आज कांगड़ा के अतिरिक्त शिमला, धर्मशाला, सौली, पूना, सिंहगढ़, कामशेट, मऊ, इंदौर, मैसूर, ऊटी, शिलांग तथा सिकिकम में हैंग ग्लाइडिंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
इसके लिए थोड़े से प्रशिक्षण की आवश्यकता है, बस फिर तो कोई भी साहसी व्यक्ति हैंग ग्लाइडिंग कर सकता है। यह प्रशिक्षण कोई खास तकनीकी ज्ञान आदि से जुड़ा भी नहीं होता। पर इस खेल का मजा लेने के लिए साहस के साथ इसके लिए मस्तिष्क की एकाग्रता आवश्यक है। एक अच्छे प्रशिक्षण द्वारा दो सप्ताह में हैंग ग्लाइडिंग सीखी जा सकती है। उसके बाद पर्याप्त अभ्यास करने के बाद ऊंची उड़ान भरी जा सकती है।
हालांकि हमारे देश में हैंग ग्लाइडिंग के प्रशिक्षण केन्द्रों की संख्या कम है। फिर भी बहुत से शहरों में हैंग  ग्लाइडिंग क्लब मौजूद हैं। इनका सदस्य बन कर इस खेल से जुड़ा जा सकता है। आजकल इंजन से चलने वाले ग्लाइडर भी प्रयोग किए जाने लगे हैं। हैंग ग्लाइडिंग की इंजन रहित उडमन ‘फ्री फ्लाइंग’ कही जाती है, जबकि इंजन चालित ग्लाइडर की उडमन को ‘ट्राइक’ कहते हैं। इसमें एक छोटा सा इंजन फ्रेम के साथ जुड़ा होता है, जिसके पीछे एक पंखा लगा होता है। नीचे तीन पहिए भी लगे होते हैं। यह मैदानों से भी उड़ाया जा सकता है।
यहां सीख सकते हो
दिल्ली ग्लाइडिंग क्लब, सफदरजंग एयरपोर्ट, नई दिल्ली
ग्लाइडिंग एंड सोरिंग सेंटर, कानपुर
राजस्थान स्टेट फ्लाइंग स्कूल, जयपुर
पिंजौर एविएशन क्लब (ग्लाइडिंग विंग), पिंजौर
ग्लाइडिंग सेंटर, पूना
एयरोस्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स, बीड़ा, कांगड़ा
एडवेंचर स्पोर्ट्स हॉस्टल, धर्मशाला





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