Monday, April 22, 2013

इतिहास की पटरी पर भारतीय रेल


भारत में पहली रेल 16 अप्रैल सन् 1853 ई.में मुंबई से थाणो के बीच (34 किमी.) चली थी।

अंग्रेजों ने अपने हितों के लिए भारत में रेल की शुरुआत की थी। उस समय रेल को भारत में लाने का उद्देश्य कच्चे माल को देश के अंदर अन्य बंदरगाहों तक पहुचना था। रेल निर्माण की दिशा में पहला प्रयास डलहौजी ने 1846 में किया था, लेकिन भारत में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 में मुंबई (तत्कालीन बम्बई) से थाणो के बीच (34 किमी.) चली थी। कार्ल मार्क्‍स के अनुसार रेलवे व्यवस्था ही भारत के विकास की अग्रदूत बनी।

रेलवे के प्रसार में अंग्रेज इंजीनियर रोबर्ट मैटलैंड की भूमिका उल्लेखनीय रही थी। भारत की पहली सवारी गाड़ी हावड़ा से हुगली के बीच 15 अगस्त 1854 को चली। यह 24 मील की यात्रा थी। मुंबई से कोलकाता के बीच सीधी रेल यात्रा की शुरुआत 1870 में हुई। दक्षिण में पहली रेल 1 जुलाई 1856 में मद्रास रेलवे कंपनी द्वारा व्यासर्पदी जीवा निलयम से वालाजाह रोड के बीच चलाई गई। भारत में रेलों के जाल बिछाने के लिए ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला रेलवे नामक कंपनी बनाई गई, 1900 में इसे सरकार ने खरीद लिया। उस समय विभिन्न रियासतों की अपनी-अपनी रेल कंपनियां थीं, लेकिन 1907 तक लगभग सभी कंपनियों को सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया।

1900 के करीब लॉर्ड कर्जन के समय भारत में रेलवे का सर्वाधिक विस्तार हुआ। रेल में शौचालय की सुविधा की शुरुआत प्रथम श्रेणी में 1891 और निचले दर्जे में 1907 में हुई। भारत में पहली विद्युत रेलगाड़ी 3 फरवरी 1925 को बम्बई वीटी से कुर्ला के बीच चली थी।

1924 से पहले तक रेल विभाग के लिए कोई अलग से बजट का प्रावधान नहीं था। इसके लिए धन का आवंटन आम बजट में से किसी अन्य मंत्रालय की तरह से ही किया जाता था, लेकिन 1921 में ईस्ट इंडियन रेलवे समिति ने इसे अलग करने की सिफारिश की, फलस्वरूप 1924 से रेलवे को वित्त मंत्रालय से अलग कर दिया गया, तभी से इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान कर दिया गया। 1924 में रेल का बजट भारत के आम बजट का लगभग 70 प्रतिशत था जो आज लगभग 14-15 प्रतिशत तक रह गया है। भारतीय रेल सोलह क्षेत्रों में बंटी हुई है। प्रत्येक क्षेत्र में कई मंडल हैं।

ये मंडल पूरे भारत में फैले हुए हैं, जो निम्नवत् हैं- उत्तर पश्चिम रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, उत्तर रेलवे, दक्षिण पश्चिम रेलवे, दक्षिण मध्य रेलवे, दक्षिण रेलवे, दक्षिणपूर्व मध्य रेलवे, दक्षिणपूर्व रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, पश्चिम रेलवे, पूर्व तटीय रेलवे, पूर्व रेलवे, पूर्वमध्य रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, मध्य रेलवे,कोंकण रेलवे।

अप्रैल की 16 तारीख को हमारे देश में पहली पैसेंजर ट्रेन के शुरू होने के 160 साल पूरे हो चुके हैं। आज जब हम भारत में हाईस्पीड वाली बुलेट ट्रेनों के चलने का ख्वाब सच होता देख रहे हैं , वहीं एक समय ऐसा भी था जब बैल ट्रेन को खींचा करते थे। यह बात सबको आश्चर्य में डालने वाली है।

करीब 153 वर्ष पहले गुजरात में नैरोगेज ट्रेन की शुरुआत हुई थी। इस ट्रेन में खींचने का काम इंजन नहीं बल्कि बैल किया करते थे। इस हल्की ट्राम-वे को एक जोड़ा बैलों से खिंचवाया जाता था। बैल बहुत ही आसानी से एक ट्राम-वे को खींचते थे, जिसमें पांच गुड्स कैरिज्स होते थे। ये बैल दो-तीन मील की दूरी एक घंटे में तय कर लेते थे।

बड़ोदा के शासक खांडेराव गायकवाड़ ने एक अंग्रेज इंजीनियर मिस्टर ए.डब्ल्यू फोर्ड से पहली डभोई-मियागांव में रेल लाइन की डिजाइन तैयार करवाई और फिर इन्हीं की देखरेख में रेल लाइन का निर्माण किया गया। इस लाइन का 2 फीट 6 इंच का गेज था, जिस पर एक हल्की ट्राम-वे चलाई जाती थी।

इसके बाद यह तय किया कि इस नैरोगेज रेल लाइन पर भाप से चलने वाले इंजन चलाए जाएं। ब्रिटेन के शहर ग्लागो में यहां के लिए तीन इंजन तैयार किए गए।

मिस्टर फोर्ड ने इनकी डिजाइन तैयार की और इनका वजन छह टन था। इस लाइन पर चलने वाली नैरोगेज ट्रेन के लिए कुछ डिब्बे भी भारत में तैयार किए गए थे।

गुजरात में डभोई-मियागांव नैरोगेज रेल लाइन अंतत: इंजन से चलने वाली ट्रेन के लिए 1862 में खोल दिया गया। इस तरह से भारत की पहली नैरोगेज लाइन बनाई गई। इसकी लंबाई 8 मील (13 किमी) लंबी थी। भारत में पहले राजघरानों की अपनी रेल हुआ करती थी।




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