Wednesday, November 19, 2014

बिजनस के पहिए, लाइसेंस-रजिस्ट्रेशन


केस स्टडी 
दिल्ली के शाहदरा में ऑटो लाइट कंपोनेंट का शोरूम चलाने वाले विजय कुमार की दुकान जब चल निकली और अच्छे-खासे पैसे भी आ गए तो उन्हें अपनी खुद की फैक्ट्री लगाने की सूझी। उन्होंने एनसीआर के कुछ इंडस्ट्रियल इलाकों से प्लास्टिक और मेटल मोल्डिंग की सेकंड हैंड मशीनरी खरीदी और शोरूम के बेसमेंट में इंस्टॉल कर लिया। फर्स्ट और सेकंड फ्लोर पर असेंबलिंग और पैकेजिंग का काम करने लगे। अब न तो इम्पोर्ट का झंझट था और न ही प्रॉफिट मार्जिन की चिंता। उनका माल धड़ाधड़ बिकने भी लगा। लेकिन अगले महीने से ही एक-एक कर नई मुश्किलें आने लगीं। नगर निगम अधिकारियों ने लैंडयूज के गलत इस्तेमाल और बिना लाइसेंस के फैक्ट्री चलाने के आरोप में यूनिट पर सीलिंग का नोटिस चस्पा कर दिया। अभी वह निगम दफ्तर के चक्कर लगा ही रहे थे कि वैट एन्फोर्समेंट का छापा पड़ा और फिर डीपीसीसी ने उनका बोरवेल सील कर दिया। इस बीच, बीआईएस और डीएसआईआईडीसी के नोटिस भी मिलने लगे। हालांकि विजय ने कारोबार की शुरुआत के समय कई स्थानीय अधिकारियों पर खर्च भी किया था, लेकिन अब वे भी उनकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे। अब विजय को समझ आ गया था कि कुछ जरूरी रजिस्ट्रेशन और औपचारिकताएं पूरी नहीं करने के चलते ही ये सारी मुश्किलें आ खड़ी हुई हैं। उन्होंने अब नए सिरे से कारोबार को कानून की पटरी पर चलाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।


इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि किसी भी बिजनस में उतरने से पहले उनसे संबंधित जरूरी रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए और मानकों पर खरा उतरने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बाद जो भी दिक्कतें पेश आएंगी, वे अपने साथ कानूनी समाधान लेकर आएंगी।


बिजनस का ख्याल आते ही सबसे पहले ज़हन में यही सवाल उभरता है कि इसके लिए कौन-कौन से रजिस्ट्रेशन, लाइसेंस या मंजूरियां लेनी होंगी। फेहरिस्त लंबी है, जो बिजनस शुरू हो जाने के बाद बढ़ती ही चली जाती है। लेकिन कुछ बुनियादी रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस ऐसे हैं, जिनसे पाला शुरू में ही पड़ सकता है। इनके बारे में एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं प्रमोद राय...

मैन्युफैक्चरिंग (अगर आप खुद कोई प्रॉडक्ट बनाना चाहते हैं)

1 लैंड यूज और निगम लाइसेंस


- कोई भी फैक्ट्री सिर्फ इंडस्ट्रियल या कॉन्फर्मिंग एरिया में ही लगाई जा सकती है।

- दिल्ली में डीएसआईआईडीसी, यूपी में यूपीएसआईआईडीसी या हरियाणा में एचएसआईआईडीसी के तहत आने वाले इंडस्ट्रियल एस्टेट्स, पार्क या एरिया में फैक्ट्री के लिए मंजूरी इन्हीं अथॉरिटीज से लेनी पड़ेगी।

- बाकी जगहों के लिए नगर निगम, विकास प्राधिकरण या जिला उद्योग दफ्तर में फैक्ट्री रजिस्ट्रेशन कराना होगा।

- किसी भी यूनिट के लिए सबसे पहला लाइसेंस निगम लाइसेंस होता है। इसके लिए आवेदन मैन्युअल या ऑनलाइन भी किया जा सकता है। यहीं, आपकी एरिया कैटिगरी और प्रॉपर्टी टैक्स की दर भी तय होती है।

जरूरी दस्तावेज और फीस

- प्लॉट की ओनरशिप या लीजहोल्ड का प्रूफ

- बिल्डिंग या साइट प्लान की मंजूरी की कॉपी, जो मशीन आप लगाएंगे उनकी डिटेल्स और हॉर्स पॉवर, मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस का खाका इत्यादि।

- दिल्ली में फीस 2000 रुपए, अन्य राज्यों में भी लगभग इतनी ही। यह लाइसेंस हर साल, कुछ राज्यों में तीन साल पर रिन्यू कराना पड़ता है।

2 एनवारयमेंट कंसेंट और रजिस्ट्रेशन

- फैक्ट्री शुरू करने से पहले पर्यावरण विभाग से कंसेंट लेना अनिवार्य है। तीन तरह की कैटिगरी में यह मंजूरी दी जाती है।

ग्रीन कैटिगरी - फैक्ट्री से किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता ऑरेंज कैटिगरी, थोड़ा-बहुत प्रदूषण होता है, जिसके लिए वॉटर या एयर ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अनिवार्य है।

रेड कैटिगरी - इसमें प्रदूषण वाले उद्योग आते हैं और इन्हें अब कोई भी राज्य मंजूरी नहीं देता।

जरूरी दस्तावेज और फीस :

- यूनिट का लेआउट प्लान

- मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस

- निगम लाइसेंस की कॉपी

- साइट पजेशन का प्रूफ

- इंडस्ट्री कैटिगरी के हिसाब से यह कंसेंट 1 से 5 साल के लिए दिया जाता है। इसकी फीस अलग-अलग है।

- एयर पल्यूशन कंट्रोल ऐक्ट के तहत 5 लाख से 1 करोड़ तक के पूंजी निवेश वाली फैक्ट्री के लिए फीस 250 रुपए से 2000 रुपए तक। वॉटर ऐक्ट के तहत पानी की किलोलीटर खपत के हिसाब से फीस 6500 रुपए तक है।

3 लेबर डिपार्टमेंट का फैक्ट्री लाइसेंस

- इसे चीफ इंसपेक्टर ऑफ फैक्ट्रीज (सीआईएफ) का लाइसेंस भी कहा जाता है।

- यह सबसे अहम रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस प्रॉसेस है, जहां आपको फैक्ट्री का पूरा प्रोफाइल दिखाना पड़ता है।

- लेबर डिपार्टमेंट के इंस्पेक्टर समय-समय पर फैक्ट्री की जांच करते हैं। इसके तहत आपको कई तरह के रजिस्टर मेनटेन करने होते हैं और वर्कर से जुड़ी दर्जनों फॉर्मैलिटीज पूरी करनी होती हैं।


जरूरी दस्तावेज और फीसः 

- नगर निगम लाइसेंस और एनवायरमेंटल कंसेंट की कॉपी

- साइट या लेआउट प्लान की कॉपी

- फायर डिपार्टमेंट का एनओसी

- मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस का फ्लो चार्ट

- कर्मचारियों की संख्या और प्रोफाइल (मेल-फीमेल, स्किल्ड, सेमी या अनस्किल्ड), वेतन आदि।

- दस्तावेज की संख्या और फीस हर राज्य में अलग-अलग। इसे स्टेट लेबर डिपार्टमेंट की साइट पर देखा जा सकता है।


4. एम्प्लॉयमेंट स्टेट इंश्योरेंस (ईएसआई)

- अगर आपकी फैक्ट्री में 10 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं तो आपको एम्प्लॉयी स्टेट इंश्योरेंस कवर लेना पड़ेगा।

- इसके तहत सिर्फ वही कमर्चारी आएंगे, जिनकी मंथली सैलरी 15,000 रुपए से कम है।

- दुकान, होटल, रेस्तरां, मॉल, प्राइवेट मेडिकल या एजुकेशनल संस्थानों के लिए 20 से ज्यादा कर्मचारियों पर यह कवर लेना होगा।

- इसका मकसद कर्मचारियों को मुफ्त मेडिकल सुविधाएं देना है।


दस्तावेज और फीस:

- रजिस्ट्रेशन की औपचारिकता और फीस मामूली हैं, कंट्रिब्यूशन और रिटर्न नियमित रूप से भरना होगा।

- स्कीम के लाभ के लिए एम्प्लॉयर को हर महीने कर्मचारी की सैलरी के 6.5 फीसदी के बराबर रकम ईएसआई फंड में जमा करानी होती है।

- कमर्चारी की सैलरी से 1.75 फीसदी रकम काटी जाती है, जबकि एम्प्लॉयर 4.75 फीसदी अपनी तरफ से देता है।


5. एम्प्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड (ईपीएफ) रजिस्ट्रेशन

- 20 से ज्यादा कर्मचारियों वाले एम्प्लॉयर को प्रॉविडेंट फंड में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।

- हालांकि इससे कम कर्मचारी संख्या वाले एम्प्लॉयी चाहें तो स्वैच्छिक रूप से रजिस्ट्रेशन ले सकते हैं।

- इसका मकसद कर्मचारी के लिए भविष्य निधि इकट्ठा करना है, जिसका लाभ वह रिटायरमेंट या एमर्जेंसी जरूरत पर उठा सके।


कॉन्ट्रिब्यूशन रेट :

- ईपीएफ में हर महीने कर्मचारी की बेसिक सैलरी का 12 फीसदी जमा होता है और इतनी ही रकम एम्प्लॉयर अपनी तरफ से देता है।

- 20 से कम कर्मचारी वाली यूनिटों (वॉलंटरी रजिस्ट्रेशन), बीमार इकाइयों के लिए कॉन्ट्रिब्यूशन रेट 10 प्रतिशत है।

- एम्लॉयर की ओर से जमा होने वाली रकम का एक हिस्सा पेंशन फंड में जाता है।


6 एमएसएमई रजिस्ट्रेशन

- अगर आपने प्लांट और मशीनरी में 25 लाख रुपए तक निवेश किया है तो आप माइक्रो इंडस्ट्रीज के तहत आएंगे। 25 लाख से 5 करोड़ तक निवेश किया है तो स्मॉल और 5 से 10 करोड़ के बीच लागत आई है तो मीडियम एंटरप्राइजेस कहलाएंगे।

- एमएसएमई ऐक्ट 2006 के तहत इन इकाइयों को राज्य के डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रीज में एमएसएमई रजिस्ट्रेशन कराकर सर्टिफिकेट लेना जरूरी है।

- यह सर्टिफिकेट इतना अहम है कि इसके बगैर आप लघु उद्योगों को मिलने वाले ज्यादातर सरकारी लाभ से वंचित रह जाएंगे।

- नैशनल स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज और वित्तीय संस्थानों की स्कीमों से जुड़ने के लिए भी आपको एमएसएमई रजिस्ट्रेशन कराना होगा।


7. वैट रजिस्ट्रेशन

- जब आप कोई सामान बनाएंगे तो जाहिर है, उसे बेचेंगे भी।

- अगर आपकी सेल्स 20 लाख (दिल्ली में) या 10 लाख (दूसरे राज्यों में) सालाना से ज्यादा है तो संबंधित राज्य में वैट रजिस्ट्रेशन कराना होगा।

- वैट विभाग किसी राज्य में सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट तो किसी में कमर्शिल टैक्स डिपार्टमेंट के नाम से जाना जाता है।

- अगर आप टैक्स फ्री चीज बनाते हैं तो आपको वैट रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं, लेकिन अगर आपका माल राज्य से बाहर जाता है तो आपको 1 रुपए की सेल्स पर भी वैट रजिस्ट्रेशन कराना होगा, चाहे आपका टर्नओवर कितना भी हो।

- ऐसे में आपको वैट विभाग में ही केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) के तहत भी रजिस्ट्रेशन लेना होगा।


जरूरी दस्तावेज और फीस :

- पैन की कॉपी

- आवेदक का आईडी प्रूफ

- ओनरशिप का प्रूफ

- पार्टनरशिप डीड (अगर फर्म पार्टनरशिप में है)

- कंपनी, सोसाइटी या ट्रस्ट होने पर संबंधित विभागों का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट।

- 500 रुपए फीस वाले ऐप्लिकेशन फॉर्म के साथ 1 लाख रुपए का श्योरिटी बॉन्ड भी भरना होगा। लेकिन सिक्यॉरिटी की रकम कुछ खास दस्तावेजों की कॉपी जमा करने पर 50,000 रुपए तक कम हो सकती है।


8. एक्साइज ड्यूटी रजिस्ट्रेशन

- अगर आपकी फैक्ट्री का टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए सालाना से कम है तो आप एक्साइज ड्यूटी से मुक्त हैं।

- लेकिन इससे ज्यादा टर्नओवर पर कमिश्नर एक्साइज और सेंट्रल एक्साइज डिपार्टमेंट के जोनल ऑफिस में रजिस्ट्रेशन कराकर ड्यूटी चुकानी होगी और रिटर्न भरना होगा।


9. पैकेज्ड कमोडिटी और वेट्स एंड मेजर्स

- अगर आप कोई पैक होने वाली कमोडिटी बनाते हैं, जिसके वजन से ग्राहक का सरोकार है तो आपको पैकेज्ड कमोटिडी ऐक्ट के तहत राज्य के कन्जयूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट के कुछ मानकों का पालन करना होगा। अगर आप माप-तोल से जुड़ी चीजें बनाते हैं तो वेट्स एंड मेजर्स ऐक्ट के तह रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है

10. बीआईएस रजिस्ट्रेशन

-अगर आपके उत्पाद सेफ्टी, सिक्यॉरिटी, प्रेशस वैल्यू या मानकों पर खरे उतरने की अनिवार्यता वाली कैटिगरी में आते हैं तो आपको ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) में भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा और जरूरी लाइसेंस लेने होंगे।


11. फूड सेफ्टी रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस

-अगर आप खाद्य चीजों का उत्पादन करते हैं तो 12 लाख रुपए सालाना से ज्यादा टर्नओवर पर फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसआईए) से लाइसेंस लेना अनिवार्य है। इससे कम टर्नओवर पर सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इनकी फीस प्रॉडक्ट कैटिगरी, टर्नओवर और सेफ्टी मेजर्स के हिसाब से अलग-अलग है। अथॉरिटी की साइट पर देख सकते हैं।


सर्विस सेक्टर

अगर आप चीजों के उत्पादन की बजाय सेवाएं देने के बिजनस में हैं। मसलन, आईटी, बीपीओ, कॉल सेंटर, टूर एंड ट्रैवल, होटल, बार, ब्यूटी पार्लर, कैटरिंग, ट्रांसपोर्ट, कूरियर, लॉजिस्टिक्स, टेलिकॉम से जुड़ी सेवाएं और आपका टर्नओवर 10 लाख से ज्यादा है तो आपको सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में रजिस्ट्रेशन कराना होगा।

अलग-अलग सर्विसेज के लिए आपको कई दूसरे विभागों के रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस भी लेने पड़ सकते हैं।

- होटेलियर्स को लग्जरी टैक्स डिपार्टमेंट में रजिस्ट्रेशन कराकर 1000 रुपए प्रति दिन से ज्यादा चार्ज वाले कमरों पर 10 पर्सेंट लग्जरी टैक्स देना पड़ता है।

- पब, बार या होटल जहां शराब परोसी जाती है, वहां एक्साइज (आबकारी) विभाग में रजिस्ट्रेशन तो कराना ही पड़ता है, कई अलग-अलग लाइसेंसेज लेने पड़ते हैं।

- स्पा, ब्यूटी पार्लर या जिम कारोबार के लिए 5 लाख से ज्यादा टर्नओवर पर लग्जरी टैक्स में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है और इसके लिए 3 प्रतिशत टैक्स चुकाना होता है।

- आईटी और टेलिकॉम सेवाओं के लिए कम्यूनिकेशन मिनिस्ट्री के तहत हाल के दिनों में बने कई नए नॉर्म्स पर भी खऱा उतरना होगा।

- ट्रांसपोर्ट, कूरियर और लॉजिस्टिक्स फर्मों को ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के अलावा वैट डिपार्टमेंट में भी रजिस्ट्रेशन कराना पड़ सकता है।


शॉप, ट्रेड या कॉमर्स

1 ट्रेड लाइसेंस

- किसी भी तरह की शॉप या व्यावसायिक गतिविधि के लिए आपको स्थानीय निकाय (नगर निगम) से ट्रेड लाइसेंस लेने की जरूरत होगी।

- दिल्ली सहित कई राज्य इसके लिए ऑनलाइन ऐप्लिकेशन भी मंगाने लगे हैं और रिन्युअल एक साल की बजाय तीन साल पर होने लगा है।

- दिल्ली में एमसीडी पहले कमोडिटी या आइटम के हिसाब से ट्रेड लाइसेंस फीस लेती थी, लेकिन अब कुछ अपवादों को छोड़कर दुकान की साइज को आधार बनाया गया है।

- मसलन 10 वर्गमीटर की दुकान के लिए 200 रु. 10 से 20 वर्गमीटर 500 रुपए और इससे बड़े प्रतिष्ठान पर प्रति वर्गमीटर 50 रुपए ज्यादा शुल्क लगता है। हर राज्य में फीस स्ट्रक्चर अलग-अलग है।

2 वैट रजिस्ट्रेशन

- इसके लिए जरूरत या प्रक्रिया वही है, जो मैन्युफैक्चरिंग में बताई जा चुकी है। मूलतः वैट कमर्शियल या ट्रेडिंग ऐक्टिविटीज पर ही लागू होता है और अगर आप शॉप या कमर्शल गतिविधियों में शामिल हैं तो इस विभाग से ही आपका सरोकार सबसे ज्यादा होगा।

- वैट रजिस्ट्रेशन से छूट की सीमा दिल्ली में 20 लाख और दूसर राज्यों में 10 का टर्नओवर है। रजिस्ट्रेशन के बाद बिक्री पर हर कमोडिटी के लिए तय अलग अलग रेट के मुताबिक टैक्स देना होगा। वैट फ्री कमोडिटी के ट्रेड पर रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है। लेकिन इंटरस्टेट ट्रेड पर हर हाल में रजिस्ट्रेशन कराना होगा और रिटर्न भरना होगा।

3. फूड सेफ्टी रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस

- अगर आप खाद्य सामग्री बेचते हैं या इसके स्टोरेज, डिस्ट्रिब्यूशन या इम्पोर्ट से जुड़े हैं तो आपको फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऐक्ट 2006 और रेग्युलेशन 2011 के तहत रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस लेने हैं। शर्तें और जरूरत मैन्युफैक्चरिंग सेग्मेंट की तरह ही हैं।

4. आईईसी रजिस्ट्रेशन

- अगर आप इम्पोर्ट या एक्सपोर्ट के बिजनस में हैं तो आपको 10 अंकों का आईईसी कोड लेना अनिवार्य है।

- यह कोड वाणिज्य मंत्रालय के डायरेक्टरेट ऑफ जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) की ओर से जारी होता है।

- आप अपनी फर्म या खुद के नाम से इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं।

5 शॉप्स ऐंड इस्टैब्लिशमेंट रजिस्ट्रेशन

- लेबर डिपार्टमेंट के तहत होने वाले इस रजिस्ट्रेशन के तहत आपको दुकान खोलने बंद करने के समय से लेकर लेबर संबंधी नॉर्म्स का पालन करना पड़ता है।

- इसके लिए फीस मामूली है और जरूरी दस्तावेज लगभग वही हैं जो एक ट्रेड लाइसेंस के लिए चाहिए होते हैं।


किस कंपनी का कैसा रजिस्ट्रेशन

प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के लिए रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।

मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स के तहत आने वाले आरओसी में रजिस्ट्रेशन के लिए ओनरशिप पैटर्न के आधार पर नॉर्म्स और जरूरी दस्तावेज देने पड़ते हैं।

अलग-अलग जरूरतों और ओनरशिप के लिए आईएनसी-1 से लेकर आईएनसी-22 तक उपलब्ध फॉर्म्स में से कोई एक या ज्यादा दाखिल करना पड़ता है। ये रजिस्ट्रेशन अब ऑनलाइन भी होने लगे हैं।

कंपनी के लिए आपको तीन नाम प्रस्तावित करने होते हैं, पहले से उस नाम से रजिस्टर्ड कंपनी का नाम आपको नहीं मिल सकता। इसके अलावा एम्स ऐंड ऑब्जेक्टिव और कुछ अन्य जानकारियां देनी होती हैं।

1 लाख रुपए से कम नॉमिनल शेयर कैपिटल वाली कंपनी के रजिस्ट्रेशन की फीस 4000 रुपए है। इससे बड़ी कंपनी के लिए कुछ पैमानों के आधार पर फीस में मामूली बढ़ोतरी होती जाती है।

सोल प्रॉपराइटरशिप फैक्ट्री या कंपनी के लिए आरओसी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है। आप महज अपने लेटर हेड के आधार पर बैंकिंग या अन्य वित्तीय संस्थाओं में खुद को दर्ज करा सकते हैं।

पार्टनरशिप फर्म का कंपनी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है, लेकिन बिना रजिस्ट्रेशन के कोई पार्टनर अपने राइट्स क्लेम नहीं कर सकता। पार्टनरशिप डीड होती है, जिसकी जरूरत आपको हर कदम पर पड़ेगी। राज्य के उद्योग विभाग में इसे जमा कर स्थानीय रजिस्ट्रेशन लेना पड़ता है। वैट से लेकर दूसरे डिपार्टमेंट में भी पार्टनरशिप फर्मों के लिए नॉर्म्स अलग हैं और उसके मुताबिक खुद को रजिस्टर कराना पड़ता है।

रजिस्टर्ड हैं तो बंद रास्ते भी खुलेंगे

अगर आपने अपने कारोबार के लिए जरूरी सभी रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस ले लिए हैं, लेकिन आपकी राह में विभागीय अड़ंगे लग रहे हैं या आपको लगता है कि कोई नोटिस या चालान जबरन थोपा गया है तो उसी विभाग में ऐसे सेल हैं, जहां आप अपील या ऑब्जेशन दायर कर सकते हैं। नगम निगम, विकास प्राधिकरण, पर्यावरण विभाग के अपने-अपने अपीलेट या न्यायाधिकरण हैं, जहां कोई भी पक्ष किसी भी फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है। वैट या सेल्स टैक्स में तो आप कमिश्नर तक के फैसले को उसी की ऑब्जेक्शन हियरिंग अथॉरिटी में चुनौती दे सकते हैं। उससे असंतुष्ट हैं तो अपीलेट या फिर बाहर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। दिल्ली सेल्स टैक्स बार असोसिएशन के पूर्व सेक्रेट्री संजय शर्मा कहते हैं कि अगर आप तय नॉर्म्स का अनुपालन करते हैं तो आपके कारोबार में कोई बाधा नहीं आएगी और आएगी तो आप उसका डटकर मुकाबला करने की स्थिति में होंगे। हर स्टेज पर कानूनी सुनवाई, निपटारे और यहां तक की बेवजह हुई परेशानी के लिए मुआवजे की व्यवस्था भी है।

नियम कुछ बदलने वाले हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रमेव जयते के नारे के साथ श्रम सुधारों का ऐलान किया है, इससे लेबर डिपार्टमेंट से जुड़े कई रजिस्ट्रेशन, लाइसेंस और प्रक्रियाओं में बदलाव आ सकता है। इसी तरह देश में जीएसटी और डीटीसी के रूप में नई कर प्रणालियां आने वाली हैं, तब एक्साइज, वैट, सर्विस टैक्स के एकीकरण के बाद कारोबारियों के लिए रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग की व्यवस्था में भी काफी बदलाव होंगे। ऐसे में आपको इन सुधारों के लागू होने पर कड़ी नजर रखनी होगी और उनके अनुसार ही अपनी योजनाएं बनानी होंगी।

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