Sunday, April 28, 2013
ब्रेन स्ट्रोक: न लगा दे आपकी जिंदगी पर ब्रेक
दिल्ली की तेज रफ्तार जिंदगी में घड़ी की सुइयों संग कदमताल करती दिनचर्या, तनाव, समय पर न खाना और पूरी नींद न लेना कई जानलेवा बीमारियों की वजह बनती जा रही है। इन्हीं जानलेवा बीमारियों में से एक है 'ब्रेन स्ट्रोकÓ।
ब्रेन स्ट्रोक यानी आज के समय की एक जानलेवा बीमारी। हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों को जितनी गंभीरता से लिया जाता है, इस बीमारी को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि उम्रदराज लोग ही नहीं, युवा भी तेजी से इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
ब्रेन स्ट्रोक
'ब्रेन स्ट्रोकÓ में मस्तिष्क की कोशिकाएं अचानक मृत हो जाती हैं। यह मस्तिष्क में ब्लड क्लॉट बनने, ब्लीडिंग होने या रक्त संचरण के सुचारु रूप से न होने के कारण हो सकता है। रक्त संचरण में रुकावट आने के कुछ ही मिनट में मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाती है। जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाएं फट जाती हैं, तो इसे 'ब्रेन स्ट्रोकÓ कहते हैं। इस कारण लकवा, याददाश्त जाने की समस्या, बोलने में असमर्थता जैसी स्थिति आ सकती है। कई बार 'ब्रेन स्ट्रोकÓ जानलेवा भी हो सकता है। इसे ब्रेन अटैक भी कहा जाता है।
इसके लक्षण
इसके लक्षण अलग-अलग होते हैं। कई मामलों में तो मरीज को पता ही नहीं चलता कि वह ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुआ है। इन्हीं लक्षणों के आधार पर डॉक्टर पता लगाते हैं कि स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क का कौन-सा भाग क्षतिग्रस्त हुआ है। अक्सर इसके लक्षण अचानक दिखाई देते हैं। इनमें प्रमुख हैं-
मांसपेशियों का विकृत हो जाना।
हाथों और पैरों में कमजोरी महसूस होना।
सिर में तेज दर्द होना।
देखने में परेशानी।
याद्दाश्त कमजोर हो जाना।
कारण
सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रजनीश कुमार कहते हैं, 'मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नालिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण या उनके फट जाने के कारण ब्रेन अटैक होता है। इन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का मुख्य कारण 'आर्टियो स्क्लेरोसिसÓ है। इसके कारण नलिकाओं की दीवारों में वसा, संयोजी उत्तकों, क्लॉट, कैल्शियम या अन्य पदार्थो का जमाव हो जाता है। इस कारण नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं। उनके द्वारा होने वाले रक्त संचरण में रुकावट आता है या रक्त कोशिकाओं की दीवार कमजोर हो जाती है।Ó
बचने के उपाय
यूं तो पोषक खाद्य पदार्थों का सेवन सभी के लिए जरूरी है, लेकिन विशेष रूप से उनके लिए बहुत जरूरी है जो स्ट्रोक से पीडि़त हैं। पोषक भोजन खाने से न सिर्फ मस्तिष्क की क्षतिग्रस्त हुई कोशिकाओं की मरम्मत होती है बल्कि भविष्य में स्ट्रोक की आशंका भी कम हो जाती है। ऐसा भोजन लें जिसमें नमक, कॉलेस्ट्रॉल, ट्रांस फैट और सेचुरेटेड फैट की मात्र कम हो और एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ई, सी और ए की मात्र अधिक हो। साबुत अनाज, फलियां, सूखे मेवों और ब्राउन राइस का सेवन करें। जामुन, गाजर और गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों में एंडीऑक्सीडेंट की मात्र बहुत अधिक होती है।
सर्दियां बढ़ा देती हैं खतरा
हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं, 'जिन्हें ब्लडप्रेशर की शिकायत है, सर्दियों में सुबह के समय उनका ब्लडप्रेशर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे लोगों को इस मौसम में खास ख्याल रखना चाहिए।Ó
किन्हें है अधिक खतरा
डायबिटीज टाइप-2 के मरीजों में इसका खतरा अधिक बढ़ जाता है।
हाई ब्लप्रेशर और हाइपर टेंशन के मरीज भी इसकी चपेट में जल्दी आ जाते हैं।
मोटापा ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण बन सकता है।
धूम्रपान, शराब और गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन ब्रेन अटैक को निमंत्रण देने वाले कारक माने जाते हैं।
बढ़ता कोलेस्ट्रॉल का स्तर और घटती शारीरिक निष्क्रियता भी इसकी वजह बन सकती है।
उपचार
लक्षण नजर आते ही मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर इसके उपचार में रक्त संचरण को सुचारु और सामान्य करने की कोशिश की जाती है ताकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके। डॉ. कुमार कहते हैं, 'कई अत्याधुनिक अस्पतालों में थ्रोम्बोलिसिस के अलावा एक और उपचार उपलब्ध है जिसे सोनो थ्रोम्बोलिसिस कहते हैं। यह मस्तिष्क में मौजूद ब्लड क्लॉट को नष्ट करने का एक अल्ट्रासाउंड तरीका है। इस उपचार में केवल दो घंटे लगते हैं। इसीलिए स्ट्रोक अटैक के तीन घंटे के भीतर मरीज को जो उपचार उपलब्ध कराया जाता है उसे 'गोल्डन पीरियडÓ कहते हैं।
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