Thursday, April 18, 2013

मंद दृष्टि से बचे रहेंगे आपके बच्चे


लेजी आई, जिसे मंद दृष्टि भी कहते हैं, बच्चों में मिलने वाली आम समस्या है। अगर समय पर अपने बच्चे की इस समस्या पर ध्यान दे देंगे तो उसकी आंखें जल्द ही स्वस्थ हो सकती हैं।
एम्ब्लायोपिया (मंद दृष्टि) को सामान्यत: लेजी आई भी कहते हैं। इसमें बच्चे की दोनों आंखों में सामान्य रूप से दृष्टि का विकास नहीं हो पाता। अगर इस बीमारी का सही समय पर इलाज न करवाया जाए तो बच्चे की उस आंख में कभी भी सही दृष्टि नहीं आ पाती। नजर की यह कमजोरी समय के साथ-साथ बढ़ती जाती है। धीरे-धीरे बच्चे का मस्तिष्क कमजोर आंख से आने वाली छवि को नजरअंदाज करना शुरू कर देता है। इसलिए अपने बच्चे की आंखों की जांच डॉक्टर से करा लें, ताकि इस रोग के संभावित लक्षण सही समय रहते पकड़ में आ जाएं।
क्यों होता है लेजी-आई
आमतौर पर इस रोग की शुरुआत तब होती है, जब एक आंख की रोशनी दूसरी से बेहतर होती है। एक आंख सब चीजें साफ देख रही होती है, पर दूसरी आंख को वही चीजें नजर नहीं आतीं। जब बच्चे के मस्तिष्क को एक धुंधली और एक साफ छवि नजर आती है तो वह धुंधली छवि की उपेक्षा करने लगता है। अगर यह सिलसिला महीनों अथवा वर्षों तक चलता रहे तो धुंधली छवि बनाने वाली आंख की रोशनी जा सकती है। इसकी एक वजह भेंगापन भी हो सकती है, जिसमें दोनों आंखें विपरीत दिशा में देखती हैं।
कैसे करें जांच 
स्कूल जाने की उम्र में ही बच्चे की आंखों की त्रिस्तरीय जांच करवाई जानी चाहिए। इसमें देखा जाता है कि बच्चे की आंख में रोशनी सीधी जा रही है या नहीं, दोनों आंखों की दृष्टि समान है या नहीं और दोनों आंखें सामान्य रूप से हिल रही हैं या नहीं। कोई भी समस्या हो तो बिना विलम्ब उपचार शुरू कर देना चाहिए।
कैसे होता है इलाज 
इस बीमारी का सबसे सामान्य इलाज यही है कि बच्चे के मस्तिष्क पर कम रोशनी वाली आंख को इस्तेमाल करने के लिए जोर डाला जाए। शुरू में बच्चे को बहुत तकलीफ होती है, क्योंकि उसे सिर्फ कमजोर आंख से देखना होता है। आंखों की रोशनी दुरुस्त होने में कुछ हफ्ते और महीने भी लग सकते हैं। बेहद जरूरी है कि डॉक्टर की सलाह का सही तरीके से पालन किया जाए।
क्या हैं परिणाम 
अगर इस बीमारी को सही समय पर भांप कर इसका उचित इलाज करवा लिया जाए तो अधिकतर बच्चों की नजर दुरुस्त हो जाती है। सात से नौ साल की उम्र के बाद इसका इलाज मुश्किल हो जाता है, इसलिए जरूरी है कि बच्चे की आंख की नियमित जांच करवाई जाए और कुछ असामान्य नजर आते ही फौरन उसका इलाज करवाया जाए ।
डॉक्टर की सलाह जरूर मानें 
डॉक्टर की सलाह को जरूर मानें। कई बार बच्चे रोजाना पैच नहीं पहनते। ऐसे में आपका दायित्व है कि बच्चे को डॉक्टर के दिशा-निर्देशों के अनुसार रहने के लिए प्रोत्साहित करें।


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