Thursday, January 24, 2013

5 मिनट का पद्मासन, बढ़ाए आत्मविश्वास









जीवन में सफलता के लिए आत्मविश्वास का होना अति आवश्यक है। ध्यान और आसन जैसी कुछ यौगिक क्रियाओं को अपनाकर आप अपने आत्मविश्वास में वृद्धि कर सकते हैं। 
हमारा जीवन भौतिक एवं आत्मिक शक्तियों का संयोग है। जीवन के बेहतर संचालन के लिए दोनों शक्तियों का संतुलन आवश्यक भी है। आज के माहौल में हमने आत्मिक उन्नति को नजरअंदाज-सा कर दिया है। और इसके अभाव में आत्मविश्वास एवं इच्छाशक्ति में कमी आ जाती है। परिणामस्वरूप जीवन नारकीय, दुखपूर्ण, वेदना तथा निराशा से भर जाता है। योग के अभ्यास से खोई हुई आत्मशक्ति को पुन: जागृत किया जा सकता है। आइए, जानें इस क्रियाओं को:

आसन
शरीर, मन तथा बुद्धि ही हमारे जीवन की धुरी हैं। यदि ये स्वस्थ तथा मजबूत नहीं हैं तो भौतिक और आत्मिक दोनों उन्नतियां बेमानी हो जाती हैं। आसन शरीर, मन, तथा बुद्धि को नियोजित करते हैं। इस हेतु सब से श्रेष्ठ आसन है- सूर्य नमस्कार, पद्मासन, सिद्धासन, पश्चिमोत्तासन, अर्धमत्स्येन्द्र आसन, त्रिकोणासन, मयूरासन, सर्वागासन आदि।


पद्मासन की अभ्यास विधि
दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएं। बांये पैर को घुटने से मोड़कर इसके पंजे को दांयी जांघ पर तथा दांये पैर के पंजे को बायीं जांघ पर रखें। यह पद्मासन है। दोनों हाथों को जांघों के बगल में जमीन पर रखें। अब हाथों के सहारे धड़ को यथासंभव जमीन से ऊपर उठाएं। आरामदायक समय तक इस स्थिति में रुककर वापस पूर्व स्थिति में आएं।

सीमाएं
शरीर के साथ अनावश्यक जबरदस्ती न करें। जितना संभव हो, उतना ही आसन करें।



ध्यान
नकारात्मक सोच, मन का असंतुलन, अविवेक, निराशा, अवसाद तथा अज्ञानता आत्मविश्वास में कमी का कारण है। यदि गंभीरतापूर्वक विचार किया जाये तो मन की चंचलता या एकाग्रता की कमी ही हमारे दु:खों का मूल कारण है। ध्यान के अभ्यास से इस समस्या का समाधान सहजता से हो जाता है। सुख, दुख, लाभ-हानि हमारे मन के निर्माण हैं। यदि मन पर ही काबू कर लिया गया तो समस्याओं पर काबू हो जाता है।

अभ्यास की विधि
ध्यान के किसी भी आसन पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। आंखों को ढीली बन्द कर अपनी सहज श्वास-प्रश्वास का निरीक्षण करें। कुछ महीनों तक इसका अभ्यास कर जब इस पर दक्षता मिल जाए तो विचारों का दृष्टा बनना चाहिए। प्रतिदिन 15 से 20 मिनट तक इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए।

आहार
व्यक्तित्व के विकास में संतुलित आहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनाज, सब्जी, फल, सलाद का भोजन में संतुलन रखना जरूरी है। भोजन भूख से थोड़ा कम तथा निश्चित समय पर होना चाहिए। दिन में तीन या चार बार से अधिक नहीं खाना चाहिए। गरिष्ठ और तले तथा मिर्च मसाले वाले भोजन हमारी इच्छा शक्ति को कमजोर करते हैं। अतएव संतुलित भोजन का खयाल रखें।

इन बातों का भी रखें ध्यान
प्रतिदिन सामथ्र्य अनुसार आसन, व्यायाम या टहलना अवश्य करें।
प्रतिदिन धर्मग्रन्थों, उपदेशों आदि का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।
जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। निरुद्देश्य जीवन अस्त व्यस्त होता है।
प्रतिदिन थोड़ा समय (10-15 मिनट) सेवा, कर्मयोग आदि पर दें। 
जब भी नकारात्मक विचार सतायें, अपनी श्वसन क्रिया को गहरी बनायें।

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