Sunday, April 21, 2013

कहीं जीना मुहाल न कर दे ऑस्टियोपोरोसिस


यह बीमारी कभी 45 साल की उम्र के बाद परेशान करती थी, लेकिन अब युवाओं को भी अपनी चपेट में लेने लगी है। कैल्शियम और विटामिन डी की कमी से होने वाली इस बीमारी में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
हड्डियों की कमजोरी आज एक आम समस्या बन गई है। यह सही है कि ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है और उम्र बढऩे के साथ इस बीमारी की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली ने हमारी दिनचर्या और खानपान की आदतों में ऐसा बदलाव किया है कि युवा भी तेजी से इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
क्या है ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों की एक बीमारी है। इसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और आसानी से उनमें फ्रैक्चर आ जाता है। इसका सबसे प्रमुख कारण बोन मिनरल डेंसिटी कम हो जाना है। उम्र बढऩे के साथ हड्डियों से कैल्शियम का क्षरण होने लगता है, जिससे हड्डियां कमजोर होकर आसानी से टूटने लगती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस दो प्रकार का होता है- टाइप 1 और टाइप 2। टाइप 1 महिलाओं में ज्यादा आम है, जो खासकर मेनोपॉज के बाद होता है। टाइप 2 ऑस्टियोपोरोसिस को सेनाइल ऑस्टियोपोरोसिस भी कहते हैं। यह आमतौर पर 75 साल की उम्र के बाद होता है और महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से अपना शिकार बनाता है। इसका प्रभाव सबसे ज्यादा नितंब, रीढ़ की हड्डी और कलाइयों की हड्डियों पर होता है।
बोन डेंसिटी टेस्ट
बोन डेंसिटी टेस्ट में एक विशेष प्रकार के एक्स-रे, जिसे डीएक्सए कहते हैं, के द्वारा स्पाइन, कूल्हों और कलाइयों की स्क्रीनिंग की जाती है। इन भागों की हड्डियों का घनत्व माप कर इनकी शक्ति का पता लगाया जाता है।
इसके कारण
ऑस्टियोपोरोसिस का मुख्य कारण महिलाओं में एस्ट्रोजन और पुरुषों में एंड्रोजन हार्मोनों की कमी होता है।
शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी।
थायराइड की समस्या।
बढ़ती उम्र और अत्यधिक भार।
दवाओं का अत्यधिक सेवन।
शारीरिक सक्रियता में कमी या अधिक दिनों तक बेड रेस्ट करना।
धूम्रपान और शराब का अधिक सेवन।
ऐसे पहचानें
यह बीमारी मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डियों, पसलियों, कूल्हों और कलाइयों में होती है।
इसमें हड्डियों में सिकुडऩ और अस्थिमज्जा में कमी आ जाती है। बोन मास और बोन टिशु का भी क्षरण हो जाता है।
प्रारम्भ में तो इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते, बाद में हड्डियों या मांसपेशियों में दर्द, विशेषकर कमर के निचले हिस्से या गर्दन में दर्द होता है।
हड्डियों का दर्द सर्दियों में अचानक बढ़ जाता है और कई बार लगातार बना रहता है।
शारीरिक सक्रियता में कमी आ जाती है।
शरीर के भार में कमी आ जाती है या कभी-कभी लंबाई भी कम हो जाती है।
कैल्शियम और विटामिन डी है जरूरी
जीवनशैली में बदलाव लाएं: पोषक भोजन खाएं, जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो। इनमें हरी पत्तेदार सब्जियां, डेयरी प्रोडक्ट आदि प्रमुख हैं।
कम से कम 1,500 मिलीग्राम कैल्शियम का प्रतिदिन सेवन करें।
शरीर का भार औसत रखें।
प्रतिदिन एक मील पैदल चलने की कोशिश करें। पैदल चलना हड्डियों की वृद्धि में सहायक होता है।
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
सप्लीमेंट्स से न घबराएं
ऑस्टियोपोरोसिस से पीडि़त लोगों को कैल्शियम और विटामिन डी, विशेषकर विटामिन डी3 और बायोफॉस्फोनेट को सप्लीमेंट के रूप में लेने की सलाह दी जाती है। विटामिन के भी हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है, इसलिए कई लोगों को सप्लीमेंट भी दिया जाता है। पहले एस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए एक प्रचलित उपचार था, पर आजकल इसका प्रयोग काफी कम हो गया है। इसके अलावा सीरम थेरेपी भी इसके उपचार के लिए इस्तेमाल की जाती है।





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