Wednesday, November 19, 2014

लव, सेक्स, धोखा और कानून


प्यार की राह हमेशा से मुश्किल बताई गई है लेकिन अगर उसमें धोखे की खाइयां आ जाएं तो इस सफर का अंजाम बुरा भी हो सकता है। उम्मीदों का बोझ और झूठे वादों की चुभन, प्यार करने वालों को जानी दुश्मन में तब्दील कर सकती है और यहीं एंट्री होती है कानून की। प्यार भरे रिश्तों का पंचनामा होता है और रेप शब्द रिश्तों को झकझोर देता है। पता ही नहीं चलता, कब प्यार भरे रिश्ते रेप की पथरीली राह पर चले जाते हैं। आखिर किन पेचीदगियों की पगडंडी से रेप के केस को गुजरना पड़ता है बता रहे हैं राजेश चौधरी:

जब प्यार हो जाए...

प्रेमी-प्रेमिका ने पैरंट्स की मर्जी के खिलाफ साथ रहने का फैसला किया। लड़के ने लड़की से वादा किया कि वह जल्दी ही उससे शादी कर लेगा। कुछ दिनों के बाद परेशानियों का हवाला देकर लड़के ने लड़की से पल्ला छुड़ाने की कोशिश की और घर वापस लौटने के लिए कहा। मजबूर होकर और लड़के के धोखे से दुखी लड़की घर वापस तो आ गई लेकिन उसने एक्शन लेने का मन बना लिया था। माता-पिता के सपोर्ट से उसने पुलिस में केस दर्ज कराया और पुलिस ने लड़के को धोखाधड़ी और रेप के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट में आरोप लगा कि लड़के ने धोखा देकर लड़की के साथ संबंध बनाए। कोर्ट ने लड़के पर रेप का केस चलाने के आदेश दिए। लड़के ने हाईकोर्ट में रेप का केस न चलाने की अर्जी दी और कहा कि वह लड़की से शादी करने को तैयार है जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि लड़का ऐसा किसी पछतावे में आकर नहीं बल्कि सजा से बचने के लिए कर रहा है। इस तरह के ऑबजर्वेशन के साथ ही हाईकोर्ट ने लड़के पर रेप की धाराएं लगाने का आदेश दिया।

क्या है रेप का कानून

इंडियन पीनल कोड की धारा-375 में रेप को परिभाषित किया गया है :

- अगर किसी महिला के साथ कोई पुरुष जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप होगा।

- महिला के साथ किया गया यौनाचार (वेजाइनल सेक्स) या दुराचार (सोडमाइजेशन) दोनों ही रेप के दायरे में होगा।

- महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में (मुंह, कान, नाक आदि) अगर पुरुष अपना प्राइवेट पार्ट डालता है तो वह भी रेप के दायरे में होगा।

- महिला के प्राइवेट पार्ट में अगर पुरुष अपने शरीर का कोई भी हिस्सा (उंगली आदि) या कोई भी ऑब्जेक्ट डालता है तो वह भी रेप ही माना जाएगा।

- महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने के लिए उसके कपड़े उतारना या बिना उतारे ही उसे सेक्स करने के लिए पोजिशन में लाया जाता तो वह भी रेप के दायरे में होगा।

- उम्र चाहे कुछ भी हो, लड़की की इच्छा या सहमति के बिना की गई ऐसी कोई भी हरकत रेप के दायरे में आती है। महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है और सेक्स में उसकी सहमति है तो भी वह रेप होगा। गौरतलब है कि पहले यह उम्र सीमा 16 साल थी।

कब सहमति भी सहमति नहीं

- नाबालिग लड़की की सहमति को सहमति नहीं माना जाएगा।

- अगर कोई शख्स किसी महिला को डरा कर सहमति ली हो या उसके किसी नजदीकी को जान की धमकी देकर सहमति ली गई हो तो भी वह सहमति नहीं मानी जाएगी औऱ ऐसा संबंध रेप होगा।

- महिला ने अगर यह समझते हुए सहमति दी है कि आरोपी उसका पति है या भविष्य में उसका पति बन जाएगा, जबकि आरोपी उसका पति नहीं है तो भी ऐसी सहमति से बनाया गया संबंध रेप होगा। यानी समाज के सामने शादी करने का वादा, घर या मंदिर में चुपचाप मांग में सिंदूर भर देना या वरमाला पहनाकर खुद को पति बताने का झांसा दे कर बनाया गया संबंध भी रेप के दायरे में होगा।

- जब महिला की सहमति ली गई, उस वक्त उसकी दिमागी हालात ठीक नहीं हो या फिर उसे बेहोश करके या नशे की हालत में सहमति ली गई हो या फिर उस हालत में संबंध बनाए गए हों तो वह सहमति सहमति नहीं मानी जाएगी।

- अगर कोई महिला प्रोटेस्ट न कर पाए तो इसका मतलब सहमति है, ऐसा नहीं माना जाएगा।

- आईपीसी की धारा-90 में बताया गया है कि वैसी सहमति का कोई मतलब नहीं है, जिसमें गलत वादे या धोखे से सहमति ली गई हो। शादी का वादा कर संबंध बनाए जाने के मामले को रेप के दायरे में इसी प्रावधान के साथ देखा जाता है।

उम्र का अहम रोल

रेप के केस में पीड़िता की उम्र को प्रूव करना केस को किसी भी मुकाम पर पहुंचाने के लिए बहुत जरूरी है:

- 10वीं के एजुकेशनल सर्टिफिकेट में लिखी उम्र सबसे बड़ा प्रूफ है।

- अगर 10वीं का सर्टिफिकेट मौजूद नहीं है तो पढ़ाई की शुरुआत के वक्त स्कूल आदि में लिखाई गई उसकी उम्र का सर्टिफिकेट।

- वह भी न हो तो कॉर्पोरेशन व पंचायत आदि का सर्टिफिकेट मान्य होता है। इन तीनों के न होने पर बोन एज टेस्ट कराया जाता है।

- बोन एज टेस्ट से किसी लड़की की उम्र को सटीक नहीं आंका जा सकता। अगर लड़की की उम्र 16 साल बताई गई हो तब बोन एज टेस्ट से उसकी उम्र 14 से लेकर 18 साल तक आंकी जा सकती है। ऐसे में लड़की की उम्र को 18 साल माना जाता है और उसे बालिग करार दिया जा सकता है।

- कानून के मुताबिक जो लड़की बालिग है, वह शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति दे सकती है और तब वह रेप नहीं माना जाएगा।


सबसे अहम सबूत है क्या?

रेप और छेड़छाड़ के मामले में लड़की का बयान अहम सबूत है। अगर बयान पुख्ता है और उसमें कोई विरोधाभास नहीं है तो किसी दूसरे अहम सबूत की जरूरत नहीं है।

- ऐसे मामले में शिकायत के बाद पुलिस को अधिकार है कि वह आरोपी को गिरफ्तार कर ले।

- चाहे मामला रेप का हो या फिर छेड़छाड़ या सेक्शुअल असॉल्ट (महिला के शरीर के खास अंगों जैसे ब्रेस्ट, हिप्स आदि को छूना या छूने की कोशिश करना) का, दोनों ही सूरत में अपराध साबित करने का भार शिकायती पक्ष पर ही होता है।

- मामला रेप का हो छेड़छाड़ या सेक्शुअल असॉल्ट का, ये तमाम मामले महिलाओं के खिलाफ किए गए अपराध हैं और ऐसे मामले संज्ञेय अपराध (जिसमें गिरफ्तार किया जा सके) के दायरे में आते हैं।

- संज्ञेय अपराध का मतलब है कि अगर पुलिस को इन अपराध के होने की कहीं से भी जानकारी मिले तो वह ऐसे मामले में एफआईआर दर्ज कर सकती है। शिकायती अगर सीधे थाने में शिकायत करे तो पुलिस इस शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर सकती है।

- आरोपी को ट्रायल के दौरान अपने बचाव का मौका दिया जाता है। इस दौरान वह अपने को बेगुनाह साबित करने के लिए गवाह और सबूत पेश कर सकता है।

- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि जब मामला संज्ञेय हो तो पुलिस शिकायत मिलने पर फौरन एफआईआर करे और उसके बाद छानबीन करे। ऐसे में पुलिस रेप या फिर सेक्सुअल असॉल्ट या छेड़छाड़ से जुड़े किसी भी मामले में सीधे एफआईआर दर्ज कर सकती है और आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। इसके लिए पुलिस को किसी वॉरंट की जरूरत नहीं है। छेड़छाड़ से जुड़े कुछ ऐसे मामले हैं, जो जमानती हैं जैसे धक्का देना, हाथ पकड़ना या पब्लिक में बदसलूकी करना। ऐसे मामलों में आरोपी को थाने से जमानत मिल सकती है, लेकिन छेड़छाड़ से जुड़े गैर जमानती मामलों और रेप से जुड़े मामलों में आरोपी को जेल भेजने का प्रावधान है। इस तरह के मामलों में भी केस की मेरिट के हिसाब से ही कोर्ट से जमानत मिल सकती है।

- रेप मामले में लड़की के बयान में अगर तारतम्यता (केस के हर मुकाम पर बयानों में बदलाव नहीं होना चाहिए) है और कोर्ट को लगता है कि बयान भरोसे लायक है तो वह सबसे अहम सबूत है।

- सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि अगर लड़की का बयान पुख्ता और भरोसे के लायक है तो अन्य किसी पूरक सबूत की जरूरत नहीं है।

- जहां तक मेडिकल एविडेंस का सवाल है तो वैसे एविडेंस पूरक सबूत हैं और मेडिकल में अगर रेप की पुष्टि होती है तो केस ज्यादा ठोस माना जाता है।

- अगर मेडिकल एविडेंस या फिर दूसरे परिस्थितिजन्य सबूत मौजूद हैं, लेकिन लड़की के बयान में बार-बार बदलाव आ रहा है तब भी केस साबित हो सकता है।

- अगर बयान को सपोर्ट करने के लिए कोई और सबूत जैसे ईमेल, सीसीटीवी फुटेज या फिर मेसेज आदि पाए जाते हैं तो केस और भी ज्यादा पुख्ता हो जाता है।


लिव-इन और रेप

दिल्ली में नौकरी मिलने के बाद साथ काम करने वाले एक लड़के और लड़की ने साथ रहने का फैसला किया। लगभग 3 साल तक साथ रहने के बाद लड़का अचानक गायब हो गया और उसने अपना फोन भी स्विच ऑफ कर लिया। लड़की ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि न केवल लड़के ने शादी का वादा करके उससे साथ शारीरिक संबंध बनाए, बल्कि पैसे भी उधार लिए। उसने पुलिस में इस बात की भी शिकायत की कि लड़के की बहन और उसकी मां ने भी फ्लैट में आकर उसके साथ मारपीट की। रिपोर्ट के आधार पर लड़का, उसकी मां और बहन को गिरफ्तार कर लिया गया। जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो लड़की पुलिस में की गई शिकायत के अनुसार बयान देने के लिए सामने नहीं आई और न ही उसने अपने साथ बने सेक्शुअल रिलेशन या मारपीट के बारे में सबूत पेश किए। कोर्ट ने लड़की की रिपोर्ट को प्रेमी को वापस पाने की एक कोशिश भर करार दिया और सभी को बरी कर दिया।

कानूनी जानकार बताते हैं कि एक तरफ जब सुप्रीम कोर्ट लिवइन रिलेशनशिप को मान्यता दे रही है, वैसी स्थिति में शादी से पहले संबंध बनाना या न बनाने को नैतिकता के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। इन चीजों को कानूनी नजरिये से ही देखना होगा।

- कोई बालिग है और अपनी मर्जी से संबंध बनाता है तो वह उसका अधिकार है। लेकिन इस आड़ में अगर उसका पार्टनर धोखा देता है तो उस पर केस चल सकता है।

- रेप की परिभाषा में साफ तौर पर कहा गया है कि अगर शादी का झांसा देकर सहमति ली जाए और संबंध बनाए जाएं और बाद में शादी के वादे से मुकर जाया जाए तो वह रेप होगा।

शादी में शिकायत

35 साल की एक शादीशुदा महिला ने थाने में पहुंच कर रोते हुए एक शख्स पर रेप का आरोप लगाया। पुलिस ने आरोपी को गिरप्तार किया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कि गिरफ्तार किया गया शख्स उसका पति है इसलिए उसे रेप के आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है इसलिए कानून के दायरे में यह रेप का केस नहीं बनता। अगर पत्नी पति की हरकतों से परेशान है तो वह डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट के तहत केस दर्ज करा सकती है।

मैरिटल रेप को लेकर नए कानूनों की मांग जरूर वक्त-वक्त पर सामने आती रहती हैं, लेकिन फिलहाल ऐसे केसेज में कानून की अपनी सीमाएं हैं।

- अगर कोई महिला अपने पति से कानूनी तौर पर अलग रह रही हो और उस दौरान पति उसके साथ जबरदस्ती करता है तो वह रेप होगा।

- अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम है औऱ उसके साथ संबंध बनाए जाते हैं तो वह भी रेप के दायरे में होगा। लेकिन पत्नी की उम्र अगर 15 साल से ऊपर है तो पति के खिलाफ जबर्दस्ती करने पर भी रेप का केस नहीं हो सकता।

क्या है डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट

घरेलू हिंसा या डोमेस्टिक वॉयलेंस का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना। अगर महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक प्रताड़ना दी गई हो तो वह डीवी एक्ट के तहत आएगा। डीवी एक्ट-31 के तहत चलने वाले केस गैर जमानती और कॉग्नेजिबल होते हैं और इसमें दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद के साथ ही 20 हजार रुपये तक जुर्माने का भी प्रावधान है।

कितनी सजा

रेप के मामले में कड़ी सजा पर बहस जारी है। फिलहाल परिस्थितियों के हिसाब से सजा बदलती रहती है :

- रेप मामले में 7 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।

- सेपरेशन (पति-पत्नी होने पर और अलग-अलग रहने के दौरान) के वक्त किए गए रेप के मामले में 2 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।

- अगर किसी लड़की से शादी का ड्रामा रचने के बाद संबंध बनाने की सहमति ली जाती है और बाद में पता चलता है कि लड़के ने झूठ बोला था तो लड़की की शिकायत पर आईपीसी की धारा-493 के तहत केस बनता है और दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल तक कैद हो सकती है।

क्या मिल सकती है फांसी?

- रेप के लिए आईपीसी की धारा-376 के तहत कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है।

- आईपीसी की धारा-376 ए के तहत प्रावधान किया गया है कि अगर रेप के कारण महिला वेजिटेटिव स्टेज (मरने जैसी स्थिति) में चली जाए तो दोषी को अधिकतम फांसी की सजा हो सकती है।

- गैंग रेप के लिए 376 डी के तहत सजा का प्रावधान किया गया है, जिसमें कम से कम 20 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रभर के लिए जेल (नेचरल लाइफ तक के लिए जेल) का प्रावधान किया गया।

- अगर कोई शख्स रेप के लिए पहले भी दोषी करार दिया गया हो और दोबारा रेप या गैंग रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो 376-ई के तहत उसे उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा हो सकती है।

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