मारे देश में जलना मृत्यु का एक बड़ा कारण है। आग से सुरक्षा बहुत जरूरी है। मामूली रूप से जलने के जख्म तो समय के साथ वैसे ही अच्छे हो जाते हैं, पर गंभीर रूप से जलने पर संक्रमण को रोकने और घावों को भरने के लिए विशेष देखभाल करनी होती है। उष्णता के अलावा रेडिएशन, रसायन, बिजली से होने वाले जख्मों को भी बर्न कहते हैं।
त्वचा का जलना
त्वचा का जलना हल्के से लेकर बहुत ज्यादा तक हो सकता है। जब बहुत ही हल्का जला हो तो उसे फस्र्ट डिग्री बर्न कहते हैं। इसमें मेडिकल ट्रीटमेंट की इतनी आवश्यकता नहीं पड़ती है, जब तक जलने का असर उतकों पर न हो। सेकेंड और थर्ड डिग्री के बर्न में अस्पताल ले जाना जरूरी है।
फर्स्ट डिग्री
इसमें सिर्फ त्वचा की सबसे ऊपरी परत प्रभावित होती है। घाव में दर्द होता है और सूजन और लालपन आ जाता है। अगर घाव तीन इंच से बड़ा हो या ऐसा लगे कि घाव त्वचा की अंदरूनी परत तक है या वह आंख, मुंह, नाक या गुप्तांग के पास हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। सामान्य घाव को भरने में 3 से 6 दिन लगते हैं।
क्या है उपचार
-जली हुई त्वचा को जल्दी से ठंडे पानी में डुबो लें। उसे कम से कम 15 मिनट पानी में डुबोकर रखें, ताकि चमड़ी से गर्मी निकल जाए और सूजन न हो।
-संक्रमण से बचने के लिए जली हुई त्वचा पर एलोवेरा जेल या एंटीबायोटिक क्रीम लगाएं।
-घाव के ऊपर ढीली पट्टी या न चिपकने वाली पट्टी बांध लें, ताकि वह हवा से बचे और दर्द कम हो। इससे संक्रमण भी नहीं फैलेगा।
सेकेंड डिग्री बर्न
यह बाहरी परत एपिडर्मिस और अंदरूनी परत डर्मिस दोनों को प्रभावित करता है। इससे दर्द, लालपन, सूजन और फफोले हो जाते हैं। अगर घाव जोड़ों पर हुआ है तो उस हिस्से को हिलाने-डुलाने में तकलीफ होगी। शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
क्या है उपचार
-घाव गहरा है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
-त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ सकती है।
-अंगों के मुडऩे से फिजिकल थेरेपी की जरूरत पड़ती है।
-अस्पताल में भर्ती करना जरूरी होता है।
थर्ड डिग्री बर्न
इसमें त्वचा की तीनों परतें प्रभावित हो जाती हैं। इससे त्वचा सफेद या काली हो जाती है और सुन्न हो जाती है। जले हुए स्थान के हेयर फॉलिकल, स्वेट ग्लैंड और तंत्रिकाओं के सिरे नष्ट हो जाते हैं। तंत्रिकाओं के नष्ट होने से दर्द नहीं होता। कोई फफोला या सूजन नहीं होती। रक्त का संचरण बाधित हो जाता है। अत्यधिक डिहाइड्रेशन हो जाता है। लक्षण समय बीतने के साथ गंभीर होते जाते हैं। 80-90 प्रतिशत जलने पर जीवित बचने की संभावना बहुत कम रह जाती है।
क्या है उपचार
-अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ेगी।
-रोगी के शरीर में शिराओं से तरल पदार्थो की आपूर्ति की जाती है।
-कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन देने की आवश्यकता पड़ती है।
-पूरी देखभाल की आवश्यकता होती है।
-रोगी अवसाद में जा सकता है।
क्या करें
-अगर आग लग जाए तो फर्श पर लोट जाएं, धुंए की परत से नीचे। अगर आग पूरे स्थान पर फैल रही है तो बाहर निकलकर भागें।
-मामूली रूप से जले हुए स्थान पर दस या पंद्रह मिनट तक ठंडा पानी डालें। ध्यान रहे कि पानी ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।
-जख्म के थोड़ा सूखने के बाद उस पर सूखी पट्टी ढीली बांधें, ताकि गंदगी और संक्रमण न फैले।
-सांस नहीं चल रही हो तो सीपीआर दें।
-जलने के बाद संक्रमण फैलने की आशंका अत्यधिक होती है। इसलिए टिटनेस का इंजेक्शन जरूर लगाएं।
क्या न करें
गंभीर रूप से जलने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कोई भी जला हुआ कपड़ा या दूसरी चीज उससे चिपक गई हो तो उसे न निकालें।
-गंभीर रूप से जले घाव पर कोई मल्हम, क्रीम, तेल या मक्खन न लगाएं।
-फफोले और मृत त्वचा को न छेड़ें, इससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
-अगर व्यक्ति गंभीर रूप से जला है तो उसे कुछ भी न खिलाएं।
-गंभीर रूप से जले हुए अंग या शरीर को पानी में न डुबोएं।
-जले हुए व्यक्ति के सिर के नीचे तकिया न रखें। अगर जलने से श्वास नली प्रभावित हुई होगी तो इससे श्वास मार्ग बंद हो सकता है।
-घाव पर मक्खन या बर्फ न लगाएं। इससे कोई लाभ नहीं होगा बल्कि त्वचा के ऊतक नष्ट हो जाएंगे।
-अगर कपड़े जलकर चिपक चुके हैं तो उन्हें घाव से खींचकर न निकालें।
-गंभीर रूप से जली अवस्था में उस भाग पर ठंडा पानी न डालें, क्योंकि इससे शरीर का तापमान और कम हो सकता है और ब्लड प्रेशर गिरकर रक्त संचरण को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
..तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं
-अगर जला हुआ क्षेत्र बड़ा हो।
-अगर बर्न थर्ड डिग्री का हो।
-अगर व्यक्ति ने धुआं अंदर ले लिया हो।
-अगर बिजली का झटका लगा हो।
-48 घंटे बाद भी दर्द कम न हुआ हो।
-अगर बहुत प्यास लगे, चक्कर आएं।
बरतें कुछ सावधानियां
-माचिस और लाइटर बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
-किचन में सिंथेटिक कपड़े न
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