Sunday, April 21, 2013

आजकल खान-पान का रखें खास ध्यान


यह त्योहारों का मौसम है। नवरात्र मना रहे अधिकतर लोग उपवास कर रहे हैं, लेकिन यह जानना बहुत जरूरी है कि सेहत को ध्यान में रखते हुए उपवास कौन करे और कौन नहीं।
मौसम त्योहारों का है। आप नवरात्र की नियमित पूजा कर रहे होंगे और रोज व्रत भी रख रहे होंगे। उपवास करना वैसे तो तन और मन दोनों के लिए फायदेमंद होता है, पर कुछ स्थितियों में इसे न रखा जाए तो बेहतर।
आपको उपवास नहीं करना चाहिए
बालक, वृद्ध, निर्बल, रोगी, दूध पिलाने वाली माताओं और गर्भवती महिलाओं को उपवास बिल्कुल नहीं करना चाहिए। बहुत से माता-पिता बच्चों को उपवास करने के लिए अनेक उदाहरण देते हैं और व्रत रखवाते हैं। कोई किसी की देखा-देखी व्रत करने को तैयार हो जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए।
उपवास के पहले यह जरूर सोचें
यह किसी की बराबरी करने का नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और आस्था का मामला है, इसलिए पहले अपने शरीर की शक्ति का आकलन करें। फिर उपवास करने की सोचें। कमजोर शरीर वाली महिला अथवा पुरुष व्रत रखने की न सोचें। ऐसे लोग अगर व्रत रखते हैं तो संभव है उनके रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में कमी आ जाए, जिससे शरीर में और कमजोरी या थकान आ जाए। इसलिए सेहत का खयाल पहले रखें। यदि आप स्वस्थ हैं, निरोग हैं तो ही धर्म का भली-भांति पालन कर पाएंगे।
हमारे उपवास बहुत होते हैं। सातों वारों (रविवार से सोमवार तक) और प्रतिपदा से अमावस्या, पूर्णिमा तक सभी त्योहार और उपवास ही हैं। इनमें जन्माष्टमी, चतुर्थी, शिवरात्रि, नवरात्र सभी शामिल हैं। इनमें से किसी में एक समय का भोजन लेने की तो किसी में केवल फल आदि से व्रत खोलने की परम्परा है। ऐसे में शरीर की क्षमता को देखना बहुत जरूरी है कि वह उस त्योहार को करने योग्य है या नहीं।
ऐसा न करें
व्रत करने वालों में बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो पूरे दिन उपवास रखते हैं। शाम को व्रत खोलने के समय तला-भुना या गरिष्ठ भोजन इतना अधिक कर लेते हैं, मानो दोनों समय के भोजन की पूर्ति करनी हो। यह खाना खाते ही नींद काफी तेज आती है और यह सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है।
शांतिपूर्वक सात्विक भोजन करें
ध्यान रखें, व्रत में केवल सात्विक भोजन शान्ति से बैठ कर पालथी मार कर इष्टदेव को अर्पण कर किया जाना चाहिए।
गप-शप करते हुए किसी के साथ एक थाली में तथा झूठा भोजन करना वजिर्त है। उपवास के दौरान ऐसा करना उचित नहीं।
सावधानी बरतें
उपवास खोलते समय अपने इष्ट देव का ध्यान करें और जो प्राप्त भोजन है, उसे अर्पण कर एक ग्रास अलग निकाल कर भोजन करें।
भोजन धीरे-धीरे शान्त चित्त से करें। उतना ही खाएं कि भूखे भी न रहें और पेट भी भारी न हो।





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