Sunday, April 28, 2013
बिना चीर-फाड़, बिना दवा नीरोग करे रिफ्लेक्सोलॉजी
दवाई खाना किसे अच्छा लगता है? हम में से कोई भी ऐसा नहीं होगा जो दवा का प्रयोग करना चाहेगा। दूसरी ओर कोई बीमारी होने पर दवा लेनी भी पड़ती है। दवाएं तथा अन्य डॉक्टरी खर्च जेब पर भारी तो होता ही है साथ ही यह भी देखा गया है कि दवाएं अकसर रोग को दबा देती हैं जो समय पाकर पुन: उभर आता है।
पैंतीस वर्षीया रश्मि एक प्राइवेट कम्पनी में काम करती हैं। कुछ समय पहले तक उनकी समस्या थी माइग्रेन। बहुत से डॉक्टरों को दिखाने और बहुत सी दवाओं के प्रयोग के बाद भी उन्हें आराम नहीं मिला। फिर उन्होंने रिफ्लेक्सोलॉजी का सहारा लिया। आज वे इस समस्या से पूरी तरह निजात पा चुकी हैं।
रिफ्लेक्सोलॉजी उपचार की एक सुरक्षित पद्धति है जो प्राचीन समय से ही हमारे देश में प्रचलित है। विभिन्न झंझटों से परे इलाज की यह पद्धति बिल्कुल प्राकृतिक एवं सुविधाजनक है। यहां न कड़वी दवाएं हैं और न ही चीर फाड़। यह विधि शरीर में उपस्थित रोग प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय करके ही रोगों का उपचार करती है।
इस पद्धति में दबाव का बहुत महत्व है। हमारे पूरे शरीर के उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रकृति ने कुछ रिफ्लैक्स एरिया बनाए हैं। अंगुलियों तथा अंगूठे की सहायता से इस रिफ्लैक्स एरिया के बिन्दु विशेष पर दबाव डालकर इच्छित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। ये रिफ्लैक्स एरिया हथेली, तलवे तथा कुछ अन्य भागों में होते हैं जिन पर दबाव डालकर शरीर को स्वस्थ किया जाता है।
इस विधि से उपचार द्वारा न केवल रोग दूर होता है अपितु इससे शरीर में शक्ति तथा स्फूर्ति का संचार भी होता है। हमारी शारीरिक क्रियाएं किसी एक अंग की गतिविधि का परिणाम नहीं होतीं बल्कि विभिन्न अंगों के तालमेल से इन क्रियाओं का संचालन होता है। यदि शरीर का एक भी अंग रोगी हो जाता है तो पूरे शरीर का तालमेल बिगड़ जाता है और पूरे शरीर में कष्ट होता है ऐसे में यदि अंग विशेष के रोग को ठीक कर दिया जाए तो पूरा शरीर तंदुरुस्त होता है।
रिफ्लेक्सोलॉजी न केवल रोगों का उपचार करती है अपितु यह शरीर की सफाई भी करती है। होता यह है कि हमारे शरीर में विभिन्न टाक्सिन्स जमा हो जाते हैं, वास्तव में यही जहरीले तत्व ही रोग की जड़ भी होते हैं। दबाव डालने से शरीर में एक रासायनिक क्रिया शुरू हो जाती है जिससे क्रिस्टल के रूप में जमे ये टाक्सिन्स घुलकर मल-मूत्र तथा पसीने के जरिए शरीर से बाहर निकल जाते हैं। जहरीला पदार्थ निकल जाने से शरीर में स्वस्थ रक्त की सप्लाई शुरू हो जाती है और रोग दूर हो जाता है।
इस विधि से इलाज में किसी डाइग्नोसिस की जरूरत नहीं होती बस रोगी को दबाव की कुछ सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं। सिटिंग की अवधि 25 मिनट से लेकर 60 मिनट तक हो सकती है। कितनी सिटिंग्स लेनी पडेंग़ी? अर्थात् सिटिंग्स की संख्या रोग की जटिलता पर निर्भर करती है। एकदम साफ-सुधरी इस चिकित्सा पद्धति की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पद्धति के कोई साइड इफैक्ट्स नहीं हैं। किसी भी चीरफाड़ और दर्द से रहित इस पद्धति को अपनाने के बाद रोगी पहले से अच्छा महसूस करने लगता है परंतु रोग को जड़ से मिटाने के लिए समय और धैर्य दोनों की आवश्यकता होती है।
पीठ के दर्द, जोड़ों के दर्द, विभिन्न अस्थि रोग, साइटिका, स्लिप डिस्क, चक्कर आना, एलर्जी, दमा, माइग्रेन, अनिद्रा, विभिन्न अंगों में सूजन, तनाव, अवसाद, मूत्र संबंधी रोगों, मासिक धर्म संबंधी समस्याओं, अपच, हाथ-पैर सुन्न पडऩा या ठंडे होना आदि रोगों का इलाज इस पद्धति से संभव है। सिरोसिस, उच्च या कम रक्तचाप, पार्किंसस तथा फोबिया के इलाज में भी यह पद्धति कारगर सिद्ध होती है। स्पीच संबंधी कठिनाइयां जैसे हकलाना या बोलने से किसी अन्य प्रकार की कठिनाई को भी इस विधि द्वारा दूर किया जा सकता है। थायरायड ग्रंथि में उत्पन्न किसी अनियमितता को दूर करने के लिए भी इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
यह उपचार लेते समय खानपान के मामले में मरीज को अनेक सावधानियां रखनी पड़ती हैं। मरीज को सफेद चीनी, बारीक पिसा आटा, पॉलिश किए हुए चावल, काफी, शीतल पेय, खट्टे खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए क्योंकि बाजार में उपलब्ध ऐसे किसी भी खाद्य पदार्थ में कैलोरी तो होती है लेकिन ये शरीर में जहरीले पदार्थ उत्पन्न करते हैं जिससे इलाज में बाधा आती है।
खानपान में परहेज बरत कर आप भी इस हानि रहित चिकित्सा पद्धति का लाभ उठा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इलाज करवाने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आप जिस चिकित्सक से उपचार करवा रहे हों वह अपने विषय का विशेषज्ञ हो अन्यथा इच्छित लाभ नहीं मिल पाता।
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